हाइपर्टेंशन यानि हाई ब्लड प्रेशर ( उच्च रक्त चाप ) एक ऐसी बीमारी है जिसके बीमार को बीमार होने का अहसास ही नहीं होता । और जब होता है तब तक कई मामलों में देरी हो चुकी होती है । इसीलिए इसको साइलेंट किल्लर यानि मौन कातिल कहा जाता है।
प्रो श्रीधर द्विवेदी द्वारा आयोजित लोकोपयोगी व्याख्यान श्रंखला में इस महीने इसी पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया , हमारे अस्पताल में । प्रस्तुत हैं , उसी के कुछ द्रश्य और इससे सम्बंधित जानकारी ।
सभा में श्रोताओं को सम्भोधित करते हुए प्रो द्विवेदी।
डॉ द्विवेदी ने बताया कि भारत में करीब २० करोड़ लोग बी पी के शिकार हैं । और करीब ५० % लोग इसके कगार पर हैं। इसके लिए जिम्मेदार है हमारी जीवन शैली , खान पान , और शहरीकरण जहाँ सभी भौतिक सुख सुविधाएँ आज सभी को उपलब्ध हैं।
इन्ही तत्वों से जुडी हैं --पांच महामारियां ---
उच्च रक्त चाप , मधुमेह, हृदयाघात , पक्षाघात और मोटापा ।
इनमे से यदि एक भी हो जाये तो बाकी चार भी होने का खतरा बना रहता है।
इन्ही पांच महाविनाश के पांच तत्व हैं :
१--तम्बाखू --स्मोकिंग
२--तोंद / निष्क्रियता / व्यायाम हीनता
३--तनाव
४--तला हुआ भोजन --जंक फ़ूड
५--भारतीयता । जी हाँ ये बीमारियाँ सबसे तेजी से हमारे ही देश में बढ़ रही हैं।
मंच पर आसीन पी एन बी प्रबंधक , डॉ ओ पी कालरा --प्रधानाचार्य , यू सी ऍम अस , डॉ यू सी वर्मा -चिकित्सा अधीक्षक , और डॉ हर्षवर्धन --मुख्य अतिथि।
रक्त चाप क्या होता है ?
हमारी धमनियों में रक्त के दबाव को रक्त चाप कहते हैं । यह दो प्रकार का होता है --systolic और diastolic नोर्मल बी पी १२०/८० माना जाता है ।
१४०/९० तक प्री हाइपर्टेंशन कहलाता है । यानि आगे चलकर हाई ब्लड प्रेशर रहने की सम्भावना है।
१४०/९० से ज्यादा निश्चित तौर पर हाई है।
लेकिन यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि सिर्फ एक बार बी पी हाई रीडिंग होने से आप बी पी के मरीज़ नहीं बन जाते । जब कई बार नापने पर या यूँ कहिये कि अलग अलग दिनों में नापने पर यदि रीडिंग हाई आती है , तभी इसे हाइपर्तेन्शन कहा जाता है और इलाज़ किया जाता है।
क्यों होता है उच्च रक्त चाप ?
९५ % लोगों में इसका कोई कारण नहीं होता । इसे इसेंसियल हाइपर्टेंशन कहते हैं। सिर्फ ५% लोगों में ऐसे कारण पाए जाते हैं जिसका उपचार करने से बी पी भी ठीक हो जाता है । इसे सेकंडरी हाइपर्टेंशन कहते हैं।
हाई ब्लड प्रेशर के लिए दोषी कौन ?
धूम्रपान , निष्क्रियता , मोटापा , मधुमेह , जंक फूड्स, अत्यधिक शराब का सेवन , अत्यधिक नमक और वसा का सेवन।
इसके आलावा दक्षिण एशियाई मूल के लोगों को ज्यादा होता है । यह रोग अनुवांशिक भी है।
अत्यधिक ब्लोगिंग भी निष्क्रियता का एक उदाहरण है।
लक्षण :
आरम्भ में इसका पता ही नहीं चलता । सिर्फ तभी पता चलता है जब आप किसी कारण से चेक कराएँ , या देर होने पर इसके गंभीर परिणाम आने लगें ।
इसलिए ज़रूरी है कि ४० वर्ष से ऊपर के लोगों को साल में एक बार अवश्य चेक कराना चाहिए ।
लेकिन यदि अचानक बी पी हाई हो जाये तो --ये लक्षण आ सकते हैं :
सर दर्द, मतली आना , चक्कर आना , नकसीर छूटना , दिल में धड़कन महसूस होना , सांस का फूलना आदि।
बी पी के लेट इफेक्ट्स :
हृदय रोग ( हार्ट अटैक ) , पक्षाघात ( स्ट्रोक ) , किडनी फेलियर ( गुर्दा रोग ) , मधुमेह ।
कैसे बचा जाये ?
