एक दिन एक अभिन्न मित्र का फोन आया --भाई आज शाम को एक पार्टी रखी है । आपको आना है ।
मैंने कहा --भाई ज़रूर आयेंगे ।
फिर वो बोला --भाभी जी को भी साथ लाना ।
मैंने चुस्की लेते हुए कहा --भाभी जी ?-- किस की भाभी जी ?
वो थोड़ा सोच में पड़ा और बोला --भई मेरी और किस की ।
मैंने कहा -भई तेरी तो सैंकड़ों भाभियाँ हैं । ये बताओ कौन सी।
अब तो वो परेशान हो गया । फिर सोच कर बोला --यार तेरे वाली ।
मैंने कहा --यार कभी मेरी बोलता है , कभी तेरी । भाई तू पहले फैसला करले , फिर बताना ।
वो इतना कन्फ्यूज हुआ , उसने पार्टी ही कैंसिल कर दी ।
उपरोक्त घटना मज़ाक में की गई एक सच्ची घटना है । लेकिन इसके पीछे भी इतिहास और संस्कृति का एक ऐसा यथार्थ छुपा है जिसे शायद बहुत कम लोग जानते होंगे ।
आज़ादी से पहले पंजाब और हरियाणा कभी संयुक्त पंजाब का हिस्सा होते थे । १९४७ में पाकिस्तान बना तो एक हिस्सा वहां चला गया । बाद में भारत के पंजाब के दो हिस्से कर दिए गए --हरियाणा और पंजाब ।
ज़ाहिर है यह विभाजन भाषा के आधार पर किया गया था । पंजाबी बोलने वाले पंजाब का हिस्सा हो गए और हरियाणवी बोलने वाले हरियाणा में आ गए ।
लेकिन यह अंतर सिर्फ भाषा में ही नहीं था । हालाँकि बहुत से रीति रिवाज़ अभी तक मिलते हैं लेकिन कुछ ऐसी भी बातें हैं जो एकदम भिन्न हैं ।
यह भाभी जी वाला किस्सा भी उनमे से एक है ।
दरअसल यहाँ शहर में सिर्फ पंजाबी ही नहीं बल्कि आम तौर पर सभी शहरी लोग किसी दूसरे की पत्नी को भाभी जी कह कर बुलाते हैं । ५०-६० साल का प्रौढ़ भी ३०-३५ साल के दोस्त की पत्नी को भाभीजी कह कर ही बुलाएगा ।
लेकिन आप को यह जानकर आश्चर्य होगा कि हरियाणा में कोई किसी को भाभी जी कह कर नहीं बुलाता ।
पहले तो वहां भाभी कहलाने का हक़ सिर्फ बड़े भाई की पत्नी को होता है छोटे भाई के लिए । यानि वहां सिर्फ देवर भाभी का रिश्ता होता है । और देवर भी भाभी को भाभी जी कह कर नहीं बुलाते ।
सीधे नाम लेकर ही बुलाते हैं ।
साथ ही जेठ ( ज्येष्ठ भ्राता ) के लिए छोटे भाई की पत्नी बहु -बेटी समान होती है । उनके साथ उसी तरह व्यवहार किया जाता है ।
मुझे हरियाणवी संस्कृति में यही बात सबसे अच्छी लगती है कि वहां अभी भी लोग एक अनुशासित पारिवारिक ढांचे में रहते हैं । जहाँ बड़ों का सम्मान किया जाता है । छोटों को संरक्षण दिया जाता है । समाज की भलाई के लिए बनाये गए नियमों का पालन किया जाता है ।
हरियाणा में आज भी गाँव की कोई बेटी किसी भी गाँव में ब्याही गई हो , सारे गाँव वालों के लिए वह बेटी ही होती है । यदि उस गाँव में किसी शादी में जाना हो तो सारे बाराती लड़की को एक रुपया देकर सम्मानित करते हैं ।
लेकिन अफ़सोस कि जिस तरह हमारे शहरों में पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव बढ़ता जा रहा है , उसी तरह हरियाणा के गावों में शहरी चाल चलन का प्रभाव पड़ता जा रहा है ।
इससे युवा पीढ़ी भ्रमित होकर अपनी परंपरा और संस्कृति को भूलती जा रही है ।
और यहाँ शहर में बैठे हम बुद्धिजीवी लोग दोहरी मानसिकता का शिकार होकर अपनी युवा पीढ़ी को पाश्चात्य विकारों से तो बचने की सलाह देते हैं । लेकिन गाँव में रह रहे अपने कजंस को उसी राह पर चलते देख कर न सिर्फ आँखें बंध कर लेते हैं बल्कि इंसानियत और कानून की दुहाई देने लगते हैं ।
क्या ये दोहरे मांपदंड सही हैं ?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
डॉक्टर साहब खूब घुमाया बेचारे दोस्त को...
