top hindi blogs

Sunday, May 15, 2011

क्या दोहरी मानसिकता की शिकार है आधुनिक सोच ?

एक दिन एक अभिन्न मित्र का फोन आया --भाई आज शाम को एक पार्टी रखी है । आपको आना है ।
मैंने कहा --भाई ज़रूर आयेंगे ।
फिर वो बोला --भाभी जी को भी साथ लाना
मैंने चुस्की लेते हुए कहा --भाभी जी ?-- किस की भाभी जी ?
वो थोड़ा सोच में पड़ा और बोला --भई मेरी और किस की ।
मैंने कहा -भई तेरी तो सैंकड़ों भाभियाँ हैं । ये बताओ कौन सी।
अब तो वो परेशान हो गया । फिर सोच कर बोला --यार तेरे वाली ।
मैंने कहा --यार कभी मेरी बोलता है , कभी तेरी । भाई तू पहले फैसला करले , फिर बताना ।
वो इतना कन्फ्यूज हुआ , उसने पार्टी ही कैंसिल कर दी

उपरोक्त घटना मज़ाक में की गई एक सच्ची घटना है । लेकिन इसके पीछे भी इतिहास और संस्कृति का एक ऐसा यथार्थ छुपा है जिसे शायद बहुत कम लोग जानते होंगे ।

आज़ादी से पहले पंजाब और हरियाणा कभी संयुक्त पंजाब का हिस्सा होते थे । १९४७ में पाकिस्तान बना तो एक हिस्सा वहां चला गया । बाद में भारत के पंजाब के दो हिस्से कर दिए गए --हरियाणा और पंजाब ।

ज़ाहिर है यह विभाजन भाषा के आधार पर किया गया था । पंजाबी बोलने वाले पंजाब का हिस्सा हो गए और हरियाणवी बोलने वाले हरियाणा में आ गए ।

लेकिन यह अंतर सिर्फ भाषा में ही नहीं था । हालाँकि बहुत से रीति रिवाज़ अभी तक मिलते हैं लेकिन कुछ ऐसी भी बातें हैं जो एकदम भिन्न हैं ।

यह भाभी जी वाला किस्सा भी उनमे से एक है ।

दरअसल यहाँ शहर में सिर्फ पंजाबी ही नहीं बल्कि आम तौर पर सभी शहरी लोग किसी दूसरे की पत्नी को भाभी जी कह कर बुलाते हैं । ५०-६० साल का प्रौढ़ भी ३०-३५ साल के दोस्त की पत्नी को भाभीजी कह कर ही बुलाएगा ।

लेकिन आप को यह जानकर आश्चर्य होगा कि हरियाणा में कोई किसी को भाभी जी कह कर नहीं बुलाता

पहले तो वहां भाभी कहलाने का हक़ सिर्फ बड़े भाई की पत्नी को होता है छोटे भाई के लिए । यानि वहां सिर्फ देवर भाभी का रिश्ता होता है । और देवर भी भाभी को भाभी जी कह कर नहीं बुलाते
सीधे
नाम लेकर ही बुलाते हैं ।

साथ ही जेठ ( ज्येष्ठ भ्राता ) के लिए छोटे भाई की पत्नी बहु -बेटी समान होती है उनके साथ उसी तरह व्यवहार किया जाता है ।

मुझे हरियाणवी संस्कृति में यही बात सबसे अच्छी लगती है कि वहां अभी भी लोग एक अनुशासित पारिवारिक ढांचे में रहते हैं । जहाँ बड़ों का सम्मान किया जाता है । छोटों को संरक्षण दिया जाता है । समाज की भलाई के लिए बनाये गए नियमों का पालन किया जाता है ।

हरियाणा में आज भी गाँव की कोई बेटी किसी भी गाँव में ब्याही गई हो , सारे गाँव वालों के लिए वह बेटी ही होती है यदि उस गाँव में किसी शादी में जाना हो तो सारे बाराती लड़की को एक रुपया देकर सम्मानित करते हैं


लेकिन अफ़सोस कि जिस तरह हमारे शहरों में पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव बढ़ता जा रहा है , उसी तरह हरियाणा के गावों में शहरी चाल चलन का प्रभाव पड़ता जा रहा है ।

इससे युवा पीढ़ी भ्रमित होकर अपनी परंपरा और संस्कृति को भूलती जा रही है

और यहाँ शहर में बैठे हम बुद्धिजीवी लोग दोहरी मानसिकता का शिकार होकर अपनी युवा पीढ़ी को पाश्चात्य विकारों से तो बचने की सलाह देते हैं । लेकिन गाँव में रह रहे अपने कजंस को उसी राह पर चलते देख कर न सिर्फ आँखें बंध कर लेते हैं बल्कि इंसानियत और कानून की दुहाई देने लगते हैं ।

क्या ये दोहरे मांपदंड सही हैं ?