बी पी को नोर्मल रखने के लिए आवश्यक हैं :
नियमित जांच।
वज़न को कम रखें या घटायें । प्रति किलो कम करने से २.५ /१.५ mm बी पी कम होता है ।
नियमित व्यायाम । पैदल चलना , साइकल चलाना , तैरना आदि सबसे बेहतर व्यायाम हैं।
योगासन --प्राणायाम और शवासन --दिल का दौरा पड़ने के बाद भी लाभदयक सिद्ध होते हैं।
स्वस्थ आहार --नमक , घी, मीठा , तला हुआ भोजन , टिंड फूड्स से परहेज़ करें या कम से कम खाएं ।
फल, सब्जियां , दालें , मछली , अंडे की सफेदी , लीन मीट , चिकन अच्छे आहार माने जाते हैं।
सचुरेतेड फैट्स की जगह अन्सैचुरेतद और पोली अन्सैचुरेतद तेलों का उपयोग बेहतर है।
शराब :
एक या दो पेग ( ३० ऍम अल ) प्रतिदिन ह्रदय रोग से बचाती है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप आज से पीना शुरू कर दें। वैसे तो सात्विक भोजन का अपना ही मज़ा है।
पुरुषों को सप्ताह में २१ पेग्स ( एक दिन में ४ से ज्यादा नहीं ) , और स्त्रियों को १४ पेग्स से जयादा नहीं ( एक दिन में ३ ) पीना चाहिए । यह मूलत: उन लोगों के लिए है जो शराब का नियमित रूप से सेवन करते हैं।
आदर्श खानपान :
केला , अनार , मोसमी , संतरा ,आदि फल
आंवला , पपीता , लौकी , हरी सब्जियां , दाल , राजमा , और मेवे ( ड्राई फ्रूट्स )
मिश्रित दालें और मिश्रित आटा ।
यदि इस प्रकार जीवन शैली को नियंतरण में रखा जाये तो बी पी की सम्भावना काफी कम हो जाती है ।
यदि फिर भी बी पी हाई रहने लगे , तो फ़िक्र मत करिए --हम डॉक्टर्स हैं ना --हम आपको दवाइयाँ खिलाएंगे --और आप ठीक रहेंगे । बस दवा उम्र भर खानी पड़ सकती है ।
इसलिए जहाँ तक हो सके , जीवन नैया को सीधे चलाइये , भटकने मत दीजिये ।
यदि भटक जाये , तो डॉक्टर को याद करिए ।
इस अवसर पर डॉ द्विवेदी द्वारा लिखा गया यू सी ऍम अस कुलगीत --जय हो --गाया गया ।
इस गीत को संगीतबद्ध और स्वरबद्ध किया डॉ उज्जवल ने ।
आप भी इस गीत का आनंद लीजिये ।
चिकित्सक भी , कवि भी , गीतकार भी , संगीतकार भी और गायक भी । डॉक्टर्स भी सब कुछ हो सकते हैं।
प्रो श्रीधर द्विवेदी द्वारा आयोजित लोकोपयोगी व्याख्यान श्रंखला में इस महीने इसी पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया , हमारे अस्पताल में । प्रस्तुत हैं , उसी के कुछ द्रश्य और इससे सम्बंधित जानकारी ।
सभा में श्रोताओं को सम्भोधित करते हुए प्रो द्विवेदी।
डॉ द्विवेदी ने बताया कि भारत में करीब २० करोड़ लोग बी पी के शिकार हैं । और करीब ५० % लोग इसके कगार पर हैं। इसके लिए जिम्मेदार है हमारी जीवन शैली , खान पान , और शहरीकरण जहाँ सभी भौतिक सुख सुविधाएँ आज सभी को उपलब्ध हैं।
इन्ही तत्वों से जुडी हैं --पांच महामारियां ---
उच्च रक्त चाप , मधुमेह, हृदयाघात , पक्षाघात और मोटापा ।
इनमे से यदि एक भी हो जाये तो बाकी चार भी होने का खतरा बना रहता है।
इन्ही पांच महाविनाश के पांच तत्व हैं :
१--तम्बाखू --स्मोकिंग
२--तोंद / निष्क्रियता / व्यायाम हीनता
३--तनाव
४--तला हुआ भोजन --जंक फ़ूड
५--भारतीयता । जी हाँ ये बीमारियाँ सबसे तेजी से हमारे ही देश में बढ़ रही हैं।
मंच पर आसीन पी एन बी प्रबंधक , डॉ ओ पी कालरा --प्रधानाचार्य , यू सी ऍम अस , डॉ यू सी वर्मा -चिकित्सा अधीक्षक , और डॉ हर्षवर्धन --मुख्य अतिथि।
रक्त चाप क्या होता है ?
