हमारे अपार्टमेन्ट ब्लॉक के निकट दीवार से लगा एक पीपल का पेड़ है । रोज़ सुबह जब मै गाड़ी निकालता हूँ , तो अक्सर भक्तज़नों को हाथ में लोटा लिए इस पेड़ की पूजा करते हुए देखता हूँ ।
ध्यान से देखिये --इस पेड़ के तने पर काफी ऊंचाई तक तेल की परत चढ़ी है । तने पर सैंकड़ों धागे लपेटे गए हैं । नीचे ज़मीन पर साईं बाबा की एक मूर्ति रखी है । मूर्ति के पास एक डोंगा रखा है जिसमे खाद्य पदार्थ रखे हैं । आस पास चूहों के कई बिल भी बने दिखाई दे रहे हैं ।
शाम को जब मैं आता हूँ तो देखता हूँ कि डोंगे में रखा खाना खाया जा चुका है । ज़ाहिर है बिलों में रहने वाले प्राणियों का ही काम होगा ।
फ्रेम में ज़ड़ी एक नई मूर्ति भी रख दी गई है ।
हम तो ठहरे इस मामले में निपट देहाती ।
पूजा के मामले में पक्के नास्तिक ।
इसलिए समझ में ही नहीं आता कि ---
* लोग पीपल के पेड़ की पूजा क्यों करते हैं ?
* तने पर धागे बांधने से क्या होता है ?
* तने पर तेल डालने से क्या पुण्य मिलता है ?
* ज़मीन पर साईं बाबा की मूर्ति क्यों रखी है ?
* डोंगे में खाने का सामान किसके लिए है ?
अक्सर कोई चूहा मरा हुआ नज़र आ जाता है आस पास ही । डर सा लगता है कि कहीं प्लेग से तो नहीं मरा ।
ऐसे ही कुछ सवाल ज़ेहन में उठते हैं ।
अब आप ही दे सकते हैं इन सवालों के ज़वाब ।
अभी तक हम ही ज्ञान बांटते आए हैं । आज ज्ञान प्राप्त करने की हमारी बारी है ।
आशा है आप निराश नहीं करेंगे ।
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यह तो मैं भी नहीं बता सकता.. मैं भी तो नास्तिक ही हूँ....
ReplyDeleteशायद और कोई बता सके..
आपके साथ साथ मैं भी जवाब के इंतज़ार में,,,,
मेरे ब्लॉग पर इस बार
एक और आईडिया....
... शानदार पोस्ट !
ReplyDeleteजहाँ तक मेरी जानकारी है हमारे पूर्वजों ने वृक्षों की रक्षा का सन्देश देने के लिए ही पीपल को धार्मिक आस्था से जोड़ दिया ..इसीलिए पीपल को मंदिर आदि में लगाया जाने लगा..एक दूसरा कारन ये भी बताया जाता है की पीपल रात को भी आक्सीजन देता है .बाकि धागा ,तेल आदि तो आडम्बर ही लगते है...
ReplyDeleteझूठ, सारे पेड़ रात को आक्सीजन लेते है देते केवल फोटोसिंथेसिस में है
Deleteझूठ, सारे पेड़ रात को आक्सीजन लेते है देते केवल फोटोसिंथेसिस में है
Deleteकोई तो अवलम्बन चाहिये. इंसान बहुत स्वार्थी है. अपने घर के कचरे को कहीं तो निकालेगा.
ReplyDeleteडा. साहिब, जब मनुष्य इस संसार में आता है तो इस संसार आदि के बारे में उसे कुछ पता नहीं होता,,,और यह भी पता नहीं होता कि वो यहाँ आया क्यूँ है ७०-८० साल के लिए?
ReplyDeleteहर बच्चा, आरंभ में बुद्धिहीन होने के नाते (जो बड़ों के लिए भी सही माना कुछेक ने), पहले तो दृष्टा भाव से ही जीता है और इस कारण सबसे पहले तो अपने परिवार के बड़ों से ही सीखता है और उनकी नक़ल करता है (जैसे भारत में, "अनजाने का भय" कहलो, उसके कारण हर प्राणी आदि की पूजा कहीं न कहीं होते देखता आता है और समय के अभाव में आश्चर्यचकित तो होता है किन्तु गहराई में नहीं जा पाता) ,,, और इस प्रकार कुछ धारणाएं बना लेता है - विभिन्न विषयों पर 'सही' और 'गलत' आदि की काल के साथ ...
किन्तु सीमित आयु के और अनंत विषय होने के कारण सारी उम्र, कह सकते हैं 'काल के प्रभाव से', सम्पूर्ण ज्ञान हासिल करने में असमर्थ रहता है,,, यानि वो उतना ही सीखता है जिससे उसकी 'रोटी, कपड़ा, और मकान' की समस्या का समाधान हो सके,,,किन्तु यही उसे ऐसे उलझा देते हैं कि आम आदमी इनमें से कुछ विषयों में भी संतोष नहीं पाता,,, तो फिर जिन विषयों का इनसे सरोकार नहीं होता, उस ओर अधिकतर ध्यान नहीं देता,,,इन्हें 'साधु/ फकीर' आदि के लिए ही छोड़ देता है!
जे सी जी , यह बात तो सही है कि आदमी रोटी कपडा और मकान की समस्या में उलझा रहता है । इसलिए और कुछ सोच ही नहीं पाता । लेकिन पेड़ की पूजा करने वाला तो निश्चित ही कुछ सोचकर ही करता है । क्या सोचकर --बस यही जानना है ।
ReplyDeleteसोचने को मजबूर करती है आपकी ... शानदार पोस्ट !
ReplyDeleteYadi aap ped kee Pooja karna chhahenge to ped lagayenge bhee. Aur Peepal ke patte stalked honese jyada hilate hain hawa ko shuddh karate hain. Sunder to dikhate hee hain un par thodi bhee roshani pade to reflect hokar aise lagate hain mano diye jal rahe hon. Ashwattha yani peepal ka humare Grantho men bhee warnan hai geeta men to is sansar ko hee ulta peepal yani ashwatth ka vruksh mana gaya hai. Par tel lagana to samaz men nahee aata. Peepal ka ped anek panchiyon ke ashray data bee hai.
ReplyDeleteआशा जी , बेशक वृक्षों का बहुत महत्त्व है । और पीपल के पेड़ के गुण भी आपने अच्छे बताये हैं । लेकिन बाकी सारे कार्यों का मतलब हमें भी समझ नहीं आया । पेड़ को पानी चाहिए , न कि तेल ।
ReplyDeleteअभी थोडा जल्दी में हूँ इसलिए सिर्फ ये लिंक दे कर जा रहा हूँ
ReplyDeletehttp://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_5893065.html
http://www.growthindia.org/?p=1276
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_6421848.html
वृक्षों में सबसे ज्यादा आक्सीजन पीपल के पेड़ से प्राप्त होती है। ऐसा वैज्ञानिकों का भी मानना है। इसी कारण हमारे ऋषि-मुनियों ने इसकी बेवजह कटाई ना हो जाए ऐसा सोच कर इस पर देवताओं के वास की बात की होगी। कालांतर में उन्हीं देवताओं को प्रसन्न करने और अपनी मन्नतों को पूरा करने के लिए लोगों ने तरह-तरह के टोटके शुरु कर दिए जिससे मन्नतों का तो पता नहीं पर वृक्ष के लिए जरूर खतरा पैदा हो गया है।
ReplyDeleteबहुतेरी बार तो अपना दीपक बुझने से बचाने के लिए लोग पेड़ के कोटर में रख देते हैं जिससे वहां का हिस्सा झुलसते रहता है। ऐसे लोगों को समझाने से वे ऐसे देखते हैं जैसे उनके पुण्य कार्य में अड़चन डाली जा रही हो।
kiडा. साहिब, जैसा मैंने पहले भी कहा, अधिकतर लोग जब भी कोई युवा/ युवती 'अध्यात्मिक विषय' से सम्बंधित कार्य होते देख रहे होते हैं और उनके मन में विभिन्न प्रश्न उठते हैं तो, 'अज्ञानता वश' कहलो, बड़े-बूढ़े इसे आस्था का विषय कह कन्नी काट लेते हैं (नक़ल कर!) या फिर आपको सत्यवान-सावित्री का उदहारण देते हैं कि कैसे यमराज को सावित्री ने खुश कर अपने मृत पति को भी जिला लिया था,,,या भारत में किसी काल में राजा विक्रमादित्य (और ज्ञान में उनसे कम किन्तु प्रसिद्द राजा भोज) पर आधारित (अनदेखे और अनजाने भूतों आदि से सम्बंधित) 'बेताल पच्चीसी' और 'सिंहासन बत्तीसी' की मनोरंजक कहानियों द्वारा योगियों के मानव शरीर के ९ ग्रहों के सार से बने होने के रहस्य को सांकेतिक भाषा में लेखन द्वारा संकेत शायद {(८ गुना ३ + शून्य से जुड़े शनि के सार, १ = २५), और ३२ दांतों)},,, मानव की कार्य प्रणाली के वट-वृक्ष, पीपल आदि, से आरंभ में जुड़े होने के संकेत आज भी बौद्ध धर्म के मूलरूप में भारत से आरंभ कर, अन्य निकटवर्ती देशों में फ़ैल, किन्तु यहाँ उसका प्रभाव कम हो जाने द्वारा समझाया जाता है, और गीता में भी लिखा है कि मानव वृक्ष के विपरीत है, उल्टा है, ( क्यूंकि इसकी जडें आकाश (शून्य) में हैं,,,वैज्ञानिक भी मानते हैं कि समान क्रोमोज़ोम के विभिन्न काल चक्र में उत्पत्ति होने के कारण एक वृक्ष बन गया तो दूस्ररा कालांतर में मानव!,,, भारत में मान्यता है कि कई स्थानों पर भूत भगाने वाले मानव शरीर से उन्हें पीपल में लटका देते हैं...
ReplyDeletehttp://www.hindu-blog.com/2010/03/why-hindus-tie-cotton-threads-around.html
ReplyDeleteWomen who are not blessed with a son tie a red thread around the trunk or on its branches asking the deities to bless her and fulfill her desire
ReplyDeletehttp://www.thecolorsofindia.com/peepal/origin-of-peepal-tree.html
मान्यता हैं की पीपल के पेड़ में समस्त देवी देवताओं का वास रहता है इसीलिए हिन्दू इस पेड़ का पूजन करते हैं .
ReplyDeleteAfter taking the holy dip, pilgrims performed worship and offered “pind daan” to the departed souls and tied cotton thread around a ‘peepal’ tree as it is believed that by doing so their ancestors will get salvation.