73 comments:

  1. डॉक्टर साहब खूब घुमाया बेचारे दोस्त को...

    वैसे मेरठ में एक जुमला बड़ा सुना करता था...गरीब की जोरू, सब की भौजाई...

    पंजाब के हिस्से होने की बात आपने की है...एक सवाल इस पोस्ट को पढ़ने वालों से पूछता हूं...पंजाब जब एक था तो उसकी राजधानी कौन सी थी...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  2. संस्कृतियों का यह फर्क चौकाता भी है तो आश्वस्त भी करता है

    ReplyDelete
  3. बहुत बढिया जानकारी परक पोस्ट. लगभग पूरे देश में ही या अधिकांश हिस्सों में दोस्त की पत्नी को भाभी जी कहने का ही चलन है, वो बड़े हों या छोटे. देवर बड़े भाई की पत्नी का नाम ल, ये ठीक नहीं लगता. भाभी का स्थान वैसे भी मां के समान होता है. खैर.
    हां ये सच है, कि आधुनिक सोच दोहरी मानसिकता की शिकार है. अ अपनी संस्कृति छोड़ पा रही, न पाश्चात्य पूरी तरह अपना पा रही :)

    ReplyDelete
  4. बाक़ी और जगहों की तरह हरियाणवी समाज भी दोहरी मानसिकता का शिकार है।
    जब से हरियाणा में आधुनिकता ने प्रवेश नहीं किया था। तब से ही वहां बेटियों को मारने का चलन आम है। अब तरक्क़ी के दौर में गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या की जा रही है। एक तरफ़ गर्भ में ही बेक़ुसूर लड़कियां मारी जा रही हैं और दूसरी तरफ़ एक रूपया देकर सम्मानित भी की जा रही हैं।
    क्या यह दोहरापन नहीं है ?
    देखिए एक रिपोर्ट :
    "पानीपत : मां के गर्भ में बच्चियों का क़त्ल शिक्षित घरानों में कहीं ज़्यादा"

    ReplyDelete
  5. डॉ अनवर zamal जी , aapki आपकी बात भी सही है । बेशक आज हरियाणा में सेक्स रेशो सबसे कम है । लेकिन इस मामले में कोई नहीं बचा । राजधानी के सबसे पोश एरिया में भी यह रेशो काफी कम पाई गई है ।
    वहां कम से कम पैदा होने के बाद तो सम्मान मिलता ही है ।

    ReplyDelete
  6. अच्छा बुरा सब जगह है डॉ. साहब. जरुरत है अच्छा अपनाने की और बुरा छोड़ने की.
    आपने सुन्दर चिंतन प्रस्तुत किया है.
    'भाभी'जी को सादर प्रणाम.अब यह न कहियेगा कौन सी और किसकी भाभी.

    ReplyDelete
  7. मजाक से शुरू करके संजीदा बात कह दी आपने

    ReplyDelete
  8. मानवीय मूल्यों का ह्रास तो तक़रीबन हर जगह होता जा रहा है... गंभीर स्थिति है...

    ReplyDelete
  9. दोहरी मानसिकता की समस्या तो हर जगह है.

    ReplyDelete
  10. रोचक ढंग से बात शुरू हुई और संस्कृति के वैचारिक द्वंद दे गई।

    हर युग में वर्तमान दोहरी मानसिकता में जीता है क्योंकि समाज परिवर्तनशील है।

    रूढ़ीगत परंपराएं आगे चलकर संस्कृति का हिस्सा बन जाती हैं। हमेशा वर्तमान की यह जिम्मेवारी बनती है कि वह अतीत की सड़ी-गली परंपराओं को उखाड़ फेंकने के साथ-साथ यह भी ध्यान रखे कि हमारी संस्कृति का जो उज्ज्वल पक्ष है वह भविष्य के लिए संरक्षित हो।
    अच्छे-बुरे का फर्क विज्ञान और अनुभव के साथ हम सीखते हैं। जो कल अच्छा था जरूरी नहीं कि आज भी अच्छा हो। जैसे सती प्रथा तत्कालीन आवश्यकता थी होगी लेकिन आज घोर निंदनीय कृत्य है।

