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Sunday, June 24, 2012

डॉक्टर साहब , क्या आप डॉक्टर हैं ? एक अहम सवाल ---


मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने पर अक्सर सीनियर्स द्वारा फ्रेशर्स से एक सवाल पूछा जाता है -- डॉक्टर क्यों बनना चाहते हो ! आजकल तो पता नहीं लेकिन हमारे समय में अक्सर बच्चे यही ज़वाब देते थे -- जी देश के लोगों की सेवा करना चाहता हूँ . इस पर सीनियर्स ठहाका लगाकर हँसते और कहते -- देखो देखो यह देश की सेवा करना चाहता है . यह रैगिंग का एक ही एक हिस्सा होता था .

लेकिन डॉक्टर बनने के बाद समझ आया--- यह भी तो एक प्रोफेशन ही है . जो डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस में हैं , उन्हें दिन रात पैसा कमाने की ही चिंता सताती रहती है . यह अलग बात है , इस प्रक्रिया में वे रोगियों का उपचार कर भला काम भी करते हैं . लेकिन यदि सोचा जाए तो सरकारी डॉक्टर्स को सही मायने में ज़रूरतमंद लोगों की सेवा और सहायता करने का पूर्ण अवसर मिलता है क्योंकि अपनी ड्यूटी सही से की जाए तो बहुत लोगों का भला किया जा सकता है .

लेकिन डॉक्टर्स भी इन्सान होते हैं . उनकी भी बाकि नागरिकों जैसी आवश्यकताएं होती हैं . ऐसे में एक सवाल उठता है --क्या डॉक्टर्स आम आदमी से अलग होते हैं !

मसूरी में स्टर्लिंग रिजॉर्ट में आरामपूर्वक छुट्टियाँ बिताते हुए एक दिन रिसेप्शन से फोन आया -- डॉ साहब , आप डॉक्टर हैं ? मैंने पूछा --यह कैसा सवाल है ? रिसेप्शन मेनेजर बोला -- सर एक महिला को कुछ परेशानी हो रही है . क्या आप देख सकते हैं ? एक पल सोचने के बाद मैंने कहा --ठीक है , देख लेता हूँ .

बताये गए अपार्टमेन्ट नंबर पर गया तो देखा -- कमरे में अधेड़ उम्र की तीन फैशनपरस्त महिलाएं मौजूद थीं जिनमे से एक बेड पर लेटी थी . सरकारी अस्पताल में काम करते हुए हमें मैले कुचैले गरीब से मरीजों को ही देखने की आदत सी पड़ गई है . मुद्दतों बाद एक हाई सोसायटी रोगी को देखकर हमें भी थोडा विस्मय हो रहा था . लेकिन जल्दी ही हमने कौतुहल पर काबू पाकर अपना काम शुरू किया और उनसे उनकी तकलीफ़ के बारे में पूछा . महिला ने बताया -- बड़ी घबराहट हो रही है , छाती में भारीपन हो रहा है और साँस भी नहीं आ पा रहा है . यह लक्षण सुनकर कोई भी डॉक्टर सबसे पहले हार्ट के बारे में सोचते हुए यही संदेह करता --कहीं एंजाइना या हार्ट अटैक तो नहीं हो रहा .

लेकिन हमारे पास जाँच करने के लिए न तो स्टेथोस्कोप था , न बी पी इंस्ट्रूमेंट. ई सी जी का तो सवाल ही नहीं था . ऐसे में कैसे पता चलता , क्या रोग है . वैसे भी आजकल डॉक्टर्स जाँच यंत्रों पर ही पूर्णतया निर्भर रहते हैं . इसीलिए ज़रुरत हो या न हो , सभी टेस्ट करा डालते हैं . हालाँकि इसमें सी पी ऐ का बहुत बड़ा रोल है .

लेकिन अनुभव एक ऐसी चीज़ है जो मनुष्य के हमेशा काम आती है , हर क्षेत्र में . मेडिकल प्रोफेशन में भी अनुभव का कोई विकल्प नहीं होता . इसीलिए अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हुए हमने भी बिना किसी सुविधा के उस महिला का निदान करने का प्रयास किया .

मेडिकल कंसल्टेशन में डॉक्टर दो बातों पर निर्भर करता है --एक हिस्टरी , दूसरा फिजिकल एक्सामिनेशन . अब फिजिकल एक्सामिनेशन के लिए तो हमारे पास कोई औजार थे नहीं , इसलिए हिस्टरी के सहारे हमने बीमारी के बारे में पता किया . पता चला --उनको अक्सर नर्वसनेस हो जाती है . फैमिली में भी एडजस्टमेंट प्रॉब्लम थी . सारी परिस्थितयां देख कर यही समझ आ रहा था --उनको सायकोलोजिकल प्रॉब्लम ज्यादा थी बजाय हृदय रोग के .
लेकिन यह निदान करने से पहले सारे टेस्ट करने ज़रूरी होते हैं जो वहां संभव नहीं थे .

एक चिकित्सक की भूमिका में बड़ी असमंजस की स्थिति थी . मरीज़ की हालत देखकर कोई भी परेशान हो सकता था . हमारे सामने दो ही विकल्प थे -- या तो ज्यादा रिस्क न लेते हुए उन्हें किसी मेडिकल सेंटर में रेफेर कर देते . उस हालत में तीनों की दिक्कत बढ़ जाती . या फिर अपनी सूझ बूझ पर विश्वास करते हुए उन्हें विश्वास दिलाते , की चिंता न करें , बिलकुल ठीक हो जायेंगे . बहुत बड़ा डाइलेमा था . मन कह रहा था --रिस्क नहीं लेनी चाहिए , रेफेर कर देते हैं . वैसे भी हार्ट के मामले में न कोई लापरवाही चल सकती है , न कभी पता होता है कब क्या हो जाए . लेकिन दिल कह रहा था -- हमारा डायग्नोसिस सही है . ये ठीक हो जाएँगी , इन्हें बस रिएस्युरेंस की ज़रुरत है . आखिर हमने अपनी योग्यता पर विश्वास रखते हुए उन्हें बताया --चिंता की कोई बात नहीं है , आप ठीक हो जाएँगी . बस आराम कीजिये . रिलेक्स करने के लिए एक गोली एंटी एनजाईटी पिल भी बता दी .

