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Saturday, March 24, 2012

जाने कितने आए और चले गए ---


पता चला है कि हिंदी ब्लोगर्स की संख्या ५०००० का आंकड़ा पार कर गई है । हालाँकि सक्रिय हिंदी ब्लोगर्स की संख्या १००० से ज्यादा नहीं है ।

एक कहावत है --नया नया मुल्ला ज्यादा अल्लाह अल्लाह करता है । कुछ इसी तरह का माहौल हिंदी ब्लॉगजगत में भी रहा है । नया ब्लोगर किसी के कहने पर बड़े जोश के साथ ब्लोगिंग शुरू करता है। अपने सारे काम छोड़कर ब्लोगिंग में ज्यादा से ज्यादा समय लगाता है ताकि उसकी पहचान बने । परन्तु जल्दी ही अक्ल ठिकाने आ जाती है जब कहीं से कोई रिस्पोंस नहीं मिलती टिप्पणियों के रूप में ।

पुराने ब्लोगर्स भी अब ब्लोगिंग छोड़ फेसबुक , ट्विटर आदि में लीन हो गए हैं । अब कोई आधी आधी रात तक जागकर ब्लोगिंग नहीं करता ।

दिग्गज़ माने जाने वाले ब्लोगर्स भी अब ठंडे पड़ चुके हैं । जो कभी ६-१० ब्लोग्स मेनेज करते थे , अब फेसबुक में फोटो टैग करते नज़र आ रहे हैं ।

कुछ ब्लोगर्स या तो अस्वस्थता की वज़ह से, या कार्य अधिकतावश ब्लोगिंग से दूर हो गए हैं . कुछ ने असंतुष्ट होकर ब्लोगिंग से सन्यास ले लिए लगता है ।

बड़े बड़े कविराज भी ब्लॉग से गायब हो गए हैं । ज़ाहिर है, मुफ्त में अंगुलियाँ घिसना किसी को अच्छा नहीं लगता । वैसे भी मंच के बदले ब्लॉग में क्या मिलता है , कुछ झूठी सच्ची टिप्पणियां ।

अब तो अलग अलग बने खेमे भी बिखरते से नज़र आ रहे हैं। रही सही कसर व्यक्तिगत छींटा कसी ने पूरी कर दी
कुछ तो ऐसे हैं कि जाति विशेष को बढ़ावा देते हुएव्यक्तिगत उपलब्धियों को ही ब्लोगिंग समझते हैं

स्वाभाविक है , आजकल बहुत पढने को मिल रहा है कि --अब ब्लोगिंग में मन नहीं लग रहा ।

अपने तीन साल के अनुभव में इतना ज़रूर देखा है कि ब्लोगिंग में टिप्पणियों का बहुत महत्त्व है । यदि पोस्ट पर टिप्पणी न हों तो ऐसा लगता है जैसे आप भैंस के आगे बीन बजा रहे हैं । कुछ लोग पोस्ट पर टिप्पणी का ऑप्शन बंद कर देते हैं । वह तो और भी ख़राब लगता है । ऐसी पोस्ट को पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है जैसे यह एक तरफा ट्रैफिक है । आप पढ़ तो सकते हैं लेकिन कुछ कह नहीं सकते ।
यह तो मेगालोमेनिया हुआ

कुछ ब्लोगर्स तो ऐसे हैं कि मेल पर आग्रह करते हैं पोस्ट पढने के लिए लेकिन स्वयं कभी किसी ब्लॉग पर टिप्पणी करते नज़र नहीं आते हमें तो यह उदंडता लगती है

पोस्ट लिखने का असली फायदा ही तब है जब आप विचारों का आदान प्रदान कर सकें

अब तो गूगल ने भी टिप्पणियों की कमी का ख्याल रखते हुए उत्तर
प्रत्युत्तर का प्रावधान कर ब्लोगर्स के लिए एक नया सामान दे दिया है , ब्लोगिंग से उदासीन होने के लिए

प्रस्तुत है --इसी विषय पर , छोटी बह्र में एक छोटी सी ग़ज़ल :

पाठक कटने लगे
टीपाँ घटने लगे।

चाटू पोस्ट सभी
पढ़कर चटने लगे।

दिल से अब भरम के
बादल छंटने लगे।

आँखों से शरम के
परदे हटने लगे।

आपस के वैर में
मठ भी बंटने लगे।

गेहूं संग घुन ज्यों
हम भी लुटने लगे।

कहने को तो यहाँ
साथी पटने लगे।

आदर विश्वास के
सफ़्हे फटने लगे।

मंच पे पढना पड़े
कविता रटने लगे।

छोडो "तारीफ"क्यों
ग़म से घुटने लगे ।

नोट : ब्लोगिंग में झलकती उदासीनता के कई कारण हैं । जैसे एक अच्छे ब्लॉग एग्रीगेटर का न होना , गूगल द्वारा टिप्पणियों और पोस्ट्स को गायब कर देना , ब्लोगर्स की व्यक्तिगत और स्वास्थ्य समस्याएँ, ब्लोगिंग से कोई कमाई न होना तथा समय के साथ शौक पूरा हो जाना ।

जहाँ बाकि सब कारण हमारे वश में नहीं , वहीँ शौक को यूँ डूबने न दें , यही कामना है ।


107 comments:

  1. एकदम मन पढ़ लिया मानों आपने ब्लॉगर का.....
    हर बात सोलह आने सच लगी....
    बहुत बढ़िया लेखन डॉक्टर साहब...

    गेहूं संग घुन ज्यों
    हम भी लुटने लगे।
    गज़ल के लिए दाद कबूल करें...
    सादर
    अनु

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  2. गूगल द्वारा टिप्पणियों और पोस्ट्स को गायब कर देना ,

    मैं तो त्रस्त हूँ इस समस्या से....
    अभी अभी यहाँ टिप्पणी की...अब देखा तो गायब.....
    दुबारा टिप्पणी में वो बात नहीं रहती....

    अच्छी पोस्ट सर...
    बढ़िया गज़ल..
    सादर.

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  3. my comment gone.........for the 3rd time..........
    its sickening!!!!!

    regards.
    anu

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    Replies
    1. oh here they are...all ...
      thanks doc
      :-)

      Delete
    2. अनु जी , इस स्पैम ने तो सब का काम बढ़ा दिया है . कोई हल भी नहीं निकल रहा .

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  4. बात तो आप सही कह रहे हैं काफ़ी हद तक यही हो रहा है मगर हम तो अभी सक्रिय हैं देखते हैं कब तक रह सकते हैं।

    ReplyDelete
  5. डॉ.साहब! आज आप की उदासी काम आ गई ...
    हकीकत से रु-ब-रु कराती आप की शानदार गज़ल पढ़ने को मिली |
    राफ्ता कायम रखिये .....वरना हमें कौन पूछेगा :-))
    खुश रहें !
    आभार!