ReplyDeleteवैसे मेरठ में एक जुमला बड़ा सुना करता था...गरीब की जोरू, सब की भौजाई...
पंजाब के हिस्से होने की बात आपने की है...एक सवाल इस पोस्ट को पढ़ने वालों से पूछता हूं...पंजाब जब एक था तो उसकी राजधानी कौन सी थी...
जय हिंद...
संस्कृतियों का यह फर्क चौकाता भी है तो आश्वस्त भी करता है
ReplyDeleteबहुत बढिया जानकारी परक पोस्ट. लगभग पूरे देश में ही या अधिकांश हिस्सों में दोस्त की पत्नी को भाभी जी कहने का ही चलन है, वो बड़े हों या छोटे. देवर बड़े भाई की पत्नी का नाम ल, ये ठीक नहीं लगता. भाभी का स्थान वैसे भी मां के समान होता है. खैर.
ReplyDeleteहां ये सच है, कि आधुनिक सोच दोहरी मानसिकता की शिकार है. अ अपनी संस्कृति छोड़ पा रही, न पाश्चात्य पूरी तरह अपना पा रही :)
बाक़ी और जगहों की तरह हरियाणवी समाज भी दोहरी मानसिकता का शिकार है।
ReplyDeleteजब से हरियाणा में आधुनिकता ने प्रवेश नहीं किया था। तब से ही वहां बेटियों को मारने का चलन आम है। अब तरक्क़ी के दौर में गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या की जा रही है। एक तरफ़ गर्भ में ही बेक़ुसूर लड़कियां मारी जा रही हैं और दूसरी तरफ़ एक रूपया देकर सम्मानित भी की जा रही हैं।
क्या यह दोहरापन नहीं है ?
देखिए एक रिपोर्ट :
"पानीपत : मां के गर्भ में बच्चियों का क़त्ल शिक्षित घरानों में कहीं ज़्यादा"
डॉ अनवर zamal जी , aapki आपकी बात भी सही है । बेशक आज हरियाणा में सेक्स रेशो सबसे कम है । लेकिन इस मामले में कोई नहीं बचा । राजधानी के सबसे पोश एरिया में भी यह रेशो काफी कम पाई गई है ।
ReplyDeleteवहां कम से कम पैदा होने के बाद तो सम्मान मिलता ही है ।
अच्छा बुरा सब जगह है डॉ. साहब. जरुरत है अच्छा अपनाने की और बुरा छोड़ने की.
ReplyDeleteआपने सुन्दर चिंतन प्रस्तुत किया है.
'भाभी'जी को सादर प्रणाम.अब यह न कहियेगा कौन सी और किसकी भाभी.
मजाक से शुरू करके संजीदा बात कह दी आपने
ReplyDeleteमानवीय मूल्यों का ह्रास तो तक़रीबन हर जगह होता जा रहा है... गंभीर स्थिति है...
ReplyDeleteदोहरी मानसिकता की समस्या तो हर जगह है.
