कुछ दिन से ब्लॉगजगत में मची आपा धापी को देख कर मन में यही ख्याल बार बार आता है --आखिर लोग ब्लोगिंग क्यों करते हैं ? सामान्य सी बात है , सब अपनी अपनी रूचि अनुसार ही ब्लोगिंग करते हैं । कोई स्वांत : सुखाय तो कोई अभिव्यक्ति के लिए व्याकुल । कोई इसे अपना फ़र्ज़ समझता है । कोई समाजीकरण के लिए ब्लॉग पर समय देता है ।
कोई दिन में तीन बार पोस्ट लिखता है , कोई तीन दिन में एक बार । किसी ने एक ब्लॉग बनाया है , कोई दस दस ब्लॉग चला रहा है । गीत -ग़ज़ल , कहानियां , सामाजिक मुद्दे , हास्य -व्यंग , कार्टून , सैर सपाटा यहाँ तक कि व्यक्तिगत बातों की भी ब्लोग्स पर सभी तरह की सामग्री मौजूद है । ज़ाहिर है , जितनी विविधता यहाँ देखने को मिलती है , शायद ही कहीं और मिले ।
ऐसे में अपनी लिखी हुई एक पुरानी पोस्ट याद आती है जिसे हमने आरम्भ में ही लिखा था , लेकिन आज भी उतनी ही तर्कसंगत लगती है ।
क्या है ब्लोगिंग :
ब्लोगिंग एक असाध्य रोग है, बीमारी है
टिप्पणियों का अनंत इंतज़ार है, बेकरारी है।
लेखन का विकट भूत है
पहचान की अमिट भूख है।
टिप्पणियां पचास तो खुशी है
रह जाएँ पाँच तो मायूशी है।
बुजुर्गों का टाईम पास है
युवाओं का समय ह्रास है।
ब्लोगिंग मय सा अतुल्य नशा है
ब्लोगर्स की नस नस में बसा है।
लेकिन ब्लोगिंग ये भी तो है ---
विचारों की मूक अभिव्यक्ति है
हज़ारों की अचूक शक्ति है।
मानविक चेतना की कड़ी है
सामाजिक एकता की लड़ी है।
सेवानिवृत बुजुर्गों का सकून है
कार्यरत युवाओं का जुनून है।
प्रणाली पर उठता सवाल है
बदहाली पर उछलता बवाल है।
मुहब्बत का फैलता संसार है
सदी का श्रेष्ठतम आविष्कार है।
सदी के इस श्रेष्ठतम अविष्कार को यदि हम सकारात्मक रूप में प्रयोग करें तो निश्चित ही ब्लोगिंग एक सशक्त माध्यम के रूप में जन जागरण के कार्य में सहायक सिद्ध हो सकती है ।
और अब एक सवाल, एक ज़वाब :
सवाल: बहादुर इंसान कैसा होता है ?
ज़वाब: बहादुर इंसान उस धावक जैसा होता है, जो दौड़ में भाग लेने तो जाता है, लेकिन दौड़ शुरू होने के बाद भी , आरम्भ रेखा पर ही खड़ा रहता है। क्योंकि जिस समय बाकि सभी धावक मैदान में उसे पीठ दिखा कर भाग रहे होते हैं, एक अकेला वही होता है, जो मैदान में डटा रहता है।
सार्थक विचार ... सार्थक पोस्ट ... आभार आपका !
ReplyDeleteब्लोगिंग क्या हैं ये इस पर निर्भर हैं की आप यहाँ क्या करने आये हैं . हिंदी ब्लोगिंग में ज्यादा लोग रिश्ते बनाने आये हैं और इसीलिये यहाँ रियल दुनिया की तरह वो बिगडते भी हैं टूटते भी हैं . भगवान् हमे रिश्तेदार देता हैं , मित्र हम खुद चुनते हैं
ReplyDeleteसदी के इस श्रेष्ठतम अविष्कार को यदि हम सकारात्मक रूप में प्रयोग करें तो निश्चित ही ब्लोगिंग एक सशक्त माध्यम के रूप में जन जागरण के कार्य में सहायक सिद्ध हो सकती है
ReplyDelete१०००% सहमत.
