एक समय था जब दिल्ली जैसे बड़े शहर में सड़क पर वाहनों के लिए कोई गति सीमा नहीं थी । नियम अनुसार सबसे तेज वाहन दायीं लेन में चलते थे , मध्यम गति वाले वाहन बीच की लेन में और सबसे धीमे वाहन बायीं लेन में । लेकिन हकीकत में होता उल्टा था । यानि धीमे चलने वाले दायीं लेन में चलते थे । यदि किसी को ओवरटेक करना होता था तो वो या तो हॉर्न बजाकर साईड मांगता था या बायीं ओर से रोंग साईड से निकल जाता था ।
फिर शहर में गति सीमा निर्धारित कर दी गई । अब लेन ड्राईविंग को अपनाने पर जोर दिया जाने लगा । लेकिन लेन ड्राइविंग का अर्थ क्या होता है , यह कभी नहीं बताया गया । इसलिए अभी भी अधिकांश ड्राइवर्स को शायद यह नहीं पता कि लेन ड्राईविंग क्या होती है ।
हालाँकि शहर हो या हाईवे , अब सब जगह सडकों पर इस तरह की लाईनें देखने को मिलेंगी :
आइये देखते हैं , इन लाइनों का क्या मतलब होता है ।
साईड की लाइन -- यह लेन की बाहरी सीमा रेखा है । इससे बाहर नहीं जा सकते ।
बीच की लाइन --- अक्सर यह लाइन या तो सीधी होती है या टूटी होती है ( ब्रोकन लाइन ) । सीधी लाइन का मतलब है कि आप इसे क्रॉस नहीं कर सकते यानि दूसरी ओर नहीं जा सकते । ब्रोकन लाइन का अर्थ है कि आप चाहें तो लेन बदल सकते हैं । लेन बदलने के लिए पहले देखिये कि रास्ता साफ है या नहीं । फिर इंडिकेटर देते हुए लेन बदल लीजिये लेकिन ध्यान रखिये कि कोई गाड़ी उस लेन में तेजी से तो नहीं आ रही ।
ऊपर दिखाए गए फोटो में बीच में दो लाईनें हैं -- एक सीधी और दूसरी ब्रोकन । दायीं तरफ सीधी लाइन का अर्थ है कि आप दायीं से लेन बदल कर बायीं लेन में नहीं जा सकते । लेकिन सामने से आता हुआ ट्रैफिक लाइन बदल कर अपने बायीं वाली लेन में जा सकता है । यदि यह एक तरफ़ा सड़क होती तो बायीं लेन से दायीं लेन में आया जा सकता है लेकिन दायीं से बायीं लेन में नहीं ।
हालाँकि यह सड़क विदेश की है लेकिन लेन सिस्टम में लाइन का अर्थ सब जगह एक ही होता है ।
लेकिन अक्सर यह देखा जाता है कि हमारे प्यारे देशवासी लेन ड्राईविंग में विश्वास नहीं रखते । या फिर उन्हें इसका मतलब ही नहीं पता होता । इसीलिए यहाँ दुर्घटना होने की सम्भावना ज्यादा रहती है । लेकिन यदि लेन ड्राइविंग की जाए तो न तो साईड मांगने की ज़रुरत पड़ेगी , न हॉर्न बजाने की ।
हाईवे ड्राईविंग :
कुछ वर्ष पहले तक जब हाईवे पर लेन सिस्टम नहीं बना था तब ओवरटेक करने के लिए या तो हॉर्न बजाते थे या फिर डिपर का इस्तेमाल कर साईड मांगी जाती थी । इससे धीमे चलने वाले वाहनों को बड़ी दिक्कत होती थी । उन्हें बार बार साईड देनी पड़ती थी । लेकिन अब लेन बनने से यह परेशानी ख़त्म हो गई है । अब न साईड मांगने की ज़रुरत है , न ही हॉर्न देने की ।
हिल ड्राईविंग :