ReplyDeletehttp://www.tribuneindia.com/2010/20100316/haryana.htm#7
http://omshivam.wordpress.com/trikal-sandhya/peepal-or-pipal-the-holy-tree/
ReplyDeleteभारत में 'काला जादू', काली कलकत्ते वाली के बंगाल से, किसी काल में प्रचलित हुआ, जहां तांत्रिक (वैद) दूर से ही 'बाण चलाकर' किसी दूसरे का 'भला' कर सकते थे, वो कैसी भी बिमारी से ग्रसित क्यूँ न हो,,, जो कालांतर में, क्षीण होती शक्ति के कारण, 'बुरा' करने में उपयोग में आने लगा, क्यूंकि 'बुरा' करने में अधिक शक्ति नहीं लगती, जैसे दौड़ते व्यक्ति को टांग अड़ा कर ही गिराया जा सकता है :) और जहां तक (सरसों) तेल का प्रश्न है, बंगाल में आज भी इसका उपयोग होता है मालिश में, भोजन में, और इसके बीजों का भूत भगाने में:)
ReplyDelete'भारत' में पहले आम आदमी का अधिकतर समय गर्मियों में पेड़ के नीचे बैठ गुजरता था, जिस कारण वृक्षों को मान्यता मिलना प्राकृतिक कहा जा सकता है, और उसे आज भी नकारा नहीं जा सकता क्यूंकि वैज्ञानिक भी आज इनकी अत्यधिक कटाई के कारण मानव जाति और सम्पूर्ण संसार को खतरे में मान रहे हैं...
पीपल सबसे दीर्घजीवी वृक्षों में से है। स्वाभाविक ही,औरतों ने इसे पति के दीर्घायु होने की कामना का प्रतीक माना है। आप यह भी नहीं भूले होंगे कि भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति इसी वृक्ष के नीचे हुई थी। पितरों को तृप्त करने के लिए मृत्यु के बाद दस दिनों तक जल से भरा घड़ा पीपल पर ही टाँगने की परम्परा है। श्वास, तपेदिक, रक्त-पित्त,विषदाह जैसे रोगों के उपचार और भूख बढ़ाने आदि के लिए आयुर्वेदिक दवाएं पीपल के पेड़ से बनती हैं। पीपल के नीचे किया गया दान अक्षय हो कर जन्म -जन्मान्तरों तक फलदायी माना गया है। शायद,कुछ अन्न रखने की परम्परा इसीलिए। संभव है,तने पर धागा लपेटना-पति ही जीवन के केंद्र में रहे,ऐसी कामना का द्योतक हो।
ReplyDeleteआस्था के आयाम ही तो हैं ये सब!
ReplyDelete--
समय की आँदी में इनका आयाम भले ही विकृत हो गया हो मगर इनके पीछे जरूर कोई दर्शन छिपा होगा!
--
खोज कर लेंगे तो आपको जरूर बतायेंगे!
पता नहीं...ये सारे अंधविश्वास अब तक लोग क्यूँ अपनाए हुए हैं.....वैसे टिप्पणियों से बहुत सारी जानकारी मिली .शुक्रिया इस विषय की तरफ सबका ध्यान आकृष्ट कराने का...अभी और भी जानकारियाँ मिलेंगी
ReplyDeleteजहां तक धागों, (रंगीन रत्न, वस्त्र आदि), का प्रश्न है, 'रक्षा बंधन' में कलाई में धागे तो 'पढ़े-लिखे' उत्तर भारतीयों के हाथ में 'आस्था' के आधार पर बंधा आम देखा जा सकता है (और जन्म से 'ब्राह्मणों' के गले में पीला जनेऊ),,,
ReplyDeleteसूर्य से प्रसारित धवल किरणों में ७ रंगों का समाया, या छिपा, होना सभी देखते हैं और जानते हैं 'इन्द्र धनुष' में भी - लाल, पीले आदि ...प्राचीन योगियों ने इसी प्रकार रंगों को सार जान विभिन्न ग्रहों (सौर मंडल के सदस्यों) से भी जुड़ा जाना और इनका उपयोग किया,,,किन्तु आज इसका आधार आम आदमी की पहुँच से दूर हो गया है, काल के प्रभाव के कारण...
बोधि वृक्ष है पीपल ....बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था -ऐसा कहते हैं !
ReplyDeleteनास्ति तो नही, लेकिन इन सब बातो से बहुत दुर हुं, पीपल या अन्य पेडो को बचाने के लिये हमारे पुर्वजो ने पुजा की बात की हो लेकिन ऎसी नही जेसी आज कल करते हे, ओर पानी देने कि बात कही हो ताकि सुखे नही, लेकिन अब लोग इसे भगवान समझ कर ओर लालच मे इस की पुजा करते हे, ओर नीचे साई बाबा की मुर्ति रख कर साई बाबा की बेज्जती करते हे, क्योकि साई बाबा तो मुस्लिम थे, ओर मुस्लिम पुर्ति की पुजा नही करते, ओर अब लोग किसी भी साधन से इस पीपल जी कॊ खुश करना चाहते हे, कोई घागा बांध कर, कोई फ़ोटो रख कर, कोई साई बाबा को बिठा कर पता नही क्या क्या करते हे, हमे क्या जी , लेकिन मेने डाकटरी पढने वाले बच्चे भी सुबह शाम पीपल को पानी देते देखे हे, साईंस के विद्धार्थी भी, अगर किसी से पुछो तो उन के पास जबाब नही होता. धन्यवाद
ReplyDeleteरजनीश जी , आशा जी , गगन शर्मा जी , गौरव जी , महेंद्र मिस्र जी , कुमार राधारमण जी , शास्त्री जी और जे सी जी --आप सब के सुझाव व अनुमान काफी तर्क संगत लगते हैं ।
ReplyDeleteरश्मि जी , सही कहा --हमें भी इंतजार रहेगा और जानकारी प्राप्त करने के लिए ।
बस एक ही बात सोचने पर मजबूर करती है कि यहाँ रहने वाले सभी लोग पढ़े लिखे , धन संपन्न और आधुनिक भारतीय हैं । फिर भी इतनी आस्था देखने को मिलती है ।
जिस उद्देश्य के लिए कर्मकांड शुरू किया गया था .. वो समाप्त हो गया है .. आज समाजिक लाभ के लिए नहीं , लालच और व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए लोग कर्मकांड से जुडे हैं ..ऐसे कर्मकांडों से किसका भला हो सकता है ??
ReplyDeleteपर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए सिर्फ पीपल ही क्यों , सभी प्रकार के पेड़ पोधों को बचाना होगा ।
ReplyDeleteलेकिन इसके लिए पूजा की नहीं , संरक्षण की ज़रुरत है ।
अरविन्द जी , सही कहते हैं । लेकिन महात्मा बुद्ध का पीपल के नीचे ज्ञान प्राप्ति महज़ एक इत्तेफाक भी हो सकता है ।
राज जी , संगीता जी , सही कहा --इस तरह की मान्यताएं सभी वर्गों में मिलती हैं । अब कहाँ तक ठीक है , यह तो सब मिलकर ही जानेंगे ।
अगर कोई उत्तर रीपीट हो गया हो तो क्षमा चाहता हूँ [समयाभाव के कारण चर्चा में ठीक से शामिल नहीं हो पा रहा हूँ ]
ReplyDeleteशनिवार को पीपल पर जल व तेल चढाना, दीप जलाना, पूजा करना या परिक्रमा लगाना अति शुभ होता है। धर्मशास्त्रों में वर्णन है कि पीपल पूजा केवल शनिवार को ही करनी चाहिए।
पुराणों में आई कथाओं के अनुसार ऎसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय लक्ष्मीजी से पूर्व उनकी बडी बहन, अलक्ष्मी (ज्येष्ठा या दरिद्रा) उत्पन्न हुई, तत्पश्चात् लक्ष्मीजी। लक्ष्मीजी ने श्रीविष्णु का वरण कर लिया। इससे ज्येष्ठा नाराज हो गई। तब श्रीविष्णु ने उन अलक्ष्मी को अपने प्रिय वृक्ष और वास स्थान पीपल के वृक्ष में रहने का ओदश दिया और कहा कि यहाँ तुम आराधना करो। मैं समय-समय पर तुमसे मिलने आता रहूँगा एवं लक्ष्मीजी ने भी कहा कि मैं प्रत्येक शनिवार तुमसे मिलने पीपल वृक्ष पर आया करूँगी।
शनिवार को श्रीविष्णु और लक्ष्मीजी पीपल वृक्ष के तने में निवास करते हैं। इसलिए शनिवार को पीपल वृक्ष की पूजा, दीपदान, जल व तेल चढाने और परिक्रमा लगाने से पुण्य की प्राप्त होती है और लक्ष्मी नारायण भगवान व शनिदेव की प्रसन्नता होती है जिससे कष्ट कम होते हैं और धन-धान्य की वृद्धि होती है।
http://hi.shvoong.com/humanities/religion-studies/1969850-%E0%A4%AA-%E0%A4%AA%E0%A4%B2-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B6%E0%A4%A8/
अपने धार्मिक ज्ञान को बढाएं, देखिये चमगादड़ कैसी होती है.
ReplyDeleteगीता [ विभूति योग ] में श्री कृष्ण ने कहा भी है
ReplyDeleteअश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणाञ्य नारदः
सभी वनस्पतियों में मैं पीपल हूं और देवऋषियों में मैं नारद हूं
मेरे लिए श्रद्दा का कारण ये है
...धार्मिक कारणों, आस्थाओं, अंधविश्वासों का उल्लेख हुआ..वैज्ञानिक आधार का भी उल्लेख हुआ, आध्यात्मिक ज्ञान का भी जिक्र हुआ, अब और क्या चाहिए पीपल की महत्ता को स्वीकार करने के लिए! विद्वान ब्लॉगरों ने जो कारण गिनाए वे सभी सही हैं। अब एक बात रह जाती है..इस वृक्ष के नीचे बैठकर अनुभव करने की..ध्यान करने की..
ReplyDelete..कभी मौका लगे तो सभी को अनुभव करना चाहिए..गज़ब की उर्जा और शांति मिलती है वहाँ । मेरे घर के पास, सारनाथ में, सारंग नाथ जी का मंदिर है...वहाँ बहुत से पीपल के वृक्ष, एक साथ लगे हैं, सूर्योदय से पूर्व वहाँ बैठने और ध्यान करने का कभी संयोग बनता है तो अवर्णनीय सुख की अनुभूति होती है। एहसास होता है कि यूँ ही इसके बारे में इतना नहीं लिखा गया। आपको भी जरूर इसने आकर्षित किया, अपनी ओर खींचा, तभी आपने यह पोस्ट लिखी।
..आभार।
गीता [ विभूति योग ] में श्री कृष्ण ने कहा भी है---
ReplyDeleteसभी वनस्पतियों में मैं पीपल हूं और देवऋषियों में मैं नारद हूं---
गौरव जी , बिलकुल सही लिखा है आपने । पीपल की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता । इसकी पूजा शनिवार को की जाती है , यह नई जानकारी मिली । यह तो मैंने ध्यान ही नहीं दिया कभी ।
पाण्डे जी , मंदिर में पीपल के पेड़ के नीचे बैठने का अवसर नहीं मिला कभी । लेकिन जिज्ञाषा ज़रूर रही जानने की ।
सर्वे भवन्तु सुखः डोंगे में भोजन उनके लिये है जो पेड की जडमें निवास करते है। हम चिंटी को चुन डालते है, मछलियों को भी, श्राद्धपक्ष में कौओं केा भी ,पहली रोटी गाय की अन्तिम रोटी कुत्ते की ।
ReplyDeleteकिसी भी बृक्ष के नीचे कोई मूर्ति या पत्थर ही सिन्दूर से पोत कर रख दो लोग उस पेड को नहीं काटेेंगे। पर्यावरण की रक्षा
तने पर तेल डालने से तना मजवूत रहता है जैसे मालिश से शरीर
पीपल को ईश्वर का रुप माना जाता है इसलिये वह धागा इस रुप में है कि हमने देवता को यज्ञोपवीत धारण करवाया ।पत्रं पुष्पं समर्पयामि, वस्त्रान समर्पयामि ,
गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है बृक्षों में मै पीपल हूं ।
बहुत आक्सीजन छोडता है यह बृक्ष । इसकी छाल का जला कर पानी में बुझा कर उस पानी को पिलाने से उल्टियां बन्द हो जाती है । पीपल की एक दो कौंपल प्रात खालेना भी स्वास्थ्य बर्धक है
टिप्पणियाँ बहुत मार्गदर्शन कर रही हैं इस पोस्ट पर ...जानकारी देने के लिए सबका आभार
ReplyDeleteचर्चा के लिए अच्छा विषय ...ज्यादातर लोग शनि के प्रकोप से डर कर सुबह सुबह या ठीक संध्या के वक्त तेल चढाते भी हैं और दिया जलाते हैं ...इस पर एक पोस्ट मैंने लिखी थी ...लिंक दे रही हूँ ..पूरी पोस्ट पढना चाहें तो लिंक पर जा कर पढ़ सकते हैं ...
