मनुष्य सदा ही जादू और चमत्कारों से अचंभित होता रहा है । मेरा मानना है कि दुनिया में चमत्कार कोई नहीं होता । किसी भी क्रिया का जब तक हम राज़ नहीं जान लेते तभी तक वह रहस्य बना रह सकता है । एक बार राज़ खुलने के बाद सारा पर्दाफाश हो जाता है ।
लेकिन इसी रहस्य का फायदा कुछ लोग बड़ी खूबी से उठा लेते हैं ।
चंद रोज़ पहले टी वी पर न्यूज में ऐसा ही एक चमत्कार दिखाया जा रहा था । जर्मनी के एक महाशय एक हाथ के सहारे दीवार पर हवा में लटक कर तमाशा दिखा रहे थे । कुछ इस तरह --
देखकर वास्तव में बड़ी हैरानी हो रही थी । वह व्यक्ति साफ़ हवा में लटका हुआ नज़र आ रहा था । लेकिन यकीन नहीं हो रहा था । हम जैसों को हो भी नहीं सकता । ज़रूर कोई राज़ होगा । जानने की उत्सुकता थी । इसलिए पूरा एक घंटे का कार्यक्रम देखना पड़ा ।
खैर फिर दिखाया गया कि किस तरह नकली साज़ सामान के साथ पूरी तैयारियां करके पूरा ताम झाम किया गया था । यहाँ सब कुछ नकली था । लेकिन देखने में हैरान कर देने वाला करतब।
चिली के दो भाई भी यही करतब दिखाते हैं ।
कार्यक्रम में मौजूद मेहमान जादूगरों ने बताया कि जादू वास्तव में एक कला है जिसमे विज्ञानं , गणित , इंजीनियरिंग , योग और साधना का प्रयोग किया जाता है ।
मूल रूप से जादू जादूगर के क्रिया कलापों का कमाल होता है ।
इसे आँखों का धोखा भी कहा जा सकता है ।
अक्सर जादूगर आपको अपनी बातों में इतना उलझा लेते हैं कि उनके हाथ क्या कर रहे हैं , उससे आपका ध्यान हट जाता है ।
मंच पर दिखाया गया जादू वास्तव में यंत्रों और मशीनों का खेल है ।
कुछ लोग इसे सम्मोहन भी कहते हैं । हालाँकि मेडिकल सम्मोहन ( हिप्नोटिज्म) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे एक स्पेशलिस्ट ही कर सकता है और इसमें सब्जेक्ट का सहयोग आवश्यक होता है ।
निश्चित ही , किसी जादूगर द्वारा सम्मोहन नहीं किया जा सकता ।
लेकिन एक घटना ऐसी है जिसका राज़ मैं आज तक नहीं जान सका ।
कुछ साल पहले हम मनाली में स्टर्लिंग रिजॉर्ट्स में छुट्टियाँ मना रहे थे । एक दिन शाम को एक्टिविटीज डिपार्टमेंट ने एक जादूगर का शो कराया । यूँ तो जादूगर कोई सड़क छाप सा ही दिख रहा था । उसने करतब भी ऐसे ही छोटे मोटे दिखाए । लेकिन अंत में एक करतब देखकर मैं आज तक हैरान हूँ ।
उसने वहां मौजूद सभी लोगों को कहा --आप एक फूल का ध्यान कीजिये और अपने साथ बैठे व्यक्ति के हाथ पर अपना हाथ उल्टा रखकर रगड़िये ।
हमने भी ऐसा ही किया ।
फिर उसने कहा --अब अपने हाथ को सूंघिए ।
और यह क्या --अपने हाथ में से उसी फूल की खुशबू आ रही थी जो हमने सोचा था ।
वह खुशबू काफी देर तक आती रही ।
हम तो पूरे तैयार होकर बैठे थे कि कहीं जादूगर की चाल को पकड़ सकें । लेकिन इस वाकये ने तो हमें हैरत में डाल दिया ।
यह राज़ तो हम आज तक नहीं जान सके ।
यह कैसी मनोवैज्ञानिक चाल थी ?
