एक पंजाबी लड़के से एक बुढ़िया ने पूछा --ओये काके तेरे किन्ने बच्चे हैगे ?
लड़के ने कहा --बेबे ए व्ही हैगे कोई पंज सत मुंडे ते पंज सत कुड़ियां ।
बेबे --ओये मरजानिया , तेरा गुजारा किस तरां चलदा ए ? ओये तू करदा की ए ?
लड़का --कुछ नहीं बेबे , हाले ते मैं एही कर रह्याँ ।
यह पंजाबी लतीफ़ा मैंने करीब तीस साल पहले रेडियो पर सुना था ।इसे सुनकर यही याद आता है कि --पहले मुर्गी पैदा हुई या अंडा !
यानि देश की बढती आबादी का कारण बेरोज़गारी है या आबादी की वज़ह से बेरोज़गारी बढ़ रही है ?
कुछ भी हो पर यह काम हम बखूबी कर रहे हैं ।
बस इसी तरह काम करते करते हम १२१ करोड़ की संख्या पार कर गए हैं । अब तो लगता है कि सन २०२५ तक हम चीन को भी पछाड़ देंगे ।
ऐसा अनुमान ही नहीं विश्वास भी है ।
लेकिन विकसित देशों में ऐसा नहीं है । वहां किसी को फुर्सत ही नहीं होती , बच्चे पैदा करने की । बेचारे काम के बोझ तले इस कदर दबे रहते हैं कि उन्हें बच्चे पैदा करना भी एक बोझ ही लगता है ।
इसी का नतीजा है कि इन देशों में युवाओं की संख्या घटती जा रही है और एजिंग पोपुलेशन बढती जा रही है ।
प्रस्तुत है कुछ साल पहले अख़बार में छपी एक खबर के आधार पर लिखी एक रचना :
पता चला है कि
इंग्लेंड के आदमी और कुत्ते ,
काम में इतना मशगूल हो जाते हैं ,
कि मालिकों की तरह उनके कुत्ते भी,
बच्चे पैदा करना ही भूल जाते हैं।
अब तो ब्रिटिश सरकार को भी ,
ये सत्य सताता है,
कि वहां दोनों प्रजातियों में ,
बच्चे कम, और बुजुर्गों की संख्या ज्यादा है।
इस विचार से हमारी सरकार तो,
बडी भाग्यशाली है,
क्योंकि यहाँ बच्चे और कुत्ते ,
दोनों के मामले में खुशहाली है।
और इस खुशहाली से ,
सरकार कुछ तो चिंतित नजर आ रही है,
पर ऐसा लगता है कि अमेरिकन सरकार को ,
इसकी चिंता ज्यादा सता रही है।
और जब ज्योर्ज बुश को ,
चिंता ने अधिक सताया,
तो एक वैज्ञानिक आयोग बैठाया,
और उन्होंने पता लगाकर बताया ,
कि धरती पर १.३ मिलियन बिलियन ,
मनुष्य रह सकते हैं।
यानी अभी हम और दो लाख गुना ,
लोगों का बोझ सह सकते हैं।
अब ये जान कर उनकी तो ,
जान में जान आई,
पर उनके सामान्य ज्ञान पर ,
हमको बड़ी हँसी आई।
हमें तो ये बात पहले ही पता थी,
तभी तो हम चैन से जिए जा रहे हैं,
और बेफिक्र होकर बेधड़क,
बच्चे पैदा किए जा रहे हैं।
नोट : साधन सीमित हैं , परिवार भी सीमित रखिये ।
लड़के ने कहा --बेबे ए व्ही हैगे कोई पंज सत मुंडे ते पंज सत कुड़ियां ।
बेबे --ओये मरजानिया , तेरा गुजारा किस तरां चलदा ए ? ओये तू करदा की ए ?
लड़का --कुछ नहीं बेबे , हाले ते मैं एही कर रह्याँ ।
यह पंजाबी लतीफ़ा मैंने करीब तीस साल पहले रेडियो पर सुना था ।इसे सुनकर यही याद आता है कि --पहले मुर्गी पैदा हुई या अंडा !
यानि देश की बढती आबादी का कारण बेरोज़गारी है या आबादी की वज़ह से बेरोज़गारी बढ़ रही है ?