ReplyDeletehttp://shardaa.blogspot.com/2010/07/blog-post.html
बृहस्पतिवार, १ जुलाई २०१०
पीपल के पेड़ से लिपटे धागे
जब कभी देखती हूँ
पीपल के पेड़ से लिपटे धागे
आस्था और विश्वास की डोरियों सरीखे
मन्दिरों में बंधीं अनगिनत चुन्नियाँ
सोचती हूँ , कि कितने ही लोगों की
है ये चलने की डगर
सपने के सच होने का यकीन ...
उँगलियों में पन्ने , माणिक , गोमेद , मोती
लिखी किस्मत को भी बदल पाने का यकीन ...
किसने देखा वक़्त से पहले , टटोल किस्मत को
हर्ज़ कोई नहीं , गर जमीन मिले हौसले को
इन्सान जी जाये
डर ये लगता है , कहीं आँखें खुली न हों
और ये आस्था जमीर को ही छल जाये
अँधविश्वास दुर्बल मन का मजहब है .......एडमण्ड बर्क
दराल साहब, वृक्ष तो आदिकाल से ही लोगों को जीवन देते आये हैं, तब से जब उन्हें इन्सान कहा ही नहीं जाता था. उस समय पेड़ ही भोजन का सबसे बड़ा स्रोत होते थे, लिहाजा वृक्षों को उस काल से ही पूजा जाने लगा. आदिमानव वैसे भी प्रकृति की ही पूजा करता था, इस मामले में मैं आज भी आदिमानव कही जाउंगी. विज्ञान ने साबित किया कि पेपल के वृक्ष से हमें सर्वाधिक ऑक्सीजन मिलती है, लेकिन तब लोगों को इस वृक्ष के नीचे ज़्यादा सुकून मिलता होगा, ऑक्सीजन की ही वजह से, सो इस वृक्ष की पूजा होने लगी, जो आज भी जारी है. अच्छा है, पूजित वृक्ष को कोई काटने की हिम्मत नही करता, पीपल के साथ तो वैसे भी कई भ्रान्तियां जुड़ी हैं, मेरा माली बगीचे में उग आये पीपल को कभी नहीं काटता :) अच्छा है, किसी बहाने तो पेड़ बचे रहें.
ReplyDeleteकुछ दिन देखते रहिये...अभी फ्रेम में जड़ी फोटो रखी है..फिर मंदिर ही न बनने लग जाये वहाँ...बाकी आस्था, पूजा पाठ तो ठीक है.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा....पोस्ट के बहाने ही सही ,कम से कम हम सब पीपल का महत्त्व तो समझे !बहुत बढ़िया चर्चा !!!
ReplyDeleteआपके सारे सवाल तो एक तरफ.
ReplyDeleteआपको ध्यान रखना होगा कि कहीं कोई अब वहां मंदिर बनाकर जमीन हथियाने की तैयारी न कर रहा हो :)
बृजमोहन श्रीवास्तव जी , अपने सभी प्रश्नों के उत्तर यथा संभव तर्कसंगत दिए । बहुत बहुत आभार ।
ReplyDeleteपीपल के गुणों के बारे में अच्छा पता चला ।
शारदा जी , आपकी बात भी सही है । कभी कभी आस्था , अंध विश्वास का रूप ले लेती है ।
वंदना जी , कभी कभी यही पीपल दीवारों में भी घर कर जाते हैं । तब तो इनको काटना ही पड़ता है । वर्ना बिल्डिंग को खतरा हो सकता है । इसलिए पूजा तो यथोचित स्थान पर ही करनी चाहिए ।
समीर जी और काज़ल जी , कम से कम यहाँ मंदिर नहीं बनेगा । क्योंकि यह पेड़ सड़क पर नहीं है ।
पीपल ही एक ऐसा वृक्ष है, जो चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देता है | पीपल का वृक्ष हमारी आस्था का प्रतीक और पूजनीय है। क्योंकि इसके जड़ से लेकर पत्र तक में अनेक औषधीय गुण हैं, इसीलिए हमारे पूर्वज-ऋषियों ने उन गुणों को पहचान कर आम लोगों को समझाने के लिए शायद उन्हीं की भाषा में कहा था "इन वृक्षों में देवताओं का वास है।
ReplyDeleteइसिलये भारतीय संस्कृति में पीपल देववृक्ष कहा गया है | स्कन्द पुराण में वर्णित है कि अश्वत्थ (पीपल) के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं।
इसके सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अन्त: चेतना पुलकित और प्रफुल्लित होती है। पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत:मूर्तिमान स्वरूप है। गीता में भी भगवान कृष्ण कहते हैं- समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूँ | आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। पीपल के वृक्ष के नीचे मंत्र, जप और ध्यान तथा सभी प्रकार के संस्कारों को शुभ माना गया है। श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापरयुगमें परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए।
मेरे विचार से पीपल के अत्यधिक महत्त्व के कुछ कारण शास्त्र सम्मत है, कुछ विज्ञान के द्वारा प्रमाणित है और कुछ अन्धविश्वास या अल्पज्ञान की परिधि में आते है.
दराल जी, आपने सचमुच एक बहुत अच्छे विषय पर चर्चा छेड़ी है। अब तक टिप्पणियों में बहुत कुछ कहा जा चुका है फिर भी मैं इस विषय में कहना चाहूँगा।
ReplyDeleteबरगद और पीपल दो ऐसे वृक्ष हैं जिनकी उम्र असाधारण रूप से लम्बी होती है तीन-चार वर्ष तक। ये दोनों ही वृक्ष मनुष्य सहित अन्य जीवों को पीढ़ी दर पीढ़ी जीवनदायिनी आक्सीजन प्रदान करते रहते हैं। हमारे विद्वजनों को इस सत्य का ज्ञान था और इसीलिए उन्होंने इन वृक्षों को महत्वपूर्ण बताया और इस उद्देश्य से से कि सर्वसाधारण इन वृक्षों के महत्व को स्वीकारें, इन्हें पूजनीय करार दिया।
जिस प्रकार से गूढ़ ज्ञान की बातों को आज भी संकेत के रूप में रखने का चलन है उसी प्रकार से प्राचीनकाल में भी गूढ़ बातों को संकेत रूप में ही रखा जाता था। आज उन संकेतों को हम समझ नहीं पाते इसलिए हम उन बातों को निरर्थक कहने लगते हैं। आज हम जब सुनते या पढ़ते हैं कि भगवान शिव ने ध्यान कर के अन्यत्र होने वाली घटनाओं को जान लिया तो हम इसे बकवास कहने लगते हैं किन्तु आज हम अपने घर बैठे चैट के द्वारा अन्यत्र स्थानों के लोगों से सम्पर्क कर लेते हैं उसे विज्ञान कहते हैं। क्या यह नहीं हो सकता कि आज जो चैट कहलाता है वह उस जमाने में ध्यान कहलाता हो? क्या उस काल में उन्नत विज्ञान हो ही नहीं सकता था?
पीपल के नीचे खाना रखने के पीछे प्राणीमात्र पर दया की भावना ही काम करती है। आज जब भीषण गर्मी पड़ती है तो लोग चिड़ियों के लिए पानी की व्यवस्था करते हैं तो हमें आश्चर्य नहीं होता किन्तु पीपल के पेड़ के नीचे भोजन रखते हैं तो हमें आश्चर्य होने लगता है।
मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हिन्दू दर्शन की अनेक बातों, जो कि संकेत तथा प्रतीक रूप में हैं, के वास्तविक अर्थ क्या हैं इन्हें जानना शोध का विषय है, न कि उपहास का।
शनि ग्रह एक अति सुन्दर छल्लेदार 'रिंग प्लेनैट' है, (सुदर्शन-चक्र धारी विष्णु का प्रतिरूप, योगियों की सांकेतिक भाषा में),,,और यद्यपि बृहस्पति भी छल्लेदार है वो किन्तु उतना सुंदर नहीं है (हमारी गैलेक्सी का प्रतिरूप जिसके केंद्र में ब्लैक होल माना जाता है, यानि विष्णु के अष्टम अवतार, सुदर्शन-चक्र धारी कृष्ण, योगियों की भाषा में)...प्राचीन किन्तु अत्यधिक पहुंचे हुए योगी (आजके वैज्ञानिक की तुलना में) इस प्रकार बृहस्पति को कृष्ण का और शनि को विष्णु का प्रतिरूप जाने,,,और शनि के सार को उन्होंने मानव शरीर में स्नायु तंत्र में जाना जिसके माद्यम से शक्ति का चक्र चलता है, मेरुदंड के भीतर, मूलाधार से सहस्रार चक्र तक,,,और यदि यह तंत्र ठीक से काम न करे तो आदमी एक मरे हुए पेड़ सामान हो जाता है जिसका तना वृक्ष के भोजन को मूल से पत्तों तक पहुँचाने में असमर्थ हो जाता है..शनि को उन्होंने नीले रंग और लोहे से भी जोड़ा जिसके लिए तेल आवश्यक होता है जंग से लोहे को बचने के लिए और यूं उसकी आयु बढ़ाने के लिए... .
ReplyDeleteपीपल के पत्ते बहुत ही हल्के होते हैं,हवा चलने पर अन्य किसी पेड़ के पत्तों की अपेक्षा ये सबसे पहले हिलते हैं और हवा रुख बताते हैं। मैं भी जब हवा बंद होती है तो पीपल के पत्तों की तरफ़ देखता हूँ कि हिल रहे हैं या नहीं।
ReplyDeleteपीपल में तेल देने का कुछ वैज्ञानिक कारण हो सकता है, हमारे यहाँ जब आम के पेड़ से बौर झड़ने लगते हैं या छोटी कैरियाँ अपने आप टूट कर गिरने लगती है तो उसकी जड़ों में तेल डाला जाता है जिससे वे टूट कर न गिरें। शायद तेल से इसकी जड़ें मजबूत होती होगीं,जिससे पीपल दीर्घायु हो सके।
लो कल्लो बात ये तो कित्ता सिंपल है सर ....
