सामूहिक आवास का सबसे बड़ा लाभ यह है , प्रत्येक अवसर पर चाहे वह कोई धार्मिक त्यौहार हो या राष्ट्रीय पर्व , सब मिल जुल कर मनाते हैं . इस बार भी हमारी सोसायटी की प्रबंधन समिति ने धूम धाम से स्वतंत्रता दिवस मनाने का आयोजन किया . हालाँकि सुबह से ही आसमान में बादल छाए हुए थे और बारिस आने की सम्भावना थी . लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत . ध्वजारोहण के बाद जब सांस्कृतिक कार्यक्रम आरम्भ हुआ तब इतनी चिलचिलाती धूप निकल आई की ऐ सी में रहने वाले लोगो का बैठना मुश्किल हो गया . लेकिन यह देखकर ख़ुशी हुई की एक भी व्यक्ति अपनी सीट छोड़कर नहीं उठा . हमने भी अवसर अनुसार कुछ इधर उधर की और फिर एक हास्य कविता सुनाकर लोगों का मनोरंजन किया .
शाम को छत पर जाकर पतंगबाजी देखने का मन किया तो हम पहुँच गए अपनी छत पर . काले बादलों की छटा देखकर तबियत खुश हो गई .
आसमान में पतंगें और पक्षी --एक साथ उड़ रहे थे, मानो पक्षी भी पतंगों से होड़ लगा रहे हों .
मेहमानों सहित अड़ोसी पडोसी भी पहले से ही अपनी अपनी पतंगों का खज़ाना लेकर छत पर मौजूद थे .
हमने कभी पतंग नहीं उड़ाई . लेकिन आज श्रीमती जी ने जैसे ठान ली थी --किसी भी कीमत पर पतंगबाजी ज़रूर करनी है .
छत पर अनेक पडोसी पतंगें लेकर लगे हुए थे , एक दूसरे की काटने में . ऐसे में श्रीमती जी को भी अवसर मिल गया एक पतंग को हाथ में लेने का . बचपन में हम तो कन्ने देकर और चरखी पकड़कर ही खुश हो लेते थे .
लेकिन आज मेडम के चेहरे पर ख़ुशी की झलक देखकर ही आनंदित हो रहे थे .
छत पर अनेक पडोसी पतंगें लेकर लगे हुए थे , एक दूसरे की काटने में . ऐसे में श्रीमती जी को भी अवसर मिल गया एक पतंग को हाथ में लेने का . बचपन में हम तो कन्ने देकर और चरखी पकड़कर ही खुश हो लेते थे .
लेकिन आज मेडम के चेहरे पर ख़ुशी की झलक देखकर ही आनंदित हो रहे थे .
नोट : देश में हालात जो भी हों , लेकिन सामाजिक , धार्मिक और राष्ट्रीय पर्व मनाने से एक संतुष्टि तो मिलती है जो नीरस जीवन में रस घोलती है . यह लोगों के चेहरे पर झलकती संतुष्टि और ख़ुशी देखकर समझा जा सकता है . काश लोग आम जीवन में भी इसी निश्छलता से अपना फ़र्ज़ अदा करते हुए कर्म करते रहें .
बहुत बढ़िया डा० साहब, हर मौसम का लुत्फ़ उठा लेते है आप भी ! आपके आलेख के अंतिम पैराग्राफ की इस लाइन " देश में हालात जो भी हों ," को पढ़कर लगता है कि देश में हालात ठीक नहीं है :)
ReplyDeleteगोदियाल जी ,यह तो आपसे बेहतर कौन जान सकता है .
Deleteलेकिन अपना तो फंडा है --हर हाल में मस्त रहो . :)
बहुत बढ़िया फंडा है डाक्टर साहब , लेकिन क्या करे कुछ लोग सब कुछ होते हुए भी आपका वाला फंडा नहीं अपना पाते ! मैं भी उनमे से एक हूँ ! आर्मी की वन-टन वैन ( छोटा ट्रक ) में तब पैदा हुआ था, जब मेरी माँ को आर्मी अस्पताल ले जाया जा रहा था डिलवरी के लिए ! मुझे लगता है मेरे पिताजी ने लगे हाथ तभी गीता पर मेरा हाथ रखवाकर शायद मुझसे कसम खिलवा ली थी कि न खुद सुखी रहूंगा और न दूसरों को रहने दूंगा :) :)
Delete:)
Deleteपूरे मन से पर्व मनाने का आनन्द -चित्रण और चित्र दोनों मनोरम !
ReplyDeleteबचपन में निबंध लिखते थे किसी त्यौहार पर तो एक पैरा होता था...त्योहारों की उपयोगिता....
ReplyDeleteतब रट डाला था..मायने अब समझ आते हैं..
सुन्दर पोस्ट.
