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Friday, April 16, 2010

क्या आप ब्लोगिंग नाम के नशे के शिकार हैं ----ज़रा सोचिये ---

सूत कपास , जुलाहों में लट्ठम लट्ठा !

अनिल पुसदकर जी की यह पोस्ट पढ़कर , बहुत दिनों से जो मैं महसूस कर रहा था और एक बार एक व्यंग लेख के रूप में इशारा भी कर चुका हूँ , आज खुल्लम खुल्ला लिखने का मन कर रहा है ।

मेडिकल प्रोफेशन , ब्लोगिंग , कवितायेँ , हास्य , मेडिकल एसोसियेशन , सामाजिक संस्थाएं और व्यक्तिगत शौक जैसे घूमना फिरना आदि --इन सबके रहते अक्सर मुझसे पूछा जाता है इन सब के लिए आप के पास टाइम कहाँ से आता है ।

मेरा एक ही ज़वाब होता है :

मेरी पत्नी को मुझसे एक ही शिकायत रहती है कि मैं अस्पताल जाकर घर को बिलकुल भूल जाता हूँ। अब कम से कम इस मामले में वो बिलकुल सही कहती हैं । क्योंकि ये सच है कि मैं जब ९ से ४ बजे तक अस्पताल में होता हूँ तो सिर्फ और सिर्फ अपने काम के बारे में सोचता हूँ। लेकिन उसके बाद जो १७ घंटे बचते हैं , उनमे से १-२ घंटे अपने शौक पूरे करने के लिए न निकल सकें , ऐसा नहीं हो सकता ।

लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि सिर्फ - घंटे , --१७ घंटे नहीं

अब देखते हैं कि नशा क्या होता है । मुझे तो लगता है कि आदमी की जिंदगी ही एक नशा है । हर काम में नशा । बस फर्क इतना है कि हर नशे का नशा अलग अलग होता है , कोई थोडा कम कोई थोडा ज्यादा।

बेड टी :

सुबह उठते ही आपको चाहिए एक प्याला गरमा गर्म चाय । लेकिन अगर किसी दिन घर में दूध न हो तो --मजबूरी में काली चाय भी चलेगी । चीनी ख़त्म --कोई बात नहीं आज फीकी ही सही । लेकिन अगर चाय की पत्ती ही नहीं है तो --मारे गए । अब बिना चाय के आप तड़प उठेंगे । ---नशा ।

अखबार :

रोज सुबह उठते ही पहला काम होता है , अखबार देखना । जब तक नहीं आ जाता आदमी एडियाँ उठा उठा कर देखते रहते हैं । साल में एक आध दिन छुट्टी होती है तो ऐसा लगता है जैसे आज कुछ मिस कर रहे हैं । कुछ लोगों को तो नित्य क्रिया से निपटने में भी तकलीफ होती है , इसके न होने से ।

टी वी :

यदि एक दिन खराब हो जाये तो सारा मूढ़ भी खराब हो जाता है । आप कंट्रोल कर भी लें तो घर वाले ही नाक में दम कर देते हैं। एक मायूसियत सी छा जाती है घर में ।

कंप्यूटर :

एक आवश्यकता ही नहीं , एक मजबूरी भी बन गई है । सारा काम तो इसी से होता है ।

इंटरनेट :

कंप्यूटर ठीक भी हो और नेट न आ रहा हो , तो ऐसी हालत होती है , जैसे जल बिच मीन प्यासी
इस बात को ब्लोगर से ज्यादा भला और कौन बेहतर समझ सकता है ।

अब बीडी , सिगरेट , पान , तम्बाखू , खैनी , ज़र्दा ,---शराब --चरस , गांजा , स्मैक , हेरोइन , एल एस डी आदि नशीले पदार्थों के बारे में क्या कहें । ये तो जान लेवा हैं।

कितने लोग हैं , जो इनमे से किसी एक का भी नशा नहीं करतेशायद कोई नहीं

अब नशे की एक नई किस्म आ गयी है , और वो है --सोशल नेट वर्किंग साइट्स जैसे ऑरकुट, फेसबुक, ट्विटर और ब्लोगिंग

