हमें तो मूल रूप से यही अंतर नज़र आया -- फ़ेसबुक फास्ट फ़ूड जोइंट की तरह है जहाँ तुरंत खाना परोसा जाता है लेकिन सेहत के लिए सही नहीं होता . जैसे लन्दन में होने वाले ओलंपिक्स को मैक डोनाल्डस स्पोंसर कर रहा है और वहां के डॉक्टर्स ने ऐतराज़ जताया है -- ओलंपिक्स को स्पोंसर , जंक फ़ूड खिलाने वाले क्यों कर रहे हैं ! इसी तरह फ़ेसबुक पर जंक मेटीरियल बहुत मिल जायेगा जिससे आपका हाजमा ही ख़राब होगा . फ़ेसबुक पर सार्थक लेखन उसी तरह अल्पसंख्या में हैं , जैसे देश में पारसी आबादी .
ब्लॉग्स पर सभी तरह का लेखन हो रहा है . अधिकतर लोग अपनी ओर से बढ़िया लिखने का प्रयास करते हैं . सभी तरह की सामग्री भी मौजूद है . लगभग हर विषय पर आपको कोई न कोई लेख , जानकारी या लिंक मिल जायेगा .
लेकिन जिस तरह फ़ेसबुक पर कुछ लोग अच्छा लिखने की कोशिश करते हैं भले ही अल्पसंख्यक हैं , उसी तरह ब्लॉगिंग में भी कुछ लोग यदा कदा ऐसे विषयों पर अनावश्यक बहस शुरू कर दते हैं जिससे पूरे ब्लॉगजगत का माहौल ख़राब हो जाता है .
आजकल जो एनोटोमिकल लेख या कवितायेँ पढने को मिल रही हैं , वे निश्चित ही सुस्वाद नहीं कही जा सकती . किसी ने एक कविता लिखी , मित्रों ने हाय तौबा मचा दी . मित्रों के मित्र अचानक शत्रु जैसे व्यवहार करने लगे .
ऐसे में टिप्पणियों का बहुत बड़ा महत्त्व होता है . विवादास्पद लेख पर एक बार तो सैंकड़ों टिप्पणियां आ जाएँगी . लेकिन विषय को लम्बा खींचने पर अधिकांश समझदार ब्लॉगर कन्नी काट जाते हैं . यह ब्लॉग पर आई टिप्पणियों को देखकर ही पता चल जाता है , पोस्ट पसंद आई या नहीं .
ब्लॉगिंग में भी फ़ेसबुक की तरह मित्रों का एक समूह बन जाता है . फर्क सिर्फ यह है --फ़ेसबुक पर आप पहले मित्र बनाते हैं , फिर उनसे वार्तालाप होने लगता है . ब्लॉग पर धीरे धीरे एक दूसरे के लेखन से प्रभावित होकर पाठक आपस में मित्र बनते हैं . लेकिन जब कोई मित्र ही ऐसी पोस्ट लिख दे जिस से आप इत्तेफाक न रखते हों या सहमत न हों , तब क्या किया जाए ! सहमत आप हो नहीं सकते , निंदा करने से अक्सर लोग बुरा मान जाते हैं . ज़ाहिर है , कवियों की तरह ब्लॉगर भी अत्यंत संवेदनशील होते हैं . ऐसे में चुप रहना ही सही लगता है . हालाँकि इसे भी भी लोग कायरता की निशानी कहने लगते हैं . लेकिन चुप रहना या टिप्पणी न देना भी असहमति का सूचक है .
ज़रा सोचिये , आप ब्लॉगिंग क्यों करते हैं ?
* अपनी अभिव्यक्ति की तमन्ना को पूरा करने के लिए ?
* या ज्ञान बाँटने के लिए ?
* परोपकार या सामाजिक सेवा करने के लिए ?
* मित्र बनाने के लिए ?
* या टाइम पास करने के लिए ?
भई हम तो ब्लॉगिंग करते हैं -- डीस्ट्रेस (तनावमुक्त) करने के लिए . हमारे लिए तो यह एक मेडिटेशन जैसा कार्य है . इसीलिए प्रोफाइल में लिखा है --हँसते रहो , हंसाते रहो . जो लोग हँसते हैं , वे अपना तनाव भगाते हैं . जो हंसाते हैं , वे दूसरों के तनाव हटाते हैं .
सभी मित्रों से यही अनुरोध है -- कृपया ब्लॉगिंग को फेसबुकिया न बनायें .
बढ़िया विश्लेषण आपकी हर एक बात से १०००% सहमत.
ReplyDeleteब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का माध्यम है। इसमें सार्थक-निरर्थक खोजने के पचड़े में नहीं पड़ना चाहिये। जिसको जो सुख मिलता है अभिव्यक्ति में वो लूटना चाहना।
ReplyDeleteब्लॉगिंग के अच्छे-खराब, उद्देश्यपूर्ण-बकवास होने की बहुत चिन्ता करना बेफ़ालतू का चौधरी बनना है। लोग अपने को अभिव्यक्त करें। अच्छा लगेगा तो पढ़ेंगे,प्रतिक्रिया देंगे। नहीं अच्छा लगेगा कट लेंगे।
तथाकथित खराब/बकवास/भड़काऊ लिखने वालों का भी ब्लागिंग पर उतना ही हक है जितना अच्छा/शानदार/ अद्भुत लिखने वालों का। आखिर खराब लिखने वाले कहां जायेंगे। वे भी तो इसई दुनिया के वासिन्दे हैं। खराब लिखने के फ़ायदे की अनदेखी नहीं करनी चाहिये।
अनूप जी -- sadism और perversion में भी बड़ा सुख मिलता है ( सिर्फ कुछ लोगों को ) . इसका मतलब क्या जैसे भी सुख मिले , चलेगा ! :)
Deleteलिंक तो खुल नहीं रहा .
