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Sunday, May 6, 2012

जंगल से जंगल की ओर --- भाग ४.


हज़ारों
लाखों साल पहले आदि मानव जंगलों , पहाड़ों और गुफाओं में रहता था । फिर उसने समूह में रहना सीखा , झोंपड पट्टी में रहना शुरू किया । जैसे जैसे मनुष्य का विकास होता गया , उसने घर बनाना सीख लिया । पहले कच्चे , फिर पक्के घर , फिर कोठियां , अट्टालिकाएं , फिर बहु मंजिला इमारतें । देखते देखते पृथ्वी पर शहर के नाम से कंक्रीट जंगल बनते गए । आज यह हाल है कि हरे भरे प्राकृतिक जंगलों की जगह कंक्रीट जंगलों ने ले ली है । और इस परिवर्तन का खामियाज़ा भी मनुष्य को ही भुगतना पड़ रहा है ।

हरिद्वार में चिल्ला एक ऐसी जगह है जहाँ शहर और जंगल के बीच बस गंगा जी का घाट है । चिल्ला फोरेस्ट हाथियों का संरक्षण पार्क है । पिछली बार जब यहाँ आए थे तो हाथी पर बैठकर जंगल में घुस गए थे । सामने तेंदुए की एक शानदार जोड़ी को देखकर मन गदगद हो गया था ।

फिर शाम को अपनी गाड़ी को लेकर जंगल सफारी पर निकले , एक गाइड के साथ । शाम के धुंधलके में अकेली गाड़ी और सुनसान जंगल में ड्राइव करते हुए दिल में धक् धक् तो हो रही थी । ऊपर से गाइड ने जो कहानियां सुनाई हाथियों के उत्पात के बारे में , हमारी साँस रुक रुक कर चलने लगी थी । तभी सामने हाथियों के एक बड़े झुण्ड को देखकर हम हैरान रह गए । बहुत रहस्यमयी द्रश्य था ।
लेकिन फिर एक अकेले नर हाथी को आते देख हम डर गए और वापस मुड़ना ही ठीक लगा ।

इस बार दृढ निश्चय किया था कि जंगल सफ़ारी पूरा करना है । इसके लिए सुबह ६-९ बजे तक और शाम को ३-५ बजे तक गाड़ियों के प्रवेश की अनुमति है । इसी समय जंगली जानवरों के दिखाई देने की सम्भावना ज्यादा रहती है । अब सुबह सुबह जाने का तो मन था नहीं । इसलिए हमने शाम का ३ बजे का समय निश्चित किया ।

सुबह नाश्ते के बाद हमने अपनी गाड़ी से हृषिकेश की ओर जाने वाली केनाल के साथ बनी सड़क पर लॉन्ग ड्राइव पर जाने का प्रोग्राम बना लिया ।


जंगल के बीच सीधी लम्बी साफ और सुनसान सड़क पर ड्राइव करना भी एक अद्भुत अनुभव रहा । करीब दस किलोमीटर जाने के बाद एक चाय वाला मिला जिसकी स्पेशल चाय पीकर हम वापस मुड़ लिए ।


ठीक तीन बजे हम गेट पर पहुँच गए जहाँ यह जीप हमारा इंतज़ार कर रही थी । खुली जीप में बैठ कर या खड़े होकर जंगल देखने का मज़ा ही कुछ और है । कंपनी के लिए हमें मिल गया यह नव दंपत्ति जो बंगलौर से आए थे ।

दो पीढियां हो गई सवार और चल पड़े जंगल के अन्दर



यह सड़क वापस आने के लिए थीलेकिन एक दिन पहले हुई बारिस की वज़ह से रास्ता बदल दिया गया था और अब इसी से वापस भी आना था



सारे जंगल में पेड़ों की ये सुनहरी पत्तियां बिखरी पड़ी थीं । पेड़ों और पत्तियों का रंग जंगली जानवरों केलिए बहुत महत्त्वपूर्ण होता है । यह शिकार और शिकारी , दोनों को छुपने में सहायक होता है



अब ज़रा देखिये और बताइए इस फोटो में कितने spoted dear ( चीतल ) नज़र रहे हैं



प्राकृतिक वातावरण में छुपा हुआ --साम्भर



अब सड़क कच्ची हो चली थीजगह जगह नदी नाले रहे थे



सूखी नदी के पार दूर एक हाथियों का झुण्ड नज़र आयाशरीर पर मिट्टी डालने की वज़ह से हाथी सफ़ेद नज़र रहे थे



करीब २० किलोमीटर ड्राईव करने के बाद हम पहुँच गए इस सुरक्षा पोस्ट के पास । यहाँ बस दो गार्ड बैठे थे ।
यह पॉइंट आधी दूरी पर था । लेकिन यहाँ से हमें वापस मुड़ना था । यानि पूरा चक्कर इस बार भी नहीं लगा पाए । हालाँकि पिछली बार पहली पोस्ट तक गए थे जो यहाँ से बायीं ओर थी ।
किसी ने बताया कि एक हाथी उनकी जीप के पीछे दौड़ पड़ा । यह सुनकर हमारी जीप वाला उस दिशा में दौड़ पड़ा लेकिन कई किलोमीटर जाकर पता चला कि हाथी गायब हो गया था ।
दरअसल अकेला नर हाथी बहुत खूंखार होता है क्योंकि वह झुण्ड से निकाला हुआ होता है और बहुत गुस्से में होता है



वापसे में ये हाथी फिर दिखेप्राकृतिक वातावरण में इन्हें स्वछन्द विचरण करते हुए देखकर बहुत अच्छा लगता है



नर चीतलइनके सर पर सींग होते हैंलेकिन ये बारासिंगे से आकार में छोटे होते हैं




बरसाती नदी का चौड़ा पाट



एक अकेला जंगली सूअरपता नहीं अकेले की जिंदगी कैसी होती होगीया फिर घूम घाम कर वापस अपने परिवार में पहुँच जाता होगा



वापसी में यह भी नज़र आयाटार्ज़न परिवार से नहीं, ही कोई पिटा आशिक -- बेचारा मानसिक रूप से विछिप्त थाजंगल में नंगा अकेले ही घूम रहा था



अंत में गेट पर पहुँचने से पहले एक फोटो और । इसमें आपको क्या नज़र आ रहा है -- ज़रा ढूंढिए तो ।
वैसे भी जंगल में जंगली जानवर देखने के लिए नज़र बहुत तेज होनी चाहिए , जंगली जानवरों की ही तरह ।

नोट : शेर तो कोई नहीं दिखा लेकिन यह ज़रूर समझ आया कि इन्सान को जंगली जानवरों से बहुत कुछ सीखने को मिल सकता हैएक ही जंगल में सभी जानवर शांतिपूर्वक रहते हैंसभी बेख़ौफ़ स्वछन्द विचरण करते हैंमांसाहारी जानवर भी बिना भूख किसी जानवर को नहीं मारते
लेकिन सभ्य समाज में रहने वाला विकसित प्राणी इन्सान ही है जो अपने विनाश का कारण स्वयं बन रहा है पर्यावरण को नष्ट करके
यह इन्सान ही है जो बिना कारण दूसरे इन्सान को चोट पहुंचाता है
इन्सान की भूख कभी मिटती नहीं , चाहे पेट कितना ही क्यों भरा हो

35 comments:

  1. बहुत बढ़िया वर्णन तस्वीरें भी, डॉक्टर साहिब! ('उत्पाद' के स्थान पर 'उत्पात'; और ' हतप्रद ' के स्थान पर 'हतप्रभ' शायद सही हो)...

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    1. शुक्रिया जे सी जी -- त्रुटि सुधार कर दिया है ।
      लेकिन पोस्ट अभी डैशबोर्ड पर दिखाई नहीं डे रही । न ही ब्लोगवाणी खुल रहा है । गूगल झटके लगाता ही रहता है ।

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  2. प्रकृति समेटे शुभ्र रूप,
    मन गदगद गाने को करता।

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  3. इन्सान की भूख कभी मिटती नहीं , चाहे पेट कितना ही क्यों न भरा हो और एक जानवर जो शिकार भी तभी करता है जब भूख लगी हो आकारण नहीं. प्रकृति से बहुत कुछ है सीखने को.

    हर बार की तरह इस बार भी चित्रमयी प्रस्तुति हर्देलजीज़ है. इस बार तो तो आपने कई सारी पहेलियाँ भी छोड दी है. चलिए ढूंढते है चश्मा और खुर्दबीन सही जबाव पाने के लिये.

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  4. चिल्ला फोरेस्ट के बारे में आपसे फोटोसाहित पहली बार बढ़िया जानकारी मिली . अब तो देखना ही पड़ेगा ... आभार

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  5. वाह..............
    हमेशा की बढ़िया वृत्तांत और बेहतरीन फोटोस.......

    आखरी फोटो में हमे तो एक मुर्गे के सिवा कुछ नहीं दिखा!!!!
    :-)

    या तो हमारी नज़र जंगली नहीं या फोटो का aperture :-)
    सादर

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    1. अनु जी , सही देखा है । जब तक फोटो खींचा गया , मुर्गा भाग कर दूर जा चुका था ।
      आप की नज़र जंगल में जाने लायक है । :)

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  6. आपकी तस्वीरें इतना कुछ बोलती हैं कि ...
    और फिर आपका बयान करने का अंदाज़ क्या कहने, यूं लगता है कि हम भी सफर पर हैं

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  7. बढ़िया तस्वीरों के साथ बढ़िया वृतांत.