मुझे तो ये सभी वाहियात लगते हैं, समय नष्ट करने के साधन।
सिवाय ब्लोगिंग के , जहाँ सभी वर्ग के लोग अपनी अपनी बात कह सकते हैं , साथ ही दूसरों के साथ सार्थक विचार विमर्श भी कर सकते हैं।
लेकिन ज़रा संभल के ।
जी हाँ , क्योंकि यह भी एक भयंकर नशा है । पता भी नहीं चलता आप कब नशेड़ी बन गएफिर चाहकर भी नहीं छोड़ पाते

घर या ऑफिस का काम छोड़कर , व्यक्तिगत दिनचर्या छोड़कर , सामाजिक जिम्मेदारियां छोड़कर , घर बार को छोड़कर --यदि आप ब्लोगिंग करते हैं , तो समझ लीजिये --आप नशे के शिकार हो चुके हैं

ब्लोगिंग अभिव्यक्ति के मरीजों के लिए एक दवा है लेकिन दवा है तो सही डोज़ भी होना अत्यंत आवश्यक है
यदि कम रहे तो असर पूरा नहीं आएगा --यदि ज्यादा हो गई तो साइड इफेक्ट्स आने लाजिमी हैं
टोक्सिक डोज़ में तो कुछ भी हो सकता है

इसलिए दोस्तों सावधान हो जाइयेयह नशा बहुत प्यारा है , लेकिन जब प्यार ही जान का दुश्मन बन जाये तो प्यार में कुर्बान होना कोई बहादुरी है , समझदारी

सप्ताह में एक या दो पोस्ट लिखिए --बाकी के दिन दूसरों को पढ़िए

प्यार बांटिये , प्यार पाइये

57 comments:

  1. यदि आप ब्लोगिंग करते हैं , तो समझ लीजिये --आप नशे के शिकार हो चुके हैं।

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  2. draal ji sahi samya par sahai jaankari di hai aapne...

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  3. जी हाँ , क्योंकि यह भी एक भयंकर नशा है । पता भी नहीं चलता आप कब नशेड़ी बन गए । फिर चाहकर भी नहीं छोड़ पाते ।
    .... बात में दम है ....प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!

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  4. बढियां सूत्र दिया डाक्टर साहब आपने

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  5. sahi kaha sirji...
    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  6. डा. साहिब, क्लब में नया-नया गया जवान व्हिस्की का ग्लास हाथ में लिए इस द्वन्द में पड़ा था कि कैसे पता चले कि नशा चढ़ गया या नहीं? उसने गौर से सब को देखा और पाया एक शालीन और संभ्रांत (cool dude) प्रतीत होते व्यक्ति को और उनके पास जा उनसे यही प्रश्न किया...उस व्यक्ति ने गंभीरता पूर्वक उत्तर दिया कि जब वो दो बत्तियां चार नज़र आने लगें तो समझ लीजिये आपको नशा चढ़ गया है! किन्तु जवान को तो वहाँ केवल एक ही बत्ती नज़र आ रही थी :)

    शायद उपरोक्त से प्राचीन ज्ञानियों का 'सत्यम शिवम् सुंदरम' अर्थात एक प्रभु की लीला, यानी 'द्वैतवाद' अथवा 'माया' कुछ-कुछ समझ में आये - एक ही सिक्के के दो चेहरे, 'सर' और 'पूंछ' लेकिन लम्बोदर गणेश का कोई जिक्र ही नहीं :),,,दो के चार और यूं 'अनंत हरि कथाएँ ' हमारे लिए टाइम पास,,,किन्तु उसके लिए ??? (शायद अपने मूल स्वरुप की खोज???)...

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  7. एकदम सही

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  8. मुस्कुरा कर रह गया हूँ :-)

    बी एस पाबला

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  9. क्या कहें हम जैसे मतवाले!!

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  10. सप्ताह में एक या दो पोस्ट लिखिए --बाकी के दिन दूसरों को पढ़िए
    ...सहमत।

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  11. ब्लोगिंग अभिव्यक्ति के मरीजों के लिए एक दवा है। लेकिन दवा है तो सही डोज़ भी होना अत्यंत आवश्यक है ।

    ये बात तो डाक्टर साहब आपने सही कही, पर बूढे बंदरों का भी तो कोई इलाज और सही डोज बताईये जो सबको खराब करते हैं.:)

    रामराम.

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  12. बहुत सही कह रहे हैं आप !!

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  13. बहुत बढ़िया सुझाव हैं!
    मगर हमारा यह नशा तो छूटने का ना ही नही लेता!