उन महिलाओं से मिलकर पता चला , आजकल हर उम्र की महिलाएं ग्रुप बनाकर घूमने निकल पड़ती हैं , परिवारों को छोड़कर , यह शायद नया ट्रेंड चल पड़ा है . या यूँ कहिये यह भी कन्ज्युमेरिज्म का ही एक रूप है . हालाँकि अधेड़ उम्र में शारीरिक रूप से स्वस्थ न होने से यह मिसएडवेंचर भी हो सकता है .

अपने कमरे में आकर थोड़ी चिंता हुई -- कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए . यानि भला करने निकले और बुराई सर आ पड़े . उससे भी ज्यादा ज़रूरी था उस महिला का स्वस्थ होना . हालाँकि उन्हें बता दिया था --यदि आराम करने पर भी छाती में दर्द / घबराहट आदि बढती जाए तो अस्पताल जाना पड़ेगा . फिर भी उनकी चिंता तो रही .

शाम के समय बौन फायर का कार्यक्रम था . माल पर घूमकर जब हम वापस पहुंचे तब देखा , सब लोग खूब एन्जॉय कर रहे थे . वे तीनों महिलाएं भी वहां मौजूद थी . हमारी पेशेंट भी मज़े से प्रोग्राम देख रही थी . उन्होंने बताया अब वो ९९ % ठीक थी . ज़ाहिर था , हमारा डायग्नोसिस सही निकला . हमने भी राहत की एक लम्बी साँस ली .
एक सरदारजी , ख़ुशी से मुफ्त में सभी को पेग पिला रहे थे . दिल तो हमारा भी किया --- इसी बात का जश्न मनाया जाए . लेकिन फिर श्रीमती जी को देख कर मन मारना पड़ा .

अक्सर सुनते आए हैं -- डॉक्टर्स ट्रेन या प्लेन में यात्रा करते हुए नाम के आगे डॉक्टर नहीं लिखते ताकि उनकी पहचान छुपी रहे . क्योंकि पता होने पर किसी भी इमरजेंसी में आपको बुलाया जा सकता है . ज़ाहिर है , छुट्टियों पर वे डिस्टर्ब होना नहीं चाहते . लेकिन सोचता हूँ --क्या यह सही है ?
क्या एक डॉक्टर अपने फ़र्ज़ से मूंह मोड़ सकता है ?
क्या हमें इतना स्वार्थी होना चाहिए ?

लेकिन यह भी सच है -- डॉक्टर की सही या गलत सलाह किसी को जिंदगी दे या ले भी सकती है .
सब ठीक रहा तो ठीक वर्ना ---!
भली करी तो मेरे भाग , वर्ना मरियो नाइ बाह्मण !
ऐसे में -- आ बैल मुझे मार-- क्या सही रहेगा !

ज़रा बताएं -- आपको क्या लगता है , क्या सही है , क्या गलत .


84 comments:

  1. यदि ज्ञान और अनुभव से किसी की भी मदद की जा सकती है तो मौका कभी नहीं चूकना चाहिए। यही वह चीज है जो इंसान को जानवरों से अलग करती है। अपनी और अपनों की मदद तो जानवर भी करते हैं।

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    1. द्विवेदी जी , चिकत्सा और प्रोफेशंस से भिन्न है . यहाँ मामला जीवन मृत्यु से जुड़ा रहता है . डॉक्टर की ज़रा सी गलती जो इंतेंश्नल भी नहीं होती , किसी की जान ले सकती है . इस लिए --नेकी कर कुए में डाल --की कहावत भी नहीं चल सकती . ऊपर से सी पी ऐ एक्ट ने डॉक्टर्स को भी डरा दिया है . फिर भी कर्तव्य से मूंह का नहीं मोड़ा जा सकता .

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  2. आप वैसा ही करें जैसा "आनन्द" फिल्म में डॉ भाष्कर के साथी डॉ कुमार किया करते थे......वस्तुत: एक चिकित्सक के लिये कर्तव्य की सीमा निर्धारित करना बहुत कठिन होता है

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  3. जहाँ दूसरा विकल्प न हो वहाँ रिश्क तो लेना ही पड़ेगा। सभी अपने स्वभाव के अनुसार कार्य करते हैं। डाक्टर भी इन्सान हैं तो वे भी नेकी-बदी दोनो कर सकते हैं। आपने अच्छा किया।

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  4. अभी के.जी.एम्. मेडिकल यूनिवर्सिटी में एम्.बी.बी.एस. के फायनल इयर में पब्लिक वेलफेयर एंड मैनेजमेंट नामक सब्जेक्ट ऐज़ अ सिलेबस ऐड किया गया है.. जिसकी फैकल्टी मैं ही हूँ.... अब डॉक्टरज़ भी खुद सवाल करते हैं कि यह सब्जेक्ट क्यूँ? उन्हें समझाया गया कि आजकल के ट्रेंड को देखते हुए आपको मैनेजमेंट भी जानना ज़रूरी है.... और इकोनोमिक्स अब हर सब्जेक्ट पर लागू होती है.. इसीलिए डॉक्टरज़ का आफ्टर ग्रेजुएशन इकोनोमिक सेन्स को भी समझना ज़रूरी है.. .. इसीलिए अब डॉक्टर बनना अब इकोनोमिक्स है... देश सेवा भी ...लेकिन सेकंडरी...मुझे याद है... जब मैं भी एक बार बाहर था.. और मुझे प्रॉब्लम हुई थी.... और अनजान शहर में होते हुए मैं अपनी प्रॉब्लम किसी को बता नहीं सकता था.. तो मैंने आपको ही कॉल किया था.. और आपने फोन मेडिसीन से ही ट्रीटमेंट दे दिया था.. आपका अनुभव ही ऐसा है कि आपको किसी इन्स्ट्रूमेंट की ज़रूरत नहीं है..

