पुरानी हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय खलनायक अजित अक्सर जब हीरो को पकड़ लेते तो कहते -- रॉबर्ट, इसे गैस चैंबर में डाल दो। कार्बन डाई ऑक्साइड इसे जीने नहीं देगी और ऑक्सीजन इसे मरने नहीं देगी। आजकल दिल्ली शहर ऐसा ही गैस चैंबर बना हुआ है। नवम्बर शुरू होते ही दिल्ली को ऐसी सफ़ेद चादर ने घेर लिया जैसी वो कौन थी जैसी पुरानी हिंदी संस्पेंस फिल्मों में दिखाई देती थी। फर्क सिर्फ इतना है कि उन फिल्मों में नकली धुंध का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन यहाँ न सिर्फ असली धुंध है बल्कि ज़हरीली भी है। दूसरे, फिल्मों में नायक सारी दीवारें तोड़कर बाहर निकल आता था, लेकिन असल जिंदगी में आम आदमी के पास बच कर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता।
धुंध : दरअसल इसे धुंध कहना ही सही नहीं है। इसे स्मॉग कहा जाता है। यानि यह स्मोक ( धुएं ) और फॉग ( धुंध ) का मिश्रण है। दिल्ली में सर्दी शुरू होते ही वायु में वाष्प की मात्रा बढ़ने लगती है जो धुएं से मिलकर धुंधलका बन जाती है। वायु का बहाव न होने से यह पृथ्वी की सतह पर ही टिकी रहती है। लेकिन इस वर्ष अमेरिका में आए सैंडी तूफ़ान की वज़ह से देश में नीलम नाम के तूफ़ान का कहर दिल्ली में भी दिखाई दे रहा है. इसकी वज़ह से वायुमंडल में अत्यधिक वाष्प आने से असमय ही यह स्थिति उत्पन्न हुई है.
लेकिन सबसे चिंताज़नक बात यह है की इस स्मॉग में ज़हरीली गैसों की मात्रा बहुत ज्यादा पाई गई है. धूल और धूएँ के महीन कणों के अलावा नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड , कार्बन मोनो ऑक्साइड, बेंजीन और ओजोन की अत्यधिक मात्रा वायुमंडल को एक गैस चैंबर बना रही हैं।
* साँस लेने में बड़ी कठिनाई पैदा हो हो रही है. घर से बाहर निकलते ही एक घुटन सी महसूस होती है।
* आँखों में जलन।
* गले में खराश से लेकर साँस की परेशानी होने का खतरा बना रहता है।
* दिल के रोगियों को विशेष खतरा हो सकता है।
ऐसे में क्या किया जाये ?
* जहाँ तक हो सके , घर से बाहर ही न निकलें . लेकिन यह संभव नहीं . इसलिए ज़रुरत हो , तभी बाहर जाएँ. आखिर सबसे कम प्रदुषण घर में ही हो सकता है.
* आँखों को दिन में कई बार ठन्डे पानी से धोएं . इससे जलन में आराम आएगा.
* दिन में कई बार कुल्ला या गरारे करें जिससे गला ख़राब होने से बच सके.
* पानी और अन्य तरल पदार्थ जैसे चाय आदि पीते रहें जिससे शरीर का हाईडरेशन बना रहे .
* जिन्हें साँस की शिकायत रहती हो , उन्हें मूंह पर मास्क लगाकर चलना चाहिए.
ऐसा करने से थोड़ी राहत तो मिलेगी लेकिन यह इस समस्या का स्थायी निवारण नहीं है. इसके लिए हमें बढ़ते प्रदुषण के कारणों पर अंकुश लगाना होगा.