पहाड़ों में ड्राईव करने के लिए कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना ज़रूरी होता है । यहाँ भी अब लेन सिस्टम बना है । अपनी लेन में ही चलना चाहिए । लेकिन यहाँ एक सबसे बड़ी दिक्कत होती है सड़क का सीधा न होना । अक्सर पहाड़ों में हर ५०-६० मीटर पर एक मोड़ आ जाता है । इसलिए ओवरटेक करना बड़ा रिस्की रहता है । मोड़ पर हॉर्न बजाना ज़रूरी है ताकि सामने से आने वाले को आपकी मोजूदगी का अहसास हो जाए । मोड़ पर कभी ओवरटेक नहीं करना चाहिए। अपहिल ड्राईविंग धीमी रहती है लेकिन कंट्रोल बेहतर रहता है । ढलान पर उतरने में गाड़ी अपने आप दौड़ती है इसलिए स्पीड कंट्रोल बहुत ज़रूरी है ।
लेकिन हाईवे हो या पहाड़ , सड़क पर आधे से ज्यादा गाड़ियाँ कमर्शियल होती हैं । इनके ड्राईवर अक्सर बहुत तेज ड्राईव करते हैं और नियमों का पालन नहीं करते । इसलिए दूसरों से भी बचकर चलना पड़ता है ।
अक्सर हम हिन्दुस्तानियों की आदत होती है कि ज़रा सी रुकावट आते ही हम अपनी लेन छोड़कर जहाँ जगह मिली वहीँ घुस जाते हैं । इसीलिए अक्सर पलक झपकते ही ट्रैफिक जाम हो जाते हैं । इस मामले में स्वयं ड्राईव करने वाले पढ़े लिखे लोग भी पीछे नहीं हैं ।
दिल्ली में इस समय भीषण गर्मी का प्रकोप चल रहा है । ऐसे में हम हर वर्ष पहाड़ों की ओर रुख कर लेते हैं । ५-७ दिन के लिए ही सही , न सिर्फ गर्मी से निजात पा जाते हैं बल्कि पहाड़ों की शुद्ध हवा में पैदल सैर कर स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होता है । घर से बाहर निकलने के लिए तीन चीज़ों की ज़रुरत होती है । साधन , समय और शौक । बहुत से लोगों के पास पैसा तो होता है लेकिन समय नहीं । या फिर समय और साधन तो होते हैं लेकिन शौक नहीं ।
हमारे पास कम से कम शौक की तो कोई कमी नहीं । इसलिए सीमित साधन होते हुए भी ऐसा कोई अवसर नहीं छोड़ते ।
इस बार पहली बार ऐसा हुआ कि गर्मियों में दोनों बच्चे घर से बाहर थे । इसलिए इस बार हम पति पत्नी ही चल पड़े मसूरी की ओर । पिछले बीस सालों में अक्सर पहाड़ों में अपनी गाड़ी से ही जाना हुआ है । मसूरी , शिमला , नैनीताल, चंबा और मनाली तक स्वयं ड्राईव किया है । सबसे लम्बा सफ़र तो मनाली तक का ही रहा -- १५ घंटे और ६६० किलोमीटर । रोहतांग पास तक १४००० हज़ार मीटर की ऊँचाई तक ड्राईव करना अपने आप में एक अत्यंत रोमांचक अनुभव था ।
लेकिन इन सब ट्रिप्स में एक बात कॉमन थी -- ये सब हिल स्टेशन किसी न किसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर पड़ते हैं । इसलिए अक्सर सड़कें बहुत बढ़िया होती हैं । इसलिए ड्राईविंग भी बड़ी आनंद दायक रहती है । इस बार भी मेरठ बाईपास से लेकर मुजफ्फर नगर बाईपास का करीब ७०-८० किलोमीटर का रास्ता बहुत सुन्दर था । रूडकी से देहरादून भी सही है । लेकिन देहरादून के पहाड़ शुरू होते ही चढ़ाई पर देखा कि सड़क हर मोड़ पर बुरी तरह से टूटी थी । अंत में करीब ५-६ किलोमीटर की चढ़ाई के बाद जब ढलान आई तो पता चला कि यह चढ़ाई वाला क्षेत्र यू पी के सहारनपुर जिले में आता है । जबकि ढलान शुरू होते ही उत्तराखंड शुरू हो जाता है । और उत्तराखंड शुरू होते ही सड़क मक्खन मलाई जैसी नज़र आई ।
क्या इसमें भी कोई राजनीति है ?
