top hindi blogs

Saturday, May 4, 2013

जब पहली बार हमें एक अपराधी जैसा होना महसूस हुआ -- ऐ विजिट टू दिल्ली एयरपोर्ट।


एक समय था जब दिल्ली एयरपोर्ट तभी जाना होता था जब कनाडा में रहने वाले हमारे मित्र साल दो साल में एक बार दिल्ली आते थे। उन्हें लेने जाते तो आधी रात तक बेसब्री से इंतजार करते। ट्रॉली पर सामान लादे दोनों हाथों से ट्रॉली धकाते हुए जब वे सामने आते तो पहचान कर चेहरे पर जैसे एक विजयी मुस्कान फ़ैल जाती। इसी तरह विदेश जाते समय सभी दोस्त और रिश्तेदार मिलकर उन्हें विदा करने जाते। इस अवसर पर सब प्रस्थान क्षेत्र में बने रेस्तराँ में बैठकर चाय कॉफ़ी का आनंद लेते और बाहर चलते हवाई ज़हाज़ों को देखकर रोमांचित होते।

उन दिनों प्रस्थान टर्मिनल का नज़ारा भी बड़ा दिलचस्प होता था। अक्सर पंजाब से लोग दल बल सहित आते और विदेश जाने वाले प्यारे मुंडे को फूल मालाओं से लाद कर गले मिलकर खूब रोते। एक एक बन्दे को छोड़ने ४०-५० लोग तक बस या ट्रक भर कर आते। पता नहीं कि तब विदेश जाना ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता था या हवाई ज़हाज़ में बैठना , या शायद दोनों। हमने भी जब पहली बार हवाई यात्रा की तब अपना वी आई पी होने का भ्रम ज़ेहन में अन्दर तक उतर गया था। ट्रॉली में एक छोटा सा बैग रखकर हम ऐसे चल रहे थे जैसे बरसों बाद विदेश से लौटे हों। स्वागत में तख्ती लिए खड़े एक एक शख्स को देखते हुए ऐसे आगे बढ़ रहे थे जैसे हमारे ही स्वागत में खड़े हों।   

लेकिन अब जब देश में लो कॉस्ट एयरलाइन्स के चलते हवाई यात्रा पहले के मुकाबले सस्ती हो गई है और साथ ही मिडल क्लास की खर्च करने की क्षमता अपेक्षाकृत बढ़ गई है , तब हवाई यात्रा और एयरपोर्ट जाना उतना दुर्लभ नहीं रहा। महीने दो महीने में दोनों बच्चों में से किसी एक को लाने या छोड़ने का क्रम चलता ही रहता है। हालाँकि अब एयरपोर्ट तक मेट्रो उपलब्ध है लेकिन दिल्ली वालों को अपनी गाड़ी में चलने की बड़ी बुरी आदत है। इसी के चलते एयरपोर्ट पर गाड़ियों की भीड़ इतनी बढ़ गई कि अब वहां रुकने की इज़ाज़त ही बंद कर दी गई है।

अब डोमेस्टिक एयरपोर्ट पर पिकअप करने के लिए बस ५ मिनट का ही समय मिलेगा। उसके बाद १०० रूपये का टिकेट कट जायेगा। और यदि आपको एक घंटा रुकना पड़ गया तो समझो ६०० का चूना लग गया। हालाँकि पार्किंग में गाड़ी पार्क करने के आधे घंटे के ५० रूपये देने पड़ते हैं।

ऐसे में अक्सर देखने में आता है कि पिकअप करने के लिए जाने वाले गाड़ीवाले एयरपोर्ट से पहले ही सड़क पर  
साइड में गाड़ी लगाकर खड़े हो जाते हैं। लेकिन जल्दी ही ट्रैफिक पुलिस वाले लाउड स्पीकर पर गाड़ी का नंबर पुकारते हुए वहां से हटने को मजबूर कर देते हैं। यह नज़ारा अब आम हो गया है।