प्रदुषण के कारण :
दिल्ली में करीब २ करोड़ जनता और ७० लाख वाहन साँस ले रहे हैं . इन से निकलती गैसें वातावरण में फैलकर प्रदुषण को बढ़ा रही हैं. अब मनुष्यों की सांसों से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड को तो नहीं रोका जा सकता लेकिन वाहनों से फैलते प्रदुषण को अवश्य रोका जा सकता है. पता चला है की दिल्ली में हर रोज करीब ११०० नई कारों का पंजीकरण होता है . इनमे से ६० % डीज़ल से चलने वाली कारें हैं . ज़ाहिर है , सी एन जी आने के बावजूद, डीज़ल वाहनों से फैलने वाला प्रदुषण अभी भी बना हुआ है . इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाने की ज़रुरत है.
दिवाली :
वर्तमान परिवेश में दिवाली का आना एक नासूर सा लग रहा है . ज़रा सोचिये , जब अभी साँस नहीं आ रही तो दिवाली के दिन क्या हाल होगा . दिवाली के दिन दिल्ली वाले पागल से हो जाते हैं और पटाखे और बम छोड़ने की ऐसी होड़ सी लग जाती है की देखकर इन्सान के वहशी होने का साक्षात् प्रमाण सा दिखाई देने लगता है . ऐसे में साँस , दिल के रोगियों और अन्य गंभीर रूप से बीमार लोगों को कितनी मुश्किल होती होगी , यह कोई नहीं सोचता.
क्या अभी और कमी है प्रदुषण में जिसे दिवाली पर पूरा करने की ज़रुरत है ?
फिल्मों के हीरो तो हीरो होते हैं, गैस चैंबर से बच निकलते हैं . लेकिन एक आम आदमी कहाँ जायेगा साँस लेने , जब प्रदुषण से साँस आनी ही बंद हो जाएगी ?
आखिर यह भी क्या खेल हुआ , धुआं और शोर फ़ैलाने का !
ऐसे में एक हास्य कवि -- पोपुलर मेरठी का एक शे'र याद आता है :
मैं हूँ जिस हाल में , ऐ मेरे सनम रहने दे ,
चाकू मत दे मेरे हाथों में , कलम रहने दे। .
मैं तो शायर हूँ, मेरा दिल है बहुत ही नाज़ुक
मैं तो शायर हूँ, मेरा दिल है बहुत ही नाज़ुक
मैं पटाखे से ही मर जाऊँगा , बम रहने दे।
एक अपील : दिवाली भले ही हम हिन्दुओं का सबसे बड़ा और पावन पर्व है , लेकिन यह दिवाली यदि हम बिना बम पटाखों के मनाएं , तो शायद मानव जाति पर बहुत बड़ा उपकार होगा. वर्ना इस प्रदुषण से कई नाज़ुक दिल बीमार असमय ही राम के पास पहुँच जायेंगे . क्या बताएँगे श्री राम को उनके प्यारे देश का हाल !
लेकिन ये जनता है , कहाँ मानती है. क्या हुआ , ग़र पड़ोसी बीमार है. वैसे भी यहाँ पड़ोसी पड़ोसी बात ही कहाँ करते हैं . भई बम नहीं चलाये तो दिवाली क्या खाक हुई !
ऐसे में क्या सरकार कोई ठोस कदम उठाने का साहस करेगी ?
क्यों न इस वर्ष दिवाली पर पटाखों पर टोटल बैन लगा दिया जाए !
आखिर, इस वर्ष जिन्दा रहे तो अगले वर्ष फिर दिवाली मना सकते हैं .
नोट : इस समय स्मॉग दिल्ली तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरे उत्तर भारत में फैली है. इसलिए इससे निपटने का प्रयास सबको मिलकर करना होगा.
jan chetna jagriti karti hue post ke liye abhar....
ReplyDeletepranam.
प्रदूषण फ़ैलाने में बम फटाकों का बड़ा योगदान है .... बढ़िया अभिव्यक्तिपूर्ण पोस्ट ... आभार
ReplyDeleteचलिये आपकी मानते हैं इस बार कुछ तो महंगाई से भी बचाव होगा
ReplyDeleteडॉ.साहब !सावधान करने का बहुत-बहुत शुक्रिया ....आपके कर्तव्य और इमानदारी को प्रणाम ....