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    1. अशोक जी , यूँ तो ब्लोगिंग टाइम पास शौक है . बेशक , अपने काम छोड़कर नहीं करना चाहिए .
      लेकिन शौक के लिए टाइम न हो , ऐसा भी नहीं होना चाहिए . इसीलिए हम भी लगे हुए हैं .

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  6. सर जी, मैं तो बस यही कहूँगा कि आज आप मूड में लग रहे है ! :)हाँ, कविता बहुत ही जानदार लिखी है आपने !

    नया नया मुल्ला ज्यादा अल्लाह अल्लाह करता है । Ha-ha-ha....

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    Replies
    1. गोदियाल जी , लिखा तो बहुत पहले था । लेकिन ब्लॉग पर आज ही डाल पाया हूँ । वैसे आज भी उतना ही तर्कसंगत है ।
      नया नया ---जी हाल तो कुछ ऐसा ही है ।

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  7. वाह जी वाह! बात तो आपने सौलाह आने सच कही... जो कुछ विशेष प्राप्त करना चाहते थे वह ना मिलने के कारण दूर हुए, तो कुछ व्यस्तता के कारण. लेकिन एक बात है, जो एक बार हिंदी ब्लोगिंग में आगया, वह हमेशा के लिए अलविदा कह ही नहीं सकता है. कुछ लिखे ना लिखे, परन्तु अक्सर या कभी-कभी देख अवश्य लेता है कि कौन क्या लिख रहा है. और कुछ नहीं तो गूगल महाराज तो हैं ही...

    वैसे आपके अच्छे एग्रीगेटर का क्या पैमाना है? :-)

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    Replies
    1. वैसे आपके अच्छे एग्रीगेटर का क्या पैमाना है? :-)
      good question

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    2. शाहनवाज़ जी , नाम तो नहीं गिनवा सकते लेकिन बहुत से मित्र ऐसे हैं जो अब कहीं नज़र नहीं आते । दोष भी नहीं दे सकते क्योंकि सबके लिए और भी ग़म हैं ज़माने में ।

      अच्छा एग्रीगेटर --इस वक्त तो सिर्फ हमारीवाणी का ही सहारा है लेकिन इसकी पहुँच उतनी नहीं हो पाई जितनी ब्लॉग वाणी या चिटठाजगत की थी । हालाँकि कोई शिकायत नहीं ।

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  8. ab daekhiyae naari blog ko to 4 saal ho gyae aur abhi bhi paer tikkae haen

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    Replies
    1. अच्छी बात है । आप अच्छा काम कर रही हैं ।
      सकारात्मक सोच के साथ चलते रहिये ।

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  9. :) क्या मौज ली है जी।
    आठ साल होने को आये लेकिन अपन का तो ब्लॉगिंग में फ़ुल मन लगा है। फ़ेसबुक ट्विटर को तो खाली अपन नोटिस बोर्ड की तरह इस्तेमाल करते हैं। :)

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    1. अनूप जी , जो देखा वो लिख दिया । :)
      वैसे इस फेसबुक ने ब्लोगिंग का बहुत नुकसान किया है ।
      लोग अंधाधुंध जागने से लेकर सोने तक का एक एक आँखों देखा हाल बयां करते रहते हैं ।
      क्या पागलपन है !
      कुछ लोग भले ही इसे सेल्फ प्रोमोशन का ज़रिया बनाकर बैठे हैं । अधिकतर तो टाइम खोटी ही करते हैं , वाहियात बातों में । अफ़सोस तो तब होता है जब बड़े बड़े कविराज भी यही करते दिखते हैं ।

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    2. हां मामला सुप्रभात से शुरु होकर शुभरात्रि तक जाता है कई लोगों का।
      इसी को लेकर एक लेख लिखा था - ब्लॉगिंग, फ़ेसबुक और ट्विटर

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    3. अनूप जी , उपरोक्त लेख पढ़ा । ज्यादातर बातों से हम भी सहमत हैं ।
      ब्लोगिंग का कोई मुकाबला नहीं फेसबुक आदि से । जो अभिव्यक्ति ब्लॉग पर हो सकती है वह कहीं और नहीं ।
      लेकिन निश्चित ही ब्लोगिंग टिप्पणियों पर आधारित है । जहाँ टिप्पणी मिलनी बंद या कम हुई , लोग फेसबुक की शरण में चले जाते हैं ।
      ब्लोगिंग को कम इसलिए माना जा रहा है क्योंकि हर समय कुछ जाने माने परिचित ब्लोगर ब्लॉग पर कम और फेसबुक पर ज्यादा नज़र आते हैं । बेशक यह घटता बढ़ता रहता है ।

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    4. दराल साहब कविराज के वाहियात होने वाली आपकी बात से सौ फीसदी सहमत हूं :)

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    5. अली जी , इस पैसे की आपा धापी में शायद कवि भी अपनी मार्केटिंग के लिए फेसबुक का सहारा लेते हैं ।

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  10. aap mareej ki nabj pahachaante hain ye to pata tha kintu blogers ki nabj bhi padhte hain aaj hi pata chala ....hahaha....bilkul sahi likha hai kuch salaah ke roop me upchar bhi kiya.hardik aabhar.

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    1. राजेश जी , तीन साल में तो एम डी हो जाती है। :)

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  11. JCMar 24, 2012 02:13 AM
    डॉक्टर का यह काम ही होता है कि बीमार 'सर' कहे, और उसके आगे कुछ बोल सके, उस से पहले ही सरदर्द की दवा लिख देना :) इसे ही तो कहते हैं अनुभव, अथवा धुप में बाल न सफ़ेद करना!
    ब्लॉगिंग भी मानव जीवन का प्रतिबिम्ब है, या कहिये कि रेल-यात्रा समान है, जहा हर स्टेशन आने पर कुछ सवारियां उतर जाती हैं... और लम्बी रेस के घोड़े समान कुछेक दृष्टा-भाव से अन्या यात्रियों को उतरते देखते रहते हैं और अपने गंतव्य का इंतज़ार करते हैं...

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    1. बहुत सही कहा जे सी जी ।
      इसीलिए किसी से कोई शिकायत भी नहीं हो सकती ।
      सब अपनी मर्ज़ी से आते हैं , अपनी मर्ज़ी से जाते हैं ।

      Delete
  12. दो साल से अधिक हो गए हैं.....पर कुछ विषय अब तक अपने लिखे जाने की बाट ही जोह रहेहैं
    जिन्हें लिखने का मर्ज हो..उनके लिए ब्लॉग्गिंग ही दवास्वरूप है.

