इस वर्ष दीवाली से ठीक पहले सप्ताहंत आने से दीवाली मनाना थोड़ा आसान रहा . अक्सर इन दिनों में सडकों और बाज़ारों में भारी भीड़ रहती है जिससे अक्सर भारी जाम लग जाते हैं। घंटों जाम में फंसे रह कर जश्न मनाने का जोश ही ठंडा पड़ जाता है। ऐसा लगता है जैसे सारा शहर ही सडकों पर निकल पड़ा हो।
आइये देखते देखते हैं , दीवाली के विविध आयाम :
शनिवार : को अस्पताल में आधी छुट्टी होती है।
अस्पताल में स्टाफ ने कमरों को खूबसूरती से सजाकर रंग जमा दिया। ऊपर लैब का एक दृश्य।
हमारे कार्यालय को भी तबियत से सजाया गया था।
ऐसे में हमने भी स्टाफ के लिए एक छोटी सी पार्टी आयोजित कर सब को खुश कर दिया। यह अलग बात है कि उन्हें बदले में हमारी कविता झेलनी पड़ी। हालाँकि यह एक छोटी सी ही कीमत थी चुकाने के लिए।
रविवार :
शाम को सी एस ओ आई में दीवाली मेले का आयोजन किया गया था। यहाँ अन्य संसाधनों के अतिरिक्त एक ग़ज़ल संध्या का आयोजन किया गया था। दिल्ली के सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायक श्री राहत अली खान ने अपनी ग़ज़लों से सबका मन मोह लिया।
इस बार क्लब को बहुत बढ़िया तरीके से सजाया गया था। हरे भरे लॉन और पार्किंग को खाली कराकर विस्तार से मेले का आयोजन किया गया था। खाना और पीना , दोनों बढ़िया थे। बस पीने के लिए साकी स्वयं ही बनना पड़ा। ( जूस की बात कर रहे हैं )
सोमवार :
कई दिनों से मॉल जाने की सोच रहे थे। आखिर सोमवार तक सडकों पर यातायात कम हो गया था। इसलिए नोयडा के ग्रेट इण्डिया प्लेस मॉल की सजावट भी देखने लायक थी।
रंग बिरंगी लाइटों से सजा मॉल ऐसा अहसास दिला रहा था जैसे हम किसी विदेशी मूल में घूम रहे हों।
हालाँकि मॉल में भीड़ भड़क्का बिल्कुल नहीं था।
हमें तो यह सकून ही दे रहा था।
छोटी दीवाली के दिन सोसायटी में भोज का इंतजाम किया गया था। अड़ोस पड़ोस के सभी पड़ोसियों से एक ही जगह मिलकर दीवाली मुबारक हो गई। फिर देर रात तक बच्चे डी जे पर थिरकते हुए मस्ती करते रहे।
दीवाली :
सरकार ने 10 बजे के बाद पटाखे न चलने का आह्वान किया था। लेकिन-- इट हेपंस ओनली इन इण्डिया -- यहाँ सरकार की सुनता ही कौन है। रात 8 बजे तक शांति सी महसूस हो रही थी। लगा जैसे दिल्ली वाले समझदार हो गए हैं। लेकिन फिर ऐसा जुनून शुरू हुआ कि 11 बजते बजते चरम सीमा पर पहुँच गया।
हम तो अपनी बालकनी से बस उड़ते हुए धुएं को देखते रहे। ठा ठा , धां धां , धड़ाम की आवाज़ों के बीच देखते रहे दूसरों को फूंकते हुए, आराम से कमाए गए हराम के पैसे को .
लेकिन दीपों और लाइटों से होती हुई जगमगाहट मन को बहुत सुख प्रदान कर रही थी।
वैसे तो दिल्ली के अस्पतालों को पटाखों से जले हुओं के इलाज के लिए पूर्ण रूप से तैयार किया गया था , लेकिन ऐसा होने से बचाना तो डॉक्टर्स के हाथ में नहीं था। कहीं कहीं दुर्घटनाएं भी हुई।
बिल्कुल साफ दिखने वाली सड़क पर अब घना धुआं छा गया था। आखिर यह तो होना ही था।
अफ़सोस तो यह है कि फूलझड़ी और अनार जिन्हें सुरक्षित माना जाता है , वे ही सबसे ज्यादा धुआं छोड़ते हैं।
हालाँकि ध्वनि प्रदूषण होता है चाइनीज़ बमों से।
आखिर हमने दिखा दिया कि हम हिन्दुस्तानी सबसे ज्यादा धार्मिक प्रवृति के लोग होते हैं। वैसे यदि आप किसी से पूछें कि आप पटाखे क्यों छोड़ रहे हैं तो शायद ही कोई इसका कारण बता पाए । ज़ाहिर है, सब छोड़ रहे हैं इसलिए हम भी छोड़ रहे हैं। बस यही मॉब मेंटालिटी हमें दूसरों से अलग बनाती है।
दीपावली आयोजन के विविध आयामों को बड़ी ही रोचकता के साथ आपने प्रस्तुत किया है . फोटो तो बहुत ही सुन्दर लगे . दीपावली पर्व के अवसर पर हार्दिक बधाई ...आभार
ReplyDeleteसौहाद्र का है पर्व दिवाली ,
ReplyDeleteमिलजुल के मनाये दिवाली ,
कोई घर रहे न रौशनी से खाली .
हैपी दिवाली हैपी दिवाली .
वीरुभाई
डॉ .साहब ये धूम धड़ाका दिवाली का ईद का ,बड़े दिन का एक आलमी बुराई बना हुआ है लेकिन विदेशी तो अपने पेट्स के लिए भी लोरी बना रहें हैं ताकि पटाखों के शोर से वह तालमेल बिठा सकें .
दो तीन दिन पहले ये सूदिंग आवाजें पालतू कुत्ते बिल्लियों को सुनवाई जाने लगतीं हैं .बढ़िया पोस्ट दिवाली के चौतरफा माहौल को समेट रही है .
@ हमने भी स्टाफ के लिए एक छोटी सी पार्टी आयोजित कर सब को खुश कर दिया। यह अलग बात है कि.......
ReplyDeleteक्या बात है जहां चाह वहां राह .....
आपने यहाँ भी अपनी राह तलाश ही ली ....
@ सब छोड़ रहे हैं इसलिए हम भी छोड़ रहे हैं।
भला पड़ोसी के पास हमसे ज्यादा पैसे क्यों हों फिजूल में उड़ाने के लिए .....:))
सब दो नंबर का पैसा होता है फूंकने के लिए.
Deleteदिवाली पर विविध कार्यक्रमों का रोचक विवरण .... 8 बजे तक हमें भी लग रहा था कि शायद दिल्लीवासी जागरूक हो गए हैं .... खैर .... हम किसी से कम नहीं की होड में पटाखे छूटते रहे ....
ReplyDeleteचलिए दीपावली के बहाने खूब लुफ्त उठाया,,,,,बधाई,,,,
ReplyDeleteRECENT POST: दीपों का यह पर्व,,,
अत्यंत रोचक सचित्र वर्णन डॉक्टर तारीफ जी!
ReplyDelete"मजबूरी का नाम महात्मा गांधी", कहावत ऐसे ही नहीं बनी होगी! समय अर्थात महाकाल, विशाल नद ब्रह्मपुत्र सामान, जो भी उसकी चपेट में आजाये उसे बहा ले जाता है! योगी समान समुद्र तट / नदी किनारे पर बैठ ही लहरों का आनंद उठाया जा सकता है!
जैसे अन्य कई आ जाते हैं, आप बहाव में आ जाते तो आप भी बच्चों के दबाव में आ चीनी बमों के विस्फोट सुन ब्रह्मनाद, बिग बैंग और सृष्टि/ देश भर में, दीपावली समान, ब्रह्माण्ड के प्रकाश के स्रोत असंख्य सितारों की रचना का अनुमान लगा सकते :)
चमके चपल दीवाली
ReplyDeleteइस धुएं से मच्छर मर जाते हैं।
ReplyDeleteजी सही कहा . लेकिन हमें इंसानों की फ़िक्र ज्यादा रहती है. :)
Deleteबढ़िया प्रस्तुति , मजेदार बात यह भी कि सरकार ने दीवाली से कुछ दिनों पहले ही चाइनीज पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया था, उसके बाद भी आलम ये था की रात 1 बजे तक पटाखे फूटते रहे ! खैर, आपको भी बिलेटेड शुभ दीपावली !
ReplyDeleteबेमतलब की मौज मस्ती में हमसे कौन जी सकता है भला....
ReplyDeleteफिर इसके बिना जीना भी कोई जीना है.....
आपको दीपोत्सव की शुभकामनाएँ(विलम्बित....वैसे ग्यारस तक दी जा सकती है )
:-)
सादर
अनु
कबूल है.
Deleteआपको भी दिवाली मुबारक .
जे सी जी , दिवाली पर हर साल पटाखे छोड़ना ऐसा हो गया है जैसे हर साल वैवाहिक वर्षगांठ पर बैंड बाजे के साथ बारात निकालना.
ReplyDeleteवैसे सत्य यह भी है कि बच्चों की नाडी तीव्रतर गति से चलती है जबकि उम्र के साथ उसकी गति कम होती जाती है (नॉर्मल 120 से घट 60 तक?)। और यह भी प्राकृतिक है कि बच्चों को ढोल आदि की आवाज़ अच्छी लगती है। स्कूल आदि में भी खूब शोर मचाते हैं। जबकि घर के बूढ़े उन्हें बैंड बजाने पर टोक देते हैं, क्युंकी उन्हें ऊंची आवाजें अब पसंद नहीं आतीं!
Deleteशिव जी (साकार, ब्रह्मा-विष्णु-महेश) भी सृष्टि की रचना कर समाधि/ शून्य विचार वाली स्तिथि में चले गए - जब तक कामदेव/ भस्मासुर को भस्म करने के लिए मजबूर नहीं किये गए!
Deleteवाह आपकी नज़रों से दिवाली देखने में भी अलग ही बात है :) अच्छा लगा. सी एस ओ आई जाने की तो हिम्मत ही नहीं होती भीड़ की कल्पना करके.
ReplyDeleteअब नया वाला भी खुलने वाला है. फिर आइयेगा.
Deleteबहुत सुन्दर दिवाली संस्मरण एक से बढ़कर एक चित्र बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteजयपुर में लोग जागरूक हो गए हैं , रात भर चलने वाला पटाखों का दौर अब सीमित हो गया है वर्ना तो दिवाली के दूसरे दिन सुबह तडके तक भी पटाखों की आवाज़ रूकती नहीं थी !
ReplyDeleteये भी अच्छा है की मोंल खाली मिला , प्रमाण है की लोगों ने त्यौहार परिजनों के साथ मनाया .
ऐसे समय पर भी ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों से सहानुभूति भी रही !
दीपावली की राम -राम!
लोग लाख पटाखे छोड़ें..दीप जलायें..फोटोग्राफर तो फोटू ही खींचेंगे। :)
ReplyDeleteकाम वही जिसमे सुकून मिले . :)
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