ReplyDeleteबाकि राम भरोसे ...हमारा भारत महान !
दीवाली की शुभकामनायें!
आज 10- 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete.... आज की वार्ता में ... खुद की तलाश .ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
Thanks for the nice presentation of facts related to ill health of earth's environment in the present, what with Nilam in India and Sandy & Nor'eater in USA. And on top of it unhealthy practices in India particularly during festivals (adulteration of food articles, bursting of crackers and so on) appear like 'enemy actions'!!!
ReplyDeleteNB. There is Some problem with Goodle Chrome in my computer and hence the comment in English...
बहुत बढ़िया सार्थक सोच और सचेत करती इस पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई डॉ दराल जी सच में पटाखों पर बैन लगना चाहिए ध्वनी प्रदूषण के साथ एयर पोल्यूशन भी करते हैं पुरानी परंपरा से दिवाली मनाओ सरसों के तेल के दिए जलाओ जो वातावरण /मन शुद्ध करते हैं मैं तो उसी तरह मनाने वाली हूँ
ReplyDeleteसभी गैरतमंद लोगों को यही करना चाहिए . शुभकामनायें राजेश जी .
Deleteसार्थक आलेख
ReplyDeleteकोई पटाखा नहीं ...
ReplyDeleteख़ुशी के साथ स्वीकार है डॉ !
मंगल कामनाएं दीवाली की !
स्वागत है सतीश जी। शुभकामनायें।
Deleteऐसे में क्या सरकार कोई ठोस कदम उठाने का साहस करेगी ?
ReplyDeleteक्यों न इस वर्ष दिवाली पर पटाखों पर टोटल बैन लगा दिया जाए !
आखिर, इस वर्ष जिन्दा रहे तो अगले वर्ष फिर दिवाली मना सकते हैं .
शानदार सार्थक पोस्ट आपके तीनों विचार लागू कर दिए जाये क्या बुरा है .
डर सा लगने लगा. वाकई स्थिति इतनी भयावह है...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी के साथ सुन्दर प्रस्तुति ...जीने के लिए कम से कुछ शुद्ध हवा तो जरुरी है ...
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ReplyDeleteइन सब बातो के लिए स्वमं को सोचना होगा,,,,
दीपावली की हार्दिक बहुत२ शुभकामनाए,,,,
RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,
महत्व पूर्ण जानकारी .....आभार
ReplyDeleteदीवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ
हम अपने रोजमर्रा के जीवन में आदिकाल से प्रतिदिन औसतन 12-12 घंटों के दिन और रात होते देखते रहने के आदि हो गए हैं। इस लिए हम अपने पूर्वजों के तथाकथित अनंत काल-चक्र में 'ब्रह्मा के दिन' और उनकी रात क्या हैं उसका अनुमान नहीं लगा सकते। क्यूंकि जैसा आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी अनुमान लगाया है, हमारे सौर-मंडल और हमारी पृथ्वी की वर्तमान आयु लगभग साढ़े चार अरब वर्ष है। और मानव इस धरा पर केवल कुछ लाख साल पहले ही आया और कुछ सदियों पहले ही सत्य की खोज में अग्रसर हुवा प्रतीत होता है।।। इस कारण हम माया सभ्यता द्वारा केवल 21 दिसंबर 2012 तक ही तारीख अपने कैलैंडर में दिखाये ज़ाने का अर्थ समझने में असमर्थ हैं। और, जैसा छोटे से छोटे विषय पर भी होता है, मानव समाज दो मुख्य भाग में बंट जाता है1 कुछ समर्थक तो कुछ विरोध में। क्यूंकि सत्य किसी को भी पता नहीं होता है।
ReplyDeleteभारत के संदर्भ में ही यदि हम आज देखें तो पाते हैं कि यमुना नदी राजधानी दिल्ली में केवल गंदा नाला भर ही रह गयी है, और गंगा नदी भी मैली हो गयी है। खाद्य पदार्थ, जल, वायु सभी विषैले हो गए हैं। और कहावत भी है, "बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी"!