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  14. वही ब्लॉगिंग सार्थक है जो जीवन के और कार्य को प्रभावित का करें और मजबूरी ना बनें...बहुत बढ़िया चर्चा धन्यवाद डॉ. साहब

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  15. अब बीडी , सिगरेट , पान , तम्बाखू , खैनी , ज़र्दा ,---शराब --चरस , गांजा , स्मैक , हेरोइन , एल एस डी आदि नशीले पदार्थों के बारे में क्या कहें । ये तो जान लेवा हैं। कितने लोग हैं , जो इनमे से किसी एक का भी नशा नहीं करते । शायद कोई नहीं ।

    दराल सर, आपको जानकर खुशी होगी कि इनमें से किसी भी नशे के पास मैं नहीं फटकता...

    लेकिन इन सब को मिला दिया जाए तो जो नशा तैयार होगा वही, ब्लॉगिंग का नशा है...इसकी गिरफ्त से मैं निकलने की कोशिश कर रहा हूं...शायद आज-कल में ही इस पर पोस्ट लिखूं...

    जय हिंद...

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  16. बिल्कुल हम समझ गये, और इसके नशे की गिरफ़्त से छूटने की कोशिश में हैं :)

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  17. "सप्ताह में एक या दो पोस्ट लिखिए --बाकी के दिन दूसरों को पढ़िए ।
    प्यार बांटिये , प्यार पाइये "

    बहुत पसंद आया ...अमल करने का प्रयत्न करूंगा !!
    सादर !

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  18. डाक्टर साहब ,
    आपका बताया नुस्खा.सच ही नशे को कम करने में सहायक होगा....बहुत सार्थक पोस्ट....सच है जिम्मेदारियों को त्याग कर केवल ब्लोगिंग करना घर में कुरुक्षेत्र का मैदान बना सकता है...:):)

    बहुत बढ़िया चेतावनी

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  19. सप्ताह में एक या दो पोस्ट लिखिए --बाकी के दिन दूसरों को पढ़िए ।

    आपकी बात से सहमत हूँ. इसीलिए पहले से ही सप्ताह में केवल एक ही पोस्ट डालने का नियम बना रखा है.वो भी सिर्फ रविवार को या कभी बहुत मज़बूरी में रविवार की पोस्ट शनिवार को डालती हूँ.इसी नियम पर आज तक चल रही हूँ. फिर भी दूसरों को पढ़ने का समय काम ही मिल पता है. कुछ गिने चुने लोगों के ब्लॉग पर ही जा पाती हूँ पर कोशिश करती हूँ की नियमित रहूँ

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  20. bahut badhiyaa muddaa uthaayaa hain aapne.
    maine to shuru se hi ek post ek hafte kaa niyam banaa rakhaa hain.
    thanks.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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  21. हम तो सप्ताह में सिर्फ एक ही पोस्ट लिखते हैं..ताकि इस नशे की गिरफ्त में आने से बचे रहें......

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  22. chalo me dekhata hu kahi mne to sikhar nahi hu



    shkhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  23. mujhe to comments likhne ka nasha hai...

    Addiction of any sort is injurious for health. Be it 'blogging' or 'commenting'.

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  24. @ zeal

    इसी नशे के कारण हम भी आज शाम विश्व भ्रमण करते हुए पहुँच रहे थाईलैंड!

    बी एस पाबला

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  25. @ Pabla ji-

    aapka swaagat hai Maanyawar !

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  26. सप्ताह में एक या दो पोस्ट लिखिए --बाकी के दिन दूसरों को पढ़िए ।
    बिलकुल सही सूत्र दिए है आपने ! बहुत बहुत धन्यवाद !

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  27. पाबला जी , समीर जी , जे सी जी , ताऊ रामपुरिया जी , डॉ शास्त्री जी , उम्र बढ़ने पर दवा की डोज़ तो कम करनी पड़ती है। लेकिन ब्लोगिंग की डोज़ नहीं । आप जितना चाहे लिखें । :)

    विवेक जी , सतीश जी , आप को तो अपने वेट और वाट ( ब्लोगिंग ) दोनों का ध्यान रखना चहिये।

    संगीता जी , बहुत सही बात कही आपने । आभार।

    रचना जी , वत्स जी , आप सही कर रहे हैं । इसीलिए आपकी पोस्ट्स का इंतज़ार रहता है ।

    खुशदीप भाई , बड़ी अच्छी बात है ये तो । लेकिन चाय से लेकर ब्लोगिंग भी तो एक नशा ही है । मैं इनकी भी बात कर रहा था। खैर ब्लोगिंग के नशे को भी कंट्रोल करना पड़ेगा ।

    बाकि सभी मित्रों का भी आभार , इस चर्चा में शामिल होने के लिए ।

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  28. आपकी बात गिरह में बांध लिया है कि “प्यार बांटिये , प्यार पाइये ।”

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  29. बडा भयंकर नशा है मगर दिनो दिन बढ ही रहा है……………………आपके इलाज पर गौर फ़रमाना पडेगा।

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  30. "…सप्ताह में एक या दो पोस्ट लिखिए --बाकी के दिन दूसरों को पढ़िए…" एकदम नेक सलाह, हम भी ऐसा ही करते हैं।
    हाँ ये बात और है कि इन दो पोस्टों के लिये सामग्री ढूंढने में 2-4 दिन लग जाते हैं… :)

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  31. दराल साहब, बहुत दिनों बाद अब पढना और लिखना शुरू किया है वरना तो इधर पढना भी कम और लिखना तो एक पोस्ट प्रति माह हो गया था । आपकी सलाह बहुत अच्छी लगी । आपकी पिछली पोस्ट भी पढी १०१ पोस्ट पर बहुत बधाई ।
    शादी की साल गिरह तो बीत गई पर शुभ कामनाएँ तो हमेशा दी जा सकती हैं । आपका सह जीवन परवान चढे आप अपने परिवार के साथ बहुत खुश रहें ।

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  32. प्यार बांटिये , प्यार पाइये । ....
    यही सही है...

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  33. डा.दराल जी, अपन फरवरी '०५ से लगातार केवल टिप्पणी ही दिए जा रहे हैं अन्य ब्लोगर बंधुओं की पोस्ट पर,,, और जब लगा कि जो कुछ लिखना था लिख दिया, छः माह के भीतर, तो सौ. कविता ने छोड़ने ही नहीं दिया :)...

    हिंदी लिखना छूट गया था सो रवीशजी के ब्लॉग से उसका भी अनुभव चालू हो गया काफी समय से...

    हाँ देखने में नशा बहुत अधिक लगता है किन्तु शायद आनंद भी देता है जब परमानन्द किसी का लक्ष्य बन जाए...मेरी बड़ी लड़की भी जब छोटी थी तो खुंदक खाती थी कि क्यूँ में हर बात में भगवान् को बीच में ले आता हूँ - काफी समय टालने के बाद मैंने उन्हें श्वेत-श्याम टीवी दिलाया था!!! लेकिन अब अपनी ११ वर्षीया पुत्री की मांगों के कारण उसे भी आभास हो गया सत्य का - अमेरिका में तो कई अत्याधुनिक भौतिक वस्तुएं उपलब्ध हैं आदमी को भटकाने के लिए!!! और सती सीता भी भटक गयी थी सोने के हिरन को देख,,,और श्रंखलाबद्ध होने के कारण राम और लक्ष्मण भी भटक गए थे 'सोने' के कारण जिसे त्याग जंगल में आये थे :)
    सोने का नशा मानव को सबसे अधिक प्रभावित करता है, कह गए ज्ञानी-ध्यानी :)

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  34. बढ़िया सलाह दी है।
    घुघूती बासूती

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  35. सत्यानाश.... हमें क्या पता था कि हम जैसे नशेडियों को डेडिकेट करके आप ये पोस्ट लिख रहे हैं नहीं तो सुबह सुबह ही आपकी क्लिनिक में आए इन सभी उपरोक्त भाई बंदों को हम खींच ले गए होते अपने पाले में , अब तो आपने सबको टीका लगा ही दिया । चलिए अच्छा हुआ कि अब सब सिर्फ़ हफ़्ते में दो ही पोस्ट लिखेंगे । इसका फ़ायदा हम जैसे नशेडियों की पोस्टों को जरूर ही मिलेगा । आखिर फ़िर हमें ही तो पढेंगे न लोग । क्या डा. साहब आप तो सब मरीजों को सुधार कर दम लेंगे ।
    अजय कुमार झा

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  36. sahi kaha aapne Daral sir.. ye bhi kisi nashe se kam to nahin

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  37. सेकेन्ड ओपिनीयन :
    बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया आपने, डॉ, दराल !
    किसी भी शौक को अपने सिर पर चढ़ कर नाचने न देना चाहिये ।
    इनको दिनचर्या या किसी ख़ास प्लानर में बाँधना मुश्किल होता है,
    फिर तो समय असमय का ध्यान भी नहीं रहता । इच्छा-शक्ति की कमी मानव की नैसर्गिक कमज़ोरी जो है ।
    यहाँ तक कि पूजा करने का भी एक नशा हुआ करता है । पर, मैं बलपूर्वक अपने को ब्लॉगिंग या ऎसे किसी शौक से कुछ दिनों के लिये अलग कर लेता हूँ । मिसाल के तौर पर मैंने सितम्बर से अब तक कोई पोस्ट न लिखी, अलबत्ता एकाध जगह टिप्पणियाँ देकर अपने ज़िन्दा होने का सबूत देता रहा । अखरता है तो क्या, वापस आने पर ऎसी दूरी एक नयापन भर देती है । And.. You really refresh yourself !
    जब से बलम घर आये, जियरा मचल मचल जाये.. की तरह ! तभी हमारी सँस्कृति में पत्नी को कुछ खास महीनों या खास अवसरों पर मायके भेजने की प्रथा लम्बे दाम्पत्य को जीवित रख पायी है । मेरा क्या, मेरी वाली तो कमबख़्त जाना ही नहीं चाहती ।

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  38. सर ! नशा तो है ही सच कहा आपने .....अब इलाज़ तो करना ही पड़ेगा । वैसे ब्लॉगिंग के अलावा और साईटें समय ही खर्च करती हैं ।

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  39. सटीक मुद्दा, सही सलाह, लेकिन बहुत देर कर दी जनाब सलाह देने में, अब तो इस नशे की गिरफ़्त में आ ही चुके हैं। आप की सलाह अच्छी है लेकिन हम इसे कितना अम्ल में ला पायें पता नहीं।

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  40. मैं तो ख़ैर....किसी भी चीज़ का नशा नहीं करता हूँ....ब्लॉग्गिंग का एक नशा था.... जो कि अब तकरीबन उतर ही चुका है.... लेकिन फिर भी अब जब समय मिलता है तो ब्लॉग्गिंग ज़रूर करता हूँ... यह बात आपने बिलकुल सही कही है... कि प्यार जब जान का दुश्मन बन जाये...तो इस पर कुर्बान होना बेवकूफी ही है.... बहुत अच्छा लगा यह लेख....

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  41. न जाने क्यों ये नशा कर नशेड़ी बन ने को मन करता है , यहा है इतने सारे दोस्तों की बाते , उन को पढ़ने से मन ही नहीं भरता

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  42. ब्लॉगिंग नशा है ...हमारे लिए नहीं ...वैसे भी कौन महान ग्रन्थ लिखते हैं...!!
    सीमित समय ही दे पाते हैं ...और यही सही लगता है ...
    एडिक्ट होने से पहले आपने सावधान कर दिया ...
    आभार ....!!

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  43. आपने बहुत सही लिखा है सर, कम्पार्टमेंटलाइज़ेशन बहुत ज़रूरी है.

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  44. धन्यवाद आशा जी , आपका स्वागत है ।

    जे सी जी , आप टिप्पणियां करते रहिये । आपकी टिप्पणियां हमारे लिए आशीर्वाद हैं।

    हा हा हा ! अजय भाई, सब के साथ हम भी आपको पढ़ पाएंगे ।

    डॉ अमर कुमार जी , आनंद आ गया आपकी टिपण्णी पढ़कर। वैसे किसी ने कहा है कि --long absence kills the love , while short remissions enhance it.

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  45. डा. साहिब, ज़र्रा नवाजी के लिए धन्यवाद्! नशा ऐसा विषय है जो मेरे ख्याल से शायरों को मानव जीवन की गहराई में और अधिक ले गया है...ग़ुलाम अली के एक गाने की पंक्ति इस सन्दर्भ में याद आती है, "...उस मै से नहीं मतलब दिल जिस से हो बेगाना / मक़सूद है उस मै से दिल ही में जो खींचती है",,, और किसी एक ने कुछ ऐसे कहा, "नशा पीने वाले में ही होता है / यदि नशा शराब में होता तो नाचती बोतल !"...और हमारे देश में तो कृष्ण प्रेम का नशे के कारण ही सूरदास, मीराबाई (एक रानी होते हुए भी), आदि आदि प्रसिद्द तो हुए ही, उनके नाम अमर हो गए :)
    शराब कम से कम आदमी की वास्तविक प्रकृति को उभारने का काम करती देखी जा सकती है (जैसे स्पिरिट मैल साफ करती है): १. कुछ चुप हो जाते हैं, २. कुछ बहुत खुश हो जाते हैं और खूब बातें करने लगते हैं, और ३. जिनके अन्दर दबा गुबार निकल पड़ता है और वे गाली देने और मार-पीट करने पर भी उतारू हो जाते हैं,,, जैसा कुछेक फिल्मों में भी आम तौर पर दिखाया जाता है, और शराब के विरुद्ध जन मानस में एक आम धारणा भरने में सहायक होता है...किंतु प्राचीन ज्ञानी कह गए कि शराब केवल देवता (परोपकारी) को ही धारण करने का अधिकार है...
    एक डॉक्टर मनचंदा सफदरजंग में होते थे जिनसे कहते सुना, (पीवीआर प्रशिक्षण के समय प्रश्न करने पर शराब के लाभ के बारे में पश्चिम का मानना कि दो पेग रोज लेने से हार्ट अटैक नहीं होता), कि हिंदुस्तानी कि समस्या गिनती अच्छी न होने की है क्यूंकि चौथा पेग भी हाथ में ले वो कहता है यह दूसरा ही है :)

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  46. हा हा हा ! जे सी जी । बढ़िया रही ये शराब की वकालत।
    वैसे ये सही है कि दो पेग तक ये फायदेमंद ही होती है।
    अब दिल समझाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है। :)

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  47. हा हा हा! डा साहिब, इसे वकालत नहीं, 'अनुसंधान' कहते हैं वैज्ञानिक,,,जिसके लिए विभिन्न सूचना एकत्रित करनी पड़ती हैं! जीवन में कई सवालों का जवाब नहीं मिलता और हम मजबूरन आगे बढ़ते जाते हैं क्यूंकि नून-तेल के चक्कर में आम तौर पर 'आम आदमी' को समय ही नहीं मिलता गहराई में जाने के लिए और जो कुछ उपलब्ध होता है, अपनी हैसियत के अनुसार, उसे ग्रहण कर लेते हैं,,, और कहावत है कि 'हर सताया हुवा ही शायर होता है',,,किन्तु अधिकतर वो भी सही कारण और इलाज नहीं बता पाते आज (मीरा बाई ने कहा "रोगी अन्दर बैद बसत है" :)
    जहां तक मेरा निजी दृष्टिकोण है, सन '८४ में गीता पढ़ मुझे लगा कि मैंने यह पहले क्यूँ नहीं पढ़ी थी जबकि इसकी एक प्रति मुझे सन '७५ में मेरे एक सहकर्मी ने भेंट भी की थी मेरे स्थानांतरण पर,,,उस समय मैं मन ही मन हंसा था कि शायद उसने मेरा उपनाम (जोशी) देख दी थी शायद यह सोच कि मैं 'पूजा-पाठ' करने वाला 'पंडित' हूँ जबकि मैं अपने आप तो कभी भी मंदिर नहीं गया था, यद्यपि मैं निराकार में विश्वास रखता था... इग्याहरवीं कक्षा छोड़ते समय हमारे एक टीचर से प्रभावित हो हमारे ग्रुप फोटो में सबके नाम बिना उपनाम के ही छापे गए थे! गुरु लोगों का इस कारण बहुत बड़ा रोल है,,,और, आपके अनुसार 'संयोग से', मेरी जन्म-तिथि पांच सितम्बर (५/९) है!...

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  48. १००% सहमत ... नशा तो है और सिर चॅड कर बोलता भी है ... पर मज़ा भी आता है ... Par hamaari koshish bhi ytahi rahti hai 1 ya 2 post saptaah ki ... baaki samay padhne mein ...

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  49. एक पोस्ट १३ अप्रैल की दूसरी १६ की ......ब्लोगिंग का ये नशा ठीक नहीं ......!!
    एक साल में शतक भी पूरा .....हमारा दूसरा साल होने को है और अभी तक कोशों दूर हैं .....!!

    १३ अप्रैल को भी पोस्ट ....वो भी आउटिंग नहीं ....???

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  50. डॉक्टर साहब नशा तो सही में कई चीजो का होता है औऱ आपने बता के आफत कर दी..मुझे लिखने का नशा है , लेकिन रोज पोस्ट करने का नहीं.. हां टिप्पणियां जरुर देता रहता हूं....खुशदीप जी ने अमल करते हूए आज अपनी पोस्ट डाल दी है..
    हां बाकी नशा तो खैर क्या कहूं छोड़ दिया है....चेन स्मोकर था पंद्रह साल तक लेकिन 6 साल हो गए छोडे हुए, पर तलब नहीं मरी..मगर सिगरेट को हाथ नहीं लगाया....न ही लगाउंगा....गुटखे की आदत भी 3 साल पहले त्याग दी.....जहां तक लाल परी का सवाल है तो महीने में 5-6 पैग हो जाती है.....अब इस पर कब काबू पा सकूंगा कह नहीं सकता....पर छोड़ी जा सकती है..

    पर एक मुश्किल है डॉक्टर साहब की कोई नशा होना चाहिए की नहीं जिंदगी में.....

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  51. मेरे विचार से डा. साहिब प्रश्न मानसिक द्वन्द का है जिससे कोई भी व्यक्ति अछूता नहीं है, कम से कम आज, जबकि भूत में 'जोगी' हिमालय के जंगल में चले जाते थे - शायद पान, बीडी, सिगरेट आदि नशीली वस्तुओं से दूर रहने ("न रहेगा बांस / न बजेगी बांसुरी") और स्वयं को भी समझने के लिए,,,

    और तब ब्लॉगिंग का प्रश्न भी शायद नहीं उठता था और नदी में नहाने तो जाते थे ही इस कारण शायद जिज्ञासू अधिकतर विचारों का आदान-प्रदान गंगा किनारे किसी घाट में बैठ कर लेते थे (जैसे आज भी परम्परानुसार 'कुम्भ के मेले' में जबकि 'कुँवा अब स्वयं घर- घर में चल कर आ गया है' :)...

    लेकिन उन में से भी अधिकतर 'पापी-पेट' के कारण भोजन के नशे से तो कम से कम बच नहीं पाए होंगे, बिरले ही दीमक के घरों में परिवर्तित हो पाए होंगे,,, और प्रकृति में, जंगलों में भी, ऐसे पेड़-पौधे हैं जिनसे मादक पदार्थ आदमी ने ढूंढ ही लिए ("मैं कम्बल को लात मारता हूँ / किन्तु कम्बल ही मुझे नहीं छोड़ता"!),,, या कहिये किसी अदृश्य शक्ति ने पशु आदि के माध्यम से उनको मजबूर किया, क्यूंकि विषैले पौधे आदि की उपस्तिथि के कारण आदिमानव ने पशुओं से ही सीखा होगा कौन से पदार्थ भोज्य है...

    और अंततोगत्वा वे इस निर्णय में पहुंचे होंगे की जब मानव की मजबूरी है तो क्यूँ न अत्यधिक शक्तिशाली प्रकृति या उसके रचयीता के सम्मुख घुटने न टेक दे आदमी ???:)

    "अति का भला न बरसना / अति की भली न धूप / अति का भला न बोलना / अति की भली न चुप",,, यानी खाओ पियो थोडा थोडा सब कुछ और उसी भांति जीवन का सार अपने लघु जीवन-काल में निकाल सिद्धि प्राप्त कीजिये...

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  52. हरकीरत जी , ब्लोगिंग के सभी गुरु सप्ताह में १ या २ पोस्ट पर रजामंद हैं। इतना तो चलता है ।
    १३ अप्रैल की पोस्ट सेड्युल्ड थी ।
    कहते हैं :

    यदि चैन से सोना है तो जागना पड़ेगा ।
    घर में रहना है तो बाहर ले जाना पड़ेगा । :)

    हमने भी यही किया था । बस लिखा नहीं जी ।

    बोलेतोबिन्दास:

    बधाई इस नेक काम के लिए । सिगरेट छोड़ने से ही हार्ट अटैक और बी पी की सम्भावना आधी कम हो जाती है । और गुटखा --तौबा तौबा !
    शराब --इसके लिए मेरे अगले लेख का इंतज़ार कीजिये । आपके लिए एक खुशखबरी है ।

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  53. ब्लॉगिंग का नशा सिर चढ कर बोलने लगा था..सो लम्बे अर्से तक उससे दूर रह कर साबित कर लिया कि यह नशा भी पकड़ मे आ सकता है...

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  54. इस नशे का शिकार तो मैं भी हूँ...

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