अनूप जी से सहमति के बाद !
Deleteडाक्टर साहब ,
जिन्हें तनाव ना होता उनको हम अपने लेखों से तनाव में डालने का काम तो कम से कम कर ही सकते हैं ताकि वे बाद में ब्लाग लेखन कर तनाव मुक्त हो सकें :)
जी यही तो । बिल्कुल कर सकते हैं । और कुछ लोग बखूबी कर भी रहे हैं । :)
Deleteलिंक यह रहा:
Deletehttp://hindini.com/fursatiya/archives/513
sadism और perversion वालो का भी ब्लागिंग पर उतना ही हक है जितना तथाकथित अच्छे /भले और परोपकारी लोगों का.
अनूप जी से असहमत होने का मन करते हुए भी सहमत। क्योंकि मन के करने से क्या होता है, सही वही होता है जो दिमाग कहता है। अनूप जी दिमाग वाली बात कहे हैं जो सोलह आने सही है।
Delete।
:):):)
Deletepranam.
यह लेख ब्लॉगिंग पर गहनता से सोचने को प्रेरित करता है .....हम सोचें तो सही हमें अपने मंतव्य भी समझ आ जायेंगे की हम ब्लॉगिंग क्योँ कर रहे हैं ....वैसे मेरे लिए ब्लॉगिंग कतई टाइम पास का साधन नहीं है ......आपका लेख सराहनीय है ...!
ReplyDeleteअभिव्यक्ित सब का अधिकार है तो डॉक्टर साहिब को रोकना कहां तक उचित है, उनको ठीक लगा उन्होंने लिखा। मै डॉक्टर साहिब से सहमत हूं
ReplyDeleteसारगर्भित आलेख |सार्थक ब्लोगिंग का आह्वान कर रहा है आपका लेख ....शुभकामनायें
ReplyDeleteसंख्या 3-"* परोपकार या सामाजिक सेवा करने के लिए ?"-यही उद्देश्य है हमारे ब्लाग एवं फेसबुक लेखन का।
ReplyDeleteनेक काम है जी । निस्वार्थ भावना से नेकी करते रहें ।
Deleteब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का एक सुविधाजनक साधन है , अब प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर करता है कि कौन इसका कैसा इस्तेमाल करता है .नवीन जानकारियां , उत्कृष्ट साहित्य पढने को मिला यहाँ , और सार्थक अभिव्यक्ति की प्रेरणा भी!
ReplyDeleteहमें तो आपका नजरिया भी ठीक लगा , तनाव हटाओ , खुशियाँ बांटो !
वाणी जी , हँसते हंसाते हुए भी यदि काम कीं बात कह जाएँ तो सोने पे सुहागा हो जाता है ।
Deleteफेसबुक तो फेकबुक ज्यादा लगता है1
ReplyDeleteब्लागिंग से समय तो कटता ही है और खुद को तनावमुक्त बनाया जा सकता है ... आभार
ReplyDeleteआपके अवलोकन से सहमत है, अभिव्यक्ति का कारण क्या है यह तो दो तीन वर्ष निकलने के बाद ही पता चलता है।
ReplyDeleteप्रवीण जी , हम तो कारण से ही शुरू हुए थे । :)
Deleteअपनी अभिव्यक्ति की तमन्ना को पूरा करने और तनाव मुक्त रहने के लिए ही ब्लोगिग करता हूँ,..
ReplyDeleteप्रभावित करता सुंदर आलेख ....
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
ब्लॉग्गिंग क्यों करते हैं,
ReplyDelete* अपनी अभिव्यक्ति की तमन्ना को पूरा करने के लिए ?
* या ज्ञान बाँटने के लिए ?
* परोपकार या सामाजिक सेवा करने के लिए ?
* मित्र बनाने के लिए ?
* या टाइम पास करने के लिए ?
यक्ष प्रशन हैं डॉ साहेब,
अभिव्यक्ति की तमन्ना = :) यहीं तो देश मार खा रहा है
ज्ञान बांटने के लिए = जनाब अब तो पान की दूकान पर भी ज्ञान बांटने की मनाहीं है.
परोपकार = ये शब्द नेताओं के लिए ठीक है.
मित्र बनाने = यहाँ फेसबुक से बाज़ी नहीं मारी जा सकती.
टाईमपास = :) आज टाईमपास की सोच रहे हैं = कल टाइम हमें पास करेगा..
ब्लॉग्गिंग क्यों करते हैं, ये प्रशन जब सर पर मंडराने लगता है तो मै पोस्ट लिखना छोड़ देता हूँ,
बढिया ब्लॉग्गिंग के लिए साधुवाद.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteदीपक जी , कम टीप करते हैं , शायद इसीलिए धोखा खा गए । अरे भाई , कम टीप करने वाले की टीप को गूगल स्पैम में डाल देता है । शायद उसे भी पहचानने में मुश्किल होती है इंसानों की तरह । :)
Deleteपहले तीन से आपत्ति नहीं । लेकिन फेसबुक के मित्र फेक होने की सम्भावना लिए रहते हैं । ब्लॉगिंग में अपरिचित से हम बात नहीं करते । टाईमपास वाली बात चलेगी । आखिर वक्त पर किसका जोर चला है । :)
वैसे ब्लॉगिंग से बहुत से लोगों को आत्मसंतुष्टि मिलती है , हमें भी । ठीक वैसे जैसे मंच पर खड़े होकर लोगों को हंसा कर मिलती है ।
हम तो ब्लॉग्गिंग अपनी अभिव्यक्ति की तमन्ना को पूरा करने के लिए करते हैं....................
