रक्षाबंधन एक ऐसा त्यौहार है, जिस दिन दफ्तर और अस्पताल सभी खाली पड़े होते हैं , लेकिन बसें और मेट्रो भरी होती हैं . ज़ाहिर है , महिलाएं राखी बांधने के लिए और पुरुष राखी बंधवाने के लिए छुट्टी कर लेते हैं . लेकिन कुछ हमारे जैसे भी होते हैं जो इस दिन कभी छुट्टी नहीं करते . कारण-- न कोई बुआ थी न कोई सगी बहन . हालाँकि चचेरी बुआ और बहनों के रहते कभी राखी पर बहन की कमी महसूस नहीं हुई . समय से पहले ही राखियाँ डाक या कुरियर द्वारा पहुँच जाती हैं . फिर बच्चों के साथ बैठकर हंसी ख़ुशी राखी का त्यौहार मना लिया जाता है .
लेकिन इस वर्ष दोनों बच्चे बाहर होने की वज़ह से घर में रह गए हम दोनों -- पति पत्नी . पहली बार महसूस हुआ -- राखी किससे बंधवायेंगे ! श्रीमती जी तो सुबह सुबह पूर्ण रूप से भ्राता स्नेहमयी होकर तैयार हो चुकी थी . वैसे भी उनसे कहा भी नहीं जा सकता था .
डर था -- कहीं उन्होंने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तो हम तो बेवक्त ही मारे जायेंगे .
लेकिन परेशानी तो वास्तविक थी -- राखी कैसे बांधी जाएगी . पत्नी जी ने सुझाव दिया -- पड़ोसन से बंधवा लीजिये . हमने कहा -- भाग्यवान रिश्ता बनाना तो आसान हो
ता है , परन्तु निभाना मुश्किल .
वैसे भी पड़ोसन को भाभी जी तो कहा जा सकता है , बहन नहीं .
फिर याद आया -- अस्पताल में सिस्टर्स की भरमार होती है . लेकिन उनका हाल भी हाथी के दांतों जैसा होता है -- खाने के और, दिखाने के और . बैंक में कुछ काम था --सोचा वहीँ किसी से अनुरोध कर लेंगे . लेकिन फिर ध्यान आया -- आज के दिन किसी भी दफ्तर में कोई भी महिला दिखाई ही कहाँ देती है . आखिर , यही लगा --इस बार राखी तो खुद ही बांधनी पड़ेगी .
ऐसे में हमें याद आया -- डॉक्टर बनने के बाद हमारे सामने दो विकल्प थे . या तो हम फिजिसियन बनते , या सर्जन . लेकिन चीर फाड़ में कभी कोई दिलचस्पी नहीं रही , इसलिए सर्जन बनने का सवाल ही नहीं था . लेकिन यदि सर्जन होते तो सर्जिकल नॉट बनाना तो अवश्य आता. फिर किसी के सहारे की ज़रुरत नहीं पड़ती और राखी बांधने में अपनी ही दक्षता काम आ जाती .
अब हमें लगा -- भगवान भी उसी की मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं . सोचा कुछ भी हो जाए , राखी तो स्वयं ही बांधनी है . हमने श्रीमती जी से ही अनुरोध किया -- सर्जिकल नॉट सिखाने के लिए . उनका तो यह रोज का ही काम है . उन्होंने बड़े सहज भाव से दो सेकण्ड में बांध कर दिखा दिया . हमने भी सोचा --
करत करत अभ्यास के , जड़मति होत सुजान . इसलिए लग गए अभ्यास करने . आधे घंटे की मेहनत के बाद आखिर बांधना आ ही गया .
फिर तैयार होकर , राखी बांधकर हमने श्रीमती जी के हाथ का बना हलुआ प्रसाद के रूप में चखा . शाम को टी वी पर समाचारों में नकली घी और खोये से बनी मिठाइयों के बारे में देखकर तय कर लिया था -- कोई मिठाई नहीं खरीदी जाएगी . इसलिए कड़ाह प्रसाद ही बेस्ट ऑप्शन लगा .
और इस तरह रक्षाबंधन का त्यौहार मनाकर हम पहुँच गए , खाली पड़े अस्पताल में खाली बैठने के लिए .
लेकिन कलाई सूनी नहीं थी .
पश्चिमी सभ्यता और हमारी संस्कृति में यही सबसे बड़ा अंतर है . हमारे पर्व सामाजिक और पारिवारिक गठबंधन को द्रढ़ता प्रदान करते हैं . भाई बहन बचपन में कितने ही लड़ते रहे हों , बड़े होकर रिश्ते की मिठास को कभी नहीं भूलते . प्रेम और विश्वास की एक मज़बूत डोर से बंधे रहते हैं . अपनी अपनी जिंदगी में कितना ही संघर्षरत क्यों न हों , ख़ुशी और ग़म के अवसर पर सदा साथ रहते हैं . यही पारस्परिक स्नेह और सम्मान हमें पश्चिमी देशों से अलग बनाता है .
माना, विश्व का तकनीकि अधिकारी जापान है
अमेरिका की बीमारी , डॉलर का अभिमान है .
लेकिन जहाँ परिवार में परस्पर प्यार है
वह केवल अपना हिन्दुस्तान है !
सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं .
नोट : इस अवसर पर एक पल उनके लिए भी सोचें जिनका दुनिया में कोई नहीं होता .
मेरे साथ भी एक बार ऐसा ही हुआ था. तब मैं PG में रहता था. राखी आई तो कोई बाँधने के लिए नहीं था. तो सामने वाले कमरे में एक लड़की से बन्द्वायी. उसने भी पूछ ही लिया कि आज तक सीधे मुंह बात नहीं कि और आज अचानक राखी ले कर आ गए. :D
ReplyDelete:)
Deleteअक्सर इसका उल्टा सुनने में आता है .
सही :)
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteश्रावणी पर्व और रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
डॉ. साहब पहले तो आपको और डॉ साहिबा दोनों को रक्षाबंधन की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं!
ReplyDeleteऔर अब यह तगड़ी शिकायत किसी ब्लॉगर से न पूछा आपने -एक को बुलाते तो दस तैयार रहतीं ..... :-)
राखी की बंधवाई देने से घबरा गए :-P
अरविन्द जी , बंधवाई से नहीं असनाई से ! :)
Deleteरक्षाबन्धन के दिन हाथ में राखी सुहाती है..
ReplyDeleteडॉ साहब अच्छी पोस्ट है .सूनी कलाई का सच लेकिन बंधन रक्षा का कोई भी निभा सकता है पत्नी भी इतिहास के झरोखे से पति को राखी बांधती दिखी है .हाँ हमारे भारत में अनेक स्थानों पर भू -जल में फ्लोराइड का आधिक्य रहा है और नतीजा रहा है फ्लोरोसिस ................शुक्रिया ."
ReplyDeleteइरादा मज़बूत हो तो याद दिलाने के लिए राखी का कच्चा धागा भी काफ़ी होता है।
ReplyDeleteराखी के त्यौहार पर सभी बहनों को मुबारकबाद और भाइयों को भी।
श्रावण मॉस की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन तो कमजोर के शक्ति शाली पर आधारित होने का संकेत है - जैसे हर लता, वृक्ष का सहारा पा, ऊंचाइयों तक पहुँच जाती हैं!!! ... 'भारत' में तो जटा-जूट धारी वट वृक्ष के भी आदिकाल से धागा बांधती आ रही हैं सुहागनें!!! बच्चा भी अपनी माँ से कच्चे धागे समान बंधा खिंचा चला आता है!!! आदि आदि...
ReplyDeleteरक्षाबंधन सभी को मुबारक!!!
इस मामले मे हम भी आपकी ही तरह है ... वैसे तो बहुत सी बहन है पर घर मे कोई नहीं ... सो माँ से कह कर अपनी कलाई पर राखी बांध खुश हो लेते है बचपन से ही ... पर न जाने क्यूँ 5 मिनट से ज्यादा कोई भी राखी नहीं बांधे रखता !
ReplyDeleteभैया, हमने तो देर शाम को ही खोली . आज हमारे एक मित्र वरिष्ठ डॉक्टर को देखा --उनके दोनों हाथों में आज भी बीस बीस राखियाँ बंधी थी .
Deleteआज श्रावणी भी तो थी। किसी पंडित जी को भी बुला सकते थे।:)
ReplyDeleteपाण्डे जी , हम तो स्वयं ही पंडित हैं . :)
DeleteJCAugust 04, 2012 6:31 AM
Deleteसही कहा! "ढाई आखर प्रेम का पढ़े...."!
चलिये सर्जिकल नॉट काम में आ गई!
Deleteप्यारी सी पोस्ट....वैसे आप मैडम से बा-हक़ बंधवा सकते थे...पुराणों के मुताबिक़ पहली राखी इन्द्राणी ने इंद्र को पहनाई थी.....
ReplyDeleteपोस्ट की आखरी पंक्ति हमने नहीं पढ़ी....आज मन अच्छा रहने देना चाहते हैं...
सादर
अनु
जैसा कि उदाहरण आपने देखा , आप मैडम से बा-हक़ बंधवा सकते थे पर आपने नाहक संकोच किया :)
Deleteफिर मैडम गाना गाती -- सैंया मेरे राखी के बंधन को निभाना ! :)
Delete:-)
Deleteहमने तो बुलबुल से बंधवा लिया सर । कुछ सालों तक अपना भी यही हाल रहा और राखी इतनी अच्छी लगती है कि एक एक हफ़्ते तक कलाई पर बंधी रहती है खुद कभी नहीं निकाला उसे अपने आप निकल गई तो निकल गई । बढिया रहा आपका अनुभव भी
ReplyDeleteपिछले साल तक हमें भी बिटिया ही बांधती थी . खोलने का दिल तो नहीं करता लेकिन हर चीज़ की एक उम्र होती है .
Deleteरोचक वर्णन राखी बांधने का .... राखी की शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनायें !
ReplyDeleteकलाई में बंधे या ना बंधे दिल / इरादों / नियत / संकल्प में बंध जाये यही काफी है !
sahi kahaa ali bhai !
Deleteहमारी भी यही हालत थी, राखी थी लेकिन सामने भाई कलाई नहीं थी। लेकिन पतिदेव की बहने आ गयी थी तो घर में चलह-पहल खूब थी। हमने भी राखी को पोस्ट करके ही काम चलाया है।
ReplyDeleteजी हाँ , बहनों के आने से रौनक तो बढ़ ही जाती है .
Deleteराखी की शुभकामनायें
ReplyDeleteबहन या बेटी के ना होने पर पंडित से भी बंधवाई जा सकती है !
ReplyDeleteयह सही है कि लडाई झगडे कितने भी हो , इन पर्व- त्योहार पर पारिवारिक रिश्ते मजबूत ही दिखते हैं!
JCAugust 03, 2012 11:18 AM
ReplyDeleteथोड़ा विज्ञानं भी हो जाए कुछ अदृश्य धागों पर...
जिस तथाकथित 'नीले ग्रह', पृथ्वी अर्थात धरती माता, पर हम रहते हैं, इसके गुरुत्वालार्षण क्षेत्र के भीतर कच्छे धागों जैसे बंधे बंधे एक मात्र उपग्रह रहस्यमय चन्द्रमा, अथवा चंदामामा भी कहलाता है, अर्थात पृथ्वी का ही भाई और दोनों एक दूसरे के चारों ओर आदि काल से घूमते चले आ रहे हैं - राखी बांधते-बंधवाते !!!
और यद्यपि धरा पर प्रकाश और शक्ति के मुख्य स्रोत सूर्य देवता है, जिससे चन्द्रमा भी रात को प्रकाश और शक्ति पा चमकता है, सागरजल पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है जिस कारण सागर में पूर्णमासी अथवा अमावास्या के निकट अधिक ऊंचे/ नीचे ज्वार भाटा आते हैं... और हमारे पूर्वज सूर्य और चन्द्र किरणों (सोमरस!), सफ़ेद और पीली, को ज्ञान की देवी सरस्वती से सम्बंधित दर्शाते आये हैं!!! और गंगाधर शिव के मस्तास्क पर चन्द्रमा को भी पूर्णमासी में लहरों को ऊपर उठना भी योगी के मस्तक पर विचारों की ऊंची ऊंची लहरों के ऊपर बढ़ने की संभावना!!! ...
डाक्टर साहब कलाई पर बिना धागा बंधे बहन को ह्रदय से महसूस करना भी रक्षा बंधन का दाइत्व पूरा करने जैसा ही है .वास्तविक रिश्तों को आत्मसात करना प्रदर्शन से कही ज्यादा सार्थक हो सकता है शायद.
ReplyDeleteकुश्वंश जी , सही कहा . लेकिन यह मात्र प्रदर्शन ही नहीं है . राखी बांधने और बंधवाने में जो ख़ुशी मिलती है , वह अनुपम होती है . राखी के दिन आम जनता को सड़कों पर साज श्रृंगार कर ख़ुशी ख़ुशी चलते देखकर सोचने पर मजबूर होना पड़ता है -- हमारे पर्वों की कितनी महत्ता है . आम आदमी के लिए ये जीवन में अमृत समान हैं .
Deleteसच है दराल साहब, हमारे पूर्वजों ने हमारे जीवन को उल्लासमय बनाने के लिये बहुत मनन और श्रम किया है।
Deleteबहुत ही रोचकता से लिखा है आपने रक्षासूत्र के बांधने का वर्णन ...
ReplyDeleteइस स्नेहिल पर्व की अनंत मंगलकामनाएं
लेकिन जहां परिवार में परस्पर प्यार है
ReplyDeleteवह केवल अपना हिन्दुस्तान है ,यह पक्तियां लिख कर आपने सच ही लिखा है, यही बाते है जो हमें दूसरें देशों से अलग बनाती है ।
ये त्योहार तो ऐसा है...दुनिया के किसी कोने में हों...भाई -बहन इस दिन एक दूसरे को याद कर ही लेते हैं.
ReplyDeleteये तो सच है की अपना हिन्दुस्तान निराला है कई मायनों में ... खार कर त्योहारों के मामले में ...
ReplyDeleteकम से कम आज के दिन तो कोई न कोई किसी न किसी को याद कर ही लेता है ... रक्षा बंधन की बहुत बहुत बधाई ...
कई मायनों में अलग पोस्ट है आपकी .फौजी की कलाई पे राखी कौन बांधता है ?किसके लिए लड़ता है वह अपनी जान पे खेलके ?
ReplyDeleteसही कहा! डॉक्टर साहिब की कलाई में एक और राखी है जो हर दिन वे स्वयं बांधते हैं, किन्तु बेखबर हैं!!!
Deleteसही ऑब्जर्व किया जे सी जी . इसीलिए कहते हैं -- self help is the best help .
Deletemujhe rakhi bandhvaane lucknow jana pada,jahan bahan rahti hain !
ReplyDeleteमाना, विश्व का तकनीकि अधिकारी जापान है
ReplyDeleteअमेरिका की बीमारी , डॉलर का अभिमान है .
लेकिन जहाँ परिवार में परस्पर प्यार है
वह केवल अपना हिन्दुस्तान है !
सौफ़ी सदी सच्ची बात....