    चलिए उन अधेड़ औरतों को आपकी वजह से फायदा तो हुआ.. और जो सायको प्रॉब्लम आपने बताई यह....प्रॉब्लम इस उम्र की औरतों को हो जातीं हैं.. हमेशा.. इन्हें सिर्फ प्यार से ही हैंडल किया जा सकता है.... और मुझे उम्मीद है आपने यही सायकोलौजिकल मैनेजमेंट के लिए किया होगा.. अच्छा! आपने बताया कि आपके पूछने उस औरत ने बताया कि वो 99 % ठीक है.... तो यह परसेंटेज कैसे निकाला गया? :)

    अब चूँकि मेरे पैन कार्ड/ड्राइविंग लाइसेंस/वोटर कार्ड/ सब पर डॉ. लिखा हुआ.. तो मुझे ट्रेन... प्लेन.. में डॉ. लिखना पड़ता है... और पब्लिकली अपना इंट्रो डॉ. के साथ ही देना पड़ता है.... तो दो एक बार ऐसी सिचुएशन आई है... और फिर मुझे बताना पड़ा.. कि मैं पी.एच.डी...... हूँ.... और कईओं को यह भी बताना पड़ता है कि मुझे पी.एच.डी.. किये हुए... आठ साल हो गए हैं.... :)

    वैसे आपसे बताऊँ.. आजकल के डॉक्टरज़ जब केस समझ में नहीं आता तो रेफेर करना ज्यादा सही समझते हैं और अपनी छुट्टी कर लेते हैं.. और जिस तरह पेशेंट के तीमारदार भी बिहेवियर करने लगे हैं.. बिल के नाम पर झगडे करते हैं ..मारपीट करते हैं.. इन सब को देखते हुए डॉक्टर जो करते हैं या अपने फ़र्ज़ मूंह मोड़ते हैं तो ठीक ही करते हैं.. कोई भी डॉक्टर अपने पेशेंट को वेस्ट नहीं करना चाहता ... लेकिन उपरवाले के आगे किसी की नहीं चली है.. और यह सब लोग सोचते नहीं हैं.. बहुत कम ऐसे डॉक्टर होते हैं जो अपने फ़र्ज़ से मूंह मोड़ते हैं.. और जो ऐसा करते हैं .. उनके साथ भी वैसा ही होता है... जब बुरा करेंगे.. तो अपने साथ कभी अच्छा होने का सोच ही नहीं सकते.. और न कभी अच्छा होगा... यह चीज़ सबको समझ में आनी चाहिए..

    आपकी पोस्ट पर तो मैं हमेशा एक पोस्ट ही लिख देता हूँ... यह अच्छा है कि आपकी पोस्ट सैटरडे/सन्डे आती है... नहीं तो कमेन्ट देना मुश्किल होता है...

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    1. बहुत बढ़िया लिखा है महफूज़ भाई .
      इतना समय निकालने के लिए शुक्रिया .
      एक डॉक्टर के लिए मुफ्त सलाह देना ही समाज सेवा होती है . हालाँकि जीवन से जुड़े होने की वज़ह से डॉक्टर्स की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है . इसलिए निस्वार्थ सेवा में भी डॉक्टर के लिए चिंता बनी रहती है . जब तक रोगी सही नहीं हो जाता तब तक चिंता रहती है . हालाँकि अस्पताल में काम करते हुए ऐसा महसूस नहीं होता क्योंकि वहां साझी जिम्मेदारी होती है .

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    2. कहावत है कि मानव भौतिक संसार/ ब्रह्माण्ड के बारे में जानने के लिए इश्छुक रहता है और इस प्रकार भौतिक क्षेत्र के बारे में लगभग सब कुछ जान गया है, किन्तु स्वयं अपने को समझने में सदा असमर्थ रहता है...
      किसी सर्जन ने भी ऐसे ही भाव व्यक्त करते एक लेख में कुछ ऐसा लिखा था कि जब वो ऑपरेशन करने लगता है तब मानव शरीर उस के लिए एक मशीन सा होता है - स्पाइनल कॉलम के बीच स्नायु तंत्र टेलीफोन की केबल समान, आदि, आदि... जिसके खराब अंश वो काट और शरीर को वो सी देता है... उस समय यह सोच नहीं आती कि आदमी के मन में विभिन्न प्रकार की अनुभूतियाँ, प्रेम-घृणा आदि कैसे होती है???..

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  5. डॉ.साहब । बांकी स्थानों का तो पता नहीं लेकिन रेलवे रिजर्वेशन का फ़ार्म भरते समय शायद एक विकल्प ये होता है कि यदि डाक्टर हैं तो लिखें , मेरे ख्याल से उसका उद्देश्य यही रहता कि जरूरत पडने पर उन्हें मदद के लिए बुलाया जा सके । हां रही दुविधा की बात तो आपका संदेह भी अपनी जगह पर बिल्कुल ठीक है क्योंकि आजकल मरीज के साथ आए लोग इतने व्यग्र हो उठते हैं कई बार कि पूरा ईलाज होने से पहले ही आशंका मात्र से ही डाक्टर को कोसने लगते हैं । लेकिन इसके बावजूद मुझे लगता है कि ये डॉक्टर डॉक्टर पर निर्भर करता है , जैसा कि आपने उनकी सहायता कर दी कोई दूसरा शायद न करता , जो भी हो पेशेगत अनुभव यदि किसी के काम आ रहा है तो नि:संकोच करना चाहिए हां चूंकि मामला जीवन मौत का होता है इसलिए बहुत सावधानी जरूरी होती है । बकिया का तो पता नहीं हम तो फ़ुल्ल चौडे रहते हैं कि कभी समय ऐसा आन पडा तो एक ठो डॉक्टर हैं जान पहचान के हमारे भी , ब्लॉगर भी हैं सो जानपहचान डबल निकल गई सी है :) ।

    सर आपने ठीक कहा डॉक्टर भी इंसान हैं , इसी समाज से हैं और बहुत सारे यदि आज घोर व्यावसायिकता के शिकार हो गए हैं तो उसके लिए सिर्फ़ वही डॉक्टर ही जिम्मेदार नहीं हैं ।

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    1. :)आपका स्वागत है .
      सही कहा . यह स्वयंसेवी सेवा है . अपने कर्तव्य से मूंह नहीं मोड़ना चाहिए . हालाँकि जैसा कहा --- डॉक्टर भी इंसानी मानसिकता से ग्रस्त हो सकते हैं . बड़ा मुश्किल होता है इंसानी सोच से ऊपर उठना .

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  6. डॉक्टर साहब , क्या आप डॉक्टर हैं ?
    यह सवाल खुद जवाब दे रहा है. आम आदमी के लिए डॉक्टर इंसान से कहीं बढ़कर होता है.

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    1. वर्मा जी , इस एक सवाल में कई सवाल छुपे हैं . :)

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  7. डॉक्टर इंसान से बढ़कर होता है
    @ मेरे गीत के विमोचन पर आपसे मिल कर बहुत प्रसन्नता हुई !