सादर
अनु
शुक्रिया प्रतिभा जी , अनु जी -- पोस्ट पसंद करने के लिए आभार .
Deleteसूर्यास्त के समय आसमान की रंगत अलग ही होती है.आपने पतंगों के साथ उसे पकड़ा,अच्छा लगा !
ReplyDelete...चित्र खींचना आपसे सीखना है मुझे !
अब कितने कितनों को गुरु बनायेगें? कुछ उम्र का भी ख़याल तो करिए :-)
Deleteहा हा हा ! अरविन्द जी , आप भी ना ... :)
Deleteआप शानदार फोटुयें अंत में क्यों लगाते हैं ?
ReplyDeleteवो एक चित्र का पक्षी भी कितना अजीब सा है बाएं से देखो तो कोई बत्तख /बगुला लगती है दायें से देखो तो बाज ?
शायद ऐसे पक्षी दिल्ली में ही मिलते हों . कहीं दिल्ली के प्रदूषण का असर तो नहीं . :)
Deleteबहुत बढ़िया झलकियाँ ..
ReplyDeleteमनोरम प्रस्तुति
JCAugust 17, 2012 10:55 AM
ReplyDelete"नीले गगन के तले धरती का प्यार पले"!
पक्षी, पतंग, बादल, आकाश में विचरण करते हैं वायु की कृपा से, जिसकी तस्वीर कोई नहीं खींच पाता, किन्तु अनुभवी उसका एहसास तो इन्हें/ इनकी तस्वीर देख कर भी कर सकते हैं!!! और इस पागलपन के दौर से हम भी गुजरे हैं भूत में, बचपन में!!! यहाँ तक कि जब स्कूटर पर पत्नी को बिठाए जा रहे तो एक कटी पतंग के पीछे भागता बच्चा टकरा जाता यदि समय पर ब्रेक न लगाता!!! और यूँ दुघटना होने से बच गयी! पत्नी के पूछने पर कि मैंने उसे चपत क्यूँ न लगाई??? मैंने कहा उस में मुझे अपने बचपन की तस्वीर नज़र आई!!!
काश हम सभी फिर से बच्चे बन जाते और जीवन का आनंद उठा पाते...:)
जे सी जी ,अब बच्चे पतंगों के पीछे नहीं भागते . या फिर हम आगे निकल गए हैं . :)
Deleteकोई भी राष्ट्रीय पर्व या धार्मिक त्यौहार को पूरे मन से मनाया जाय तो मन को सकूंन और जीवन जीने का आंनद मिलता है,
ReplyDeleteफोटो ग्राफी की झलकियाँ पसंद आई,,,,,,बधाई
वे क़त्ल होकर कर गये देश को आजाद,
अब कर्म आपका अपने देश को बचाइए!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
RECENT POST...: शहीदों की याद में,,
आपके सुंदर चित्रों को देखकर यह कविता याद आ गई...
ReplyDelete.........
ढीला धीरे-धीरे
खींचा धीरे-धीरे
हम तs जानीला मंझा पुरान बा
पेंचा लड़बे करी
केहू कबले डरी
काल बिछुड़ी जे अबले जुड़ान बा
भक्काटा हो जाई जिनगी कs जंग ।
आवा राजा चला उड़ाई पतंग।
.....................
पाण्डे जी , हिंदी अनुवाद भी लगा देते . :)
Deleteहिंदी अनुवाद में यह मजा नहीं आयेगा लेकिन भाव लिखने का प्रयास करता हूँ...
Deleteपतंग उड़ाते वक्त जैसे पतंग की डोर कभी ढील देनी पड़ती है कभी दूसरे पतंग से बचने के लिए जल्दी-जल्दी खींचना पड़ता है वैसे ही जीवन साथी के साथ जीवन बिताते वक्त भी काफी होशियारी से रहना पड़ता है। मंझा से तात्पर्य डोरी से है लेकिन यहाँ यह जीवन की डोरी अर्थात साँसों से अर्थ है। (हम त जानीला मंझा पुरान बा) मुझे पता है कि यह जीवन पुराना अर्थात बूढ़ा हो चला है। इसलिए पतंग उड़ाते वक्त, साथ निभाते वक्त और भी होशियार रहने की आवश्यकता है।
केहू कबले डरी...कब तक हम मरने से डरते रहेंगे, पेंचा लड़बे करी..एक समय ऐसा आयेगा जब जीवन-मृत्यु का खेल प्रार्ंभ हो ही जायेगा। भक्काटा हो जाई जिनकी क जंग...यह जीवन का संघर्ष एक झटके में फक्काटा हो जायेगा मतलब साँसों की डोर टूट जायेगी।
इसलिए हे मित्र! चलो, हम तुम मिलकर जब तक जीवन है तब तक जिंदगी की यह पतंग मौज से, संग-संग उड़ाते रहें। खुश हो जीवन बिताते रहें।
जी .