Sunday, October 31, 2010
हवा में लटका मनुष्य, और हाथ से आती फूलों की खुशबू --यह क्या है ?
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शायाद AXN चैनल है या कोई और, उनमे एक कार्यक्रम आता है जिसमे इस तरह के जादू का पर्दाफाश लिया जाता है. बाकी जादू अपने आप में एक हुनर है और हाथों की सफाई भी एक कला के रूप में देखी जा सकती है. यूँ तो देखा जाए तो या पूरी दुनिया ही अपने आप में चमत्कार है ... बाकी सब मानने न मानने की बात है ....
ReplyDeleteरोचक पोस्ट, लिखते रहिये ....
ये मायुआ है ... मनोविज्ञान है .. जादू है या क्या है .... डाक्टर साहब जब आप नहीं समझ पाए जो मनोविज्ञान समझ सकते हैं तो हमारे जैसे क्या समझेंगे ...
ReplyDeleteजादू चाहे कुछ भी हो लेकिन व्यक्ति को हैरत में जरूर डाल देते हैं। बस आनन्द लिजिए और ज्यादा खोजबीन में आनन्द मत समाप्त कीजिए।
ReplyDeleteडा. साहिब, सन '५० के लगभग हमारे स्कूल में भी यही खुशबू से सम्बंधित जादू दिखाया गया था...
ReplyDeleteमेरी नज़र में तो सबसे बड़ा चमत्कार मानस पटल पर चित्रों के रूप में स्वप्न का दिखना है (जबकि सिनेमा की उत्पत्ति तो हाल ही मैं संभव हुई है), केवल मानव के ही नहीं अपितु 'तुच्छ प्राणियों' में भी - और वो भी अनादि काल से,,, जबकि हम मानते हैं कि जीवों में उत्पत्ति 'समय' के साथ हुई है! क्या यह दर्शाता है कि चमत्कार दिखाने वाले जादूगरों का गुरु समय के परे है, यानी समय ही सबसे बड़ा चमत्कार है? और शायद तथाकथित कलियुग, अथवा कलयुग, में अन्य मशीन आदि का सहारा लिया जाना भी खेल अथवा लीला का ही भाग है? इत्यादि, इत्यादि...
रोचक घटना ...सब सम्मोहन की माया है ...
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (1/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
सराहनीय पोस्ट।...रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है आपने...धन्यवाद।
ReplyDeleteजो भी था नया था
ReplyDeleteप्रिय जब प्रेम कुटी में आना
आप ही थोड़ा और शोध करके बताओ..हम तो नहीं समझ पा रहे कि वो क्या था.
ReplyDeleteमनुष्य की दिमागी कमजोरियों का लाभ उठाते हैं जादूगर ...
ReplyDeleteअब घूमते पंखे को ही लीजिये इसके सभी ब्लेड अलग अलग हैं मगर स्पीड पकड़ते ही सम मिलते हुए दीखते हैं .
दिमाग बहुत बारीक प्रेक्षण नहीं कर पाता-जादूगर इसे जानते हैं ..और वे ध्यान विकर्षण में भी माहिर हैं ..उनके हाथ कुछ और कर रहे होते हैं और उसी समय वे आपको दिखाते कुछ और होते हैं ...और सहसा ही माजरा बदल जाता है ..
सुगंध भी जानी पहचानी होती है और मानव मन बहुत कम आप्शन रखता है इत्रों की
जायदातर लोग गुलाब सोचते हैं ,फिर खस ,चमेली, बेला बस
आपने भी कमल का इतर थोड़े ही सोचा होगा !
