एड्स से जनता को जागरूक करने के लिए हर वर्ष १ दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है ।
करीब तीस साल पहले उजागर हुई इस भयंकर बीमारी से अब तक ३ करोड़ लोग अकाल मौत के मूंह में जा चुके हैं ।
अभी भी ३.३ करोड़ लोग , जिनमे 2५ लाख बच्चे हैं , इस रोग से ग्रस्त हैं ।
लेकिन इस बात से थोड़ी सांत्वना मिलती है कि जहाँ पहले इसका कोई उपचार नहीं था और रोगी एक साल से ज्यादा जिन्दा नहीं रहता था , वहीँ अब सही समय पर सही इलाज़ किया जाए तो ७० साल तक भी जिन्दा रहा जा सकता है ।
करीब ३० से ज्यादा तरह की दवाएं, एक या एक से अधिक कम्बीनेशन में उपलब्ध होने से अब इलाज़ संभव है ।
इसके अलावा इसके रोकथाम के लिए भी कई साधन उपलब्ध हो रहे हैं जैसे एड्स वैक्सीन , टोपीकल ज़ेल्स , एंटी रिट्रो वाइरल ड्रग्स रोक थाम के लिए ।
लेकिन इनसे करीब ४०-६० % लोगों को ही एड्स होने से रोका जा सकता है ।
इसलिए बचाव में ही बचाव है ।
एड्स कैसे होता है ?
* असुरक्षित यौन सम्बन्ध से ।
* संक्रमित रक्त से।
* नशा करने वालों में संक्रमित सूई से ।
* गर्भवती मां से शिशु को ।
एड्स के लक्षण :
* हल्का बुखार रहना ।
* लगातार वज़न घटना ।
* लगातार या बार बार दस्त लगना ।
* खून की कमी होना ।
* गिल्टी निकलना ।
एड्स के रोगी को ये रोग भी पकड़ लेते हैं :
तपेदिक , न्युमोनिया , कई तरह के opurtunistic infections तथा लिम्फोमा जैसे ट्यूमर ।
एड्स के साथ ये रोग भी ट्रांसमिट होते हैं :
Hepatitis -B और C।
निदान :
रक्त की जांच तीन बार की जाती है । यदि तीनों टेस्ट पोजिटिव हों तो एड्स का निदान होता है ।
विंडो पीरियड :
एड्स का संक्रमण होने से रोग के टेस्ट में पोजिटिव आने में ३ सप्ताह से लेकर ३ महीने तक का समय लगता है । इसे विंडो पीरियड कहते हैं ।
इसीलिए संभावित घटना से तीन महीने बाद ही टेस्ट करने का फायदा होता है ।
ऐसे एड्स नहीं फैलता :
* हाथ मिलाने से।
* साथ खाना खाने से ।
* स्विमिंग पूल में ।
* नाई से बाल कटवाने से सम्भावना काफी कम होती है । लेकिन एहतियात बरतने में ही फायदा है ।
* चूमने से --साधारण किस से नहीं होता लेकिन डीप किसिंग से हो सकता है, विशेषकर यदि मूंह में छाले या जख्म हों ।
बचाव में ही बचाव है ।
* जीवन में संयम बरतें ।
* रक्त लेते समय सावधानी बरतें ।
* नशे से दूर रहें ।
* कोई भी शक होने पर अपनी जाँच करवाएं ।
सभी बड़े अस्पतालों में स्वैच्छिक जांच और परामर्श केंद्र खुले हैं ।
यहाँ इलाज़ भी मुफ्त किया जाता है ।
वैसे न ही ज़रुरत पड़े तो अच्छा है ।
Friday, December 3, 2010
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बढ़िया सामयिक प्रेरक पोस्ट....आभार
ReplyDelete... shikshaaprad post !!!
ReplyDeleteअच्छी जानकारी।
ReplyDeleteजो लोग अपने किए का भुगतान कर रहे हैं उनके लिए सांत्वना भले ही न हो पर उन मासूमों के लिए तो है जो बिना किसी जुर्म के इस बीमारी से आक्रांत हैं॥
ReplyDeleteinformative post
ReplyDeleteजानकारीपूर्ण ,शुक्रिया ,संभव हो सके तो मिलियन को करोड़ में बदल दें ! जैसे ३० मिलियन मतलब तीन करोड़ !
ReplyDeleteकृपया मेरे मेल drarvind3@gmai .com पर अपना मोब नंबर दें ..बात करनी है !
अच्छी जानकारी देता आलेख इस ख़ास एड्स उन्मूलन दिवस पर डाo साहब, कुछ अपने कर्मो से गए तो कुछ ने दूसरों का पाप झेला इस जंग में !
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी ...आभार
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी देती पोस्ट ...बीमारी के प्रति जागरूकता ज़रुरी है ..
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी और जरूरी जानकारी....सबका जागरूक होना आवश्यक है
ReplyDeleteप्रशाद जी , गोदियाल जी , बेशक कुछ के लिए कर्मों का फल होता है । लेकिन एक डॉक्टर के लिए तो वे सब मरीज़ ही होते हैं । उनका भी उतनी ही श्रधा से इलाज़ करना पड़ता है । बल्कि उनके साथ ज्यादा हमदर्दी से पेश आना पड़ता है ।
ReplyDeleteatyant upyogi........saarthak post !
ReplyDeleteआज आपकी इस पोस्ट से बार बार अपनी एड्स वाली नज़्म याद आ रही है ......
ReplyDelete''मुझे देने वाला भी
कोई मर्द ही था जानम ....''
आपने सम्पूर्ण जानकारी दी ....पर शुरूआती जानकारी नहीं दी .....एड्स कहते किसे हैं ....?
एड्स कैसे होता है में .....
* गर्भवती मान से शिशु को ....???
टंकण की गलती ....
जब मानवजाति को अज्ञात कारणों से अथवा तमाम सावधानी के बावजूद हो रहे रोगों से बचाने के उपाय ढूंढने में ही पीढ़ियां गुज़र जा रही हैं,ऐसे में जान-बूझकर चिकित्सा जगत के लिए चुनौती पैदा करने वालों का मर जाना ही अच्छा!
ReplyDeleteराधारमण जी , जो जैसा करेगा , वो वैसा भरेगा ।
ReplyDeleteहम ऐसा सोचकर अपना मन क्यों खराब करें ।
हरकीरत जी , एड्स उस बीमारी का नाम है जो एच ई वी ( human immunodeficiency virus ) के संक्रमण से होती है ।
यानि एच ई वी पोजिटिव होने का अर्थ है कि वाइरस का संक्रमण हो चुका है । लेकिन लक्षण नहीं आए हैं ।
लक्षण आने पर बीमारी एड्स कहलाती है ।
बहुत ही उपयोगी और अच्छी जानकारी। प्रेरक पोस्ट
ReplyDeleteउपयोगी पोस्ट।
ReplyDeleteबीमारी जैसे भी हुई हो उसका इलाज तो चिकित्सक को करना ही है..
ReplyDeleteडा. साहिब, लाभदायक जानकारी के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteसत्य तो यह है कि समय के साथ जन संख्या बढ़ रही है और साथ-साथ हर क्षेत्र की समस्याएँ भी जटिल होती जा रही हैं...बीमारियाँ भी इसी श्रंखला की एक कड़ी समान हैं जिनका समाधान ढूंढना भी मानव जाति का ही कर्त्तव्य तो है,,,किन्तु आदमी वर्तमान में - जिसे कलियुग अथवा कलयुग भी कहा जाता है - हर कार्य में प्रयास तो करता दीखता है किन्तु पूर्णतया सफल होता प्रतीत नहीं होता,,,शायद काल (महाकाल?) के प्रभाव से,,, जैसा प्राचीन ज्ञानियों का मानना था...
अच्छी जानकारी ....शुक्रिया
ReplyDeleteचलते -चलते पर आपका स्वागत है
बहत ही अच्छी जानकारी ....
ReplyDeleteमैं वापिस आ गया हूँ...
महफूज़ आपकी सकुशल वापसी पर प्रसन्नता है । आपका स्वागत है ।
ReplyDeleteडा .सा :,
ReplyDeleteसूरज को दीपक नहीं दिखा रहा हूँ ;हिंदुस्तान ,आगरा दि.१३ .०४ २००८ में श्री नारायण चौबे का लेख प्रकाशित हुआ था जिसका उल्लेख १४ .१० २०१० के अपने पोस्ट "उठो जागो और महान बनो " में मैंने किया था ,उसी का यह अंश उद्धृत कर रहा हूँ ,उम्मीद है कि,प्रासंगिक रहेगा.
मार्कंडेय चिकित्सा पद्धति में एड्स -कालक (माइक )रोग है .एड्स जो जीवन शक्ति को क्षीण कर निःसंदेह मौत दे देता है वह कालक है.इसके कारन शरीर में स्थित रोग रक्षक प्रोटीन कण अपनी रोग रक्षण शक्ति खो बैठते हैं और रोगी मौत का ग्रास बन जाता है .
जिनको एड्स हो चूका है या जिनको इसकी शंका है उन्हें दुर्गा कवच में वर्णित सभी दवाओं का प्रयोग क्रमशः करना चाहिए. इन दवाओं के साथ शहद में मिला कर आंवले का रस पीना चाहिए.दवाएं :-
स्प्रिका , मूर्वा,बन्ध्याक्र्कोटी ,असारक ,शतावर ,माचिका,कमल,और गिलोय जिन्हें देवी अम्बिका ,नारायणी,पद्मनी कहते हैं.
यदि आप उचित समझते हैं तो प्राचीन आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग भी बता सकते हैं.
माथुर जी , एक अच्छी जानकारी के लिए आभार ।
ReplyDeleteलेकिन एलोपेथिक डॉक्टर्स को आयुर्वेदिक या अन्य दवाओं का प्रयोग करने की अनुमति नहीं है ।
वैसे एलोपेथी में ऐसी दवाएं हैं जो रोगी को पूरा जीवन दे सकती हैं ।
यह मानव ने स्वंय निमंत्रित किया है ।जानकारी के लिये आभार ।
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी दी है आपने ...
ReplyDeleteमानवीय सरोकार भी कहता है की एड्स के मरीजों से नफरत नहीं करें ...
आपकी पोस्ट ज्ञानवर्धक होती हैं!
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी है आपने. धन्यवाद.
ReplyDeleteदराल सर
ReplyDeleteसबसे पहले तो आपने दिल खुश कर दिया। खासतौर पर आपकी पोस्ट से ज्यादा आपके जवाब ने। मैं तो हैरान हो गया ये देखकर कि एड़स रोगी के लिए लोग आज भी कैसे विचार रखते हैं। कुमार राधारमण की टिप्पणी ने खासतौर पर मुझे निराश किया है। आप सही मायने में एक डॉक्टर कि हैसियत से उपचार करना और रोगी के जीवन को बचाने का काम करने की बात कही है। आपके लिए मेरे दिल में इस बात को लेकर इज्जत बढ़ गई है। जिस देश में खरबों के घोटाले हो रहे हों, गद्दारों की फौज जमा हो रही हो, उनसे बेहतर ये एड्स रोग हैं। जिन्होंने अपने इंद्रियों के सुख के लिए ही अपना जीवन संकट में डाला है न कि देश से गद्दारी करके देश का पैसा खाकर करोड़ों की जीवन जीने की आजादी को छीन ली है। हां नैतिकता के धरातल पर आकर अगर सोचें तो ये लोग गलत होसते हैं. पर उनके मर जाने की कामना करने का हक हम इंसानों को कदापि नहीं है। नैतिकता के धरातल पर तो धरती पर सांस लेने वाली पूरी मानव जाति कहीं न कहीं दोषी है। पर आपने सही उत्तर देकर शायद सभी लोगो को सोचने पर मजबूर कर ही दिया होगा। इसके लिए आपको साधुवाद औऱ लाख लाख धन्यावाद। आप एक डॉक्टर ही रहें, और बाकी लोगो को भी ऐसा ही बनाए।
आदरणीय डा.दराल जी ,
ReplyDeleteआपकी पोस्ट हमेशा ज्ञानवर्धक जानकारियों का गुलदस्ता होती है ! इस बार भी आपने एड्स पर विस्तृत जानकारी देकर ब्लॉग को गरिमा प्रदान किया है ! आपकी इस निःस्वार्थ सेवा के लिए धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
डॉक्टर दराल, आपने एड्स के फैलने के जो चार (४) कारण दर्शाए उनमें से #१ "संक्रमित रक्त से" और # २ "नशा करने वालों में संक्रमित सूई से", यह दो संयोगवश मच्छर की कार्य-प्रणाली समान ही प्रतीत होते है...
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद।
ReplyDeleteएड्स पर अच्छी जानकारी ..
ReplyDeleteजे सी जी , यह समानता बस उपरी है । मच्छर के काटने से एड्स नहीं होती । इसका कारण है कि मच्छर काटते समय अपनी लार इंजेक्ट करता है , रक्त नहीं ।
ReplyDeleteरोहित जी , आपकी बात सही है । एड्स के कारणों में कई कारण तो ऐसे हैं जिनमे रोगी की कोई गलती नहीं होती ।
जैसे पति से पत्नी को संक्रमण होना , गर्भवती मां से शिशु को संक्रमण , रक्त पाने से हुआ संक्रमण । सिर्फ असुरक्षित , अनैतिक , यौन सम्बन्ध ही एक कारण है जो सामाजिक तौर पर भर्त्सनीय है ।
अब जिन लोगों की कोई गलती नहीं , उनको दोष देकर क्यों कष्ट दिया जाए । वैसे भी जैसे कि आपने कहा -और भी ग़म हैं ज़माने में ।
ये विडंबना ही हमारे देश में एड्स का नाम आते ही उसे अनप्रोटेक्टेड सेक्स से जोड़ दिया जाता है...अब एक बच्चे को विरासत में ये बीमारी मिल जाए तो उसका क्या कसूर...एड्स का नाम सुनते ही बिदकने की प्रवृत्ति जब तक रहेगी एड्स की चुनौती का प्रभावी तरीके से सामना नहीं किया जा सकेगा...
ReplyDeleteजय हिंद...
मेरा कहना था कि कार्य प्रणाली एक सी है किन्तु आदमी मच्छर से कई गुणा खतरनाक है कलियुग में यद्यपि समय के साथ, सतयुग में, उत्तरोत्तर तरक्की कर सतयुग में भगवान् बन गया!
ReplyDeleteजे सी जी , यौन सम्बन्ध रखना भी एक मानवीय प्रवृति ही है । यह नैतिक है या अनैतिक , यह हमारी सोच और सामाजिक एवम कानूनी नियमों पर निर्भर करता है । खजुराहो के मंदिर एक हज़ार साल पुराने हैं । लेकिन तब एड्स के वायरस नहीं थे ।
ReplyDeleteएड्स के वायरस का उत्पन्न होना किसी की गलती नहीं , बल्कि मानव जाति का दुर्भाग्य हैं ।