हमारी धमनियों में रक्त के दबाव को रक्त चाप कहते हैं । यह दो प्रकार का होता है --systolic और diastolic नोर्मल बी पी १२०/८० माना जाता है ।
१४०/९० तक प्री हाइपर्टेंशन कहलाता है । यानि आगे चलकर हाई ब्लड प्रेशर रहने की सम्भावना है।
१४०/९० से ज्यादा निश्चित तौर पर हाई है।
लेकिन यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि सिर्फ एक बार बी पी हाई रीडिंग होने से आप बी पी के मरीज़ नहीं बन जाते । जब कई बार नापने पर या यूँ कहिये कि अलग अलग दिनों में नापने पर यदि रीडिंग हाई आती है , तभी इसे हाइपर्तेन्शन कहा जाता है और इलाज़ किया जाता है।
क्यों होता है उच्च रक्त चाप ?
९५ % लोगों में इसका कोई कारण नहीं होता । इसे इसेंसियल हाइपर्टेंशन कहते हैं। सिर्फ ५% लोगों में ऐसे कारण पाए जाते हैं जिसका उपचार करने से बी पी भी ठीक हो जाता है । इसे सेकंडरी हाइपर्टेंशन कहते हैं।
हाई ब्लड प्रेशर के लिए दोषी कौन ?
धूम्रपान , निष्क्रियता , मोटापा , मधुमेह , जंक फूड्स, अत्यधिक शराब का सेवन , अत्यधिक नमक और वसा का सेवन।
इसके आलावा दक्षिण एशियाई मूल के लोगों को ज्यादा होता है । यह रोग अनुवांशिक भी है।
अत्यधिक ब्लोगिंग भी निष्क्रियता का एक उदाहरण है।
लक्षण :
आरम्भ में इसका पता ही नहीं चलता । सिर्फ तभी पता चलता है जब आप किसी कारण से चेक कराएँ , या देर होने पर इसके गंभीर परिणाम आने लगें ।
इसलिए ज़रूरी है कि ४० वर्ष से ऊपर के लोगों को साल में एक बार अवश्य चेक कराना चाहिए ।
लेकिन यदि अचानक बी पी हाई हो जाये तो --ये लक्षण आ सकते हैं :
सर दर्द, मतली आना , चक्कर आना , नकसीर छूटना , दिल में धड़कन महसूस होना , सांस का फूलना आदि।
बी पी के लेट इफेक्ट्स :
हृदय रोग ( हार्ट अटैक ) , पक्षाघात ( स्ट्रोक ) , किडनी फेलियर ( गुर्दा रोग ) , मधुमेह ।
कैसे बचा जाये ?