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    1. यही तो ब्लोगिंग की जान है रश्मि जी ।
      लिखने के लिए इतना कुछ है कि शायद ये सारी जिंदगी भी कम पड़ जाए ।
      लेकिन पढने के लिए भी बहुत है जो हो नहीं पाता ।
      इसलिए धीरे धीरे कनेक्शन कटने लगता है ।

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  13. उसकी पोस्ट पढ़ी जाय तो अपनी पढ़ पाय
    कमेंट उस पर ही करें जो हमको टिपियाय।

    बिलाबात ही सही, लिखता हो दिन-रात
    ब्लॉगर वो महान है जो देता हरदम साथ।

    दो चार को छोड़कर अमर हुआ ना कोय
    अमरत्व लोभ में कवि, काहे साथी खोय!

    ....डा0 साहब कम से कम ब्लॉगिंग में तो आपका साथ हम निभायेंगे ही चिंता मत कीजिए।

    ReplyDelete
    Replies
    1. एक तुक्कड़ अपना भी :)


      ब्लागिंग प्रतिभा के चेहरे से परदे हटने लगे !
      शर्मसार बंदे ट्विटर फेसबुक में सिमटने लगे !!

      नवमुल्लों ने लिखे संविधान वो अब फटने लगे !
      मौक़ा-ए-वारदात से यार दोस्त सब छंटने लगे !!

      मठाधीशी के फालतू भ्रम आंख से छटने लगे !
      लुटे पिटे वीरान ब्लाग डेरों में उल्लू भटकने लगे !!

      ब्लागिरी के शेर सारे दुमदबा कर खिसकने लगे !
      कच्चे-लंगोट मल्ल सारे ट्विट ओट दुबकने लगे !!

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    2. पाण्डे जी , चिंता हमें अपनी नहीं है । जिस दिन लगेगा कि ब्लोगिंग में वक्त ज़ाया कर रहे हैं , उस दिन छोड़ देंगे । लेकिन बात उनकी है जो छोड़ कर जा चुके । जगजीत सिंह जी की एक ग़ज़ल याद आ रही है --
      कोई जल्दी में , कोई देर से जाने वाला ।
      यह पोस्ट जा चुके साथियों की याद में लिखी है ।

      वाह वाह , अली जी , आपने अपने शब्दों में यही बात कह दी । बहुत सुन्दर ।

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    3. अपन भी रि-ठेले देते हैं:
      ब्लागिंग एक बवाल है, बड़ा झमेला राग,
      पल में पानी सा बहे, छिन में बरसत आग!

      भाई हते जो काल्हि तक,वे आज भये कुछ और,
      रिश्ते यहां फ़िजूल हैं, मचा है कौआ रौर!

      हड़बड़-हड़बड़ पोस्ट हैं, गड़बड़-सड़बड़ राय,
      हड़बड़-सड़बड़ के दौर में,सब रहे यहां बड़बड़ाय!

      हमें लगा सो कह दिया, अब आपौ कुछ कहिये भाय,
      चर्चा करने को बैठ गये, आगे क्या लिक्खा जाय!

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    4. हे देखो! हमारे लिखे की तारीफ तो कर नहीं सके, उल्टे हमे नीचा दिखाने के लिए हमसे अच्छा-अच्छा लिखकर फूट लिये:)

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    5. पाण्डे जी , अली जी और अनूप जी पूरी तरह मस्ती के मूड में आ चुके थे । लेकिन हमें ही कहीं जाना पड़ा । इसलिए यह संवाद यहीं छोड़ना पड़ा ।

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    6. देवेन्द्र जी ,
      फूटे हुए यार किसके
      दम लगाई ,खिसके :)

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    7. क्या जलवेदार बात लिखी है देवेन्द्र पाण्डेयजी ने और तदोपरांत क्या रोना रोया है तारीफ़ न मिलने का। गज्जब। दोनों की किलो-किलो तारीफ़। :)

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  14. ...स्वाभाविक है , आजकल बहुत पढने को मिल रहा है कि --अब ब्लोगिंग में मन नहीं लग रहा ।...
    मुझे तो यह कहीं पढ़ने को नहीं मिला!!!!!
    [नसीहत : ऐसी जगह पढ़ने को जाएं जहाँ ऐसी वाहियात किस्म की बातें कहने को तो दूर, सोची भी न जाती हों :)]

    और, ब्लॉगिंग तो सदा सर्वदा की तरह फल फूल रही है. नित सैकड़ों नए ब्लॉगर आ रहे हैं और हर विषय पर [उदाहरण - मोटरगाड़ी.कॉम - http://krantisambhav.blogspot.in/ देखा क्या?] पोस्ट पर पोस्ट लिखे जा रहे हैं. अलबत्ता नजरों में आने की समस्या जरुर है. मगर फिर जब पचास हजार और एक लाख ब्लॉगर हो चुके हैं तो आप उनमें से 100-50 को ही तो देख पाएंगे और उनमें भी 5-10 को ही पढ़ पाएंगे - एग्रीगेटर हो या न हो. स्थिति अब यही बनी रहेगी!
    लोग अब इंटरनेट सर्च के जरिए ही अपने पसंदीदा विषय के ब्लॉगों पर जाएंगे, और यदि मामला जमा तो स्थाई सदस्यता (माने फीड, ईमेल इत्यादि से) ग्रहण करेंगे. अंग्रेज़ी ब्लॉगों में जैसा चलता है ठीक वैसा ही. और यह स्थिति हिंदी ब्लॉगों के लिए बेहतर ही है.

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    1. श्रीवास्तव जी , हम भी यही कह रहे हैं कि लम्बी रेस के घोड़े ज्यादा नहीं दिख रहे । आप जैसे बरसों से जमे ब्लोगर कितने हैं !
      ८०-९० के करीब जिन ब्लोग्स को मैं फोलो करता हूँ उनमे से १०-१५ ही सक्रीय हैं । इनमे से ४-५ को ही लोकप्रियता हासिल है । ज़ाहिर है , बाकि देर सबेर मैदान छोड़ कर जाने वाले हैं ।
      अंतत : अच्छा लिखने वाले ही रह जायेंगे जिन्हें लोग ढूंढ कर पढेंगे ।
      ब्लोगिंग में इनिशियल यूफोरिया होता है जो जल्दी ही यथार्थ के सामने घुटने टेक देता है ।

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  15. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!
    नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  16. विचारों का उत्कृष्ट आदान प्रदान हो तो अवश्य बेहतर होगा

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  17. सही बात है, सीमा है इसकी कि कितने ब्लोग्स पढ़े जा सकते हैं... अब इतने सारे ब्लोग्स हैं तो स्वाभाविक है, ध्यान बंटेगा.
    शेष ये कि आपकी बातें बेबाक सत्य हैं. आशा है हिंदी ब्लॉगजगत कि गुणवत्ता बरकरार रहे!