ReplyDeleteऔर बहुत खुशी मिलती है..................
ब्लॉगर फ्रेंड्स की टिप्पणियाँ सातवे आसमां पर पहुंचा देतीं हैं....
बहुत बहुत खुश और संतुष्ट हूँ.......अपने मन के भावों को आप सब तक पहूंचा कर.
फेसबुक पर तो अपना आईडी ही नहीं है (तांका झांकी का अड्डा है फेसबुक तो )
:-)
सादर.
जी सही कहा ।
Deletenice
ReplyDeleteआप ब्लॉगिंग क्यों करते हैं ?
ReplyDeletehttp://mypoeticresponse.blogspot.in/2008/12/blog-post_6848.html
2008 mae yahii puchha thaa kuch jawaab haen is post par
रचना जी , पढ़ा । अंत में यही लगा कि इस बहाने सब कुछ न कुछ दूसरों के साथ बांटते ही हैं --दुःख , सुख , संस्मरण , ज्ञान , जानकारी और हंसी भी ।
Deleteलेकिन फेसबुक पर ? ??
i am not on facebook i am on google plus also only to share naari blog links
Deletefor me social networking sites are waste of time becuase i came in the virtual world as i had enough social circle and i wanted to read peoples thought accross the globe
since i am not facebook i cant comment on what people do their and why
bahut badhiya likha aapne.jinhe pathan-paathan ki aadat si ho gai ho,unke liye bloging behtar vikalp ho sakta hai.
ReplyDeleteअगर अभिव्यक्तियों पर मिलने वाली टिप्पणियों/ समीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए रचनाओं की क्रिकेटिया फोर्मेट्स से तुलना की जाए तो पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएं टेस्ट क्रिकेट की तरह, ब्लॉग पर वन डे की तरह और फेसबुक पर बीसमबीस की तरह हैं. हर कोई कम समय में अधिक से अधिक पा लेने की जुगत में हैं जिसमे कि ये अत्याधुनिक तकनीकें सहायक सिद्ध हो रही हैं. समयाभाव भी एक कारण हो सकता है. वैसे टिप्पणियों के मद्देनज़र कहा जाए तो प्रशंसा किसी भी व्यक्ति की रचनाशीलता एवं प्रतिभा के लिए उत्प्रेरक का काम भी कर सकती है और जंग लगाने का भी, निर्भर करता है कि रचनाकार का उस टिप्पणी के प्रति नजरिया क्या है. सच कहूं तो समय, रचना के स्तर, उसकी प्रभावशीलता और सम्प्रेषण की आवश्यकता इत्यादि को ध्यान में रखते हुए मैं इन तीनों ही फोर्मेट्स में यकीं रखता हूँ. कहा भी गया है कि जहाँ 'काम आवे सुई, का करे तलवार..'
ReplyDeleteक्षमासहित आपके विचारों से ना तो पूरी तरह असहमत महसूस कर पा रहा हूँ और ना ही सहमत क्योंकि विश्लेषण में अभी भी कई पहलू छूटे नज़र आ रहे हैं. हाँ मानसिक तनाव कम करने वाली बात एकदम सही है, मगर मैं तो यहाँ भी फिसड्डी रह गया.. आजकल इतनी रचनाएं पेंडिंग हैं कि कुछ कमिटमेंट्स को याद करा कर तनाव की जननी बन रही हैं. :(
दीपक जी , बेशक एक पोस्ट में सारा विश्लेष्ण नहीं समां सकता । लेकिन यहाँ के फेसबुक मित्रों की गतिविधियाँ देखिये , आप भी विचार बदल लेंगे ।
Deleteअलग अलग पथ बतलाते सब
ReplyDeleteहम तो एक बताते हैं ..
राह पकड़ तूं एक चलाचल
पा जायेगा मधुशाला !
ब्लोगिंग समग्रता को संजोये हुए है जबकि ...
ReplyDeleteवही अंतर सार्थक है जो आपने बताया फास्ट फ़ूड वाला
ब्लॉग्गिंग में जहाँ अपने भाव,विचार और दृष्टिकोण को
ReplyDeleteअभिव्यक्त करने का अच्छा अवसर मिलता है,दूसरी ओर
दूसरों के भाव,विचारों और दृष्टिकोण को जानने का व
उनसे अच्छी प्रकार से परिचित होने का भी मौका मिलता है.
यदि ब्लॉग्गिंग में स्वस्थ 'वाद' हो और 'तप',यज्ञ','दान'
का दृष्टिकोण हो तो ब्लॉग्गिंग आधुनिक युग का श्रेष्ठ वरदान ही है.
JCMay 2, 2012 09:06 AM
ReplyDeleteJCMay 2, 2012 09:01 AM
फरवरी २००५ तक तो मुझे पता ही नहीं था कि ब्लॉग भी कुछ होता है... उस समय तक कंप्यूटर के माध्यम से मैं केवल समाचार पत्र (टी ओ आई) में, और 'एन डी टी वी' में, अपने मस्तिष्क में उठी तरंगों के आधार पर कुछेक टिप्पणियों को इमेल से भेज देता था... सम्पादक कुछेक विचारों को काट-पीट कर छाप भी देते थे, जिस से आनंद नहीं आता था... फिर समाचार पत्र से ही अंतरजाल पर ब्लौगरों की उपस्थिति का पता चला... और तब से मैंने केवल एक ब्लॉग पर टिप्पणी डालना शुरू किया और आज तक उसी ब्लॉग के हर पोस्ट में कुछ न कुछ विचार भेज देता हूँ, किन्तु फिर हिंदी का अभ्यास पाने हेतु एक ब्लॉग से दूसरे कुछेक ब्लॉग पर लिखता आ रहा हूँ... और कहावत भी है की 'पसंद अपनी अपनी/ ख़याल अपना अपना', इस लिए 'नेकी कर/ कुवें में डाल' को मान टिप्पणी डाल देता हूँ...