ReplyDeleteरोचक ढंग से बात शुरू हुई और संस्कृति के वैचारिक द्वंद दे गई।
ReplyDeleteहर युग में वर्तमान दोहरी मानसिकता में जीता है क्योंकि समाज परिवर्तनशील है।
रूढ़ीगत परंपराएं आगे चलकर संस्कृति का हिस्सा बन जाती हैं। हमेशा वर्तमान की यह जिम्मेवारी बनती है कि वह अतीत की सड़ी-गली परंपराओं को उखाड़ फेंकने के साथ-साथ यह भी ध्यान रखे कि हमारी संस्कृति का जो उज्ज्वल पक्ष है वह भविष्य के लिए संरक्षित हो।
अच्छे-बुरे का फर्क विज्ञान और अनुभव के साथ हम सीखते हैं। जो कल अच्छा था जरूरी नहीं कि आज भी अच्छा हो। जैसे सती प्रथा तत्कालीन आवश्यकता थी होगी लेकिन आज घोर निंदनीय कृत्य है।
समाज परिवर्तन के साथ अच्छाई-बुराई साथ लाता है। यह हमें देखना है कि क्या त्याग पाते हैं, क्या बचा कर अगली पीढ़ी को दे पाते हैं।
खुशदीप भाई , गरीब दी जोरू , सब दी भाभी । बात बिल्कुल सत्य है ।
ReplyDeleteजब पंजाब एक था तो राजधानी थी --लाहौर ।
विभाजन का सबसे ज्यादा खामियाज़ा पंजाब ने ही भुगता क्योंकि इस विशाल राज्य में मुस्लिम भी रहते थे , सिख भी और हिन्दू भी । बस इसी तरह बंटवारा हुआ ।
वंदना जी , हरियाणा में देवर भाभी का रिश्ता हंसी मज़ाक का रिश्ता माना जाता है । जहाँ तक नाम लेने का सवाल है , यहाँ बड़ों को भी तू कह कर बुलाते हैं । यह अनादर नहीं बल्कि आत्मीयता की निशानी है । शहर में भी तो जिगरी दोस्त एक दूसरे को तू कह कर ही बुलाते हैं । किसी ने कहा है --प्यार की ऐसी गुफ्तगू होने लगी , आप से तुम, तुम से तू होने लगी ।
ReplyDeleteहा हा हा ! राकेश जी आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमने आज तक किसी को भाभी जी नहीं कहा ।
ReplyDeleteपाण्डे जी , अपने बिल्कुल सही कहा । यह समझना ज़रूरी है कि क्या छोड़ा जाये , क्या अपनाया जाये ।
ReplyDeleteअंधाधुंध पश्चिम की नक़ल करते हुए हम अपना अस्तित्व ही भूल जाते हैं । अभी भी बहुत सी परम्पराएँ हैं जो चिर काल से चली आ रही हैं और आज भी तर्कसंगत हैं । उन्हें भूलना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है ।
भाभी की खोज बहुत सुंदर रही. और वहीँ जानकारी मिली हरियाणवी संस्कृति के बारे में. अब एक जगह सारे अच्छे ही रह रहे हो और दूसरी जगह सारे बुरे, तो ऐसा तो होता नहीं. उनके प्रतिशत में ही सिर्फ फर्क हो सकता है. तो इसका अपवाद हरियाणा भी नहीं होगा.
ReplyDelete‘मुझे हरियाणवी संस्कृति में यही बात सबसे अच्छी लगती है कि वहां अभी भी लोग एक अनुशासित पारिवारिक ढांचे में रहते हैं ।’
ReplyDeleteतभी तो, ऑनर किलिंग का भी चलन वहीं अधिक है :(
दोहरी से ज्यादा मुश्किल, इकहरी मानसिकता के साथ होती है.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हँसते हँसते गंभीर और काम की बात पर आ गए आप ! काश यह मान्यताएं चलती रहें ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteआप हरियाणा के साथ साथ जन्मे 'हिमाचल प्रदेश' को भूल गए !
ReplyDeleteहम तो भाई अंग्रेजों के ज़माने के 'जन्म से' पंजाबी हैं (?) क्यूंकि हम शिमला में पैदा हुए, जो अब हिमाचल प्रदेश की राजधानी है, और अंग्रेज सरकार की ग्रीष्म ऋतू की राजधानी होता था... और तब हमारे पिता जी वहां केंद्रीय सरकारी कर्मचारी के रूप में कार्यरत थे यद्यपि वे तत्कालीन उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में पैदा हुए थे किन्तु वो वर्तमान में 'उत्तराखंड' कहलाये जाने वाले प्रदेश में है... और द्वितीय महायुद्ध के कारण दिल्ली आ अपना अधिक काल दिल्ली में ही बिता दिल्ली वासी हो गए और उनके बच्चे भी !...
और दिल्ली में बंटवारे के बाद ही 'जी' लगाने का, "अंकल जी" और 'आंटी जी", और "भाभी जी" आदि कहने का, चलन आरंभ हो गया...
इसलिए "गोलमाल है, सब कुछ गोलमाल है" कह सकते हैं सार है मानव जीवन का !... कहते हैं कि आरम्भ में एक ही भाषा बोली जाती थी, किन्तु जैसे जैसे मानव नए नए स्थानों पर घर बसाता गया, काल और क्षेत्रीय आवश्यकता के अनुसार, उसके बोलचाल में बदलाव आते चले गए... और इस प्रकार जंगली गुफ़ा मानव से हम आधुनिक कंक्रीट गुफ़ा मानव हो गए :)
---एक दम भ्रमित विषय व बातें होगईं....स्थानीय बातें को महत्व देने से यही होता है....