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  18. आपने सही समय पर सही पोस्‍ट दी है। एक दो दिन से मैं भी इसी विषय पर लिखने की सोच रही थी। उदासीनता तो है, कारण भी कई है। यहां दलगत राजनीति हो गयी है इसलिए विषय कम होते जा रहे हैं।

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    1. चिंता नहीं अजित जी । राजनीति से कुछ ही लोग दूर हो सकते हैं , सब नहीं । स्वांत: सुखाय लिखते हुए यदि समाज का भी भला होता रहे तो ब्लोगिंग सार्थक कहलाएगी ।

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    2. " स्वांत: सुखाय लिखते हुए यदि समाज का भी भला होता रहे तो ब्लोगिंग सार्थक कहलाएगी ।" EXACTLY !!

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  19. सत्य वचन, आपकी ज्यादातर बाते सही है। वैसे भी जिसके पास लिखने को कुछ ना(कुछ खास) होगा वो लिखेगा भी क्या? बेकार को पढेगा कौन? ये जिंदगी के मेले दुनिया में कम ना होंगे, अफ़सोस हम ना होंगे, यह आना जाना लगा रहता है इसे ही जीवन कहते है जिसका जितना जीवन उतने दिन जी लेगा? बस यही बात यहाँ भी लागू हो रही है,

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    1. संदीप जी , ब्लोगिंग ने विचारों को विस्तार दिया है । थोड़ी सी कोशिश करके और सुधार किया जा सकता है । इसलिए प्रयास जारी रहना चाहिए ।

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  20. उदासीनता तो है मगर पोस्ट आपकी मजेदार रही भाई जी !
    मुबारक हो !

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    1. सतीश जी , इस उदासीनता का एक कारण यह भी है कि ब्लोगर या तो बहुत गंभीर होकर लिखते हैं या बहुत मस्ती के मूड में । गंभीर को पढने वाले ज्यादा नहीं हो सकते । मस्ती को बनाये रखना मुश्किल होता है । जबकि आवश्यकता है हलके और मनोरंजक अंदाज़ में गंभीर लेखन की । रोचक अंदाज़ में भी बड़ी से बड़ी बात कही जा सकती है ।

      यह बिल्कुल वैसा है जैसे कॉलेज में कई प्रवक्ता हूट हो जाते हैं , कईयों को बड़े ध्यान से सुना जाता है ।
      यदि जिंदगी के प्रति हम अपना नज़रिया बदल लें तो शायद कोई बात बने ।

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  21. क्या बात है बहुत खूब...अपने तो सभी के दिलों की बात कह डाली....एकदम सही लिखा है आपने, मेरा भी दो सालों में कुछ ऐसा ही अनुभव रहा है। जो ब्लोगर मुझे अच्छे लगे उनमें से ज़्यादातर लोगों ने या तो अब लिखना लगभग छोड़ ही दिया है या फिर लिखते तो बहुत है मगर कभी किसी और की पोस्ट पर जाने क्यूँ उन्हें जाने में बहुत कष्ट होता है। सटीक एवं सार्थक पोस्ट आभार...

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  22. दराल साहब आपने सब कुछ सच सच बाँच दिया।
    कम से कम मैं गायब नहीं हूँ। हाँ कुछ व्यक्तिगत मसरूफियत और स्वास्थ्य कारणों से अनवरत पर हाजिरी कम हुई है। लेकिन तीसरा खंबा नियमित है। अनवरत पर भी नियमितता बनाए रखने का प्रयत्न कर रहा हूँ। शायद जल्दी ही बन भी जाएगी।

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    1. द्विवेदी जी , तीसरा खंबा पर आप जो जन सेवा कर रहे हैं , वह वास्तव में अत्यंत सराहनीय है । मेरी राय में दो से ज्यादा ब्लॉग चलाने में दिक्कत होती है । इसलिए इन्ही पर केन्द्रित रहें । आभार ।

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  23. आपका ये पोस्ट सही दिशा में है. कारण भी हज़ार है.
    कभी मैंने भी विश्लेषण किया था तक़रीबन तीन साल पहले उन दिनों ब्लॉग जगत में अच्छी सामग्रियों के साथ उठा पाठक भी खूब होती थी.

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    1. अपन को जब भी समय मिलता है, पोस्टें पढने या कमेन्ट के लिए आ जाता हूँ, वैसे बहुत सारे पोस्ट तो मैं इमेल फीड से प्राप्त कर लेता हूँ.
      यदि २०-४० के युवा ब्लोगिंग में ज्यादा समय बिताते हैं तो उनके लिए ये शौक महंगा है. मैं आज भी कुछ अच्छे और समर्पित ब्लोगरों को मन से पढता हूँ.
      खुद के ब्लॉग को अपडेट नहीं कर पाता. मैं मानता हूँ कि कविता या शायरी और मोहब्बत में जोर जबरदस्ती नहीं हो सकती. दिल भीगता है तो अच्छी रचना हो जाती है. वर्ना महीनो अकाल रहता है. ये तो हुई कवि मन (कवि ब्लोगर) की बात. हाँ ये जरुर है हिंदी में कमेन्ट देने में समय ज्यादा लगता है और फेसबुक में लाइक ऑप्शन सबको आसान लगता है.
      इसके अलावा कुछ अन्य ब्लोगों पर काम भी करता हूँ. कई बार मेरा खाली समय औरों को तकनीकी सपोर्ट देने में बीतता है.

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    2. सुलभ --युवाओं को ब्लोगिंग में ज्यादा समय नहीं बिताना चाहिए । यही बात फेसबुक के लिए लागु होती है । बल्कि फेसबुक में ज्यादा समय नष्ट होता है । क्वानटीटी से क्वालिटी बेहतर है ।

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  24. ये तुकबंदी 12 सितंबर 2010 को की थी, तब फेसबुक, ट्विटर का इतना तामझाम नहीं था...​
    ​​
    ब्लॉगिंग की हर शह का इतना ही फ़साना है,
    इक पोस्ट का आना है, इक पोस्ट का जाना है...(अब पोस्ट की जगह ब्लागर पढ़ा जाए)​

    कहीं टिप्पणियों का टोटा, कहीं खजाना है,
    ये राज़ नया ब्लॉगर समझा है न जाना है...

    इक सक्रियता के फलक पर टिकी हुई ये दुनिया,
    इक क्रम खिसकने से आसमां फट जाना है...​(उस टाइम चिट्ठाजगत का सक्रियता क्रमांक एक से चालीस तक ही सब मायने रखता था)

    कहीं चैट के पचड़े, कहीं मज़हब के झगड़े,
    इस राह में ए ब्लॉगर टकराने का हर मोड़ बहाना है...