बी पी को नोर्मल रखने के लिए आवश्यक हैं :
नियमित जांच।
वज़न को कम रखें या घटायें । प्रति किलो कम करने से २.५ /१.५ mm बी पी कम होता है ।
नियमित व्यायाम । पैदल चलना , साइकल चलाना , तैरना आदि सबसे बेहतर व्यायाम हैं।
योगासन --प्राणायाम और शवासन --दिल का दौरा पड़ने के बाद भी लाभदयक सिद्ध होते हैं।
स्वस्थ आहार --नमक , घी, मीठा , तला हुआ भोजन , टिंड फूड्स से परहेज़ करें या कम से कम खाएं ।
फल, सब्जियां , दालें , मछली , अंडे की सफेदी , लीन मीट , चिकन अच्छे आहार माने जाते हैं।
सचुरेतेड फैट्स की जगह अन्सैचुरेतद और पोली अन्सैचुरेतद तेलों का उपयोग बेहतर है।
शराब :
एक या दो पेग ( ३० ऍम अल ) प्रतिदिन ह्रदय रोग से बचाती है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप आज से पीना शुरू कर दें। वैसे तो सात्विक भोजन का अपना ही मज़ा है।
पुरुषों को सप्ताह में २१ पेग्स ( एक दिन में ४ से ज्यादा नहीं ) , और स्त्रियों को १४ पेग्स से जयादा नहीं ( एक दिन में ३ ) पीना चाहिए । यह मूलत: उन लोगों के लिए है जो शराब का नियमित रूप से सेवन करते हैं।
आदर्श खानपान :
केला , अनार , मोसमी , संतरा ,आदि फल
आंवला , पपीता , लौकी , हरी सब्जियां , दाल , राजमा , और मेवे ( ड्राई फ्रूट्स )
मिश्रित दालें और मिश्रित आटा ।
यदि इस प्रकार जीवन शैली को नियंतरण में रखा जाये तो बी पी की सम्भावना काफी कम हो जाती है ।
यदि फिर भी बी पी हाई रहने लगे , तो फ़िक्र मत करिए --हम डॉक्टर्स हैं ना --हम आपको दवाइयाँ खिलाएंगे --और आप ठीक रहेंगे । बस दवा उम्र भर खानी पड़ सकती है ।
इसलिए जहाँ तक हो सके , जीवन नैया को सीधे चलाइये , भटकने मत दीजिये ।
यदि भटक जाये , तो डॉक्टर को याद करिए ।
इस अवसर पर डॉ द्विवेदी द्वारा लिखा गया यू सी ऍम अस कुलगीत --जय हो --गाया गया ।
इस गीत को संगीतबद्ध और स्वरबद्ध किया डॉ उज्जवल ने ।
आप भी इस गीत का आनंद लीजिये ।
चिकित्सक भी , कवि भी , गीतकार भी , संगीतकार भी और गायक भी । डॉक्टर्स भी सब कुछ हो सकते हैं।
बहुत उम्दा, बहुत उपयोगी, सार्थक पोस्ट!
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दी डॉ साहब
ReplyDeleteबहुत उपयोगी -और हाँ डाक्टर अच्छीअच्छे ब्लॉगर भी हो सकते हैं -डॉ अमर कुमार और आप !
ReplyDeleteअब हफ़्ते में एक ही पोस्ट लिख रहे हैं
ReplyDeleteआपकी सलाह से।
और नेट को 2 घंटे, जितना कम हो जाए
उतना ही ठीक है।
आभार
एक एक लाइन ध्यान से पढने योग्य , एक डॉ द्वारा मुफ्त दी गयी राय का फायदा उठा रहा हूँ ! शुक्रिया भाई जी !
ReplyDeleteडा दराल साहिब, डा द्विवेदी जी को भी धन्यवाद् लाभदायक जानकारी के लिए!
ReplyDeleteआपकी नज़र में योग या 'साधना' का कुछ लाभदायक रोल है क्या: समय के साथ बढ़ते जनसँख्या, भय, तनाव और विष आदि के स्रोतों के कारण इस कलयुग में?
अफ़सोस! क्रिकेट का खेल भी मनोरंजन के स्थान पर आज मानव का अन्य मानव के प्रति प्रेम और विश्वास के स्थान पर घृणा का विषय बन गया है :(
उपयोगी जानकारी।
ReplyDeleteबचाव और इलाज दोनों को बहुत बढ़िया ढंग से प्रस्तुत किया आपने..निश्चित रूप से बहुत ख़तरनाक बीमारी है यह और जहाँ तक हो सके इससे बचने की कोशिश किया जाय...सुंदर आलेख के लिए धन्यवाद डॉ. साहब..
ReplyDeleteअत्यधिक ब्लोगिंग भी निष्क्रियता का एक उदाहरण है। ....यह काम की बात है.