नोट : अगली पोस्ट में मसूरी के कुछ दिलचस्प संस्मरण तस्वीरों के साथ ।
Wednesday, June 13, 2012
हाईवे हो या हिल्स , लेन ड्राईविंग इज सेन ड्राईविंग -- लेकिन सुनता कौन है !
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बढ़िया जानकारी अनाड़ियों के लिए ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
बहुत ही इन्फौर्मेटिव पोस्ट...दरअसल हमारे यहाँ ट्रैफिक रूल्ज़ की कोई स्कूलिंग नहीं हैं... इसीलिए लोगों को लेन सिस्टम मालूम नहीं है.. और ट्रैफिक हमारे स्कूल्ज़ में ऐज़ अ सब्जेक्ट पढाया भी नहीं जाता है.. अगर ट्रैफिक सिस्टम सुधारना है तो सबसे पहले स्कूलिंग सिस्टम को सही करना होगा..
ReplyDeleteमहफूज़ भाई , यदि लाइसेंस सही तरीके से दिया जाए तो रूल्स सीखने ही पड़ेंगे . लेकिन अफ़सोस , यहाँ सब बिकता है .
Deleteआपके अगली पोस्ट मसूरी के कुछ दिलचस्प संस्मरण तस्वीरों के इन्तजार में,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
धीरेन्द्र जी , अगली के चक्कर में पिछली को अनदेखा कर जाते हैं :)
Deleteसबसे मज़े की बात तो ये है कि ट्रैफ़िक पुलिस विभाग को लगता ही नहीं कि लोगों को लाइन ड्राइविंग के बारे में बताने की ज़रूरत है. मैंने उनके जो भी विज्ञापन देखे वो केवल धमकियों भरे ही होते हैं कि ये-ये किया तो चालान काट दूंगा. वे मान कर चलते हैं कि जिस किसी को भी ड़ाइविंग लाइसेंस दे दिया उसे तो सब आ ही गया. उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं कि सड़कों पर कई ऐसे लोग भी निकलते हैं जिन्हें सड़क पर आने के लिए लाइसेंस की ज़रूरत नहीं होती मसलन पैदल, टांगे, बुग्घी, ट्रैक्टर, रेहड़े-रेहड़ियां और साइकिल वाले, दिल्ली में तो साइकिल वाले धुर दाएं चलते मिलते हैं, तेज़ ट्रैफ़िक के बीच...
ReplyDeleteट्रैफ़िक पुलिस विभाग की ज़िम्मेदारी है कि उन्हें भी समय-समय पर टी.वी./अख़बारों/सिनेमा आदि माध्यमों से ट्रैफ़िक-नियमों की समुचित जानकारी दें.
काजल कुमार जी , लाइसेंस भी कैसे बनते हैं , यह किसी से नहीं छुपा . फिर नियमों का पता कैसे चलेगा . हमने आज तक किसी को ड्राइविंग टेस्ट देते नहीं देखा . ऑथोरिटी के बाहर बैठे दलाल सब काम अपने आप करा देते हैं .
Deleteयहाँ तक की मेडिकल भी . विदेशों में टेस्ट पास करना बड़ा मुश्किल होता है . तभी परफेक्ट ड्राईवर बनते हैं . लेकिन लेन ड्राइविंग बहुत फायदेमंद है.
हाँ ड्राइविंग के बारे में हम अनाड़ी ही हैं.
ReplyDeleteसूचनापरक पोस्ट के लिए साधुवाद
वाह...
ReplyDeleteबहुत खूब!
