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Thursday, March 10, 2011

एक शाम --अंजुना बीच पर --फिरंगियों के बीच में ---

पिछली गोवा पोस्ट से आगे ---

पिछली पोस्ट में मैंने एक सवाल पूछा था --औड मैन आउट --के बारे में । भाई दीपक मशाल ने पहचान तो लिया लेकिन यह नहीं बताया कि इसमें औड क्या था ।
आधुनिकता और विकास का एक नकारात्मक पहलु यह भी है कि ४० के होते होते सबका पेट निकल आता है । फिर ५० के होते होते पेट के साथ वेट भी इतना बढ़ जाता है कि घुटने भी ज़वाब देने लग जाते हैं ।

नोर्थ गोवा टूर के अंतिम पड़ाव में हम पहुंचे --अंजुना बीच पर । लेकिन पार्किंग से बीच करीब आधा किलोमीटर दूर थी जहाँ तक पैदल ही चलना था । अब तक हमारी मित्र मंडली थक कर चूर हो चुकी थी । सब बैठ गए एक रेस्तरां में चाय पानी के लिए । अब कोई मूढ़ में नहीं था कि आगे चला जाए ।

लेकिन हमारा दम ख़म अभी बचा था । हमने पहल की और अकेले ही पहुँच गए , अंजुना बीच ।

शुरू में ही यह भूरे रंग की पथरीली जगह देखकर लगा कि यहाँ क्या मिलेगा । लेकिन दूर कुछ लाल रंग की छठा नज़र आई तो हम उत्सुकतावश आगे बढ़ लिए ।


और पास से देखा तो पाया कि यह तो फिरंगियों का स्वर्गलोक था । सैंकड़ों काउच लगे थे , एक लाइन में , जिनपर संतरी लाल रंग की छतरियां और उनके नीचे लेटे उसी रंग के फिरंगी सैलानी,धूप में सन टैनिंग करते हुए।

एक राउंड लगाने के बाद हमें लगा कि यहाँ तो हम स्वदेश में होकर भी अल्पसंख्यक नज़र आ रहे हैं ।

लेकिन देश भी अपना , बीच भी अपनी और समुद्र भी अपना ही था । इसलिए हमने भी एक काउच पर कब्ज़ा किया और पसर गए , एक हाथ में कोल्ड ड्रिंक और दूसरे में कैमरा पकड़ कर ।

और देखने लगे नज़ारा अंजुना बीच का ।

इस बीच मित्र मंडली भी हिम्मत जुटा कर हमारे साथ शामिल हो चुकी थी ।



साथ वाला काउच तो खाली ही रहना था । शायद मैंने पीछे बैठे दो गोरों के माल पर हाथ साफ़ कर दिया था ।
पीछे बैठे दो गोरों की कहानी बाद में ।


हालाँकि बीच पर सैंकड़ों लोग थे । लेकिन कोई कोलाहल नहीं था ।
समुद्र का पानी शांत भाव से रेतीले किनारे से टकराता और समा जाता वापस समुद्र में
सूर्य देवता ठीक सामने ही चमक रहे थे । जैसे सिर्फ हमारे लिए ही चमक रहे हों ।
हमने भी उन्हें कैमरे में कैद करने का प्रयोजन बना लिया ।
कुछ इस तरह --

एक गोरी लड़की , देसी स्टाइल में चुटिया बनाये हुए --
पीछे बैठे दो गोरे अब पानी में उतर चुके हैं । अगले दो घंटे तक हम इनका भी तमाशा देखते रहे ।



पैर भले ही कब्र में लटके हों , कमर झुककर धनुष बन चुकी थी लेकिन यह सरदार जी भी अकेले ही बीच के बीचों बीच टहल रहे थे , मानो स्वर्ग का रास्ता तलाश रहे हों



यह महाशय तो ऐसे डिप्रेस्ड दिख रहे थे जैसे बीबी ने घर से निकाल दिया हो वैसे क्या पता वह भी हमारी तरह मजबूरी का मारा रहा हो



लम्बा गोरा अब भी पानी में है


अब ज़नाब का सिग्रेट ब्रेक हो गया है ।
इन महाशय ने खाना भी इसी स्पॉट पर खड़े होकर खाया ।