    समाज परिवर्तन के साथ अच्छाई-बुराई साथ लाता है। यह हमें देखना है कि क्या त्याग पाते हैं, क्या बचा कर अगली पीढ़ी को दे पाते हैं।

    ReplyDelete
  11. खुशदीप भाई , गरीब दी जोरू , सब दी भाभी । बात बिल्कुल सत्य है ।
    जब पंजाब एक था तो राजधानी थी --लाहौर ।
    विभाजन का सबसे ज्यादा खामियाज़ा पंजाब ने ही भुगता क्योंकि इस विशाल राज्य में मुस्लिम भी रहते थे , सिख भी और हिन्दू भी । बस इसी तरह बंटवारा हुआ ।

    ReplyDelete
  12. वंदना जी , हरियाणा में देवर भाभी का रिश्ता हंसी मज़ाक का रिश्ता माना जाता है । जहाँ तक नाम लेने का सवाल है , यहाँ बड़ों को भी तू कह कर बुलाते हैं । यह अनादर नहीं बल्कि आत्मीयता की निशानी है । शहर में भी तो जिगरी दोस्त एक दूसरे को तू कह कर ही बुलाते हैं । किसी ने कहा है --प्यार की ऐसी गुफ्तगू होने लगी , आप से तुम, तुम से तू होने लगी ।

    ReplyDelete
  13. हा हा हा ! राकेश जी आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमने आज तक किसी को भाभी जी नहीं कहा ।

    ReplyDelete
  14. पाण्डे जी , अपने बिल्कुल सही कहा । यह समझना ज़रूरी है कि क्या छोड़ा जाये , क्या अपनाया जाये ।
    अंधाधुंध पश्चिम की नक़ल करते हुए हम अपना अस्तित्व ही भूल जाते हैं । अभी भी बहुत सी परम्पराएँ हैं जो चिर काल से चली आ रही हैं और आज भी तर्कसंगत हैं । उन्हें भूलना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है ।

    ReplyDelete
  15. भाभी की खोज बहुत सुंदर रही. और वहीँ जानकारी मिली हरियाणवी संस्कृति के बारे में. अब एक जगह सारे अच्छे ही रह रहे हो और दूसरी जगह सारे बुरे, तो ऐसा तो होता नहीं. उनके प्रतिशत में ही सिर्फ फर्क हो सकता है. तो इसका अपवाद हरियाणा भी नहीं होगा.

    ReplyDelete
  16. ‘मुझे हरियाणवी संस्कृति में यही बात सबसे अच्छी लगती है कि वहां अभी भी लोग एक अनुशासित पारिवारिक ढांचे में रहते हैं ।’

    तभी तो, ऑनर किलिंग का भी चलन वहीं अधिक है :(

    ReplyDelete
  17. दोहरी से ज्‍यादा मुश्किल, इकहरी मानसिकता के साथ होती है.

    ReplyDelete
  18. बहुत बढ़िया हँसते हँसते गंभीर और काम की बात पर आ गए आप ! काश यह मान्यताएं चलती रहें ! शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete
  19. आप हरियाणा के साथ साथ जन्मे 'हिमाचल प्रदेश' को भूल गए !

    हम तो भाई अंग्रेजों के ज़माने के 'जन्म से' पंजाबी हैं (?) क्यूंकि हम शिमला में पैदा हुए, जो अब हिमाचल प्रदेश की राजधानी है, और अंग्रेज सरकार की ग्रीष्म ऋतू की राजधानी होता था... और तब हमारे पिता जी वहां केंद्रीय सरकारी कर्मचारी के रूप में कार्यरत थे यद्यपि वे तत्कालीन उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में पैदा हुए थे किन्तु वो वर्तमान में 'उत्तराखंड' कहलाये जाने वाले प्रदेश में है... और द्वितीय महायुद्ध के कारण दिल्ली आ अपना अधिक काल दिल्ली में ही बिता दिल्ली वासी हो गए और उनके बच्चे भी !...
    और दिल्ली में बंटवारे के बाद ही 'जी' लगाने का, "अंकल जी" और 'आंटी जी", और "भाभी जी" आदि कहने का, चलन आरंभ हो गया...