अच्छी जानकारी दी है आपने।
"मेरा भारत महान"! वैदिक काल में सिद्ध एक जगह से गायब हो, चुटकी बजाते ही, जहां कहीं भी जाना होता था पहुंच जाते थे! और आम आदमी बैलगाड़ी/ तांगा आदि में चलता था... मोटर तो अंग्रेजों के जमाने से ही यहाँ आई हैं, और आम आदमी तब भी यदि स्वयं चलाये तो साईकिल ही चलाता था....:)
ReplyDeleteजे सी जी , यही तो प्रोब्लम है ,अब आम आदमी भी मोटर गाड़ी चलाता है, भले ही चलाना न जानता हो . :)
DeleteJCJune 13, 2012 10:22 PM
Deleteआम आदमी साईकिल से प्रमोट हो स्कूटर पर आया... एक समय था कि दिल्ली में स्कूटर की संख्या कुछ दशक तक बढ़ती चली गयी... उसका लाभ यह था कि न अधिक पार्किंग की समस्या - घर के भीतर ही एक कमरे या आँगन में खड़े करदो... यह तो हाल ही में दिखने लगा कि पुराने स्कूटर चलाने वाले अब कार चला रहे हैं, जो पहले छोटी गाडी से आरम्भ किये... और आज यह हालात हैं कि सभी को बड़ी बड़ी गाड़ियां ही चाहिए.... पार्किंग का संकट चारों ओर बढ़ गया है - कोलनी में, बाज़ारों में, कार्यालयों में, आदि आदि .. सड़कें युद्ध के मैदान जैसे लगने लगी हैं, पूरी भरी हुईं... कुछ कहने पर भले ही व्यक्ति गलत ही क्यूँ न हो, गोलियां तक दाग दी जाती हैं....!!!... यह सब देख कार हमने तो गाडी ही चलानी बंद कार दी है कुछ सालों से... फिर भी आये दिन घंटी बजा कुछेक पूछते हैं कि फलां फलां गाडी आपकी तो नहीं है? क्यूंकि उस के कारण हमार रास्ता रुका पडा है!!! और हम चैन की सांस ले कह सकते हैं, नहीं!!!... . ...
जी , एक एक के पास तीन तीन गाड़ियाँ -- बस खड़ी रहती हैं . इस चक्कर में पार्किंग फीस हमें देनी पड़ती है .
Deleteबहुत बढ़िया जानकारी पूर्ण आलेख....
ReplyDeleteराईट साइड में रोड पर पार्क की हुई एक वेन को फुल स्पीड से टक्कर मार दी थी........बोनट खुल गया था....
ReplyDeleteतब से जाना कोई लेन वेन नहीं होती हिन्दुस्तान में
:-)
(बाकयेदा लाइसेंस है हमारे पास जब १६ के थे तब से बना है :-))
सादर
हा हा हा ! सही नमूना दिया है .
Deleteबढ़िया जानकारी दी आपने ... आभार !
ReplyDeleteमसूरी मजा का इंतज़ार है
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी परक पोस्ट, खासकर भारतवासियों के लिए. क्योंकि वहाँ लाइसेंस लेने के लिए किसी तरह की लिखित और प्रेक्टिकल परीक्षा नहीं होती तो रूल्स पता कैसे होंगे. यहाँ तो ये परीक्षाएं पास करते करते कई बार लोगों की जिंदगी निकल जाती है.
ReplyDeleteशिखा जी, सही कहा . यहाँ टेस्ट होता भी है तो बन नाममात्र के लिए . सब कुछ फिक्स्ड होता है .
Deleteपरीक्षाएं पास करना तो बाएं हाथ का खेल है भारतीयों के लिए ☺
Deleteमजे के साथ काम की बात.
ReplyDeleteबढिया जानकारी
ReplyDeleteचलिए आपके साथ मसूरी हो आए ..इतना प्रसिध्य होने के बावजूद मैं आज तक नहीं गई ..
ReplyDeleteदर्शन जी , अभी तो मसूरी पहुंचे भी नहीं . मसूरी को सही में पर्वतों की रानी कहा जाता है .
Deleteट्रैफ़िक से सम्बंधित नियमों के बारे में जागरूकता अत्यंत आवश्यक है. आपने उनका सहयोग कर उम्दा जानकारी दी. वैसे समय समय पर इसके लिये अभियान चलाने की जरूरत अत्यंत महत्वपूर्ण है. अगर सिर्फ पैसे कमाना ही उद्देश्य है तो दुर्घटनायों में तो कमी आने से रही. वैसे इधर घुम्मकड़ी ज्यादा हो रही है? यात्रा संस्मरण पढ़ने में मज़ा आएगा. देखते हैं क्या नयी बात ढूंढ कर लायेंगे आप मसूरी के बारे में.
