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Saturday, June 15, 2013

कितने पास , कितने दूर -- ट्रेक टू ट्रीउंड ।


यूँ तो हर पर्वतीय पर्यटन स्थल की तरह धर्मशाला में भी कई ट्रेक्स हैं जहाँ आप ट्रेकिंग का शौक पूरा कर सकते हैं। लेकिन एक ट्रेक जो आम सैलानियों में बहुत लोकप्रिय है , वह है  ट्रीउंड का ट्रेक। धर्मशाला से १० किलोमीटर दूर है मैकलॉयड गंज जहाँ से डेढ़ किलोमीटर पर धरमकोट और ३ किलोमीटर आगे गलू मंदिर है जहाँ तक गाड़ी जा सकती है। गलू मंदिर से ट्रीउंड का ट्रेक शुरू होता है जो ७ किलोमीटर लम्बा है। ट्रीउंड से स्नो लाइन शुरू होती है यानि यह बर्फीले पहाड़ों की तलहटी में स्थित है। यहाँ टूरिज्म विभाग का एक रेस्ट हाउस बना है तथा ठहरने के लिए टेंट भी आसानी से किराये पर मिल जाते हैं।


पिछली बार १८ साल पहले जब यहाँ आए थे तब बच्चे छोटे थे। फिर हमने गलू मंदिर तक ही ४ - ५ किलोमीटर पैदल चलकर रास्ता तय किया था। इसलिए ऊपर जाने की सम्भावना ख़त्म हो गई थी। इसलिए हमने यहीं रूककर पिकनिक मनाई। उन दिनों माधुरी दीक्षित की एक फिल्म आई थी -- राजा -- जिसमे एक गाना था -- अँखियाँ मिली , दिल धड़का , मेरी धड़कन ने कहा , लव यु राजा -- इस गाने पर बिटिया ने बढ़िया डांस किया और हमने भी उसे देखकर स्टेप मिलाने की कोशिश की थी। ये सब यादें मन में लिए इस बार हमने ट्रेक पूरा करने का निर्णय लिया।

टूरिज्म विभाग में गए तो कोई नहीं मिला। लेकिन केयरटेकर ने हमें देखकर कहा कि साब आप तो दोनों फिट हैं , ट्रेकिंग पर जा सकते हैं। लेकिन बिना गाइड के मत जाइये। पता चला गाइड का खर्च था ८०० रूपये प्रति व्यक्ति जिसे सुनकर हमें बड़ी हंसी आई। हमने श्रीमती जी से कहा -- चलिए आप ट्रेकर बनिए और हम गाइड। आखिर हमने बड़े बड़ों को घुमाया है।  




हमने एक गाड़ी किराये पर ली और पहुँच गए गलू मंदिर। वहीँ जहाँ से पिछली बार वापस मुड़ लिए थे लेकिन इस बार तैयार थे आगे बढ़ने के लिए।




आरम्भ में रास्ता बड़ा सुगम था। हलकी सी चढ़ाई थी और घने पेड़ों की छाया थी।




लेकिन फिर रास्ता पथरीला होने लगा और धूप भी लगने लगी। ट्रेकिंग पर जाने के लिए आपके कपड़े और जूते हल्के और आरामदायक होने चाहिए। कभी भी नए कपड़ों और जूतों में ट्रेकिंग न करें। साथ ही ज़रूरत का सामान एक रकसक में रख लेना चाहिए, विशेषकर खाना और पानी।  




रकसक को कमर पर बांधने का भी एक विशेष तरीका होता है जिससे चलने में कठिनाई नहीं होती।
इस फोटो में कुछ विशेष दिखाई दिया ? 

करीब सवा घंटा चलने के बाद हम पहुँच गए मिड पॉइंट पर यानि ७ किलोमीटर का आधा रास्ता तय हो गया था। देखा जाए तो यह स्पीड बड़ी अच्छी ही कहलाएगी। लेकिन एक तो हमने ट्रेकिंग शुरू की ११ बजे जबकि हमें बताया गया था कि एक दिन में वापस आना है तो सुबह ७ बजे तक शुरू हो जाना चाहिए। दूसरे हम गाड़ी लेकर आए थे और ड्राइवर को रुकने के लिए कहा था ३ घंटे, यह कहकर कि हम डेढ़ घंटे की ट्रेकिंग के बाद वापस मुड़ लेंगे। ऊपर से अब बादल छाने लगे थे और हल्की हल्की बारिस शुरू हो गई थी। इसलिए सोच में पड़ गए कि क्या करना चाहिए।    



मौसम अब बहुत खुशगवार हो गया था। चाय की इच्छा थी और सामने चाय की सबसे पुरानी दुकान।




२५०० मीटर की ऊँचाई पर बनी दुकान में बैठकर चाय पीने का मज़ा आ गया। चाय वाले ने चाय भी बहुत बढ़िया बनाई और पूरा गिलास भरकर पिलाई। हमारी नज़र कहाँ है ,  आइये अब यह देखते हैं।