नोट - जैसा अधिकतर हो रहा है, गूगल मेरी टिप्पणी को स्पैम में डाल देता है, और मुझे इस कारण सेव कर फिर से डालना पड़ता है...
जे सी जी , गूगल आपसे बहुत मेहनत करवाता है । कहीं उनका मतलब यह तो नहीं कि आप लिखते क्यों नहीं !
Deleteसेंट औगस्तीन ने कहा कि आदमी बाहरी संसार के बारे में सब कुछ जानना चाहता/ जानता है किन्तु स्वयं अपने बारे में कुछ नहीं जानता, और दूसरी ओर, हम भाग्यशाली हैं कि हमारे पूर्वज स्वयं को जानना ही मानव जीवन का उद्देश्य बता गए!
Deleteगीता में कहा गया कि हर गलती का मूल अज्ञान है, और उपदेश भी है कि (क्यूंकि प्रकृति में विविधता प्राकृतिक है), बाहरी संसार, गर्मी-ठण्ड; दुःख-सुख; आदि से विचलित न हों और हर परिस्थिति में स्थित्प्रज्ञं रहे (जो कहना तो आसान है, किन्तु कर पाना अत्यंत कठिन, वर्तमान में शायद कलियुग के कारण जब मानव क्षमता का सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाना प्राकृतिक माना गया है) ... सेंट मैथ्यू भी कह गए कि अन्य को जज मत करो क्यूंकि ऐसा न हो कि आपको भी आपके ही मापदंड द्वारा तोला जाए... इत्यादि, इत्यादि... इस संसार में यदि एक ओर मुनि भी हैं तो उपदेशक भी अपनी अपनी क्षमतानुसार अनेक... और जैसा खुश्दीप्प जी ने भी कहा, और कहावत भी है "बोलने से पहले दो बार सोचिये"...
JCMay 2, 2012 07:11 PM
Deleteजहां गूगल अंकल का प्रश्न है, वो एक पश्चिमी विचार अर्थात राक्षसी प्रकृति का है, अर्थात इस का काम ही आम आदमी की भटका भटका कर अनेक परिक्षा ले कर ही उसे 'परम सत्य', अमृत शिव तक पहुँचने देना है...
राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य का निवास स्थान मानव कंठ में जाना गया है, अर्थात वो मानव धड और सर, पापी पेट और मस्तिष्क के बीच सांकेतिक भाषा में दिल्ली पुलिस के सडकों में लगाए गए अवरोधक समान है - जिनका वास्तविक उद्देश्य तो 'चोर' को पकड़ना है, किन्तु 'साधू' को ही अधिकतर पकड़ते हैं (याद है आपने भी कैसे अपनी जान छुड़ाई थी???)...:)
पुनश्च- देखा! 'हठ योगी' की ही आवश्यकता है अपना पक्ष रखने के लिए, और त्रुटी सुधार हेतु भी - खुशदीप भाई का नाम भी कुछ का कुछ बना दिया था अंकल ने...:(
खुश रहने के लिए :):)
ReplyDeleteलेखक तो ब्लागिंग ही करता है, फेसबुक पर तो केवल रिश्ते निभाए जाते हैं।
ReplyDeleteAgreed...cent percent..
Deleteफेसबुक और ब्लॉगिंग दर-असल बिलकुल अलग 'टूल' हैं.जहाँ फेसबुक चलते-फिरते ,मौज-मस्ती से या गंभीर-विमर्श के लिए तीनों प्रारूपों में फिट है,पर यहाँ विमर्श ज़रा अल्पकालिक है.वहीँ ब्लॉगिंग मनोरंजन और गंभीर मुद्दों पर स्थाई विमर्श है.फेसबुक 'नाश्ता' तो ब्लॉगिंग 'लंच' है.सम्पूर्ण तृप्ति यहीं मिलती है,पर छोटी-मोटी या निजी खुशियों को आप ब्लॉगिंग में शेयर नहीं कर सकते.
ReplyDelete...अच्छे-बुरे दोनों जगह हैं,आखिर इसी समाज से हैं,यह आप पर निर्भर है कि आप किन लोगों के साथ हैं.कई बार किसी मुद्दे को लेकर विवाद में रचनाकार के नाते कूदना पड़ता है .
@लेकिन चुप रहना या टिप्पणी न देना भी असहमति का सूचक है .
डॉक्टर साहब, मौनं हि स्वीकृतिलक्षणं भी कहा गया है.silence is half acceptence
..हाँ नहीं तो...!
त्रिवेदी जी , यह मुहावरा ब्लॉगिंग में लागु नहीं होता । :)
Deleteडॉक्टर साब,यह सही है कि हर मुहावरा सब जगह फिट नहीं हो सकता,पर के जगह ऐसा हो भी सकता है.
Delete...हाँ,ब्लॉगिंग का एक फायदा कुछ लोग ज़रूर उठाते हैं कि यदि उनको ज़्यादा नोटिस नहीं लिया जाता तो आप जैसे हिट-ब्लॉगर के यहाँ लंबी-लंबी टीप देकर अपने को पढ़वा सकते हैं.कुछ लोग लिंक या पूरी पोस्ट ही चेंप देते हैं !
चलिए फायदा ही हो रहा है , नुकसान तो नहीं . :)
Deleteमैं भी ब्लॉग्गिंग खुद को डिस्ट्रेस करने के लिए करता हूँ... और फेस्बुकिंग... बेवकूफों को गरियाने, तंज और ताना मारने के लिए.. यह दोनों मेरे लिए दो अलग अलग चीज़ें हैं.. जैसे मैं अपने ब्लॉग पर कभी भी कोई भी फ़ालतू चीज़ नहीं लिखता.... कुछ कभी डाला भी तो वो भी टाइम बार्ड था.. इसीलिए कोई मैटर नहीं.. फेसबुक में यह है कि मैं कुछ भी कर सकता हूँ... और ब्लॉग्गिंग में नहीं.. फेसबुक बेवकूफों का अड्डा है.. तो वहां बेवकूफानापन ही अच्छा लगता है.... वैसे राईटिंग मैं खुद को डिस्ट्रेस करने के लिए करता हूँ.. तो मेरी राईटिंग बेसिकली पेपर और पेन पर होती है.. और बाद में ब्लॉग पर.. ब्लॉग पर यह भी है.. कि हमें काफी लोग मिलते हैं.. और वो सिर्फ ब्लॉग पर ही अच्छे लगते हैं..
ReplyDeleteजब हम उनसे पर्सनली मिलते हैं.. तो ज़मीन आसमान का डिफ़रेंस होता है.. हमें ऐसा लगता है कि यह वही इंसान है जो ब्लॉग पर लिखता है? मतलब कथनी और करनी में डिफ़रेंस होता है... शक्ल सूरत में भी.. . हाँ! यह भी है कि आप जैसे लोग भी मिलते हैं जिन्हें हम खोना नहीं चाहते.. पर आप जैसों को हम अपनी उँगलियों पर ही गिन सकते हैं.. ब्लॉग पर टिपण्णी देनी अब बंद कर दी है... मैंने.. कुछ सेलेक्टेड हैं आप जैसे.. क्यूंकि यहाँ ज़्यादातर तो जाहिल हैं.. जिनके पास नाम की डिग्रियां हैं.. लेकिन साइकोलॉजिकल सेन्स नहीं.. देखिये! पढ़ा लिखा होना और नौलेजेबल होना दोनों में ज़मीन आसमान का डिफ़रेंस है.. आप भले ही पी.एच.डी. हों लेकिन आपकी सब्जेक्ट डेप्थ और सेन्स ऑफ़ अंडर स्टैंडिंग ना हो .. तो सारी डिग्रीज़ बेकार हैं....
तो ऐसे लोगों से इंटरेक्शन करके क्या फायदा? टिप्पणी का महत्व भी तभी है जब सामने वाला दिमाग में आपके लेवल का हो.... क्यूंकि होता यह है कि आपने तो अपने लेवल पर सही कहा और सामने वाला समझा क्या... ? अपब्रिन्गिंग का बहुत असर होता है... और यहाँ उसका जजमेंट आप नहीं कर सकते.. देखिये! मेंटल लेवल बहुत मायने रखता है.... यहाँ कई लोग ऐसे भी हैं.. जो आपकी लाइफ स्टाइल को डिफरेंट समझते हैं और खुद की दूसरी.. तो आप दिमाग से जजमेंट नहीं कर सकते.. जो आपके लिए बेसिक नेसेसिटी है वो किसी और के लिए हाय-फाय... तो कंटेंट ऑफ़ ब्लॉग्गिंग यह भी डिफरेंट हैं.. फैमिली बैकग्राउंड भी अलग अलग हैं.. तो हर इंसान के सोचने का नजरिया भी अलग है... और समूह तो मैं यहाँ बनाता नहीं.. (मैं खुद ही समूह हूँ... लीडर कभी समूह नहीं बनाता... वो तो फौलोवर्स बनाते हैं.. ).. और मेरा तो यह है कि मेरा अगर कोई मित्र है यहाँ पर...अगर उसने गलत भी लिखा है ... तो मैं उसको सही ठहराऊंगा... उस वक़्त... लेकिन अकेले में उसे समझाऊंगा.. लेकिन सपोर्ट सिर्फ मित्र होने पर ही लूँगा.. अभिव्यक्ति की तमन्ना तो पूरी होती ही है.. और ज्ञान का जो सवाल है.. तो वो आपकी पर्सनैलिटी ही बता देती है.. और लेखन में झलकता है.. (जो कि आपमें है)...
परोपकार और सामाजिक सेवा तो यहाँ होती है है.. किसी न किसी रूप में.. मित्र मैं अब ब्लॉग जगत में नहीं बनाता.. (क्यूंकि मुझे इन्तेलिजेंशिया, नॉलेज वाले और खूबसूरत लोग ही अच्छे लगते हैं.. औरे इन सबकी कमी यहाँ बहुत ज़्यादा है.. जो इस लायक हैं वो सब मेरे मित्र हैं) ... झगडा तो मैं जाहिलों और सेमी-लिटरेट लोगों से करता हूँ.. और टाइम मेरे पास अब नहीं है.... फ़ालतू जगह देने के लिए.. ब्लॉग पढता हूँ.. लेकिन टाइम नहीं देता हूँ.. है ही नहीं.. जो चीज़ है नहीं तो वो दूंगा कहाँ से? टिप्पणी आपके पोस्ट पर लम्बी इसीलिए हो जाती है.. क्यूंकि आप लिखते ही ऐसा हैं... इंटेलेक्चुयल टाईप.. आप को बोलना नहीं पड़ता है और आपकी हिंदी भी नोर्मल होती है..
बहुत खूब लिखा है महफूज़ भाई । सहमत हूँ ।
Deleteबस डिस्ट्रेस को डीस्ट्रेस कहना सही रहेगा । :)
आपसे सहमत !
ReplyDeleteब्लागिंग है - 'अभिव्यक्ति की मानव -सुलभ तृष्णा' की परितृप्ति का साधन !
नहीं जी इतना ज्ञान कहाँ कि फेसबुकिया ब्लोगिंग कर सकें. आप के विश्लेषण से सहमत.
ReplyDeleteपोस्ट पर अच्छा विमर्श हुआ...
ReplyDeleteदिल को जो अच्छ लगे अभिव्यक्ति के लिए वही माध्यम अपनाया जाए...लेकिन अपने अंदर एक संपादक को हर जगह जागृत रखा जाए..
रही फेसबुक पर अपडेट करने की बात....तो एक दिन ऐसा भी न आ आ जाए कि दूल्हा सुहागरात पर भी अपडेट करने लगे कि अब घूंघट उठा रहा हूं...और लाइक-कमेंट करने वाले आगे का हाल जानने के लिए नेट से गोंद की तरह चिपके रहें...
जय हिंद...
खुशदीप जी की बात गौर करने लायक है....ये ख़तरे कुछ अनाड़ियों ने ज़रूर पैदा कर दिए हैं !
Deleteहा हा हा ! लोग हनीमून के तो डालने ही लगे हैं , सुहाग रात के नज़ारे भी दूर नहीं .
Deleteसही कहा आपने डॉ साहेब , ब्लॉग या फेसबुक अच्छे लोगो के लिए अच्छा और गलत लोगो के लिए गलत हैं अब आप पर हैं की आप इसे कैसे लेते हैं ...मुझे यहाँ काफी हद्द तक अच्छे ही लोग मिले हैं ...
ReplyDeleteडॉ साहब ,विज्ञान को जन मन तक अपनी भाषा में पहुंचाना तीस साल पुरानी सनक रही है .ईश निंदा परनिंदा डिमेंशिया आदि सभी से बचे रहते हैं .भगवान् बचाए अर्वाचीन जैविक अश्त्र विषकन्याओं और विष दंतों,विष महा -पुरुषों से . से ,टोक्सिक लेखन से .फिर चाहे वह ब्लोगिया हो या फेस्बुकिया .सवाल नीयत का है .उद्देश्य का है .आप क्यों आयें हैं ब्लोगिया बनके ?आपकी सद- भावना का समादर .
ReplyDeleteबुधवार, 2 मई 2012
" ईश्वर खो गया है " - टिप्पणियों पर प्रतिवेदन..!
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आरोग्य समाचार :
लम्बी तान के ,सोना चर्बी खोना
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_02.
आरोग्य समाचार :
जब भी कॉलर उठा, कमीज़ के ऊपरी दो बटन खोल सीटी बजाते चले जाने का दिल करता है तो मैं भी फ़ेसबुक पर हो आता हँ ☺
ReplyDeleteयह आलेख भी पढ़ा जा सकता है
Deletehttp://www.theatlantic.com/magazine/archive/2012/05/is-facebook-making-us-lonely/8930/
उपरी दो बटन खोल , होठों को करके गोल , सीटी बजाते --- :)
Deleteडाक्टर साहब आपकी इस पोस्ट से मैं काफी हद तक सहमत हूँ ... बस एक बात मेरे समझ मे नहीं आती जब हम से इस ब्लॉग जगत मे इस कदर घुलमिल गए है कि एक परिवार सा अहसास होता है ऐसे मे यहाँ के माहौल से कैसे अछूते रह सकते है ... माना चुप रहना या टिप्पणी न देना भी असहमति का सूचक है पर चुप कब तक रहा जाये आखिर हर चीज़ की कोई सीमा होती है और ऐसा भी तो है कि चुप रहने को कोई सहमति मान जो जी मे आए करता जाये और यहाँ का माहौल और बिगड़ता चला जाये ...इस लिए कभी कभी चुप नहीं रहा जाता ... अपने 3 साल के इस ब्लॉग जगत के अनुभव से काफी कुछ सीखा है और अभी भी रोज़ रोज़ कुछ न कुछ नया सीखने को मिल रहा है ऐसे मे फेसबूक माहौल को हल्का करने मे थोड़ी मदद जरूर करता है पर जब वहाँ भी अधिकतर इस ब्लॉग जगत के लोगो से ही रबता रहता है तो ऐसे मे ब्लॉग जगत की तपन का अहसास वहाँ भी होता रहता है! मेरी निजी कोशिश हमेशा रही है कि मेरे कारण कभी यहाँ का माहौल न बिगड़ने पाये ... और आगे भी मेरे यही प्रयास रहेंगे ... आपसे मार्गदर्शन भी चाहिए होगा ! सादर !
ReplyDeleteशिवम् , आपकी बात भी सही है . एक लिमिट के बाद चुप रहना मुश्किल होता है . मेरा कहना यह था -- जब किसी विवादास्पद लेख पर एक या दो टिप्पणियां ही आयें तो लेखक को समझ जाना चाहिए -- पाठक उनसे सहमत नहीं हैं . व्यक्तिगत छींटा कसी में पड़ने का न तो हमारे पास समय है , न ज़रुरत . उत्तर प्रत्युत्तर की बहस का कोई अंत नहीं होता , न कोई निष्कर्ष .
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर जाते ही , एक वार्निंग आ जाती है और पेज बंद हो जाता है . कारण समझ नहीं आ रहा .
आप शायद गूगल क्रोम का उपयोग करते है ...उसमे अक्सर दिक्कत आती है फ़ायरफ़ॉक्स मे कोई दिक्कत नहीं आ रही है ... मैं भी यही उपयोग मे लाता हूँ !
Deleteमैं भी फ़ायरफ़ॉक्स ही इस्तेमाल कर रहा हूँ . लेकिन यह समस्या कई महीने से आ रही है .
Deleteआपकी हर एक बात से सहमत हूँ .
ReplyDeleteआपसे सहमत !
ReplyDeleteब्लागिंग है - 'अभिव्यक्ति की मानव -सुलभ तृष्णा' की परितृप्ति का साधन !
आपकी बात से बिल्कुल सहमत हूँ मैं भी ... उत्कृष्ट विश्लेषण के लिए आभार ।
ReplyDeleteकिसी भी पोस्ट पर बाद में पहुंचने का एक फ़ायदा ये होता है कि आपको पोस्ट के साथ ही बेहतरीन टिप्पणियां भी पढने को मिल जाती हैं । पोस्ट पर आई टिप्पणियां बता रही हैं , हालांकि इसमें हम तमाम ब्लॉगर/फ़ेसबुकिए ..यानि ब्लॉगर बट्टा फ़ेसबुकिए हैं , इसलिए विचार भी अपेक्षित ही आए हैं । यदि सिर्फ़ उनसे ये प्रश्न किया जाए तो सिर्फ़ फ़ेसबुक पर सक्रिय हैं और ब्लॉगिंग से बहुत ज्यादा परिचित नहीं हैं तो शायद कोई और नज़रिया देखने को मिले ।
ReplyDeleteमैं भी एक घनघोर नेटिया हूं , और इस बात को मानता जानता भी हूं । पिछले दिनों ब्लॉगिंग में थोडा सा अनियमित हुआ हां इस बीच फ़ेसबुक को धांग के रख दिया । मैंने देखा कि , मित्र सतीश पंचम , डा अरविंद मिश्र जी , संतोष त्रिवेदी जी , और कमाल धमाल मचाए हुए गिरजेश जी ..फ़ेसबुक पर भी उतने ही मारक और अचूक दिखे पाए जितने ब्लॉगिंग में थे । बल्कि बहुत सारे वो साथी भी वहां विचरते मिले जिन्हें अरसा हो गया ब्लॉगिंग में देखे हुए ।
सर बात सिर्फ़ इतनी है कि माध्यम बेशक अलग है और दोनों माध्यमों से जुडने वाले भी । हम जो ब्लॉगर बट्टा फ़ेसबुकिए हैं , यकीन मानिए , धार कहीं कभी भी कम नहीं होने देते हैं । ब्लॉगिंग की रफ़्तार में थोडी सी कमी आना सिर्फ़ फ़ेसबुक सक्रियता के कारण नहीं है , हालांकि ये भी एक कारण है । चलिए ब्लॉगिंग को फ़िर से पटरी पर लाया जाए
पहले तो आपका स्वागत है अजय भाई ।
Deleteफेसबुक और ब्लॉगिंग में बहुत अंतर नज़र आता है । यह फेसबुक पर प्रकाशित होने वाली सामग्री और कमेंट्स को देख कर ही पता चल जाता है ।
लेकिन दिग्गज ब्लॉगर क्यों फेसबुक से चिपक गए हैं , इसके कारणों पर भी एक लेख लिखना बनता है । इंतज़ार रहेगा ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteहम भी अक्सर फेसबुक पर ब्ल़गिंग का मजा लेते हैं।
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आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!
Facebook is like a bubblegum( it's only for time pass ) and blogging is like food(good for health ).
ReplyDeletevery nice post Dr. sab
अजब संयोग है ....
ReplyDeleteआप ज्ञानी ,हम अज्ञानी ....पर सोच जा कर मिल गई ...खुशी हुई !
आभारएक अपील ...सिर्फ एक बार ?
!
क्यों शर्मिंदा करते हैं सलूजा जी । भला अनुभव से ज्यादा ज्ञान कहीं हो सकता है !
Deleteआपकी लिखी हर एक बात से सहमति है,पर यहाँ प्रवीण जी की कही बात से पूर्णतः सहमत हूँ।
ReplyDeleteSir all is not dark .Facebook has added feature for organ donation.(TOI).
ReplyDeleteSir all is not dark .Facebook has added feature for organ donation.(TOI).
ReplyDeleteधाँसू पोस्ट !!
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
फेस बुक टी -२० है जबकि ब्लॉग टेस्ट क्रिकेट है
ReplyDeleteदराल साहेब,
ReplyDeleteआपने एक अच्छे विषय पर विमर्श रखा है..आपके प्रश्नों का जवाब सिलसिलेवार देना चाहूँगी...
* अपनी अभिव्यक्ति की तमन्ना को पूरा करने के लिए ?
जी हाँ ये आप कह सकते हैं, अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने की कोशिश करती हूँ....
* या ज्ञान बाँटने के लिए ?
बाँटने योग्य ज्ञान नहीं है मेरे पास, हाँ सही इन्फोर्मेशन देने की कोशिश ज़रूर करती हूँ...कभी कभी इन्फोर्मेशन कटु भी होते हैं, लेकिन उनको साझा नहीं करना भी पाठकों के प्रति बेईमानी होगी....इसलिए पाठकों के समक्ष ऐसे विषयों को लाना अपना फ़र्ज़ समझती हूँ, अब ये पाठक पर निर्भर करता है उसे वो किस तरह लेता है...हाँ भाषा की शालीनता का उलंग्घन मैंने कभी नहीं किया है...
यहाँ एक बात कहना चाहूँगी...आप और आप जैसे कई डॉक्टर्स हैं, जिनके ज्ञान का हम लाभ उठा सकते हैं, आप हम ब्लोगर्स को स्वस्थ जीवन का मार्गदर्शन कर सकते हैं ..
* परोपकार या सामाजिक सेवा करने के लिए ?
उस इन्फोर्मेशन से अगर किसी व्यक्ति/समूह या समाज की आँखें खुलतीं हैं तो उसे ही सेवा समझूँगी...
* मित्र बनाने के लिए ?
मित्रता मेरे लिए अमूल्य है, मैंने दुनिया में और कुछ कमाया या नहीं कमाया, बहुत ही अच्छे, ईमानदार, और सच्चे लोगों की मित्रता कमाई है, बिना मिले या समझे मैं किसी को मित्र बनाने के पक्ष में नहीं हूँ...और मुझे विश्वास है ब्लॉग जगत में अच्छे लोगों की कोई कमी नहीं है...जिनसे आज नहीं तो कल मिलना होगा ही...
* या टाइम पास करने के लिए ?
'टाईम पास', जैसे शब्द का इस्तेमाल करके मैं ब्लोगिंग की गरिमा कम नहीं करना चाहती, यह बहुत ही सशक्त माध्यम है, बहुत कुछ किया जा सकता है...
ब्लॉग जगत से मैंने बहुत कुछ सीखा है, मैंने ख़ुद को बदला है...भारतीय समाज और पश्चिमी समाज में बहुत फर्क है, १७ वर्षों से भारत से दूर रह रही हूँ, इसलिए बहुत सारी बातें या तो भूल चुकी हूँ या समझ नहीं पाती हूँ...ब्लॉग्गिंग से जुड़ कर, विदेश में रहते हुए, बिल्कुल भारतीय माहौल मिला जिससे एक बार फिर ख़ुद को उस अनुरूप ढालने का मौका मिला...
फेसबुक में मैं हूँ ही नहीं, कारण...मित्र बनाने में मैं ज़रा कमज़ोर हूँ...इसलिए मैं वहाँ के माहौल के बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर सकती....
ये 'ग्रुप' का कोंसेप्ट ब्लॉग जगत में एक मिथ है, यह सिर्फ़ अटकलबाजी होती है, क़ि कौन किस ग्रुप में है...कई बार ये ठीक होता है और बहुत बार ग़लत..मैं न किसी ग्रुप में कभी थी, न हूँ और न होना चाहती हूँ...
मैंने कहा भी है..'मौन असहमति भी हो सकती है'...और मैंने अपने मौन का उपयोग भी किया है...मैं इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं हूँ कि चुप रहना कायरता की निशानी है...बल्कि बहुत बोलना कमजोरी और इनफिरियरिटी काम्प्लेक्स की निशानी है...कहावत तो आपने भी सुनी ही होगी...'जो बादल गरजते हैं वो बरसते नहीं हैं...'
अदा जी , आप से पूर्णतया सहमत हूँ । दरअसल ब्लॉगिंग इन पांच बातों का ही मिला जुला रूप है । लेकिन फेसबुक पर बहुत बेहूदगी नज़र आती है । हालाँकि कुछ लोग ब्लॉगिंग को भी ऐसा ही बना रहे हैं । इसीलिए यह पोस्ट लिखी ।
Deleteमौन असहमति में मैं भी विश्वास रखता हूँ । कहने वाले कुछ भी कहते रहें , क्या फर्क पड़ता है । बाकि तो आपने सब कह ही दिया ।
आभार ।
haan nahi to?
Deletepranam.
:)
Deleteसंजय जी , आपकी पसंद की पोस्ट जल्दी ही .
जब सब देख- बोल लिया गया तो, ज्ञानी-ध्यानी बोल गए, "शिवोहम/ तत त्वम् असी"! अर्थात हम सभी बास्तव में अमर आत्माएं हैं!!! कुछ हमें हमारे उद्देह्य से भटका रही हैं, और कुछ जो हमें हमारे गंतव्य की ओर संकेत जकर राजे हैं, बोल कर, अथवा मौन रह कर... 'बाबू समझो इशारे/ हौरन पुकारे...' :)
ReplyDeleteडॉ साहब यह ब्लॉग ही हमारी विरासत है यकीन मानिए हमने अपनी ब्लोगिया वसीयत लिख दी है .हमारे जाने के बाद भी ब्लॉग चालू रहेगा 'राम राम भाई '.इ सुधारते रहिये .आपका ब्लॉग पर आना हमें सेहत पर कुछ लिखने का हौसला देता है .भूल चूक हमारी सुधारते रहिये ,यूं ही आते - जाते रहिये .
ReplyDeleteडॉ साहब यह ब्लॉग ही हमारी विरासत है यकीन मानिए हमने अपनी ब्लोगिया वसीयत लिख दी है .हमारे जाने के बाद भी ब्लॉग चालू रहेगा 'राम राम भाई '.गलती हमारी सुधारते रहिये .आपका ब्लॉग पर आना हमें सेहत पर कुछ लिखने का हौसला देता है .भूल चूक हमारी सुधारते रहिये ,यूं ही आते - जाते रहिये .
ReplyDeleteसहमत आपकी बात से ... हमने तो अपना एकाउंट बझी नहीं बनाया फेसबुक पे अभी तक ...
ReplyDeleteमेरे विचार से ब्लोगिंग और फेसबुक में निम्न अंतर भी हैं:
ReplyDeleteब्लॉग पर तभी टिप्पणियां मिलती हैं, जब आप भी अन्य ब्लोगर्स के ब्लॉग पर खासकर 'सकारात्मक' टिप्पणी करते हैं... यदि आपने गलती से भी किसी पोस्ट पर कोई गलती बता दी या 'नकारात्मक' टिप्पणी कर दी तो समझिये आपके ब्लॉग पर भी ऐसी ही टिप्पणी आने वाली है, दूसरे, ब्लॉग पर लोग टिप्पणियां करने में बड़ी कंजूसी बरतते हैं, जबकि फेसबुक में लोगों का यह रवैया बदल जाता है... फेसबुक पर मित्रता का दायरा ब्लोगिंग के मुकाबले अधिक तेजी से बढ़ता है, और वहां अधिक आसानी से आप अपने 'वर्चुअल मित्रो' की 'स्टेटस अपडेट्स' से 'अपडेट' रह पाते हैं...