कुछ भी हो पर यह काम हम बखूबी कर रहे हैं ।
बस इसी तरह काम करते करते हम १२१ करोड़ की संख्या पार कर गए हैं । अब तो लगता है कि सन २०२५ तक हम चीन को भी पछाड़ देंगे ।
ऐसा अनुमान ही नहीं विश्वास भी है ।
लेकिन विकसित देशों में ऐसा नहीं है । वहां किसी को फुर्सत ही नहीं होती , बच्चे पैदा करने की । बेचारे काम के बोझ तले इस कदर दबे रहते हैं कि उन्हें बच्चे पैदा करना भी एक बोझ ही लगता है ।
इसी का नतीजा है कि इन देशों में युवाओं की संख्या घटती जा रही है और एजिंग पोपुलेशन बढती जा रही है ।
प्रस्तुत है कुछ साल पहले अख़बार में छपी एक खबर के आधार पर लिखी एक रचना :
पता चला है कि
इंग्लेंड के आदमी और कुत्ते ,
काम में इतना मशगूल हो जाते हैं ,
कि मालिकों की तरह उनके कुत्ते भी,
बच्चे पैदा करना ही भूल जाते हैं।
अब तो ब्रिटिश सरकार को भी ,
ये सत्य सताता है,
कि वहां दोनों प्रजातियों में ,
बच्चे कम, और बुजुर्गों की संख्या ज्यादा है।
इस विचार से हमारी सरकार तो,
बडी भाग्यशाली है,
क्योंकि यहाँ बच्चे और कुत्ते ,
दोनों के मामले में खुशहाली है।
और इस खुशहाली से ,
सरकार कुछ तो चिंतित नजर आ रही है,
पर ऐसा लगता है कि अमेरिकन सरकार को ,
इसकी चिंता ज्यादा सता रही है।
और जब ज्योर्ज बुश को ,
चिंता ने अधिक सताया,
तो एक वैज्ञानिक आयोग बैठाया,
और उन्होंने पता लगाकर बताया ,
कि धरती पर १.३ मिलियन बिलियन ,
मनुष्य रह सकते हैं।
यानी अभी हम और दो लाख गुना ,
लोगों का बोझ सह सकते हैं।
अब ये जान कर उनकी तो ,
जान में जान आई,
पर उनके सामान्य ज्ञान पर ,
हमको बड़ी हँसी आई।
हमें तो ये बात पहले ही पता थी,
तभी तो हम चैन से जिए जा रहे हैं,
और बेफिक्र होकर बेधड़क,
बच्चे पैदा किए जा रहे हैं।
नोट : साधन सीमित हैं , परिवार भी सीमित रखिये ।
"साधन सीमित हैं , परिवार भी सीमित रखिये"
ReplyDeleteइस रचना के माध्यम से बहुत अच्छा सन्देश दिया है सर!
.सादर
दराल साहब, मुझे एक बार परिवार बनाने का सर्टिफिकेट मिल जाये। फिर देखना आपकी इस बात को बखूबी याद रखूंगा।
ReplyDeleteवाह हुज़ूर ... क्या अंदाज़ ऐ बयां है आपका ... वाह !
ReplyDeleteek hee shavd WOW !
ReplyDeletebahut hi rochak or sath men prerak bhi ...abhaar
ReplyDeleteगहन सन्देश ...हास्य का पुट लिए हुए ...अच्छी हास्य रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सन्देश देती रचना …………
ReplyDeleteहमें तो ये बात पहले ही पता थी,
ReplyDeleteतभी तो हम चैन से जिए जा रहे हैं,
और बेफिक्र होकर बेधड़क,
बच्चे पैदा किए जा रहे हैं।
वाह वाह दराल जी
आपका सन्देश देने का यह तरीका बहुत पसंद आया ..गंभीर से विषय को आपने बहुत सहजता से प्रस्तुत कर दिया ..इस सार्थक प्रस्तुति के लिए आपका आभार ..!
उत्तम,प्रेरक और अनुकरणीय सन्देश है.
ReplyDelete'क्रन्तिस्वर'पर व्यक्त आपकी सद्भावनाओं हेतु हार्दिक आभार एवं धन्यवाद.