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  8. जब कोई विकल्प न हो तो रिस्क ले लेना चाहिए,,,
    डाक्टर होने के नाते मरीज की मदद करना फर्ज भी बनता है,,,,,

    RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,

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  9. सरदार जी पिला रहे थे असरदार जी ने नहीं पी ये गलत है , सरासर गलत है :)

    मुफ्तखोरी की परमीशन भी अगर भाभी जी नहीं देंगी तो आप देश सेवा कैसे करेंगे :)

    माफ कीजियेगा आजकल देश सेवा का यही मतलब निकालते हैं भाई बंद :)

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    1. अली सा , पीते तो हम भी रहे , भले ही पैमाने से नहीं !

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  10. वर्मा जी की बात से सहमत्।

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  11. सार्थक और सामयिक प्रस्तुति , आभार.

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  12. आजकल जिस तरह का माहौल है उसमे भलाई कर दरिया में डाल वाली कहावत भी परेशान करती है. दिल्ली में जब भी पढते है और देखते है टीवी पर लोगों का आक्रोश कोई दुर्घटना होने पर शायद यही कारण डॉक्टरों को नाम छुपाने पर विवश करती होगी.

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  13. सि‍वि‍ल सर्वि‍स में भी इंटरव्‍यू तक देशसेवा का फ़ैशन रहता है बाद में ढरैं पे आ जाते हैं लोग. हमारे एक मि‍त्र हैं एम्‍स छोड़कर सि‍वि‍ल सर्वि‍स में आए थे. इतने साल बाद अभी भी समय नि‍काल कर सरकारी अपस्‍तालों की ओ.पी.डी. में नि‍शुल्‍क जाते हैं. इसके लि‍ए उन्‍होंने अलग से मंज़ूरी ले रखी है. उन्‍हें देख कर अच्‍छा लगता है.

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    1. काजल जी , एक सिविल सर्वेंट के लिए अपनी कुर्सी पर बैठकर भी बहुत कुछ होता है सेवा करने के लिए . आशा है डॉक्टर साहब वहां बैठकर भी न्याय करते होंगे :)

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  14. डा. दराल कोई भी अच्छा डाक्टर होगा तो वो अपनी पहचान किसी भी परिस्थिति में छुपाना नहीं चाहेगा और अगर उसने पहचान छुपाई भी तो इमरजेंसी में वो अपने आप को रोक भी नहीं पायेगा मुसीबत में लोगों का डाक्टर के नाम से ही दुःख कम होने लगता है मेरे विचार से तो कभी भी अपने पेशे को धोखा नहीं देना चाहिए बाकी लोगों को भी समझदारी से काम लेना चाहिए की डाक्टर भी इंसान होते हैं वो जानबूझ कर अपने पेशेंट को मुसीबत में नहीं डालेंगे

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  15. पहचान तो नहीं छुपानी चाहिए ... हां अगर मरीज कों देख के लगता है की इलाज संभव नहीं या मर्ज ठीक से समझ नहीं आ रहा ... साफ़ बोल देना चाहिए और हो सके यो हिम्मत जरूर बढा देनी चाहिए ... डाक्टर बोले ठीक हो जायगा तो विश्वास हो जाता है उसकी बात पे ....

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  16. बात तो आपकी ठीक है कि एक डॉ भी एक इंसान होता है और उसे भी अपनी छुट्टियाँ बिना दखल के मनाने का हक है. परन्तु यहीं वह एक इंसान से ऊपर उठ जाता है. अगर हुनर और नोलेज है तो किसी की मदद करने में गुरेज नहीं होना चाहिए एक बीमार इंसान के लिए एक डॉ की मौजूदगी ही बहुत सुकून भरी होती है फिर बेशक वह खुद रिस्क न लेते हुए हॉस्पिटल ही रेफर कर दे.

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  17. नासवा जी , शिखा जी --हमने भी यही महसूस किया है की एक डॉक्टर की मौजूदगी और उचित सलाह भी अक्सर बहुत काम आ जाती है , भले ही रेफेर ही करना पड़े . हालाँकि कभी कभी बेचारे डॉक्टर के लिए निर्णय लेना बड़ा मुश्किल हो जाता है .

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  18. अभी हमारे यहाँ कलेक्टर है डॉ ई० रमेश , जो एक दिन जिला चिकत्सालय १० बजे पहुच गये , तब सरकारी डाक्टर आये नही थे , तो उन्होंने ही मरीज देखने चालू कर दिए . तो अनुभव और ज्ञान का उपयोग जरुरत होने पर जरुर करना चाहिए

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  19. अपना परिचय अवश्य देना चाहिये, थोड़ा सा ही देख लेने से जीवन भी बचाये जा सकते हैं।

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  20. डॉक्टर में आम इंसान भगवान का रूप देखता है ....जिस समय संकट की घड़ी आती है उस समय डॉक्टर इंसान से ऊपर उठ जाता है ... अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर अवश्य ज़रूरत मंद की सहायता करनी चाहिए ...... उसके द्वारा थोड़ा सा ढाढ़स भी बहुत बल देता है .... परीक्षण के औज़ार न होने पर या केस समझ न आने पर रैफर कर दें ...लेकिन परिचय न छुपाएं .... क्या पता किसकी ज़िंदगी कोई डॉक्टर कब और कहाँ बचा ले ... बहुत सार्थक पोस्ट

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    1. जी सही कह रहीं आप . शुक्रिया .

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  21. सोलहों आने टंच ना तो डाक्टर होता है ना मरीज. एकाध पैसे बराबर खोट तो सब जगह है पर डाक्टरों और मरीज के बीच का विश्वास इन सरकारी कानून कायदों ने ज्यादा बिगाड दिया जिसकी वजह से डाक्टर और मरीज दोनों परेशान हैं. पहले के जमाने में डाक्टर और भगवान में कोई फ़र्क नही समझा जाता था.

    रामराम.

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    1. अज़ी मुसीबत के समय खोट कहाँ नज़र आता है . :)
      राम राम ! वनवास से लौट आये ?

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  22. इतनी सारी टिप्पणियों से जवाब तय हो ही गया...

    पर मुझे लगता है असली डाक्टर तो आदरणीया भाभी जी हैं जिन के आगे उन का मरीज़ मन मसोस के रह गया....