मज़ाल जी , यह न्यूज २४ चैनल दिखा रहा था ।
ReplyDeleteसमीर जी और अरविन्द जी , मैंने बहुत कोशिश की कि दिमाग को काबू में रखकर प्रभावित न होने दिया जाये । लेकिन एक अदने से जादूगर ने फेल कर दिया ।
खैर किसी psychiatrist से ही पूछते हैं इसका राज़ ।
नवम्बर,2000 में पीसी सरकार जूनियर ने आगरा तमाम पत्रकारों और बुद्धिजीवियों की मौजूदगी में ताजमहल को गायब कर दिखाया था और सबकी छीछालेदारी करने वाले तमाम अखबारों ने अगले दिन इसे मुखपृष्ठ पर छापा था। मुझे यह तो नहीं पता कि वह कैसे संभव हुआ,केवल इतना कहना चाहता हूँ कि असली जादू और चमत्कार वह है जो आध्यात्मिकता में घटता है।
ReplyDeletebahut badhiyaa.
ReplyDelete(waise, mujhe bhi kuch soojh nahi rahaa hain.)
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
'प्रकृति' के पिटारे में इतने जादू हैं कि उन सबको समझने के लिए एक जीवन काफी नहीं है :) एक छोटा सा चाँद भी कभी-कभी महाकाय सूर्य के आगे आ पृथ्वी पर कुछ देर के लिए संध्या के आगमन के जैसे संकेत दे पक्षियों को तो भटका ही देता है ('महाभारत' में भी कुछ ऐसे ही दृश्य का वर्णन जयद्रथ के अर्जुन के हाथों मारा जाना दर्शाता है, जब 'कृष्ण' की माया से सूर्यास्त समझ वो खुले स्थान में आ गया, अज्ञानता वश?)...
ReplyDeleteinteresting!!!
ReplyDeleteस्वामी विवेकानंद के अनुसार हम जैसा सोचते है वैसा ही बन जाते हैं .इसी उक्ति का सहारा लेकर जादूगर आदि व्यक्ति की सोच को नियंत्रित (मिस्मेरिजम )के जरिये करते हैं .जो जिस फूल की सुगंध आदि के बारे में सोच रहा होगा उसे वैसा ही एहसास हुआ होगा .
ReplyDeleteस्वामी विवेकानंद के अनुसार हम जैसा सोचते है वैसा ही बन जाते हैं .इसी उक्ति का सहारा लेकर जादूगर आदि व्यक्ति की सोच को नियंत्रित (मिस्मेरिजम )के जरिये करते हैं .जो जिस फूल की सुगंध आदि के बारे में सोच रहा होगा उसे वैसा ही एहसास हुआ होगा .
ReplyDeleteवाकई कई दफे बहुत वारीकी से देखने के वाद भी कोई चीज समझ में नहीं आती तो उसे जादू, सम्मोहन, हाथ की सफाई, टिृक फोटोग्राफी कह दिया जाता है लेकिन यह खुशबू वाली बात तो रहस्य ही है हां अलवत्ता यह कहा जासकता है कि चूंकि फूल के वारे में सोचना भी आपका ही था और खुशवू भी आप ही ले रहे थे । उसी वक्त आप किसी और को हाथ सुघांते और पूछते कि यह काहे की खुशवू है। क्योंकि उसको तो पता नहीं था कि आपने किस फूल के वाबत सोचा है।
ReplyDeletebhai ji ram-ram........ye hindustaan hai....yahan har karishma (kapoor nahi) aasan hai..
ReplyDeleteइसी को तो कहते हैं जादूगरी .... या फिर कुछ लोग बाबा का चमत्कार कहेंगे :)
ReplyDeleteबृजमोहन जी , आपकी बात सही है । यदि किसी और का हाथ सूंघते या सुंघाते तो शायद बता नहीं पाते ।
ReplyDeleteलेकिन हमने तो कोशिश की थी कि हम धोखे में न आयें । फिर भी ऐसा हो नहीं सका ।
jadu to jadu hai samajh se pare
ReplyDeleteसच मे जादू एक विद्या है जिसे आम आदमी नही समझ सकता सम्मोहन दुआरा भी जादू दिखाया जाता है। कुछ तो है---- दीपावली की शुभकामनायें।
ReplyDeleteहर व्यक्ति में कुछ न कुछ विशेष गुण 'प्राकृतिक' तौर पर पाए जाते हैं,,, जिसके पीछे मानव मस्तिष्क में बहुत कुछ छुपा होना है, और जिसे समझ पाना कठिन है (इस लिए आप डॉक्टर हो, में इन्जेनिअर, और वो जादूगर था) ...उदाहरण के तौर पर हमारे पिताजी बताते थे कि कैसे उनके बचपन के समय हमारे पहाड़ी कस्बे में थोड़े से लोग होते थे, और सभी एक दूसरे को जानते थे,,,उन दिनों डाकघर में एक डाकिया होता था जो शाम तक बस से आई डाक सौर्ट कर रख देता था और अगले दिन उन्हें बांटता था... उसे नींद में चलने की 'बीमारी' थी (सोम्नैम्बुलिस्म) जिस कारण कभी-कभी ऐसा होता था कि वो नींद में ही रात को डाक बाँट आता था और अगले दिन डाकघर में पहुँच परेशान हो जाता था कि सौर्ट की हुई चिट्ठियाँ कहाँ गयीं? डाक अधिक नहीं होती थी और उसे जुबानी याद होता था इस कारण वो फिर घर-घर पता करने जाता था कि उनको पत्र मिले या नहीं?! [और हमारे बड़े ताऊजी को नींद नहीं आने की 'बीमारी' (इन्सौम्निया) थी, वो रात को बत्ती बुझा ३-४ घंटे ऐसे ही लेटे रहते थे जब अन्य परिवार के सदस्य गहरी नींद में सोये होते थे,,, और मेरा साढ़े तीन वर्षीय नाती अधिकतर सभी कार के मॉडेल के नाम जनता है और उसे एक नज़र ही देख सही बता देता है! ]...
ReplyDelete
ReplyDeleteआदरणीय दराल साहब,
मैंने इस बारे में ऐसे ही छोटी मोटी खोज की थी.... अधिकतर स्टेज शोज जैसी जगहों पर जब ये चीजें दिखाई जाती हैं तो उस जगह मौजूद इन्फ्रास्ट्रक्टर की बनावट के सहयोग से गायब होने आदि के करतब दिखलाये जाते हैं [आमतौर पर ]
जहां तक सम्मोहन की बात है प्रत्यक्ष रूप में तो नहीं कहूँगा पर किसी ना कसी रूप में ये भी जादूगरी में शामिल तो है [इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता ]
एक नमक में अगर कहा जाये की ये खाने का टेस्ट बढ़ने वाला नमक है, इसमें कुछ ख़ास है और उसके सेम्पल बाँट दिए जाएँ तो मुझे लगता है आधे से ज्यादा लोग उस नमक को अन्य नमक से अलग ही बताएँगे
[अनुभव से कह रहा हूँ ]
खैर .. एक पोस्ट बनाई है दीपावली पर .. एक बार पढ़ लीजियेगा .. आपको पसंद आएगी [पहले से जानता हूँ ]
और हाँ .. आपको और आपके सभी पाठकों को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं
दीपावली की शुभकामनायें।
ReplyDeleteसही कहा जे सी जी । मस्तिष्क को समझ पाना सचमुच बड़ा कठिन है । हम तो आज तक नहीं समझ पाए ।
ReplyDeleteगौरव इसे suggestion कहते हैं । इससे आपउसी में विश्वास करने लगते हैं जो आपके दिमाग में बिठाया गया है । कहीं न कहीं जादूगर भी इसी विद्या का इस्तेमाल करते हैं ।
रजनीश जी , आपको भी दीवाली की शुभकामनायें ।
लीजिये आपने याद किया और हम हाजिर हैं .....
