भीड़ में एक युवक अचानक गिर जाता है ---गिर कर उसका बदन ऐंठने लगता है --- हाथ पैर अकड़ जाते हैं --- मूंह टेढ़ा --दांत भिचे हुए --- मूंह से झाग निकलते हुए --- फ़िर हाथ पैर झटके मारने लगते हैं ---एक एक करके भीड़ इकट्ठी हो जाती है।
फ़िर शुरू होता है, एक्सपर्ट कमेंट्स का सिलसिला ।
जितने मूंह , उतनी बातें।
अरे देखो ये क्या हुआ ?
लगता है इसने कुछ खा लिया है ।
कहीं इसमे भूत तो नही आ गया है।
अरे मैं इसे जानता हूँ , ये तो ऐसे ही करता रहता है।
और इसी तरह की बातें ----
फ़िर इलाज़ भी शुरू ---
अरे भाई, इसके मूंह पर पानी मारो।
नही, नही, जूता सुंघाओ।
इसके हाथ पैर पकड़ो।
और न जाने क्या क्या नुश्खे बताये जाते हैं ।
तभी आप जैसा एक समझदार आदमी आगे आता है।--- हटो, हटो, अरे इसे तो मिर्गी (एपिलेप्सी ) का दौरा पड़ा है। चलिए इसे डॉक्टर के पास ले चलते हैं।--- लेकिन तभी युवक आँख खोल लेता है, और होश में आ जाता है।
जी हाँ, मिर्गी यानि एपिलेप्सी का दौरा कुछ इसी तरह दिखाई देता है। आज विश्व भर में वर्ल्ड एपिलेप्सी डे मनाया जा रहा है। क्या आपको पता है की पूरे संसार में ५ करोड़ लोग एपिलेप्सी से ग्रस्त हैं, जिनमे अधिकाँश थर्ड वर्ल्ड देशों में पाये जाते हैं।
एपिलेप्सी के बारे में बहुत सी ग़लत धारणाएं रहती हैं, आम आदमी के दिमाग में। जैसे की --- ये कोई भूत प्रेत का साया है। या कोई अभिशाप है। या किसी जन्म के बुरे कर्मों का फल है।
हकीकत तो ये है की ये एक बीमारी है, जो किसी को भी हो सकती है। इस का कोई ऐसा कारण भी नही , जिससे इसकी रोक थाम की जा सके। हाँ, इलाज़ ज़रूर है, एलोपथी में।
आम तौर पर एपिलेप्सी दो तरह से देखी जाती है।
एक --- जिसमे हाथ -पैर अकड़ जाते हैं और झटके आने लगते हैं। इसमे मरीज़ कुछ देर के लिए बेहोश हो जाता है। लेकिन कुछ ही मिनटों में होश भी आ जाता है।
दूसरी टाइप --- जो १५ साल तक के बच्चों में पाई जाती है। इसमे कुछ पल के लिए बच्चा बैठा बैठा गुम सा हो जाता है। इन्हे एब्सेंट स्पेल्स कहते हैं। कुछ ही सेकंड्स में ठीक भी हो जाता है। बच्चे को पता भी नही चलता की कुछ हुआ भी था।
लेकिन अगर आपका बच्चा या अन्य कोई रिश्तेदार एपिलेप्सी से ग्रस्त है, तो घबराइये नही। हाँ, कुछ बातों का ख्याल रखना बेहतर रहेगा।
एपिलेप्सी का दौरा पड़ जाए तो घबराएँ नही। मरीज़ को एक करवट लिटा दें। इससे मूंह के सलाइवा से चोकिंग नही होगी। साथ ही मूंह को साफ़ भी कर दें। यदि जीभ दाँतों के बीच आ रही है तो कोई भी सोफ्ट वस्तु दाँतों के बीच फंसा दें, जिससे जीभ कटने से बच जाएगी। कपड़ों को थोड़ा ढीला कर दें।
थोड़ी देर बाद मरीज़ को ख़ुद ही होश आ जाएगा।
एपिलेप्सी ग्रस्त व्यक्ति को भी कुछ बातों का ख्याल रखना चाहिए ----जैसे स्विमिंग पूल , ड्राइविंग, अकेले छत पर जाना , और आग के आगे काम करना ---ये ऐसी गतिविधियाँ हैं जो उन्हें अकेले नही करनी चाहिए।
सबसे ज़रूरी है ---किसी क्वालिफाइड डॉक्टर से इलाज़ कराना। इसके लिए ज़रूरी है आप किसी ऍम डी फिजिशियन या न्यूरोलोजिस्ट से ही इलाज़ कराएँ।