    इसलिए "गोलमाल है, सब कुछ गोलमाल है" कह सकते हैं सार है मानव जीवन का !... कहते हैं कि आरम्भ में एक ही भाषा बोली जाती थी, किन्तु जैसे जैसे मानव नए नए स्थानों पर घर बसाता गया, काल और क्षेत्रीय आवश्यकता के अनुसार, उसके बोलचाल में बदलाव आते चले गए... और इस प्रकार जंगली गुफ़ा मानव से हम आधुनिक कंक्रीट गुफ़ा मानव हो गए :)

    ReplyDelete
  20. ---एक दम भ्रमित विषय व बातें होगईं....स्थानीय बातें को महत्व देने से यही होता है....
    ---सिर्फ़ हरियाणा में ही नहीं...सारे भारत में यही सन्स्क्रिति थी व है.....

    ReplyDelete
  21. ये स्थिति तो कम-ज्यादा हर जगह है और सब त्रिशंकु सा जीवन बिता रहे हैं .....

    ReplyDelete
  22. डा. दराल साहब ! आपकी टिप्पणियाँ भी आपकी पोस्ट की तरह ही रोचक हैं । किसी भारी भरकम विषय के विद्वान को इतना सहज हंसोड़ देखना भी अपने आप में एक मज़ेदार लम्हा है ।

    पैदा हो जाएं तो सम्मान दिल्ली में भी पा लेती हैं बेटियाँ लेकिन वह गाँव जैसा नहीं होता । मेरे वालिद एक गाँव के ही दामाद हैं । इसलिए जो आप कह रहे हैं वह मेरा देखा हुआ है । यू. पी. के गाँवों में भी यही परंपरा है बेटियों को सम्मान देने की।

    एक अच्छी पोस्ट के लिए आपका शुक्रिया !

    ReplyDelete
  23. मानवीय मूल्यों का ह्रास , यही स्थिति लगभग सभी जगह है , अच्छा आलेख बधाई

    ReplyDelete
  24. जेसी साहब बिल्कुल दुरूस्त फरमा रहे हैं...

    शिमला न सिर्फ देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी बल्कि अविभाजित पंजाब की भी राजधानी थी...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  25. बहुत ही नई जानकारी दी....
    दोहरी मानसिकता तो हर जगह देखने को मिल रही है....लोगों की सोच और व्यवहार में अंतर नज़र आता है.

    ReplyDelete
  26. जे सी जी , हिमाचल को तो पहले ही पंजाब से अलग कर दिया गया था , एक यूनियन टेरीटरी बनाकर ।
    बेशक शिमला अंग्रेजों के लिए समर कैपिटल रही ।

    प्रशाद जी , किलिंग तो किलिंग है , उसे नाम कुछ भी दे दें । सभी तरह से भ्रत्स्नीय है ।
    राहुल सिंह जी , समय के साथ बदलना ज़रूर चाहिए लेकिन इतना भी नहीं कि समलैंगिक विवाह होने लगें ।

    ReplyDelete
  27. अमूमन यह बड़े भाई की पत्नी को ही छोटा भाई भाभी कहेगा - ऐसा चलन अब तक उत्तर भारत में ही होता आया है, मित्रों के बीच भी आपसी बात व्यवहार में यह चलन आम है वरना तो दक्षिण की तरफ खिसकने पर बड़ा भाई भी अपनी छोटे भाई की पत्नी को भाभी ही कहकर संबोधित करता दिखता है।

    दूसरी ओर यह भी देखा गया है कि दक्षिण में ममेरे भाई बहनों का आपस में विवाह होता है और कहीं कहीं पर मामा-भांजी का भी सहर्ष स्वीकार किया जाता है। मुझे भी यहां पहले अटपटा लगता था कि ऐसे कैसे मामा-भांजी का विवाह होता है, लेकिन अब देखते देखते आदत पड़ गई है। इस तरह के विवाह उत्तर में हो तो बवाल हो जाय, होते ही हैं।

    हर एक इलाके का अपना चलन है, रीत रिवाज है।

    यह भी सही कहा कि - समय के साथ बदलना ज़रूर चाहिए लेकिन इतना भी नहीं कि समलैंगिक विवाह होने लगें :)

    ReplyDelete
  28. दोहरी मानसिकता की समस्या तो हर जगह है.

    एक अच्छी पोस्ट के लिए आपका शुक्रिया

    ReplyDelete
  29. हरियाणा के सांस्कृतिक रिवाज़ का यह पहलू मेरे लिए नया है ...वर्ना सभी स्थानों पर दुसरे की पत्नी को भाभी ही कहा जाता है ...मुख्या बात स्त्रियों के सम्मान की है , वह चाहे नाम लेकर की जाए या रिश्तों का नाम देकर ...

    दोहरी मानसिकता हर जगह हावी है ....!