Deleteपतंग तो साथ साथ उड़ाते रहें ,
लेकिन पेंचें किसी और के साथ नहीं ,
आपस में ही लड़ाते रहें . :)
पतंग हमें इस बात का अहसास दिलाती है कि कहीं न कहीं उपरवाले कि डोर हमारे हाथों में है .दिलचस्प और मौजूं पोस्ट
ReplyDeleteखुली छत है यारा नसीब जिसे
ReplyDeleteहै जानता वही,जहां और भी है
आपके चित्रों का क्या कहना साथ ही आपके मनोभावों को नमन . एक गीत याद आ गई धीरे धीरे चल चाँद गगन में .......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ..ये छोटे छोटे उत्सव और उन्हें मनाने की खुशियाँ बहुत मायने रखती हैं नव जीवन सी.
ReplyDeleteयह तो सभी को पता ही होगा कि हमारे पूर्वज पहंचे हुए खगोलशास्त्री/ सिद्धि प्राप्त वैज्ञानिक थे जो किसी एक समय 'हिन्दू ' कहलाये गए, संभवतः क्यूंकि धरती पर प्रकाश और ऊर्जा के स्रोत सूर्य के वार्षिक चक्र के भीतर उन्होंने इंदु अर्थात पृथ्वी से ही उत्पन्न हुवे चंद्रमा के चक्र को सृष्टि के निर्माण और कालांतर में उत्पत्ति हो सौर-मंडल के सदस्यों की दीर्घ आयु प्राप्ति से सम्बंधित जाना... और मानव शरीर को भी, सूर्य से शनि ग्रह, 'नवग्रह' अर्थात १ से ९ संख्या से सम्बंधित पाया, जबकि शून्य से सम्बंधित गैलेक्सी के केंद्र को पाया गया...
ReplyDeleteहमारी साढ़े चार अरब वर्षीय धरा पर आज भी आधुनिक वैज्ञानिक हाल ही में कम से कम अब जीव की क्लिष्ट रासायनिक संरचना को देख इस से सहमत हो गए हैं कि इसके पीछे भूत में किसी अत्यधिक ज्ञानी जीव का ही हाथ रहा होगा... किन्तु अभी सम्पूर्ण सृष्टि की रचना के पीछे वो किसी एक ही जीव, भगवान्, का हाथ होने से इंकार करते हैं...
और, दूसरी ओर हमारे पूर्वज किन्तु शक्ति रुपी निराकार ईश्वर की उपस्थिति को स्वयं अपने, हरेक मानव शरीर के भीतर अंतर्मुखी हो महसूस करने में अथक प्रयास द्वारा सक्षम हो पाए... और उपदेश दे गए कि यही मानव जीवन का उद्देश्य भी है...: किन्तु साथ साथ चेतावनी भी दे गए कि सत्य के मार्ग में बाधाएं भी डिजाइन का ही अंश हैं.. अर्थात मोक्ष प्राप्ति भी बिरले ही कर सकते हैं बिना द्वैतवाद अर्थात विपरीत अनुभूतियों, दुःख-सुख आदि, से विचलित हुवे...जो पतंगों का उड़ाना, उनका तार/ पेड़ में फंसना, कट जाना आदि भी संकेत करता है और बच्चे आनंद लेते हैं, रोते नहीं :)
बहुत सुंदर !!
ReplyDeleteपतंग दिखी काला रंग था उसका
बादल होगा पतंग जैसा पक्का !
kisee bhee parv kaa maja to samoohik roop se manaane mein hai.
ReplyDeleteखूब आनंद लिया पतंगबाजी का ...
ReplyDeleteआभार !
JCAugust 20, 2012 6:49 AM
ReplyDelete१९८० के दशक के अंत में जब गीता पढने के पश्चात मुझे अंतर्मुखी होने का अर्थ कुछ कुछ समझ आने लगा तो मैंने पाया कैसे हिन्दुओं के एक प्राचीन कथन 'यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे' को आधुनिक वैज्ञानिक भी दोहरा रहे थे सौर-मंडल में सूर्य के चारों ओर घूमते ग्रहों और एक ऐटम में नुक्लियस के प्रोटौन और न्युत्रौन के चारों ओर अपने अपने शैल्स में घूमते इलैक्त्रौंस को घूमते जान!!! और प्राचीन हिन्दू भी कह गए थे कि सत्य काल से परे है!!! और तो और इथास्कार भी कहते हैं की इतिहास दोग्राता है!!!
तब मुझे बचपन में अपने पतंग उड़ाने और व्यवसाय में समानता नज़र आई!!! जैसे पतंग उड़ाने से पहले हम मिटटी उड़ा हवा की दिशा पता करते थे वैसे ही एक व्यापारी पता करता है की 'हवा किस दिशा में चल रही है, अर्थात मांग किस में अधिक है!!!... आदि आदि... तब एक कविता भी लिखी थी जस का आनंद कुछेक मित्रों ने भी उठाया....:)
"इतिहासकार भी कहते हैं कि इतिहास दोहराता है"...:)
ReplyDeleteJCAugust 21, 2012 6:44 AM
Delete"... बचपन में हम तो कन्ने देकर और चरखी पकड़कर ही खुश हो लेते थे . ..."...
मुझे वो लड़का, जो कन्ना देने पतंग को हवा की दिशा में कुछ दूर ले जाता था, गुरु समान दिखा जो यदि पतंग को सही प्रकार न पकडे, अर्थात सर सीधे ऊपर और पूँछ नीचे की ओर, तो वो मांजा/ डोर खींचने पर ऊपर उठने के स्थान पर जमीन से टकरा जाती थी!
और, हरेक के जीवन काल में ऐसे कई गुरु देखने को मिल जायेंगे जो मन के रुझान अथवा स्वयं अज्ञानी होने के कारण आपको सही मार्ग नहीं दिखा पायेंगे... और यदि बच्चे/ व्यक्ति को अपने बुजुर्गों से सही-गलत का पाठ नहीं पढ़ाया गया है तो नैतिक पतन की संभावना बढ़ सकती है क्यूंकि, विशेषकर बचपन में, मस्तिष्क में विश्लेषण की क्षमता कमज़ोर होती है...
इसी प्रकार चरखी पकड़ने वाला किसी भी व्यवसाय में कच्चे माल की आपूर्ति करने वाले समान दिखा, जिसके सही समय पर वांछित माल की आपूर्ति के बिना आपकी पतंग ऊपर नहीं बढ़ सकती, अर्थात आपका व्यवसाय तरक्की नहीं कर सकता ...
सुन्दर विश्लेषण .
Deleteआभार .
बहुत खूबसूरत फोटोग्राफी....
ReplyDeleteआनन्द आ गया चित्र देखकर !
पतंगबाजी भी आपको मुबारक !
बहुत कर ली हमने भी ...:-)))
:)
Deleteआसमान से बातें करतीं..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति। मरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है। धन्यवाद।
ReplyDeleteदेश में हालात जो भी हों , लेकिन सामाजिक , धार्मिक और राष्ट्रीय पर्व मनाने से एक संतुष्टि तो मिलती है जो नीरस जीवन में रस घोलती है . यह लोगों के चेहरे पर झलकती संतुष्टि और ख़ुशी देखकर समझा जा सकता है . काश लोग आम जीवन में भी इसी निश्छलता से अपना फ़र्ज़ अदा करते हुए कर्म करते रहें .बढ़िया बात कही है आपने जो देश की हताशा को कम करती है .कोंग्रेस का हाथ जिस आम आदमी के साथ था वही आज अपने मौन सिंह से पूछ रहा है -क्यों बनकर रहते रिमोट हो ,इतना किससे डरे हुए हो .....बढ़िया प्रस्तुति है आपकी बारहा पढ़ा है हर बार नया लुत्फ़ लिया है ... .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
सर्दी -जुकाम ,फ्ल्यू से बचाव के लिए भी काइरोप्रेक्टिक
बहुत बढ़िया झलकियाँ...
ReplyDeleteआपने तो इस रस को बाखूबी कैमरे में उतार लिया ...
ReplyDeleteमज़ा आ गया इन फोटो को देख के ..
काश लोग आम जीवन में भी इसी निश्छलता से अपना फ़र्ज़ अदा करते हुए कर्म करते रहें .
ReplyDeleteआप तो कर ही लेते हैं और हम आपको देख खुश हो लेते हैं ....
आज आपकी एक पोस्ट लिए जा रही हूँ पत्रिका के लिए ....
ये ...
क्या हो , जब आना चाहे और आ ना पाए --- एक समस्या जो पुरुषों में कॉमन है ! ( डॉ टी एस दराल )
इज़ाज़त है ...?
जी , यह इज़ाज़त नहीं इज्ज़त की बात है .
Deleteशुक्रिया .
सुंदर चित्र और उत्सव मनाने का उत्साह .... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteवाह! सूरज, बादल.पक्षी और पतंगों की आँखमिचौली
ReplyDeleteकी खूबसूरत प्रस्तुति.कितनी पतंग काटीं और कटवाई
डॉ.साहिब.
भई हम तो फिर चरखी पकडे ही खड़े रहे . :)
Deleteबहुत ही उम्दा फोटोग्राफी कि है बहुत अच्छी पोस्ट सारी देर से पढ़ी
ReplyDeleteआपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद
ReplyDelete