एक अच्छी बात यह लगी कि हम स्वतंत्र भारत की सर ज़मीं पर थे

इसलिए बीच पर इंडियंस पर कोई पाबंधी नहीं थी
यह अलग बात है कि वे हरकतें लंगूरों जैसी करते नज़र आये



यहाँ कुत्तों पर भी कोई रोक नहीं थी
आजाद हवा में तो सभी साँस ले सकते हैं ना



इस अंग्रेज़ के बच्चे को देशी कुत्तों में इतनी दिलचस्पी क्यों --



शुरू में जिन सरदार जी को देखा था , अब वह हमारे पीछे बने ढाबे में पहुँच चुके थे ।
इनके चेहरे की चमक तो सूरज की पड़ती किरणों की वज़ह से है । लेकिन आँखों की चमक का राज़ तो कुछ और ही लगता है ।

यहाँ की आबो हवा ही ऐसी है कि किसी मुर्दे को यहाँ रख दें तो एक बार वह भी खड़ा होकर एक चक्कर लगाकर वापस अर्थी पर लेट जाए

गोरी और गाय ---
यहाँ सिर्फ इंसानों को ही नहीं , बल्कि कुत्तों और गाय भैंसों को भी गोरी चमड़ी में आकर्षण नज़र आता है

एक विचार --
अंत में हम बैठकर सोच रहे थे कि संसार में कितनी विविधता है । एक तरफ ये गोरी चमड़ी वाले जो यहाँ लेटकर सन टैनिंग कर रहे हैं ताकि थोड़े काले हो जाएँ ।
दूसरी तरफ अफ्रीकन देशों के लोग जो इतने काले कि रात में नज़र भी न आयें ।
बीच में हम हिन्दुस्तानी/एशियन जिन्हें ब्राउन कहा जाता है । कहीं न कहीं हमें भी शौक रहता है गोरा होने का । तभी तो फेयर एंड लवली जैसी क्रीम का आविष्कार हुआ

हमें भी तो श्रीमती जी ने आते समय सन लोशन देकर कहा था कि लगा लेना वर्ना काले हो जाओगे
नोट : यहाँ एक बार देखकर ज़रूर लगा था कि ये निर्लज्जता क्यों । लेकिन फिर याद आया कि इससे ज्यादा नग्नता तो आजकल टी वी पर फिल्मों और विज्ञापनों में दिखाते हैं ।
कम से कम अख़बारों की मैगजीनों में छपने वाली तस्वीरों से तो कम ही नग्नता दिखी ।

इंटरनेट और एम् एम् एस के ज़माने में लज्ज़ा नाम की चीज़ बची ही कहाँ हैफिर क्यों इन्हें दोष दिया जाए वैसे भी दोष देखने वाले की आँखों में होता है

29 comments:

  1. शानदार , ईमानदार और जानदार सब कुछ सही सामने रख दिया आपका कहना सही है कि " दोष देखने वाले की आँखों में होता है ।

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  2. आपकी पोस्ट ने बहुत सारे विषय समेट लिए। सरदार जी की आँखों की चमक देख कर लगता है.........।

    लज्जा शब्द के मायने और मापदंड बदल गए हैं।

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  3. @शायद मैंने पीछे बैठे दो गोरों के माल पर हाथ साफ़ कर दिया था।

    पर माल दिखाई नहीं दे रहा। कोल्ड ड्रिंक दि्खाई दे रहा है।

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  4. शानदार चित्रों के साथ व्यक्तिषः जानदार विश्लेषण.

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  5. बढ़िया है ...
    खूब घूम रहे हो गोवा में कोरोना के साथ और हम ठंडी साँसे भर रहे हैं !

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  6. बढ़िया है ...
    खूब घूम रहे हो गोवा में कोरोना के साथ और हम ठंडी साँसे भर रहे हैं !

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  7. घर बैठे सचित्र गोवा -सैर कराने के लिए धन्यवाद.

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  8. सुंदर चित्रों के साथ बेहतरीन सैर

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  9. इंटरनेट और एम् एम् एस के ज़माने में लज्ज़ा नाम की चीज़ बची ही कहाँ है । फिर क्यों इन्हें दोष दिया जाए ।
    बेहतरीन पोस्ट...

