काली घटा छाए, मोरा जिया ललचाये
ऐसे में कहीं कोई मिल जाए , हाए ---
सावन में यह गाना किसी नवयुवती के अधरों पर स्वत: ही आ जाता है . लेकिन कोई मिला हो या न मिला हो , इस मौसम में कुछ और मिलने वाले बिन बुलाये मेहमान की तरह आ मिलते हैं और दुःख देकर चले जाते हैं . ऐसे ही बिन बुलाये मेहमान हैं वाइरस और मच्छर जो इस मौसम में तरह तरह की बीमारियाँ लेकर आते हैं . और नतीजा होता है -- बुखार .
इस मौसम में बुखार के कारण :
१) वाइरल फीवर :
सबसे मुख्य और आम कारण है -- वाइरल बुखार . अक्सर इसमें पहले जुकाम और गला ख़राब होता है , साथ में बुखार आ जाता है . यह आम तौर पर ३-४ दिन में ठीक हो जाता है . लेकिन कभी कभी सेकंडरी इन्फेक्शन होने से ज्यादा दिन भी लग सकते हैं . विशेषकर डायबिटीज में यह सम्भावना ज्यादा रहती है . वाइरल फीवर बिना जुकाम और गला ख़राब के भी हो सकता है जिसमे सर दर्द और बदन दर्द होता है . यह ज्वर अक्सर १- ७ दिन में उतर जाता है .
उपचार : बुखार के लिए सर्वोत्तम है -- पेरासिटामोल की गोली जो वयस्कों में एक गोली हर ४-६ घंटे में ली जा सकती है . साथ ही तेज बुखार होने पर हाइड्रोथेरपी की जा सकती है . इसका तरीका यहाँ देखा जा सकता है . इसके अतिरिक्त जुकाम के लिए एंटीहिस्टामिनिक ली जा सकती है . सेलाइन गार्ग्ल्स करने से गले में आराम आएगा . यदि खांसी ज्यादा हो जाए तो एंटीबायोटिक्स देनी पड़ेंगी .
२) मलेरिया : इस मौसम में मच्छरों की भरमार होने से सबसे ज्यादा खतरा रहता है मलेरिया होने का . हालाँकि मलेरिया पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा चुका है . लेकिन इस वर्ष फिर से मलेरिया के काफी रोगी देखने में आ रहे हैं .
मलेरिया में बुखार जाड़े के साथ आता है यानि जब बुखार बढ़ने लगता है तब रोगी को ठण्ड लगती है और कंपकपी आने लगती है . अक्सर बुखार एक या दो दिन में उतरकर फिर चढ़ता है . ऐसे में तुरंत मलेरिया के लिए खून की जाँच करानी चाहिए .
३) डेंगू : मच्छरों की एक दूसरी किस्म से होता है डेंगू, जिसमे बुखार के साथ सर दर्द और आँखों के पीछे दर्द होता है और शरीर में लाल दाने उभर आते हैं जिसे रैश कहते हैं . यह प्लेटलेट्स कम होने से होता है . ज्यादा कम होने पर रक्त रिसाव भी हो सकता है .
४) चिकनगुन्या : यह भी डेंगू की तरह मच्छर के काटने से ही होता है . लेकिन इस बुखार में जोड़ों में दर्द ज्यादा होता है जो महीनों तक भी रह सकता है .
विशेष सावधानी की बातें :
मलेरिया को छोड़कर , सभी तरह के वाइरल फीवर सेल्फ लिमिटिंग होते हैं यानि स्वत: ठीक हो जाते हैं . दवा सिर्फ लक्षणों के आधार पर दी जाती है . लेकिन डॉक्टर की सलाह लेना अनिवार्य होता है क्योंकि स्वयं इलाज़ करने से कहीं चूक हो सकती है जो खतरनाक भी हो सकती है . हालाँकि कुछ बातों का विशेष ध्यान आवश्यक होता है
जैसे --
* वाइरल फीवर में एस्प्रिन कभी नहीं लेनी चाहिए . सबसे उपयुक्त पेरासिटामोल है .
* शरीर में पानी की कमी न हो , इसलिए द्रव पदार्थों जैसे सादा पानी , दूध , चाय आदि का सेवन करते रहना चाहिए
* हल्का खाना लेना भी ज़रूरी है ताकि कमज़ोरी न हो और पोषण मिलता रहे .
* अक्सर एंटीबायोटिक्स की आवश्यकता नहीं होती . लेकिन यदि गला ज्यादा खराब हो जाए , या गले में दर्द होने लगे तो डॉक्टर की सलाह पर उचित दवा लेनी चाहिए .
* अनावश्यक रूप से एंटीबायोटिक्स लेने से बचना चाहिए . ये न सिर्फ हानिकारक हो सकती है , बल्कि रेजिस्टेंस भी पैदा हो सकता है जिससे भविष्य में इसकी उपयोगिता ख़त्म हो सकती है .
एक दिलचस्प बात :
अक्सर देखा गया है -- वाइरल फीवर एक डॉक्टर की रेप्युटेशन बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है . इसकी वज़ह है इसका १-७ दिन में स्वत: ठीक हो जाना . लेकिन क्योंकि कोई नहीं जानता , बुखार एक दिन में उतरेगा या ७ दिन में , इसलिए यह कहना मुश्किल होता है की कब उतरेगा . ऐसे में जब एक रोगी एक डॉक्टर से ६ दिनों तक इलाज़ कराकर बुखार न उतरने से दुखी हो जाता है , तब वह किसी दूसरे डॉक्टर के पास चला जाता है . फिर उस का बुखार एक दिन में उतर जाता है . रोगी समझता है बुखार उस डॉक्टर की दवा से उतरा है . बस समझिये वह रोगी उस डॉक्टर का भक्त बन गया जबकि बुखार उतरने में उस डॉक्टर का कोई रोल था ही नहीं .
हालाँकि यह बात सिर्फ डॉक्टर ही समझता है . आप भी समझ लेंगे तो और भी अच्छा रहेगा .
achchhee jaanakaaree , vaise baarish kaa mausam to chay -pakaudee kaa aur mastee ka mausam hota hai.
ReplyDeleteजी हाँ , लेकिन मस्ती के मौसम में मच्छरों से कुश्ती महँगी पड़ जाती है . :)
Deleteउपयोगी पोस्ट.....मौके पर लिखी गयी है...
ReplyDeleteसच है डॉक्टर्स का तो ये हाल है कि जितने मुँह उतनी बातें,,
याने जिसका बुखार एक दिन में उतरा वो भक्त..और बाकी सारे बाकयेदा गालियाँ बकते नज़र आयेंगे....अच्छे से अच्छे डॉ के लिए लोग नकारात्मक कहते मिल जाते हैं....क्या किया जाए...स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक हैं....
:-)
सादर
अनु
दराल साहब,,,,आपकी रेप्युटेशन तो बन गई समझे,वर्ना कौन डा० ये भीतर की बात बताता है,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
RECENT POST ....: प्यार का सपना,,,,
शरीर का ध्यान रखा जाये सावन के मौसम में।
ReplyDeleteअब पेशे के राज यूं भी न खोलिए ..मूलतः आप डाक्टर हैं ब्लागर नहीं :-)
ReplyDeleteडॉक्टर हैं पर सरकारी हैं . :)
Deleteसही कहा! बीमारों की संख्या अधिक हो तो निजी डॉक्टर खुश होजाता है और सरकारी डॉक्टर परेशान!
Deleteइस बरसाती मौसम में,यह पोस्ट बहुत आवश्यक है ! जरूरी जानकारी के लिए आपका आभार !
ReplyDeleteलाभदायक जानकारी के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteitni badiya jankarii prosne ke liye dhanywad,vakeii isse har kisee ko labh hoga esaa mera maanna hai,sundar.
ReplyDeleteडॉ दराल साहब आप लाज़वाब हैं बिना कहे दवाई और सावधानी बताना आपके सिवाय कोई नहीं कर सकता .
ReplyDeleteरमाकांत जी , ज्ञान बाँटने से बढ़ता है . :)
Deleteअच्छा चेताया आपने। यह बात और है कि किसी भी मौसम में,गाना गाती कोई मिल जाए,तो लोग बीमार ही रहना चाहें।
ReplyDeleteदिलचस्प बात वाकई दिलचस्प है। ऐसा महसूस किया है मैने।
ReplyDeleteइस मौसम में तो रोज ही एकाध get well soon के संदेश देने पड़ते हैं...(thank God..लेने का मौका नहीं आया..)
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी-युक्त पोस्ट.
सहज सरल तरीके से चेता दिया आपने बुखार पुराण सावन के महीने में .........कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
बुधवार, 22 अगस्त 2012
रीढ़ वाला आदमी कहलाइए बिना रीढ़ का नेशनल रोबोट नहीं .
What Puts The Ache In Headache?
उपयोगी जानकारी के लिये आभार डॉ. साहब!
ReplyDeleteवायरल, दवा लें तो बस एक हफ्ते में ठीक, न लें तो पूरे सात दिन लग जाते हैं.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज 23/8/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा - 980 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
हम तो अभी इस वायरल बुखार से छूटे हैं .... इस जानकारी के लिए आभार ...
ReplyDeleteबहुत अच्छा और उपयोगी मशविरा दिया है आपने.
ReplyDeleteआभार,डॉ. साहिब.
डॉ. साहिब एस्प्रिन लेने के क्या नुक्सान हैं ?
ReplyDeleteवाइरल फीवर , विशेषकर डेंगू में एस्प्रिन लेने से ब्लीडिंग होने का खतरा रहता है . एस्प्रिन की एंटी प्लेटलेट एक्टिविटी से रक्त स्राव हो सकता है . यह एसिडिटी भी कर सकती है . इसलिए अल्सर पैदा कर सकती है .
Deletenice presentation....
ReplyDeleteAabhar!
Mere blog pr padhare.
दुबई में कम से कम ऐसे बुखार नहीं होते क्योंकि बारिश ही नहीं होती ... हा हा ....
ReplyDeleteपर जरूरी है सावधानी बरतनी ... अच्छी जानकारी ...
अभी आकर देखते हैं . :)
Deleteदेहरादून में तो हर साल ये बुखार घर घर आते हैं बारिश भी पूरे तीन चार महीने चलती है ,आज ही मेरी मेड के तीनो बच्चे बुखार में पड़े हैं नो डाउट तीन चार दिन बाद मेरे घर में भी आ जाए बहुत उपयोगी जानकार दी है डॉक्टर दराल हार्दिक आभार
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा है डॉ साहेब .....ऐसा अक्सर होता है .......
ReplyDeleteमौसमी बुखार से सम्बंधित उपयोगी जानकारी मिली .
ReplyDeleteकुछ महीने पहले अजीब से बुखार को झेला हमने भी पंद्रह दिनों तक !
जब फूल होगा तो कांटे तो होने ही है सर.....पिया को बुलाएंगे तो दिलजले तो छोड़ेंगे नहीं न....ये मच्छर औऱ वायरल हैं जो बरखा रानी के साथ चले आते हैं हमें तंग करने....डाक्टर की तो खैर क्या कहें.... जो समाने दिख जाए वही भगवान
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ReplyDeleteजो प्राचीन हिन्दुओं ने भी शायद जाना, आधुनिक वैज्ञानिक भी वर्तमान में जान गए हैं कि लगभग साढ़े तीन अरब वर्ष पहले, आज भी मौजूद, आम सूक्ष्म जीवाणु का पदार्पण हुवा हमारी साढ़े चार अरब वर्षीया भूमि पर और इसी उत्पत्ति के क्रम में अन्य पशु आदि आते चले गए... और प्रकृति में द्वैतवाद के कारण व्याप्त लाभदायक शक्ति के साथ साथ हर वस्तु और जीव में प्राकृतिक हानिकारक शक्तियों के चलते केवल जो फिट थे उनकी प्रजातियाँ चलती चल गयीं! और मात्र कुछ लाख वर्ष पूर्व आदमी का आगमन हुवा जिसका सभी पशुओं में मस्तिष्क की क्षमता अधिक और अद्भुत होने के कारण मानव जाति का तीनों लोक में वर्चस्व हो गया!!! किन्तु, अभी बहुत कुछ जानने के लिए शेष रह गया है...:(
ReplyDeleteऔर, भारत में उपलब्ध संकेतों के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि भूत में योगी, सिद्ध आदि तपस्या, अर्थात अनुसंधान आदि कर मानव मस्तिष्क का सही उपयोग जान परम सत्य, अमृत शिव को जान गये थे... और इस कारण ज्ञान के आभाव को ही वर्तमान में काल के प्रभाव से हमारी क्षमता का निम्नतम स्तर पर होना बताया गया...
न्दगी यूं बे -पर्दा ,सुबह शाम होती है
ReplyDeleteपर्देदारी का एहतराम होती है ,
किसी का फरमान ,किसी का एहसान होती है .आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए आभार .बेश कीमतीं हैं हमारे लिए ये टिपण्णी . आपके संस्मरणों का विदेश यात्रा के सन्दर्भ में इंतज़ार .शैर बस यूं ही लिख दिया ,पता नहीं इसका कुछ अर्थ भी निकलता है या नहीं .