ReplyDeleteशुभयात्रा.
रचना जी , बच्चों की तरफ से लगभग फ्री हो चुके हैं . फिर गौर फरमाइए , घुमक्कड़ी का शौक तो है ही . :)
Deleteलेन ड्राईविंग के बारे में बढिया जानकारी .....
ReplyDeleteउम्मीद करता हूँ ..सफ़र सुहाना रहा होगा !
समय, साधन ,शौक और किसी अपने का साथ .????
शुभकामनाएँ!
बहुत बढ़िया सन्देश सर जी . मसूरी की तस्वीरो का इन्तेजार है
ReplyDeleteएशियन गेम्स में लोग यहाँ भी लेन में चलने लगे थे जुर्माने के डर से .यहाँ जितना मर्जी जुर्माना बढा दो क़ानून को लागू करने वाले ही चोर निकलतें हैं .सरकार भी ऐसे ही चल रही है .स्विस बेन्किये प्रधान मंत्री को हीओ रोबोट बनाए हुएँ हैं शेष सब तो मंद बुद्ध बालक के भी चमचें हैं जैसे विजय दिग्गी राजा जी उर्फ़ कोंग्रेसी चाणक्य .
ReplyDeleteहमें तो सड़कें बढ़िया लगती हैं पर ड्राइविंग से अपना दूर-दूर का रिश्ता नहीं है.किसी के साथ बैठते हैं सो डरते अलग हैं !
ReplyDeleteभारत में बहुधा लोंग ट्रैफिक नियमों को जानते नहीं हैं या फिर उसका पालन करने में रूचि नहीं रखते !
ReplyDeleteहमें भी इन लाईन्स का अर्थ पता नहीं था .
पडोसी राज्यों में सड़कों की चाल ढाल का अंतर हमें भी महसूस होता है जब भी मथुरा वृन्दावन जाना होता है .
अगली पोस्ट का इंतज़ार ज़रूर है पर उसके चक्कर में पिछली पोस्ट को अनदेखा कैसे कर दें :)
ReplyDeleteडाक्टर साहब लाइसेंस बाटने का गोरखधंधा तो खैर है ही ! यहां तो अक्सर सड़कों पर लेन ही नहीं छापते हैं , इस हिसाब से आपके यहां के सड़क मोहकमे वाले ठीक ठाक लगते हैं , जिन्होंने आपको पोस्ट लिखने लायक सड़के बना कर दे दीं हैं , यानि कि लेन की छपाई समेत :)
बढ़िया पोस्ट ! सार्थक पोस्ट !
अली सा , यह कमाल NHAI का है . लेकिन ऐसी सुन्दर सड़कें हाइवे पर ही मिलती हैं . गाँव और कस्बों की सड़कों की हालत तो यहाँ भी वैसी ही है .
Deleteलेकिन हाइवे पर इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है --एक तरफ के ६५ रूपये देने पड़े थे . :)
डाक्टर साहब चेक कर लेंगे हमारा कमेन्ट स्पैम में गया याकि कहीं और उड गया :)
ReplyDeleteबढिया जानकारी, हम तो कभी कभी लैन में चल ही लेते हैं। :)
ReplyDeleteये तो पूरा ड्राइविंग लेसन हो गया...
ReplyDeleteकाश इसे सब याद रखें और अमल करें...