ReplyDelete---सिर्फ़ हरियाणा में ही नहीं...सारे भारत में यही सन्स्क्रिति थी व है.....
ये स्थिति तो कम-ज्यादा हर जगह है और सब त्रिशंकु सा जीवन बिता रहे हैं .....
ReplyDeleteडा. दराल साहब ! आपकी टिप्पणियाँ भी आपकी पोस्ट की तरह ही रोचक हैं । किसी भारी भरकम विषय के विद्वान को इतना सहज हंसोड़ देखना भी अपने आप में एक मज़ेदार लम्हा है ।
ReplyDeleteपैदा हो जाएं तो सम्मान दिल्ली में भी पा लेती हैं बेटियाँ लेकिन वह गाँव जैसा नहीं होता । मेरे वालिद एक गाँव के ही दामाद हैं । इसलिए जो आप कह रहे हैं वह मेरा देखा हुआ है । यू. पी. के गाँवों में भी यही परंपरा है बेटियों को सम्मान देने की।
एक अच्छी पोस्ट के लिए आपका शुक्रिया !
मानवीय मूल्यों का ह्रास , यही स्थिति लगभग सभी जगह है , अच्छा आलेख बधाई
ReplyDeleteजेसी साहब बिल्कुल दुरूस्त फरमा रहे हैं...
ReplyDeleteशिमला न सिर्फ देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी बल्कि अविभाजित पंजाब की भी राजधानी थी...
जय हिंद...
बहुत ही नई जानकारी दी....
ReplyDeleteदोहरी मानसिकता तो हर जगह देखने को मिल रही है....लोगों की सोच और व्यवहार में अंतर नज़र आता है.
जे सी जी , हिमाचल को तो पहले ही पंजाब से अलग कर दिया गया था , एक यूनियन टेरीटरी बनाकर ।
ReplyDeleteबेशक शिमला अंग्रेजों के लिए समर कैपिटल रही ।
प्रशाद जी , किलिंग तो किलिंग है , उसे नाम कुछ भी दे दें । सभी तरह से भ्रत्स्नीय है ।
राहुल सिंह जी , समय के साथ बदलना ज़रूर चाहिए लेकिन इतना भी नहीं कि समलैंगिक विवाह होने लगें ।
अमूमन यह बड़े भाई की पत्नी को ही छोटा भाई भाभी कहेगा - ऐसा चलन अब तक उत्तर भारत में ही होता आया है, मित्रों के बीच भी आपसी बात व्यवहार में यह चलन आम है वरना तो दक्षिण की तरफ खिसकने पर बड़ा भाई भी अपनी छोटे भाई की पत्नी को भाभी ही कहकर संबोधित करता दिखता है।
ReplyDeleteदूसरी ओर यह भी देखा गया है कि दक्षिण में ममेरे भाई बहनों का आपस में विवाह होता है और कहीं कहीं पर मामा-भांजी का भी सहर्ष स्वीकार किया जाता है। मुझे भी यहां पहले अटपटा लगता था कि ऐसे कैसे मामा-भांजी का विवाह होता है, लेकिन अब देखते देखते आदत पड़ गई है। इस तरह के विवाह उत्तर में हो तो बवाल हो जाय, होते ही हैं।
हर एक इलाके का अपना चलन है, रीत रिवाज है।
यह भी सही कहा कि - समय के साथ बदलना ज़रूर चाहिए लेकिन इतना भी नहीं कि समलैंगिक विवाह होने लगें :)
दोहरी मानसिकता की समस्या तो हर जगह है.
ReplyDeleteएक अच्छी पोस्ट के लिए आपका शुक्रिया
हरियाणा के सांस्कृतिक रिवाज़ का यह पहलू मेरे लिए नया है ...वर्ना सभी स्थानों पर दुसरे की पत्नी को भाभी ही कहा जाता है ...मुख्या बात स्त्रियों के सम्मान की है , वह चाहे नाम लेकर की जाए या रिश्तों का नाम देकर ...
ReplyDeleteदोहरी मानसिकता हर जगह हावी है ....!
