मौसम भी गर्म है और माहौल भी । गर्मी को गर्मी से मारने के लिए आज प्रस्तुत हैं कुछ क्षणिकाएं , जो रोमांस पर आधारित हैं ।
इसे नौजवान पढेंगे तो खुश होंगे । लेकिन यदि भूतपूर्व नौजवान पढेंगे तो वे और भी खुश और रोमांचित होंगे , ऐसी उम्मीद है ।
वैसे मेरा मानना है कि जवानी के मामले में आदमी कभी भूतपूर्व नहीं होता ।
१) रात , चाँद और "चांदनी"
नीले आसमाँ में
बिखरी
चाँद की दूधिया
चांदनी में नहाकर
किसी धुंधली सी
याद में
डुबकी लगाने लगा
मन ।
आज फिर वो
गीत, हौले से
लबों पे उभर आया।
चंदा ओ चंदा ----
2) रूप , रूपसी और बेकसी
सोचता हूँ कहाँ होगी
कैसी होगी
क्या वैसी ही होगी ?
या फिर
वक्त की गर्म आँधियों ने
झुलसा दिया होगा
उसके रेशमी बालों को
और खींचदीं होंगी
गुलाब की पंखुड़ियों से
नर्म गुलाबी गालों पर
असंख्य आड़ी तिरछी
ज़ालिम लकीरें ।
एक तमन्ना थी
बस एक बार
उसका दीदार करूँ
पर डरता हूँ
क्या देख पाऊंगा
उस बेपनाह हुस्न पर
बेरहम वक्त की मार ।
अच्छा है जो
अंकित रहे
मानस पटल पर
वही छवि
मधुबाला की तरह ।
3) इश्क और बुढ़ापा
उनको देख जब
दिल धड़का
और
धड़कता गया
धड़कता गया ।
हम समझ गए
कि
मामला नाज़ुक है ।
फिर
ई सी जी किया
तो मियां
'दिल' के बीमार निकले ।
4 ) वक्त
बाला थी पिंकू
युवा बनी पिंकी
प्रोढ़ा हुई तो पिंको देवी कहलाई ।
वक्त ने नाम को भी नहीं बख्शा ।
नोट : इसे शुद्ध मनोरंजन के नज़रिए से पढ़ें । कृपया दिल पर मत लें ।
यदि पढ़कर कुछ याद आ गया हो तो बताइयेगा ज़रूर ।
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बिल्कुल्………दिल पर नही लिया जी…………सुन्दर अह्सास संजोये हैं।
ReplyDeleteवाह वाह वाह ..दूसरी वाली तो जबर्दस्त्त है.
ReplyDeleteमजेदार पोस्ट।
ReplyDeleteदिल क्या, दिमाग भी तर कर गईँ ये क्षणिकाएँ....
ईसीजी करानी पड़ेगी।
मज़ा आ गया सर!
ReplyDeleteसादर
डा.सा :क्रांतिकारी भी चिर युवा होता है.कवितायें अच्छी हैं.
ReplyDeleteऔर जब बूढी हुई तो पिन्केश्वरी ताई हो गई....
ReplyDelete.......
इस उम्र में यादों के सिवा रक्खा क्या है...
..........साधुवाद डाक्टर साब
सोचता हूँ कहाँ होगी
ReplyDeleteकैसी होगी
क्या वैसी ही होगी ?
या फिर
वक्त की गर्म आँधियों ने
झुलसा दिया होगा
उसके रेशमी बालों को
और खींचदीं होंगी
गुलाब की पंखुड़ियों से
नर्म गुलाबी गालों पर
असंख्य आड़ी तिरछी
ज़ालिम लकीरें ।... jane kaisi hogi ! per jaisi bhi hogi achhi hogi
एक तमन्ना थी
ReplyDeleteबस एक बार
उसका दीदार करूँ
पर डरता हूँ
क्या देख पाऊंगा
उस बेपनाह हुस्न पर
बेरहम वक्त की मार ।
तमन्ना तो सब की होती हे ना...
बताना य लिखना जरुरी हे:)
बहुत सुंदर रचनाऎ, आप को तो दिल का डा० होना चाहिये.
धन्यवाद
क्षण में बालपन से युवा मन तक और प्रौढावस्था से वृद्धावस्था तक की यात्रा करवा रही उत्तम क्षणिकाएँ...
ReplyDeleteअभूतपूर्व -
ReplyDeleteसम्मलेन का दूसरा हिस्सा ?
आपने मानो हम सब की भावनाओँ को ज़बान दी।
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी , यानि आप भी !
ReplyDeleteयोगेन्द्र जी कोई उम्र इस उस नहीं होती ।
रश्मि जी , दुआ तो यही है ।
भाटिया जी , किसी को तो लिखने का भी साहस करना चाहिए ।
अरविन्द जी , पढ़ा नहीं ? ?