बेशक, सब इन्सान का करा धरा ही है।
Deleteबड़ी मुश्किल है - पटाखे तो बिलकुल ही बैन कर देने चाहिये !
ReplyDeleteदिल्ली में दो-दो सरकारें, फिर भी यह हाल? शायद इसीलिए है। व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी भूल गया है।
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ReplyDeleteदीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ!
कल 12/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
कई दिनों से टीवी पर स्माग के समाचार सुन रहे हैं. और अभी दिपावली की बारूद का धुंवा इस पर क्या कहर ढहायेगा? यह सारी कारस्तानी इंसान की ही की हुई है जिसके परिणाम हम सबको भोगने ही पडेंगे...
ReplyDeleteसरकार बेचारी अपने को बचाये या स्माग हटाये? अगर इस दिपावली हम सब ही बारूद का धुंवा ना उडायें तब भी कितना आराम रहेगा? पर क्या हम अपना इतना सा भी योगदान दे पायेंगे? नही हम तो जमकर पटाखे चलायेंगे....जय हो स्माग बाबा की.
रामराम.
राम राम जी . सरकार ने कहा है -- रात 10 बजे के बाद पटाखे न चलायें . लेकिन कल ही रात साढ़े 12 बजे एक परिवार ने हमारे यहाँ जो जमकर बमबारी की, बुरा हाल हो गया। दिल तो कर रहा था , पुलिस को फोन कर दिया जाये। लेकिन फिर उन बच्चों का ख्याल कर मन मारना पड़ा। हद है , हम क्या सिखाते हैं हम अपने बच्चों को। अपने विनाश का सामान बना रहे हैं।
Deleteजाने कब सद्बुद्धि आएगी।
दिल्ली का धुंध तो बिना पटाखे ही पसर गया, इसके लिये कौन बम उत्तरदायी है।
ReplyDeleteसार्थक आह्वान .....
ReplyDeleteबहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी,
ReplyDeleteमुंबई में तो बारहों महीने स्मॉग का आतंक रहता है और सबसे ज्यादा मॉर्निंग वॉक वाले इसके शिकार होते हैं, पर मॉर्निंग वॉक भी जरूरी है :(
शुभ दीपावली!!!
ReplyDeleteसृष्टि से पहले शून्य था, अन्धकार था! फिर अचानक नादबिन्दू ने शून्य काल में ही सम्पूर्ण अनंत ब्रह्माण्ड को प्रकाश के साकार स्रोत सितारों आदि से भर दिया!!!
ब्रह्माण्ड के प्रतिरूप पृथ्वी पर पशु जगत में नादबिन्दू के सर्वोत्तम प्रतिरूप मानव, भारतीयों, के माध्यम से आदिकाल से वो क्षण
अँधेरी रात को दीपावली के रूप में प्रतिवर्ष दोहराया जाता चला आ रहा है, जिसमें ब्रह्मनाद पटाखों द्वारा प्रतिबिंबित होता है!!!
जय शक्ति रुपी नादबिन्दू विष्णु की अर्धांगिनी साकार महालक्ष्मी/ महाकाली की!!!
excellent ......jagrook hone ki bahut jarurat hai...
ReplyDeleteसभी मित्रों को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteदीपोत्सव पर्व के अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ....
ReplyDeleteहूँ ....हूँ ......आप तो ऐसे न थे ......:))
ReplyDeleteमतलब चेहरे और जुल्फों की रंगत कुछ बदली बदली सी है ......:))
कहीं ये स्मॉग का असर तो नहीं .....:))
सौहाद्र का है पर्व दिवाली ,
ReplyDeleteमिलजुल के मनाये दिवाली ,
कोई घर रहे न रौशनी से खाली .
हैपी दिवाली हैपी दिवाली .
वीरुभाई
दिल्ली की गंधाती हवा पे एक महत्वपूर्ण आलेख पूरे आयामों के साथ आपने मुहैया करवाया है .दिवाली मुबारक ,धन गोबर और दूज भैया मुबारक .
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