आज सरल शब्दों में एक सीधी सादी सी रचना , बस यूँ ही ।
मेरा मेरा करती है दुनिया सारी
मोहमाया से मुक्ति पाओ , तो जाने ।
दावत तो फाइव स्टार थी लेकिन
भूखे को रोटी खिलाओ , तो जाने ।
राह जो दिखाई है ज्ञानी बनकर
खुद भी चलकर दिखाओ , तो जाने ।
रुलाने वाले तो लाखों मिल जायेंगे
किसी रोते को हंसाओ, तो जाने ।
देवी देवता बसते हैं करोड़ों यहाँ
इंसान बन कर दिखलाओ , तो जाने ।
ब्लॉग तो रोज़ लिखते हो यार
कभी साथ बैठ गपियाओ , तो जाने।
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ब्लॉग तो रोज़ लिखते हो यार
ReplyDeleteकभी साथ बैठ गपियाओ,तो जाने।
वाह डॉक्टर साहब
आज तो सबेरे सबेरे ही मौज कर दी
बडी सुथरी हजल ले आए, पण ध्यान राखियो
बड़े गुरुजी आण ही वाळे सैं, छड़ी लेके।:)
राम-राम
आपका ये मूड देखकर पेश-ए-नज़र है रफ़ी साहब का ये गाना...
ReplyDeleteदूर रहकर न करो बात, करीब आ जाओ,
इस कद्र हमसे झिझकने की ज़रूरत क्या है,
ज़िंदगी भर का है अब साथ, करीब आ जाओ,
दूर रहकर न करो बात...
जय हिंद...
साथ बैठकर गपियाने के लिए मनुष्य बनना जरुरी है,हम डाक्टर,इंजीनियर,शिक्षक आदि बनने को तैयार हैं, इंसान नहीं।
ReplyDeleteडा. साहिब, कहावत है, 'हर सताया हुवा शायर होता है'!
ReplyDeleteकिन्तु, दूसरी ओर 'भारत' में ही, "तमसो मा ज्योतिर्गमय..."
कह गए प्राचीन ज्ञानी-ध्यानी 'गुरु' लोग
यानि 'मन के अन्धकार को दूर करने वाले'
और ऐसा ही अंग्रेजी में भी कह गए गुरु
"Lead the kindly light"...
)
'भारत' में अनादि काल से प्रथा चली आ रही है
'कुम्भ मेले' की और गंगा स्नान की
जो केवल इशारा ही है अनंत को पाने का
कभी भी और कहीं भी अंतर्मन में ही
गंगाधर 'शिव' उल्टा है क्योंकि 'विष' का
मृत्युलोक के 'अस्थायी जीवन' का कारक
गंगा और चन्द्रमा की सहायता से ठंडा माथा रख...
गपियाने की परंपरा शुरू हुई भारत में काशी में
गंगा के किनारे शिव के जन्म स्थान से...
और छड़ी की परंपरा वाला गुरु तो 'कृष्ण' है
जिसने न जाने कितनी 'मटकियाँ' तोड़ी हैं
'कंकड़ मार' अब तक यमुना किनारे
अपनी पथ-भ्रष्ट 'खोई गाय' को सही राह पर लाने :)
gapiyana to hum bhi chate hai aapke sath dr sahab
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDelete"रुलाने वाले तो लाखों मिल जायेंगे
ReplyDeleteकिसी रोते को हंसाओ, तो जाने।"
वाह! बहुत सुन्दर!!
दावत तो फाइव स्टार थी लेकिन
ReplyDeleteभूखे को रोटी खिलाओ , तो जाने ।
राह जो दिखाई है ज्ञानी बनकर
खुद भी चलकर दिखाओ , तो जाने ।
वाह, डा० साहब आप तो कवि भी है, सरल शब्दों में कही लेकिन बहुत गहरी बात कह दी अपने अपनी इस सुन्दर रचना में !
ब्लॉग तो रोज़ लिखते हो यार
ReplyDeleteकभी साथ बैठ गपियाओ , तो जाने।
डॉ. साहिब आप कभी हमसे बतियाने आते ही नही है!
राह जो दिखाई है ज्ञानी बनकर
ReplyDeleteखुद भी चलकर दिखाओ , तो जाने ।
...bahut sundar!!!
जून मे दिल्ली आते हैं तो गपियाते हैं शुभकामनाये
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDelete--
मेरे मन को भाई : ख़ुशियों की बरसात!
--
संपादक : सरस पायस
राह जो दिखाई है ज्ञानी बन कर खुद उसपर चल कर दिखाओ तो जाने ..
ReplyDeleteरुलाने वाले तो बहुत है किसी को हंसाओ तो जाने ...
बहुत सही ...
प्रथा तो हंसने हंसाने वालों को रुलाने की रही है ...इसको बदल डालो तो माने ..:):)
सरल सहज कविता अच्छी लगी ...
Baaton hi baaton mein aur sach mein bahut saral bhaasha mein ... lambee, gahraai ki baaten kah di aapne Doctor sahab ...
ReplyDeleteडा. साहिब, चलिए गपियाते हैं...
ReplyDeleteरीडर्स डाईजेस्ट पर एक थोरेसिक सर्जन की अपनी मृत्यु शैया पर लेटे एक लेखक को सुनाई आत्म-कथा कभी पढ़ी थी,,,कि कैसे उसने सैंकड़ों गले के केन्सर के ओपरेशन कर लोगों को केन्सर-मुक्त किया, खुश किया,,,किन्तु जानते हुए भी अपनी सिगरेट पीने की आदत न छोड़ पाने से स्वयं इस बिमारी से मर रहा था...:(
क्या कहेंगे? क्या यह दर्शाता है कि अपनी ज़िन्दगी का नियंत्रण आदमी के हाथ नहीं है? क्यूंकि आदम भी जानते हुए लालच कर बैठा और 'प्रतिबंधित फल' खा बैठा (और उसका खामियाजा हम भुगत रहे हैं :), भले ही दोष उसका शैतान को और हव्वा को दे दिया जाता है,,,(भारत में नटखट नन्दलाल को - जो सीना ठोक के कहता है कि वो हरेक के भीतर रहता है और माया से सबको, ज्ञानी से ज्ञानी देवता / राक्षश आदि को, मूर्ख बनाता रहता है, केवल अपने विराट स्वरूप 'अमृत' शिव को छोड़ - और अपने भक्तों को भी :)
शास्त्री जी , आज कम्युनिकेशन के साधन तो बहुत हैं , लेकिन लोगों में कम्युनिकेशन ही नहीं हो पाता। कहते हैं खाने के बिना जिंदगी कैसी, और खाना पीने के बगैर कैसा , और खानापीना दोस्तों के बगैर कैसा । :)
ReplyDeleteनिर्मला जी , दिल्ली आयें तो अवश्य मिल कर जाएँ । मेरा नंबर है --९८६८३९९५२०।
जे सी जी , सिगरेट तो चीज़ ही ऐसी है । किसी ने कहा है -it is very easy to stop smoking , and I have done it so many times. :)
ब्लॉग तो रोज़ लिखते हो यार
ReplyDeleteकभी साथ बैठ गपियाओ , तो जाने।
चलिये जल्द ही इच्छा पुरी करेगे जी
डा. साहिब, यह बात आपने बढ़िया कही (हांलाकि सुनी हुई थी :),,,और अपने अनुभव से भी मैं इसका सत्यापन कर सकता हूँ: मैंने भी जब छोड़ी तो बस एक दम ही छोड़ी ('९१ में, १६ वर्ष बाद)...मेरी पत्नी से रहा नहीं गया किन्तु, बाद में एक दिन, टिप्पणी करते कि जब मैं सिगरेट पीता था तो पीते समय मेरे चेहरे पर प्रसन्नता का एक भाव रहता था...किन्तु आज जब मैं औरों को सिगरेट पीते देखता हूँ तो सोचता हूँ कि क्या जरूरत है इसे पीने की? यह 'मन बड़ा चंचल है' :)
ReplyDeleteकिन्तु एक कहावत भी है, कुछ ऐसे, आम आदमी की भाषा में, "होवत है सोही जो राम रची राखा",,,यानि आधुनिक भाषा में, 'कम्प्यूटर प्रोग्रामर के डिजाईन के अनुसार', यानि समयानुसार,,,और समय आधारित है प्रकाश और ताप के स्रोत, सूर्य, पर जिससे - दूरी होते हुए भी - राम और अर्जुन के धनुष से निकलते तीर समान किरणें पसीना निकाल देती हैं गर्मी की धूप में,,,और इस वर्ष तो मार्च का महीना भी सबसे गरम रहा है...:)
अरे! इससे तो मैंने हमारी कहानियों में राम को सूर्य का प्रतिरूप यानि मॉडल दर्शा दिया, और पहले हम देख चुके हैं कैसे प्रकाश ही फिल्म की माया का कारक भी है, और यूं मानव जीवन के नाटक के पीछे भी शायद सूर्य का ही हाथ है कह सकते हैं ? :)...
ब्लॉग तो रोज़ लिखते हो यार
ReplyDeleteकभी साथ बैठ गपियाओ , तो जाने।
--इस शेर के माध्यम से आपने मेरे मन को छू लिया ब्लागिंग के चक्कर में अक्सर मित्रों की महफिल छूट जाती है।
कभी साथ बैठ गपियाओ , तो जाने
ReplyDelete"ब्लॉग तो रोज़ लिखते हो यार
ReplyDeleteकभी साथ बैठ गपियाओ , तो जाने"...
तो फिर आईए ना कभी हमारे यहाँ...खूब बतियाएंगे ...:-)