    हम लोग खिलौने हैं, इक ऐसे गूगल के,
    जिसको एड के लिए बरसों हमें तरसाना है...

    ब्लॉगिंग की हर शह का इतना ही फ़साना है,
    इक पोस्ट का आना है, इक पोस्ट का जाना है...

    ​​जय हिंद...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत खूब खुशदीप भई । फिर कैसे कहें कि हिंदी ब्लोगिंग का विकास हो रहा है ।

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  25. अरे हमारा कमेन्ट कहाँ गया??? सुबह अच्छा भला छपा देख कर गए थे.खैर
    हमें तो कोई ओर गम भी नहीं ज़माने में ब्लॉग्गिंग के सिवा, इसे छोड़ा तो और कहाँ जायेंगे.
    अच्छा विश्लेषण किया है आपने.

    ReplyDelete
  26. .
    .
    .

    मैं पल दो पल का ब्लॉगर हूँ...

    पल दो पल मेरी कहानी है
    पल दो पल मेरी हस्ती है
    पल दो पल मेरी जवानी है
    मैं पल दो पल का ब्लॉगर हूँ ...

    मुझसे पहले कितने ब्लॉगर
    आए और आकर चले गए
    कुछ आहें भर कर लौट गए
    कुछ पोस्ट टिका कर चले गए

    वो भी एक पल का किस्सा थे
    मैं भी इस पल का किस्सा हूँ
    कल तुमसे जुदा हो जाऊँगा
    पर आज तुम्हारा हिस्सा हूँ

    मैं पल दो पल का ब्लॉगर हूँ ...

    कल और आएंगे खयालों की
    खिलती कलियाँ चुनने वाले
    मुझसे बेहतर लिखने वाले
    तुमसे बेहतर पढ़ने वाले

    कल कोई मुझको याद करे
    क्यूँ कोई मुझको याद करे
    मसरूफ़ ज़माना मेरे लिये
    क्यूँ वक़्त अपना बरबाद करे

    मैं पल दो पल का ब्लॉगर हूँ ... :(



    ... :)


    ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रवीण जी , लगता है यह गाना सदियों पहले ब्लोगर्स के लिए ही लिखा गया था । :)

      Delete
  27. मैं हर इक पल का ब्लॉगर हूं...

    हर इक पल मेरी कहानी है,
    हर इक पल मेरी हस्ती है,
    हर इक पल मेरी जवानी है,
    मैं हर इक पल..​
    ​​
    ​माध्यमों का रूप बदलता है, बुनियादें ख़त्म नहीं होती,
    ख्वाबों की और उमंगों की, मियादें ख़त्म नहीं होती,
    इक ब्लाग में मेरा रूप बसा, इक -इक पोस्ट में मेरी जवानी है,
    इक फेसबुक मेरी पहचान, इक ट्विटर मेरी निशानी है,
    मैं हर इक पल...​​

    ​​जय हिंद...

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  28. कोई पल दो पल के ब्लॉगर हैं
    कोई चौबिस घंटे पागल हैं
    कोई बीबी छोड़ पिले रहते
    कहीं ब्लॉगर बीबी, जागल हैं।

    इक बेचारा डाकदर से बोला
    मेरी बीबी ब्लॉगर है
    डाकदर ने माथा पीट लिया
    समझा बड़का पागल है!

    जहाँ एक होय गनीमत है
    दूजा कुछ और करे लेगा
    बच्चों का लेकिन का होगा
    माँ-बाप अगरचे ब्लॉगर हैं!

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    1. बच्चे खानदानी ब्लोगर बन जायेंगे । :)

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  29. हां इतना तो मैं मानता हं कि कम ब्लॉगर सक्रिय हैं...पर रोज रोज पोस्ट लिखना संभव होता भी नहीं है..मेरी तो अब तक सौ पोस्ट नहीं हूई है पिछले सवा दो साल में..ऐसा नहीं है कि नहीं हो सकती थी..पता नहीं किस श्रेणी में मुझे आप रखेंगे..मैं तो अपने को सक्रिय ब्लॉगर ही मानता हूं. पिछले साल के साढ़े तीन महीने फरवरी से जून तक को छोड़कर मैं लगातार सक्रिय हूं..पढ़ना तो चलता रहता है ब्लॉग पर.हां हर बार टिप्पणी संभव नहीं होती..खासकर किसी कविता पर लंबी टिप्पणी संभव ही नहीं होती मेरे लिए...अच्छी कविता या अच्छी रचना ही ज्यादातर कविता के लिए शब्द होते हैं..हां मैं टिप्पणी की परवाह नहीं करता क्योंकि टिप्पणी के लिए लिखना जिस दिन शुरु किया उस दिन लेखन लेखन न रह कर चाटुकारिता रह जाएगी....

    सतीश जी को प्रत्युत्तर में जो आपने लिखा है उससे सौ प्रतिशत सहमत हूं

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    1. रोहित जी , रोज रोज लिखना भी नहीं चाहिए । हम तो ये बात बहुत पहले से कह रहे हैं । सप्ताह में एक या दो पोस्ट बहुत हैं । तभी दूसरों को पढने का समय मिलेगा ।

      लेकिन टिप्पणियों से संवाद स्थापित होता है जो ब्लोगिंग को सार्थक बनाता है ।

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  30. बिल्कुल सही बात कही आपने ।

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  31. JCMar 24, 2012 05:52 PM
    "हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है...", कुछ लोग संगीत में रूचि रखते हैं, भले ही उन्होंने इस विषय विशेष पर शिक्षा न ग्रहण की हो... तानसेन, अथवा जगजीत सिंह तो कोई एक ही हो सकता है, पर उस को सुनने वाले और पसंद करने वाले लाखों- करोड़ों हो सकते हैं, और उन के आलोचक भी कई... सारा मामला (द्वैतवाद का) मन के रुझान का होता है, और कई औरंगजेब समान भी होना स्वाभाविक है (मानव समाज सदैव तीन भाग में बाँट जाता है)...
    हम तो भाई कानसेन हैं, जो अच्छा लगा वो सुनने / पढने लगे - प्रयास सदैव किन्तु 'सत्य' / अनंत की खोज... अपने पूर्वजों ने भी कहा, "हरी अनंत/ हरी कथा अनंता...", और उनसे सहमत यदि कोई हो सके तो कभी बोर नहीं होगा ऐसी मेरी मान्यता है...

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  32. क्या डाक्टर साहब आपका काम जख्मों को हरा करना है या इलाज है ..
    तिस पर प्रवीण शाह जी और संजीदा कर दिए...
    आईये हम इस विधा को प्रोत्साहित करने की बात करें ,गए को बुलाएं ,नयें को लुभायें !

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    1. अरविन्द जी , जाने वाले अपनी इच्छा से गए हैं । यह अलग बात है कि कई ऐसे हैं जिनके बगैर ब्लॉगजगत सूना सा लगता है ।
      फिर भी , लाइफ हैज टू गो ओन ।

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  33. ब्लॉगिंग को लेकर कई तरह की अवधारणाएं चल रही हैं,लेकिन इतना तो सत्य है कि इसमें 'सिंगल-ऑपरेशन' जैसा कुछ नहीं है.यह विधा संवाद और विमर्श को लेकर ही अपनाई जा सकती है.आप कित्ते बड़े लेखक या कवि हैं,अच्छे ब्लॉगर तभी बन पाएंगे,जब आप पारस्परिक पढ़ना-लिखना जारी रखेंगे.

    ..मेरे पास भी कई मेल आते हैं जिनमें उनकी कविताओं को पढ़ने की हिदायत होती है तो मैं भी वापसी-डाक से उन्हें यह 'नुस्खा' भेज देता हूँ कि भाई,आप पढोगे तभी पढ़े जाओगे.यह ब्लॉग-जगत बड़ा निर्मम है,इस मामले में !

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    1. आपसे सहमत हूँ संतोष जी ।

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  34. छोटी बहर की ग़ज़ल अच्छी लगी. बात भी सही है भले सोलह आने न हो...मुझे लगता है कि हिंदी ब्लॉगिंग अभी शैशवावस्था में है (ब्लॉगर नहीं) नया माध्यम है. वर्तमान भले कुछ संकटमय दिखता हो लेकिन भविष्य का मीडिया यही होगा. ऐसा मेरा विश्वास है.

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  35. चिठ्ठाकारी एक चाक्षुष माध्यम हैं .यहाँ आकर ज्ञान चक्षु जल्दी खुल जातें हैं .कभी कभार विस्फारित भी .'ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया 'राग ,विराग सब कुछ यहाँ आकर समझ में आजाता है .हाँ आपके लिखे को एक तुरता माध्यम मिलता है .आप अवसाद ग्रस्त होने से बच जातें हैं .ब्लोगिंग एक थिरेपी भी है व्यसन भी .अवसाद दूर करता है मोटापा बढाता है .एक्टिव और पेसिव नहीं होता चिठ्ठा कार स्मोकिंग की तरह .बस होता है .कुछ इस तरह -

    अपने होने का एहसास दिला देतें हैं ,

    जब ग़ज़ल कोई ज़माने को सुना देतें हैं .

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  36. चिठ्ठाकारी एक चाक्षुष माध्यम हैं .यहाँ आकर ज्ञान चक्षु जल्दी खुल जातें हैं .कभी कभार विस्फारित भी .'ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया 'राग ,विराग सब कुछ यहाँ आकर समझ में आजाता है .हाँ आपके लिखे को एक तुरता माध्यम मिलता है .आप अवसाद ग्रस्त होने से बच जातें हैं .ब्लोगिंग एक थिरेपी भी है व्यसन भी .अवसाद दूर करता है मोटापा बढाता है .एक्टिव और पेसिव नहीं होता चिठ्ठा कार स्मोकिंग की तरह .बस होता है .कुछ इस तरह -

    अपने होने का एहसास दिला देतें हैं ,

    जब ग़ज़ल कोई ज़माने को सुना देतें हैं .

    हाँ यहाँ एक के बदले एक टिपण्णी चलती है कई एक के साथ दो टिपण्णी सौगात में दे देतें हैं .'तेरी टिपण्णी के सिवाय दुनिया में रख्खा क्या है ,तू लिखे शम्मा जले ,तू लिखे काम चले ,तेरा आना तेरा जाना मुझे लगता है भला ...

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    1. बुजुर्गों के लिए बढ़िया टाइम पास है वीरूभाई जी । बेशक टिप्पणियों की खुराक मिलती रहे तो गाड़ी चलती रहती है ।

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  37. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती आप के ब्लॉग पे आने के बाद असा लग रहा है की मैं पहले क्यूँ नहीं आया पर अब मैं नियमित आता रहूँगा
    बहुत बहुत धन्यवाद् की आप मेरे ब्लॉग पे पधारे और अपने विचारो से अवगत करवाया बस इसी तरह आते रहिये इस से मुझे उर्जा मिलती रहती है और अपनी कुछ गलतियों का बी पता चलता रहता है
    दिनेश पारीक
    मेरी नई रचना

    कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद:
    http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl

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  38. Something is better than nothing :)
    even when many r gone, few(extremely good) Hindi bloggers r still active... n every time I read them( agree my frequency is too weak and my circle is too small, but still) its a Treat !!!

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  39. never mind . in your age , it is more important to concentrate on your carrier . best wishes .

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  40. आपने भी किस नब्ज़ पे हाथ रख दिया ... वैसे सच है अच्छे अग्रीगेटर का न होना एक कारण है ...
    बाकी आपने सभी मसले बहाने तरीके ... खोल के लिख दिए हैं ...
    रही कही आपकी लाजवाब गज़ल ने भी कह दिया है ... मज़ा आ गया पूरी पोस्ट का ...

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    1. क्या करें नासवा जी । खाली सूने पड़े ब्लोग्स को देखकर वास्तव में दुःख सा होता है । कैसे टिकेंगे लोग बिना टिप्पणियों के ज्यादा दिन ब्लोगिंग में ।

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    2. फरवरी '०५ में मैंने, समाचार पत्र में पढ़, ब्लॉग संसार में एक अंग्रेजी ब्लॉग पर टिपण्णी लिख प्रवेश पाया...
      वैसे ही जैसे पानी में काँटा डाल एक मछुआरा बैठा रहता है - इस आशा से की कभी तो कोई मछली फंसेगी ही - 'बेचारी' वर्ष-दो वर्ष से मंदिरों पर पोस्ट पर पोस्ट डाल रही थी, पर कोई टिप्पणी नहीं आ रहीं थीं, जिस कारण वो खुश हो गयी, क्यूंकि उसके बाद कई और तिप्पंणीकार आते चले गए और दायरा बढ़ता गया ...
      और यद्यपि बीच में जब सोचा मुझे जो आता था मैंने लिख दिया है, तो उसने मुझसे उसकी हर पोस्ट पर टिपण्णी करने का आग्रह किया, जिसे में निभाता आया हूँ...
      इस बीच में उस का विवाह हो गया है और अब एक बेटा भी है, जिस कारण अब वो माह दो माह में एक ही पोस्ट लिखती है, जबकि पहले वो हर सप्ताह में एक पोस्ट तो लिखती ही थी... मुझे भी आनंद प्राप्त होता है मंदिरों आदि के विषय पर जानकारी पा...

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  41. 50000 और 1000... सचमुच बड़ा अंतर है...

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  42. अच्छा विश्लेषण किया है आपने. एक अच्छे संकलन की कमी तो खल ही रही है.

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  43. डॉक्टर साहब बहुत बढ़िया विष्लेषण प्रस्तुत्त किया. इस सभी बीमारियों का इलाज भी तो ढूँढने पड़ेंगे. हो सकता है जो सक्रिय ब्लॉगर बचे हैं उन्हें कुछ अधिक समय देकर इस विधा को कुछ समय तक और जीवित रखने का सामूहिक प्रयास.

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  44. जी सही कहा । इसीलिए हम तो नहीं छोड़ने वाले अभी ।

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  45. बहुत अच्छा लिखा है आपने ... मैं भी कुछ वक़्त के लिए गयी थी .. पर अब लौट आई हूँ ... :)

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    1. स्वागत है । ब्लोगिंग में श्रधानुसार योगदान देती रहें ।

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  46. अपने तीन साल के अनुभव में इतना ज़रूर देखा है कि ब्लोगिंग में टिप्पणियों का बहुत महत्त्व है । यदि पोस्ट पर टिप्पणी न हों तो ऐसा लगता है जैसे आप भैंस के आगे बीन बजा रहे हैं । कुछ लोग पोस्ट पर टिप्पणी का ऑप्शन बंद कर देते हैं । वह तो और भी ख़राब लगता है । ऐसी पोस्ट को पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है जैसे यह एक तरफा ट्रैफिक है । आप पढ़ तो सकते हैं लेकिन कुछ कह नहीं सकते । यह तो मेगालोमेनिया हुआ ।

    तीन साल के अनुभव से निकली शानदार पोस्ट ... गजल में सारी बात कह दी ... अच्छा विश्लेषण किया है

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  47. सही कहा डॉक्टर साहेब.....
    सोलह क्या....बत्तीस आना सच...!!
    मुझे तो आप सबके कमेन्ट पढ़ कर भी मज़ा आता है कभी कभी...!!
    आप पारखी जनों की नज़र से कुछ छुपता कहाँ है.....
    very true and eye opening post.....for everyone !!

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  48. टिप्पणियों का अपना महत्व है, माना ...
    लेकिन इन दिनों में ब्लॉगिंग संख्यात्मक दृष्टि से कम भले ही हुई है , गुणवत्ता बढ़ी है ...
    एग्रीगेटर का ना होना पहले पहल बहुत अखरा था , मगर अब ठीक लग रहा है , फालतू के लडाई- झगड़ों पर अंकुश लगा है .
    मुझे भी हंसी आती है जब अपना लिखा इमेल करने वाले स्वयं किसी ब्लॉग पर नजर नहीं आते ..
    तीन वर्षीया अनुभव समेट दिया आपने शब्दों में ..

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    1. वाणी जी , इसीलिए कहा जाता है -- form is temporary , class is permanant. यही बात ब्लोगिंग में भी लागु होती है . गुणवत्ता के आधार पर अभी भी टिके हैं लोग .

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  49. पहले जब अंतरजाल नहीं था तो आदमी क्या करता था???
    यह तो आज सभी को पता ही होगा कि पहले जोगी, भौतिक संसार की परेशानियों के कारण 'सत्य की खोज में', हिमालय आदि किसी स्थान में एकांत की खोज में, चले जाते थे...
    शेष, जो भीड़ में ही रहते रहे, और बाहरी शक्तियों से प्राकृतिक रूप से तीव्र बुद्धि, शारीरिक शक्ति और अनुभव के आधार पर बचाव के उपाय कर, शान्ति पूर्वक रहने में सफल भी हो गए होंगे - उन्हें अपने अनुभव दूसरों से बांटने की इच्छा से डायरी लिखबे का शौक पैदा हुआ होगा और अन्य अल्पबुद्धि को भी अवसर प्राप्त हुआ होगा उनके ज्ञान से लाभ उठाने का... इस प्रकार गुरु-शिष्य परम्परा का आरम्भ हुआ होगा... और फिर मानव की इसी प्रकृति के कारण वर्तमान में हम पाते हैं की अंतरजाल पर हर विषय पर सभी प्रकार की जानकारी उपलब्ध है... किन्तु, बहुत से प्रश्न फिर भी दिल में ही रह जाते हैं क्क्युनकी लिखित सूचना मानव के सभी प्रश्नों का उत्तर नहीं देता, जो ब्लॉग के माध्यम से सरल हो सकता है... आदि आदि...

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    1. P.S.
      डॉक्टर साहिब, आपकी सेंचुरी पूरी हो गयी, पर रिकोर्ड में केवल '88' रन ही बने हैं 'क्यूंकि' शैतान गूगल (आदम समान, इव के माध्यम से सेब खाने समान) कुछेक टिप्पणी खा जाता है, और कुछ शब्दों को तो कुछ का कुछ बना देता है...:)

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  50. यह एक अनुभवी ब्लॉगर की दास्तान है जो न सिर्फ अपने काम के प्रति समर्पित है,बल्कि अपने परिवेश के प्रति भी आंखें खोले हुए है। शायद ही कोई इन बातों से असहमत हो।
    ब्लॉगिंग की मौजूदा स्थिति और गूगल की कई अन्य नाकाम तकनीकों को देखते हुए यह आशंका भी पैदा होती है कि कहीं ब्लॉग की सुविधा ही न समाप्त कर दी जाए। यह एक खेदजनक स्थिति होगी क्योंकि आप समेत बहुत से ब्लॉगरों ने काफी अच्छा काम किया है जिनसे अन्यथा परिचय शायद ही संभव होता।
    टिप्पणी की समस्या विचित्र है। बंद कर दें तो पता नहीं चलता कि कौन आया और खुला रखें तो वही सार्थक प्रस्तुति,बेहतरीन,उम्दा लेखन जैसी उबाऊ टिप्पणियां....,हालांकि इनसे भी कई लोग अपना उत्साहवर्द्धन होते बताए जाते हैं।
    हम तो बस आपको अपनी शुभकामनाएं देना चाहेंगे। आप भी स्नेह बनाए रखिएगा।

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    1. राधारमण जी , गूगल के बंद होने से सचमुच हिंदी ब्लोगिंग को बहुत बड़ा धक्का लगेगा .
      टिप्पणियों में भले ही औपचारिकतायें ज्यादा हों , फिर भी सार्थक बातें भी पढने को मिल जाती है . फिर थोड़ी मौज मस्ती भी हो जाती है . इसलिए ऑप्शन बंद नहीं करना चाहिए .
      आपकी पोस्ट्स अक्सर हमें भी काफी जानकारी दे जाती हैं . आभार .

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  51. JCMar 25, 2012 10:52 PM
    P.S.
    डॉक्टर साहिब, आपकी सेंचुरी पूरी हो गयी, पर रिकोर्ड में केवल '88' रन ही बने हैं 'क्यूंकि' शैतान गूगल (आदम समान, इव के माध्यम से सेब खाने समान) कुछेक टिप्पणी खा जाता है, और कुछ शब्दों को तो कुछ का कुछ बना देता है...:)

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    1. जे सी जी , बेशक ब्लोग्स से भी बहुत सी दिलचस्प और काम की जानकारियां मिल जाती हैं .
      इसलिए जो हमें पता है , वो हम लिख देते हैं और कुछ दूसरों से प्राप्त कर लेते हैं .
      सेंचुरी --हा हा हा ! गूगल के अपने नखरे हैं .

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  52. तुक भिड़ाने का समय नहीं है इसलिये हमारी ओर से एक पुराने फ़िल्मी गीत के रूपांतरण से काम चलाइये:

    ये ब्लॉगिंग नहीं जागीर किसी की
    राजा हो या रंक यहाँ तो सबके दिन दो चार
    कुछ तो आ कर चले गये कुछ जाने को तैयार

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  53. लगे रहिये...हम भी भरसक लगे हैं...एक दौर है -गुजर जायेगा..फिर बहार आयेगी. शुभकामनाएँ एवं बधाई.

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  54. गूगल द्वारा टिप्पणियों और पोस्ट्स को गायब कर देना ,

    मैं तो त्रस्त हूँ इस समस्या से....

    और अब तो आपके कहने से टेम्पलेट भी बदल दिया fir भी वही हाल है ....

    अब गूगल devta को कैसे प्रसन्न करूँ ....?

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    1. JCMar 27, 2012 09:31 PM
      हीर जी, नमस्कार! आपकी पुस्तक प्रकाशित हुई कि नहीं?
      जहां तक गूगल देवता का प्रश्न है, ये 'पश्चिम दिशा' के राजा, (अथवा नौकर), हैं... हर हमारे पूर्वज शनि देवता को 'पश्चिम दिशा', और नीले रंग, से सम्बंधित जाने हैं, आप मानो या न मानो...:)
      मुहम्मद रफ़ी का गाया एक गाना सूना था, "बड़ा ही 'सी आई डी' है यह नीली छतरी वाला"...!
      अब यह आपके ऊपर निर्भर है कि आपको 'छतरी' के स्थान पर पगड़ी/ टोपी/ मोरपंख आदि आदि क्या लगाना है...
      आशा है यदि इस मन्त्र को दिल से, आस्था के साथ, गायेंगे तो सफलता मिलने की आशा अधिक हो जायेगी...
      सभी को नवरात्रि की शुभ कामनाएं!

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    2. आपकी सेंचुरी पूरी करने के लिए मस्तिष्क की चालाकी, जैसी मिली, अंग्रेजी में नीचे दे रहा हूँ...
      बहुत बहुत बधाई!

      This will confuse your mind and you will keep trying over and over again to see if you can outsmart your foot, but, you can't. It is pre-programmed in your brain! 1. While sitting at your desk in front of your computer, lift your right foot off the floor and make clockwise circles. 2. Now, while doing this, draw the number '6' in the air with your right hand. Your foot will change direction. I told you so! And there's nothing you can do about it!

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    3. Quite right so .
      सेंचुरी की बात पर अपना क्रिकेट प्रेम जाग उठा . :)
      १९७०s में चेतन चौहान बैटिंग की ओपनिंग करते थे गावस्कर के साथ . यह उन दिनों की सबसे सफल आरंभिक जोड़ी थी . लेकिन बढ़िया बल्लेबाज होते हुए भी चौहान कभी सेंचुरी नहीं बना सके .
      बॉलिंग में एकनाथ सोलकर माध्यम तेज गेंदबाज थे जो आबिद अली के साथ मिलकर बस ४ -४ ओवर फेंकते थे और फिर स्पिन बॉलर आ जाते थे . मुझे याद है , सोलकर ने १९७३ -७४ में अपनी आखरी पारी खेलते हुए मेडेन सेंचुरी लगाई थी . :)

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    4. चेतन चौहान से अक्सर पूछा जाता था कि आप हमेशा स्कोर तो अच्छा करते थे,पर सेंचुरी कभी नहीं लगा पाए। एक बार चेतन चौहान ने जवाब में पूछा,"70-80 रन कम होते हैं क्या?"

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    5. सही कहा . चेतन चौहान नॉन सेंचुरियन बढ़िया बल्लेबाज रहा .

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  55. सही कहा आपने...हमें ब्लोगिंग छोड़ना नही चाहिए ..मैं स्वयं भी बहुत कम समय निकल पाती हूँ ब्लोगिंग के लिए ..कारण बोले तो हज़ार हैं ...लेकिन भगवान ने चाहा तो अब ब्लोगिंग नियमित होती रहेगी ..आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी ...बहुत अच्छी बात सिखा गयी ..बहुत सा धन्यवाद

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  56. आपक लेख पढ़ने के बाद ऐसा लगता हैं जैसे ..ये वो मीठी बबलगम हैं जो पहले पहले अच्छी लगती हैं ...और बाद में ना छोड़ी जाये और ना निगली जाये ....डॉ साब ..आपको विश्वास दिलाते की हम ब्लोगिंग नहीं छोड़ेंगे ...

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  57. हूँऊँ..बात गम्भीर है, भले ही कही हल्के फ़ुल्के ढ़ंग से गयी हो। ब्लॉग्स, ब्लॉगर्स, टिप्पणीकार और टिप्पणियाँ ...सभी पर सूत्र रूप में किंतु आवश्यक चर्चा की है डॉक़्टर साहब आपने, वह भी बिना लाग लपेट के। हिन्दीब्लॉग सामूहिक जन-चेतना का प्रतीक बन गया है। मैं आशान्वित हूँ...आग सुलगेगी ही नहीं बल्कि भभक कर जलेगी...बस हमारी आत्मायें ज़िन्दा भर बनी रहनी चाहिये। नितांत आत्ममुग्ध ब्लॉगर्स अधिक समय तक टिक नहीं सकेंगे...टिकना चाहिये भी नहीं। जो सम्वेदनशील होगा वही टिकेगा ...उसे ही टिकने की ज़रूरत है।आज पहली बार आपके कनाट प्लेस में आया हूँ। :)

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    1. कौशलेन्द्र जी , आपका मतलब ब्लॉग से है या वास्तव में दिल्ली आए हुए हैं ?

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