ReplyDeleteसही सोच रहे हैं , ललित जी। आखिर और भी जिम्मेदारियां होती है , विशेषकर स्वास्थ्य की ।
ReplyDeleteजे सी जी , योग और साधना का निश्चित तौर पर रोल है । इस लेख में बताया भी गया है । वैसे भी तनाव को दूर करने में अत्यंत उपयोगी है योग और साधना । अगर रात को नींद न आये तो आप राम राम करते सो जाएँ , तुरंत नींद आ जाएगी।
डॉक्टर साहब बिल्कुल सटीक टाइम पर इस मुद्दे पर लेखनी चलाई है...ब्लॉगिंग में धर्म को लेकर जिस तरह की पोस्ट-काउंटर पोस्ट आ रही हैं, उन्हें पढ़कर तो अच्छे भले इनसान को भी हाई बीपी हो जाए...
ReplyDeleteये बीमारियों में भारतीयता की गुगली समझ नहीं आई...(शायद मक्खन के साथ रहते रहते मोटे दिमाग का हो गया हूं)
जय हिंद...
खुशदीप , अच्छा सवाल है । लेकिन विस्तार से शाम को ।
ReplyDeleteबहुत आभार इस स्वास्थयोपयोगी आलेख का. मनन जरुरी है इन बिन्दुओं पर.
ReplyDeleteइस मुई बीमारी के कारण ही हमारी ब्लॉगिंग कम हो गई है और टिपियाना भी, गालिब और भी गम हैं जमाने में ।
ReplyDeleteबहुत सार्थक और उपयोगी पोस्ट.
ReplyDeleteरामराम.
डा. साहिब, धन्यवाद्! क्षमा प्रार्थी हूँ, पता नहीं कैसे लेख में दी वो लाइन छूट गयी थी!? खैर जहां तक खुशदीप जी ने कहा 'धर्म' को ले कर बहुत भ्रान्ति फैला रखी है चैनलों ने और हो सकता है ब्लोगर्स ने भी...वैसे मेरे विचार, यदि कोई इच्छुक हो तो, http://indiatemple.blogspot.com/ में दी टिप्पणियों के माध्यम से पढ़ सकते हैं...
ReplyDelete"भारतीय" जो आपने कहा वह दरअसल एक आनुवंशिक दोष के कारण कोलेस्टेरोल ज्यादा होने के कारण इसका फैलाव ज्यादा है . "जल उपचार" से इसपर काफी नियंत्रण पाया जा सकता है .
ReplyDeleteभारतीयता नाम की बीमारी के बारे में भी बतायें।
ReplyDeleteक्या इसका इलाज भी है?
प्रणाम
बहुत अच्छी जानकरी प्रदान की आपने.... हालांकि! मैं वैसे ख़ुद को फिट रखने की बहुत कोशिश करता हूँ.... स्मोकिंग नहीं करता... तोंद भी नहीं है.... बोइल फ़ूड ज्यादा खाता हूँ.... रोज़ एंटी-ओक्सिडेंट का कैप्सूल खाता हूँ.... सलाद भी खूब खाता हूँ.... हाँ! बस तनाव थोडा रहता है.... तो वो कॉमिक्स पढ़ कर दूर करने की कोशिश करता हूँ.... बहुत अच्छा और जानकारीपूर्ण आलेख....
ReplyDeleteThanx for sharing.....
भारतीयता मतलब? जैसे शंघाई एक बीमारी होती है.... पर है वो चाइना में जगह का नाम.... क्या ऐसा ही कुछ भारतीयता में भी है?
ReplyDeleteभारतीयता यानि भारतीय मूल का व्यक्ति । अनुवांशिकता की वज़ह से ये रोग भारतियों में ज्यादा पाया जाता है । या यूँ कहिये हम इससे प्रभावित होने के लिए ज्यादा ससेपतिबल हैं।
ReplyDeleteदूसरा कारण है भारत का विकासशील होना। पिछले ५०-६० साल में जो आर्थिक, सामाजिक और औद्योगिक विकास हुआ है , उसका असर हमारे रहन सहन पर बहुत पड़ा है । आज एशो आराम की सारी चीज़ें उपलब्ध होने से हमारी जीवन शैली ही बदल गई है । अब हम सब्जियां खरीदने मार्केट जाते हैं तो भी गाड़ी या स्कूटर उठाते हैं। पैदल चलने की आदत ही छूट गई है । खाने , रहने और विचरण करने में क्रित्रमता आ गई है । इन सब का असर हमारी जिंदगी पर पड़ रहा है । उस पर तनाव भरी जिंदगी , पैसा कमाने की होड़ , भाग दोड़ , धाँय धाँय की जिंदगी जीते जीते यदि बी पी हाई नहीं होगा तो और क्या होगा ।
सार्थक और उपयोगी पोस्ट.