याद रखिये , एपिलेप्सी का इलाज़ सम्भव है। तीन साल तक , यदि दवाई खाने पर , दौरा नही पड़ता है, तो परमानेंट क्योर की संभावना बहुत अच्छी रहती है।
लेकिन एक बात और याद रखिये --- किसी नीम हकीम या चमत्कारी बाबा के चक्कर में ना पड़ें।
दोस्तों जिंदगी में चमत्कार नाम की कोई चीज़ नही होती। चमत्कार उस जादू जैसा है जिस का राज़ हमें पता नही होता और जादूगर कभी नही बताता. ये हाथ की सफाई और नज़रों का धोखा ही तो होता है।
दुनिया में ऐसे धोखेबाज़ , चमत्कारी , शर्तिया इलाज़ करने का दावा करने वाले , ढोंगी , झोला छाप डॉक्टर भरे पड़े हैं।
किसी का नाम लेना ठीक नही होगा --लेकिन अगर कोई असामान्य तरीके से इलाज़ की बात करता है, तो समझ जाइए की आप ग़लत हाथों में पड़ गए हैं।
प्लीज, प्लीज , प्लीज , इनके चक्कर में ना पड़ें।
अब इतना पता होने के बाद तो , मैं समझता हूँ की कभी आप एपिलेप्टिक फिट देखें तो घबराएंगे नही और मरीज़ की यथासम्भव सहायता भी कर पायेंगे।
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वाह वाह डॉ. साहब, बहुत उपयोगी जानकारी दी आपने। हमारे दोनों बच्चों को यही समस्या रही मगर अब वे ठीक हैं। मगर उन्हें यह तब होता था जब ज्वर होता था और १०१ के ऊपर एक्दम शूट होता था। अलावा इसके कभी नहीं। आपका बहौत आभार इस जानकारी के लिए।
ReplyDeleteडॉ दराल जी ~ बहुत अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद्! मुझे तो पता भी नहीं था आज एपिलेप्सी डे है!
ReplyDeleteमैंने बचपन में, शायद चालीस के दशक के अंत में, एक ऐसा केस देखा, और जैसा आपने सही कहा है, अलग अलग सुझाव मिले - जूता भी सुंघाया गया - किन्तु वो व्यक्ति फिर सही हो कर बैठ गया और भीड़ तितर-बितर हो गयी! उसके बाद हमारे ही कॉलेज का एक विद्यार्थी, यद्यपि मेरी उससे कोई जान-पहचान नहीं थी - जो मेरे से एक साल आगे था मेकनिकल इंजीनियरिंग में - उसे ऐसी ही हालत में देखने का मौका मिला राउरकेला में, स्टील प्लांट में, '६१ सन में जब मैं वहां केवल ३ माह की ट्रेनिंग में गया था...
और, यहाँ पर में केवल इतना कहना चाहूँगा की मानव शरीर के Nervous System को प्राचीन योगियों ने शनि ग्रह का रस माना, और शनि ग्रह को लोहे धातु और नीले रंग के साथ भी जोड़ा...और नीले आकाश को 'पंचतत्व' में से एक माना जाता है...
बेहद बेहतरीन ढंग से प्रकाश डाला है आपने...आभार....
ReplyDelete" bahut bahut aabhar aapka ki aapne hume itani kimati jankari di ..."
ReplyDelete----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस बीमारी के बारे में विस्तार से बताने के लिए.........
ReplyDeleteमैंने भी ऐसे कई लोग देखे हैं जो इस रोग के शिकार हैं...कृपया ऐसे बच्चों के माता पिता को सलाह दें कि उन्हें प्यार से रखें, क्योंकि ऐसे बच्चों पर मैंने उनके ही घर में बड़ा ज़ुल्म होते देखा है.....
दूसरी बात कई बार रोगी के दाँत भिंचने लगते हैं तो लोग बाग़ जबड़ा खोलने के लिए चम्मच जैसी कठोर वस्तु भी कम में ले लेते हैं जिस से जीभ काटने की भी घटना घट सकती है.....
आलेख के लिए फिर से बधाई !
बहुत अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद्!