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  10. शानदार चित्र और विस्तार से जानकारी पा कर लगा कि हम भी घूम आये हैं। धन्यवाद।

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  11. सुहानी शाम के बहुत खूबसूरत नज़ारे पेश किये हैं आपने!

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  12. बहुत सुन्दर चित्रों से सुसज्जित पोस्ट ...

    नग्नता तो आजकल टी वी पर फिल्मों और विज्ञापनों में दिखाते हैं ।
    कम से कम अख़बारों की मैगजीनों में छपने वाली तस्वीरों से तो कम ही नग्नता दिखी..

    यानी यह सब भी आप देख चुके हैं :) :)

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  13. पोस्ट के माध्यम से सब कुछ समेट लिया।

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  14. बहुत खूब , कॉमेंट भी आपने चित्रों संग सटीक लगाये है !:)

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  15. चित्रों की बढि़या प्रस्‍तुति.

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  16. तस्वीरों के साथ कैप्शन पढने में मजा आ गया।
    पोस्ट पसन्द आयी जी।

    प्रणाम

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  17. दोष देखने वाले की आँखों में होता है -बहुत खूब

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  18. बहुत ही बढ़िया....विवरण और तस्वीरें...

    और उस काउच पर बैठने का चार्ज कितना लगा??...अच्छे खासे पैसे वसूल लेते हैं...एकाध बार लोगो को बैठने के लिए आते...पर चार्ज की रकम सुनते ही वापस लौटते भी देखा है :)

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  19. ब्लैक से व्हाइट तक का सफर उम्दा था.

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  20. ललित भाई , हम तो बस उनके काउच की बात कर रहे हैं ।
    सतीश जी ये कोरोना क्या है ?
    संगीता जी , क्या करें अखबार तो रोज पढ़ते हैं ।

    रश्मि जी , यही तो मज़ा था कि कुछ नहीं देना पड़ता । बस कब्ज़ा कर लो । और अंग्रेज़ बन जाओ ।

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  21. कोउच पर बेठे हुए आपको यह गीत गुनगुनाना था डॉ साहेब ---'यह शाम मस्तानी मदहोश किए जाए ------;)

    सरदार जी के क्या कहने --इस उमरिया में ये झटके --!

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  22. अच्छा हुआ कि एक ही राउंड लगाकर वापस आ गए। किसी ब्लॉगर ने देख लिया होता तो स्वयं आप कविता के विषय बन जाते!

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  23. दोष देखने वाले की आँखों में होता है ... तभी हमे चशमा लग गया हे, अजी यह तो टेलर भी नही कभी यहां आये फ़िर देखे दोष आंखो का हे या...? इतना कुछ दिखएगा कि आप तोबा तोबा करेगे

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  24. जब हम परिवार के साथ गोवा गए थे तो गाइड ने हमें इस बीच पर जाने से मना कर दिया था क्यों कि ...... :)

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  25. मैं पिछले कुछ महीनों से ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए लिखने का वक़्त नहीं मिला और आपके ब्लॉग पर नहीं आ सकी!
    सुन्दर चित्रों के साथ उम्दा प्रस्तुती! बढ़िया पोस्ट!

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  26. सरदार जी क्या देख रहे हैं -दृश्य विभोर लगते हैं !
    बेहतरीन फोटोग्राफी -लेकिन हर जगह सेंसर ?

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  27. .

    डॉ दराल ,

    आपका narration बहुत ही चटपटे अंदाज़ में रहता है । सभी तसवीरें बढियां लगीं । आपकी विचारों में डूबी हुयी तस्वीर बहुत अच्छी है । लम्बू की सिगरेट ब्रेक वाला चित्र मजेदार लगा।

    .

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  28. दर्शन जी , गीतों भरी पोस्ट भी आने वाली है । शुक्रिया ।

    भाटिया जी , आप बुलाइए तो सही , हम बिलकुल तौबा तौबा नहीं करेंगे । :)

    वापसी पर आपका स्वागत है बबली जी ।

    सही कहा अरविन्द जी , सारी फोटोज सेंसर्ड हैं । :)

    शुक्रिया दिव्या जी ।

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  29. घर बैठे सचित्र गोवा की सैर कराने के लिए धन्यवाद|

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