थोड़ा सा और...अंग्रेज़ों के ज़माने में एक PEPSU (Patiala & Eastern Punjab State's Union) क्षेत्र भी हुआ करता था जिसके हिस्से आगे चलकर पंजाब, हरियाणा व हिमाचल में समाहित हो गए.
ReplyDeleteहमारे यहां भी परंपरा है कि जब किसी गोत्र की बेटी ब्याह कर दूसरे गांव जाती है तो नई ब्याही बेटी के परिवार वाले उसके गोत्र की सभी दूसरी बहुओं को, अपनी बेटी के समान ही बेटी का दर्ज़ा देकर विशेष रूप से आमंत्रित करते हैं...
संस्कृति अगली पीढ़ी तक ठीक से नहीं पहुंचाने की ज़िम्मेदारी शायद हमारी ही है...
बहुत अच्छा विषय है अबकी बार आपने चुना है अकसर रिशतों के भ्रमजाल में ही उलझे रहते है बहुत से लोग, पर हर जगह की अपनी अलग संस्कृति है। किसी भी व्यक्ति को अपनी संस्कृति के मापदण्ड पर नही तौलना चाहिए। न ही हमें अपनी संस्कृति को भुला कर दुसरों की नकल करनी चाहिए ऎसा करके समाजिक वातावरण में भी काफी बदलाव आते है जो कई बार परेशानियों का ही सबब बनते है ।
ReplyDeleteसतीश पंचम जी , इस तरह के रिश्तों को वैज्ञानिक तौर पर भी सही नहीं माना गया है । लेकिन फिर भी बहुत से समुदायों में यह प्रथा है । सही कहा हर इलाके का अपना चलन और रीति रिवाज़ होती हैं ।
ReplyDeleteवाणी जी सही कहा --stree जाति का सम्मान सर्वोपरि होना चाहिए ।
काजल जी , पटियाला एक प्रिंसली स्टेट था जिसे पहले ही अलग कर दिया गया था ।
ReplyDeleteसंस्कृति अगली पीढ़ी तक ठीक से नहीं पहुंचाने की ज़िम्मेदारी शायद हमारी ही है... पूर्णतया सहमत ।
सुनीता जी , दूसरों की नक़ल करने से ही बहुत से विकार पैदा होते हैं । सत्य वचन ।
डॉ टी एस दराल जी पंजाब के दो हिस्से तो विभाजन के समय हुये थे, बाद मे कई साल बाद पंजाब से हरियाणा अलग हुआ था, हुआ नही हमारे नेताओ ने किया था, ओर इस बात को भी ज्यादा समय नही बीता, बाकी मै पंजाब से हुं ओर कई साल रोहतक हरियाणा मे रहा हुं, ओर हम ने देखा कि पंजाब ओर हरियाणा मे भाषा के सिवा कुछ भी अलग नही, वहां भी छोटे भाई की बीबी को नाम ले कर बुलाया जाता हे(बेटी समान)देवर भाभी का रिश्ता मां बेटे समान माना जाता हे, गांव मे बाप से बडी उमर के लोगो को ताऊ जी, छोटो को चाचा(काका) बुलाया जाता हे, ओर दादा की उम्र के लोगो को दादा जी कहा जाता हे, यही हाल मां के गांव मे होता हे, ओर गांव की लडकी को बहिन समान माना जाता हे, भाषा के सिवा कोई फ़र्क नही, मै पंजाब के गांव मे भी रहा ओर हरियाणा के गांव मे भी दोनो एक से लगे, धन्य्वाद आप को भाभी समेत:) अब यह मत पुछे किस की भाभी
ReplyDeleteडॉक्टर दाराल जी, धन्यवाद हिमाचल और हरियाणा (पेप्सू भी) के 'पंजाब' (संसार ?) की भूमि से ही जन्म की भिन्नता का खुलासा करने के लिए - इतिहास में मैं कमज़ोर था और नवीं कक्षा में जाने पर, विज्ञानं के विषय ले, सबसे बड़ी ख़ुशी मुझे भूगोल और इतिहास से (कागज़ में) छुट्टी मिलने की हुई थी!,,,(कहावत थी "हिस्टरी - जोग्राफी बड़ी बेवफा / रात को रटी - सबेरे सफा ! ")...