सही फरमा रहे हैं। बस,देखने की बात यह होगी कि इसे श्रेष्ठतम बनाए रखने में हम योगदान दे पाते हैं कि नहीं।
ReplyDeleteडॉ साहब, हमको तो आपकी यह रचना मन को भा गयी --
ReplyDeleteब्लोगिंग एक असाध्य रोग है, बीमारी है
टिप्पणियों का अनंत इंतज़ार है, बेकरारी है।
टिप्पणियां पचास तो खुशी है
रह जाएँ पाँच तो मायूशी है।
बुजुर्गों का टाईम पास है
युवाओं का समय ह्रास है। ..
आभार.
मैं तो अभी ७०+ वर्षीय बच्चा ही हूँ, सत्य की खोज में भटक रहा हूँ, एक ब्लॉग से दूसरे में, क्यूंकि बाहरी जगत में घूमने की अब शक्ति नहीं रह गयी है... गाड़ी चलाने के लाइसेंस का भी नवीनीकरण नहीं कराया...
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग में तो इस लिए आया था कि मेरा हिंदी लेखन सदियों से छूट गया था, इस लिए रविश के ब्लॉग में सबसे पहले टिप्पणी से आरम्भ किया था... जब डॉक्टर साहिब ने कुछ ऐसी टिप्पणी छोड़ी, जिसके कारण मैं इनके ब्लॉग में भी आने लगा इस उम्मीद से कि मैं किसी जरूरतमंद की सहायता कर पाऊँ, इन से सीख कर...उदाहरणतया, मैं अपने पैरों का व्यायाम इन्ही के बताने से निरंतर कर रहा हूँ... और उसे लाभदायक भी पा रहा हूँ...वैसे एक समय पेनगुइन की कैनेडियन एयर फ़ोर्स के लिए व्यायाम पर लिखी पुस्तक भी पढ़ तब ऐसा जोश आया था कि मैं चलती बस में भी चढ़ने का साहस कर पाया था!... .
बिल्कुल ठीक कहा आपने,
ReplyDeleteना ब्लॉग होता और ना हम व आप बिना मिले आपस में एकदूसरे को जानते पहचानते।
अच्छा लिखने
ReplyDeleteअच्छा पढ़ते रहने में
अच्छे हो जाने की
प्रबल संभावनाएँ छुपी होती हैं
...अच्छी लगी यह पोस्ट।
ब्लॉगिंग वह अद्भुत मंच है जो हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। पारिवारिक रिश्ते मेल मुलाकात से बन ही जाते हैं। ब्लागिंग ने मुझे जीवन में बहुमुल्य उपहार स्वरुप कुछ जिन्दादिल मित्र भी दिए। जो अब एक परिवार का अंग बन गए हैं और सुख दुखः में शामिल होते हैं. कुल मिला कर निःसंदेह ब्लागिंग अद्भुत विधा है. ...... आभार
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कहा आपने,
ReplyDeleteटिप्पणियों का अनंत इंतज़ार है, बेकरारी है।
ब्लोगिंग जीवन का उत्स है ,उमंग है .मित्रों का साधारणीकरण है .लेखक का मूर्तीकरण .एक सुस्पष्ट बिंदास माध्यम है अभिव्यक्ति का .लोकतंत्र है ,मेधा का .दंभ तोड़ता है अखबारी नरेशों का .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना बधाई !
बहुत खूब ...
ReplyDeleteयह उदाहरण है सिंपल ब्लोगिंग का !आभार !
जे सी जी , बेशक ब्लोगिंग आप जैसे सेवा निवृत लोगों के लिए बढ़िया माध्यम है, संपर्क बनाये रखने और कुछ सार्थक चिंतन करने के लिए । विभिन्न विधाओं की सामग्री उपलब्ध होने से ब्लोगिंग सहायक तो सिद्ध होती ही है ।
ReplyDeleteलेकिन ब्लोगिंग में आवश्यकता से अधिक समय व्यतीत करने का अर्थ है अपने काम की हानि करना । पेशेवर , कामकाजी और छात्रों को संभल कर चलना चाहिए । १०-१५ घंटे ब्लोग्स पर बैठना कोई समझधारी नहीं ।
अनावश्यक बहसबाजी और व्यक्तिगत आरोप / प्रत्यारोप से बचना भी समझधारी है ।
आपकी बात से सहमत! हमने भी आज ही लिखा:
ReplyDeleteब्लागिंग अपने आप में अभिव्यक्ति का अद्भुत माध्यम है। हर एक को अभिव्यक्ति का प्लेटफ़ार्म मुहैया कराती है यह सुविधा। क्या रेंज है जी! शानदार से शानदार लेखन से लेखन से लेकर चिरकुट से चिरकुट विचार के लिये भी यहां दरवज्जे खुले हैं। यही इस माध्यम की ताकत है। बड़े से बड़ा लेखक/कवि/पत्रकार भी अंतत: प्रथमत: और अंतत: एक इंसान ही होता है। उसका लेखन भले शानदार हो लेकिन एक सीमा के बाद वह टाइप्ड हो जाता है। ब्लागिंग के जरिये आम आदमी की एकदम ताजा स्वत:स्फ़ूर्त अभिव्यक्तियां सामने आती हैं। यह सुविधा अद्भुत है।
बहुत सही लिखा है आपने शुक्ल जी । पोस्ट्स में विविधता बनाये रखने से , व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्त्व में निखार आता हैं ।
ReplyDeleteहालाँकि यहाँ भी आधे से ज्यादा लोग टाइप्ड ही हैं । फिर भी एक आम आदमी के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है ।
पिछली टिप्पणी में समझदारी पढ़ा जाए ।
सवाल : बहादुर इंसान कैसा होता है ? के जवाब में तोआपने पूरे ब्लागिंग के चरित्र को ही अभिव्यक्त कर डाला, वहां पीठ देखता रहता है यहां पीठ खुजाता रहता है.:) लाजवाब जवाब के लिये पूरे सौ में से एक सौ एक नंबर.
ReplyDeleteरामराम.
यह प्रविष्टि सार्थक ब्लॉगिंग का उल्लेखनीय उदाहरण है!
ReplyDeleteदुनिया की कोई भी चीज बुरी नहीं है बस सभी लोग उसक प्रयोग सकरात्मक रूप से करे अच्छा सोचा कर करे पर ऐसा होता कहा है जब दुनिया में सभी सकरात्मक सोच ही नहीं रखते तो वो अच्छी से अच्छी चीज का प्रयोग भी गलत ही तरीके से करेंगे |
ReplyDeleteसदी के इस श्रेष्ठतम अविष्कार को यदि हम सकारात्मक रूप में प्रयोग करें तो निश्चित ही ब्लोगिंग एक सशक्त माध्यम के रूप में जन जागरण के कार्य में सहायक सिद्ध हो सकती है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक चिंतन.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
ब्लागिंग एक बेलौस माध्यम है ..एक गैर पारम्परिक विधा है और छद्मावरण से लोगों को बाहर खींच लाने का अभियान है
ReplyDeleteमुझे तो आज तक समझ नहीं आया कि ये ब्लागरी क्या चीज है? चार बरस से लिख रहा हूँ। कभी पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो आश्चर्य होता है कि क्या यह मैं ने लिखा था?
ReplyDeleteदाराल जी ये बेहतरीन माध्यम , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता , और लेखन को लोगो तक पहुचने का एक बेहतरीन माध्यम साबित हो रहा है . एक चमत्कारिक अविष्कार है ये .आज से लगभग दस साल पहले मई अपनी कविताये पत्रिकाओं में भेजता था और ज्यादातर खेद सहित की पर्ची प्राप्त हो जाती थी जो मायूश करती थे एक्का दुक्का छपने का सुख भी मिलता था. इस ब्लॉग्गिंग ने खेद सहित पर्ची का कोई डर नहीं , औपचारिकता से ही सही एक आध टिप्पणी तो मिल ही जायेगी .ब्लॉग्गिंग अच्छी मित्र भी दे रही है .मगर खेमेबाजी और अनर्गल प्रलाप इसकी बुराइयां भी है .मगर दाराल जी,सतीश जी ,खुशदीप जी, समीर जी जैसे बेहतरीन व्यक्तित्यों से रूबरू होने भले शब्दों से हो का भी रसास्वादन ब्लॉग्गिंग ने ही कराया है.आभार . ब्लॉग जगत की बुराईयाँ कैसे दूर हो इस पर debate होनी चाहिए और आप इस पर पहल कीजिये . आशा है बुराईयाँ जरूर दूर होंगी.
