लेकिन अपना तो उसूल है की जब गर्मी सताए और कहीं जा न पायें तो पर्वतों के बारे में सोचना शुरू कर दो। सारी गर्मी उड़न छू हो जाएगी।
तो भई , आइये आपको ले चलते हैं भारत और ऑस्ट्रेलिये के बीच होने वाले १९६९ -१९७० सीरीज के तीसरे क्रिकेट टेस्ट मैच में जो दिसंबर १९६९ में दिल्ली के फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान पर खेला गया ।
मैच का पहला दिन । जसदेव सिंह आँखों देखा हाल सुना रहे हैं।
जसदेव सिंह ---
दोनों टीमों के खिलाडी मैदान में हाज़िर। पंक्तिबद्ध खड़े हुए । आज प्रधान मंत्री जी से दोनों टीमों के खिलाडियों का परिचय कराया जायेगा। दिसंबर की सुहानी सुबह । कोटला मैदान सर्दियों की नर्म धूप में नहाया हुआ।यमुना के शीतल जल से होकर पूरब से आती मंद मंद बहती पुरवाई मानो ये सन्देश देती हुई कि प्रधान मंत्री जी अब आने ही वाली हैं।
इस मैच के लिए जिन १३ खिलाडियों के नाम घोषित किये गए हैं , वो इस प्रकार हैं ।
अभी वो शुरू करने ही वाले थे कि पता चला कि पी ऍम जी आ गई हैं। जसदेव सिंह जी ने जल्दी जल्दी नाम लेने शुरू किये ---
लॉरी , स्टैक्पोल, चैपल, शीहन , वाल्टर्स , रेडपाथ , कोनली , मैकेंजी , टेबर , ग्लिसन , फ्रिमन , मेने , मैलेट ।
और फिर थोड़ी देर बाद जब परिचय ख़त्म हुआ तो इत्मीनान से नाम बताये --बल्लेबाज़ी के क्रम में --
बिल लॉरी
कीथ स्टैक्पोल
इयान चैपल
पॉल शीहन
डग वाल्टर्स
इयान रेडपाथ
कोनली
ग्राहम मैकेंजी
इयान रेडपाथ
कोनली
ग्राहम मैकेंजी
टेबर , ग्लिसन , फ्रिमन , मेने ,
और
एशली मैलेट।
आपको बता दें कि इस श्रंखला में बिल लॉरी कप्तान थे और ओपनर थे और स्तैक्पौल रन्नर थे । भारत ने ये मैच ७ विकेट से जीता था। इस मैच में लॉरी दूसरी इनिंग्स में ४९ रन बनाकर नोट आउट रहे थे । ऐसा करके वे विश्व के ३७ वें बल्लेबाज़ बने थे जिसने बैट कैरीड किया था ।
ऑस्ट्रेलिये की दूसरी इनिंग्स में कप्तान बेदी और प्रसन्ना ने ५-५ विकेट लेकर ऑस्ट्रेलिये को मात्र १०७ रन पर आउट कर दिया था ।
भारत ने यह मैच ७ विकेट से जीता । जिसमे बेदी ने २० रन बनाये और वे आउट नहीं हुए । पहली बार उन्होंने ३ छक्के भी लगाये ।
मैच का एक द्रश्य :
जोगा राव जी हिंदी में कमेंट्री कर रहे हैं।
बिशन बेदी बाएं हाथ से ओवर दी विकेट --ये गेंद फैंकी --जिसे बल्लेबाज़ ने खेल दिया है उस ओर जिधर क्षेत्र रक्षण कर रहे है प्रसन्ना --भारी भरकम शरीर के प्रसन्ना --गेंद तेज़ी से होती हुई प्रसन्ना के पास से निकल गई --और प्रसन्ना लुढ़कते पुढ़कते गेंद के पीछे दोड़े जा रहे हैं --लेकिन गेंद उनसे ज्यादा तेज़ --और ये हुई सीमा रेखा से बाहर।
प्रसन्ना लुढ़कते पुढ़कते गेंद के पीछे दोड़े जा रहे हैं ---ये शब्द अभी भी मेरे कानों में गूँज रहे हैं। जी हाँ बिलकुल यही शब्द।
इस वर्णन का एक एक शब्द सच है। मुझे आज भी याद है । हमने भले ही क्रिकेट ना खेली हो , लेकिन कमेंट्री सुनने का बड़ा शौक था । इसी का नातेज़ा है कि ये सब याद है।