ReplyDeleteजी हाँ ये जादूगरी हाथ की सफाई ही है ...कुछ वैज्ञानिक सम्मिश्रणों से भी ये चमत्कार दिखाए जाते हैं जैसे सिक्के को मुट्ठी में बंद करने से भभूत पैदा हो जाना ...जिसमें सिक्के के नीचे कोई सम्मिश्रण लगा होता है जो हथेली का गर्म स्पर्श पा भभूत जैसा कुछ पैदा करदेता है .....
आपके मामले में हो सकता है आप जहां बैठे हों कुर्सी पर या बेंच पर जहां आप हाथ रखते हों वहाँ पहले से ही कोई इत्र लगा हो ....जैसा कि अरविन्द जी ने कहा आपने भी कमल का फूल तो न सोचा होगा ...गुलाब , चमेली जैसा ही कुछ सोचा होगा ...मगर खुशबू थी ...अधिकतर लोग पिछलग्गू होते हैं एक ने कहा 'हाँ' तो सभी वही कहने लग पड़ते हैं ....जब मूर्तियों ने दूध पीना शुरू किया तो जिनकी नहीं पीती थी वे भी मानने को तैयार ही नहीं थे कि दूध नीचे गिर रहा है ....मैंने उन्हें दिखाने की कोशिश भी की कि दूध तो नीचे बह गया है पर उन्होंने मुझे नास्तिक समझ वहाँ से हटा दिया ...ये सारी अंधभक्ति , अंधश्रद्धा ,अंधविश्वाश की बाते हैं ....!!
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ReplyDeleteआश्चर्यजनक जादू। निश्चय ही मनोवैज्ञानिक प्रभाव है।
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हरकीरत जी , मूर्तियों का दूध पीना तो हमें भी मास हिस्टीरिया ही लगा था । भला मूर्ति भी कहीं दूध पी सकती है ।
ReplyDeleteलेकिन ये खुशबू वाली बात से तो लगता है कि हम भी सम्मोहित ही हो गए । न चाहते हुए भी ।
डा. साहिब, मुझे वो किस्सा नहीं भूलता जब कुछेक दशक पहले मेरे पड़ोस में रहने वाली एक ३-४ वर्षीया लड़की एक दिन मुझे घर से बाहर निकल बाज़ार जाते समय सीढियों पर ही मिली, जब वो धोबी के पास कपडे ले जा रही थी और शायद किताब पढ़ कर आ रही थी, मुझे देखते ही बोली "श से शलगम"...मैंने यह सोचते हुए कि उसे अभी यह शब्द नहीं मालूम होगा अपने मन ही मन में कहा "ब से बलगम",,,और मुझे वो चमत्कार ही लगा जब उसने कहा "ब से तो बत्तख होता है!" मैं सोच में पड़ गया कि वो कमाल मेरे मस्तिष्क का था या उसके? क्या बिन बोले ही कोई आपके मन में विचार डाल सकता है, आदि?
ReplyDelete... shubh diwaali !!!
ReplyDeleteहाँ .. हरकीरत जी की बात में दम है , वहां मौजूद चीजों में ही गड़बड़ होती है इस बात का तो यकीन था
ReplyDeleteपर इस तरह से नहीं सोचा था
दराल सर,
ReplyDeleteअपुन तो इस जादू के मुरीद हैं-
मेरे ख्वाबों की तस्वीर है तू,
बेखबर मेरी तकदीर है तू,
तू किसी और की हो ना जाना,
कुछ भी कर जाऊंगा मैं दीवाना,
तू हां कर या ना कर,
जादू तेरी नज़र....
जय हिंद...
आप सब को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
ReplyDeleteहम आप सब के मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली की कामना करते हैं.
सभी को दीपावली की शुभ कामनाएं!