कुछ दिन पहले हम भी एक्सप्रेस हाइवे आरम्भ होने से पहले वाले स्थान पर रात १० बजे बेटी का प्लेन लैंड होने का इंतजार कर रहे थे। तभी देखा कि आगे पीछे जो और गाड़ियाँ थीं , सब अचानक चल दिए। कुछ सेकंड्स बाद ही एक पुलिस की गाड़ी हमारे साइड में आकर रुकी और उसमे बैठा पुलिसमेंन हमें घूर कर देखने लगा। हमें भी लगा जैसे हम कोई अपराधी हैं। अब तक हम यह भी समझ गए थे कि यहाँ से खिसक लेना ही बेहतर है। हालाँकि हमें एक महिला (पत्नि) के साथ देर रात यूँ सड़क पर रुके होने का अर्थ उन्होंने क्या लगाया होगा , यह सोचकर ही हंसी आ गई।    

हाइवे पर चढ़ते ही नज़ारा और भी दिलचस्प हो गया। जहाँ दायीं लेन में चलती हुई गाड़ियों में तेज चलने की रेस लगी थी , वहीँ बायीं लेंन में वे सब चल रहे थे जिन्हें एयरपोर्ट जाना था। बायीं लेन में चलने वालों में एक तरह से धीरे चलने की होड़ सी लगी थी। ज़ाहिर था , किसी को भी जाने की जल्दी नहीं थी। आखिर एक जगह जहाँ फ़्लाइओवर में मोड़ सा था , वहां पर जाकर सारी गाड़ियाँ रुकने लग गई। वहां न सिर्फ मोड़ था , बल्कि अँधेरा भी था। फिर भी लोग इत्मिनान से गाड़ी रोककर इंतजार कर रहे थे , घड़ी की सूइयों के आगे बढ़ने का। कुल मिलाकर सारा दृश्य एक संस्पेस्फुल फिल्म के  सैट जैसा लग रहा था।

इंतजार करते हुए यही विचार मन में आ रहा था कि ५ से १५ लाख की गाड़ियों में बैठे हम शहरी खाते पीते लोग वहां सिर्फ इसलिए खड़े थे क्योंकि पार्किंग के ५० रूपये बचाने थे। यह अलग बात है कि यदि पिकअप करने में ५ मिनट से ज्यादा की देरी हो जाये तो ५० बचाने के चक्कर में १०० रूपये भी देने पड़ सकते हैं। उधर फ़्लाइओवर के ऊपर से होती हुई एयरपोर्ट मेट्रो जा रही थी , बिल्कुल खाली। एयरपोर्ट आने वाली मेट्रो में भी मुश्किल से १० सवारियां थीं। ज़ाहिर था कि हम दिल्ली वालों को अपनी गाड़ी से ही चलने की भयंकर आदत है। इसीलिए सब जगह पार्किंग की समस्या बढती जा रही है।           

अब सवाल यह उठता है कि इन परिस्थितियों में दोष किसे दिया जाये।

क्या उन्हें जो अपने प्रिय परिजनों को लेने एयरपोर्ट अपनी गाड़ी में जाते हैं ?
या एयरपोर्ट मेट्रो लोगों को लुभा नहीं पा रही है ?  
या फिर एयरपोर्ट अधिकारीगण इस समस्या का कोई बेहतर समाधान नहीं निकाल पा रहे हैं ? 

जब तक कोई बेहतर विकल्प नहीं मिलता , तब तक लगता है कि दिल्ली के सांभ्रांत लोग यूँ ही मन में एक अपराधबोध लिए सडकों पर पुलिस से बचते फिरते रहेंगे।   



46 comments:

  1. सबसे अच्छा तो यही हो कि लोग बसों से ही जायें, अनावश्यक भीड़ न बढ़े वहाँ पर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. भैया , दिल्ली की बसें या तो खाली चलती हैं या उनमे गुंडे और जेबकतरे भरे रहते हैं।

      Delete
    2. डाक्टर साहब, सीधे सीधे क्यों नही कहते कि उनमें ताऊ छाप लोग सफ़र करते हैं?:)

      रामराम.

      Delete
    3. हा हा हा ! लगता है , ताई का डर ख़त्म हो गया है। :)

      Delete
  2. पब्लिक ट्रांसपोर्ट का कोई भरोसा नहीं रहता ..
    कभी खाली चलेगी कभी उसमें खडे होने की जगह भी नहीं ..
    इसलिए तो लोग अपनी गाडी में चलना सुविधाजनक समझते हैं !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. पर संगीता जी अब अपनी गाडी ले भी जावो तो पार्किंग कहां रह गयी है? इधर उधर पार्क कर दो तो गाडी पुलिस की क्रेन उठा ले जाती है.

      रामराम

      Delete
  3. मेट्रो जैसी सुविधा का उपयोग न कर जो अपने वाहनों का प्रयोग कर रहे हैं, निश्चित ही समस्या खडी कर रहे हैं।

    ReplyDelete
  4. मेट्रो स्टेशन तक पहुंचना ही दुष्कर कार्य है... उसके लिए आपको औटो करना पड़ेगा और दिल्ली के ऑटोवालों से भगवान बचाए...

    ReplyDelete

  5. @ ५ से १५ लाख की गाड़ियों में बैठे हम शहरी खाते पीते लोग वहां सिर्फ इसलिए खड़े थे क्योंकि पार्किंग के ५० रूपये बचाने थे..

    भाई जी,
    ६ लाख की गाडी लेकर हम पार्किंग के पैसे नहीं देंगे :( ,

    इससे बेहतर था कि बस से आते और १०० रुपये का एयर कंडिशनिंग वेटिंग हाल का टिकिट लेकर, गरम गरम काफी पीते और खुशनुमा माहौल का आनंद लेते !

    (भाभी जी भी सोंच रही होंगी कि किस मुए से पाला पड़ गया , इससे तो वह पूना वाला इंजिनियर बेहतर था जहां पापा पहले शादी कर रहे थे )

    इसी प्रकार कई बार हम लोग पैसे बचाने के लिए 2-३ घंटे लाइन में, पसीना पसीना होकर खड़े रहना पसंद करते हैं !

    इस तरह के संयोग आपके जीवन में कितनी बार रिपीट हुए और कुल कितना पैसा बचाया , अगर कभी गणना करें तो अपने ऊपर हँसी आयेगी कि यह क्या किया ?

    इसी प्रकार रोज़मर्रा के सैकड़ों उदाहरण हैं जब हम छोटी सी रकम न खर्च कर अपने आनंद का बेडा गर्क करते हैं ! मैं ऐसे बहुत लोगों को जानता हूँ जिन्होंने अपना पूरा जीवन पैसा बचाने में लगे रहे और अब सत्तर वर्ष में पछतातें हैं कि अब वे पैसे का उपभोग भी नहीं कर सकते न अब इतनी शक्ति है !

    शुभकामनायें !!


    ReplyDelete
    Replies
    1. हा हा हा ! बढ़िया फटकार। :)

      लेकिन ऐसा लगता है कि दिल्ली वालों को अपनी गाड़ी से उतरकर दो कदम पैदल चलना भी दुश्वार लगता है या फिर वे इसे अपनी तौहीन समझते हैं। लेकिन भाई जी , समस्या वास्तव में है गंभीर। :)

      Delete
    2. सतीश जी लाख टके की बात कह दी आपने. कभी कभी कुछ इतने नगण्य से खर्चे हम बचाने की सोचते हैं कि बाद में उन पर हंसी भी आती है.

      रामराम.

      Delete
  6. Jyada se jyad janta agar baso aur metro train ka upyog kare to smasya se nijaal mil sakti hai ......par yah namumkin hai

    ReplyDelete
  7. सही है..
    मेरा कमेन्ट गायब !!