बढियां फुलझड़ी
ReplyDelete.ज़वाब नहीं आपका,
ReplyDeleteबातों में फँसा कर परिवार नियोजन का सँदेश पकड़ा दिया !
यहाँ ब्लॉगर पर 65% बुढ़वों का आना जाना है, जो अपने बच्चों से नाती पोते की उम्मीद पाले बैठे हैं ।
दूसरी तरफ़ ....
" हमें तो ये बात पहले ही पता थी,
तभी तो हम चैन से जिए जा रहे हैं,
और बेफिक्र होकर बेधड़क,
बच्चे पैदा किए जा रहे हैं ।"
उद्धरण में चैन से जीने वालों ने दिल धड़का रखा है, भारत को चीन से बराबरी करने के लिये 2015 तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी । हमने पहले ही उन्हें पीछे छोड़ रखा है । प्रति वर्ग-किलोमीटर के हिसाब से हमारे यहाँ जनसँख्या का घनत्व 8.2 गुना अधिक है.. क्या कहते हैं ?
________________________________________________
कभी हमारे ब्लॉग पर भी आकर अपने आशीर्वचनों से अनुगृहीत करें :-)
You have raised the question at right time as there is begining of concept as to how many people this earth can sustain.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteis jansnkhya ko agar sahi raste par lagaya jaye (china kee tarah) to bahut kuchh ho sakta hai :)
ReplyDeletebadhiya rachna vyang ke taqdke ke saath.
population burst.... Serious problem in a very
ReplyDeletein a very funny but full of sarcastic way..
I enjoyed each single verse.
युरोप मे सच मे बच्चे कम हो रहे हे, यहां सरकार बच्चे पेदा होने पर २०,२२ हजार € देती हे, फ़िर बच्चे का सार भार यानि खर्च भी सहन करती हे जब तक बच्चा कमाने ना लग जाये, लेकिन लोग तब भी बच्चे नही पेदा करते? कारण साफ़ हे लोग शादी नही करना चाहते,फ़िर समय कहां लोगो के पास, अजी अपने देश मे तो समय ही समय हे, कल स्टोर मे मै अंडे खरीदने गया, तो देखा एक मुर्गी भी लाईन मे लगी हे, मैने पुछा क्या तुम भी अंडे लेने आई हो? तो बोली अरे १ € के अंडो के पिछे मै अपनी फ़ीगर क्यो खराब करुं...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteअगली पोस्ट में इस प्रश्न का जवाब भी दे देना!
हा हा हा ! नीरज भाई यूँ ही घूमते रहोगे तो ---??? लेकिन चलता है , घूमने का हमें भी बड़ा शौक रहा है ।
ReplyDeleteडॉ अमर कुमार जी , पता चला है कि सन २०२५ तक हमारी आबादी चीन से अधिक हो जाएगी जो करीब १३४ करोड़ होगी । यानि जहाँ चीन की आबादी स्थिर हो जाएगी , वहीँ हम फलते फूलते रहेंगे ।
आइयो रामा , आपने लिखना शुरू कर दिया है तो ज़रूर आपको पढना हमारा सौभाग्य होगा ।
काजल जी , गणित तो डरा रहा है ।
ReplyDeleteशिखा जी , लेकिन चीन की तरह रोकना भी पड़ेगा । और बेशक इसका इलाज तो एक बच्चा ही है । लेकिन क्या हम कर पाएंगे ?
हा हा हा ! भाटिया जी आपने भी मज़ाक मज़ाक में सही बात कह दी । बिल्कुल ठीक फरमा रहे हैं जी ।
शास्त्री जी , इस प्रश्न का ज़वाब ढूंढते ढूंढते ही तो हम १२१ करोड़ हो गए हैं ।
ReplyDeleteहंसी खेल बहुत हो चुका , अब तो ज़रुरत है कुछ कठोर कदम उठाने की । लेकिन क्या कोई ऐसा करना चाहता है ?
आज सारी समस्याएँ जैसे बिजली , पानी , मकान , राशन , प्रदूषण , महंगाई आदि सभी अत्याधिक जनसँख्या की वज़ह से है । कहाँ तक आपूर्ति की जा सकती है । एक न एक दिन तो बबल फूटेगा ही । तब क्या होगा --सिविल वार ?