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात कही, बहुत से लोगो के काम आयेगी....
ReplyDeleteधन्यवाद
अच्छी प्रस्तुती, मानवता पे आधारित सार्थक विवेचना से भरे स्वास्थ्य रक्षा से सम्बंधित जानकारी लोगों को देने के लिए धन्यवाद / वैकल्पिक मिडिया के रूप में ब्लॉग और ब्लोगर के बारे में आपका क्या ख्याल है ? मैं आपको अपने ब्लॉग पर संसद में दो महीने सिर्फ जनता को प्रश्न पूछने के लिए ,आरक्षित होना चाहिए ,विषय पर अपने बहुमूल्य विचार कम से कम १०० शब्दों में रखने के लिए आमंत्रित करता हूँ / उम्दा देश हित के विचारों को सम्मानित करने की भी वयवस्था है / आशा है आप अपने विचार जरूर व्यक्त करेंगें /
ReplyDeleteडाक्टर सब कुछ होते हैं ये तो आपको पढ़ कर समझ आ ही जाता है .... बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी है आपने डाक्टर दराल ... इसपोस्ट को तो प्रिंट कर लिया है मैने ...
ReplyDeleteअत्यधिक ब्लोगिंग भी निष्क्रियता का एक उदाहरण है।
ReplyDelete.... सही कहा आपने .... वैसे आपके द्वारा सुझाये गये उपाय के साथ साथ आदमी का "संतोषी जीव" होना भी अत्यंत आवश्यक है !!!
.....बेहद प्रभावशाली जानकारी/अभिव्यक्ति .... आभार !!!
बढ़िया जानकारी डाक्टर साहब !वैसे कातिल भी अच्छा है !!
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दी डॉ साहब!
ReplyDeletekunwar ji,
डा साहिब, जिसका गोदियाल जी ने भी जिक्र किया, 'कातिल' के बारे में जानने के बाद नज़र आज की एक खबर पर पड़ी जिसमें लिखा था कि सन २००८ में हमारे देश की सडकों में चार लाख पिचास्सी हज़ार दुर्घटनाएं हुईं जिनके कारण एक लाख बीस हज़ार लोग मर गए, यानि औसतन हर माह १० हजार :(
ReplyDeleteअब तो मुझको हमारी लोकल सडकों पर भी गाड़ियों का बहाव देख दिल को बचाने के लिए सैर के लिए पार्क में जाने के लिए, या सब्जी आदि खरीदने जाते, सड़क पार करते 'माँ' ही याद आती है :) और अपनी कालोनी में तो अब अपनी गाडी पार्क करने के लिए भी जगह नहीं मिलती :(
इस पर अब एक पहेली: आई पी एल, और उसके फ़ाइनल में पहुँची टीमों, मुम्बाई, और चेन्नाई, में क्या 'माँ' का ही हाथ देखा जा सकता है? (हिंट चाहिए? तो पश्चिम में महाराष्ट्र में बोले जानी वाली मराठी, और पूर्वोत्तर में बोले जानी वाली असमिया में भी 'माँ' को क्या पुकारा जाता है? :)
Informative post !...Thanks .
ReplyDeleteDo's and don't's to prevent High BP--
avoid -
comparision,
competition,
Jealousy,
Criticism,
Gossip
worrying
attachment
Do's-
Write less, read more !
and...
Spend some time with wife and kids as well.
Smiles !
Wish you all a happy reading...120/80 mm hg
bahut badhiyaa likhaa hain aapne.
ReplyDeleteb.p.aajkal ek behad aam bimaari ho gayi hain.
joki chintaajanak hain.
dhanyawaad.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
काश आपकी पोस्ट पर लोग अमल भी करें
ReplyDeleteहमेशा की तरह नपे तुले शब्दों में सार्थक जानकारी ।
ReplyDeleteनेट की समस्या थी इसलिये ब्लाग जगत से दूर था
डा. साहिब, कल टीवी में प्रसारित एक कार्यक्रम में एक डॉक्टर को कहते सुना कि सारी बीमारी का मूल कारण ३६ फुट लम्बी पाचन प्रणाली ('पापी पेट' ?) में गड़बड़ी का होना है...