जी हाँ , यही वो जगह है जहाँ हमें जाना था -- ट्रीउंड। साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी से भी गेस्ट हाउस साफ दिखाई दे रहा था।  इतना पास , फिर भी इतना दूर।




आगे का रास्ता ज्यादा पथरीला दिख रहा था। ऊपर की ओर जाने वाले और लौटने वाले लगभग सभी लोग एक रात रुकने का प्रोग्राम बना कर आये थे जिनमे आधे से ज्यादा फिरंगी थे। हमें लगा कि वापस आने वाले हम अकेले ही रह जायेंगे। फिर शाम और बारिस , दोनों ही विपरीत परिस्थितियां बन रही थी। इसलिए अंतत: यही निर्णय लिया कि इस बार यहीं से मुड़ लिया जाये।

लेकिन मन में तय किया कि अगली बार जल्दी ही लौटेंगे और रात को ट्रीउंड में ही रुकेंगे। इस फैसले के साथ ही हम लौट पड़े वापसी के लिए।            




एक ही फोटो में -- ऊपर बायीं ओर एक मंजिल जो पानी थी , नीचे दायीं ओर मंजिल जो पा सके। फासला साढ़े तीन किलोमीटर का।  




रास्ते में ऊँचाई से बड़े मनमोहक दृश्य दिखाई दे रहे थे। यह वही झरने वाली नदी है जहाँ दो दिन पहले गए थे। दायीं ओर नज़र आ रहा है भाग्सू नाथ मंदिर वाली जगह।



इस फोटो में -- दायीं ओर धरमकोट जहाँ अधिकतर विदेशी पर्यटक महीनों तक पेईंग गेस्ट बन कर रहते हैं। बायीं ओर है भाग्सू मंदिर वाला क्षेत्र , मध्य में  मैकलॉयड गंज और दूर क्षितिज में बायीं ओर धर्मशाला शहर।



और इस तरह पूरा हुआ हमारा ट्रीउंड का अर्ध ट्रेक। लेकिन ३ घंटे में ७ किलोमीटर का पहाड़ी सफ़र तय कर भी हम तरो ताज़ा महसूस कर रहे थे।    


ट्रेकिंग के लिए कुछ टिप्स : 

* ट्रेकिंग पर जाने से पहले कम से कम १५ दिन पहले रोजाना आधे घंटे तक ब्रिस्क वॉक करें ताकि स्टेमिना बन सके।
* एक बार डॉक्टर से जाँच ज़रूर करा लें , विशेषकर जिन्हें शुगर या बी पी का रोग है।
* सामान कम से कम रखें लेकिन खाने पीने का सामान उचित मात्रा में ज़रूर रखना चाहिए।
* धीरे चलें लेकिन स्पीड मेंटेन रखें।
* एक बार में २ - ४ मिनट का ही रेस्ट लें।
* पानी पीते रहें लेकिन एक बार में दो सिप से ज्यादा नहीं।
* ट्रेकिंग के दौरान पर्यावरण का ध्यान रखें। कोई भी प्लास्टिक वस्तु रास्ते में न फेंके, बल्कि अपने बैग में डालकर वापस ले आयें।
*रास्ते में आने वाले द्रश्यों का अवलोकन कर आनंद उठायें।

नोट : ट्रेकिंग पर जाने के लिए फिजिकल फिटनेस का होना अत्यंत आवश्यक है। लेकिन यह भी सच है कि यदि आप पहाड़ों में पैदल घूमने के शौक़ीन हैं तो फिटनेस अपने आप आ जाएगी।   



24 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (16-06-2013) के चर्चा मंच 1277 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  2. चित्र और नजारे बडे खूबसूरत हैं, सफ़लता पूर्वक अर्ध ट्रेकिंग पूरा कर लेने की हार्दिक बधाईयां.

    रामराम.

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  3. हमने श्रीमती जी से कहा -- चलिए आप ट्रेकर बनिए और हम गाइड। आखिर हमने बड़े बड़ों को घुमाया है।

    वाह हौसला हो तो ऐसा, लठ्ठ से डर नही लगा?:)

    रामराम.

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  4. ताऊ जी,
    लठ्ठ से डर नहीं लगता, बस उस ख़ास नज़र से लगता है...

    डॉक्टर साहब ने चौथी फोटो में जो सवाल पूछा है, उसका सीधा संबंध ट्रैकिंग के लिए दी गई उनकी सातवीं टिप से है...

    जय हिंद...

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  5. आज जाकर मैं ट्रेकिंग और स्केटिंग का सही फर्क महसूस कर पाया -इस उम्र के लिए यही मुफीद है डाकटर साहब ! :-)
    मजेदार यात्रा वृत्तांत -पुनर्यौवन के साथ लौटे होंगें !

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    1. क्या फर्क समझ में आया , कृपया हमें भी समझाएं। :)

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    2. अक्लमंद को इशारा काफी :-)
      वैसे जब मैं बी एस सी में था एक सामान्य अंगरेजी का पेपर भी पास करना पड़ता था ....(जो अब नहीं है) उसमें पहाड़ों पर ट्रेकिंग का आनन्द पर निबन्ध लिखना था -मैं स्केटिंग पर लिख आया था .यद्यपि दोनों के बारे में नहीं जानता था :-) जब जाना तो एक उम्र फिसल चुकी थी ....और यह समझ में भी आया कि इस उम्र में बस ट्रेकिंग ही की जा सकती है आहिस्ता आहिस्ता ..... :-)

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    3. अरविन्द जी , ट्रेकिंग और स्केटिंग दोनों के लिए घुटनों में जान होना ज़रूरी है। लेकिन ट्रेकिंग में साथ ही फेफड़े भी ताकतवर होने चाहिए। फिर भी ट्रेकिंग आसान है क्योंकि स्केटिंग में -- ऑल और नन -- का हेर फेर है जबकि ट्रेकिंग पूर्णतया एडजस्टेबल है यानि आप अपने अनुसार यथासंभव कर सकते हैं।

      वैसे वज़न कम करने के लिए पैदल चलने से बेहतर और सस्ता उपाय कोई नहीं। :)
      और इसके लिए कोई उम्र की सीमा भी नहीं।

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  6. आज की ब्लॉग बुलेटिन तार आया है... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  7. क्या बात है सरजी ट्रेकिंग की -तुमको हमारी उम्र लग जाए .....मैं ठीक हूँ मुंबई से २ ६ मई को निकला था ,लौटा ११ जून को और बस १ २ जून की रात और तेरह की सुबह कैंटन (मिशिगन )के लिए .अब यहीं हूँ नवम्बर मध्य तक .सेहत ठीक है शुक्रिया आपका .सब ठीक है मैं भी बहुत ठीक हूँ .

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  8. बहुत सुंदर पोस्ट ..चित्र भी मनमोहक

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  9. खूबसूरत नज़ारों का नजराना बहुत उम्दा लगा. पहाड़ों पर गज़ब का सुकून मिलता है जो खुद ही उर्जावान बाना देता है.

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  10. वाह, सुन्दर और उपयोगी सलाह, ट्रेकिंग का अपना ही आनन्द है।

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  11. पहाड़ों के खुबसूरत नज़ारे और ट्रेकिंग -बहुत सुन्दर ! कभी हमने भी किया है
    latest post पिता
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

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  12. उपयोगी नुस्खे दिए हैं ट्रेकिंग के ...
    पहले फिटनेस तैयार करनी होगी ... फिर कैमरे के गुर भी सीखने पढेंगे ... प्राकृति की खूबसूरती को कैद करने के लिए ... फिर रोचक कलम आपकी तरह उसको कागज पे उतारने के लिए ...
    मज़ा आ गया डाक्टर साहब ...

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  13. मनमोहक चित्रों से सजी जानकारी पूर्ण बढ़िया पोस्ट...:)

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  14. चित्रों के साथ अच्छी जानकारी एवं सलाह ! यह उत्साह उर्जा बनी रहे !

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  15. आप दोनों जवानों को सादर अभिवादन !!
    ट्रेकिंग पर कभी नहीं गया था मगर अब जाना है !
    उदासियों के लिए हिम्मत देने वाले यह लेख बहुतों के काम आयेंगे !
    आपकी यह मस्ती पसंद आई और जगह तो खूबसूरत है ही !
    मंगल कामनाएं इस जवान जोड़े के लिए !

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  16. वाह, बहुत सुन्द और खूबसूरती से लिए गए चित्र ! बहुत अच्छी बात है डा) साहब की अगर इंसान जिन्दगी में हर तरह के लुत्फ़ उठाना जाने।

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  17. टिप्स के साथ खुबसूरत दृश्य ललचाते है बहुत सुन्दर

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  18. अब तो बारिश हो गई इस कारण मेरा सारा प्रोग्राम धऱा रह गया...पूरा इरादा था इस हफ्ते शिमला को औऱ अगले वीकेंड पर हिमाचल का..शिमला का हाल तो दिल्ली में हो लिया..पर अगले हफ्ते का प्रोग्राम तो पहाड़ों की बारिश ने कैंसल कर दिया है...वैसे भी कंक्रीट के जंगल देखकर दिल लरजता था कि बारिश में क्या होगा पहाड़ों का...वो डर सच हो गया..पिछले कुछ सालों से पहाड़ों पर बारिश के दौरान मकान तो मकान...पहाड़ भी ढह रहे हैं..जाहिर है बिना मजबूत नींव के तो जीवन नहीं टिकता...पहाड़ पर कंक्रीट के जंगल कहां टिकेंगे।

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  19. जी हाँ , हाल देखकर दिल दहल रहा है।

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  20. बडे खूबसूरत नजारे हैं

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