ReplyDeleteकिन्तु यह मुझे बाद में पता चला कि जो हमने स्कूल में वाक्य रटा, "गु खा तसले में", बाद में भी समझने में सहायता करेगा कि कैसे मैदानी मार्ग से, खैबर पास होते हुए, गुलाम वंश से मुग़ल वंश तक, और इनके अतिरिक्त जल-मार्ग से भी अन्य विदेशी ताकतें भी, (अधिक ताकत के कारण), जिसे हम अपने भारत की भूमि कहते हैं, आसानी से यहाँ आ 'सोने कि चिड़िया' पर (उसके पर नोचने ?) आये और बसते चले गए...और आज भी 'हम' गर्व से कहते हैं कि हम हिंदुस्तानियों की यह खासियत है कि हमनें गैरों को भी अपना लिया और सबसे हमने सीखा ('बुरा' या 'भला' दोनों ?} !
हरियाणा में ही शायद नहीं, किन्तु सुदूर पर्वतीय क्षेत्र में भी हमें कई दशक पहले सुनने को मिला था कि दिल्ली में फैशन बाद में आता है किन्तु वहां उसे पहले ही अपना लिया जाता है !
मेरा अपना अनुभव भी है कि हरियाणा में संस्कृति काफी हद तक अपनी मौलिकता मे बची हुई है।
ReplyDeleteयह जानना भी दिलचस्प है कि जिस हरियाणा में कन्या भ्रूण-हत्या के आंकड़े चौंकाने वाले हैं,वहां बेटियों की इतनी कद्र है।
वाकई कुछ बदलाव तो आ ही गये है पर यह ज़्यादातर उन लोगों से संबंधित है जो शहरी सभ्यता में रम गये है..गाँव में अब भी बहुत कुछ बची है....
ReplyDeleteअफ़सोस कि जिस तरह हमारे शहरों में पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव बढ़ता जा रहा है , उसी तरह हरियाणा के गावों में शहरी चाल चलन का प्रभाव पड़ता जा रहा है ।
ReplyDelete-न सिर्फ हरियाणा बल्कि हर जगह यह देखने में आ रहा है. यह अच्छे संकेत नहीं हैं.
सारगर्वित सटीक विचार प्रस्तुति....आभार
ReplyDeleteआप सही कह रहे हैं.
ReplyDeleteहरियाणा में भारतीय संस्कृति की स्पष्ट झलक दर्शाने के लिए आपका आभार.
bahut hi rochak tarike se aapne apni rachanaa prastut ki hai.aur achchi jaankaari bhi di.padhker majaa bhi aayaa aur jaankaari bhi badhi.thanks aapko aur badhaai bhi itanaa rochak lekh likhne ki.
ReplyDeleteplease visit my blog and leave the comments also.aabhaar
इस दोहरी मानसिकता से छुटकारा मिल कहा पाता है ... बहुत ही अच्छा लिखा है आपने .. ।
ReplyDeleteडाक्टर साहब ज़्यादा तर भारतवासी दोहरी मानसिकता में जीते हैं ... अपने लिए कुछ नियम .. परिवार के लिए कुछ और दूसरे के लिए कुछ ... इसमे बदलाव बहुत धीरे धीरे हो रहा है ... अपने जीते रहने तक तो शायद नही ही होगा ...
ReplyDeleteभाटिया जी , सही कह रहे हैं . हरियाणा और पंजाब के रहन सहन में कोई विशेष अंतर नहीं है । सिर्फ भाषा के आधार पर अलग हुए थे ।
ReplyDeleteनासवा जी , यह दोहरी सोच शहरों में ज्यादा देखने को मिलती है ।
आज ही पाबला जी ने बताया कि इस पोस्ट को लखनऊ के एक समाचार पत्र में जगह दी गई है । अभी जाकर देखते हैं ।
ReplyDeleteमुझे पंजाब और हरियाणा की सभ्यता बेहद पसन्द है क्योंकि वहाँ अभी भी परिवार वृहत रूप लिए हैं। दोहरी मानसिकता की बात को आप गोलमाल सा कर गए, स्पष्ट नहीं लिखा या हो सकता है कि मुझे ही समझ नहीं आया। वैसे खुशदीप जी ने सही लिखा है कि मुहावरा यही है- गरीब की जारू, सब की भाभी।
ReplyDelete.दोहरी मानसिकता पर आपकी बात सही है,
ReplyDeleteयह सँस्कारों का सँक्रमण काल है ऎसे Transit Phase में सब कुछ गड्ड-मड्ड होना स्वाभाविक है, क्योंकि हम स्वयँ ही सही तरीके से अपने सँस्कार नहीं सँजो पा रहे हैं । चाहते हैं कि बच्चा ( लड़का या लड़की ) आधुनिक बने, अँकल को गुड मॉर्निंग बोले, व ताऊ के पैर छुये । बर्थ-डे पर केक कटवायेंगे, ब्याह में परँपरागत चोंगा व नकली मुकुट पहने... बाहर अँग्रेज़ी बोले ( आँटी को ऎपॅल दे दो ) और घर में कुकीज़ को गुलगुला बोले । स्वयँ तो सँयोगिता या रुक्मिणी हरण की कथायें सुना कर झूमें.. और ऎसे सम्बन्धों को मान्यता भी न दें । बड़ा लोचा है भाई दराल, किससे शिकायत करें । यह परिवर्तन लाज़िमी है.. इसलिये हमें अपने आप को आने वाली पीढ़ी के हाथों समर्पित कर देना चाहिये... शाँति इसी में है । भाभी वाला किस्सा आपकी हाज़िरज़वाबी का नमूना है.. मैं मुरीद हुआ !