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  8. धन्‍यवाद. आपके साथ हमारी भी यात्रा हो गई

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  9. रोचक वृतांत, बढ़िया तश्वीरें।

    हमको तो 7 चीतल दिखे अगर आपको कम दिख रहे हों तो हम क्या कर सकते हैं:)

    उस लड़के की लैला जंगल में गुम हो गई होगी। उसी को ढूँढते-ढूँढते विक्षिप्त हो गया होगा। बंगलोर वाला भाग्यशाली है कि उसे आप मिल गये वरना कुछ भी हो सकता था।:)

    कोई जानवर सो रहा है। मुर्गा भाग गया नहीं तो हम भी देख पाते।(:-(

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    1. मुर्गा तक तो ठीक है . जानवर के मामले में जंगल में अक्सर धोखा हो जाता है . :)

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  10. हाथी क्या झुंड से अलग होकर हर कोई खूंखार हो जाता है...​
    ​​
    ​जय हिंद..

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  11. अकेला कोई भी खतरनाक ही होता है ...
    बढ़िया जंगल यात्रा !

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  12. बहुत सुंदर रिपोर्ट ....... फोटो खींचने में तो आप माहिर ही हैं ...

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  13. रोचक चित्रण किया आपने यात्रा का, डा० साहब ! वीक एंड पे दिल्ली जैसे शहरों के निवासियों के लिए एक उत्तम नजदीकी सैरगाह है !

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  14. प्रकृति को चित्रों में समेटे रोचक यात्रा प्रस्तुति लाजबाब लगी,..

    RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

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  15. सूखी नदी के प़र दूर एक हाथियों का झुण्ड नज़र आया । शरीर पर मिट्टी डालने की वज़ह से हाथी सफ़ेद नज़र आ रहे थे ।
    कृपया सूखी नदी के' पार 'कर लें .एक बढ़िया रोचक रिपोर्ताज़ पढने को मिला .सीखने को बहुत कुछ है जंगली जीव कुदरत के नज़दीक बने कुदरती जीवन जीते हैं आवश्यकता के अनुरूप .वैसे किसी की कोई काट नहीं करते
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    सोमवार, 7 मई 2012
    भारत में ऐसा क्यों होता है ?
    भारत में ऐसा क्यों होता है ?
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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    1. पोस्ट को ध्यान से पढने के लिए शुक्रिया वीरुभाई जी .

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  16. सॉरी! मैं लेट आया... आज ही वापस लौटा हूँ... जंगल एक्स्करजन का डिस्क्रिप्शन अच्छा लगा... ट्रेवलौग लिखना भी एक आर्ट है... ट्रेव्लौग की सबसे बड़ी ख़ास यह होती है कि आपको....पढने वाले को बाँध कर रखना पड़ता है.... और येही टैलेंट होता है.. अच्छा लिखा आपने... एक चीज़ और बताइए... कि आपका कैमरा कौन सा है... DSLR कैमरा तो मैंने भी लिया है एक NIKON का... और एक DSC लिया था Sony का... चूँकि अब मैं भी खूब घूम रहा हूँ काफी... तो कौन सा कैमरा सफारी के लिए सही रहेगा? आपके फोटो क्वालिटी काफी हाई हैं... और फिनिशिंग भी बहुत साफ़ है.. पोस्ट बहुत अच्छी लगी... बिलकुल आप जैसी...

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    1. महफूज़ भाई , कैमरा तो साधारण सा है सोनी का ८ मेगा पिक्सिल का डिजिटल कैमरा .
      लेकिन अच्छे फोटो के लिए बस कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ता है . यह प्रेक्टिस से ही आता है . हालाँकि इतना मुश्किल भी नहीं है .

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  17. प्रकृति के पास जाने का हर मौका सुखद होता है.आपने इस यात्रा का खूब आनंद उठाया,साथ में कैमरा भी लिए रहे.कई बार दृश्यों को देखने के बजाय हम चित्र लेने में ही अपना फोकस रखते हैं पर ऐसी यात्राओं को संजोना भी ज़रूरी है !
    बढ़िया वृत्तान्त !

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  18. रिपोर्ट और नसीहत दोनों लाजवाब !

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  19. तस्वीरों , यात्रा वृतांत के साथ कई नेक सलाहें और जानकारी भी !

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  20. वाह क्या बात है डॉ साहब, मनभावन तस्वीरे और उस पर आपका आंदज-ए बयां...बहुत सुंदर वृतांत

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  21. नेशनल जिम कोर्बाट पार्क ...राम पुर में भी ऐसे ही जंगल और ऐसे ही दृश्य देखने को मिलते हैं

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    1. जी . और किस्मत अच्छी हो तो टाईगर भी दिख जाते हैं .

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  22. यही फर्क है आदमी और जानवर में। जानवर अपने समूह से बिछड़ने पर जितने हिंसक होते हैं,मनुष्य(सामाजिक प्राणी कहे जाने के बावजूद)उतना हिंसक भीड़ में होता है। कोई अकेला ही बुद्धत्व को उपलब्ध हो पाता है।

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  23. सचमुच जंगल में मंगल है। :)

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  24. बहुत दिनों के बाद आपका ब्लाग देखा राजा जी नेशनल पार्क, चिल्ला गेस्ट हाउस ,पतांजलि हरिद्वार घुम लिये ऋषिकेश की सैर नही की? चित्र भी अच्छे लिये है।

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