पिछले महीने सारा देश अन्नामयी रहा । लोगों का जोश देखकर सरकार को भी झुकना पड़ा । जनता जनार्दन में ऐसा जोश बहुत कम देखने को मिलता है । लेकिन इस दौरान कुछ अप्रत्यासित घटनाएँ भी देखने को मिली । प्रस्तुत है इसी पर आधारित एक हास्य-व्यंग रचना :
भ्रष्टाचार की मार की मारी
एक दिन बोली पत्नी हमारी
बहुत हो गया अब उठो , अज़ी सुनते हो
क्यों टी वी के सामने पड़े , बेकार सर धुनते हो !
दिल्ली की जनता सारी, इण्डिया गेट को है भागी
आपकी देश प्रेम की भावना, अभी तक नहीं जागी ?
टोपी ना टी शर्ट , ना ही तिरंगा खरीद कर लाए हैं
शर्माजी तो दो बार रामलीला मैदान भी हो आए हैं ।
बाजु वाला पडोसी भी अन्ना टोपी लगाये खड़ा है
पर हे भगवान , मेरा कैसे कंजूस से पाला पड़ा है !
अन्ना अन्न सन्न छोड़ , अनशन पर बैठे हैं
पर आप जाने किस बात की टेंशन में ऐंठे हैं !
सुन बीबी के प्रवचन , हमको होश आ गया
दिल में देश भक्ति का , अन्ना जोश छा गया ।
पत्नी से कहा , जल्दी खाना पैक करो
आज हम भी अनशन करने जायेंगे ।
देश भक्तों संग लंच व रात का खाना
रामलीला मैदान में ही बैठ कर खायेंगे ।
पत्नी बोली अज़ी घर का खाना तो आप रोज खाते हैं
बुद्धिजीवी लोग तो वहां बस पिकनिक मनाने जाते हैं ।
हमने पडोसी से टोपी और टी शर्ट उधार मंगवाई
फिर उन्ही की बाईक उठा , बिना हेलमेट दौड़ाई ।
८०-९० की रफ़्तार से सड़क पर सरपट दौड़े
अन्ना के नाम पे सारे कानून बेधड़क तोड़े ।
गेट पर एक स्वयं सेवक ने पूछा , बताएं
ज़नाब आप क्या अन्ना सेवा कर सकते हैं ?
हमने कहा भैया , पहले ज़रा भोजन करायें
फिर शाम तक भूख हड़ताल पर बैठ सकते हैं ।
लेकिन फ़ूड स्टाल पर देखा , पब्लिक कतार लगाने लगी थी
मंच पर एक भद्र महिला , जमूरे का खेल दिखाने लगी थी ।
थोड़ी देर बाद एक हास्य कवि , वीर रस की कविता सुनाने लगे
सुनकर होश खोकर लोग , जोश में आकर तालियाँ बजाने लगे ।
एक फ़िल्मी पात्र को , अन्ना भक्ति कुछ ज्यादा चढ़ गई
उनके अभिनय से पंडाल में गर्मी अत्याधिक बढ़ गई ।
अभिनेता जब जनता को नेताओं का गुणगान सुनाने लगा
एक स्वामी चुपके से सारी ख़बरें हाईकमान को पहुँचाने लगा ।
जैसे जैसे पंडाल में पब्लिक की भीड़ बढ़ने लगी
हम जैसों के चेहरों पर , हवाईयां सी उड़ने लगी ।
उधर सड़क पर पुलिस की तादाद बढ़ रही थी
इधर हमारे दिल की धड़कन भी चढ़ रही थी ।
डंडाधारी पुलिस को देख , हमें बाबा रामदेव याद आये
वन्दे मातरम का नारा छोड़ , हम जोर से चिल्लाये ।
मत मारो , हमें मत मारो , हम तो बीबी के बहकाए हैं
कौन अन्ना, कैसा अन्ना, मुफ्त का खाना खाने आए हैं ।
तभी पत्नी ने जोर जोर से हिलाकर हमें जगाया
क्यों नींद में चिल्लाते हो , ३२ बच्चों के ताया ।
'शरीफ़' तो गली गली में अन्ना के नारे लगाते रहे
और 'तारीफ' सपने में भी ना ना ही चिल्लाते रहे ।
नोट : अन्ना आन्दोलन में मध्यम और युवा वर्ग का योगदान अत्यंत सराहनीय रहा ।
Saturday, September 3, 2011
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आप 32 बच्चों के ताया है यह तो बता दिया लेकिन कितने बच्चों के पापा हैं यह नहीं बताया।
ReplyDeleteवाह,यह तो कमाल की रचना बन गयी ,प्रस्तुति के लिए आभार.
ReplyDeleteअरे वाह यह तो अन्ना आन्दोलन पच्चीसी लिख डाली आपने! जबरदस्त -क्या काव्य प्रतिभा पायी है आपने !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
वाह जी! यह तो लाजबाब है.
ReplyDelete३२ बच्चों के ताया का क्या गजब का ख्बाब है.
इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए तो बस आपको
आदाब है,आदाब है आदाब है.
हुजूरे आला,
ReplyDeleteआपकी शान में, आपके एक अदने से दोस्त की तरफ से, चार लाइने पेश हैं , दाद की ख्वाहिश है .....
तारीफ तो अक्सर मिलती है, तारीफ से यारो डरते हैं
हम क्या अपनी तारीफ़ करें, तारीफ से भागे फिरते हैं
डाक्टरी वेश में मानव हैं, मानवता दिल में रखते हैं !
तारीफ़ की इच्छा सेवा की , शैतान से यारो डरते हैं !
पत्नी से कहा , जल्दी खाना पैक करो
ReplyDeleteआज हम भी अनशन करने जायेंगे ।
देश भक्तों संग लंच व रात का खाना
रामलीला मैदान में ही बैठ कर खायेंगे ।
बहुत सुंदर रचना है ...
देश की हालत कुछ ऐसी ही है ...
सपने में बहुतों की खबर ले डाली!
ReplyDelete"पत्नी बोली अज़ी घर का खाना तो आप रोज खाते हैं
ReplyDeleteबुद्धिजीवी लोग तो वहां बस पिकनिक मनाने जाते हैं ।"
बहुत खूब डॉ साहेब ...यह अन्ना-नामा तो यकीनन खूब रहा --?
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बहुत बढ़िया व्यंग रचना
ReplyDeleteआभार
bahut achcha haasya vyang hai padhkar maja aa gaya.pahli line se hi aage padhne ki utsukta badhti gai.yahi to khoobi hai achche lekhan ki.aapko badhaai.
ReplyDeleteवाह सपने के बहाने सारी सच्चाई बयाँ कर दी।
ReplyDeleteआज 03-09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
मत मारो , हमें मत मारो , हम तो बीबी के बहकाए हैं
ReplyDeleteकौन अन्ना, कैसा अन्ना, मुफ्त का खाना खाने आए हैं ।
maza aa gaya
आपने अच्छा किया ,जो सपनों से दिल बहलाए जा रहें हैं ...
ReplyDeleteवहाँ जाने वालों को तो अब नोटिस थमाए जा रहें हैं ...हा हा हा !
सुंदर रचना !
शुभकामनायें !
डॉक्टर साहिब, पढ़ कर आनंद आया और जो सोचा लिखुंगा, वो पाया वन्दना जी ने पहले ही कह दिया है!
ReplyDeleteकिन्तु, फिर भी है कहने को कि प्राचीन ज्ञानी संकेत कर गए कि साकार ब्रह्माण्ड भी इसी भांति निराकार ब्रह्म, परमात्मा का एक विराट, अनंत, स्वप्न है :)
लंच-डिनर के साथ स्वप्न में ही सही अन्नाजी का समर्थन तो हो ही गया ।
ReplyDeleteतभी पत्नी ने जोर जोर से हिलाकर हमें जगाया
ReplyDeleteक्यों नींद में चिल्लाते हो , ३२ बच्चों के ताया ।
वाह जी, सही में ये ऐसा आन्दोलन था - जिसने कईयों की नींद उड़ा दी :)
ha ha ha... Zabardast Kataksh kiya hai aapne....
ReplyDeleteएक फ़िल्मी पात्र को , अन्ना भक्ति कुछ ज्यादा चढ़ गई
ReplyDeleteउनके अभिनय से पंडाल में गर्मी अत्याधिक बढ़ गई ।
बहुत उम्दा !
ये भ्रष्ट-तंत्र वाले उन पर आजकल,संविधान के डंडे बरसा रहे है,
लूजमोशन की शिकायत थी, प्रिविलेजमोशन की दवा खा रहे है !
आप तो सपने भी सच्चे देखते हैं ... हकीकत बयाँ कर दी है ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन....
ReplyDeleteहा हा हा ! सतीश जी --वाह , वाह , वाह ! बहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteलेकिन भाई तारीफ और तारीफ़ में कन्फ्यूजन हो रहा है ।
वाह , अशोक जी ।
ReplyDeleteयह भी कविता बन गई ।
लेकिन बात भी सही है ।
तारीफ़ करू क्या आपकी,
ReplyDeleteअन्ना के पूरे आंदोलन को चंद पंक्तियों में है समाया....
जय हिंद...
एक पहलु यह भी है..
ReplyDeleteजबरदस्त रचना.
:)
ReplyDeleteवाह! यह तो रन्निंग कामेंटरी लगी:)
ReplyDeletekamaal kii rachnaaa....nayaa pahloo lekar aaye ,aap.badhaai
ReplyDeleteमत मारो , हमें मत मारो , हम तो बीबी के बहकाए हैं
ReplyDeleteकौन अन्ना, कैसा अन्ना, मुफ्त का खाना खाने आए हैं ।
तभी पत्नी ने जोर जोर से हिलाकर हमें जगाया
क्यों नींद में चिल्लाते हो , ३२ बच्चों के ताया ।
मैं तो उस स्थिति पर सोचकर मुस्करा रहा हूं यदि भाभीजी ने आपको ना जगाया होता तो क्या होता? कल्पना किजीये.:)
रामराम.
डा0साहब ने कहा जब हो अन्ना बुखार
ReplyDeleteटबलेट कीनो झूठ की घोटो बारंबार
घोटो बारंबार बुखार शर्तिया जाये
रामदेव का योग भी कुछ कर ना पाये।
beautifully written... one thing to say WOW
ReplyDeleteसपने में भी आपको खाना खाने की ही सूझी ?...Smiles...
ReplyDeleteदेश भक्तों संग लंच व रात का खाना
ReplyDeleteरामलीला मैदान में ही बैठ कर खायेंगे । .....सही और सार्थक व्यंग..सुन्दर....
दिव्या जी , क्या करें । हकीकत में तो पत्नी दो रोटी से ज्यादा खाने नहीं देती ।
ReplyDeleteइसलिए सपने में ही दावत का मज़ा उड़ायें ।
@ ताऊ रामपुरिया
मैं तो उस स्थिति पर सोचकर मुस्करा रहा हूं यदि भाभीजी ने आपको ना जगाया होता तो क्या होता? --
हा हा , ताऊ ---फिर इस कविता का दूसरा भाग भी लिखा होता ।
ha ha ha ......
ReplyDeletesare aandolan kp aaapne bhee sarkar kee tarah hansee me uda diya .
बेहद खूबसूरत रचना. आभार.
ReplyDeleteएक फ़िल्मी पात्र को , अन्ना भक्ति कुछ ज्यादा चढ़ गई
ReplyDeleteउनके अभिनय से पंडाल में गर्मी अत्याधिक बढ़ गई ।
अभिनेता जब जनता को नेताओं का गुणगान सुनाने लगा
एक स्वामी चुपके से सारी ख़बरें हाईकमान को पहुँचाने लगा ।
बहुत खूब !छा गए अन्ना दराल जी !वाह वा क्या बात है ज़नाब की !
ये अन्ना-नामा भी खूब रही....
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है..
ख़ूब लिखा डॉक्टर साहब ! अच्छी प्रस्तुति … बधाई !
ReplyDeleteहास्य शिरोमणी तो आप हैं ही…
एक और पहलू भी तो है …
# सरकार को भी झुकना पड़ा…
हां , जब लगा कि हिंदुस्तान का जनमानस अभी एक है तब तक ही
अब बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं …
आम नागरिक को डराने के लिए किरण बेदी , ओम पुरी , केजरीवाल और बाबा रामदेव सहित किन किन पर शिकंजा कसा जा रहा है …
… … …
करे अकेला क्या क्या अन्ना ?
होना है सबको चौकन्ना !!
रामलीला मैदान में श्राद्ध मना, 'भारत द्वार' पर किसकी तेरहवीं मनाई गयी? गण तंत्र की?????
ReplyDeleteसरिता जी , हंसी में नहीं उड़ाया बल्कि हास्यस्पद घटनाएँ निकाल ली।
ReplyDeleteराजेन्द्र जी , अनशन तो कामयाब ही रहा ।
'शरीफ़' तो गली गली में अन्ना के नारे लगाते रहे
ReplyDeleteऔर 'तारीफ' सपने में भी ना ना ही चिल्लाते रहे ।
..बढ़िया मसाला निकल आया इस माहौल से भी....
सही कहा, हंसी में नहीं उड़ाया... (जिन्होंने दुष्टों को मारने के साथ साथ गोप-गोपियों से रास रचाया, उसी 'कृष्ण' की 'लीला' का आनंद उठाया :)... भारत माता की जय!
ReplyDelete'लोकपाल' कौन है? हिन्दू तो सभी जानते होंगे की शिव को त्रिपुरारी अर्थात तीनों लोक का पाल माना गया है, अर्थात अनंत 'आकाश' और अनंत 'पाताल' और, इनके बीच में ब्रह्माण्ड का मॉडल, हमारी सीमित आकार की पृथ्वी, एक बिंदु समान, जिसके केंद्र को ब्रह्माण्ड का केंद्र जाना प्राचीन 'भारतीय खगोलशास्त्रियों' ने...इत्यादि इत्यादि...
ReplyDeleteबेहतरीन हास्य रचना ... मज़ा आ गया डाक्टर साहब ... कमाल कर दित्ता तुसी ...
ReplyDelete'तारीफ़ सिंह', 'भारत द्वार' पर एक नाम, एक आत्मा का, आनन्द तो उठाता है, किन्तु परमानंद नहीं उठा पाता... भय के कारण :( रॉबर्ट ब्राउनिंग ने भी कहा कि हर व्यक्ति अपने चारों और दिनचर्या की एक कागज़ की दीवार बना लेता है / और उसे तोड़ने से डरता है... आदि :(
ReplyDeleteबेहद अच्छी रचना व्यंग्य विनोद और अर्थ से संयुक्त ।
ReplyDelete'शरीफ़' तो गली गली में अन्ना के नारे लगाते रहे
और 'तारीफ' सपने में भी ना ना ही चिल्लाते रहे ।
किस्मत वालों को मिलती है "तिहाड़".
शुक्रिया समीर जी , जे सी जी , नासवा जी , और वीरुभाई ।
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