डॉ.साहिब ,हंसी-हंसी में गंभीर सन्देश ....
ReplyDeleteसाधन सीमित हैं , परिवार भी सीमित रखिये ।
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश.पर यह हिंदुस्तान है.यहाँ लोकतंत्र है.
यहाँ वोट बैंक का राज है.
आप हँसी में गंभीरता की बात कर देते हैं.
न मुर्गी न अंडा, पहले मुर्गा। सही कहा न।
ReplyDelete---------
मौलवी और पंडित घुमाते रहे...
सीधे सच्चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।
आज सारी समस्याएँ जैसे बिजली , पानी , मकान , राशन , प्रदूषण , महंगाई आदि सभी अत्याधिक जनसँख्या की वज़ह से है ।
ReplyDeleteइसके बजाय यह कहना ज़्यादा सही होगा कि लालची, भ्रष्ट और अकुशल नेतृत्व और नौकरशाहों के कारण हैं ये समस्याएं। जनता के निकम्मेपन और उसकी योजनाहीनता को भी इसी में समाहित कर लीजिए तो तस्वीर मुकम्मल हो जाएगी।
ज़रा पता कर लीजिए कि हमारे देश की जनता प्रति वर्ष कितने खरब रूपयों की शराब, पान, गुटखा और नशीली चीज़ों का सेवन करती है। यह जनता अनुत्पादक कामों में अपना कितना समय ख़राब करती है।
यह जनता शादी आदि की आडंबरपूर्ण रस्मों पर कितना धन ख़राब करती है।
नेता सही दिशा दे और जनता श्रम करे और कमाए गए धन का सदुपयोग करे तो आबादी कितनी भी हो, सुखी रहेगी। हमें आबादी की अधिकता नहीं बल्कि हमारे ऐब बर्बाद कर रहे हैं।
इसका नाम है ‘नाच न जानै आंगन टेढ़ा‘
धन्यवाद !
http://ancient-ayurveda.blogspot.com/
जब हमारी आँख खुली तो सुनने में आया अंग्रेजी का कथन, जिसका तात्पर्य था, "जितने अधिक / उतना आनंद" और ऐसा आम देखा जाता था जैसे एक दर्जन बच्चे अधिकतर का लक्ष्य हो!... हमारे समय में सरकारी कथन था "दो या तीन बस", जो कुछ ही वर्ष बाद हो गया, "हम दो / हमारे दो"... आज मध्य वर्गीय शहरी परिवार में अधिकतर लोगों के एक या दो बच्चे ही दिखाई पड़ते हैं...
ReplyDeleteक्यूंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम जाना गया है, तो डॉक्टर साहिब क्या इस घटती संख्या को प्राकृतिक माना जा सकता है ? और २१ दिसंबर को ध्यान में रख क्या यह संकेत हो सकता है प्रकृति का शून्य की ओर अग्रसर होने का ?
पुनश्च:
ReplyDeleteनॉन वेज के सामने सवेरे ब्रेकफास्ट में अंडे का आमलेट आया और लंच/ डिनर में चिकन करी :)
किन्तु साकार संसार को 'माया' जान और स्वयं को अकेला मान, जोगी केवल खुली हवा में सांस ले कर ही जीना सीखा :)
achhi lagi post.......
ReplyDeleteहास्य का पुट लिये समस्या सामने है, लेकिन चीन के समान ही राहत की बात यह भी लग सकती है कि वर्तमान में भारत में भी दम्पत्ति एक बच्चा ही पैदा कर रहे हैं और और उसके बाद इस विषय से तौबा करते ही देखे जा रहे है ।
ReplyDeleteआपका ये लेख तो, भारतवासी खासकर गरीब मानने से रहे, कोई अल्ला की देन कहेगा, कोई बुढापे का सहारा कहेगा, वो दिन दूर नहीं जब हम जनसंख्या में पहले स्थान पर होंगे,
ReplyDeleteडॉ अनवर ज़माल जी , आपने जो कारण जोड़े हैं , वह भी सहयोगी हैं आम आदमी की समस्याओं में । लेकिन आपूर्ति की भी एक सीमा तो रहेगी ही । इसलिए अभी से सचेत हो जाएँ तो बेहतर है । हालाँकि इस मामले में विचारों में असहमति हो सकती है ।
ReplyDeleteजे सी जी , यह संख्या कुछ ही परिवारों में घट रही है । राष्ट्रीय स्तर पर अभी वृद्धि दर १.५ % के आस पास है । यानि हर वर्ष १.७ करोड़ की बढ़ोतरी । दस साल में १७ करोड़ ! इस हिसाब से तो हम चीन को २०२० में ही पार कर जायेंगे ।
किसी मामले में तो हम नंबर १ बन ही सकते है. बहुत टेलेंट है हमारे पास.
ReplyDeleteमजाक एक तरफ. गंभीर प्रश्न किया है आपने. इस पर गौर करना निहायत आवश्यक है. आभार.
बहुत सटीक.....
ReplyDeleteहमें तो ये बात पहले ही पता थी,
तभी तो हम चैन से जिए जा रहे हैं,
और बेफिक्र होकर बेधड़क,
बच्चे पैदा किए जा रहे हैं।
-सब शुरु से ज्ञानी हैं!! :)
डॉक्टर साहिब, इस अनुमान से कि जन संख्या समय के साथ इसी दर से बढ़ती ही जाएगी संभवतः सही न हो, क्यूंकि भूत में भी (ग्रैंड केन्यन पर शोध कर जैसे) देखा गया है कि कई विकसित सभ्यताएं एक स्तर पर पहुँच अचानक लुप्त हो जाती हैं, कई कारणों से... प्लेटो ने भी एक संभवतः अत्यंत विकसित कॉन्टिनेंट अटलांटिस के बारे में लिखा, जो संभवतः अफ्रीका और अमेरिका के बीचे में था, किन्तु सागर तल में समां गया,,, और यह सबको पता है कि 'भारत' के उत्तर में स्थित हिमालय श्रंखला भी सागर तल से ही पैदा हुई थी जबकि यहाँ पहले एक , वर्तमान में श्री लंका समान, 'जम्बुद्वीप' नामक द्वीप था ! और वर्तमान में भी छोटे मोटे नए द्वीप, न्यू मूर समान, समुद्र से अचानक बाहर निकल आते हैं...
ReplyDeleteउत्पत्ति के संकेत करते, विष्णु के पांचवे वामनावतार के विषय में, सांकेतिक भाषा में शायद, यह प्रचलित है कि उन्होनें 'राजा बलि' को उनके सर पर पैर रख पाताल पहुंचा दिया था ! शायद इसी कारण भारत में कथन अनादिकाल से चला आ रहा है "जो कल करना है, आज करले/ जो आज करना है अभी/ पल में प्रलय होएगी, बहुरि करोगे कब?" और मानव जीवन का उद्देश्य केवल निराकार ब्रह्म और उसके साकार रूपों को जानना कहा गया है, हम मानें या न मानें :)
सही कहा समीर लाल जी , यहाँ ज्ञानियों की कमी नहीं । इसीलिए दिन दुगना रात चौगुनी वृद्धि हो रही है ।
ReplyDeleteजे सी जी , प्रलय /महाप्रलय इतनी जल्दी नहीं आने वाली । बेशक वृद्धि दर में कमी आ रही है । लेकिन अब ज़रुरत है--जीरो वृद्धि दर की । तब आबादी स्थिर हो जाएगी कुछ समय के लिए । चीन यह २०२५ तक प्राप्त कर लेगा । लेकिन हम सोच भी नहीं रहे । इसलिए नंबर एक आना तो तय है ।
हम तो 'लातों के भूत हैं/ बातों से कहाँ मानने वाले', हमने यानि संजय गाँधी ने तो सोचा था सत्तर के दशक में, किन्तु इंदिरा गाँधी की सरकार ही फेल हो गयी :) भले ही फिर वापिस आगई हो - जो भारत में ही शायद संभव है... चीन में कम्युनिस्ट हैं और उनकी समस्याएं और शाशन विधि हमारे देश से भिन्न हैं... टीएनमान चौक क्या भारत में संभव है ? हमारी तुलना उनसे नहीं की जानी चाहिए, लाल झंडे वाले कोम्युनिस्ट तो माँ काली (लाल जिव्हा वाली) और माँ दुर्गा (सुनहरे बाघ पर आरूढ़) के प्रदेश बंगाल में भी, ३४ वर्ष के राज्य के बाद, हार गए अकेली ममता दीदी से, जो शायद कुछ संकेत हों आने वाले समय के...
ReplyDeleteप्राचीनतम सभ्यता वाला भारत नम्बर वन सदैव रहा है और रहेगा...
न तेल और न बाती, न काबू हवा पे
ReplyDeleteदिये क्यों जलाए चला जा रहा है?
डॉक्टर साहिब,ज्ञानी हम सदियों से है, अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने का हमारा इतिहास रहा है, अब तो बेरोजगारी एक बहुत बड़ा कारण है बढती जनसँख्या का, कुछ तो काम करना चाहिए, कुत्तों का काम भी तो प्राइवेट सुरक्षा गार्ड कर रहे है फिर मजबूरी है मनुष्यों की भी और कुत्तों की भी
ReplyDeleteक्यों लोगों के सुख में खलल डाल रहे हो?
ReplyDeleteअजित जी , ज्यादा बच्चे पैदा करने में कौन सा सुख मिलता है ?
ReplyDeleteएक कड़वी और चिंताजनक यथार्थ को आपने व्यंग्य के आवरण में लपेट कर पेश किया है.
ReplyDeleteपर स्थिति सचमुच बहुत ही चिंताजनक है.
विदेशियों को बच्चे पैदा करने की फुरसत नहीं है और हमारे लिए वह एक अनिवार्यता है। आउटसोर्सिंग और ग्लोबल विलेज के इस ज़माने में,मुझे तो मामला एकदम बैलेंस्ड मालूम पड़ता है।
ReplyDeleteइंग्लेंड के आदमी और कुत्ते ,
ReplyDeleteकाम में इतना मशगूल हो जाते हैं ,
कि मालिकों की तरह उनके कुत्ते भी,
बच्चे पैदा करना ही भूल जाते हैं।
Great lines...lol...
Indians must take a lesson from this post.
.
गनीमत है कि यह समाचार यू ए ई से है, किन्तु भारत से भी सम्बंधित है... एक ६५ वर्षीय सज्जन, दाद अल मुहम्मद बालुशी, जयपुर आने वाले हैं अपनी १८ वीं भारतीय १८ से २२ वर्षीया पढ़ी लिखी पत्नी की खोज में... उनके अभी तक १७ पत्नियों से ९० बच्चे और ५० नाती पोते हैं :)
ReplyDeleteओशो के पास पहुच कर एक व्यक्ति रोने लगा भगवन मै बहुत गरीब हूं घर का खर्च चलता नहीं है मेरे दस बच्चे है।भगवन मै क्या करुं
ReplyDeleteओशो ने कहा - तू कुछ भी मत कर । कुछ भी करेगा तो ग्यारहवें की सम्भावना है।
बहुत सुन्दर व्यंग्य रचना,
ReplyDelete- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
दिव्या जी , लगता नहीं कि हम कभी सुधरेंगे ।
ReplyDeleteजे सी जी , शुक्र है कि ऐसे करोडपति शेख ज्यादा नहीं हैं ।
कुछ भी करेगा तो ग्यारहवें की सम्भावना है। हा हा हा ! बहुत खूब बृजमोहन जी ।
नमस्ते !
ReplyDeleteमैं आपके ब्लॉग पर टिप्पणी देने में असमर्थ हूँ इसलिए मेल द्वारा टिप्पणी बेज रही हूँ!
और जब ज्योर्ज बुश को ,
चिंता ने अधिक सताया,
तो एक वैज्ञानिक आयोग बैठाया,
और उन्होंने पता लगाकर बताया ,
कि धरती पर १.३ मिलियन बिलियन ,
मनुष्य रह सकते हैं।
यानी अभी हम और दो लाख गुना ,
लोगों का बोझ सह सकते हैं।
सटीक पंक्तियाँ! बहुत सुन्दरता से आपने सन्देश देते हुए सच्चाई को प्रस्तुत किया है! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
मेरी नयी कविता पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
उर्मी
आपका स्वागत है मनप्रीत जी । आते हैं ब्लॉग पर ।
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