ReplyDeleteपीपल (people) are worshipping पीपल ....and it is so simple ....लो इधर आप हंसे उधर पडे आपके गालों पे डिंपल ..
सभी लोगो को मेरा नमस्कार,
ReplyDeleteपीपल के पेड़ कि पूजा का जो विधान हमारे ग्रंथो में हैं, उसमे सिर्फ , पीपल के पेड़ कि जड़ो में पानी देना तक ही हैं। बाकि सब आडम्बर और ज्ञान कि कमी का नतीजा हैं। पीपल के तनो पर तेल गिरना उसके लिए नुकसान दायक हैं। और सरसों के तेल के व्यापारियों को फायदे का सौदा । रही बात अनाज कि तो वो भी कुछ हद तक इस लिए सही हैं कि उस पीपल के पेड़ के ऊपर आश्रित जीव जन्तुवो को भोजन मिल जाता हैं।
और ये भी सच हैं कि हमारे पूर्वजो ने उसे सिर्फ इस लिए पूज्य बनाया ताकि हम उस को बचा सके। क्योंकि पीपल हमें २४ घंटे शुद्ध हवा देता हैं।
कंही भी हवा चले या न चले पीपल के पत्ते हमेश हिलते रहते हैं।
जाते - जाते एक बात और :
सावधान : सुना हैं कि पीपल के पेड़ पर भुत भी रहते हैं।
'जीवन' रहस्यमय होने के कारण, सबसे प्राचीन सभ्यता, हिन्दू, की मान्यता है कि आरंभ में एक दम शांति रही होगी, फिर केवल एक शब्द ॐ (big bang) से शून्य काल में भौतिक श्रृष्टि की रचना की गयी, नादब्रह्म, परमात्मा यानि शक्ति रूप में विद्यमान जीव, विष्णु, द्वारा जो निराकार नादबिन्दू होने के कारण सदैव, अनंत काल से, ब्रह्माण्ड में अकेले ही विद्यमान था (और इस लिए अनादि भी कहलाया गया),,, वास्तव में स्वयंभू, जो स्वयं प्रगट हुआ था,,,और इस मान्यता के आधार पर श्रृष्टि शून्य काल में उत्पन्न हो शून्य काल में ही ध्वस्त हो गयी होगी...जिस कारण मानव यदि भगवान् का प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब है तो 'मायावी फिल्म जगत' को उसकी कार्य प्रणाली का प्रतिबिम्ब मान अनुमान लगाया जा सकता है कि परमात्मा के लिए कठिन नहीं रहा होगा 'माया' द्वारा (तीसरे नेत्र में) शून्य काल में घटित अनंत प्रतिक्रियाओं को अनंत नेत्रों द्वारा जैसे बार-बार देख पाना, वैसे ही जैसे 'हम', उसके प्रतिबिम्ब, धोनी आदि के छक्कों को बार- बार देख पाते हैं उन्नत तकनीक के कारण,,, (वैसे भी स्वप्न में हर कोई प्राणी चित्र आदि, 9 ग्रहों की सहायता से देखता है, जिसमें शनि का सार मानव के लिए स्नायु-तंत्र के रूप में सहायक है, अथवा उसका मुख्य रोल है,,, पीपल के पेड़ में भी दीख सकता है कुछेक को शनि :) ("हरी अनंत / हरी कथा अनंता" कह गए ग्यानी-ध्यानी!)...
ReplyDeleteपीपल ही नहीं, आम, आंवला आदि पेडों की पूजा समय समय पर की जाती है। यह हमारी उस संस्कृति का हिस्सा है जिसे हम पर्यावरण का बचाव कर पाते हैं।
ReplyDeleteबहुत बार आस्था के सामने कोई जवाब नही होता ..... पर यहाँ समझने वाली बात ये है की आस्था की लिमिट क्या है ... सिर्फ़ पूजा तक या ... जल चडाने तक .... या उससे भी आगे .... स्वार्थ पूरा करने तक ....
ReplyDeleteभावेश जी , अवधिया जी , --अपने बहुत अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है । लेकिन यहाँ उपहास कोई नहीं कर रहा । एक प्रश्न पर सब अपने निष्पक्ष विचार प्रस्तुत कर रहे हैं ।
ReplyDeleteललित जी , सही कहा कि पीपल के पत्ते बहुत हलके होते हैं ।
गिरि जी , तेल का मतलब तो हमें भी समझ नहीं आया । भूतों के बारे में फिर कभी ।
प्रशाद जी , नासवा जी --बेशक पर्यावरण का बचाव ज़रूरी है । बाकि तो सब अपनी अपनी आस्था और मान्यता है ।
आपके सवाल ने पोस्ट को बहुत जानकारी भरी टिप्पणीयों से भर दिया।ज्ञानवर्धक पोस्ट बन गई है। आभार।
ReplyDeleteइसमें शनि का क्या रोल है पता नहीं किन्तु तेल और लकड़ी के सम्बन्ध से यह बात याद आई कि जब हम बचपन में क्रिकेट का खेल खेलते थे कुछेक बार हमने बल्ले भी खरीदे... उनमें से जो पार्चमेंट लगे होते थे उनको नहीं किन्तु अन्य नए बल्लों पर हम अलसी (?) का तेल, कपडे को उसमें डुबा, कुछ ऊँचाई तक लगाते थे, यह ख्याल रख कि बहुत तेल न लगाया जाये,,, और नयी गेंद से धीरे धीरे उसके बाद पीटते भी थे , जिससे उनके किनारे गेंद लगने पर आसानी से टूटते नहीं थे, जैसे बिना तेल लगे बल्ले से खपच्ची सी निकल जाती थी कभी-कभी...
ReplyDeleteऔर हमारे एक टीचर भी थे जो चमड़ा चढ़े बेंत से कभी-कभी पिटाई करते थे - कुछ बच्चे कहते थे कि वे उसको तेल में डुबाकर रखते थे :)
बहुत बढ़िया और शानदार पोस्ट! अच्छी और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई! आभार!
ReplyDelete.
ReplyDeleteपीपल और नीम , दो ही ऐसे वृक्ष हैं जो २४ घंटे आक्सीजन निकालते हैं। शेष वृक्ष रात्रि के समय कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जित करते हैं।
.
यह धारणा गलत है कि पीपल और नीम रात को भी आक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं। बिना सूर्य की रौशनी के यह संभव नहीं है, हाँ यह जरूर है कि अन्य पौधों और वृक्षों से इनके द्वारा आक्सीजन का निर्माण कहीं ज्यादा होता है।
Deleteअभी कमेंट पढ़ने आया था। विषय ही इतना अच्छा है इस पोस्ट का कि रहा न गया। बहुत अच्छे व ज्ञान वर्धक विचार आ रहे हैं..
ReplyDeleteबेशक पाण्डे जी , हमें भी नई नई जानकारियां प्राप्त हो रही हैं ।
ReplyDeleteउत्साहपूर्वक भाग लेने के लिए आप सब का आभारी हूँ ।
जे सी जी , डंडे को तेल पिलाने वाली बात तो हमने भी सुनी है ।
पीपल का पेड़ चौबीसों घंटे ओक्सीज़न निकालता है इसलिए इसे न कटा जाय शायद ऐसा सोच लोगों को ये बताया गया हो की इसमें देवता का निवास है. वैसे हमारे देश की संस्कृति में सभी पेड़ व पशु पक्षी किसी न किसी रूप में पूजे जाते हैं जैसे जानवरों में गाय, शेर, सेही (पोर्कुपईन ) सांप, नेवला ये तो कुछ ऐसे हैं जिनकी किसी खास तिथि को पूजा होती है बाकी तो किसी न किसी देवी देवता के वाहन हैं इसलिए पूजनीय हैं. पर सबके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक तर्क जरुर होगा जो हमें ढूँढना चाहिए
ReplyDeleteसारे लोगों ने बता ही दिया है लेकिन एक फायदा किसी ने नही बताया । इस पेड़ के नीचे मन्दिर बनाकर अनाधिकृत कब्ज़ा करने के भी यह काम आता है ।
ReplyDeleteडॉक्टर साहब एक जबरदस्त पोस्ट औऱ टिप्पणियों ने काफी कुछ फिर से याद दिला दिया जो लगभग भूल चुका था। शनिवार को ही पूजा के लिए अक्सर कहा जाता है पीपल का। पर क्यों पता नहीं। एक बात और जहां तक मुझे मालूम था पीपल के नीचे रात में सोने की मनाही है। पर जब पीपल का पेड़ रात में भी ऑक्सीजन छोड़ता है तो फिर ऐसी मनाही क्यों? हो सकता है उस पर कीट पंतगों के ज्यादा होने के कारण ऐसा होता हो। अगर कोई और कारण है तो वो भी जानना जरुरी होगा।
ReplyDeleteसर ,मुझे तो लगता है कि पीपल की रक्षा के लिये इसे पवित्र बना दिया गया ।
ReplyDelete@आदरणीय दराल साहब
ReplyDeleteएक निवेदन है ... इस चर्चा में जो भी प्रश्न अनुत्तरित रहें या नए हों ,कमेन्ट के रूप में या जैसे भी आप चाहें लिख दीजियेगा [अलग से] , उत्तर तो हम ढूंढ लेंगे सब और उत्तर मिलते ही ....पहुंचा देंगे आप तक :)
डा. साहिब, ॐ अथवा ध्वनि ऊर्जा की बात करें तो आधुनिक वैज्ञानिकों ने तकनीक में उन्नति के कारण पिछले २-३ दशकों के अध्ययन के दौरान जाना है कि सूर्य से ध्वनि तार से बजने वाले वाद्य यन्त्र हार्प समान सुनाई देती है (जिसे प्राचीन काल से पश्चिम में आकाश में उड़ते 'एंजेल्स' के हाथों में दिखाया जाता आ रहा है), जबकि शनि से तीन प्रकार की ध्वनि के मिश्रण समान आवाज़ निकलती है: घंटियों की टुनटुन, पक्षियों की चहचहाट, और ढोल पीटने की आवाज़ समान,,,जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अनादि काल से क्यों भारत में सफ़ेद साडी पहने ज्ञान की देवी सरस्वती के हाथों में वाद्य यन्त्र वीणा दिखाई जाती है,,,और किस आधार पर मंदिरों में ढोल-नगाड़े पीटने और घंटियाँ बजाने कि प्रथा आरंभ हुई होगी (कूर्माचल के पहाड़ी क्षेत्र में सदियों से बने दो ऐसे मंदिर मैंने देखे हैं जिनमें घंटियाँ चढ़ाई जाती हैं: मंदिर के प्रांगण में हजारों घंटियाँ बंधी देखि जा सकती हैं,,,मान्यता है कि कभी एक राजा थे जो बहुत न्यायप्रिय थे, और उनका भूत अभी भी देवता रूप में सफ़ेद घोड़े पर घूमता दिखाई पड़ता है, जिसके पीछे शायद यह मान्यता रही होगी कि विष्णु का कल्कि अवतार सफ़ेद घोड़े में आयेगा)...
ReplyDelete@JC जी
ReplyDeleteआप ये बेहतरीन जानकारियाँ कहाँ से प्राप्त करते हैं ?:) ये जानने की जिज्ञासा है :)
अगर आप बताना उचित समझें तो ही :)
गौरव जी, जान कर प्रसान्नता हुई कि आपको जानकारी बेहतर लगीं. धन्यवाद! शायद इसके पीछे मेरा गहराई में जाने का रुझान कहा जा सकता है और भगवान् की कृपा से अच्छी पढाई के मौके पाना: जैसे विज्ञान और इंजीनियरिंग की पढ़ाई आदि,,,और, विशेषकर उत्तर-पूर्व में, अध्यात्म के क्षेत्र से सम्बंधित कुछ विचित्र अनुभवों का होना इसमें शामिल है,,,जैसे उस समय (अस्सी के दशक के आरंभ में) गौहाटी में मेरी दस वर्षीय तीसरी पुत्री ने मेरी एक इम्फाल की उड़ान का, लगभग जब वो दिल्ली से उड़ान भरने वाली थी, मुझे बता दिया कि वो केंसल हो जायेगी! (विमान गौहाटी देरी से आया जरूर किन्तु वहाँ से दिल्ली वापस लौट गया,,, और उस घटना ने मुझे इस भौतिक संसार से परे सोचने पर विवश किया)...
ReplyDeleteDid you mean: Peepal Tree Press More...
ReplyDeleteWikipedia:Sacred fig
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Sacred Fig
Leaves and trunk of a Sacred Fig.
Note the distinctive leaf shape.
Scientific classification
Kingdom: Plantae
Division: Magnoliophyta
Class: Magnoliopsida
Order: Rosales
Family: Moraceae
Genus: Ficus
Species: F. religiosa
Binomial name
Ficus religiosa
L.
The Sacred Fig (Ficus religiosa) or Bo-Tree (from the Sinhala bo)[1] is a species of banyan fig native to Bangladesh, India, Nepal, Pakistan, Sri Lanka, southwest China and Indochina. It is a large dry season-deciduous or semi-evergreen tree up to 30 m tall and with a trunk diameter of up to 3 m. The leaves are cordate in shape with a distinctive extended tip; they are 10–17 cm long and 8–12 cm broad, with a 6–10 cm petiole. The fruit is a small fig 1-1.5 cm diameter, green ripening purple. The Bodhi tree and the Sri Maha Bodhi propagated from it are famous specimens of Sacred Fig. The known planting date of the latter, 288 BC, gives it the oldest verified age for any angiosperm plant. This plant is considered sacred by the followers of Hinduism, Jainism and Buddhism, and hence the name 'Sacred Fig' was given to it. Siddhartha Gautama is said to have been sitting underneath a Bo-Tree when he was enlightened (Bodhi), or "awakened" (Buddha). Thus, the Bo-Tree is well-known symbol for happiness, prosperity, longevity and good luck. Today in India, Hindu sadhus still meditate below this tree, and in Theravada Buddhist Southeast Asia, the tree's massive trunk is often the site of Buddhist and animist shrines. The Hindus do pradakshina (circumambulation) around the sacred fig tree as a mark of worship. Usually seven pradakshinas are done around the tree in the morning time chanting "Vriksha Rajaya Namah" meaning salutation to the king of trees.
Contents [hide]
1 Local names
2 Plaksa
3 Different views, aspects
4 See also
5 Notes
6 References
7 External links
8 Gallery
Local names
Typical shape of the leaf of the Ficus Religiosa
The Bodhi Tree at the Mahabodhi Temple. Propagated from the Sri Maha Bodhi, which in turn is propagated from the original Bodhi Tree at this location.
It is known by a wide range of local names:
in Indic languages:
Burmese: ဗောဓိညောင်ပင် bawdi nyaung pin
Bengali অশ্বত্থ asbattha, পিপল, Peepal
Hindi: पीपल pipal (sometimes transliterated as: peepal, peepul, pippala, etc.)
Kannada araLi mara ಅರಳಿ ಮರ
Malayalamഅരയാല് Arayal
Marathi pimpaL (where L stands for the German ld sound, used in for example Nagold)
Oriya Ashwatth
Pali: assattha; rukkha
Sanskrit: अश्वत्थः aśvatthḥ vṛiksha, pippala vṛiksha (vṛiksha means tree)
Sinhala: බෝ bo, ඇසතු esathu
Tamil கணவம் kaṇavam, also அரச மரம் (arasa maram)
Telugu రావి raavi,
Urdu: peepal
Punjabi:Pippal
Gujarati:vad,vadlo,pipdo પિપળો
Plaksa
Plaksa is a possible Sanskrit term for the sacred fig. According to Macdonell and Keith (1912), it rather denotes the wavy-leaved Fig tree (Ficus infectoria).
In Hindu texts, the Plaksa tree is associated with the source of the Sarasvati River. The Skanda Purana states that the Sarasvati originates from the water pot of Brahma and flows from Plaksa on the Himalayas. According to Vamana Purana 32.1-4, the Sarasvati was rising from the Plaksa tree (Pipal tree).[2]
Plaksa Pra-sravana denotes the place where the Sarasvati appears.[3] In the Rigveda Sutras, Plaksa Pra-sravana refers to the source of the Sarasvati.[4]
Different views, aspects
@ Apanatva
ReplyDeleteवाह जी वाह । अद्भुत जानकारी दी है आपने । अब इसके आगे जानने को और क्या चाहिए । आभार ।
डा. साहिब, साधारण तौर पर देखा जाये तो एक वृक्ष को तीन (३, सांकेतिक ॐ, यानी ब्रह्मा-विष्णु-महेश से सम्बंधित) भाग में बांटा जा सकता है ('पंचतत्व' के माध्यम से, दसों दिशाओं में व्याप्त): जड़ (या जडें, जो पीपल वृक्ष की अत्यधिक शक्तिशाली होती हैं और दूर-दूर तक फ़ैल चट्टान को भी फाड़ सकती हैं!), जो धरा पर उपलब्ध 'मिटटी' से, 'जल और वायु' के माध्यम से धरती में प्राप्त विभिन्न तत्वों को, पत्तों तक पहुंचाने का काम करते हैं (और पत्तों में पके भोजन को वापिस जड़ तक पहुँचाने का भी); तना (ठोस, पतले या मोटे खम्भे सा दिखने वाला अंश), जो मूलतः जड़ और पत्तों के बीच 'एक टांग में ताड़-देव (शिव)' जैसे, खड़ा, या लेटा ('क्षीरसागर के बीच विष्णु' जैसे); और (लगभग 'आकाश' को विभिन्न स्तर तक छूते) पत्ते जो मुख्यतः पौधे या पेड़ की रसोई समान सूर्य द्वारा प्रसारित किरणों के माध्यम से 'अग्नि' का उपयोग कर भोजन तैयार करने में सहायक होते हैं...
ReplyDeleteअब, यदि उत्पत्ति में केवल पेड़ ही किसी का लक्ष्य होता तो इतना ही काफी होता: यानि अन्य पेड़ों समान, उनके बीच ही उपस्थित, पेड़ के राजा पीपल के भी पत्ते झड़ते और नए आ जाते और यूँ ही चक्र चलता रहता...किन्तु नहीं, ऐसा नहीं हुआ,,, और पेड़ों के बीच उनके सर्वोत्तम पेड़, वट (अथवा पीपल), तक ही पहुंचना लक्ष्य नहीं रहा होगा,,, और तब फूल और 'फल' (पेड़ की आवश्यकता से अधिक बना भोजन) बनाने का सोचा गया होगा काल-चक्र के विस्तार हेतु,,, पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ट रचना यानि मानव, तीनों लोक, पाताल, धरा और आकाश, के श्रृष्टि-कर्ता और उसकी कार्य-प्रणाली तक पहुँचने के लिए, अनंत माध्यमों में से सर्वश्रेष्ठ माध्यम (किन्तु पृथ्वी पर प्राकृतिक तौर पर दस में से केवल ८ दिशाओं तक ही पहुँच वाला! किन्तु "जहाँ न पहुंचे रवि/ वहां पहुंचे कवि" को यथार्त करने के लिए शरीर के भीतर मस्तिष्क-रुपी असाधारण और अमूल्य कंप्यूटर धारण किये हुए!)...
मेरे जवाब =
ReplyDeleteआस्था हैं इसलिए करते हैं. शुक्र हैं कहीं तो इंसान ने मन टिकाया वरना आजकल की भागती-दौड़ती, व्यस्त ज़िन्दगी में इंसान का मन कहीं टिकता ही नहीं.
तने पर धागा बाँधने से पेड़ आम लोगो से जुडा नज़र आता हैं, कोई छेड़छाड़ करने या काटने की जुर्रत भी नहीं कर सकता. क्योंकि जितने धागे बंधे होंगे समझो उतने लोग उस पेड़ के साथ जुड़े होंगे.
तने पर तेल डालने से महान पुण्य मिलता हैं. भूत भाई खुश हो जाते हैं और मोहल्ले में उत्पात नहीं मचाते, आखिर उन्हें रात को गुप्त-हवन/यज्ञ में आहूति डालने को तेल जो मिल जाता हैं.
साईं बाबा का तो कोई साईं भक्त ही बता सकता हैं, सॉरी.
डोंगे में खाने का सामान दिल्ली में तो बंदरो के लिए हैं. और बाकी जगह कुत्ते-बिल्ली, चिडिया-कबूतर, और चींटियों के लिए. दूसरो को खाना खिलाने का अच्छा बहाना हैं ये.
डरिये नहीं, प्लेग तो बरसो पहले ही समाप्त हो चुका हैं, आप डॉक्टर हैं इस तथ्य को कैसे भूल बैठे???
तो ये थे मेरे जवाब.
कैसे लगे???
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
मस्तिष्क-रुपी कंप्यूटर की कार्य-प्रणाली आदि की चर्चा होती है तो मुझे प्राचीन हिन्दू-मान्यता, "वसुधैव कुटुम्बकम", यानि पृथ्वी पर आधारित "सारे प्राणी पृथ्वी के परिवार के ही सदस्य हैं" का ध्यान आता है, जहां पृथ्वी को ब्रह्माण्ड का केंद्र माना जाता रहा है,,,और कि काल के प्रभाव से सतयुग के १००% क्षमता की तुलना में कलियुग में मानव-क्षमता केवल २५% से ०% के बीच रह जाती है,,,जबकि आधुनिक वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार आज सबसे विद्वान् व्यक्ति भी मस्तिष्क में उपलब्ध अरबों सेल से केवल नगण्य का ही उपयोग कर पाता है (यानि मजबूर है!)...
ReplyDeleteमें नीचे इस विषय पर अपनी ही एक अन्य ब्लॉग में दी गयी एक टिप्पणी उद्घृत कर रहा हूँ...
"थोडा फलसफा हो जाए!
तुलसीदास जी कह गए, "जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखि तैसी",,,और जब मैं आज अपनी ही एल्बम में अपनी ही तस्वीरें देखता हूँ तो समझ नहीं आता कि मैं किसको 'मैं' कहूं? क्या इनमें से कोई असली मैं हूँ और शेष नकली? अथवा ये तस्वीरें किसी अनदेखे की हैं, जो मेरे और सबके भीतर भी रहता हैaaj और जो काल के साथ-साथ बदलता रूप प्रतिबिंबित करता है?
जब से मैंने हिन्दू-मान्यता के अनुसार जाना कि मानव सौर-मंडल के ९ सदस्यों के माध्यम से महाशून्य का प्रतिबिम्ब है, जब कोई हिन्दू पौराणिक कहानियों में संदर्भित दोनों अलग-अलग काल में 'धनुर्धर' पात्रों, अर्जुन अथवा राम, कहता है तो मुझे सूर्य की याद आती है, जिससे तीर समान किरणें हर दिशा में फ़ैल रही हैं और जो एक राजा समान अपने सौर-मंडल को ४ अरब वर्षों से साक्षात् रूप में वर्तमान में भी रथ समान चलाता आ रहा है..."
मै तो लेट हो गयी इतना ग्यान? वाह मैने तो सुना है कि पीपल का पेड रात मे भी आक्सीजन छोडता है लेकिन सुना है। तेल का राज़ तो पता नही मगर लोगों की आदत है जिस डाल पर बैठते हैं उसे ही काटने लगते हैं। बहुत बडिया पोस्ट। धन्यवाद।
ReplyDeleteइस विषय पर आप सबकी टिप्पणियां पढ़कर वास्तव में काफी नई बातें पता चली ।
ReplyDeleteसबको पढ़कर निष्कर्ष यही निकलता है कि --
पीपल का पेड़ सर्वश्रेष्ठ माना गया है । इसके नीचे बैठकर गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था । इसके हरे भरे असंख्य पत्तों से ऑक्सिजन की मात्रा काफी मिलती है । हालाँकि रात में भी , यह संदिग्ध लगता है ।
धागों का बांधना शायद पर्यावरण की रक्षा की दृष्टि से तर्कसंगत लगता है ।
तने पर तेल डालने का कोई ठोस कारण समझ नहीं आया ।
खाद्य पदार्थ जीव जंतुओं के लिए अर्पण करना पुण्य का काम है ।
साईं बाबा की मूर्ति का कोई औचित्य समझ नहीं आया ।
अंत में यही कि सब श्रद्धा भावना की बात है । लेकिन श्रद्धा का दुरूपयोग करते हुए , मनुष्य अपने स्वार्थ में आकर गलत कार्य न करे , इसके लिए जागरूक होने की ज़रुरत है ।
बढ़िया...जानकारी भरी पोस्ट...
ReplyDeleteटिप्पणी देने के लिए इतना अधिक समय इसलिए लगाया क्योंकि इस सवाल का उत्तर नहीं मालूम था :-(
खैर!...साथियों की टिप्पणियों से काफी ज्ञानवर्धन हुआ...शुक्रिया इस सार्थक पोस्ट के लिए
डा. साहिब, मैंने पहले भी कहा था, "पीपल के पेड़ में भी दीख सकता है कुछेक को शनि"...
ReplyDeleteयदि हिन्दू-मान्यता को फिर से सारांश में देखें, यह मान कि प्राचीन हिन्दू पहुंचे हुए 'सिद्ध पुरुष' यानि all rounder थे, तो पायेंगे कि अनंत ब्रह्माण्ड के श्रृष्टि कर्ता को उन्होनें माना या जाना था कि वो हमेशा, यानि अनादिकाल से ही, एक अकेला, अनंत, 'नादबिन्दू', यानि निराकार जीव है, जो अनंत ध्वनि-ऊर्जा का स्रोत है... इसे सरल भाषा में कहें तो श्रृष्टि कि रचना शून्य यानि बिंदु से आरंभ हो निरंतर फूलते गुब्बारे समान अनंत ब्रह्माण्ड के अनंत और अँधेरे शून्य में बनी हुई है,,, और जिसके होने का आभास उसके भीतर व्याप्त आकार में अनंत किन्तु अस्थायी और संख्या में भी अनंत गैलेक्सी यानि तारा-मंडल के समाये होने के कारण होता रहता है...
अब यदि 'पृथ्वी' (और अन्य गेंद- नुमा ग्रहादि ) और 'वृक्ष' को तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो पायेंगे कि दोनों एक टांग पर खड़े हैं: ग्रह उत्तर-दक्षिणी धुरी पर और वृक्ष पृथ्वी पर अपने तने पर,,,
और हम जानते हैं कि भारी-भरकम प्रतीत होने वाले वृक्ष भी नन्हे से बिंदु-समान बीज से उत्पन्न होते हैं और जो आरंभ में धरा के ऊपर एक नन्ही सी लकीर समान दिखता है, जो काल के साथ धीरे धीरे मोटे खम्भे जैसे आकार में बढ़ता जाता है...
आज हमें पता है कि पेड़ की आयु का पता उसके तने को काटने से उसके भीतर बने छल्लों (ऐन्युलर रिंग) की संख्या से पता चलता है: यानि इसे प्रकृति का कमाल अथवा इशारा कह सकते हैं जब हम शनि ग्रह को (और बृहस्पति को) भी एक सूर्य की तुलना में नितांत ठंडा किन्तु सुन्दर 'रिंग-प्लेनेट' जान चुके हैं (और विष्णु और कृष्ण दोनों को सुदर्शन-चक्र धारी माना जाता है) ,,,जिसे उसकी धीमी चाल होने के कारण तुलनात्मक दृष्टि से शनि को 'लंगड़ा' कहा जाता रहा है औसत व्यक्ति द्वारा (पृथ्वी जितनी देर, एक वर्ष, में सूर्य की एक परिक्रमा करने में लेता है, उसकी तुलना में शनि को ३० वर्ष लगते हैं),,,और हमें यह भी पता है कि यह प्राकृतिक है कि ठंडी वस्तु ही गर्म वस्तु से शक्ति यानी ऊर्जा धारण करती है, किन्तु शनि की सूर्य से अत्यधिक दूरी के कारण उसमें बर्फ से बने छल्ले पिघलते नहीं हैं, वैसे ही जैसे संख्या में अनंत किन्तु अस्थायी जीव सूर्य की गर्मी से जलते नहीं हैं, जब तक शिव की तीसरी आँख न खुल जाए, यानि पृथ्वी के वातावरण में व्याप्त ओजोन तल में छिद्र बड़ा न हो जाये :)...
डा. साहिब, मैंने पहले भी कहा था, "पीपल के पेड़ में भी दीख सकता है कुछेक को शनि"...
ReplyDeleteयदि हिन्दू-मान्यता को फिर से सारांश में देखें, यह मान कि प्राचीन हिन्दू पहुंचे हुए 'सिद्ध पुरुष' यानि all rounder थे, तो पायेंगे कि अनंत ब्रह्माण्ड के श्रृष्टि कर्ता को उन्होनें माना या जाना था कि वो हमेशा, यानि अनादिकाल से ही, एक अकेला, अनंत, 'नादबिन्दू', यानि निराकार जीव है, जो अनंत ध्वनि-ऊर्जा का स्रोत है... इसे सरल भाषा में कहें तो श्रृष्टि कि रचना शून्य यानि बिंदु से आरंभ हो निरंतर फूलते गुब्बारे समान अनंत ब्रह्माण्ड के अनंत और अँधेरे शून्य में बनी हुई है,,, और जिसके होने का आभास उसके भीतर व्याप्त आकार में अनंत किन्तु अस्थायी और संख्या में भी अनंत गैलेक्सी यानि तारा-मंडल के समाये होने के कारण होता रहता है...
अब यदि 'पृथ्वी' (और अन्य गेंद- नुमा ग्रहादि ) और 'वृक्ष' को तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो पायेंगे कि दोनों एक टांग पर खड़े हैं: ग्रह उत्तर-दक्षिणी धुरी पर और वृक्ष पृथ्वी पर अपने तने पर,,,
और हम जानते हैं कि भारी-भरकम प्रतीत होने वाले वृक्ष भी नन्हे से बिंदु-समान बीज से उत्पन्न होते हैं और जो आरंभ में धरा के ऊपर एक नन्ही सी लकीर समान दिखता है, जो काल के साथ धीरे धीरे मोटे खम्भे जैसे आकार में बढ़ता जाता है...
आज हमें पता है कि पेड़ की आयु का पता उसके तने को काटने से उसके भीतर बने छल्लों (ऐन्युलर रिंग) की संख्या से पता चलता है: यानि इसे प्रकृति का कमाल अथवा इशारा कह सकते हैं जब हम शनि ग्रह को (और बृहस्पति को) भी एक सूर्य की तुलना में नितांत ठंडा किन्तु सुन्दर 'रिंग-प्लेनेट' जान चुके हैं (और विष्णु और कृष्ण दोनों को सुदर्शन-चक्र धारी माना जाता है) ,,,जिसे उसकी धीमी चाल होने के कारण तुलनात्मक दृष्टि से शनि को 'लंगड़ा' कहा जाता रहा है औसत व्यक्ति द्वारा (पृथ्वी जितनी देर, एक वर्ष, में सूर्य की एक परिक्रमा करने में लेता है, उसकी तुलना में शनि को ३० वर्ष लगते हैं),,,और हमें यह भी पता है कि यह प्राकृतिक है कि ठंडी वस्तु ही गर्म वस्तु से शक्ति यानी ऊर्जा धारण करती है, किन्तु शनि की सूर्य से अत्यधिक दूरी के कारण उसमें बर्फ से बने छल्ले पिघलते नहीं हैं, वैसे ही जैसे संख्या में अनंत किन्तु अस्थायी जीव सूर्य की गर्मी से जलते नहीं हैं, जब तक शिव की तीसरी आँख न खुल जाए, यानि पृथ्वी के वातावरण में व्याप्त ओजोन तल में छिद्र बड़ा न हो जाये :)...
जे सी जी , आपके लेखों को आराम से बैठकर पढेंगे । बहुत बड़ा खज़ाना छुपा है इनमे । आभार ।
ReplyDeleteDr.Sahab...
ReplyDeleteaap naastik nahiin hain kyonki aap apne par vishwaas rakhte hain aur swami vivekanand ke anusaar naastik vah hai jise apne par vishwaas nahin hai.atah aap aastik hain.
Tulsi,Amla,Peepal-ye sirf 3 hi aise virksh hain jo din raat oxigen nikalte hain aur manav jeevan hi nahin samast praaniyon ke liye jeevan daayini shakti dete hain,atah inke sanrakshan aur samvardhan hetu inhe bachaane ka nirdesh tha.
DHONGI-PAKAHANDI-UDAR POOJAK bewakoofon ne dharm ka jhoothaa naam laga kar dhaga-tel anndaan aadi khurafaat chala dii.vaise peepal ki lakdi guru grah ki shanti me havan hetu bhi pryog ki jaati hai.
माथुर जी , बहुत सही बात कही है आपने । आपसे पूर्णतय सहमत हूँ । आभार इस जानकारी के लिए ।
ReplyDeleteवृक्षों में सबसे ज्यादा आक्सीजन पीपल के पेड़ से प्राप्त होती है। ऐसा वैज्ञानिकों का भी मानना है। इसी कारण हमारे ऋषि-मुनियों ने इसकी बेवजह कटाई ना हो जाए ऐसा सोच कर इस पर देवताओं के वास की बात की होगी। कालांतर में उन्हीं देवताओं को प्रसन्न करने और अपनी मन्नतों को पूरा करने के लिए लोगों ने तरह-तरह के टोटके शुरु कर दिए जिससे मन्नतों का तो पता नहीं पर वृक्ष के लिए जरूर खतरा पैदा हो गया है।
ReplyDeleteबहुतेरी बार तो अपना दीपक बुझने से बचाने के लिए लोग पेड़ के कोटर में रख देते हैं जिससे वहां का हिस्सा झुलसते रहता है। ऐसे लोगों को समझाने से वे ऐसे देखते हैं जैसे उनके पुण्य कार्य में अड़चन डाली जा रही हो।
Reply
जानिए पीपल के चमत्कारी गुण ---
ReplyDeleteऐसा माना जाता है, की पीपल के पेड़ में भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी वास करते है. यदि आप सच्चे मन से इन उपायों को अपनाते है तो आपकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है.
व्यक्ति को प्रत्येक मंगलवार और शनिवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करके पीपल के 11 पत्ते तोड़कर उसे गंगाजल से साफ़ करके इन पत्तों पर कुमकुम या चन्दन से श्रीराम नाम लिखकर हनुमान जी के मंदिर में रखने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है.
किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि कोई अशुभ योग होता है तो पीपल के पेड़ को प्रतिदिन जल चढ़ाने से वह ग्रहदोष समाप्त हो जाता है. और कालसर्प दोष के प्रभावों का भी पीपल की परिक्रमा करने से निवारण होता है. यदि कोई व्यक्ति रविवार का दिन छोड़कर प्रत्येक दिन पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करता है तो उसे श्रेष्ट फल प्राप्त होता है.
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जानिए पीपल का महत्त्व--
---भगवद् गीता में स्वंय भगवान कृष्ण ने कहा है कि वृक्षों में, मैं पीपल हूं।
----श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापरयुगमें परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए।
-----पीपल की छाया सर्दियों में गर्मी और गर्मियों में सर्दी देती है। इतना ही इसके पत्तों को छूने से हवा में मिले संक्रामक वायरस नष्ट हो जाते हैं। लिहाजा वैज्ञानिक दृष्टि से भी पीपल पूजनीय है |
----स्कंद पुराण के मुताबिक पीपल के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है। पीपड़ की जड़ में भगवान विष्णु, तने में कृष्ण, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फलों में समस्त देवता निवास करते हैं।
----ऐसी मान्यता है कि पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु बढ़ती है। इतना ही नहीं पीपल के पेड़ में पानी देकर उसे संचित करने वाला व्यक्ति सारे पापों से मुक्त हो जाता है।
-----पीपल के वृक्ष की पूजा के प्रभाव से पितृदोष और सर्पदोष दूर होते हैं। साथ ही लंबी उम्र, धन-संपत्ति, संतान, सौभाग्य और शांति की प्राप्ति होती है।
----पीपल सबसे दीर्घजीवी वृक्षों में से है। स्वाभाविक ही,औरतों ने इसे पति के दीर्घायु होने की कामना का प्रतीक माना है। आप यह भी नहीं भूले होंगे कि भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति इसी वृक्ष के नीचे हुई थी।
-----पितरों को तृप्त करने के लिए मृत्यु के बाद दस दिनों तक जल से भरा घड़ा पीपल पर ही टाँगने की परम्परा है। श्वास, तपेदिक, रक्त-पित्त,विषदाह जैसे रोगों के उपचार और भूख बढ़ाने आदि के लिए आयुर्वेदिक दवाएं पीपल के पेड़ से बनती हैं।
----पीपल के नीचे किया गया दान अक्षय हो कर जन्म -जन्मान्तरों तक फलदायी माना गया है।
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-----शनिवार को पीपल पर जल व तेल चढाना, दीप जलाना, पूजा करना या परिक्रमा लगाना अति शुभ होता है। धर्मशास्त्रों में वर्णन है कि पीपल पूजा केवल शनिवार को ही करनी चाहिए।
पुराणों में आई कथाओं के अनुसार ऎसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय लक्ष्मीजी से पूर्व उनकी बडी बहन, अलक्ष्मी (ज्येष्ठा या दरिद्रा) उत्पन्न हुई, तत्पश्चात् लक्ष्मीजी। लक्ष्मीजी ने श्रीविष्णु का वरण कर लिया। इससे ज्येष्ठा नाराज हो गई। तब श्रीविष्णु ने उन अलक्ष्मी को अपने प्रिय वृक्ष और वास स्थान पीपल के वृक्ष में रहने का ओदश दिया और कहा कि यहाँ तुम आराधना करो। मैं समय-समय पर तुमसे मिलने आता रहूँगा एवं लक्ष्मीजी ने भी कहा कि मैं प्रत्येक शनिवार तुमसे मिलने पीपल वृक्ष पर आया करूँगी।
शनिवार को श्रीविष्णु और लक्ष्मीजी पीपल वृक्ष के तने में निवास करते हैं। इसलिए शनिवार को पीपल वृक्ष की पूजा, दीपदान, जल व तेल चढाने और परिक्रमा लगाने से पुण्य की प्राप्त होती है और लक्ष्मी नारायण भगवान व शनिदेव की प्रसन्नता होती है जिससे कष्ट कम होते हैं और धन-धान्य की वृद्धि होती है।
इन आसान/प्रभावी उपायों/टोटकों से पाएं भूत प्रेत के प्रभाव से मुक्ति ?
ReplyDelete(ध्यान/सावधानी रखें--किसी कुशल/योग्य/अनुभवी जानकार के मार्गदर्शन में ही इन्हें आजमाएं/प्रयोग करें|)
(कृपया पाठकगण ध्यान /सावधानी रखें-बिना गुरु या अनुभवी/सक्षम व्यक्ति के मार्गदर्शन में ही इस लेख में दिए गए प्रयोग करें |)
----यदि आपके किसी परिजन/परिचित पर ऊपर भूत प्रेत का प्रभाव है तो शनिवार के दिन दुपहर में सवा किलो बाजरे का दलिया बना ले और उसमे थोड़ा गुड़ मिलाकर एक मिटटी की हांडी में रखकर सूर्य ढलने के बाद पूरे शरीर पर बायें से दायें घूमते हुए नजर उतरवाएं, और बिना किसी को बताये हांड़ी को चौराहे पर रख दें और घर लौटते समय पीछे मुड़ कर न देखें और न ही किसी से बात करे|
-----जिस व्यक्ति के ऊपर भूत प्रेत का साया मंडरा रहा हो उसके गले में ॐ या रुद्राक्ष का अभिमंत्रित लॉकेट पहनाएं और सिर पर चन्दन, केसर और भभूत का तिलक करे और हाथ में मोली बांध ले|
----हिन्दू शास्त्र में प्रेत आत्माओं को दूर भगाने के लिए के लिए हनुमत मंत्र का उच्चारण दिया गया है, प्रतिदिन कम से कम पाँच बार जाप करने से मिलेगा लाभ |
मंत्र है-
ओम ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रंू ह्रैं ओम नमो भगवते महाबल पराक्रमायभूत-प्रेत पिशाच-शाकिनी-डाकिनी-यक्षिणी-पूतना मारी-महामारी,यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम् क्षणेन हन हन भंजय भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामारेश्वर रुद्रावतारहुं फट् स्वाहा।
-----मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान चालीसा और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करने से मन का भय खत्म होता है|
-----आत्माओं से मुक्ति पाने के लिए एक निम्बू लें और उसे चार भागों में कांट लें और उनपर चार-चार बार निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करके उसे चारों कोनों में फ़ेंक दें|
मंत्र: आई की, माई की, आकाश की, परेवा पाताल की। परेवा तेरे पग कुनकुन। सेवा समसेर जादू गीर समसेर की भेजी। ताके पद को बढ़ कर, कुरु-कुरु स्वाहा।
------बहेड़े का साबुत पत्ता या उसकी जड़ लाएं और धूप, दीप और नवैद्य के साथ उसकी विधिवत पूजा करें। उसके बाद 108 बार निम्नलिखित मंत्र का जाप करें। इस तरह का अनुष्ठान कुल 21 दिनों तक सूर्यादय से पहले करें।
मंत्र हैः– ओम नमः सर्वभूतधिपत्ये ग्रसग्रस शोषय भैरवी चाजायति स्वाहा।।
जाप की पूर्णाहुति अर्पण के बाद अभिमंत्रित हो चुके पत्ते या जड़ से एक ताबीज बनाएं जिससे की प्रेतबाधा दूर हो सकती है। उसे गले में पहनाने से जादूटोना और प्रेतबाधा का असर नहीं होता है। यह उपाय विशेषकर बच्चों के लिए किया जाता है।
------ भूत प्रेत बाधा निवारण की दृष्टि से पंचमुखी हनुमान की उपासना चमत्कारिक और शीघ्रफलदायक मानी गई है। पंचमुखी हनुमान जी के स्वरूप में वानर सिंह गरूड वराह तथा अश्व मुख सम्मिलित हैं और इनसे ये पांचों मुख तंत्रशास्त्र की समस्त क्रियाओं यथा मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण आदि के साथ साथ सभी प्रकार की ऊपरी बाधा होने की शंका होने पर पंचमुखी हनुमान यन्त्र तथा पंचमुखी हनुमान लॉकेट को प्राणप्रतिष्ठित कर धारण करने से समस्या से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है।
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशात्री पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि व्रत करते हुए यदि साधक किसी संकट में पड़कर व्रत का पालन न कर पाए व विष्णुजी का मंदिर पास न हो तो उसे पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर जाप करना चाहिए, उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।’
ReplyDeleteगीता [ विभूति योग ] में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, --"अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणाञ्य नारदः" सभी वनस्पतियों में मैं पीपल हूं और देवऋषियों में मैं नारद हूं | ऐसा कहकर उन्होंने इस वृक्ष की महिमा स्वयं ही कह दी है | पीपल का पेड़ जिसे हिन्दू धर्म में पहुत पवित्र माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि व्यक्ति यदि पीपल के पेड़ की पूजा करता है, तो उसकी सारी मनोकामना पूर्ण होती है. और यदि किसी व्यक्ति के जीवन में धन का आभाव होता है, तो पीपल के पेड़ की पूजा करने से उसके जीवन से धन के आभाव कि समस्या दूर होती है.
पुराणों के अनुसार, पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फल में सभी देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं. इसे साक्षात् विष्णु स्वरूप बताया गया है.
ऐसा माना जाता है कि पीपल की पूजा करने से आयु लंबी होती है. मान्यता है कि जो पीपल को पानी देता है, वह सभी पापों से छूटकर स्वर्ग प्राप्त करता है. पीपल में पितरों का वास भी बताया गया है.
कई लोग सोचते हैं पीपल में भूत प्रेतों का वास रहता है।
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशात्री पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की हमारे धर्मशास्त्रों के अनुसार, मान्यता है कि जो पीपल को पानी देता है, वह सभी पापों से छूटकर स्वर्ग प्राप्त करता है. पीपल में पितरों का वास भी बताया गया है.जब भी हम दिया रखते हैं पूजा करके नहीं देखना चाहिए मुड़ कर क्योंकि आपकी भक्ति पूजा विश्वास श्रद्धा होती है। जब आप मुड़ कर देखते हो तो इस से आपका विश्वास और श्रद्धा पर प्रशन पर सवाल पैदा होता है और फिर कुछ अनर्थ होता ही है ये ,मेरा अपने आँखों देखा हाल है ,
आयुर्वेद में भी पीपल का महत्व बताया गया है. पीपल के पत्ते, फल, छाल आदि से कई तरह की बीमारियों का नाश होता है. पीपल के फल से पेट से जुड़ी बीमारियां खत्म हो जाती है. पीपल की छाल के अंदर के भाग से दमा की दवा बनती है. इसके कोमल पत्ते चबाकर खाने और इसकी छाल का काढ़ा बनाकर पीने से चर्म रोगों में आराम मिलता है.ये बात सत्य हैं मेरे साथ ही ऐसा हुआ था मेरे पैरो में भारत आने पर अचानक लाल स्किन हो गयी खुजली होने लगी तब नीम के पत्ते और पीपल की छाल का लेप लगाया और उसी पानी से धोया और कुछ दिन में ही बहुत ठीक हो गया.
वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करने और ऑक्सीजन छोड़ने की भी इसकी क्षमता बेजोड़ है. यह हर तरह से लोगों को जीवन देता है. ऐसे में पीपल की पूजा का खास महत्व स्वाभाविक ही है.पीपल के विषय में कई धारणा बनी हुई हैं की पीपल पर भूत प्रेत रहते हैं। ऐसा कुछ नहीं है उसमे शक्ति है और एक बात ये भी है की ये पेड़ कहीं भी उग सकता है ,
‘भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि व्रत करते हुए यदि साधक किसी संकट में पड़कर व्रत का पालन न कर पाए व विष्णुजी का मंदिर पास न हो तो उसे पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर जाप करना चाहिए, उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।’ वायव्य संहिता में भी पीपल वृक्ष की महिमा का वर्णन करते हुए भगवान महादेव मां उमा से कहते हैं,‘पीपल वृक्ष के नीचे किये गये जप-पूजा का सहस्र गुना फल प्राप्त होता है।’ यह भी माना जाता है कि पीपल में अलक्ष्मी-दरिद्रा-जो कि देवी लक्ष्मी की बहन थी, का वास होता है। भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी से प्राप्त वरदान के कारण शनिवार को जो भक्त अलक्ष्मीजी के निवास अर्थात् पीपल वृक्ष की आराधना करते हैं, उन्हें निश्चित ही शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसी कारण शनेश्चरी अमावस्या व शनि प्रदोष होने पर पंचामृत से पीपल की अर्चना का प्रावधान शास्त्रों में वर्णित है। साधक को पीपल पूजन के पावन दिन पीपल की छाया में ‘ऊँ नम: वासुदेवाय नम:’ का जाप करते हुए धूप-दीप व नैवेद्य से विधिवत पीपल का पूजन करना चाहिए। पीपल की विधिवत पूजा करने से साधक की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
पीपल पूजन से न केवल साधक, बल्कि उसके पितरों का भी कल्याण संभव है। स्कंदपुराण में यहां तक कहा गया है, कि जिस व्यक्ति के पुत्र न हो, वह पीपल को ही अपना पुत्र माने।
वैसे तो हर तरह का वृक्ष इंसानों को किसी न किसी रूप में फायदा ही पहुंचाता है. पेड़-पौधों की पूजा करना हमारी परंपरा का अंग रहा है. फिर भी कुछ वृक्षों की पूजा का खास महत्व है. इनमें पीपल का स्थान सबसे ऊपर है.
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशात्री पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की कार्तिक माहात्म्य में श्री सूत जी संतों से पीपल का माहात्म्य इस प्रकार वर्णित करते हैं, ‘भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि व्रत करते हुए यदि साधक किसी संकट में पड़कर व्रत का पालन न कर पाए व विष्णुजी का मंदिर पास न हो तो उसे पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर मेरा जाप करना चाहिए, उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।’ वायव्य संहिता में भी पीपल वृक्ष की महिमा का वर्णन करते हुए भगवान महादेव मां उमा से कहते हैं,‘पीपल वृक्ष के नीचे किये गये जप-पूजा का सहस्र गुना फल प्राप्त होता है।’ यह भी माना जाता है कि पीपल में अलक्ष्मी-दरिद्रा-जो कि देवी लक्ष्मी की बहन थी, का वास होता है। भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी से प्राप्त वरदान के कारण शनिवार को जो भक्त अलक्ष्मीजी के निवास अर्थात् पीपल वृक्ष की आराधना करते हैं, उन्हें निश्चित ही शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसी कारण शनेश्चरी अमावस्या व शनि प्रदोष होने पर पंचामृत से पीपल की अर्चना का प्रावधान शास्त्रों में वर्णित है। साधक को पीपल पूजन के पावन दिन पीपल की छाया में ‘ऊँ नम: वासुदेवाय नम:’ का जाप करते हुए धूप-दीप व नैवेद्य से विधिवत पीपल का पूजन करना चाहिए। पीपल की विधिवत पूजा करने से साधक की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
ReplyDeleteपीपल पूजन से न केवल साधक, बल्कि उसके पितरों का भी कल्याण संभव है। स्कंदपुराण में यहां तक कहा गया है, कि जिस व्यक्ति के पुत्र न हो, वह पीपल को ही अपना पुत्र माने।
वैसे तो हर तरह का वृक्ष इंसानों को किसी न किसी रूप में फायदा ही पहुंचाता है. पेड़-पौधों की पूजा करना हमारी परंपरा का अंग रहा है. फिर भी कुछ वृक्षों की पूजा का खास महत्व है.
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशात्री पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की पीपल की पूजा का महत्व अधिक होने के पीछे कई कारण हैं. अगर आध्यात्मिक रूप से देखें, तो इसे वृक्षों में सबसे अधिक पवित्र माना गया है. साथ ही पर्यावरण की हिफाजत में भी इसका कोई जोड़ नहीं है. ऐसा माना जाता है कि पीपल की पूजा करने से आयु लंबी होती है. मान्यता है कि जो पीपल को पानी देता ह, वह सभी पापों से छूटकर स्वर्ग प्राप्त करता है. पीपल में पितरों का वास भी बताया गया है.
पीपल के फल से पेट से जुड़ी बीमारियां खत्म हो जाती है. पीपल की छाल के अंदर के भाग से दमा की दवा बनती है. इसके कोमल पत्ते चबाकर खाने और इसकी छाल का काढ़ा बनाकर पीने से चर्म रोगों में आराम मिलता है | ध्यान रखें--पीपल,गूलर मौलसरी, शीशम, मेहंदी आदि के वृक्षों पर भी प्रेतों का वास होता है। रात के अंधेरे में इन वृक्षों के नीचे नहीं जाना चाहिए और न ही खुशबुदार पौधों के पास जाना चाहिए।
पीपल के पेड़ में वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करने और ऑक्सीजन छोड़ने की भी इसकी क्षमता बेजोड़ है. यह हर तरह से लोगों को जीवन देता है. ऐसे में पीपल की पूजा का खास महत्व स्वाभाविक ही है.
पद्मपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु का रूप है । इसलिए इसे धार्मिक श्रेष्ठ देव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधिवत् पूजन आरंभ हुआ । अनेक अवसरों पर पीपल की पूजा का विधान है । सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में साक्षात् भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी का वास होता है ।
ReplyDeleteज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशात्री पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की पुराणों में पीपल (अश्वत्थ) का बड़ा महत्त्व बताया गया है -
मूल विष्णु: स्थितो नित्यं स्कंधे केशव एव च ।
नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान हरि: ।।
फलेऽच्युतो न सन्देह: सर्वदेवै: समन्वित: ।।
स एव विष्णुर्द्रुम एव मूर्तो महात्मभि: सेवतिपुष्यमुल: ।
यस्याश्रय: पापसहस्त्रहन्ता भवेन्नृणां कामदुघो गुणाढ्य: ।।
अर्थात् ‘पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव. शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फल में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं । यह वृक्ष मूर्तिमान श्रीविष्णुस्वरूप है । महात्मा पुरुष इस वृक्षके आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों का नाश करने वाला है ।’
धार्मिक श्रद्धालु लोग इसे मंदिर परिसर में अवश्य लगाते हैं । सूर्योदय से पूर्व पीपल पर दरिद्रता का अधिकार होता है और सूर्योदय के बाद लक्ष्मी का अधिकार होता है । इसलिए सूर्योदय से पहले इसकी पूजा करना निषेध किया गया है । इसके वृक्ष को काटना या नष्ट करना ब्रह्महत्या के तुल्य पाप माना गया है । रात में इस वृक्ष के नीचे सोना अशुभ माना जाता है । वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल रात दिन निरंतर 24 घंटे आक्सीजन देने वाला एकमात्र अद्भुत वृक्ष है । इसके निकट रहने से प्राणशक्ति बढ़ती है । इसकी छाया गर्मियों में ठंडी और सर्दियों में गर्म रहती है । इसके अलावा पीपल के पत्ते, फल आदि में औषधीय गुण रहने के कारण यह रोगनाशक भी होता है । लगाने वाले व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार को कोई दुख या धन का अभाव नहीं सताता है. आयुर्वेद में भी पीपल का महत्व बताया गया है. पीपल के पत्ते, फल, छाल आदि से कई तरह की बीमारियों का नाश होता है. पीपल के फल से पेट से जुड़ी बीमारियां खत्म हो जाती है. पीपल की छाल के अंदर के भाग से दमा की दवा बनती है. इसके कोमल पत्ते चबाकर खाने और इसकी छाल का काढ़ा बनाकर पीने से चर्म रोगों में आराम मिलता है.
वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करने और ऑक्सीजन छोड़ने की भी इसकी क्षमता बेजोड़ है. यह हर तरह से लोगों को जीवन देता है. ऐसे में पीपल की पूजा का खास महत्व स्वाभाविक ही है.
पद्मपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु का रूप है । इसलिए इसे धार्मिक श्रेष्ठ देव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधिवत् पूजन आरंभ हुआ । अनेक अवसरों पर पीपल की पूजा का विधान है । सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में साक्षात् भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी का वास होता है ।
पुराणों में पीपल (अश्वत्थ) का बड़ा महत्त्व बताया गया है -
मूल विष्णु: स्थितो नित्यं स्कंधे केशव एव च ।
नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान हरि: ।।
फलेऽच्युतो न सन्देह: सर्वदेवै: समन्वित: ।।
स एव विष्णुर्द्रुम एव मूर्तो महात्मभि: सेवतिपुष्यमुल: ।
यस्याश्रय: पापसहस्त्रहन्ता भवेन्नृणां कामदुघो गुणाढ्य: ।।
अर्थात् ‘पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव. शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फल में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं । यह वृक्ष मूर्तिमान श्रीविष्णुस्वरूप है । महात्मा पुरुष इस वृक्षके आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों का नाश करने वाला है ।’
दयानन्द शास्त्री जी , ७ साल बाद आपने पोस्ट को ढूंढ कर पढ़ा और बहुत विस्तार से पीपल के पेड़ का महत्त्व समझाया , इसके लिए आपका दिल से आभारी हूँ।
Deleteफुर्सत में सब पढ़ते हैं और दूसरों को भी पढ़वाएंगे।