ReplyDelete" अपने साथ बैठे व्यक्ति के हाथ पर अपना हाथ उल्टा रखकर रगड़िये @ लो सारा राज इसी मे तो है । अगर बिना हाथ रगडे या कहीं टच किये बगैर खुशबू पैदा की जाती तो कुछ रहस्य जैसी बात भी होती ।
ReplyDeleteताजमहल गायब करने और मंच से हाथी गायब करने और रेल गायब करने जैसे खेलो मे मिरर कर्टेन वाला जादू होता है । इन सभी जादू के डिटेल्स आपको अन्यत्र मिल जायेंगे ।
आज दिनांक 8 नवम्बर 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में आपकी यह पोस्ट कला का कमाल शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई। स्कैनबिम्ब देखने के लिए जनसत्ता पर क्लिक कर सकते हैं। कोई कठिनाई आने पर मुझसे संपर्क कर लें।
ReplyDeleteगगनांचल में देखिए बलॉग की दुनिया का नक्शा : नक्शे में आपके नैननक्श
हिन्दी ब्लॉगिंग खुशियों का फैलाव है
शुक्रिया अविनाश जी । देख लिया है । ज्यों का त्यों छाप दिया है ।
ReplyDeleteजनसत्ता का आभार इस योग्य समझने के लिए ।
और आपका आभार बताने के लिए ।
अचानक इस विषय पर मीडिया में काफी दिलचस्पी पैदा हो गई है । यह दिलचस्पी भी दिलचस्प है ।
ReplyDeleteडा साहिब, मेरे घर में कई वर्ष पहले एक सरदारजी अपने कुछेक चमचों के साथ आये जिन्होंने मुझे कहा कि सरदारजी के ऊपर माता आती है! और मुझे एक रंग और एक फूल सोचने के लिए बोला,,, और मैंने सरदारजी को कागज़ के टुकड़ों पर कुछ लिखते देखा... उनको पहले गंभीरता पूर्वक न ले मैंने पहले तुरंत गोभी का फूल सोचा! किन्तु फिर मुझे लगा यह मज़ाक सही न होगा और कुछ सोचने के बाद रजनी गंधा फूल का चुनाव किया,,,और अब उसने कागज़ पर सही फूल का नाम और रंग लिखे दिखा दिए!
ReplyDeleteअपनी टिप्पणी में छोटी बच्ची के माध्यम से घटित वृत्तांत के पश्चात मैंने सोचा कि मेरे फूल का नाम बदलने में सरदारजी का हाथ हो सकता है! (योगी क्या-क्या करने में समर्थ हैं यह मैंने योगानंद की किताब में भी पहले पढ़ा हुआ था)...
उपरोक्त पृष्ठभूमि के सन्दर्भ में, संभव है कि उस जादूगर ने कुछ हद तक अपने विचार एक स्थान विशेष में एकत्रित जनता के मन में डालना सीख लिया हो और कुर्सियों के हैंडल में पहले ही कोई रसायन लगा दिया हो,,,किन्तु आपके विवरण से यह खुलासा नहीं होता कि क्या उपस्थित जनता ने एक ही खुशबू सोची थी? या भिन्न-भिन्न? जब एक ही खुशबू हो तो यह करना सरल होता!
आज बड़े दिन बाद आया। पिछली कुछ पोस्टें भी पड़ीं। चित्रकथा पर आपने काफी अच्छे चित्र लगाए हैं। तकरीबन रोज गुजरता हूं वहां से। रुक कर देखने का कभी समय नहीं मिला, या यूं कहें कि रुके ही नहीं कभी। जब से पार्क बन रहा था तब से बाहर से ही सोचता रहा की जाउंगा खैर कोई बात नहीं। इतने पार्क हैं दिल्ली में कि पूछिए नहीं। चटपटी अंदाज में बीमारियों के बारे में बताया काफी अच्छा लगा। दीवाली की काफी देर से बधाई दराल सर।
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