बात उन दिनों की है जब मैं अस्पताल के आपातकालीन विभाग में केजुअल्टी में काम करता था . केजुअल्टी को प्राइवेट अस्पतालों और विदेशों में इमरजेंसी रूम ( ER ) कहा जाता है . उस दिन मैं नाईट ड्यूटी पर था . रात के चार बजे थे . यह वह समय होता है जब अक्सर डॉक्टर्स , नर्सिज और अन्य कर्मचारियों समेत मरीजों को भी नींद आने लगती है . शोर शराबे वाली केजुअल्टी जैसी जगह पर भी पूर्ण शांति होती है .
तभी ट्रॉली में लेटा ५५-६० वर्ष का एक मरीज़ आया जिसे उसका लड़का लेकर आया था . दोनों पढ़े लिखे और खाते पीते परिवार से लग रहे थे . मैंने उसका मुआइना किया और पाया , उसे हार्ट अटैक हुआ था . यथोचित कार्यवाही कर अभी उसे दूसरे कमरे में शिफ्ट कर ही रहे थे की तभी एक दूसरा मरीज़ दाखिल हुआ , बिल्कुल उसी हालत में . उसे भी हार्ट अटैक ही हुआ था .
सर्दियों में अक्सर अर्ली मोर्निंग हार्ट अटैक होने की सम्भावना बहुत ज्यादा होती है .
लेकिन दूसरा मरीज़ एक नेपाली था , किसी कॉलोनी में चौकीदार था . साथ में उसकी ज़वान लड़की और लड़का भी थे . उन्हें देख कर उनकी गरीबी का आभास हो रहा था . दोनों मरीजों को देखकर मन में बड़ा अजीब सा ख्याल आया . वैसे तो हम डॉक्टर्स रोगियों को देख कर कभी भावुक नहीं होते . लेकिन उस दिन एक साथ दो एक जैसे लेकिन आर्थिक रूप से भिन्न रोगियों को देख कर मन थोडा विचलित सा हुआ . यही लगा की पहला रोगी तो शायद इलाज और उसके बाद का खर्च सहन कर पाने की आर्थिक स्थिति में था , लेकिन दूसरा गरीब मरीज़ बेचारा क्या करेगा .
हालाँकि उन दिनों एन्जिओग्राफी और स्टेंट डालने की सुविधा नहीं थी . दवाओं से ही हार्ट अटैक का इलाज किया जाता था . लेकिन दवाएं भी कहाँ सस्ती होती हैं .
अभी दूसरे मरीज़ को भी शिफ्ट किया जा रहा था की अचानक उसकी लड़की दौड़ी दौड़ी आई और हांफते हांफते बोली --पापा साँस नहीं ले रहे हैं . मैंने भी तुरंत जाकर देखा -- उसको कार्डिअक अरेस्ट हो गया था . यानि दिल की धड़कन अचानक बंद हो गई थी . ऐसे में यदि तुरंत उपचार न किया जाए तो कुछ ही मिनट्स में मृत्यु निश्चित होती है . कार्डिअक अरेस्ट का एक ही उपचार होता है -- CPR और DC शॉक . लेकिन इसकी व्यवस्था न होने पर ठीक दिल के ऊपर छाती पर एक जोरदार घूँसा लगाने से भी दिल की धड़कन शुरू हो जाती है .
यहाँ जीवन और मृत्यु के बीच कुछ ही पलों की दूरी थी . मरीज़ कॉरिडोर में था . अक्सर इमरजेंसी इलाज करते समय रोगी के रिश्तेदारों को दूर कर दिया जाता है ताकि इलाज में बाधा उत्पन्न न हो . लेकिन उस वक्त न ऐसी स्थिति थी न समय .
बिना एक पल की देर किये , मैंने वही किया जो करना चाहिए था . एक जोरदार घूँसा, जिंदमी में पहली और शायद आखिरी बार , लगाते ही रोगी के दिल की धड़कन लौट आई . वह साँस लेने लगा . ऑक्सिजन लगाकर और CPR करते हुए उसे इमरजेंसी वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया .
सुबह होने पर ड्यूटी खत्म कर घर आने से पहले उत्सुकतावश सोचा , क्यों न दोनों मरीजों का हाल जान लिया जाए .