ReplyDeleteआप की प्रतिक्रिया जानना चाहूँगा,,,क्यूंकि आम आदमी के लिए विभिन्न जानकारी का मुख्य स्रोत आजकल दूर दर्शन ही है,,, और हम जैसों के लिए किसी शुभ चिन्तक डा. का ब्लॉग भी...:)
जे सी जी , नमस्कार। कंप्यूटर में छोटी सी खराबी आ जाने के कारण लिख नहीं पा रहा हूँ।
ReplyDeleteआपने जिस डॉक्टर को टी वी पर देखा वो एलोपेथी का क्वालिफाइड डॉक्टर नहीं हो सकता । शरीर में रोगों के प्रमुख कारण है :
१) संक्रमण यानि इन्फेक्शन । खासकर वाइरल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन।
२) इन्फेस्टेशन यानि शरीर पर या आतों में कीटाणुओं का होना । जैसे स्केबिज यानि खुजली , दाद , फोड़ा -फुंसी, आदि चमड़ी के रोग । पेट में कीड़े --भारत में शायद ही कोई हो जिसे कभी भी पेट में कीड़े न हुए हों।
भारत में ये दो कारण ९० % रोगों की जड़ हैं।
इसके अलावा लाइफ स्टाइल रोग जैसे डायबिटीज, बी पी , हार्ट डिसीज जैसे रोग सम्पन्नता के कारण बढ़ने लगे हैं।
कुछ रोग अनुवांशिकता की वज़ह से होते हैं। जैसे थेलेसिमिया , हिमोफिलिया आदि।
कुछ रोगों का कारण उम्र के साथ डिजेनेरेशन की वज़ह से होता है । जैसे अर्थराइटिस ।
असके अलावा दुर्घटना भी एक कारण है , रोगग्रस्त होने का ।
जे सी जी , नमस्कार। कंप्यूटर में छोटी सी खराबी आ जाने के कारण लिख नहीं पा रहा हूँ।
आपने जिस डॉक्टर को टी वी पर देखा वो एलोपेथी का क्वालिफाइड डॉक्टर नहीं हो सकता । शरीर में रोगों के प्रमुख कारण है :
१) संक्रमण यानि इन्फेक्शन । खासकर वाइरल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन।
२) इन्फेस्टेशन यानि शरीर पर या आतों में कीटाणुओं का होना । जैसे स्केबिज यानि खुजली , दाद , फोड़ा -फुंसी, आदि चमड़ी के रोग । पेट में कीड़े --भारत में शायद ही कोई हो जिसे कभी भी पेट में कीड़े न हुए हों।
भारत में ये दो कारण ९० % रोगों की जड़ हैं।
इसके अलावा लाइफ स्टाइल रोग जैसे डायबिटीज, बी पी , हार्ट डिसीज जैसे रोग सम्पन्नता के कारण बढ़ने लगे हैं।
कुछ रोग अनुवांशिकता की वज़ह से होते हैं। जैसे थेलेसिमिया , हिमोफिलिया आदि।
कुछ रोगों का कारण उम्र के साथ डिजेनेरेशन की वज़ह से होता है । जैसे अर्थराइटिस ।
असके अलावा दुर्घटना भी एक कारण है , रोगग्रस्त होने का ।
डा. साहिब, जानकारी के लिए अनेकानेक धन्यवाद्!
ReplyDeleteअपनी तो ब्लॉगिंग भी सक्रिय है और दवाएं भी उम्र भर खाते रहेंगे। मतलब नाश्ते, लंच और डिनर में दवाईयां ही दवाईयां और ब्लॉगिंग ही ब्लॉगिंग। नहीं करते तो यह जानकारी कहां से पढ़ते , ब्लॉगिंग के नुकसान ही नहीं, लाभ भी हैं।
ReplyDeleteक्या एक गोली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अन्य साइड इफेक्ट से बच सकता है ?
ReplyDeleteशरद जी , बी पी को कंट्रोल में रखना ज़रूरी होता है । फिर वो एक गोली से हो या एक से ज्यादा। अक्सर बी पी हाई होने के बाद और भी विकार आ ही जाते हैं । इसलिए और दवाएं भी खानी पड़ती हैं। नई दवाओं में साइड इफेक्ट्स बहुत कम होते हैं।
ReplyDeleteबी.पी तो मेरा बीई कुछ ज्यादा ही रहता है...अब लगता है नियमित रूप से जांच करनी पड़ेगी
ReplyDelete