    ReplyDelete
  30. थोड़ा सा और...अंग्रेज़ों के ज़माने में एक PEPSU (Patiala & Eastern Punjab State's Union) क्षेत्र भी हुआ करता था जिसके हिस्से आगे चलकर पंजाब, हरियाणा व हिमाचल में समाहित हो गए.

    हमारे यहां भी परंपरा है कि जब किसी गोत्र की बेटी ब्याह कर दूसरे गांव जाती है तो नई ब्याही बेटी के परिवार वाले उसके गोत्र की सभी दूसरी बहुओं को, अपनी बेटी के समान ही बेटी का दर्ज़ा देकर विशेष रूप से आमंत्रित करते हैं...


    संस्कृति अगली पीढ़ी तक ठीक से नहीं पहुंचाने की ज़िम्मेदारी शायद हमारी ही है...

    ReplyDelete
  31. बहुत अच्छा विषय है अबकी बार आपने चुना है अकसर रिशतों के भ्रमजाल में ही उलझे रहते है बहुत से लोग, पर हर जगह की अपनी अलग संस्कृति है। किसी भी व्यक्ति को अपनी संस्कृति के मापदण्ड पर नही तौलना चाहिए। न ही हमें अपनी संस्कृति को भुला कर दुसरों की नकल करनी चाहिए ऎसा करके समाजिक वातावरण में भी काफी बदलाव आते है जो कई बार परेशानियों का ही सबब बनते है ।

    ReplyDelete
  32. सतीश पंचम जी , इस तरह के रिश्तों को वैज्ञानिक तौर पर भी सही नहीं माना गया है । लेकिन फिर भी बहुत से समुदायों में यह प्रथा है । सही कहा हर इलाके का अपना चलन और रीति रिवाज़ होती हैं ।
    वाणी जी सही कहा --stree जाति का सम्मान सर्वोपरि होना चाहिए ।

    ReplyDelete
  33. काजल जी , पटियाला एक प्रिंसली स्टेट था जिसे पहले ही अलग कर दिया गया था ।
    संस्कृति अगली पीढ़ी तक ठीक से नहीं पहुंचाने की ज़िम्मेदारी शायद हमारी ही है... पूर्णतया सहमत ।

    सुनीता जी , दूसरों की नक़ल करने से ही बहुत से विकार पैदा होते हैं । सत्य वचन ।

    ReplyDelete
  34. डॉ टी एस दराल जी पंजाब के दो हिस्से तो विभाजन के समय हुये थे, बाद मे कई साल बाद पंजाब से हरियाणा अलग हुआ था, हुआ नही हमारे नेताओ ने किया था, ओर इस बात को भी ज्यादा समय नही बीता, बाकी मै पंजाब से हुं ओर कई साल रोहतक हरियाणा मे रहा हुं, ओर हम ने देखा कि पंजाब ओर हरियाणा मे भाषा के सिवा कुछ भी अलग नही, वहां भी छोटे भाई की बीबी को नाम ले कर बुलाया जाता हे(बेटी समान)देवर भाभी का रिश्ता मां बेटे समान माना जाता हे, गांव मे बाप से बडी उमर के लोगो को ताऊ जी, छोटो को चाचा(काका) बुलाया जाता हे, ओर दादा की उम्र के लोगो को दादा जी कहा जाता हे, यही हाल मां के गांव मे होता हे, ओर गांव की लडकी को बहिन समान माना जाता हे, भाषा के सिवा कोई फ़र्क नही, मै पंजाब के गांव मे भी रहा ओर हरियाणा के गांव मे भी दोनो एक से लगे, धन्य्वाद आप को भाभी समेत:) अब यह मत पुछे किस की भाभी

    ReplyDelete
  35. डॉक्टर दाराल जी, धन्यवाद हिमाचल और हरियाणा (पेप्सू भी) के 'पंजाब' (संसार ?) की भूमि से ही जन्म की भिन्नता का खुलासा करने के लिए - इतिहास में मैं कमज़ोर था और नवीं कक्षा में जाने पर, विज्ञानं के विषय ले, सबसे बड़ी ख़ुशी मुझे भूगोल और इतिहास से (कागज़ में) छुट्टी मिलने की हुई थी!,,,(कहावत थी "हिस्टरी - जोग्राफी बड़ी बेवफा / रात को रटी - सबेरे सफा ! ")...