"अक्सर हम हिन्दुस्तानियों की आदत होती है कि ज़रा सी रुकावट आते ही हम अपनी लेन छोड़कर जहाँ जगह मिली वहीँ घुस जाते हैं । इसीलिए अक्सर पलक झपकते ही ट्रैफिक जाम हो जाते हैं ।"
ReplyDeleteलोकतंत्र है , अपने नेतावों से सीखे है !:)
"अक्सर हम हिन्दुस्तानियों की आदत होती है कि ज़रा सी रुकावट आते ही हम अपनी लेन छोड़कर जहाँ जगह मिली वहीँ घुस जाते हैं । इसीलिए अक्सर पलक झपकते ही ट्रैफिक जाम हो जाते हैं ।"
ReplyDeleteलोकतंत्र है , अपने नेतावों से सीखे है !:)
ध्यान होगा,आईटीओ पर पहले एक इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड हुआ करता थाः
ReplyDeletePeople died in road accident
Last month:
Since January:
सड़क दुर्घटना के अधिकतर शिकार दु(उ)चक्के ही होते हैं। मगर आज भी,कई मोटरसाइकिल सवार भीड़ भरी सड़क पर सर्पीली चाल का मज़ा लेते देखे जाते हैं। इस लिहाज से,चार चक्के की अपनी लिमिटेशन है। मगर यही सीमा हाईवे पर और ख़ासकर पहाड़ी इलाकों में,जगह-जगह लगी उस बोर्ड की मर्यादा कायम रखती है जिसमें आग्रह होता है कि अपनी लेन में रहें और धीमे चलें,घर पर कोई आपका इन्तज़ार कर रहा है।
जी अभी भी है लेकिन शायद काम नहीं कर रहा है . युवाओं और कमर्शियल ड्राइवर्स को कंट्रोल करने की बहुत ज़रुरत है .
Deleteराह पकड़ ले एक चलाचल, पा जायेगा...
ReplyDeleteआप इतनी खुबसूरत न मिलाने वाली जानकारी देते हैं बस ध्यान पूर्वक पड़ना जरुरी होता है . अन्यथा लिखा जा सकता है खुबसूरत अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteलेकिन नहीं .......आप लिखते रहिये हम उम्र भर आपको पढ़ने आतुर मिलेंगे .
जहां सरकार और उसके सहयोगी दल ही लगातार लेन बदल रहें हों वहां लें में कौन चले ,kyon चले .
ReplyDeleteJCJune 15, 2012 6:45 AM
ReplyDeleteभारतीय मानसिकता का आपके बताये, "... इंडिकेटर देते हुए लेन बदल लीजिये लेकिन ध्यान रखिये कि कोई गाड़ी उस लेन में तेजी से तो नहीं आ रही ।" के सन्दर्भ में याद आया एक मित्र ने बताया था कि कैसे एक भारतीय सज्जन, जर्मनी में कहीं, धीरे धीरे गाडी चला रहे थे तो उस लेन में उन से आगे उनसे और भी धीमी गति से एक गाडी जा रही थी... उन्होंने सोचा कि वो जल्दी से लेन बदल उस से आगे निकल फिर वापिस उसी लेन में आजायेंगे... उन्होंने पीछे मुड के देखा तो उन्हें उस दूसरी लेन में गाड़ी अभी काफी दूर लगी... किन्तु उन्होंने उस की तेज गति की संभावना पर ध्यान नहीं दिया... और नतीजा यह हुवा कि उस गाडी ने उन की गाडी को पीछे से टक्कर ही नहीं मारी, उस दुर्घटना में कुल १२ गाडी एक के बाद एक टकराती चली गयीं... और तब जाकर उस लेन की अन्य गाड़ियां ब्रेक लगा रुक पायीं.
जे सी जी , लेंन ड्राइविंग में भी विशेषकर हाइवे पर बहुत ध्यान रखना पड़ता है. विदेशों में अधिकतम गति सीमा के साथ न्यूनतम सीमा भी होती है वर्ना चालान कट सकता है. इसीलिए वहां ड्राइविंग टेस्ट पास करने के मान्प्दंड बहुच ऊंचे हैं . लेकिन एक लाइन में तेज चलने पर गलती बहुत भारी पडती है.
DeleteJCJune 15, 2012 7:28 AM
Deleteभारत में राईट हैण्ड ड्राइविंग और अमेरिका में लैफ्ट हैण्ड... और इस का असर अपने दामाद के माध्यम से देखने का मौक़ा मिला, जो दिल्ली में '९७ से पहले कुछ वर्ष गाडी चलाने का अनुभव भी प्राप्त कर चुका था... जब एक बार वो अकेला अमेरिका से २००६-७ में आया हवा था और हम दोनों को एक रात दिल्ली में ही, १६-१७ किलोमीटर दूर, बेटी के घर खाने पर जाना था और जाते समय ट्रैफिक काफी था... वहाँ के कानून दिल्ली में लगा जब वो अगली गाडी के उतनी पीछे रखता था कि उसके पहिये साफ़ दिखें तो कोई न कोई दुपहिय्या हमारे बीच आ जाता था! मैं उसको याद दिलाता था दिल्ली कि बम्पर-टू-बम्पर ड्राविंग का... किन्तु उसके मस्तिष्क में वो अब आना असंभव था और सारे रास्ते वो गाली देते हुवे चलता गया!