@ डॉक्टर अमर कुमार जी
ReplyDeleteआपने "...यह परिवर्तन लाज़िमी है.. इसलिये हमें अपने आप को आने वाली पीढ़ी के हाथों समर्पित कर देना चाहिये... " के द्वारा भागवद गीता में दिए गए 'कृष्ण' के उपदेश को जाने अनजाने दोहरा दिया :)
मै पंजाब की हूँ...पंजाब की बात किए बिना कैसे रह सकती हूँ !
ReplyDeleteपंजाब के शहरों में भले ही दोस्त की बीवी को भाभीजी कहा जाता हो मगर सिख - जट परिवारों में "बहन जी" कह कर बुलाया जाता है
बिलकुल सही कहा आपने!!कई बार तो स्थिति बड़ी हास्यास्पद हो जाती है जब बाप की उम्र का आदमी मेरी पत्नी को भाभी जी कहता है ,जबकि वो उसकी पुत्रवधू समान है...,!कम से कम उम्र का तो लिहाज रखना ही चाहिए.....
ReplyDeleteडॉ अमर कुमार जी -आपकी बातें सही हैं । बेशक यही हो रहा है । लेकिन मुझे लगता है कि अपनी संस्कृति को बचाते हुए भी आधुनिकता का मज़ा लिया जा सकता है । इसके लिए बड़ों को प्रयास करना पड़ेगा । हम तो छाछ भी उतने ही मज़े से पीते हैं जितना कोक या कॉकटेल । नई पीढ़ी को अपनी परम्पराओं के प्रति एक्सपोजर मिलते रहना ज़रूरी है । शायद यहीं हम मार खा जाते हैं ।
ReplyDeleteबाकि --परिवर्तन तो लाज़िमी है ।
हरदीप जी , यह जानकारी तो मेरे लिए भी नई है । शुक्रिया ।
ReplyDeleteरजनीश जी , आपने सही पकड़ा है बात को । मैं यही कहना चाहता था कि --कितना अज़ीब लगता है यह देखकर ।
लेकिन यहाँ शहर में सब चलता है ।
बहुत सुन्दर और शानदार पोस्ट! अच्छी जानकारी प्राप्त हुई!
ReplyDeletebahut kuch janne ko mila
ReplyDeleteजय हिन्द---
ReplyDeleteपूरा समाज ही दोहरी मानसिकता का शिकार है , जो एक्का दुक्का इस संक्रमण से बचे हुए हैं , उन्हें जीने नहीं देते ये दोहरी मानसिकता वाले।
ReplyDelete.
ReplyDeleteडॉ दाराल बधाई हो आपको , अमर जी किसी के तो मुरीद हुए। हमने जब उनकी ये पंक्ति पढ़ी तो चेक किया की सूरज किधर से निकला है । मेरा शक सही निकला - "आज पश्चिम से ही उदित हुआ है "
--Grins & winks --
.
हा हा हा ! दिव्या जी , डॉ अमर कुमार जी आ रहे हैं अभी आपके ब्लॉग पर ।
ReplyDeleteचर्चा -मंच पर आपका स्वागत है --आपके बारे मै मेरी क्या भावनाए है --आज ही आकर मुझे आवगत कराए -धन्यवाद !