    किन्तु यह मुझे बाद में पता चला कि जो हमने स्कूल में वाक्य रटा, "गु खा तसले में", बाद में भी समझने में सहायता करेगा कि कैसे मैदानी मार्ग से, खैबर पास होते हुए, गुलाम वंश से मुग़ल वंश तक, और इनके अतिरिक्त जल-मार्ग से भी अन्य विदेशी ताकतें भी, (अधिक ताकत के कारण), जिसे हम अपने भारत की भूमि कहते हैं, आसानी से यहाँ आ 'सोने कि चिड़िया' पर (उसके पर नोचने ?) आये और बसते चले गए...और आज भी 'हम' गर्व से कहते हैं कि हम हिंदुस्तानियों की यह खासियत है कि हमनें गैरों को भी अपना लिया और सबसे हमने सीखा ('बुरा' या 'भला' दोनों ?} !

    हरियाणा में ही शायद नहीं, किन्तु सुदूर पर्वतीय क्षेत्र में भी हमें कई दशक पहले सुनने को मिला था कि दिल्ली में फैशन बाद में आता है किन्तु वहां उसे पहले ही अपना लिया जाता है !

    ReplyDelete
  36. मेरा अपना अनुभव भी है कि हरियाणा में संस्कृति काफी हद तक अपनी मौलिकता मे बची हुई है।
    यह जानना भी दिलचस्प है कि जिस हरियाणा में कन्या भ्रूण-हत्या के आंकड़े चौंकाने वाले हैं,वहां बेटियों की इतनी कद्र है।

    ReplyDelete
  37. वाकई कुछ बदलाव तो आ ही गये है पर यह ज़्यादातर उन लोगों से संबंधित है जो शहरी सभ्यता में रम गये है..गाँव में अब भी बहुत कुछ बची है....

    ReplyDelete
  38. अफ़सोस कि जिस तरह हमारे शहरों में पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव बढ़ता जा रहा है , उसी तरह हरियाणा के गावों में शहरी चाल चलन का प्रभाव पड़ता जा रहा है ।


    -न सिर्फ हरियाणा बल्कि हर जगह यह देखने में आ रहा है. यह अच्छे संकेत नहीं हैं.

    ReplyDelete
  39. सारगर्वित सटीक विचार प्रस्तुति....आभार

    ReplyDelete
  40. आप सही कह रहे हैं.
    हरियाणा में भारतीय संस्कृति की स्पष्ट झलक दर्शाने के लिए आपका आभार.

    ReplyDelete
  41. bahut hi rochak tarike se aapne apni rachanaa prastut ki hai.aur achchi jaankaari bhi di.padhker majaa bhi aayaa aur jaankaari bhi badhi.thanks aapko aur badhaai bhi itanaa rochak lekh likhne ki.

    please visit my blog and leave the comments also.aabhaar

    ReplyDelete
  42. इस दोहरी मानसिकता से छुटकारा मिल कहा पाता है ... बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने .. ।

    ReplyDelete
  43. डाक्टर साहब ज़्यादा तर भारतवासी दोहरी मानसिकता में जीते हैं ... अपने लिए कुछ नियम .. परिवार के लिए कुछ और दूसरे के लिए कुछ ... इसमे बदलाव बहुत धीरे धीरे हो रहा है ... अपने जीते रहने तक तो शायद नही ही होगा ...

    ReplyDelete
  44. भाटिया जी , सही कह रहे हैं . हरियाणा और पंजाब के रहन सहन में कोई विशेष अंतर नहीं है । सिर्फ भाषा के आधार पर अलग हुए थे ।
    नासवा जी , यह दोहरी सोच शहरों में ज्यादा देखने को मिलती है ।

    ReplyDelete
  45. आज ही पाबला जी ने बताया कि इस पोस्ट को लखनऊ के एक समाचार पत्र में जगह दी गई है । अभी जाकर देखते हैं ।

    ReplyDelete
  46. मुझे पंजाब और हरियाणा की सभ्‍यता बेहद पसन्‍द है क्‍योंकि वहाँ अभी भी परिवार वृहत रूप लिए हैं। दोहरी मानसिकता की बात को आप गोलमाल सा कर गए, स्‍पष्‍ट नहीं लिखा या हो सकता है कि मुझे ही समझ नहीं आया। वैसे खुशदीप जी ने सही लिखा है कि मुहावरा यही है- गरीब की जारू, सब की भाभी।