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    1. योगेन्द्र जी --

      वीर रस के कवि मंच पर खूब दम भरते हैं
      पर घर जाकर घरवाली से बहुत डरते हैं !

      अब छोटे मोटे कवि तो हम भी हैं . :)

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  23. ये सही हैं कि आज भी लोग डॉ को भगवन का दर्ज़ा देते हैं ...डॉ को अपनी पहचान नहीं छिपानी चाहिए...मौके पर जैसा हों वैसे फैंसला लेने में ही भलाई हैं ......सादर


    ''मेरे गीत '' के विमोचन पर आपके साथ छोटी सी मुलाकात ...याद रहेगी

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    1. शुक्रिया अंजू जी . अभी आप की ही पुस्तक पढ़ रहा हूँ . बाकि बाद में --

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  24. karm ho aviram phir-phir...yahi ek chikitsak ka kartavya hai..aapne achchha kiya..

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  25. डॉक्टर की सलाह मरीज़ के लिए प्राणरक्षक और प्राणघातक दोनों हो सकती है और इन दोनों के बीच ज़्यादा फासला नहीं होता.इसलिए डॉक्टर को भी बड़ी समझबूझ की ज़रूरत होती है !

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  26. जहाँ इमरजेंसी ना हो वहाँ क्यों पचड़े में पड़कर अपना मज़ा खराब करें !

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  27. सतीश जी , दिक्कत यही है --अक्सर सफ़र में या घर से बाहर इमरजेंसी में ही डॉक्टर को बुलाना पड़ता है .
    जैसा की संतोष जी ने kaha --ऐसी स्थित में डॉक्टर ही फंस जाता है .

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  28. मेरा सोचना भी यही है कि अगर आप डॉक्‍टर हैं तो अपना वह परिचय जरूर दें। हो सकता है कि आपके उस परिचय से ऐसी किसी आपातकालीन स्थिति में किसी की जान बच जाए। शायद अब आपने यह भी तय कर लिया होगा कि आगे से ऐसे किसी अवकाश या सफर के दौरान आप अपना आला जरूर साथ रखेंगे। शुभकामनाएं।

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    1. राजेश जी , यह विचार तो आया है लेकिन अभी असमंजस्य है . आखिर , छुट्टियों में तो कम से कम काम से आराम होना चाहिए .

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  29. JCJune 24, 2012 9:06 PM
    मेरे बड़े भाई कृषि विज्ञान के डॉक्टर जब कार्यरत थे तो एक रेल यात्रा के दौरान टीसी उनसे यही प्रश्न किया तो सौभाग्यवश उसी कम्पार्टमेंट में एक विदेशी लड़का और लड़की भी यात्रा कर रहे थे, जो चिकित्सक निकले... लौट कर उन्होंने उनको बताया कि केस एक गर्भवती महिला का था... उन्होंने निरीक्षण कर उन्हें सबसे निकट अस्पताल शीग्र ले जाने की सलाह दी क्यूंकि उन्होंने पाया था कि उन्हें ऑपरेशन की आवश्यकता थी...
    आम तौर पर किसी चिकित्सक मित्र ने ही मुझे बताया था की आजक़ल बहुत सी 'बिनारियाँ' साइकोसोमैटिक होती हैं... आधा इलाज़ तो डॉक्टर को देख कर ही हो जाता है! ...

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  30. इसका जवाब आप से बेहतर कोई नहीं दे सकता , आप की अंतरात्मा ही सही गलत का ज्ञान देती है . डॉ की ही बात नहीं जीवन के हर मोड़ पर आपकी ज़रूरत है आपको उचित लगे करिए .कर्ता आप हैं न की लेखक .मैं तो इतने आदर्श की बात लिख दूँ कि आप प्रसन्न होगे ही पढ़ने वाले भी वाह वाह करके खुश हो जायेंगे .
    सत्य वही था जो आपने उस काल ,परिस्थिति , पात्र , और देश अर्थात स्थान में किया ............

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  31. प्राचीन काल से भारत में प्रत्येक व्यक्ति को ब्रह्माण्ड/ अमृत परमात्मा, त्रिनेत्रधारी शिव का मॉडल माना जाता आ रहा है... किन्तु अधिकतर का तीसरे नेत्र, अर्थात अजना चक्र बंद होने के कारण छठी इन्द्री को सोया हुवा अथवा कम जगा माना गया है - जिस कारण कुण्डलिनी जगाने की आवश्यकता मानी जाती आ रही है...
    मानव जीवाम का उद्देश्य इस कारण अमृत शिव में वर्तमान में निम्न स्तर पर पहुंची हुई आत्मा के मिलन हेतु महा मृत्युंजय मन्त्र का जाप सुझाया गया है... ॐ को ब्रह्माण्ड का बीज मन्त्र माना जाता है...
    (ॐ त्र्यम्बकं यजामहे/ सुगंधिम पुष्टि वर्धनम/ उर्वारुकमिव बन्धनान/ मृत्योर मुक्षीय मामृतात... जिसमें शिवलिंग को खीरे समान दर्शाया गया है!)...

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  32. डॉक्टर साहेब,
    मेरे हिसाब से 'वंस ए डॉक्टर आलवेज ए डॉक्टर', आप चाह कर भी अपनी डाक्टरीयत से पीछा नहीं छुड़ा सकते...क्योंकि आप न सिर्फ़ एक अच्छे डॉक्टर हैं एक अच्छे इन्सान भी हैं..
    कई बार जब मैं प्लेन में सफ़र करती हूँ किसी की तबियत ख़राब होती है, जो अनाउंस किया जाता है...इफ एनी डॉक्टर ईज ट्रावेलिंग इन दिस प्लेन, प्लीज कांटेक्ट अस इमेडीएटली, वी हैव ए पसेंजर सफरिंग विथ सच एंड सच प्रॉब्लम ...और कोई न कोई निकल भी आता है..ऐसे में लगता है, २५०००-३५०००० फीट ऊपर, आसमान में, किसी की जान पर बन आई है, और उसको बचाने वाला अगर ख़ुदा नहीं है, तो ख़ुदा का बहुत विशेष बंदा तो है ही.
    मेरा बेटा तो अभी डॉक्टर बन ही रहा है, उसे भी देखती हूँ, किसी को बीमार देख कर परेशान हो जाता है, उसकी सबसे पहली मरीज तो मैं ही हूँ...मेरे जेठ भी लन्दन में डॉक्टर हैं, उसने बात जब भी करती हूँ, वो बातें कम मुआयना ज्यादा करते हैं...
    डॉक्टर, शिक्षक, नर्स, ये ऐसे नोबल प्रोफेशन हैं, जिसमें उनको ही जाना चाहिए जो मानव जीवन, और भावनाओं का मूल्य समझते हैं...जिनमें ये गुण नहीं हैं, उनको इस तरह के प्रोफेशन में जाने का कोई अधिकार नहीं है...
    कुछ ऐसे भी डॉक्टर होते हैं जो इस पेशे का बेजा इस्तेमाल भी करते हैं...एक डॉक्टर हुआ करते थे राँची में डॉ.रामबली सिन्हा, उनके बारे में ये कहा जाता था, कि वो ओपरेशन टेबल पर मरीज का पेट खोल देते थे और कहते थे इतना पैसा दो नहीं तो मैं पेट बन्द ही नहीं करूँगा. लोगों ने अपना सब कुछ बेच-बाच कर उनको पैसे दिए हैं..अब वो शायद नहीं रहे...
    बहुत अच्छी पोस्ट..हमेशा की तरह..आप ऐसे ही लोगों के काम आते रहें..
    वी आर प्राउड ऑफ़ यू सर...
    आभार..

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    1. सही कहा अदा जी . एक डॉक्टर को किसी भी स्थिति में अपने फ़र्ज़ से मूंह नहीं मोड़ना चाहिए .
      हालाँकि यहाँ ऐसे लोग भी बहुत मिल जाते हैं जो मुफ्त में सलाह लेने के लिए कोई अवसर नहीं छोड़ते , फिर भले ही आप किसी पार्टी में खाना खा रहे हों .
      भ्रष्टाचार का प्रभाव डॉक्टर्स पर भी पड़ा है . बेशक कई डॉक्टर्स इतने नीचे गिर जाते हैं की इस नोबल प्रोफेशन को बदनाम कर दिया है .

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  33. JCJune 25, 2012 6:07 AM
    डॉक्टर साहिब, अदा जी ने एक दम सही लिखा है! मेरे स्व. डॉक्टर साढ़ू भाई 'बेहोशी के डॉक्टर' भी उत्तर प्रदेश सरकार की सेवा में कार्यरत रहे होने के कारण कुछ सर्जन से नाराज़ रहते थे... वहाँ प्राइवेट प्रैक्टिस की छूट थी... वे गरीब रिश्तेदारों को जमीन आदि बेच और पैसे का जुगाड़ करने के लिए मजबूर कर देते थे, पेट आदि खोल, शरीर के अन्य किसी भाग को भी काटने की आवश्यकता बता, उनको यह कह कि नहीं तो फिर बाद में उन्हें और अधिक पैसे खर्च कर उस के लिए फिर से ऑपरेशन कराना होगा!!!...
    किन्तु, दूसरी ओर, यह भी सत्य है कि अभी बहुत सारी बीमारियों का निदान पाना शेष है... और दुर्भाग्यवश (अथवा काल वश, वर्तमान कलियुग होने के कारण?) पूर्ण ज्ञान पाने के लिए अभी भी आधुनिक चिकित्सा जगत ही नहीं अपितु अन्य विभिन्न क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिक आदि को अभी भी बहुत समय की आवश्यकता है...
    'हिन्दू' पुराण, कथा-कहानी आदि, आदि, दूसरी ओर, संकेत करते हैं कि हमारे पूर्वज भूत में ब्रह्माण्ड के विषय में अधिक गहराई में पहले जा चुके हैं... किन्तु उनकी भाषा को आज खगोलशास्त्री अपनी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि के कारण शायद बेहतर समझ सकता है, किन्तु शायद काल का ही प्रभाव होगा कि वे पश्चिमी सोच से इतने प्रभावित हैं कि लाइन के बीच पढने में अपनी बेईज्ज़ती मानते हैं!!!....

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    1. जे सी जी , अफ़सोस तो इस बात का है की अब प्राइवेट ही नहीं सरकारी डॉक्टर्स भी धंधा करने लगे हैं .

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  34. शहरों में रहने वालों को ये बात कम समझ आएगी कि‍ नि‍र्धन कि‍सान की बीमारी भी उसे अथाह ऋण में धकेल देती है

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  35. प्राचीन भारत में किस गहराई तक हमारे पूर्वज गए ह सकते हैं, इसके उदाहरण स्वरुप, अभी अभी एक ऍफ़ एम् रेडिओ में कुछ ऐसा सुना - इस प्रश्न के उत्तर में कि यदि स्वप्न में डॉक्टर के पास आप जाते दिखाई दें तो उसका क्या अर्थ है ??? तो आपके घर में, आपको अथवा किसी अन्य पारिवारिक सदस्य को, कोई बिमारी आ सकती है! उस के लिए आप किसी बीमार के लिए पैसा दे दीजिये, या दवा दे दें...!!!

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  36. चिकित्सक ही क्यूँ , किसी भी व्यक्ति को अपने फ़र्ज़ से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए ...
    आपने एक जिम्मेदार इंसान का फ़र्ज़ अदा किया !

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  37. गलत सही तो मैं न जानू डाक्टर -बस इतना ही जानू कि कर्तव्य से मुंह मोड़ना खुद अपनी आत्मा को कष्ट देना है
    श्रेष्ठ डाक्टर अपने तजुर्बे पर भरोसा करता है और इसलिए ही वह औरो से अलग होता जाता है .
    लोग कहने लगते हैं कि फ़ला डाकटर के हाथ में बड़ा यश है !
    आप भी ऐसे ही डाक्टर हैं और आपके हाथ में बड़ा यश है -वह महिला आपको देखकर ही चंगी हो गयी -:)
    कहीं नाड़ी पकड़ लिए होते तो सर्वथा के लिए निरोग हो जाती -:)

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    1. कभी कभी ऐसी परिस्थितयां भी आ जाती हैं . लेकिन इसके लिए हमारी उम्र निकल चुकी . :)

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  38. दुनिया में हर तरह के इंसान होते हैं, अच्छे-बुरे और फिर डॉक्टर भी तो इंसान ही होते हैं ना.... हाँ यह अवश्य है कि अच्छा करने जाओ और बुरा हो जाता है... लेकिन यह अपने वश में नहीं होता... स्वयं के वश में तो केवल प्रयास करना ही होता है... और अगर हमारी समझ के अनुसार प्रयास करने में दूसरे को अधिक खतरा नहीं है तो अवश्य ही प्रयास किया जाना चाहिए...

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  39. @श्रीमती जी को देख कर मन मारना पड़ा .

    डॉ साहेब मन न मारा कीजिए.... बाकि जो हो सो हो...

    हर पेशेवर की तरह डाक्टर को भी अपनी जिम्मेवारी से नहीं भागना चाहिए... जो आप नहीं भागे... जैसा भी था आत्मविश्वास से अपने इलाज किया ओर वो स्वास्थ्य भी हुई.

    साधुवाद.

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  40. मन मारने की बात से शायद आवश्यकता है देखने की, कि हिन्दू मान्यतानुसार, पत्नी अर्धांगिनी होती है जो भवसागर पार कराने में, नाव समान, पति कि सहायक होती है...
    और आधुनिक मान्यतानुसार भी हर सफल पुरुष के पीछे किसी नारी हाथ होता है (या नारियों का? उस की माँ, बेटियों, और विशेषकर पत्नी का?...:)

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    1. सही कहा , पत्नी को खुश रखना भी आवश्यक होता है .

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  41. Doctor sits next to God, coz they have in their hands the power of life n death..
    for a common man.. doctor is more than just a human being.. and they should never forget this fact :)
    I think a person/doctor should always try to help as much as they can !!

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  42. मेरे हिसाब से तो डॉ का नाम मात्र ही एक आम इंसान की सोच पर मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रभाव डालता है फिर चाहे डॉ एक पेंन किलर देकर ही क्यूँ न निकल ले वैसे मैं यहाँ दिनेश राय दिवेदी जी से पूर्णतः सहमत हूँ।

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  43. डॉक्टर्स से उम्मीद तो हम करते हैं ही,भगवान का दर्ज़ा देते हैं..... मगर नाउम्मीद होने पर धूल भी उतार देते हैं........मानव स्वभाव है ये......
    वक्त वक्त की बात है............
    :-)

    सादर
    अनु

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    1. यानि बड़ा स्वार्थी है मानव ! :)

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  44. JCJune 25, 2012 6:01 PM
    यह प्राकृतिक है कि 'द्वैतवाद' है! और जैसी जन साधारण में आदि काल से चली आ रही मान्यता हो, हर व्यक्ति से कभी कभी - न चाहते हुए भी - गलती होती ही है... किन्तु कोई भी अपनी गलतियों का ढिंढोरा नहीं पीटता, जबकि 'सही' होने पर अवश्य चर्चा करता हो, क्यूंकि क़ानून में सजा का प्रावधान भी होता है, और जो समय के साथ साथ बदलता भी हो... उदाहरणार्थ, किसी समय भारत में यदि कोई बिल्ली मार दे, तो उसे सोने कि उतनी ही वजन की बिल्ली देनी पड़ती थे!!!... ...

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    1. पुनश्च - और, प्राचीन भारत में, बिल्ली टट्टी कर उस पर मिटटी दाल देती थी... किन्तु अब कंक्रीट के जंगल होने के कारण आधुनिक शहरी बिल्ली सिर्फ सांकेतिक रूप से उसे ढँक देती है...:)

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  45. डॉक्टर तो भगवान का रूप होता है डॉक्टर सहाब। लेकिन कई बार उनके हाथ से किसी की जिंदगी खेल बन कर रह जाती है। ऎसे ही बहुत साल पहले मेरे पिता की क्रिकेट की बॉल से एक आँख में जबरदस्त चोट लग गई। ऑपरेशन पूने मे हुआ। किसी नये डॉक्टर के द्वारा गलती से सही आँख का ऑपरेशन हो गया। और वो भी ऎसा की आज तक दोनो आँखों से देख नही सकते। अट्ठाईस साल की उम्र में ही एक डॉक्टर की लापरवाही कहिये या हमारी किस्मत कि ये हादसा हो गया।

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    1. ओह ! बेहद अफ्सोसज़नक और कष्टदायी .
      चिकित्सा में ऐसी लापरवाही अब दंडनीय है .
      लेकिन एक डॉक्टर की गलती से डॉक्टर्स के पास जाना तो नहीं छोड़ा जा सकता .

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    2. JCJune 26, 2012 7:09 AM
      यही तो हमारे साथ हुवा जब पत्नी को आर्थ्राइटिस हो गया और ऐलोपेथी पद्दति से उपचार आम दवाइयों से आरंभ हो स्टेरॉयड़ पर पहुँच गया... तक्लेफ़ तो दूर नहीं हुई, और डॉक्टर के पास जाना नहीं रुका... डॉक्टर दवाई तो देते थे पर लाभ नहीं होता था... और हमें पता भी होता था, पर फिर कोई नया डॉक्टर पकड़ते थे... और इस प्रकार सभी अन्य पद्दति के डॉक्टर, आदि, के पास भी जाने की मजबूरी हुई... खैर, उनके अंत के १५ वर्ष स्टेरॉयड़ खाते और कष्ट झेलते बीते... उस का कुछ लाभ कहें तो अपना विश्वास बहुरुपिया भगवान् कृष्ण और उस की लीला पर अटूट हो गया '८४ में गीता पढ़...:)

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    3. समय मिलने के बाद कथा-कहानिया आदि समझ आया कि हर व्यक्ति के जानने और सोचने वाली बात यह है कि प्रत्येक व्यक्ति पैदाइश से बहिर्मुखी है...
      अर्थात, बचपन में एक आम आदमी के मन के रुझान के अनुसार बाहरी संसार से किसी क्षेत्र विशेष पर, अथवा सिद्धों समान सभी विषयों में, विद्या ग्रहण करने की इच्छा और क्षमता अधिक होती है किन्तु, दूसरी ओर, उसकी भौतिक इन्द्रियों के माध्यम से ग्रहण की गयी सूचना के विश्लेषण की क्षमता आरंभ में कम होती है... जो समय के साथ बढती जाती है, और इस पृष्ठभूमि से कि मानव ब्रह्माण्ड का मॉडल है, कहा जा सकता है कि वो ब्रह्माण्ड के वर्तमान में अनंत पाए गए शून्य के, शून्य अर्थात बिंदु से आरम्भ कर, निरंतर बैलून समान फूलते जाने को प्रतिबिंबित करता है...