ReplyDeleteडॉक्टर साहब,
ReplyDeleteएपीलेप्सी डे पर बड़ी अच्छी जानकारी दी है...क्या ये समस्या आनुवांशिक (जेनेटिक) होती है, इस पर थोड़ा प्रकाश और डालिए...
वैसे एक पीने-पिलाने वाले सज्जन को भी इस बीमारी ने घेरा हुआ था...सड़क पर जनाब को दौरा आ गया...कोई कह रहा.... जूता सुंघाओ...कोई कह रहा... मुंह में चम्मच दे दो...कोई कह रहा... पानी पिलाओ...डॉक्टर को दिखाओ...इसी बीच एक शख्स ये भी बोला...इसे बीयर पिलाओ...जिसे दौरा पड़ा था वो तपाक से बोल पड़ा....और सब बकवास छोड़ो...बस ये बीयर वाले भाईसाहब की बात सुनो...
जय हिंद...
आप सब की दिलचस्पी के लिए आभार। कई साथियों ने कुछ सवाल उठायें है, उनका ज़वाब देना ज़रूरी है।
ReplyDeleteबवाल साहब, बच्चों में अक्सर बुखार की वज़ह से दौरा पड़ जाता है। ये बच्चे तापमान के प्रति अति संवेदनशील होते हैं। इसलिए इसका इलाज़ भी यही है फ़ौरन बुखार को नीचे लाया जाए, दवा से या पानी की पट्टियों से।
लेकिन चिता की कोई बात नही होती क्योंकि ५ - ६ साल की उमर के बाद दौरे पड़ने बंद हो हो जाते हैं।
अलबेला जी, आपने सही फ़रमाया, दौरे में मूंह में चम्मच जैसी सख्त चीज़ नही डालनी चाहिए, इससे चोट का खतरा रहता है। इसी तरह हाथ पाँव भी नही दबा कर पकड़ने चाहिए क्योंकि वोय्लेंट मूवमेंट के कारण हड्डी या मांस में चोट आ सकती है।
खुशदीप भाई, आम तौर पर ये रोग अनुवांशिक नही होता। लेकिन सिब्लिंग्स में थोड़ी सम्भावना रहती है। अब्सेंट स्पेल्स वाली एपिलेप्सी पीढ़ी दर पीढ़ी हो सकती है।
जे सी साहब, ग्रहों के बारे में अच्छी जानकारी मिली आपसे। आभार।
बहुत अच्छी जानकारी दी है, मिर्गी से ग्रसित एक तो हमारे घर के सामने ही रहता है जिसके साथ जैसा की अल्बेलाजी ने बताया बहुत ज्यादती होती है जानवरों जैसा व्यवहार होता है, अपने ही दुश्मन बन जाते हैं !
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी है सब को सचेत करने के लिये अक्सर लोग जब दवा शुरू करते हैं तोुसे सही समय और लगातार नहीं देते एक दिन दे दी दूसरे दिन भूल गये । अगर 6 माह बाद दौरा पड जाये तो सोचते हैं कि दवा का कोई फायदा नहीं है और दवा छोड देते हैं । इस लिये साधूसंतों और ओझाओं के चक्कर मे पड जाते हैं । बहुत लोग जो दवा को नियम से लेते हैं ठीक होते देखे हैं बहुत अच्छी सामयिक सार्थक् पोस्ट ह। धन्यवाद्
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक लेख डॉक्टर साहब.... मिथक को तोड़ कर उचित जानकारी देने के लिए आभारी हूँ आपका...
ReplyDeleteजय हिंद...
डा. दराल जी ~ क्षमा प्रार्थी हूँ कि निजी अनुभवों के आधार पर मेरा 'आधुनिक चिकित्सा प्रणाली' (जैसी एक सरकारी कर्मचारी को उपलब्ध है हमारे देश में) पर विश्वास कम हो गया - यद्यपि ख़त्म नहीं हुआ...अपनी पत्नी के लगभग ३० वर्ष की उम्र में आरम्भ Rheumatoid Arthritis के कारण मैं, उन २६ दुखद वर्षों में विशेषतया, कई निजी चिकित्सकों के भी संपर्क में आया/ आना पड़ा, विभिन्न अन्य प्रणालियों के भी, तांत्रिकों के भी !...यह अलग बात है कि दूसरी ओर मेरा ज्ञान वर्धन हुआ और यद्यपि मैंने इंजीनियरिंग करी थी मेरा अपनी जन्म-कुंडली में एक लाइन पर ध्यानाकर्षित हुआ "बालक का रुझान चिकित्सा/ आर्मी के क्षेत्र में रहेगा"...:)
ReplyDelete'ब्राह्मिण' परिवार में जन्म होने और उत्तरपूर्व में हुवे कई अन्य घटनाओं के कारण, मेरे वैज्ञानिक पृष्ठभूमि होने की वजह से मुझे उलझन में डाला क्यूंकि वे आम जीवन में घटित होने वाली जैसी नहीं थी: जैसे मेरी उस समय १० वर्षीया लड़की ने मेरी एक उड़ान के संभव न होने पर मुझे एयर पोर्ट जाने से पहले ही आगाह कर दिया था! यूं मुझे अपने पूर्वजों के मस्तिष्क में प्रवेश प्राप्त करने में मजबूर किया है - प्रयास जारी है...
आज छोटी ही टिप्पणी करेंगे!
ReplyDeleteNICE.
मेरी एक बेटी को एक बार तीन चार साल की उम्र में ऐसा ही हुआ था डाक्टर ने एपिलिपसी बताया था उसकी दवा भी याद नहीं दो या तीन साल चली और वो पूरी तरह स्वस्थ्य है. बहुत अच्छी जानकारी दी है. आगे भी ऐसी बीमारियाँ जो सुनने में तो छोटी लगती हैं और जरा सी सावधानी से ठीक हो सकती है या संभाली जा सकती हैं के बारे में आपसे सुनने को मिलता रहे
ReplyDeleteजे सी साहब, यह सच है की एलोपेथि मे हर रोग का इलाज़ नही है.
ReplyDeleteविशेष कर क्रोनिक इल्ल्नेसिज का. कई रोग ऐसे हैं जिनमे आयुर्वेदिक या होमेयोपेथिक इलाज़ सही काम आता है.
फिर भी , कम से कम तांत्रिकों के चक्कर मे तो नही पड़ना चाहिए.
हालाँकि कभी कभी हालात ऐसे हो जाते हैं, जब आदमी मज़बूर हो जाता है.
मैं तो जन्म से तो नही, पर कर्म से खुद को ब्राह्मण समझता हूँ.
लेकिन भाग्य रेखा के बजाय , कर्म मे ज़्यादा विश्वास रखता हूँ.
वैसे आपकी स्थिति मे कोई भी ऐसा ही करेगा.
डा, दराल जी, असल में मैंने गुवाहाटी में अपने स्टाफ को कहा था कि यदि कोई जड़ी-बूटी वाला आपकी नजर में हो तो मुझ से उसे मिलाना...एक दिन एक सज्जन ने मुझे मेरे कार्यालय में बताया कि वो मेरे निवास स्थान पर, जो पास ही था, ऐसे किसी एक आदमी को बिठा के आया है...जैसे ही उसने मुझे देखा वो बोला कि मेरे परिवार में किसी को हाई ब्लड प्रेशर चल रहा है...और करीब १०-१५ दिन के अंदर मुझे मेरे पिताजी के हार्ट अटैक के बारे में तार हजारों मील दूर से मिला!
ReplyDeleteवो बात आई-गयी हो गयी थी उस समय. फिर उसके बाद उसने मुझे एक लिस्ट पकड़ा दी जिसके नाम मेरी समझ के बाहर थे! उसने लेकिन बाज़ार में दुकान बता दी जहां वो जड़ी आदि उपलब्ध थी...अगले दिन उसने सरसों के तेल में उन सबको मिला के और छान के एक बोतल में दे दी (यद्यपि उसके लगाने से भी कोई लाभ नहीं हुआ, बल्कि उसके बाद अक्युपंकचर से एक सप्ताह बाद ही बहुत फायदा हुआ, आयुर्वेदिक और होमेयोपेथिक इलाज़ भी करवाया, किन्तु जब में भूटान में था तब नोर्थ बंगाल के मेडिकल हॉस्पिटल के डॉक्टर के स्टेरोइड देने के कारण शायद कोई अन्य दवाई काम नहीं करती थी - ऐसा मुझे बाद में कई डॉक्टरों ने कहा, जिनमें मेरे साडू भाई भी थे, और पूछा भी कि मैंने वो क्यूं दिया?!)...
बातों-बातों में उसने बताया कि कैसे वो कोलकाता में एक दवाई बनाने वाली कंपनी में काम करता था जो सांप का ज़हर काफी दाम में खरीदते थे...इस कारण , क्यूंकि उसके पास नौगाँव में खाली ज़मीन थी, वो साधुओं के साथ, नौकरी छोड़ चला गया और उनसे सांप पकड़ने कि विद्या प्राप्त कर वापिस आ सर्प-विष के धंधे में लग गया था...उस दौरान उसने मुझे कई विभिन्न जाति के सांप भी दिखाए जो उसने पकडे थे हमारी पहाड़ी नुमा कालोनी से और मुझे इस प्रकार इस विषय में भी जानकारी मिली! मुझे यह भी पता चला कि उसने उस क्षेत्र में कई लोगों को जीवन दान दिया जिन्हें साँपों ने काटा था...
यद्यपि मैंने स्वयं नहीं देखा, मुझे उसके तांत्रिक होने का आभास तब हुवा जब मेरे स्टाफ के अनुसार उसने हमारे ही पड़ोस के एक सांप के काटे, नीले पड़ गए, बच्चे का ज़हर एक चूजे में किसी तान्त्रिक नुमा तरीके से स्थानातरण कर दिया - चूजा मर गया और बच्चा उनके सामने खड़ा हो गया! ...
जे सी साहब, बस यही फ़र्क होता है, हक़ीकत मे और कही सुनी बातों मे. आपने स्वयं नही देखा, इसलिए इसका कोई प्रमाण नही है.
ReplyDeleteमेरे ख्याल से ये असंभव है. साँप के काटे हुए कु्छ मरीज़ हमने भी बचाए हैं. लेकिन समय रहते एंटी - सीरम देकर.
वैसे रयूमेटॉईड आर्त्राइटिस का इलाज़ बहुत मुश्किल और पेचीदा है. ये एक कृप्लिंग रोग है. और दुर्भाग्यवश इलाज़ के परिणाम ज़्यादा अच्छे नही होते.
डा. दराल साहिब ~ यही अफ़सोस मुझे भी हुआ था तब जब एक नहीं मेरा पूरा स्टाफ को मैंने ऑफिस से एक शाम गायब पाया और कुछ ही देर मैं आ कर यह किस्सा सबने बताया. मैंने तब भी उन्हें कहा कि क्यों वे मुझे भी नहीं ले गए - कम से कम मैं कह सकता था कि यह सुनी-सुनाई बात नहीं है, और मैं भी पूरी क्रिया देख पाता...:(
ReplyDeleteभूटान में भी, ७० के दशक में, मैंने भी बहुत सांप देखे थे, अजगर भी, क्यूंकि हम जंगल के बीच काम कर रहे थे. एक दिन तो मैं एक पर पैर भी रखने वाला था लेकिन मेरे एक साथी ने मुझे रोक लिया और उसे मार दिया...:(
एक दिन एक लेबर को एक सांप ने काट खाया. मैं सौभाग्य वश वहां पहुंचा तो मैंने भीड़ देखी. उसके चेहरे मैं पसीने की अनंत बूँदें झलक रही थीं और एक लामा मंत्र पढ़ रहा था. अपने अनुभव आदि से मैं जानता था कि अधिकतर सांप के काटे वाला भय से मरता है न कि ज़हर से, और लेबर के साथ काम करने से मुझे उनके मानस का पता था कि कैसे वे डॉक्टर से नाराज रहते थे कि वो केवल अफसरों को सुई देता है और उनको केवल कोई सस्ती सी दवाई! इस लिए मैंने तुरंत डॉक्टर को वहां ला कर उसको चुपके से कहा कि इसको कोई इनजैकशन दे दो...एंटी सीरम जो भी थे वे दूसरे स्थान पर थे और वहां जा कर लाने का सवाल नहीं था...उसने कोई सुई लगा दी और वो तुरंत ठीक हो गया (लेकिन मुझे नहीं बताया कि उसने कौन सी दवा दी, कहा कि एंटी सीरम दी!:)...
मुझे मीरा बाई के एक कविता की लाइन या आई, 'रोगी अन्दर बैद बसत है, वैद ही औसध जाने रे..."
बहुत ही उपयोगी जानकारी दी आपने इस पोस्ट में...आभार
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