    ReplyDelete
  47. .दोहरी मानसिकता पर आपकी बात सही है,
    यह सँस्कारों का सँक्रमण काल है ऎसे Transit Phase में सब कुछ गड्ड-मड्ड होना स्वाभाविक है, क्योंकि हम स्वयँ ही सही तरीके से अपने सँस्कार नहीं सँजो पा रहे हैं । चाहते हैं कि बच्चा ( लड़का या लड़की ) आधुनिक बने, अँकल को गुड मॉर्निंग बोले, व ताऊ के पैर छुये । बर्थ-डे पर केक कटवायेंगे, ब्याह में परँपरागत चोंगा व नकली मुकुट पहने... बाहर अँग्रेज़ी बोले ( आँटी को ऎपॅल दे दो ) और घर में कुकीज़ को गुलगुला बोले । स्वयँ तो सँयोगिता या रुक्मिणी हरण की कथायें सुना कर झूमें.. और ऎसे सम्बन्धों को मान्यता भी न दें । बड़ा लोचा है भाई दराल, किससे शिकायत करें । यह परिवर्तन लाज़िमी है.. इसलिये हमें अपने आप को आने वाली पीढ़ी के हाथों समर्पित कर देना चाहिये... शाँति इसी में है । भाभी वाला किस्सा आपकी हाज़िरज़वाबी का नमूना है.. मैं मुरीद हुआ !

    ReplyDelete
  48. @ डॉक्टर अमर कुमार जी
    आपने "...यह परिवर्तन लाज़िमी है.. इसलिये हमें अपने आप को आने वाली पीढ़ी के हाथों समर्पित कर देना चाहिये... " के द्वारा भागवद गीता में दिए गए 'कृष्ण' के उपदेश को जाने अनजाने दोहरा दिया :)

    ReplyDelete
  49. मै पंजाब की हूँ...पंजाब की बात किए बिना कैसे रह सकती हूँ !
    पंजाब के शहरों में भले ही दोस्त की बीवी को भाभीजी कहा जाता हो मगर सिख - जट परिवारों में "बहन जी" कह कर बुलाया जाता है

    ReplyDelete
  50. बिलकुल सही कहा आपने!!कई बार तो स्थिति बड़ी हास्यास्पद हो जाती है जब बाप की उम्र का आदमी मेरी पत्नी को भाभी जी कहता है ,जबकि वो उसकी पुत्रवधू समान है...,!कम से कम उम्र का तो लिहाज रखना ही चाहिए.....

    ReplyDelete
  51. डॉ अमर कुमार जी -आपकी बातें सही हैं । बेशक यही हो रहा है । लेकिन मुझे लगता है कि अपनी संस्कृति को बचाते हुए भी आधुनिकता का मज़ा लिया जा सकता है । इसके लिए बड़ों को प्रयास करना पड़ेगा । हम तो छाछ भी उतने ही मज़े से पीते हैं जितना कोक या कॉकटेल । नई पीढ़ी को अपनी परम्पराओं के प्रति एक्सपोजर मिलते रहना ज़रूरी है । शायद यहीं हम मार खा जाते हैं ।
    बाकि --परिवर्तन तो लाज़िमी है ।

    ReplyDelete
  52. हरदीप जी , यह जानकारी तो मेरे लिए भी नई है । शुक्रिया ।
    रजनीश जी , आपने सही पकड़ा है बात को । मैं यही कहना चाहता था कि --कितना अज़ीब लगता है यह देखकर ।
    लेकिन यहाँ शहर में सब चलता है ।

    ReplyDelete
  53. बहुत सुन्दर और शानदार पोस्ट! अच्छी जानकारी प्राप्त हुई!

    ReplyDelete
  54. पूरा समाज ही दोहरी मानसिकता का शिकार है , जो एक्का दुक्का इस संक्रमण से बचे हुए हैं , उन्हें जीने नहीं देते ये दोहरी मानसिकता वाले।

    ReplyDelete
  55. .

    डॉ दाराल बधाई हो आपको , अमर जी किसी के तो मुरीद हुए। हमने जब उनकी ये पंक्ति पढ़ी तो चेक किया की सूरज किधर से निकला है । मेरा शक सही निकला - "आज पश्चिम से ही उदित हुआ है "

    --Grins & winks --

    .

    ReplyDelete
  56. हा हा हा ! दिव्या जी , डॉ अमर कुमार जी आ रहे हैं अभी आपके ब्लॉग पर ।

    ReplyDelete
  57. चर्चा -मंच पर आपका स्वागत है --आपके बारे मै मेरी क्या भावनाए है --आज ही आकर मुझे आवगत कराए -धन्यवाद !
    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  58. बहुत अच्छी पोस्ट |सच्चाई का अच्छा चित्रण |आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ |कभी मेरे ब्लॉग पर भी आ कर मुझे प्रोत्साहित करें |
    आशा

    ReplyDelete
  59. हरियाणा की इस संस्कृति के बारे में अच्छी जानकारी मिली ... जहाँ बेटियों को पूरा गांव बेटी समझ सम्मानित करता है वहीं बेटियों को गर्भ में ही मार भी डालता है ...यही सबसे बड़ा उदाहरण है दोहरी मानसिकता का ...