      उपरोक्त कारण से आरम्भिक वर्षों में अधिकतर हर जिग्नासू बाहरी संसार/ ब्रह्माण्ड से आवश्यकतानुसार समय समय पर सीखता चला जाता है...
      पाचीन हिन्दुओं के अनुसार, किन्तु सत्य/ परम सत्य तक पहुँचने हेतु, किसी एक समय बिंदु पर, आवश्यकता है हरेक को अंतर्मुखी होने की (जिसे सन्यासाश्रम कहा गया) - जितना शीघ्र उतना अच्छा... क्यूंकि सिद्धों द्वारा सम्पूर्ण ज्ञान हमारे शरीर में आठ चक्रों में जन्म के समय से ही बंटा हुवा जाना गया है... "बगल में बच्चा/ नगर ढिंढोरा" कथन समान, और "कस्तूरी मृग" का भी उदाहरण दिया जाता है कि सुगंध स्वयं उस की नाभि से आ रही होती है, वो किन्तु सारे जंगल में उसे खोजता भटकता है :)

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    4. उफ़, किसी की ग़लती का कितना बड़ा खामियाजा! इसीलिये चिकित्सकीय व्यवसाय को अन्य व्यवसायों की बराबरी पर नहीं रखा जा सकता है।

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  46. सही वही है जो डॉ दराल बताएं .डॉ हर जगह डॉ होता है .यह उसके प्रशिक्षण और चिकित्सा नीतिशाश्त्र का हिस्सा है .कोई माने तो सब कुछ वरना कुछ नहीं है कहीं भी .सब कुछ हर व्यक्ति का अपना निजिक अक्श होता है ,परवरिश और संस्कार होतें हैं जिनसे वह संचालित होता है .
    वीरू भाई ,४३ ,३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशगन ४८ १८८ ,यू एस ए
    ००१ -७३४-४४६-५४५१

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  47. दोनों तरफ की बातें तो आपने कह दी.. हमारे लिए बचा ही कुछ नहीं ..... पर डॉक्टर का पेशा देखकर लगता है की रेल में यात्रा करते हुए यह छुपाना नहीं चाहिए....वैसे एक बात कहूँ....इस मामले में डॉक्टर का परिवार की राय काफी मायेने रखती है .. परिवार अगर साथ दे तो सायद ही कोई डॉक्टर अपनी पहचान छुपा कर यात्रा करे...

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    1. सही कहा , परिवार को भी बलिदान देना पड़ता है .

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  48. "एक दिन रिसेप्शन से फोन आया -- डॉ साहब , आप डॉक्टर हैं ? मैंने पूछा --यह कैसा सवाल है ?"

    डा० साहब, मैं समझता हूँ कि एकदम वाजिब सवाल पूछा गया था रिशेप्शन से ! आजकल जो असली डाक्टर हैं वे तो अपनी पहचान बताना नहीं चाहते और डाक्टर भी आजकल बहुत तरह के है! लेकिन एक वेराईटी डाकटर महफूज़ अली जैसे डाक्टरों की भी है, जिनके पास अगर आप बिना यह जाने चले गए कि ये किस तरह के डाक्टर है तो पता चला कि सर दर्द की शिकायत इन्हें बताने पर इन्होने सीधे सिर पर ही इंजेक्शन घोप दिया ! :) :)

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  49. भली करी तो मेरे भाग , वर्ना मरियो नाइ बाह्मण !
    ऐसे में -- आ बैल मुझे मार-- क्या सही रहेगा !

    विचारणीय लेख है आपका डॉ. साहिब.
    डॉ. बनते समय जो शपथ ली थी
    उसपर अमल करना ही बनता है

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    1. राकेश जी , काश की ली गई शपथ का पालन सभी स्नातक / स्नातकोत्तर करें ! फिर भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए अन्ना की ज़रुरत ही न रहे .

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    2. सच्ची बात है। जब तक हम लोग सही-ग़लत का भेद देखने से पहले मेरा या तेरा देखते रहेंगे तब तक साँपनाथ को हटाने के लिये नागनाथ ही बुलाये जायेंगे।

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  50. ऐसी पोस्टिंग को पढ़ने के बाद बस एक शब्द निकलता है..वाह!
    फिर पांच शब्द दिमाग में गूंजतें हैं..काश हम भी गए होते।

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  51. अच्छा लगा यह पोस्ट पढ़कर। संवेदनशील डाक्टर हमेशा अपना कर्तव्य पालन करेगा। नहीं करेगा तो प्रेमचंद जी की कहानी ’मंत्र’ के डा.चड्ढा की तरह पछतायेगा। :)

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    1. पढ़ी नहीं पर लगता है पढनी पड़ेगी :)

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  52. आज डाक्टर हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा हैं.हम सब,उनसे एक परोक्ष उम्मीद रखने के कारण ही,जीवन के प्रति एक हद तक लापरवाह रहते हैं. उम्मीद की यह लौ जलती रहे.

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  53. सहृदय और अच्छा आदमी होना भी ज़रूरी आदमी का .डॉ भी आदमी होता है .शान से कहो हाँ भाई साहब मैं डॉ हूँ .

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  54. यद्यपि काल के प्रभाव से ज्ञान लुप्त-प्राय हो गया हो, प्राचीन भारत में विज्ञान/ खगोलशास्त्र आदि के आधार पर हस्त-रेखा/ ज्योतिष विद्या/ समुद्र शास्त्र आदि, आदि, के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति का भविष्य पहले से ही जान लिया जाता था...
    किन्तु आज इन्हें केवल निज स्वार्थ के दृष्टिकोण से देखा जाता है...
    काल के प्रभाव से, कलियुग में अधिकतर बहिर्मुखी होने के कारण अज्ञान अत्यधिक बढ़ने से कह लो हम, उदाहरण के लिए, मान नहीं सकते कि क्राइस्ट छू कर ही अंधों और कोढियों को ठीक कर सकते थे... और भारत में ऐसे सिद्ध हुए हो सकते हैं जो दूर से ही मन्त्र से बीमार को ठीक कर सकते थे क्यूंकि उन्हें साकार ब्रह्माण्ड के ध्वनि ऊर्जा से बना जाना...!!!...

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