ReplyDeleteपता चला आप तो आए थे ।
फिर कहाँ रहे ?
राधारमण जी , तभी तो कहते हैं सभी मर्द एक से होते हैं ।
पिंकू, पिंको या पिंको देवी हो या प्यार, इश्क, मुहब्बत... बात तो ढाई आखर की है :)
ReplyDelete.फुलगेंदवा न मारो...
ReplyDeleteलागत करेज़वा में चोट
डाक्टर साहेब जनाब, अपना तो हाल यह है कि,
किबला इस मतले पर गौर फ़रमायें...
पायी हुई दुनिया तो सँभाली नहीं जाती
खोयी हुई दुनिया के निशाँ ढूँढ़ रहे हैं
जब तक गधी ज़वान दिखे, अपुन खुश रहते हैं
उम्र इंसान की बढती है , खूबसूरत एहसास तो वहीँ थमे रह जाते हैं ...
ReplyDeleteतीनों क्षणिकाएं अच्छी लगी !
आज तो रोमांस कि जबरदस्त वारिश करा दी आपने. गर्मी में सर्दी का मज़ा. बहुत सुंदर.
ReplyDeleteडाक्टर ऐसी ही लिखते है क्या सारे?
ReplyDeleteवाह! क्या पूछा है अजित जी--- समझिये...
ReplyDeleteआशिकी की ये डोर भी कैसी है ’श्याम,
न याद कर पायें उन्हें न भूल पायें जनाब ॥
भूतपूर्व युवा के नाते पढ़ा ...आनंद आ गया।
ReplyDeleteसमय की मार तो शरीर झेलता है, मन तो बच्चा है जी :)
ReplyDeleteयह हास्य कहाँ ? दिल से निकली बातें हैं ..
ReplyDeleteरूप , रूपसी और बेकसी.... बहुत अच्छी लगी ..
वक्त ने नाम को भी नहीं बख्शा । सही बात है और आपकी बात योगेन्द्र जी ने पूरी कर दी। बहुत अच्छी रचनाये।इस भूतपूर्व युवती को भी अच्छी लगीं। बधाई।
ReplyDeleteaapne to apne dil ki baaten kah di.per isko kahane ke liye himmat chiye hoti hai jo sabke vase main nahin hai.aapki rachanaa,aur aapki himmat ki daad deti hoon.pahali baar aapke blog main aai hoon .rachanaayen padhkar aapki prasanshak ban gai hoon .badhaai aapko.
ReplyDeleteplease visit my blog and leave the comments also.thanks
अच्छा है जो
ReplyDeleteअंकित रहे
मानस पटल पर
वही छवि
मधुबाला की तरह ...
बहुत खूब .. क्या बात है डाक्टर साहब ... पर फिर भी ... दिल है की मानता नही ... देखना तो चाहता है ...
आपकी रचना पड़कर मधुबाला का स्मरण हो आया --और साथ ही पिंकी जी का भी ...आभार
ReplyDeleteएक तमन्ना थी
ReplyDeleteबस एक बार
उसका दीदार करूँ
पर डरता हूँ
क्या देख पाऊंगा
उस बेपनाह हुस्न पर
बेरहम वक्त की मार ।
....यह अहसास किस के दिल में नहीं होगा, पर फिर भी देखना चाहता है..सभी रचनायें बहुत सुन्दर..
अजित जी , ये कह सकते हैं कि डॉक्टर्स ऐसी भी लिखते हैं । वैसे डॉ श्याम ने सही लिखा है ।
ReplyDeleteदिव्या जी अभी तो हम ही पूर्व या भूतपूर्व नहीं हुए , फिर आप कहाँ --?
जे सी जी ने सही कहा दिल तो सदा युवा ही रहता है ।
नासवा जी , शर्मा जी , किसी ने सही कहा है --जलाये न जले --बुझाये न बुझे ।
ReplyDeleteसभी रचनायें बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteदराल साहब, असल में जब भी पतिदेव के दोस्तों से मिलना होता है या किसी मिटिंग में इन्हें सुनना पड़ता है तब ऐसी ही कविताएं सुनाई देती हैं, इसलिए लिखा था कि क्या यह यूनिवर्सल सत्य है?
ReplyDeletejise kuchh yaad na aaye ,wo na tab jawaan thaa na ab jawaan hai
ReplyDeleteअजित जी , ज्यादातर डॉक्टर बड़े जिन्दा दिल होते हैं ।
ReplyDeleteहा हा हा ! सही कहा अजय कुमार जी ।
वक्त के अहसास की बारीकियों से तराशी गयीं सभी क्षणिकाएं बेमिशाल है !
ReplyDeleteआभार !