    ReplyDelete
  8. एअरपोर्ट मेट्रो के सफल बनाने के लिये फीडर सेवा देने की जरुरत है. एअरपोर्ट से तक्सी मिलने की सम्भावना है लेकिन मेट्रो से उतरकर टैक्सी ढूँढना बहुत मुश्किल काम है इससे अच्छा है कि एअरपोर्ट से टैक्सी ले लो. दिल्ली एअरपोर्ट में बस सेवा का पूर्णतया अभाव है. नए बने एअरपोर्ट में हैदरबाद और बंगलोर दोनों जगह अच्छी बस सेवा नियमित समय पर शहर के मुख्य स्थानों के लिये उपलब्ध है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. रचना जी , रात में बेटी को लाने के लिए अपनी गाड़ी से बेहतर साधन और कोई नहीं है। लेकिन अब बहुत से बच्चे दिल्ली से बाहर पढने या काम करने लगे हैं , इसलिए एयरपोर्ट पर उनको लेने या छोड़ने वालों की भीड़ लगी रहती है।

      Delete
  9. हम तो अकेले जाते हैं तो बस लेते हैं और परिवार होता है तो टैक्सी.. सरकारी कार्यक्रम होता है तो अकेले भी टैक्सी :)

    दिल्ली में एक दिन आने वाले हैं, तो मेट्रो को ही अपनाने का मन है ।

    ReplyDelete
  10. ऐसी स्थिति में सुलभ संसाधनों का उपयोग करना चाहिये,,,नही तो ये समस्या दिन पर दिन बढ़ती ही जायेगी,,,,,

    RECENT POST: दीदार होता है,

    ReplyDelete
  11. एक आम समस्या को आपने अपने खास तरीके से समझा दिया ... :)

    ReplyDelete
  12. कुछ दिनों से ब्लॉग पर गूगल स्वयं हिंदी को इंग्लिश में ट्रांसलेट कर पोस्ट को इंग्लिश में बदल रहा है। हालाँकि फिर से हिंदी में बदलने का विकल्प है। लेकिन क्या यह किसी आने वाले खतरे की घंटी है !

    ReplyDelete
  13. एअरपोर्ट मेट्रो का एक तो किराया बहुत है इसलिए यह लोगों को बहुत आकर्षित नहीं करती, दूसरे, इसके स्टेशनो पर पार्किंग की व्यवस्था नहीं है इसलिए लोगों को लगता है कि क्यों न एअरपोर्ट तक ही कार में चला जाए

    ReplyDelete
  14. पहले तो सतीश सक्सेना जी की बात से समर्थन. दूसरा यह कि मेट्रो में सामान ले जाना एक मुसीबत है. फिर मेट्रो स्टेशन तक आना जाना.
    इसीलिए शायद अपनी कार सुलभ लगती है एक बार सामान ढोया तो सीधा मंजिल पर ही उतारा.

    ReplyDelete
    Replies
    1. काजल जी , शिखा जी -- बेशक दिल्ली जैसे शहर में अपनी कार बहुत आरामदायक रहती है। लेकिन जहाँ तक ५ ० रूपये में पार्किंग का सवाल है , बचने की कोशिश करते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि यदि आधे घंटे से एक सेकण्ड भी ज्यादा हो गया तो १ ० ० रूपये देने पड़ते हैं जो चीटिंग सी लगती है। विदेशों में भी लोगों को पार्किंग फीस हमेशा ज्यादा ही लगती है।

      Delete
  15. दिल्ली या एनसीआर में आने-जाने का सबसे अच्छा विकल्प मुझे लगा है...01167676767 पर फोन कीजिए...दस रुपये प्रति किलोमीटर चार्ज लगता है...पचास रुपये बुकिंग चार्ज...एसी चलवाना है तो पूरे सफ़र के बस दस रुपये एक्स्ट्रा देने होते हैं...अगर बीच में टोल आया तो उसके चार्ज भी आपको देने होंगे...चार लोग सफ़र कर सकते हैं...हां बस आपको ये ध्यान रखना होगा...अगर आपने आधा घंटा कहीं वेट करवाया तो उसके भी पचास रुपये देने होंगे...अगर दिल्ली की सड़कों पर खुद ड्राइव कर ब्लड प्रेशर नहीं बढ़ाना चाहते तो ये सबसे बढ़िया विकल्प है...इसलिए अब बाहर से आने वालों को भी इसी सुविधा का इस्तेमाल करने के लिए कह सकते है...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत अच्छी जानकारी। यह तो वास्तव में सस्ता सौदा है। अभी नंबर सेव करते हैं।

      Delete
    2. खुशदीप जी आपकी जनाकारी बिल्कुल सही है. हम जब भी दिल्ली आते जाते हैं meru cab की सेवाएं लेते हैं जो हर लिहाज से सस्ती और सुविधाजनक पडती हैं.

      रामराम

      Delete
  16. आज की ब्लॉग बुलेटिन एक की ख़ुशी से दूसरा परेशान - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  17. यह मानव का स्वभाव है -इसमें कैसा अपराध बोध -हाँ अगली बार सतीश सक्सेना जी का विकल्प भी अपनाएँ

    ReplyDelete
  18. अब हवाई जाहज से जाना रोमांचित तो नही करता जो 1974 से 2000 तक करता था. पहले हवाई यात्रा में इतनी खातिर तव्व्जो होती थी कि अपने वी आई पी होने का भ्रम हो जाता था.:) आज अधिकतर हवाई कंपनिया यात्रियों को सामान की तरह यहां से उठा कर वहां पटक देती हैं. एयरक्राफ़्ट भी अक्सर गंदे ही होते हैं और कोई साथ वाला यात्री यदि ताऊ छाप (जिसकी संभावना आजकल ज्यादा होती है.) मिल गया तो बोलो राम ही होगया.

    रामराम.

    ReplyDelete
    Replies
    1. एयर हॉस्टेस में भी कोई बदलाव आया है क्या ? :)

      Delete
    2. ये आपने बहुत अच्छा पूछा. एयर होस्टेज माल्या साहब वाली चटक मटक लिये होती थी पर उनमे वो बात कहां जो इंडियन एयरलाईंस (अब एयर इंडिया)की एयर होस्टेस मे हैं. यकिन मानिये मैं 1972 से सतत हवाई यात्री हूं. आज भी इंडियन एयरलाईंस की एयर होस्टेस मे जो तह्जीब और सलीका है वो अन्य एयर लाईंस में नही.

      दूसरी एयर लाईंस की होस्टेस तो गेट पर इस तरह दांत दिकाती हैं जैसे menniquin हाथ जोडने की मुद्रा में खडा हो. जबकि इंडियन एयर लाईंस की होस्टेस भले ही दिखने में उम्रदराज हों पर व्यवहार बहुत ही सलीके वाला होता है.

      अब चुंकि प्राईवेट एयरलाईंस का हिस्सा बढ गया है तो मजबूरी में जो भी फ़्लाईट मिले वो पकड लो, अगर प्राथमिकता देनि हो ते इंडियन एयर लाईंस ही को दूंगा.

      रामराम.

      Delete
  19. अभी पिछले महिने 4 अप्रैल को दिल्ली से वापस आते समय फ़्लाईट चार घंटे लेट थी, रात को मुश्किल से 10 की बजाये डेढ बजे घर पहुंचे. यदि कुल समय का हिसाब देखा जाये तो ट्रेन के जितना ही समय लगता है.पर ट्रेन में यात्रा करना इस उम्र में खुद के साथ अन्याय है. इसलिये कोई चार्म ना होते हुये भी इन हवाई कंपनियों को झेलना पडता है.

    रामराम.

    ReplyDelete
  20. खुद की गाडी से जाना या मेट्रो से या टेक्सी से? चुंकि हमारे शहर में तो मेट्रो है नही. परसों बिटिया को बंगलौर के लिये एयरपोर्ट छोडने जाना था, सामान कुछ ज्यादा हो रहा था सो अपनी गाडी के अलावा स्टार कैब की एक टेक्सी भी बुलवा ली. टोयोटा कंपनी की ETIOS गाडी चकाचक आयी और 11 किलोमीटर के 17/- प्रति किलोमीटर से कुल 200 रूपये लिये.

    पहली बार टेक्सी बुलवायी थी, हमने हिसाब लगाया तो पार्किंग पेट्रोल सब मिलाकर हमारी गाडी ही महंगी पडी. अब आईंदा हम कभी अपनी गाडी से एयरपोर्ट नही जायेंगे.

    स्टार कैब वाले ड्राईवर ने अपना कार्ड भी दिया कि ताऊश्री आप यदि बाहर से आरहे हों तो हमें इस नंबर पर पहले ही फ़ोन कर देना, हमारी गाडी इसी रेट पर आपको एयरपोर्ट पर तैयार खडी मिलेगी.

    अत: हमारी राय में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग सुविधाजनक और किफ़ायती है.

    रामराम.

    ReplyDelete
    Replies
    1. ताऊ , हिसाब में गड़बड़ है। अपनी गाड़ी तो ४-५ रूपये प्रति किलोमीटर पड़ती है। पार्किंग फीस लोग बचा ही लेते हैं। फिर श्रीमती जी के साथ लौंग ड्राईव ! :)

      Delete
    2. आपकी बात मान लेते हैं, दोनों तरफ़ का मिलाकर तो 10 रूपया ही हो गया ना? जबकि टेक्सी या तो आयेंगे या जायेंगे? जहां तक पार्किंग बचाने का सवाल है तो हमारे यहां नया इंटरनेशनल एयरपोर्ट जो बना है वो इसकी इजाजत नही देता. मेन सडक छोडकर आपने जहां इंट्री मारी की फ़िर वापसी संभव नही है. घूम के ही आना पडेगा और बिना पार्किंग दिये आप बाहर आ नही सक्ते.

      श्रीमती जी के साथ लोंग ड्राईव करके क्या लठ्ठ खाने हैं और वो भी एयरपोर्ट की तरफ़.:) लठ्ठ खाने ही जाना है तो कहीं और निकल लेंगें.:)

      रामराम

      Delete
  21. पब्लिक ट्रांसपोर्ट का बेहतर होना ज़रूरी है ..... यह समस्या तो आगे और विकराल होने वाली है |

    ReplyDelete
  22. मेट्रो से आने जाने में तो कोई प्रॉबलम नहीं पर सामान ज्यादा हो तो परेशानी हो सकती है ... पार्किंग का खर्च बर्दाश्त कर लेना चाहिए

    ReplyDelete
  23. पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग ही सर्वोत्तम है यदि वह आसानी से उपलब्ध है.
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    lateast post मैं कौन हूँ ?
    latest post परम्परा

    ReplyDelete
  24. aam jantaa ko saarawjanik pariwahan kaa jyada se jyada istemaal karnaa chaahiye.
    isse izzat ke saath saath paryaavaran bhi bachaa rahegaa.
    thanks.
    CHANDER KUMAR SONI
    WWW.CHANDERKSONI.COM

    ReplyDelete
  25. भाई , दिल्ली वाले खुद को आम ही तो नहीं मानते ! :)

    ReplyDelete
  26. हा हा हा यह बिलकुल ठीक कहा आपने कि दिल्ली वाले खुद को कभी आम नहीं मानते, :-)खैर पूरी पोस्ट और सभी कमेंट पढ़ने के बाद तो सतीश सक्सेना जी की बात ही सबसे सही लगी।

    ReplyDelete
  27. जी यही तो दिक्कत है , दिल्ली वाले कभी सही बात को फोलो नहीं करते।

    ReplyDelete
  28. मुझे लगता है बात पचास रूपये से ज्यादा इस बात की है .. की कौन पार्किंग में जाए ... फिर सामान लाद के वहा जाओ ... समय बरबाद करो ... वैसे टेक्सी का विकल्प ज्यादा अच्छा है आजकल ...

    ReplyDelete
  29. पोस्ट और कमेन्ट पढ़कर यही लग रहा है कि टैक्सी का विकल्प अच्छा है , नहीं तो 50 रूपये खर्च करने में क्या परेशानी है !

    ReplyDelete
  30. main vani ji ke vicharon se sahamat hun ...

    ReplyDelete