एक समाचार से पता चला की मांस (नॉन-वेज) खाने से हवा में ग्रीन हाउस गेसिज की मात्र बढ़ रही है, इसलिए ग्लोबल वार्मिंग हो रही है.
यानि मांसाहारी लोग ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं. अब ये तो कोई बात नहीं हुई. भई, दुनिया में आधे से ज्यादा लोग तो नॉन-वेज पर ही निर्वाह करते हैं.
अब इसके पीछे क्या राज़ है, ये जानने के लिए पहले हम देखते हैं की ये ग्रीन हाउस गेसिज है क्या बला.
ग्रीन हाउस के बारे में तो आपने सुना ही होगा. शीशे , कांच या प्लास्टिक के बने कमरे में पौधे उगाने के काम आते है ये.
सूरज की किरणों से पैदा हुई उष्मा से इसके अन्दर की हवा गर्म हो जाती है और ये उष्मा अन्दर ही ट्रैप्ड रहती है . इसी को कहते हैं ग्रीन हाउस इफेक्ट.
कुछ इसी तरह का माहौल होता है , हमारी पृथ्वी पर.
यानि पृथ्वी की सतह पर कुछ गैसों की एक परत सी होती है, जो सूर्य की किरणों से पैदा हुई गर्मी को वायु में जाने से रोकती हैं.
इससे धरती का तापमान एक निश्चित स्तर पर बना रहता है.
अगर ये गेसिज न होती तो हम आज भी हम आइस एज में रह रहे होते.
ग्रीन हाउस गेसिज :
धरती की सतह पर जो गैस पाई जाती हैं, वे हैं ---
वाटर वेपर, कार्बन डाई ओक्स्साइड, मीथेन ,नाइट्रस ओक्साइड, और फलुरोकार्बंस.
अब इन गैसों की मात्रा बढ़ने से जो उष्मा ट्रैप्ड होती है, उससे धरती का तापमान धीरे धीरे बढ़ रहा है.
इसी को कहते हैं, ग्लोबल वार्मिंग.
इन गैसों के बढ़ने के कारण हैं --
सांस लेने से , कोयला, तेल और पेट्रोल के जलने से और दीफोरेसटेशन से CO2 पैदा होती है.
चावल की फसल उगाने से , पशु पालन से और लैंड फिल साइट्स से मीथेन गैस पैदा होती है.
नाइत्रोजेन युक्त खाद, सीवेज ट्रीटमेंट से और समुद्र से नाइट्रस ऑक्साइड गैस पैदा होती है.
एयर कंडीशनर और रेफ़्रिजेरेतर्स में क्लोरोफ्लुरोकार्बंस पैदा होते हैं, जो ओजोन डिप्लीशन करते हैं.
इस तरह आधुनिक युग की सुख सुविधाएँ और सम्पन्ताएं ही आज इंसान की दुश्मन बन गयी हैं.
अब हम देखते है की कौन सब से ज्यादा ये गैसिज पैदा करते हैं.
एक और समाचार से पता चला है की भारत की पर कैपिटा एमिशन रेट अमेरिका के मुकाबले बहुत ही कम है.
यानि विकसित देश ही असली गुनाहगार हैं.
अब हम आते है खान पान पर.
पता चला है की पशुओं का मांस खाने से वायु में ग्रीन हाउस गैसिज की मात्रा काफी बढ़ जाती है.
इसका कारण है , पशुओं की शरीर में ऐसे बैक्टीरिया का होना जो आतों में ये गैस पैदा करते हैं.
हालाँकि मांस में भी होते हैं या नहीं , ये समझ में नहीं आया.
बहरहाल, ये सच है की अमेरिका में मात्र ३ % लोग ही शाकाहारी हैं, जबकि भारत में कम से कम ३५-४० % लोग शाकाहारी हैं.
यानी अगर मांसाहारी होने से ग्लोबल वार्मिंग हो रही है, तो अमेरिका जैसे देश ही इसके जिम्मेदार हैं.
दुनिया में सिर्फ एक ही देश ऐसा है, जो पूर्ण रूप से सरकारी तौर पर शाकाहारी घोषित हुआ है,
और वो है सुन्दरापोर नाम का एक टापू वाला देश जो मलाया और सुमात्रा के बीच स्थित है.
शाकाहारी या वेजिटेरियन कितने प्रकार के होते है, आइये ये देखते हैं.
ओवो-लेक्टो वेजिटेरियन : जो अंडा और दूध और दूध से बने पदार्थ लेते हैं.
लेक्टो-वेजिटेरियन : सिर्फ दूध और दूध से बने पदार्थ, लेकिन अंडा नहीं.
ओवो- वेजिटेरियन : अंडा लेते हैं , लेकिन दूध नहीं.
मुर्गी का अंडा शाकाहारी माना गया है क्योंकि यह अन्फ़र्तिलाइज़्द होता है. यानी इनसे कभी बच्चे पैदा नहीं हो सकते.
वेगन : न अंडा, न दूध और दूध से बने पदार्थ.
ये सिर्फ प्लांट प्रोडक्ट्स लेते हैं.
ये भी दो प्रकार के :
रौ वेगन : खाने को १५५ डिग्री फौरेन्हाईट से ज्यादा गर्म नहीं करते.
मैक्रोबायोटिक : साबुत अन्न और फल , सब्जियां ही खाते हैं.
इसके अलावा कुछ देशों में मछली को शाकाहार का रूप माना गया है.
ऐसे वेज को पेसिटेरियन कहते हैं.
एक और जाति है जिन्हें फ्लेक्सितेरियन कहते हैं.
ये वो लोग है जो घर में तो शाकाहारी, और पार्टियों में मांसाहारी. यानि मौका मिले तो नॉन- वेज खाने से नहीं चूकते.
अब तो आप जान गए होंगे की आप किस तरह के वेजिटेरियन हैं.
वैसे शाकाहारी होने के कुछ फायदे भी हैं. जैसे शाकाहारी लोगों को डायबिटीज, बी पी , दिल की बीमारी , हाई कोलेस्ट्रोल और यहाँ तक की कैंसर जैसे बीमारियाँ होने की संभावना काफी कम रहती है, ऐसा डॉक्टरों का कहना है.
तो कहिये क्या ख्याल है? ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का.
ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का एक तरीका है --- ऊर्जा के वैकल्पिक श्रोतों का उपयोग.
ये हैं---
जल- विद्युत परियोजना , पवन चक्कियां , सूर्य ऊर्जा , और न्यूकलीयर पावर का उपयोग.
क्या आप बचाना चाहेंगे अपनी पृथ्वी को ?
और अब अंत में --
अन्तिम यात्रा
इंसान अंतिम सांस लेने के बाद अंतिम यात्रा पर जाता है.
इंसान जिन प्राणियों को खाता है, उनकी अंतिम यात्रा तो अंतिम सांस लेने से पहले ही शुरू हो जाती है.
नोट : इस लेख को कृपया व्यक्तिगत रूप में ना लें.
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Bahut achcha laga yeh lekh........kaafi jaankaari praaapt huyi.........
ReplyDeleteDhanyawaad.........
बहुत बढ़िया जानकारी जुटाई है।धन्यवाद।
ReplyDeleteवैसे हम तो शाकाहारी हैं.....सिर्फ दूध का इस्तमाल करते है वह जब कभी चाय पीनी हो:)
ज़रा गौर कीजिये, कहीं आप ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा तो नही दे रहे ---
ReplyDeleteडाक्टर साहब आपने इतनी मेहनत की है इस पोस्ट पर की हैरान हूँ .....!!
अगर हम ग्लोबल वार्मिंग से बच भी जायें तो क्या दुनिया यूँ ही नहीं ख़त्म होने वाली .....जैसा कि नित सुना जा रहा है २१ दिसम्बर २०१२ पृथ्वी कि धुरी बदल जायेगी .....कुछ इस पर भी प्रकाश डालें .....!!
आदमी किसी न किसी रूप से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है
ReplyDeleteहरकीरत जी, घबराएँ नहीं. ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है. ये तो हम बचपन से सुनते आये हैं.
ReplyDeleteडॉ.साहब!
ReplyDeleteआपने इस जानकारी को बढ़िया ढंग से समझाकर
प्रस्तुत किया है!
आभार!
डॉक्टर साहब,
ReplyDeleteपहले तो माफी चाहता हूं, व्यस्तता के चलते टिप्पणियों में नियमित नहीं हो पा रहा हूं...ये है ग्रीन हाउस इफेक्ट
को इतने आसान शब्दों में समझाया, उसके लिए आभार...एक पोस्ट में कार्बन क्रेडिट पर भी ज़रूर लिखिएगा...
रही बात शाकाहार की तो 2006 से लेक्टो-वेजेटेरियन हो गया हूं...सुना है पश्चिम के देशों में तलाक भी ग्लोबल वार्मिंग की बड़ी वजह है....हर साल नया साथी ढूंढ लेते है...फिर फ्रिज, एसी, इलैक्ट्रिक उपकरण नए खरीदते हैं...जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने की वजह बनते हैं...
http://www.youtube.com/watch?v=3OnQo34WszI
ReplyDeletehttp://www.rense.com/general26/milk.htm
मुझे गर्व है की मैं एक वीगन हूं.
बहुत ही सुंदर और शानदार लेख लिखा है आपने! आपके पोस्ट के दौरान अच्छी जानकारी प्राप्त हुई! बधाई!
ReplyDeleteइतने सारे प्रकार तो हमे भी पता नही थे दरल साहब धन्यवाद ।
ReplyDeletebahut bahut rochak jaankaari
ReplyDeleteke liye abhivaadan svikaareiN
ab...global warming is a world-wide
concern...lekin...everyone should
take care of the maximum he/she can.
डा. साहब ,जानकारी बढाने वाला आलेख है .
ReplyDeleteबहुत काम की जानकरी दी डा० साहब आपने.....धन्यवाद।
ReplyDeleteडॉ. साहब,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लेख है. जानकारी के लिए आभार.
महावीर शर्मा
बेहतरीन जानकारी जनाब.... शुक्रिया..
ReplyDeleteजागरूक करता बढ़िया आलेख लेकिन एक सवाल मन में उमड़ रहा है कि अगर ये सच है की अमेरिका में मात्र ३ % लोग ही शाकाहारी हैं, जबकि भारत में कम से कम ३५-४० % लोग शाकाहारी हैं.
ReplyDeleteयानी अगर मांसाहारी होने से ग्लोबल वार्मिंग हो रही है, तो अमेरिका जैसे देश ही इसके जिम्मेदार हैं....
लेकिन अब सवाल उठता है कि अमेरिका और भारत की जनसँख्या में कितना अंतर है?...
आपके हिसाब से अमेरिका की लगभग 97% जनसँख्या मांसाहार पर निर्भर करती है और भारत की लगभग 60 % जनसँख्या भी मांसाहार पर निर्भर करती है ...लेकिन ये भी तो सच है ना कि हमारी जनसँख्या उनसे कहीं ज्यादा है? ...
गिनती के हिसाब से क्या ये अंतर आपस में बराबर है या फिर इसमें फर्क है?...
मेरे कहने का मतलब ये है कि कहीं हम इस मिथ्या गुमान में तो नहीं जी रहे कि ग्लोबल वार्मिंग का जिम्मेदार अमेरिका है जबकि असलियत में इस सब के पीछे हमारी बहुत बड़ी भूमिका हो * .