सही कहा जे सी जी . बाहर वालों को यहाँ ड्राईव करने में बड़ी दिक्कत आएगी . यहाँ सही के साथ गलत ड्राईविंग आना भी ज़रूरी है . :)
DeleteJCJune 15, 2012 6:30 PM
Deleteविदेशियों की कुछेक टिप्पणियाँ इंटरनेट पर ही देखने को मिलीं थीं... उन्होनें आम तौर पर यह पाया कि हाइवे पर यहाँ सभी गाड़ियां सड़क के बीच में चलते हैं... और जब दोनों तरफ से आमने सामने निकट आ जाते हैं, दोनों गाडी को बांयें ओर कर, पास कर, फिर से बीच में आ जाते हैं!!!
१९७० के दशक में कोलकाता में काम से जा मैंने दक्षिण कोलकाता में एक स्थान पर एक लडके को सड़क के किनारे तौलिया बिछाए देखा जिसमें १० पैसे के कई सिक्के दिखाई दिए... और आश्चर्य हुवा जब कुछेक ट्रक चालकों को चलते चलते सिक्का उस तौलिये पर फैंकते देखा!!! क्यूंकि तब मेरा छोटा भाई भी कोलकाता में ही कार्यरत था, सो उस से शाम को पोछने पर पता चला कि सारे ट्रक अनुमोदित भार से अधिक माल ले जा रहे होते हैं, इस कारण वो तौलिये पर सिक्का डालते हैं जिससे उनकी चैकिंग न हो... और लडके को देखने वाले को लगता है कि वो भिखारी है!!! ....
आजकल ज्यादातर हाइवेज डबल रोड वाले हैं . इसलिए इस तरह की समस्या तो नहीं है . लेकिन ड्राइविंग सेन्स की कमी तो रहती है . वज़ह है अनट्रेंड ड्राइवर्स . और अमीरों का अग्रेसिव बिहेवियर .
Deleteबनारस की सड़कों पर गाड़ी चलाइये मजा आ जायेगा।:)
ReplyDeleteकुल्लू और मनाली के बीच बहती पहाड़ी नदी में रुक कर, पैर पानी में डूबो कर, कुछ पल ठहरे कि नहीं?
रोहतांग पास की बर्फिली वादियों में बहुत भीड़ है। रास्ते में बर्फिली दीवारें कारों के धुएँ से काली पड़ती दिखलाई देती हैं। मुझे वहाँ जाकर लगा था कि ये वादियाँ हमसे बहुत नाराज हो रही होंगी। कहां से आ गये ये कार वाले!!:)
मनाली पिछली बार २००६ में गए थे . तब रोहतांग पास पर बर्फ कम थी . लेकिन इस वर्ष तो जून में १० सेंटीमीटर बर्फ पड़ी है . लेकिन रोहतांग से नीचे ड्राइव करते हुए सबसे ज्यादा मज़ा आया था .
Deleteमुझ तो उन रास्तों पर ड्राइवर भगवान लग रहा था।:)
Deleteहमें भी लगा था जब पहली बार पहाड़ों में गए थे :)
Deleteओये होए .......क्या बात है .....!!!!!
ReplyDeleteहम भी चेरापूंजी जाकर आये हैं ....एक छोटी सी भयंकर गुफा से गुजर कर भी ....जिसमें सेसिर्फ पतला दुबला इन्सान ही पार हो सकता है
आप भी जरुर आइये देखने .....
बहुत अच्छी जगह है .....!!
जी आपने पार की या नहीं ! :)
Deleteदार्जिलिंग गैंगटॉक जाते हुए जाने का मूड था लेकिन फिर टीसटा नदी में राफ्टिंग करके ही आगे चले गए .
Its All About Caring and Life. Thank You For Sharing. Pyar Ki Kahani
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