मालूम किया तो पता चला -- पहला रोगी जो ठीक ठाक लग रहा था, उसकी मृत्यु हो गई थी . उसे वार्ड में ही दूसरा अटैक आ गया था . दूसरा जो लगभग जा चुका था , सही सलामत बैठा चाय पी रहा था .
इस घटना ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया -- ऊपर वाले की मर्ज़ी क्या है , यह कोई नहीं जान सकता . डॉक्टर्स भी नहीं .
ऊपर वाले की मर्ज़ी क्या है , यह कोई नहीं जान सकता , डॉक्टर्स भी नहीं ..एकदम सही बात डाक्टर साहब । अनुभवों को बांटने का शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDelete....वास्तव में हम कभी-कभी ऊपरवाले के आगे लाचार-से हो जाते हैं !
ReplyDeleteजो चला गया उसका हमें भी अफ़सोस है,आपको तो न जाने ऐसे कितने वाकये मिलते होंगे जब ज़िन्दगी और मौत के बीच बिलकुल बारीक़-फासला रहता है !
हमने कई असंभव-सी मानी जानी वाली गुत्थियों को सुलझा लिया है। फिर भी, हमने जो कुछ भी अनुसंधान से पाया,ज्ञात और ज्ञेय का फर्क़ उससे समाप्त नहीं हुआ। इसीलिए,संन्यस्त व्यक्ति प्रकृति की श्रेष्ठता को स्वीकार परम आनंद की स्थिति में रहता है-एकदम स्वस्थ!
ReplyDeleteजाको राखे सांईया, मार सके न कोय
ReplyDeleteअसल बात यही है कि जिसकी उम्मीद न हो वह सामने हो जाए तो उसे चमत्कार कहना ही पड़ता है।
ReplyDeleteदिलचस्प घटना थी...... वाकई, जिस रब रखे, उसे कौन चखे....
ReplyDeleteये घूंसे अच्छे हैं...
ReplyDelete
यानि छोटी-मोटी हिंसा भी किसी का जीवन बचा सकती है...
जय हिंद...
सच कहा ... जाको राखे साईयाँ मार सके न कोय , और किसको रखेंगे साईं- जान सके न कोय
ReplyDeleteआपका घूँसा काम का है .....
ReplyDeleteहमारे कार्यालय से हम दो सहकर्मी 'सी पी आर' की ट्रेनिंग एक साथ लिए - उसे जम्मू कार्यालय में एक क्लर्क को 'जीवन दान' देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ... और कई वर्ष पूर्व समाचार पत्र में भी पढ़ा था कि कैसे एक विदेशी बस में यात्री को हार्ट अटैक होने पर कंडक्टर के घूंसे ने जिला दिया था!... यह तो हुवा पश्चिम देशों से आये आधुनिक ज्ञान के नमूने...
ReplyDeleteदूसरी ओर, पूर्व में, भले ही वो चीन/ जापान/ भारत आदि देश हो, यहाँ ऐक्युपक्चर/ खगोलशास्त्र के माध्यम से मानव शरीर को एक मिटटी के पुतले (रोबो) समान इलेक्ट्रो कैमिकल सिस्टम/ हस्त-रेखा ज्ञान/ जन्म कुंडली आदि का उपयोग कर गणना कर उसके जीवन काल में समय समय पर होने वाली संभावित घटनाओं को जानने, और उपचार आदि के सुझाव भी दिए जाते थे... किन्तु सही ज्ञान उपलब्ध न होने के कारण वर्तमान में भी अनेक विधियां अपनाई तो जाती हैं किन्तु अधिकतर सफल न होने के कारण उन पर विश्वास आम तौर पर कम अथवा समाप्त हो गया है...
जे सी जी , कभी कभी थोड़ी सी जानकारी भी बहुत लाभदायक रहती है .
Deleteईश्वर की यही मर्जी थी,अक्सर ऐसी घटनाए हो जाती है, जिस पर हम सिर्फ अफ़सोस कर के रह जाते है,,,,,अपने अनुभवों को बांटने के लिये शुक्रिया,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
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ReplyDeleteComment was intermingled .. that's why deleted...
Deleteसही कहा आपने जिसका ख़ुदा...उसे नहीं कर सकता कोई जुदा... वैसे आपको बताऊँ... एक परिवहन विभाग के सचिव हैं... उम्र कोई ज़्यादा नहीं है... मेरे पडोसी हैं... और बहुत घूसखोर किस्म के थे... एक दिन वो वॉक पर थे... और उनको अटैक आ गया.. अब बयालीस साल की उम्र में आदमी अपनी जवानी की पीक पर होता है.. और ऐसे में उन्हें अटैक आ गया.. मैं भी वहां से दौड़ लगाता हुआ गुज़र रहा था.. उन्हें देखा ज़मीन पर पड़े हुए.. दौड़ कर उनके पास गया और सबसे पहले उन्हें सी.पी.आर. दिया.. (बहुत घिन आई थी उस वक़्त... क्यूंकि वो साहब पान मसाला खाते थे..वैक..यक्क) उन्हें फिर हॉस्पिटल पहुँचाया.. एक हफ्ते बाद वो ठीक हो गए.. और मुझे धन्यवाद देने मेरे घर आये.. बात ही बात ही में उन्हें मैंने बताया कि अगर आप पान मसाला खाना छोड़ दें.. और गरीबों को परेशान करना छोड़ दें..और जम कर मेरी तरह एक्सरसाइज़ करें तो उनके हार्ट को मैं दुरुस्त कर सकता हूँ.... उन्हें मैंने टिप्स दिए.. और अब ठीक हैं.. (डॉक्टर ने उन्हें सेक्स करने से मना किया है....परेशान रहते हैं.. .. तो आजकल मुझसे पूछते हैं कि कोई ऐसी एक्सरसाइज़ बताओ जिससे वॉल्व पर असर ना पड़े).. मैंने उन्हें बताया कि अगर आप बचपन से एक्सरसाइज़ कर रहे होते और हर नशे से दूर रह रहे होते तो यह नौबत नहीं आती.. वैसे अब उन्होंने घूस लेना छोड़ दिया है.. और पान मसाला खाना भी छोड़ दिया है.. बस थोडा सांसारिक जीवन को लेकर परेशान रहते हैं.... वैसे अब वो एक्सरसाइज़ जम कर करते हैं... उनका यह पहला एक्सपीरिएंस था ... और मेरी शागिर्दी में आखिरी भी.. अब उनका वॉल्व भी रिपेयर हो रहा है.. ग्रैजुयली.... मुझे ऐसा लगता है कि अगर इंसान व्यायाम को अपने जीवन का हिस्सा बना ले...तो काफी बीमारियों से बचा रहता है... और बाकी तो ऊपर वाले की मर्ज़ी...
ReplyDeleteरही बात घूंसे की ... तो मैं कभी किसी को घूँसा नहीं मारता.. हाई कोर्ट ने भी मना किया हुआ है.. मेरे घूंसे पर राजकीय बैन है.. उत्तर प्रदेश में मैं घूँसा नहीं मार सकता.. अब तक के जितनो को भी मारा है.... कोई मरते मरते बचा है तो कोई... पांच छ महीने हॉस्पिटल में कोमा में गुज़ार कर आया है.. एक्सरसाइज़ करते करते मेरी बौडी भी बुलेट प्रूफ हो गयी है.... हाँ ! कई लोगों को मेरे घूंसे से फायदा भी हुआ है.... लेकिन वो फायदा सिर्फ महिलाओं को हुआ है.. मेरी जान पहचान में जितनी भी महिलाओं ने मुझसे छेड़े जाने की शिकायत की ... तो जिन लोगों ने उन्हें छेड़ा उनको नुक्सान और महिलाओं को फायदा हुआ है... अच्छा शरीर सामाजिक रूप से भी बहुत काम आता है.. आपकी पोस्ट पर तो मैं भी एक पोस्ट लिख देता हूँ हमेशा.. अच्छा ...लिखते हैं आप.. जाको राखे साईयाँ...मार सके न कोए..
शाबाश महफूज़ !
Deleteबहुत अच्छा काम किया आपने .
कसरत करना सबके भले के लिए है . हर उम्र में की जा सकती है .
लेकिन हार्ट अटैक के बाद सेक्स से परहेज़ की अक्सर ज़रुरत नहीं होती .
शारीरिक शक्ति का सदुपयोग करना अच्छी बात है .
दिल भी कौन सी भाषा सुन ले पता नहीं ...
ReplyDeleteवही तो ...
ReplyDeleteएक जैसी दवा और एक जैसे उपचार के बाद भी कोई बच जाता है , कोई नहीं ! पिताजी हॉस्पिटल में डॉक्टर के सामने अटैक से चल बसे, माँ दो दिन तक दर्द बर्दाश्त करती रही , और एंजियोप्लास्टी से ठीक भी हुई ! यही कहेंगे ना , जो ईश्वर की मर्जी !
डॉक्टरस के भी गज़ब अनुभव होते हैं.रोज जीवन मृत्यु और इश्वर के खेलों से रूबरू..एक एडवेंचरस कहानी सा लगा आपका यह अनुभव.सच है जाको राखे साइयां...
ReplyDeleteजो-जो जब-जब होना है, सो तो तब-तब होगा ही..
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ReplyDeleteइंट्रेस्टिंग डा० साहब , एक कुछ कुछ ऐसा ही वाकिया आज से तकरीबन १६ साल पहले सफदरजंग अस्पताल में भी देखने को मिला था ! यंग लड़का था करीब २५-२६ साल का, डाक्टर ने उसे घूँसा तो नहीं मारा था, किन्तु बहुत जोर-जोर से उसकी छाती को पुस किया था! हालांकि वह इतना सौभाग्शाली नहीं था ! मगर वह वाकिया मेरे जहन में अन्दर तक घुसा था और शायद उसी से कुछ कुछ प्रेरित होकर मैंने कुछ समय पहले एक कहानी लिखी थी स्टेनोग्राफर बनाम , जिसमे भी आपने अपनी टिपण्णी में डाक्टर द्वारा ऐसे कार्य प्रोफोर्म किये जाने का जिक्र किया था !
ReplyDeleteगोदियाल जी , इसे सी पी आर कहते हैं । अस्पताल में हर मृत्यु से पहले किया जाता है । लेकिन ज़ाहिर है , सफलता तो कभी कभी ही मिलती है ।
Deleteजाको मारे साईंयां , मार सकैं सब कोई !
ReplyDeleteजाको घूंसा आप दें, प्राण तजै नहीं सोई !
जाके हिरदय साईंयां , ताके हिरदय आप !
धनवाला तो मर गया ,जीता निर्धन बाप !
कह सुजोग को साईंयां, बने साईंया आप !
जिनपर किरपा आपकी ,करें आपका जाप !
डॉक्टर तो निमित्त मात्र है---लेकिन एक विचार अगली पोस्ट में ।
DeleteJCMay 25, 2012 11:46 AM
Deleteचीर-फाड़ वाला हो या नाडी वाला, घडी वाला हो या गाड़ी वाला 'डॉक्टर', अनुभव के अतिरिक्त छटी इंद्रिय थोड़ी-बहुत खुली वाला हो तो सोने में सुहागा!!!
ईश्वर के चमत्कार को नमस्कार है,डॉक्टर तो मात्र निमित्त है, आपको उसने ऐसी सदबुधि दी कि उसकी जन बच गयी .आपको बहुत ही धन्यवाद .एक चिकित्सक का सही धरम निभाया आपने.
ReplyDeleteMumabi Mirror जीवन रक्षक घूँसा था भाई साहब किस ऑफ़ लाइफ का काम कर गया .आपकी तदानुभूति भी असरदार रही प्रत्युत्पन्न मति भी . कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
मंगलवार, 22 मई 2012
:रेड मीट और मख्खन डट के खाओ अल्जाइ -मर्स का जोखिम बढ़ाओ
http://veerubhai1947.blogspot.in/
और यहाँ भी -
स्वागत बिधान बरुआ :आमंत्रित करता है लोकमान्य तिलक महापालिका सर्व -साधारण रुग्णालय शीयन ,मुंबई ,बिधान बरुआ साहब को जो अपनी सेक्स चेंज सर्जरी के लिए पैसे की तंगी से जूझ रहें हैं .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
डॉ. साहेब, ये दृश्य तो मुन्ना भाई MBBS में फिट हो जाता तो हिट हो जाता ........वाह.जीवन रक्षक घूंसा ......जादू की झप्पी का बड़ा भाई......जय हो !
ReplyDeleteबहुत खूब अलबेला जी । अभी तक कोई ऑफर आई नहीं ।
Deleteबिल्कुल ठीक बात है ....
ReplyDeleteनिश्चय ही ....जाको राखे साइयां मार सके ना कोइ ....!!
यहीं इन्सान हार जाता है...सब उपर वाले का खेला है सर जी...
ReplyDeleteयह देखकर तो यही लगता है कि घटनाओं को कोई दूर बैठा नियन्त्रित कर रहा है।
ReplyDeleteऐसी घटनाएँ ही चमत्कार कहलाती हैं .... आपने अपने अनुभव को शेयर किया ...आभार
ReplyDeleteऐसे चमत्कारों से ही ऊपर वाले पे विशवास कायम रहता है ...
ReplyDeleteआप अपने प्रयास में कामयाब हैं ...!
ReplyDeleteमुबारक हो !
ऊपर वाले की मर्ज़ी क्या है , यह कोई नहीं जान सकता . डॉक्टर्स भी नहीं …………यहीं आकर किसी दूसरी शक्ति का अहसास होता है और इंसान मानने पर मजबूर ईश्वरीय शक्ति को।
ReplyDeleteआपका यह अनुभव वाकई बहुत दिलचस्ब लगा मगर सोचती हूँ उस वक्त आपकी मनस्थिति क्या और कैसी रही होगी। सच ही है
ReplyDelete"रोशनी अगर खुदा को हो मंजूर आंधियों में भी चिराग जला करते है"खुदा गवाह है।
इसलिए अच्छे डाकटर कभी भी मरीज को ठीक होने का श्रेय खुद को नहीं देने देते हैं -कहते हैं वह तो ऊपरवाले का ही काम है :)
ReplyDeleteक्या खूब संस्मरण!
आपकी इस पोस्ट को पढ़कर काफी देर तक सोचती रही बहुत कुछ मिलती जुलती यादे जेहन में आ गई ...आप सही कहते हैं की कुछ बातें डॉक्टर के बस में भी नहीं होती ऊपर वाले की डोर से ही हम इंसान बंधे हैं
ReplyDeleteधन्य भाग सेवा का अवसर पाया ...
ReplyDeleteबेशक जीवन मृत्यु ऊपर वाले के हाथ है लेकिन जीने और मरने के भी मानवीय बहाने बनतें हैं जो कभी बहुत खूबसूरत प्रिय और कभी अप्रिय अरुचिकर होतें हैं .बढ़िया पोस्ट है आपकी खूबसूरत बहाने का वृत्तांत प्रस्तुत करती जिसमे आपका अनुभव और प्रत्युत्पन्न मति चौकस थी .
ReplyDeleteअनंत शून्य, ब्रह्माण्ड, के तथाकथित मॉडल अर्थात पहुंची हुई आत्माएं, 'प्राचीन भारतीयों', को समझने का प्रयास करें तो, खगोलशास्त में निपुण वैज्ञानिकों की सांकेतिक भाषा में लिखी मनोरंजक कथा कहानियों में संदर्भित, 'ऊपर वाला' शिव, 'विष' का उलटा, अर्थात अमृत त्रिपुरारी - यानि आकाश, धरा और पाताल तीनों लोक का स्वामी - सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्माण्ड के केंद्र/ मूल पृथ्वी के केंद्र (एवं वर्तमान में असंख्य अन्य साकार पिंडों के केंद्र में भी) संचित शक्ति रुपी है... जो शून्य काल और स्थान से सम्बंधित जाना गया... और पृथ्वी पर भौतिक शूक्ष्म जीवाणुओं से लेकर श्रेष्टतम कलाकृति मानव शरीर (जिनका, सभी का, काल-चक्र में नाटक कर मृत्यु को प्राप्त होना, और पुनर्जन्म भी, निश्चित है) में व्याप्त उस अमृत शक्ति रुपी के अंश को सर्वगुण संपन्न 'आत्मा' कहा जाता है... पशु जगत में (और उस के शीर्ष पर मानव में भी) अज्ञानता का कारण आत्मा में १०० % सूचना आठ चक्रों में बंटी होते हुए भी साकार शरीर विशेष में उस ज्ञान का काल और स्थानं की प्रकृति के अनुसार अधूरा स्थानान्तरण संभव हो पाना माना गया है... जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भेद-भाव/ उंच-नीच का कारण बनता है...
ReplyDeleteसटीक आलेख...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteThanks for sharing your experience.
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