इस पूरे विवरण में बस एक गलती है । आपको बतानी है कि ये गलती क्या है ।
आइये देखते हैं आप क्रिकेट के कितने बड़े शौक़ीन हैं।
आपको बता दें कि इस श्रंखला में बिल लॉरी कप्तान थे और ओपनर थे और स्तैक्पौल रन्नर थे । भारत ने ये मैच ७ विकेट से जीता था। इस मैच में लॉरी दूसरी इनिंग्स में ४९ रन बनाकर नोट आउट रहे थे । ऐसा करके वे विश्व के ३७ वें बल्लेबाज़ बने थे जिसने बैट कैरीड किया था ।
ऑस्ट्रेलिये की दूसरी इनिंग्स में कप्तान बेदी और प्रसन्ना ने ५-५ विकेट लेकर ऑस्ट्रेलिये को मात्र १०७ रन पर आउट कर दिया था ।
भारत ने यह मैच ७ विकेट से जीता । जिसमे बेदी ने २० रन बनाये और वे आउट नहीं हुए । पहली बार उन्होंने ३ छक्के भी लगाये ।
मैच का एक द्रश्य :
जोगा राव जी हिंदी में कमेंट्री कर रहे हैं।
बिशन बेदी बाएं हाथ से ओवर दी विकेट --ये गेंद फैंकी --जिसे बल्लेबाज़ ने खेल दिया है उस ओर जिधर क्षेत्र रक्षण कर रहे है प्रसन्ना --भारी भरकम शरीर के प्रसन्ना --गेंद तेज़ी से होती हुई प्रसन्ना के पास से निकल गई --और प्रसन्ना लुढ़कते पुढ़कते गेंद के पीछे दोड़े जा रहे हैं --लेकिन गेंद उनसे ज्यादा तेज़ --और ये हुई सीमा रेखा से बाहर।
प्रसन्ना लुढ़कते पुढ़कते गेंद के पीछे दोड़े जा रहे हैं ---ये शब्द अभी भी मेरे कानों में गूँज रहे हैं। जी हाँ बिलकुल यही शब्द।
इस वर्णन का एक एक शब्द सच है। मुझे आज भी याद है । हमने भले ही क्रिकेट ना खेली हो , लेकिन कमेंट्री सुनने का बड़ा शौक था । इसी का नातेज़ा है कि ये सब याद है।
इस पूरे विवरण में बस एक गलती है । आपको बतानी है कि ये गलती क्या है ।
आइये देखते हैं आप क्रिकेट के कितने बड़े शौक़ीन हैं।
डा. साहिब वाकई में कमाल है कि आपका क्रिकेट का नशा अभी तक नहीं उतरा :) मुझे तो पूरा यकीन था कि आपने अवश्य डायरी में लिख रखा होगा, अंतिम पंक्ति पढने से पहले!
ReplyDeleteआपने '६९ की घटना को याद किया और '६५ में विवाह के पश्चात मेरा शौक ठंडा हो गया था क्यूंकि पत्नी को एलर्जी थी इस खेल से - टीवी घर में आजाने के बाद भी ('८० के दशक में) जब रिमोट उनके हाथ में होता था और किसी चैनल पर कोई क्रिकेट का खेल दिखे तो उसे जितनी जल्दी काट अगला चैनल आ जाता था उससे पता लगता था कि कहीं मैं उनसे वहीं ठहर जाने के लिए न कह दूं :)...खैर, "बीती ताहि बिसारिये / आगे की सुध लेय"...
जहां तक विवरण में गलती का प्रश्न है, गलती है इस पंक्ति में, "...इस मैच में लॉरी दूसरी इनिंग्स में ४९ रन बनाकर नोट आउट रहे थे । ऐसा करके वे विश्व के ३७ वें बल्लेबाज़ बने थे जिसने 'बैट कैरीड किया था'। " दूसरी के स्थान पर पहली होनी चाहिए थी :)
हम कमेंट्री सुनने के साथ साथ क्रिकेट देखने के भी बड़े शौकीन है..पर यह किस्सा तब का है जब मैं पैदा भी नही हुआ था...आपसे एक बढ़िया वाक़या सुना बहुत बढ़िया लगा सच में कमेंट्री तो बड़ी मजेदार होती थी....बढ़िया प्रस्तुति डॉ. साहब धन्यवाद
ReplyDeleteब्लॉगिंग में जो मज़ा है वो मैच में कहाँ?
ReplyDeleteडॉ साहेब, अब जसदेव जी वाली कमेंट्री अब कहाँ.
ReplyDeleteहमारा क्रिकेट का शौक जरा सीमित है..अत: JC साहब से सहमत हो जाते हैं.
ReplyDeleteकमाल हो गया डॉ साहब ...बड़ी पुरानी याद दिला दी आपने ! आपका आभार
ReplyDeleteक्या बात है इतनी पुरानी याद को किस खूबसूरती से सहेजा है आपने डा० साहब ! बहुत खूब !!
ReplyDeleteकमेंट्री टेक्स्ट और यादें क्रिकेट टेस्ट की दोनों को सहेज रक्खा है आपने. बहुत बढ़िया!!
ReplyDeleteमुझे क्रिकेट देखने का बड़ा शौक है और मैं रोज़ाना मैच देखती हूँ! अब तो सेमी फ़ाइनल के मैच का इंतज़ार है! आपका पोस्ट मुझे बहुत ही बढ़िया लगा!
ReplyDeleteसर अच्छी लगी क्रिकेट की ये दास्तान यादों के झरोखे से, कैसे इतना पुराना वाकया इतनी खूबसूरती से संजोये रखा है अब तक????वाकई मजा आ गया
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगा आप का यह यादो भरा लेख, लेकिन मै तो इस क्रिकेट से बहुत नफ़रत करता हुं, यह खेल फ़िरंगियो ्का है इस लिये....
ReplyDeleteकमाल हो गया डॉ साहब ...बड़ी पुरानी याद दिला दी आपने ! आपका आभार
ReplyDeleteहम तो भाई जी ग़ुलाम 'भारत' में पैदा हुए और जब अपनी आँख खुली तो अपने को पाया दिल्ली में एक ब्रिटिश सरकार की कालोनी, 'टेलर स्क्वैर' में,,,जहां अपने बचपन के सुनहरे पल बीते खेल-खेल में बिरला मंदिर के लक्ष्मी-नारायण की छत्र-छाया में, जिससे सटे बटलर स्कूल में ग्यारहवीं कक्षा तक पढ़ाई भी की - मैंने अकेले ही नहीं किन्तु हम चारों भाइयों ने...
ReplyDeleteक्रिकेट हम टेनिस की गेंद से भी खेले घरों के सामने बने हरे मैदानों में,,, और अपने को विजय मर्चेंट या विजय हजारे से कम नहीं समझते थे!
यह तो बाद में ही समझ पाए कि गोल, अथवा अंडाकार, सीमा रेखा के भीतर खेले जाना वाला यह खेल हमारी आकाश-गंगा का प्रतिरूप भी हो सकता है: हमारी 'मिल्की वे गैलेक्सी' एक थाली के समान है, जो किनारे में पतली और बीच में मोटी, यानी गहरी है (खेल के सीढ़ीनुमा अंडाकार स्टेडियम के कुछ-कुछ समान समझी जा सकती है),,,और हमारा सौर-मंडल, पृथ्वी को बीच में रखे, गैलेक्सी के किनारे की ओर स्तिथ है,,,वैसे ही जैसे सेंत्रिफ्यूज में दूध के मंथन के बाद मक्खन बाहरी ओर चला जाता है,,, और प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्री सांकेतिक भाषा में आकाश-गंगा को कृष्ण यानी गैलेक्सी के केंद्र में स्तिथ 'ब्लैक होल' और अन्य दुग्ध से जुड़े गोपालों से स्वेत वर्ण की किरणों के स्रोत (फिरंगी समान, जिनके राज्य में एक समय सूर्यास्त ही नहीं होता था :), यानी अनंत सूर्यों से संबोधित कर खेल-खेल में अनंत कहानियों से मनोरंजन तो कर ही गए,,, किंतु ज्ञानवर्धन भी कर गए और इशारों से सौरमंडल के सदस्यों को ग्यारह खिलाडियों के माध्यम से समझने को कह गए (कप्तान सूर्य का द्योतक, और अन्य दस खिलाड़ी दस ग्रहों के :)...
'शुद्ध इतिहासकारों' के लिए उपरोक्त थोडा कठिन हो सकता है समझना जब तक थोडा-थोडा विज्ञान के छात्र समान सौरमंडल का ज्ञान न हो...
Australian team me se to Chappel ke alawa kisi ka naam bhi nahin suna maine.. kab ka yaad hai aapko? :)
ReplyDeleteजे सी जी , लॉरी ने ४९ नोट आउट तो दूसरी पारी में ही बनाये थे । गलती तो कुछ और ही है । ज़रा याद कीजिये ।
ReplyDeleteदीपक , चैपल तीन भाई है जो टेस्ट मैच खेल चुके हैं ऑस्ट्रेलिया के लिए --इयान , ग्रेग और ट्रेवर। एक बार ग्रेग चैपल जब कैप्टेन थे तो उन्होंने ट्रेवर को एक टेस्ट मैच में अन्डर आर्म बोलिंग करने के लिए कहा था।
ये क्रिकेट किसको कहते हैं? और कैसा लगता है? कोई बताइये प्लिज.
ReplyDeleteरामराम
डा. साहिब, पहली गलती माफ़??? तो फिर गलती इस पंक्ति में है, "और फिर थोड़ी देर बाद जब परिचय ख़त्म हुआ तो इत्मीनान से नाम बताये --बल्लेबाज़ी के क्रम में --" जिसमें १३ नाम हैं और केवल ११ ही बल्लेबाजी करते हैं,,,और २ रिसर्व होते हैं !!!
ReplyDeleteताऊजी, क्रिकेट एक कीड़ा भी होता है जो हाथ मल के आवाज़ निकालता है 'टिर्र टिर्र',,,और खेल में दर्शक-गण चौक्का छिक्का पड़ने पर अपने दो हाथ से खुश हो कर ताली बजाते हैं :)
" cricket ...bhai hum to dipak mashal ji se sahemat hai ."
ReplyDelete----- eksacchai { AAWAZ }
डॉक्टर साहब,
ReplyDelete1969 में बिशन सिंह बेदी कप्तान नहीं थे...मेरे ख्याल से तब मंसूर अली खां पटौदी कप्तान थे...
जहां तक इस मैच का सवाल है, भारत की तरफ़ से एक धाकड़ प्लेयर ने करियर की शुरुआत की थी...लेकिन इस मैच के बाद उसे ड्रॉप कर दिया गया था...फिर उस प्लेयर ने शायद भारतीय टीम में सबसे ज़्यादा कमबैक किए और अपना अलग ही मुकाम बनाया...1983 का वर्ल्ड कप जिताने में इस प्लेयर ने अहम रोल निभाया था...अब बताइए कौन है वो प्लेयर...
जय हिंद...
डा साहिब, सहगल जी भी सही लगते हैं कि बेदी कप्तान नहीं थे - शायद पटौदी थे,,, और इसके अतिरिक्त आपने लिखा, "जिसमे बेदी ने २० रन बनाये और वे आउट नहीं हुए । पहली बार उन्होंने ३ छक्के भी लगाये"... किन्तु इधर उधर झाँक के यह भी पता लगा कि दूसरी पारी में बेदी ७ रन पर आउट हो गए थे जबकि पहली में वे ९ रन बना आउट नहीं हुए,,,३ छक्के इस कारण संभव नहीं हैं :)
ReplyDelete@खुशदीप जी जिस खिलाडी कि बात आपने की वो उस समय १९ वर्षीय महिंदर अमरनाथ भारद्वाज थे...
@ ताऊ रामपुरिया जी, एक और बात: 'छक्के' भी ताली के कारण प्रसिद्द है,,,और छक्का लगने पर ताली बजाते दर्शकगण को इशारों से जोड़ा जा सकता है आकाशगंगा के टिम-टिमाते तारों से (जिनकी आवाज़ दूरी के कारण हम तक नहीं पहुँचती)...
खुशदीप भाई , आपकी बात सही है । इस मैच में कप्तान पटौदी थे ।
ReplyDeleteलेकिन बेदी ने दूसरी पारी में २० रन बनाये थे , ये सही है ।
मोहिंदर अमरनाथ वाली बात सही है ।
अब असली गलती पर आते हैं --एक हिंट देता हूँ । यह कमेंटरी से सम्बंधित है ।
पहले जगजीत सिंह कमेंट्री कर रहे थे फिर जोग राव ये क्या चक्कर है?
ReplyDeleteनीरज
नीरज जी , जगजीत नहीं जसदेव सिंह । कमेंटेटर तो दो दो ही होते हैं। आजकल हिंदी इंग्लिश में बारी बारी से करते हैं। उनदिनों में हिंदी और इंग्लिश की कमेंटरी अलग अलग चैनल्स पर आती थी ।
ReplyDeleteलेकिन गलती भी तो पकड़िये ।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआगया जी आगया JC साहब याद आगया. ये वो खेल है जिसमे एक खिला्डी के हाथ मे डंडा पकडा कर उसके पीछे तीन डंडे खडे करके घेर लिया जाता था और फ़िर एक चमडे की गेंद फ़ेंककर उसको मारने की कोशीश करते थे....जैसे ही उसको वो बोल फ़ेंककर मारी जाती थी वो बचने के लिये इधर उधर भागकर चक्कर काटने लग जाता था.
ReplyDeleteइस १९६९ कि श्रंखला का इडेनगार्डेन (कोलकाता) का मैच हमने देखा था. मैने हिंदी कमेंट्री तो नही सुनी उन दिनों मे. अंगरेजी कमेंट्री बाबी तल्यार खान किया करते थे.
आपके सवाल का जहां तक मुझे लगता है गडबडी जसदेव सिंह जी के साथ ही है. क्योंकि जसदेव सिंह जी हाकी की कमेंट्री करते थे शायद क्रिकेट की नही. तो हो सकता है जो विवरण आपने जसदेव सिंह जी के नाम से लिखा है वो जोगाराव जी ने सुनाया हो?
रामराम.
क्षमा प्रार्थी हूँ! मेरे हाथ कोलकाता वाला स्कोर कार्ड आ गया था, इसलिए गलत बोल गया था बेदी के बारे में!
ReplyDeleteडा साहिब, मुझे तो गलती "बल्लेबाजी के क्रम से" में ही दिखाई दी...
@ ताऊ रामपुरिया जी, जब हम बच्चे थे, हमने जाना कि दिल्ली में कोटला मैदान की पिच आदि के रख रखाव से सम्बंधित सीताराम जी हुआ करते थे,,, जो हमेशा सफ़ेद कपड़ों में रहते थे,,, और इस कारण किसी एक घरेलू मैच में एक खिलाड़ी की अनुपस्थिति में उन्हें भी खिला लिया गया,,,पैवेलियन में थोड़े से ही दर्शक थे और उनकी माँ भी मैच देख रहीं थीं,,, और उस समय ऐसा हुआ कि उनको क्षेत्र रक्षण कार्य करते हुए कई बार गेंद के पीछे दौड़ना पड़ा,,,जबकि बाकी सब आराम से खड़े दिखाई दिए,,, तो उनकी माँ ने कहा कि सब उनके बेटे को ही दौडाए जा रहे थे :) ऐसी ही एक कहानी, सफ़ेद कपडे से सम्बंधित, इंग्लैंड की टीम के तेज़ गेंदबाज़ लारवुड के विषय में उनको टीम में लिए जाने का बारे में प्रसिद्द थी,,, जब ऐसे ही लिए जाने पर उन्हें गेंदबाजी भी करने दी गयी और उन्होंने किसी से आउट न होने वाले खिलाड़ी को तीन गेंद में तीन बार आउट कर दिया (पहली दो बारी बल्लेबाज को कैच और एल बी डब्लू आउट नहीं दिया गया, किन्तु देना पड़ा जब तीन में से एक डंडा उन्होंने गेंद से उखाड़ के दूर फ़ेंक दिया :)...
हा हा हा ! ताऊ चाला पाड़ दिया । बिलकुल सही बताया जी ।
ReplyDeleteदरअसल जसदेव सिंह जी उन दिनों हॉकी की ही कमेंट्री करते थे । ये तो आप जानते ही है कि उनकी बोलने की स्पीड हॉकी गेंद की तरह बहुत फास्ट थी । करीब १९७५ के आस पास उन्होंने क्रिकेट में कमेंट्री करना शुरू किया ।
इस पोस्ट में जसदेव सिंह वाली कमेंट्री दरअसल किसी ने नहीं की । ये तो बस मेरे ही दिमाग की उपज है । लेकिन एक बात सच है कि जिस तरह जसदेव सिंह जी बहुत फास्ट बोलने की क्षमता रखते थे , उसी तरह ये १३ नाम मुझे ऐसे रटे हुए हैं कि मैं इन्हें सिर्फ ३ सेकण्ड में बोल कर सुना सकता हूँ। अब क्योंकि पोस्ट में तो बोल नहीं सकता था , इसलिए जसदेव सिंह जी के नाम का सहारा लिया ।
जे सी जी , सारी दास्तान नेट पर उपलब्ध है , ये मैंने पोस्ट लिखने के बाद जाना ।
तो कैसी रही ये पहेली और यादें ।
....puraanee yaaden ....bas yaaden hain !!!
ReplyDeleteडा साहिब, आप माथा घुमाइ दिये! जब 'आकाशवाणी' छाई हुई थी तब जसदेव सिंह जी '२६ जैन' की परेड का भी हाल सुनाया करते थे,,,किन्तु हम लोग तब अधिकतर अंग्रेजी में 'मेल वेल द मेलो' को सुनना अधिक पसंद करते थे,,, सन '४६ से आदत पड़ गयी थी रेडियो की,,,जिसमें खड़ खड़ के बीच भी कोमेंट्री सुनते थे और कागज़ में रन नोट भी करते थे,,,भले ही मैच किसी भी दो टीम के बीच खेला जा रहा हो :)...औ' मज़ा यह है कि जब रेडियो घर आया तो 'किसान भाइयों' का कार्यक्रम चल रहा था,,,जिस कारण 'बम लहरी' का भी आनंद लिया :)
ReplyDeleteहम तो दुनिया में तब थे ही नहीं, फिर कैसे बताएं.
ReplyDelete________________
'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर करना न भूलें !!
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है. आशा है हमारे चर्चा स्तम्भ से आपका हौसला बढेगा.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपके आगमन के लिए धन्यावाद .आपके ब्लॉग पर भी मै पहली बार आया हूँ और ब्लॉग पढ़कर मजा आ गया . आपके तीनो ब्लॉग बहुत ही अच्छे है . चित्रकथा तो दिल्ली की पुरी कहानी ही कहती है , दिल्ली का हर रंग इसमें समाया हुआ है . गार्डेन ऑफ़ फाइव सेंसेस, मै अभी तक नहीं गया हूँ ,पर अब जरुर जाउंगा . चित्रकथा के अगले अंक का अब हमेशा इन्तेजार रहेगा .
ReplyDeleteजहां तक रेडिओ कोम्मेंतारी का सवाल है , मेरे पापा भी क्रिकेट के जबरदस्त फैन है , जो गलती आपने छोडी है इसके बारे में पापा कहते है की बिशन सिंह बेदी गेंदबाज थे , सो छक्के उन्हीने नहीं बल्कि किसी और ने मारे होंगे .
आपने क्रिकेट का वो स्वर्णिम-इतिहास बताया हैं, जब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था.
ReplyDeleteइसके लिए हार्दिक आभार.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
डॉ साहब , नमस्कार
ReplyDeleteआपकी नायाब डायरी में तो इतिहास के
स्वर्णइम पल छिपे बैठे हैं
उन तमाम पन्नों के खुलने का
बेसब्री से इंतज़ार रहेगा हुज़ूर
और ग़लती के बारे में तो यूं लगा
क बेदी ने शायद तीन छक्के नेऊज़िलैंड के खिलाफ
लगाए थे ... खैर
आपकी दुआएं और शुभकामनाएं
बहुत बड़ा सरमाया हैं मेरे लिए
शुक्रिया
उफ़!...ये पहेली देखते ही मेरी सिट्टी-पिट्टी क्यों गम हो जाती है? :-(
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