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
बहुत अच्छी पोस्ट |सच्चाई का अच्छा चित्रण |आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ |कभी मेरे ब्लॉग पर भी आ कर मुझे प्रोत्साहित करें |
ReplyDeleteआशा
हरियाणा की इस संस्कृति के बारे में अच्छी जानकारी मिली ... जहाँ बेटियों को पूरा गांव बेटी समझ सम्मानित करता है वहीं बेटियों को गर्भ में ही मार भी डालता है ...यही सबसे बड़ा उदाहरण है दोहरी मानसिकता का ...
ReplyDeleteसगीता जी , भ्रूण हत्या --गाँव और शहर में बराबर है । लेकिन यहाँ शहर में दूसरे की बेटी को बुरी नज़र से देखा जाता है , गाँव में नहीं । बस यही फर्क है ।
ReplyDeleteवर्तमान में यदि दोष देना हो तो शायद अधिक पैसे को जायेगा और पश्चिम दिशा में स्थित देशों में किये गये विभिन्न आविष्कारों को, जो यद्यपि अधिकतर मानव जीवन को सुखद बनाने हेतु किये जाते हैं, किन्तु प्रकृति में व्याप्त 'द्वैतवाद' के कारण, यानि जो वस्तु लाभ देगी, वो मानव की दोहरी मानसिकता होने के कारण, हानि भी पहुंचा सकती है, (और हिन्दू मान्यतानुसार भी 'ब्रह्मा' को सृष्टि कर्ता कहा जाता है तो दूसरी ओर 'शिव' को संहार कर्ता)...
ReplyDeleteवैसे प्राचीन हिन्दू कह गए कि सृष्टि-कर्ता, नादबिन्दू विष्णु, निराकार है (शक्ति रूप, और सब आज जानते हैं कि शक्ति अनंत है, अमृत है) और सभी साकार भौतिक अथवा प्राणी रूप अस्थायी हैं, सौर-मंडल की तुलना में क्षणिक हैं और अंततोगत्वा मृत्यु को प्राप्त हो मिटटी में ही मिल जाते हैं...आदि आदि...
आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteDr,Daral,charcha manch ke madhyam se pahli bar aapke blog par aai hoon.aapka lekh bahut achcha laga hai.aapne Haryana ki sabhyata sanskrati ki jo taareef ki hai poorntah saty hai.mera haryana se bhi najdeek ka rishta hai.achchaai buraai to har jagah mil jaayegi.aap bhi kabhi mere blog par tashreef laayen achcha lagega.
ReplyDeleteआज से करीब 30-35 साल पहले हमारे यहां भी ऐसा ही रिवाज था , बेटी की ससुराल वाले जब गांव मे आते थे तो सारे गांव के महमान होते थे।
ReplyDeleteवैसे भी तुलसी जी ने तो यही कहलाया है राम से बाली को
अनुज बधू भगनी सुत नारी सुन सठ कन्या सम ये चारी
बृजमोहन जी ने सही कहा है, आज से ३०-३५ साल पहले लोगों में यह भावना थी और ग्रामीण इलाके में अभी भी कुछ हद तक ये भावना देखी जा सकती है. यह बात और है कि ये हमें उत्तर भारत में भी दिखलाई देती है. पंजाब और हरियाणा में वृहत परिवार होने का एक कारण वहाँ के आर्थिक स्रोतों का होना है. वहा अधिकतर व्यवसाय को प्राथमिकता दी जाती है और इसी तरह पूरा परिवार उसमें जुड़ कर एक होकर रहता है. नौकरी के चक्कर में घर से बाहर निकलने के कारण परिवार टूटे और मानसिकता भी बदल गयी.
ReplyDeleteदराल साहब ये गाँव की बेटी वाली संस्कृति अभी भी मुझे कहीं कहीं दिखलाई पड़ती है लेकिन सिर्फ ग्रामीण अंचलों में.
--
राजेश कुमारी जी , आपका स्वागत है ।
ReplyDeleteबृजमोहन जी , रेखा जी सही कहा आपने । गाँव में अभी भी पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते कायम हैं । यहाँ शहर में पडोसी पडोसी तक को नहीं पहचानता ।
विकास की कीमत तो चुकानी पड़ेगी ।
मजाक मजाक में बहुत गहरी बात कह दी । अच्छी जानकारी के लिये आभार। धन्यवाद
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteNice To Visit At This Blog Post..... Pingback
ReplyDeleteDelhi Escorts
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDelete