ज़रा कल्पना कीजिये -एक नदी में बाढ़ आ रही है । आप किनारे पर खड़े हैं । तभी एक आदमी डूबता हुआ दिखाई देता है । आप मदद करना चाहते हैं । लेकिन तभी एक कुत्ता भी डूबता हुआ नज़र आता है । आप सिर्फ एक को ही बचा सकते हैं।
आप एक एनीमल लवर ( पशु प्रेमी ) हैं ।
अब आप क्या करेंगे ?
विशेषकर जब कुत्ता भी ऐसा हो ---
ल्हासा ( महफूज़ भाई द्वारा पहचाना गया )
जर्मन शेफर्ड
पड़ गए न दुविधा में । कल्पना ही सही , लेकिन सवाल तो टेढ़ा है -है ना।
अब सच्ची घटनाओं पर आधारित , गत वर्ष लिखी मेरी इस रचना को पढ़िए । शायद कोई सुराग मिल जाये सही ज़वाब का ।
बिहार में कोसी नदी का पानी
जब कहर ढ़ा रहा था ।
दिल्ली में एक पशु प्रेमी वर्ग ,
तब कुत्तों का स्वयम्बर रचा रहा था।
जहाँ मेधापुर वासियों के अरमान तो ,
कोसी के पानी में बह गए ।
वहीं इस सामूहिक विवाह में ,
अधिकाँश कुत्ते भी कुंवारे ही रह गए।
यूँ तो मंडप में सजे बैठे सैंकडों ,
जर्मन शेफर्ड , बुल्डोग और डालमेशियाँ मादा थी।
पर पंडित बेचारे क्या करते,
क्योंकि मनुष्यों की तरह कुत्तों में भी नरों की संख्या ज्यादा थी।
मैंने एक आयोजक से पूछा , मित्र
बिहार के बाढ़ पीड़ित तो भूख प्यास से ,
कराह रहे हैं।
ऐसे में आप कुत्तों का ब्याह करा रहे हैं?
वो बोला दोस्त ये हिन्दुस्तान है ,
यहाँ इंसान तो फ़िर मुफ्त में लाखों पैदा हो जायेंगे।
किंतु गर ब्याह नहीं रचाया ,
तो ये एक एक लाख के बुलडोग और डाल्मेसियाँ कहाँ से आयेंगे?
मैंने कहा वाह रे हिन्दुस्तान ,
यहाँ कुत्ते मंहगे और सस्ता इंसान ,
फ़िर भी मेरा भारत महान!
फ़िर भी मेरा भारत महान!!
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कुत्ते को ही बचाना चाहिए...कम से कम एहसानफ़रामोश तो नहीं निकलेगा...
ReplyDeleteमुझे याद है फाइव स्टार माहौल में वो कुत्तों की शादी...बाकायदा इन्वीटेशन कॉर्ड भी छपे थे...मैंने कोसी के कहर और इस शादी को मिला कर एक रिपोर्ट भी तैयार की थी...
जय हिंद...
यूँ तो मंडप में सजे बैठे सैंकडों ,
ReplyDeleteजर्मन शेफर्ड , बुल्डोग और डालमेशियाँ मादा थी।
पर पंडित बेचारे क्या करते,
क्योंकि मनुष्यों की तरह कुत्तों में भी नरों की संख्या ज्यादा थी।
Waah, kyaa pate kee baat kah dee Dr. sahaab aapne !
मैंने कहा वाह रे हिन्दुस्तान ,
ReplyDeleteयहाँ कुत्ते मंहगे और सस्ता इंसान ,
फ़िर भी मेरा भारत महान!
महानता पर शक क्यों कुत्ते ही तो ब्याह रहा था
बेहतरीन कटाक्ष....कविता बहुत बढ़िया लगी..डॉ. साहब बहुत बहुत धन्यवाद..
ReplyDeleteडा. साहिब, बहुत बढ़िया विचार!
ReplyDeleteवैसे किसी ने अंग्रेजी में कुछ ऐसे भी कहा, 'यदि आप सड़क से उठा एक कुत्ते को खिला-पिला मोटा करलें तो आपको एक परम प्रिय मित्र मिल गया / किन्तु यदि ऐसे ही एक आदमी के साथ भी बर्ताव करें तो समझ लीजिये आपने एक जानी दुश्मन बना लिया'!
'माया' को ध्यान में रख, जैसे शीशे में हमारा प्रतिबिम्ब उल्टा (यानी दांयाँ बांया और बांया दांया दिखता है) वैसे ही कुत्ता (dog) अंग्रेजी में भगवान (god) पढ़ा जा सकता है :)
डा. साहिब, बहुत बढ़िया विचार!
ReplyDeleteकभी स्कूल में मांग और पूर्ती का सिद्धांत पढ़ा कि..जिस चीज़ की मांग अधिक एवं पूर्ती कम होती है ..उसका मूल्य अधिक हो जाता है और जिस चीज़ की पूर्ती अधिक एवं मांग कम हो...उसका मूल्य स्वत: ही कम हो जाता है ...
ReplyDeleteअब ये तो हम लोगों को खुद ही सोचना चाहिए कि बिना ज़रूरत के बच्चे पैदा करते चले जाएंगे तो यही हाल होना है ...
हास्य का पुट लिए बढ़िया व्यंगात्मक कविता ...
मेरा भारत महान!!
ReplyDeleteमुझे तैरना नहीं आता दराल साहब !
ReplyDeleteमैंने कहा वाह रे हिन्दुस्तान ,
ReplyDeleteयहाँ कुत्ते मंहगे और सस्ता इंसान ,
फ़िर भी मेरा भारत महान!......
आज देश और समाज में किस तरह तर्कसंगत व्यवहार का घोर अभाव है और वैचारिक खोखलापन पर व्यंग करती ,इस उम्दा संदेशात्मक कविता और छोटी सी रचना को पढ़कर पता चल जाता है /साथ-साथ यह भी पता चलता है की मुर्ख और अज्ञानी लोगों की इस देश में कमी नहीं, जिनके वजह से इस देश की महानता हमेशा कलंकित होती रही है और इंसानियत शर्मसार /अच्छी वैचारिक उम्दा रचना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद / आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे / ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /
ReplyDelete"लेकिन सवाल तो टेढ़ा है -है ना।"
ReplyDeleteवाकई बहुत टेढ़ा है जी!
शानदार कटाक्ष, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteअब आपका सवाल :- एक नदी में बाढ़ आ रही है । आप किनारे पर खड़े हैं । तभी एक आदमी डूबता हुआ दिखाई देता है । आप मदद करना चाहते हैं । लेकिन तभी एक कुत्ता भी डूबता हुआ नज़र आता है । आप सिर्फ एक को ही बचा सकते हैं।
ताऊ का जवाब :- हम दोनों को ही बचा लेंगे क्योंकि आपके सवाल में एक बेसिक खामी है. क्योंकि कुता एक अच्छा और जन्मजात तैराक होता है. तो ताऊ जैसे ही आपके द्वारा वर्णित नजारा देखेगा वो फ़टाक से कूदेगा और सबसे पहले बायें हाथ से कुत्ते की पूंछ बडे प्रेम से पकडेगा और दांयें हाथ से डूबते आदमी का कालर पकडेगा. और इस तरह तीनों किनारे पहुंच जायेंगे.
ऐसे काम हमने कुत्ते के साथ तो नही किये पर अपनी भैंस के साथ जरुर किये हैं. फ़ार्मुला टेस्टेड है. कोई चाहे तो एक कुत्ते और आदमी को तालाब में फ़ेंक दे और कूद कर ट्राई करले.
अभी महफ़ूज मियां जबलपुर आये थे वहां हमने भेडाघाट में उनको इन कामों में प्रशिक्षित किया था. और यह सारे फ़ार्मुले ताऊ प्रकाशन का सद-साहित्य मे विस्तार से लिखे गये हैं. सभी ब्लागर्स को ताऊ साहित्य का अध्ययन मनन करके अवश्य लाभ उठाना चाहिये.
रामराम.
डा. साहिब, भारत के 'महान' या 'महानतम' होने में कोई शक नहीं होगा यदि कोई 'महाकाल' की 'माया' का पार पा सकें,,, (विश्वास कर सकें कि शायद यही एक देश है जहां हर व्यक्ति को असल में भगवान् का स्वरुप माना गया),,, और परदे के पीछे झाँक सकें... जिसके लिए आवश्यकता है पहले मष्तिस्क की धुलाई की, जैसे आज भी कलियुग में फ़ौज में आरंभ में हर एक की करी जाती है,,, किन्तु दूसरी ओर ध्यान रखने वाली बात है कि त्रेता में, फौजी या 'क्षत्रिय' होते हुए भी, राम का माथा भी काल के प्रभाव से एक 'धोबी' ने ही घुमा दिया था,,,और दूसरी ओर, 'आत्मा के मैल' की धुलाई, धोबी द्वारा मैले कपडे की धुलाई समान तुलनात्मक रूप में समझाई जाती है,,,इसके अतिरिक्त जीव के शरीर को भी, 'गीता' में, आत्मा के कपडे समान ही कहा गया है,,,
ReplyDeleteकिन्तु तथाकथित उबलब्ध ज्ञानेन्द्रियों में दोष होने के कारण जानने नहीं दिया जाता (काल या महाकाल के द्वारा जिसने यह अद्भुत मानव शरीर की रचना की)... आप तो डॉक्टर हैं इस कारण बता सकते हैं कि जीव में 'बॉडी क्लोक' कैसे आये,,, और सोते समय स्वप्न कहाँ से आते हैं? जागृत अवस्था में विचारों के स्रोत के बारे में यदि बात न भी करें तो, यद्यपि पहुंचे हुए हिन्दू अष्ट-चक्र में लिखे होने की बात कर गए :)
बहुत बढ़िया डाक्टर साहब !
ReplyDeleteसच में मेरा भारत महान !
जय हिंद !
किसको बचायेंगे...इसका उत्तर तो ताऊ ने सही दे दिया है दोनों ही बचा लिए जायेंगे....
ReplyDeleteआपकी व्यंग रचना बहुत बढ़िया है...
पर पंडित बेचारे क्या करते,
क्योंकि मनुष्यों की तरह कुत्तों में भी नरों की संख्या ज्यादा थी।
अच्छा कटाक्ष है...
Koi insaan kutte ki maut mare , ye hume gavara nahi...Hum to Insaan ko hi pehle bachayeinge.
ReplyDeleteNice post
कुत्ता तैर के निकल जाएगा इंसान डूब जाएगा
ReplyDeleteकुत्ते को तो तेरना आता है ओर वो तेर कर निकल जाये गा, ओर आदमी अगर कोई नेता हुया तो उसे डुबने दुंगा, अगर कोई आम आदमी हुआ तो उसे कुत्ता ही बचा लेगा, मै किनारे खडा जल्दी से एम्बुलेंस को फ़ोन करुंगा, ओर उस के आने तक आदमी ओर कुत्ते के पेट से पानी निकालने की कोशिश करुंगा, अगर वो आदमी कोई बहुत अमीर हुआ या नेता, मंत्री हुआ तो दोबारा उसे नदी मै फ़ेंक दुंगा:)
ReplyDeleteआनंद आ गया जी , आप सब के विचार पढ़ कर।
ReplyDeleteजे सी जी , सही कहा --इंग्लिश में डोग=गोड । कुत्ते की महानता पर एक रचना तैयार है , फिर कभी ।
राजीव तनेजा जी ने सही कहा। सोचना चाहिए ।
ताऊ का टेस्टेड फ़ॉर्मूला तो हमेशा ही फन्नेखां होता है -साहित्य तो चाला सै।
संगीता जी , सही पकड़ा कटाक्ष को।
जील जी , राज जी , आजकल इंसानों और कुत्तों के गुणों में स्वैपिंग हो गई है। इसलिए इन्सान इन्सान नहीं रहा और कुत्ता कुत्ता नहीं रहा ।
मैंने कहा वाह रे हिन्दुस्तान ,
ReplyDeleteयहाँ कुत्ते मंहगे और सस्ता इंसान ,
फ़िर भी मेरा भारत महान!
...लाजवाब !!!
यहाँ कुत्ते मंहगे और सस्ता इंसान ,
ReplyDeleteफ़िर भी मेरा भारत महान!
बहुत खूब .....!!
जर्मन शेफर्ड तो मेरे पास भी दो हैं .....इतने समझदार और वफादार की पूछिये मत
मेरे साथ कोई जरा सा भी ऊँची आवाज़ में बात करे तो तुरंत दौड़ा चला आता है और अगर मैं रोऊँ तो मेरे पास बैठ वो भी दर्द भरी आवाजें निकलता है ....
ये jc साहब हर बार कोई नया जुमला chhod jate है .....
जिस तरह बाघ के लिए चिंतित हैं कि 1411 ही बचे हैं। कुत्तों के लिए ऐसी चिंता नहीं करनी होगी, ये काम तो वे ही कर लेंगे कि इंसान कितने छोड़ें, जिन्हें काटा न जाए ?
ReplyDeleteवाह ! क्या बात है, शानदार रचना !
ReplyDeleteमार्मिक व्यंग्य ! तारीफ़ के शब्द नहीं हैं दराल साहब
ReplyDeleteयहाँ भावना में बहना उचित नहीं बुद्धि से काम लें
ReplyDeleteआदमी को बचाए
कुत्ता,, चाहे वो किसी भी नस्ल का हो, छोटा हो या बड़ा वो डूबता हुआ लगेगा मगर डूबेगा नहीं, क्योकि तैरना जानता है बढ़िया तैराक होता है
आदमी से भी बढ़िया
मगर आदमी नहीं
रही भारत के बात
ये तो महान है,, महान रहेगा :)
कुत्ते महंगे ...सस्ता इंसान ....
ReplyDeleteबड़े प्यार से अपने पेट्स को गोद में उठाये घूमते लोगो को जब सड़क पर मजदूरी करने वाले (रद्दी बटोरते, गाड़ियाँ साफ़ करते , अखबार बेचते , जूते पोलिश करते )छोटे - छोटे बच्चों को बुरी तरह झिड़कते देखती हूँ तो यही महसूस होता है ....
यथार्थ यही है कि इंसान और इंसानियत सस्ते होते जा रहे है ...!!
कविता बढ़िया लगी..... जेसी और ताऊ से सहमत हूं.... साधुवाद...
ReplyDeleteहरकीरत जी , जैसा कि खुशदीप ने कहा --कुत्ते की एक सबसे बड़ी खूबी होती है --मालिक के प्रति वफ़ादारी।
ReplyDeleteयही खूबी इंसानों में लुप्त होती जा रही है। कई दोस्तों ने भी सही कहा कि कुत्ता तैरना जनता है --आदमी को ही बचाना चाहिए । यानि कुत्ता आत्मनिर्भर भी होता है।
लेकिन यहाँ वाणी जी कि बात पर गौर करना भी ज़रूरी है। दरअसल यही तथ्य सत्य है कि आज इंसान की जिंदगी कुत्तों से भी बदतर होती जा रही है । कौन है इसके लिए जिम्मेदार ?
व्यंग्य भी और चिंतन भी
ReplyDeleteदेखा कुत्तों की शान...मुझे तो कुत्ते अच्छे नहीं लगते.
ReplyDelete______________
'पाखी की दुनिया' में 'वैशाखनंद सम्मान प्रतियोगिता में पाखी' !
सच में ! मेरा भारत महान..... वैसे कुत्ता बहुत कभी भी एहसानफरामोश नहीं होता.... मैं तो कुत्तों की भाषा भी जानता हूँ.... दुनिया के सबसे खतरनाक कुत्तों को भी मैंने बकरी बनाया है.... इसलिए मैं कुत्तों को बहुत अच्छे से समझता हूँ.... लेकिन एक बात और है.... जिस दिन ऊपर वाले ने कुत्तों के ज़ुबान दे दी.... उस दिन अपनी कुत्तागिरी भी दिखा देंगे.... इंसान इसीलिए इंसान नहीं है क्यूंकि ऊपरवाले ने उसको ज़बान दी है.... वैसे मैं कुत्ते को ही बचाऊंगा.... क्यूंकि कुत्ता कभी आपके एहसान को भूलेगा नहीं.... और इंसान तो याद भी नहीं रखेगा....
ReplyDelete@-आजकल इंसानों और कुत्तों के गुणों में स्वैपिंग हो गई है। इसलिए इन्सान इन्सान नहीं रहा और कुत्ता कुत्ता नहीं रहा । ...
ReplyDeleteI agree here.
@-कुत्ते की एक सबसे बड़ी खूबी होती है --मालिक के प्रति वफ़ादारी।
यही खूबी इंसानों में लुप्त होती जा रही है। ...
Insaan ka malik agar kutta hota to wo bhi wafadaar hota.....afsos, insaan ka malik insaan hota hai.
Kutte aur Insaan ke beech 'EGO' problem nahi hoti isliye rishtedaari nibh jaati hai.
@-जिस दिन ऊपर वाले ने कुत्तों के ज़ुबान दे दी.... उस दिन अपनी कुत्तागिरी भी दिखा देंगे...... very true !
@-वैसे मैं कुत्ते को ही बचाऊंगा.... क्यूंकि कुत्ता कभी आपके एहसान को भूलेगा नहीं.... और इंसान तो याद भी नहीं रखेगा....
Will you safe a life in want of gratitude?
will you save a life in want of gratitude?...( correction)
ReplyDeleteयहाँ कुत्ते मंहगे और सस्ता इंसान ,
ReplyDeleteफ़िर भी मेरा भारत महान!......
व्यवस्था की खामी और लोंगो की गैर जिम्मेदारी ने समस्याओ को भयानक बना दिया है ! डा ० साहेब आपने मर्म स्पर्शी बात उठाई आभार !
main tairnaa jaantaa hoon isliye dono ko bachaane ki koshish karungaa.
ReplyDeletewaise kuttaa tainaa jaantaa hain lekin main tairte kutte ki bhi madad kar dungaa.
insaaniyat ke naate.
or......
or......
main dono ko paal lungaa.
kutte ko chokidaari-wafaadaari ke liye or aadmi ko kutte ki sewaa-paani ke liye.
hain naa mazedaar idea????
ha haha ha.
thanks.
(bahut badhiyaa)
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
pahali baar apke blog par aayi aur apko padha. bahut acchha kataksh likha hai. apki baat padh kar ada ji ki bahut pahle likhi ek rachna yaad aa gayi jo kutto par hi thi.
ReplyDeletetau ji ki baat se sehmat hu ki bhais ki poochh pakad kar khud bhi tair jane wala formula tested hai.
sadar
आपके ब्लाँग पर प्रथम बार आया . अच्छा लगा ।
ReplyDeleteकविता मंच पर आनन्द फ्राई करने मे समर्थ है । बधाई ।
सही बात तो यही है डा० साहब कि कुत्ता मेरा पालतू हुआ तो मैं पहले उसी को बचाऊंगा.. नहीं हुआ तो आदमी को बचाने का रिस्क लिया जा सकता है. रिस्क यह कि एक बार एक भले मानुष ने एक डूबते आदमी को बचाया तो वह उसके गले ही पड़ गया! काहे बचाया? अब मुझे मार डालो नहीं तो अपने घर ले चलो! काम दो! खाना दो! नहीं तो मैं तुम्हें जिन्दा नहीं छोडूंगा!
ReplyDeleteअब आप ही बताइए कुत्ते को बचाने में तो कोई समस्या नहीं है न!
वाह जी वाह मज़ा आ गया. एक अच्छा करारा व्यंग बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील विषय, हृदयस्पर्शी चर्चा
ReplyDeleteहमारा भारत तो महान है ही और रहेगा भी, पर जो चर्चा हो रही है ऐसी ही अनेकों बातों कि वजह से भी भारत महान जरुर है
कविता बढ़िया लगी....
ReplyDeleteपहले अपने आप को बचा लें फिर आगे की सोचें ....।
ReplyDeleteमेरा भारत महान! > शुरू से है.
ReplyDeleteयहाँ कुत्ते मंहगे और सस्ता इंसान > बदलते वक़्त की सचाई है.
वाह ! क्या बात है, शानदार रचना !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! मुझे कुत्ते बहुत पसंद है और इतने प्यारे कुत्ते से भला कौन दूर रह सकता है! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDelete@ हर कीरत जी, मैं संन्यास आश्रम में प्रवेश कर गया कुछेक वर्ष पहले.... और कहते हैं अच्छे व्यक्ति को भगवान् जल्दी बुला लेता है. सो पत्नी को उसने बुला लिया सन '९९ में,,, फिर '०५ में छोटी लड़की का भी विवाह हो गया, जबकि उसकी दो बड़ी बहनों का पहले ही हो चुका था पत्नी की देख-रेख में...उसके बाद से मुझे अपनी कंक्रीट की गुफा में 'शून्य' से अधिक जुड़ने का समय प्रभु कृपा से मिला है,,, और सोचने के लिए भी कि मेरा जन्म देव-भूमि शिमला, हिमाचल में, क्यूँ हुआ था और वो भी पांच सितम्बर को, 'सोने में सुहागा' अथवा 'करेले पर नीम चढ़े' के समान, इस बात पर निर्भर करते हुए कि आप दूरबीन के किस तरफ बैठे हो :)
ReplyDeleteअब न भी चाहें तो कानों में शब्द पड़ते ही हैं "एक नूर तों सब जग उपजा / कौन भले को मंदे?" और आश्चर्य होता है प्रभु की रचना पर कि फिर भी हम 'छोटे / बड़े' से पार नहीं पा सकते :)
'माया ठगनी है' कह गए प्राचीन ज्ञानी :) और भगवान् और आदमी, एवं आदमी और कुत्ते, दोनों जोड़ों का रोल 'मालिक और सेवक' का है, जिसमें कुत्ता शायद अधिक खरा उतरता है :)
कुत्ते की शादी में जरूर जायेंगे ...इंसानों से बहुत ज्यादा वफादार , ईमानदार, प्यार करते हुए अपनी जान न्योछावर करने वाला दुर्लभ जीव है यह !
ReplyDeleteमैं तो आदमी को ही बचाउंगा, क्योंकि मुझे कुत्तों से बहुत डर लगता है।
ReplyDeletekutta aur aadmi...dono jinda hain abhi?
ReplyDeleteइस पोस्ट में मैंने आदमी की कुत्ते से तुलना सिर्फ इसलिए की है ताकि बढती आबादी की वज़ह से आज इन्सान की जो हालत हो रही है , उस ओर ध्यान दिलाया जा सके।
ReplyDeleteबेशक कुत्ता एक स्वामिभक्त प्राणी है । लेकिन मनुष्य का जन्म कहते हैं ८४ लाख योनिओं के बाद मिलता है। क्या हम इसे ऐसे ही गँवा देंगे। मनुष्य का जीवन सँवारने के लिए न सिर्फ सरकार को बल्कि खुद मनुष्यों को भी प्रयास करना पड़ेगा । इस मामले में हम कुत्ते से कुछ सीख सकते हैं ।
कैसे --इस बारे में फिर कभी ।
Ab in sabke aage apni to bolti band!
ReplyDeleteKshama ko kshama karen!
so true! Dr. Daraal .
ReplyDeleteडा. साहिब, 'हिन्दू मान्यता' गहराई में जा समझ आती है,,, किन्तु 'आज' आदमी के पास समय नहीं है 'आत्मा-परमात्मा' तक पहुँचने के लिए - जिन्होंने मिल कर यह लाख चौरासी का खेल रचाया... और उस पर हम उनके माध्यम, पिरामिड, के इशारे भी समझने की कोशिश नहीं करना चाहते, जिसे भारत में मंदिर के ऊपर 'विमान' के रूप में बनाया गया अनादि काल से,,, जबकि हम आज भी जानते हैं कि विमान हमें धरती में एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर तो ले ही जाता है (जो शायद कार या रेल भी कर सकती है) किन्तु उस से ऊपर 'आकाश' के साथ भी कुछ देर के लिए जोड़ता है... और 'मन को साधने' के लिए अनादि काल से थोड़े समय के लिए ही नित्य की जाने वाली पूजा की विधि भी उसी प्रकार हमें अपनी आत्मा को धरती से उपर उठाने का एक साधन समझा जा सकता है :)
ReplyDeleteऔर आज तो कलियुग के प्रभाव से एक १६ साल का बच्चा भी छूटते ही बोलता है कि हमारे पूर्वज मूर्ख थे :)
पहले 'मेरे महान भारत' में बच्चे झुनझुने से खेलते थे (नादबिन्दू से आरंभ से ही जोड़ने के लिए) और बड़े हो अपने अन्दर के मोबाइल से ही भगवान् यानी परमात्मा के साथ जुड़ने का प्रयास करते थे...
किन्तु आज 'बड़ा' भी बचपन से मोबाइल से खेलते खेलते उस से आगे नहीं बढ़ पाता, और टीवी के नशे ने तो आग में घी का काम किया है - हर बात पर 'एस एम् एस' करो! ट्वीट करो! आदि आदि - और 'आई पी एल' के घपले में फंस जाओ :):)
जय हिंद!
@Jc-
ReplyDeleteSo true !
आपका व्यंग बहुत तीखा है डाक्टर साहब ... आज के हालत पर सही त्प्सारा किया है आपने इस रचना के माध्यम से .....
ReplyDeleteबढ़िया...व्यंग्यातात्मक कविता...पुन: पढकर और पुन: कमेन्ट कर के भी मज़ा आ गया
ReplyDelete