    ReplyDelete
  60. सगीता जी , भ्रूण हत्या --गाँव और शहर में बराबर है । लेकिन यहाँ शहर में दूसरे की बेटी को बुरी नज़र से देखा जाता है , गाँव में नहीं । बस यही फर्क है ।

    ReplyDelete
  61. वर्तमान में यदि दोष देना हो तो शायद अधिक पैसे को जायेगा और पश्चिम दिशा में स्थित देशों में किये गये विभिन्न आविष्कारों को, जो यद्यपि अधिकतर मानव जीवन को सुखद बनाने हेतु किये जाते हैं, किन्तु प्रकृति में व्याप्त 'द्वैतवाद' के कारण, यानि जो वस्तु लाभ देगी, वो मानव की दोहरी मानसिकता होने के कारण, हानि भी पहुंचा सकती है, (और हिन्दू मान्यतानुसार भी 'ब्रह्मा' को सृष्टि कर्ता कहा जाता है तो दूसरी ओर 'शिव' को संहार कर्ता)...
    वैसे प्राचीन हिन्दू कह गए कि सृष्टि-कर्ता, नादबिन्दू विष्णु, निराकार है (शक्ति रूप, और सब आज जानते हैं कि शक्ति अनंत है, अमृत है) और सभी साकार भौतिक अथवा प्राणी रूप अस्थायी हैं, सौर-मंडल की तुलना में क्षणिक हैं और अंततोगत्वा मृत्यु को प्राप्त हो मिटटी में ही मिल जाते हैं...आदि आदि...

    ReplyDelete
  62. आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

    ReplyDelete
  63. Dr,Daral,charcha manch ke madhyam se pahli bar aapke blog par aai hoon.aapka lekh bahut achcha laga hai.aapne Haryana ki sabhyata sanskrati ki jo taareef ki hai poorntah saty hai.mera haryana se bhi najdeek ka rishta hai.achchaai buraai to har jagah mil jaayegi.aap bhi kabhi mere blog par tashreef laayen achcha lagega.

    ReplyDelete
  64. आज से करीब 30-35 साल पहले हमारे यहां भी ऐसा ही रिवाज था , बेटी की ससुराल वाले जब गांव मे आते थे तो सारे गांव के महमान होते थे।
    वैसे भी तुलसी जी ने तो यही कहलाया है राम से बाली को
    अनुज बधू भगनी सुत नारी सुन सठ कन्या सम ये चारी

    ReplyDelete
  65. बृजमोहन जी ने सही कहा है, आज से ३०-३५ साल पहले लोगों में यह भावना थी और ग्रामीण इलाके में अभी भी कुछ हद तक ये भावना देखी जा सकती है. यह बात और है कि ये हमें उत्तर भारत में भी दिखलाई देती है. पंजाब और हरियाणा में वृहत परिवार होने का एक कारण वहाँ के आर्थिक स्रोतों का होना है. वहा अधिकतर व्यवसाय को प्राथमिकता दी जाती है और इसी तरह पूरा परिवार उसमें जुड़ कर एक होकर रहता है. नौकरी के चक्कर में घर से बाहर निकलने के कारण परिवार टूटे और मानसिकता भी बदल गयी.
    दराल साहब ये गाँव की बेटी वाली संस्कृति अभी भी मुझे कहीं कहीं दिखलाई पड़ती है लेकिन सिर्फ ग्रामीण अंचलों में.

    --

    ReplyDelete
  66. राजेश कुमारी जी , आपका स्वागत है ।
    बृजमोहन जी , रेखा जी सही कहा आपने । गाँव में अभी भी पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते कायम हैं । यहाँ शहर में पडोसी पडोसी तक को नहीं पहचानता ।
    विकास की कीमत तो चुकानी पड़ेगी ।

    ReplyDelete
  67. मजाक मजाक में बहुत गहरी बात कह दी । अच्छी जानकारी के लिये आभार। धन्यवाद

    ReplyDelete
  68. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  69. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  70. Nice To Visit At This Blog Post..... Pingback
    Delhi Escorts

    ReplyDelete
  71. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete