श्री सतीश सक्सेना जी एक बेहद सुलझे हुए व्यक्तित्त्व के स्वामी हैं जिनके दिल में जिंदगी से जुड़ी मानवीय संवेदनाएं कूट कूट कर भरी हैं। यह उनके गीतों में साफ झलकता है । बचपन में ढाई वर्ष की अबोध आयु में माँ को खोकर, पिता के साये से भी उन्हें बचपन में ही वंचित होना पड़ा । बड़ी बहन ने पाला पोसा , पढाया और अपने पैरों पर खड़ा होने में सहायता की । पूर्णतय: अपने बल बूते पर जीवन की खुशियाँ हासिल कर आज वो एक लविंग और केयरिंग पति होने के साथ साथ एक आदर्श पिता भी हैं जिन्होंने अपने बच्चों में एक अच्छा इन्सान बनने के सारे गुण विकसित करने का भरपूर प्रयास किया है । लेकिन जो बात सबसे ज्यादा प्रभावित करती है , वह है पुत्रवधू के प्रति उनके विचार । उनका कहना है , जब हम अपनी बेटी के लिए सभी सुखों की कामना करते हुए उसके ससुराल वालों से अच्छे व्यवहार की अपेक्षा करते हैं, तो क्यों न अपनी बहु को भी बेटी का दर्ज़ा देते हुए उसे उतना ही प्यार और सम्मान दें जितना अपनी स्वयं की बेटी को देते हैं ।
श्री सक्सेना जी के यही विचार उनकी कविताओं और गीतों में पढने को मिलेंगे इस पुस्तक में ।
मेरे गीत :
सक्सेना जी के गीतों की एक विशेष शैली है । या यूँ कहिये सभी प्रकार की शैलियों से अलग उन्होंने एक अलग ही पहचान बनाई है ।
बचपन में माँ को खोकर , माँ के प्यार से वंचित रहकर जो भाव मन में आते हैं, उन्हें वही समझ सकता है जिस पर बीती हो ।
हम जी न सकेंगे दुनिया में
मां जन्मे कोख तुम्हारी से
जो दूध पिलाया बचपन में
यह शक्ति उसी से पाई है
जबसे तेरा आँचल छूटा , हम हँसना अम्मा भूल गए ,
हम अब भी आंसूं भरे , तुझे टकटकी लगाए बैठे हैं ।
हम जी न सकेंगे दुनिया में
मां जन्मे कोख तुम्हारी से
जो दूध पिलाया बचपन में
यह शक्ति उसी से पाई है
जबसे तेरा आँचल छूटा , हम हँसना अम्मा भूल गए ,
हम अब भी आंसूं भरे , तुझे टकटकी लगाए बैठे हैं ।
मात पिता का प्यार और अभाव उनकी कई रचनाओं में समाया हुआ है ।
पिता के बारे में लिखते हैं --
पिता पुत्र का रिश्ता तुमको
कैसे शब्दों में समझाउं !
कुछ रिश्ते अहसासों के हैं
समझाने की बात नहीं !
जीवन और रक्त का नाता , नहीं बनाने से बनता है
यह तो विधि की देन पुत्र , समझाने की है बात नहीं ।
एक पिता की सबसे बड़ी कमजोरी होती है , बेटी । सतीश जी ने बेटी से बिछुड़ने के दर्द को बहुत खूबसूरती से पिरोया है इस गीत में --
पहले घर के हर कोने में
एक गुडिया खेला करती थी
चूड़ी, पायल, कंगन, झुमका
को संग खिलाया करती थी
जबसे गुड्डे संग विदा हुई , हम ठगे हुए से बैठे हैं ,
कव्वे की बोली सुनने को , हम कान लगाए बैठे हैं ।
लेकिन बेटी को पिता द्वारा जो नसीहतें दी जाती हैं , उनका भी बेहद उपयोगी और सार्थक वर्णन है यहाँ -- पिता का ख़त पुत्री को -- इस गीत में ।
पत्नी /प्रेयसी पर लिखने का अंदाज़ तो रूमानी होना अपेक्षित ही था . सतीश जी का यह रूप भी बहुत निखर कर सामने आया है कुछ ऐसे ---
प्रथम प्यार का प्रथम पत्र है ,
लिखता , निज मृगनयनी को ।
उमड़ रहे जो , भाव हृदय में
अर्पित , प्रणय संगिनी को
इस आशा के साथ, कि समझें भाषा प्रेमालाप की
प्रेयसी पहली बार लिख रहा , चिट्ठी तुमको प्यार की ।
पुस्तक के आखिरी पन्नों में शायद उनकी युवावस्था में लिखी रचनाएँ हैं , हालाँकि अभी भी किसी युवा से कम नहीं हैं . लेकिन शादी से पहले और शादी के बाद की युवावस्था में थोडा अंतर होना तो स्वाभाविक ही है . अल्हड़ ज़वानी की बातें कुछ इस प्रकार की हैं --
सोचता था बचपन से यार
बड़ा जल्दी कर दे भगवान
मगर अब बीत गए दस साल
ज़वानी बीती जाए यार !
किसी नारी के संग सिनेमा जाने का दिल करता है ।
तुम मासूमों का खून बहा
खुद को शहीद कहलाते हो
और मार नमाज़ी को बम से
इस को जिहाद बतलाते हो
जब मौत तुम्हारी आएगी , तब बात शहादत की छोडो
मय्यत में कन्धा देने को , अब्बू तक पास न आएंगे ।
कुल मिलाकर यह पुस्तक आपको एक अति संवेदनशील हृदय स्वामी लेखक के मनोभावों के दर्शन करायेगी । जिंदगी के उतार चढाव और संघर्ष से गुजरकर जब आप एक खास मुकाम तक पहुंचते हैं , तब जीवन मूल्यों का सही आंकलन कर पाते हैं । जो इस संघर्ष से बचे रहते हैं , वे जिंदगी की हकीकतों से सदा दूर ही रहते हैं ।
पुस्तक देखने में थोड़ी मोटी लगती है । लेकिन यह उसमे प्रयोग किये गए उत्तम कागज़ की वज़ह से है । एक बार पढने लगेंगे तो आप भी ख़त्म कर के ही दम लेंगे ।
(कीमत मात्र १९९/-)
यह एक छोटा सा परिचय है -- मेरे गीत -- की समीक्षा लिखना हमारे बस की बात नहीं । इसके लिए इंतजार करना पड़ेगा एक अच्छे साहित्यकार की समीक्षा का ।
(कीमत मात्र १९९/-)
यह एक छोटा सा परिचय है -- मेरे गीत -- की समीक्षा लिखना हमारे बस की बात नहीं । इसके लिए इंतजार करना पड़ेगा एक अच्छे साहित्यकार की समीक्षा का ।
सतीश सक्सेना जी ढेर सारी बधाई और जानकारी देने के लिए आपका आभार
ReplyDeletepustak chhapnae ki badhaii
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं .....आपमें भी एक बेहतर समीक्षक नजर आ रहा है ...इसलिए आपको भी शुभकामनाएं ....!
ReplyDeleteसतीश जी को बहुत बहुत बधाई\ आपको भी बधाई जो समीक्षा के क्षेत्र मे अपना कदम बढाया है। आशा है पुस्तक हमे भी पढने को मिलेगी।
ReplyDeleteसतीश जी को बहुत-बहुत बधाई .पुस्तक उनके व्यक्तित्व के अनुरूप ही होगी !
ReplyDeleteलेखक और समीक्षक दोनों को बधाई!
ReplyDeleteअरे ! मुझे तो पता ही नहीं था. सतीश जी को मेरी बधाई.
ReplyDeleteसतीश जी को बधाई .... पुस्तक परिचय बढ़िया रहा ॥
ReplyDeleteसतीस जी की पुस्तक "मेरे गीत" की समीक्षा के लिए ,,,,बधाई शुभकामनाए
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
shubhkamnaye.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी को बहुत-बहुत बधाई इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए ... आपका आभार इस बेहतरीन समीक्षा प्रस्तुति का ...
ReplyDeleteसमीक्षक, कवि और समीक्षित कृति सभी बेजोड़ हैं और इस ब्लॉग पर तीनों के आ मिलने का मणि कांचन संयोग है यह -सभी को बहुत बहुत बधायी !
ReplyDeleteसतीश जी के संवेदनशील गीतों की बढ़िया समीक्षा ....
ReplyDeleteआप दोनों को बधाई एवं शुभकामनायें ...
आप दोनों को बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteजानकारी के लिए आभार डा० साहब, और सक्सेना जी को बधाई !
ReplyDeleteवैसे यहाँ आपके पाठकवर्ग के अनुभवी लोगो से एक उत्सुकता मन में जानने की थी कि ये प्रकाशक लोग किताब छापने /छपवाने के कितने पैसे लेते है ? साथ ही सभी गणमान्य ब्लोगरों से अनुरोध करूंगा कि कृपया मेरे सवाल को किसी तरह का मजाक न समझे !
Deleteगोदियाल जी, वैसे तो प्रकाशक को पैसे लेने की जगह देने चाहिए, लेकिन कई बार नए प्रकाशक खर्च निकालने के लिए कुछ किताबें लेखक को ही कम दामों बेच देते हैं.
DeleteThanks a lot Shahnawazji, I got the indication from your valuable comment.Ek baar punah: shukriya !
Deleteआपने बहुत सलीके से चर्चा की सतीश जी की पुस्तक के बारे में। अच्छा लगा।
ReplyDeleteसतीश सक्सेनाजी की किताब में बहुत अच्छी-अच्छी बातें लिखी हैं। यह गीत संकलन नैतिक शिक्षा के लिये आदर्श पुस्तक साबित हो सकती है। लेकिन गीत की किताब कोर्स में लगती कहां हैं।
अनूप जी , बेशक इस पुस्तक में गीतों के बहाने बहुत सी नैतिक जिम्मेदारियों की बातें कही गई हैं । लेकिन पाठ्यक्रम की ज़रुरत नहीं , क्योंकि ये सामाजिक बातें हम बड़ों को भी सीखने की ज़रुरत है ।
Deleteसतीश जी खुद तो खुशदिल इंसान हैं ही, किताब भी दिल को भाने लायक लिखी है... अभी थोड़ी सी ही पढ़ पाया हूँ, परन्तु जितनी पढ़ी उतनी बहुत ही बेहतरीन लगी. हालाँकि गीतों की इतनी समझ तो नहीं है मुझे, परन्तु इन गीतों को पढ़ते हुए, उनमें ही खो जाता हूँ...
ReplyDeleteशाहनवाज़ जी , कई गीत अलग अलग मूड में लिखे गए हैं जो पठन को रोचक बनाते हैं ।
Deleteपढ़ने की उत्कण्ठा हर दिन बढ़ती जा रही है।
ReplyDeleteयूँ तो सतीश जी को और उन के रचनाकर्म से बखूबी परिचित हूँ। निश्चित रूप से यह पुस्तक संग्रहणीय है।
ReplyDeleteपिता पुत्र का रिश्ता तुमको
ReplyDeleteकैसे शब्दों में समझाउं !
कुछ रिश्ते अहसासों के हैं
समझाने की बात नहीं !
जीवन और रक्त का नाता , नहीं बनाने से बनता है
यह तो विधि की देन पुत्र , समझाने की है बात नहीं ।
आत्नाकियों को आइना दिखातीं उनकी ये पंक्तियाँ बे -जोड़ हैं -
सटीक परिचय कृति और कृतिकार का उनके गीतों का मीतों का और रीतों का .
पिता पुत्र का रिश्ता तुमको
कैसे शब्दों में समझाउं !
कुछ रिश्ते अहसासों के हैं
समझाने की बात नहीं !
जीवन और रक्त का नाता , नहीं बनाने से बनता है
यह तो विधि की देन पुत्र , समझाने की है बात नहीं ।
आत्नाकियों को आइना दिखातीं उनकी ये पंक्तियाँ बे -जोड़ हैं -
तुम मासूमों का खून बहा
खुद को शहीद कहलाते हो
और मार नमाज़ी को बम से
इस को जिहाद बतलाते हो
जब मौत तुम्हारी आएगी , तब बात शहादत की छोडो
मय्यत में कन्धा देने को , अब्बू तक पास न आएंगे ।
बधाई सतीश जी को शुक्रिया डॉ दराल साहब का आपने परिचय करवाया कृति से .कृतिकार से भी आपने ही मिलवाया था इस नाते एक बार फिर शुक्रिया .
ReplyDeleteसटीक परिचय कृति और कृतिकार का उनके गीतों का मीतों का और रीतों का .
ReplyDeleteपिता पुत्र का रिश्ता तुमको
कैसे शब्दों में समझाउं !
कुछ रिश्ते अहसासों के हैं
समझाने की बात नहीं !
जीवन और रक्त का नाता , नहीं बनाने से बनता है
यह तो विधि की देन पुत्र , समझाने की है बात नहीं ।
आत्नाकियों को आइना दिखातीं उनकी ये पंक्तियाँ बे -जोड़ हैं -
तुम मासूमों का खून बहा
खुद को शहीद कहलाते हो
और मार नमाज़ी को बम से
इस को जिहाद बतलाते हो
जब मौत तुम्हारी आएगी , तब बात शहादत की छोडो
मय्यत में कन्धा देने को , अब्बू तक पास न आएंगे ।
बधाई सतीश जी को. शुक्रिया.
सतीश जी को तो अपनी मेहनत की बधाई सही है । परन्तु हमें मुफ्त में बधाई देने के लिए आप सभी मित्रों का शुक्रिया । :)
ReplyDeleteजितना कि मैं उन्हें जान पाया हूं वे दिल से नेक इंसान हैं ! इसलिए उनके गीतों में दूसरों के प्रति राग द्वेष देखने के लिए आंखे तरस जाती हैं ! फिलहाल तो उनके काव्य संकलन का इंतज़ार है ! उन्हें गीत के प्रकाशन और आपको समीक्षा करके भी निर्विवाद बने रहने के लिए अनेकों शुभकामनायें :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसतीश जी को बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं और आपका बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - 'क्रांतिकारी विचारों के जनक' - बिपिन चंद्र पाल - ब्लॉग बुलेटिन
डॉ दराल एवं सभी मित्रों को बहुत बहुत धन्यवाद ....
ReplyDeleteपुस्तक में दी गयी अधिकतर रचनाएं मेरे ब्लॉग में पूर्व प्रकाशित हैं !
पुस्तक की उपयोगिता तो वास्तविक पाठक द्वारा पढने पर ही पता चलेगी !
फिर भी मित्रों द्वारा मेरे लिखे को पढ़े जाने के कारण, मैं आभार व्यक्त करता हूँ !
डॉ दराल साहब खुद सह्रदय और बड़े दिल के स्वामी हैं सो उन्हें धन्यवाद देने में संकोच करूंगा !
सादर आप सबको !
बहुत अच्छी समीक्षा!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
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बहुत अच्छी समीक्षा की है सतीश जी को हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteआशा
सतीश जी के क्या कहने बहुत ही खुशदिल इंसान है सतीश जी हम उनसे मिल भी चुके है
ReplyDelete@@@@@सतीश जी को बहुत-बहुत बधाई
बधाई बधाई.....................
ReplyDeleteआपको भी और सतीश जी को भी......
पूरा हफ्ता ब्लागिंग से दूर रहा, इसलिए इस पोस्ट को देर से देख पाया...
ReplyDelete
ये सतीश भाई का स्नेह ही है कि मेरे गीत की पहली प्रतियों में से एक मुझे भी भेंट की...अभी कुछ ही गीत पढ़ पाया हूं...
अब सतीश भाई और उनके रचनाकर्म के बारे में क्या लिखूं...अरे वाह, एफएम गोल्ड पर एक पुराना गीत बज रहा है...बिल्कुल सतीश भाई और किताब पर फिट बैठ रहा है...
मेरे महबूब में क्या नहीं, क्या नहीं...
यानी हमारे सतीश भाई में क्या नहीं, क्या नहीं...
जय हिंद...
सतीश जी के गीत अच्छे लगते हैं,उनमें एक 'अपील' होती है.
ReplyDeleteआपकी समीक्षा के बहाने उनको और नजदीक से जाना,कुछ नए पहलू पता चले.उनकी पुस्तक हमें भी मिलनी बाकी है,वे जल्द ही भेजेंगे,इस बाबत मेल आई थी.
पुस्तक-प्रकाशन की एक बार पुनः बधाई !
आदरणीय दाराल साहब आपने संक्षेप में सुन्दर समीक्षा की है इस पुस्तक की... जो सबसे बढ़िया बात है इस पुस्तक की... कि ... इस पुस्तक का आकर्षक कवर सतीश जी के बेटे गौरव सक्सेना ने बनाया है...प्रकाशन के दौरान हम छपाई और कागज़ को लेकर भी बहुत सजग थे और अंत में पुस्तक बढ़िया निकल कर आई है... एक प्रकाशक के तौर पर हम संतुष्ट है. शिमला पुस्तक मेला(१२ से १७ मई) में यह किताब आकर्षण बनी. शिमला के कई विद्यालयों में पुस्तकालयों में यह पुस्तक उपस्थित रहेगी क्योंकि वहां के शिक्षको ने संकलन के गीतों में मौजूद नैतिक मूल्यों को सराहा है.... सतीश जी को ढेरों शुभकामना... आपको भी एक संतुलित समीक्षा के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteअरुण चन्द्र रॉय जी , बेशक पुस्तक की क्वालिटी बहुत बढ़िया है । इसके लिए आप भी बधाई के हक़दार हैं । हम भी सतीश जी से लोकार्पण के बारे में पूछ रहे थे । इसका स्कूलों में पाठ्क्रम में शामिल होना एक अच्छी और सार्थक उपलब्धि रहेगी । शुभकामनायें ।
Deleteडॉक्टर साहब, सतीश सक्सेना जी की पुस्तक के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद.... सतीश जी को अक्सर पढ़ा है. उनका लिखा हुआ अंतर्मन को छूता है... सतीश जी को खूब सारी बधाई....
ReplyDeleteआपका आभार ....
Deleteएक बेहतरीन पुस्तक परिचय दिया आपने। पुस्तक की खरीद क्या ऑनलाइन हो सकती है?
ReplyDeleteप्रकाशक के अनुसार,कुछ समय बाद फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध होगी मनोज भाई ....
Deleteमानवीय संवेदनशीलता और सरोकारों के प्रति जागरूकता सतीश जी के लेखन में सदैव देखने को मिलती है. उत्सुकता जरूर है इसे पढ़ने की. बधाई सतीश जी को और आपको भी डॉक्टर साहब एक अच्छे समीक्षक की भूमिका का निर्वाह करने के लिए.
ReplyDeleteShatish sir ko bahut bahut badhai... aur ek bahtareen sameeksha..! ham flipcart me uplabdhta ka intzaar karenge...
ReplyDeleteजीवन में आनंद और संतोष हो,तो गीत सहज ही उतरता है और इस प्रकार उपजा गीत व्यष्टिगत न होकर,समष्टिगत अनुभव को व्यक्त करता है। आप स्वयं कवि हैं,इसलिए कवि-हृदय की भावनाओं को ख़ूब समझते हैं। मैं भी पढ़ना चाहूंगा,बस ज़रा क़ीमत री-कन्फर्म कर दीजिए-99 है कि 199!
ReplyDelete199/- :)
Deleteआप दोनों को बधाई एवं शुभकामनायें.....
ReplyDeleteबढ़िया समीक्षा, सतीश जी को बधाई।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
वाह .. सतीश जी के व्यक्तित्व से प्रभावित हुवे बिना नहीं रह सकता कोई ... औका प्रभाव उनकी रचनाओं में भी मिलता है ...
ReplyDeleteआपने भी उनके व्यक्तित्व को इस समीक्षा के जरिया उभारा है ... बधाई सतीश जी को ...
लेखक सतीश जी और समीक्षक आप दोनों को हार्दिक बधाई सतीश जी की लेखनी से मैं पहले से ही प्रभावित हूँ
ReplyDeleteएक डॉक्टर हैं तो क्या हुआ, आप भी एक कवि हृदय हैं। उस पर सतीश जी के गीत, समीक्षा सुन्दर होनी ही थी। आप दोनों का आभार!
ReplyDeleteI did a search about the field and identified that very likely the majority will agree with your web page.
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Sorry, I could apprehend what you want to say. Please elaborate . Thanks .
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