ReplyDeleteकुश्वंश जी , सही कह रहे हैं आप । कोशिश रहेगी , देखते हैं क्या कर सकते हैं ।
ReplyDeleteये भी है ब्लॉगिंग का एक सच-
ReplyDeleteजहां एक ब्लॉगर मौजूद... आवाज़ देकर हमें तुम बुलाओ
जहां दो बलॉगर मौजूद... ब्लॉगर मीट
जहां तीन ब्लॉगर मौजूद... रौला-रप्पा
जहां चार ब्लॉगर मौजूद...तेरा फलाना...तेरा ढिमकाना...
जहां चार से ज़्यादा ब्लॉगर मौजूद... शांति...बीच-बीच में कराहने की आवाज़ें...एंबुलेस में सारे ढोए जा रहे हैं...
जय हिंद...
असल दुनिया में जितना सीखा उससे कहीं ज़्यादा ब्लॉग़ जगत में सीखा...सीखना अभी भी जारी है....अपने देश के अनगिनत अनदेखे कोनों की खूबसूरती और अनमोल जानकारी भी इसी माध्यम से पाई...
ReplyDeleteब्लॉगिंग- मुझे अपने आप को जानने का एक माध्यम लगा,हम खुद को कैसे व्यक्त कर सकते है,और हमारे विचारों का लोगों पर क्या असर होता है,लोगों की प्रतिकियाएं हम पर क्या असर ड़ालती है या हमें कितना प्रभावित करती है,और सबसे ज्यादा ये कि हम कितने संयत रह सकते हैं...आदि-आदि ...बहुत कुछ ...
ReplyDeleteवाह आपने तो ब्लागिंग निचोड़ कर रख दी... यही है इसका सार :)
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, 'सेवा निवृत' के स्थान पर शायद 'सरकारी-सेवा निवृत' सही होगा...
ReplyDeleteअंग्रेजी में एक कहावत का हिंदी रूपांतर है, "सेवा वो भी करता है जो केवल घूरता है", और "सुन्दरता देखने वाले की आँख में होती है"... :)
जहां तक हर माध्यम का दुधारी तलवार समान पाया जाना है, तो उसके लिए पंचतंत्र की कहानी हैं न!
जिसमें एक राजा को अपने किसी भी दरबारी पर विश्वास न था...
उसने एक बन्दर को रख लिया उसकी पहरेदारी करने के लिए, यह हिदायत दे की वो किसी को उसके निकट न आने दे, जब वो दोपहर में कुछ देर सोता था...
और एक मक्खी से तंग हो उस बन्दर ने तलवार से राजा के इर्द-गिर्द उड़ती मक्खी को बार बार उड़ाने से झल्लाहट से, जब वो उसके नाक में बैठी थी, मारने हेतु तलवार से राजा की नाक ही काट दी!
"खाली बर्तन आपस में टकराते हैं"..."अथाह सागर गंभीर होता है"... आदि, आदि...अनंत कथाएँ और उनके सार हैं 'भारत' में :)
@बुजुर्गों का टाईम पास है, युवाओं का समय ह्रास है।
ReplyDeleteवाह, क्या खरी बात है।
@जहां चार ब्लॉगर मौजूद...तेरा फलाना...तेरा ढिमकाना...
;)
.
ReplyDeleteनमन है उन वीर सपूतों को जो पीठ दिखाकर ब्लौगिंग को छोड़ते नहीं ...
नमन है उन बहादुरों को जो अच्छे-अच्छों को पीठ दिखाने के लिए मजबूर कर देने का दम ख़म रखते हैं...
नमन है उन टिप्पणीकारों का जो दो आलेखों पर टिप्पणी करते हैं फिर पीठ दिखाकर भाग जाते हैं....
इस बहादुर पोस्ट के लिए नमन है डॉ दाराल को "भगेडू" दिव्या का जिसने पीठ दिखाकर ब्लौगिंग छोड़ दी।
सादर ,
दिव्या श्रीवास्तव
ZEAL
.
स्कूल के दिनों में एक सिख गुरु होते थे जिन्हें अपनी क्लास में चार लड़कों को - चारों कोने मैं एक को बिठा - मुर्गा बनाये बिना चैन नहीं आता था... और वो कहते थे 'अब चांडाल चौकड़ी पूरी हो गयी'! (और वैसे भी चार कंधे आवश्यक होते थे जब 'किसी की अर्थी उठती थी' (और आज चार पहिये की गाडी)... शोक संतप्त 'राम नाम सत्य है' कहते सड़क पर जाते दिखाई देते थे और इधर मैदान में खेलते कुछ शैतान बच्चे, हमारे मित्र, आहिस्ते से उस में जोड़ रहे होते थे. "मुर्दा बेटा मस्त है"!
ReplyDeleteजो गीता पढ़ी तभी समझ आया क्यूँ बच्चों को भगवान् कहा जाता है :)
पत्नी घर द्वार से दुखी
ReplyDeleteब्लॉग लिख कर खुश
फिर भी कहती है आभासी
दुनिया में हम
रीयल दुनिया से भाग कर नहीं आये हैं
पति , पत्नी से दुखी
कुछ समझती नहीं
सालो से एक घर में
रह कर भी
मानसिक रूप से अलग
ब्लॉग पर मर्मस्पर्शी कविता
लिखकर संबंधो में
मिठास भर रहे हैं और
फिर भी कहते हैं
हम आभासी दुनिया में
रीयल दुनिया से भाग कर नहीं आये
वृद्ध , खाली घर में परेशान
बेटा , बेटी विदेश में
नेट पर ब्लॉग परिवार में
इजाफा कर रहे हैं
अपना समय परिवार से दूर
व्यतीत कर रहे हैं पर
कहते हैं हम रीयल दुनिया से
आभासी दुनिया में नहीं आये
आज पढ़ा एक ब्लोगर
के भाई ने उससे नाता तोड़ रखा हैं
और वो ब्लोगर, बाकी सब ब्लोगर में अपना
भाई खोज रहा हैं
फिर भी कहता हैं हम
रीयल दुनिया से भाग कर
आभासी दुनिया में नहीं आये
किसी ब्लोगर का ब्लॉग भरा हैं
रोमांटिक कविता से
और वोमन सेल में
मुकदमा चल रहा हैं पति की
यातना के खिलाफ
फिर भी कहते हैं
रीयल लाइफ में खुश थे
आभासी दुनिया में
बस यूहीं हैं
किसी ब्लोगर की पत्नी ने
उनको नकार दिया था
क्युकी पत्नी का सौन्दर्यबोध
पति के शरीर को स्वीकार नहीं कर पाया
वही ब्लोगर नेट पर रोमांस करता पाया जाता हैं
फिर भी कहता हैं
रीयल लाइफ में सुखी हैं
मै एक एकल महिला
रात को कमेन्ट पुब्लिश नहीं करती
क्युकी रात सोने के लिये होती हैं
सुबह देखती हूँ हर विवाहित ब्लोगर
रात भर जग कर कमेन्ट देता हैं
और पुब्लिश ना होने का ताना भी
और फिर भी कहता हैं उसकी जिन्दगी
में सब सही था
वो रीयल दुनिया के रिश्तो से भाग कर आभासी दुनिया में नहीं आया
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2011/06/blog-post_24.html
सेवानिवृत बुजुर्गों का सुकून है ,और मेरे जैसो के लिए ....
ReplyDeleteबुजुर्गों का टाईम पास भी ...बेशक सुकून के साथ .....
शुभकामनायें !
वैसे ये एक अच्छा साधन है समय के सदुपयोग का ... अगर सही ऊर्जा से किया जाय ...
ReplyDeleteखुशदीप भाई , इस माहौल को सुधारना तो पड़ेगा .
ReplyDeleteमीनाक्षी जी , अर्चना जी --सही कह रही है . सार्थक सोच .
जे सी जी --सेवा निवृत तो गैर सरकारी भी हो सकते हैं जैसे रतन टाटा छोड़ने जा रहे हैं .
मुर्दा बेटा मस्त है --मेरे विचार से यह प्रकरण पर निर्भर करता है .
इस बारे में अगली टिप्पणी में .
आपने ब्लोगिग पर सही लिखा है टाइम पास करने का और अपने विचारों को प्रस्तुत करने के लिए यह एक बहुत अच्छा साधन है |
ReplyDeleteआशा
हिन्दू मान्यतानुसार, बहादुर तो अमृत दायिनी पार्वती के सुपुत्र लम्बोदर गणेश है (अध्यात्मिक शक्ति का भण्डार मंगल ग्रह, अंतरिक्ष अर्थात 'आकाश' में) जिसे उसकी माँ ('सोमरस', अर्थात देवताओं हेतु अमृत का स्रोत चन्द्रमा) ने बनाया - योगेश्वर विष्णु, (गंगाधर शिव अर्थात पृथ्वी के केंद्र में संचित अनंत गुरुत्वाकर्षण शक्ति) / संहारकर्ता शिव का प्रभाव कम कर देवताओं (सौर-मंडल के सदस्यों) को अमृत प्रदान करने हेतु शिव के ज्येष्ठ पुत्र माँ पार्वती के शक्तिशाली स्कंध कार्तिकेय (शुक्र ग्रह में विष को उसके वातावरण में एकत्रित कर :)...
ReplyDeleteशिव, पार्वती, कार्तिकेय, और गणेश (पृथ्वी, चन्द्र, शुक्र, मंगल), यही एक परिवार है जो सूर्य, बुद्ध, बृहस्पति, और (बानर सेना समान) ग्रहों के समूह ऐस्टेरौयद की सहायता से पृथ्वी पर पशु आदि जगत को भी चला रहे हैं अनंत काल से...
हमारे पूर्वज खगोलशास्त्री ही नहीं, सिद्ध पुरुष थे...यानि ऑल राउंडर जिन्होंने मानव को मिटटी का पुतला जाना, अर्थात ग्रहों के सार से बना...:)
दिव्या जी , आपका क्षुब्ध होना अपनी जगह ज़ायज़ है ।
ReplyDeleteवैसे जैसा मैंने बताया , मैंने यह पोस्ट दो साल पहले लिखी थी । और अंत में लिखा सवाल ज़वाब एक जोक था ।
जहाँ तक ब्लोगिंग का सवाल है --लोग किसी के कहने से ब्लोगिंग शुरू तो करते हैं , लेकिन जारी रखना या छोड़ना एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है । कोई किसी को मज़बूर नहीं कर सकता छोड़ने के लिए । इसी तरह टिप्पणी भी स्वैच्छिक है । अक्सर लोग लेखक को देख कर टिप्पणी करते हैं । लेकिन हम तो टिप्पणी तभी करते हैं जब लेख पसंद आए या समझ आए । किसी मज़बूरी में कभी नहीं करते ।
रचना जी , बेशक ऐसा भी होता है ।
ReplyDeleteलेकिन जहाँ बुराइयाँ होती हैं , वहां अच्छाइयां भी होती हैं ।
क्यों न बुराइयों को नज़रअंदाज़ करें और अच्छाइयों को अपनाएं ।
वैसे डॉक्टर साहिब, एक दृष्टिकोण से देखा जाए तो क्या टाटा अपने लिए लोहा बना रहे है?
ReplyDeleteमैं तो यह कहूँगा कि सभी 'सरकारी' ही हैं, और जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार / योजना आयोग के माध्यम से ही विभिन्न सैक्टर में - पञ्च वर्षीय योजनाओं के अंतर्गत - देश की प्रगति हेतु अपना अपना योगदान दे रहे हैं (?)...
आपने अच्छा विश्लेषण किया है ब्लोगिंग का...
ReplyDeleteऔर टिप्पणियों में भी बढ़िया विचार-मंथन हुआ है.
अपने विचार दूसरों तक सरलता से पहुंचाने का ब्लोगिंग से बढ़कर और कोई माध्यम नहीं.
डॉक्टर साहिब, मैंने रचना जी के ब्लॉग में नीचे दी गयी टिप्पणी छोड़ी है... आपके चिंतन हेतु भी इसे दे रहा हूँ...
ReplyDelete**आपने डॉक्टर दराल के ब्लॉग में लिंक दिया तो आपके ब्लॉग के इस पोस्ट पर पहली बार आना हुआ, पहले की पोस्ट बिना पढ़ें...
आपके ब्लॉग के आभासी जगत में पांच वर्ष आनंद उठाने की ख़ुशी में मुझे भी (एक शुद्ध 'टिप्पणीकार', दूध में मक्खी समान, की हैसियत से) आपको बधाई देते प्रसन्नता हो रही है...
इससे याद आता है कि एक अन्य आभासी जगत भी है,,, चलचित्र के 'मायावी' कहलाये जाने वाले जगत का...
वहाँ भी संयोगवश (?) 'वास्तविक जगत' में मानव / पशु आदि जीवन के ही विभिन्न काल और स्थान पर विभिन्न दृष्टान्तों पर आधारित फिल्म बनती चली आ रही हैं, किन्तु मात्र १००+ वर्षों से ही, जहां पहले ख़ुशी का मान दंड होता था कि पिक्चर कितने सप्ताह किसी शहर / हॉल में चली, और वर्तमान में मान दंड केवल बॉक्स ऑफिस है - कितना करोड़ कमाया पहले हफ्ते में ही, भले ही वो कोई 'अश्लील' फिल्म ही क्यूँ न हो, जिसका आनंद 'शरीफों' ने भी उठाया हो... और उसी भांति ब्लॉग जगत में अधिकतर मान दंड है कि कितनी टिप्पणियाँ पायीं (?)!
और वास्तविक माने जाने जगत में भी आज मान दंड हो गया है कितना माल कैसे भी कमाया (और स्विस बैंक में जमा किया?)...
सोचने वाली बात यह है कि कहीं यह भी वास्तविक जगत न हो कर, वास्तव में आभासी जगत ही तो नहीं है ??? (शेक्सपियर ने भी कुछ ऐसा ही कहा था न?)...
"जय भारत माता, जगदम्बा"!**
ब्लोगिग की जितनी तारीफ की जाए कम हैं ...वैसे हर चीज़ के दो पहलु तो होते ही हैं ..जहा अच्छाई हैं वहाँ थोड़ी बुराई होना लाजमी हैं ..पर मुझे हर चीज़ अच्छी ही मिली ...नमन ब्लोगिग को ? भविष्य उज्जवल हैं इसका ..
ReplyDeleteसदी का श्रेष्ठतम अविष्कार....
ReplyDeleteजी दराल जी ब्लोगिंग सदी का श्रेष्ठतम अविष्कार ही है ....और हम खुशनसीब हैं कि हम शुरूआती दौर के ब्लोगर हैं ....
क्या पता कल ये अपनत्व हो या न हो ....
बहरहाल ब्लोगिंग ने हिंदी का प्रचार खूब किया ....यहाँ कइयों ने शुद्ध लिखना सिखा ...कइयों ने कविता लिखने की शुरुआत ही यहाँ से की .....shayad ब्लोगिंग डिप्रेशन भी कम करती है ....क्यों....?
आपकी पोस्ट पर टिप्पणियाँ भी मजेदार होती हैं .....
दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...
मुझे तो आज तक समझ नहीं आया कि ये ब्लागरी क्या चीज है? चार बरस से लिख रहा हूँ। कभी पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो आश्चर्य होता है कि क्या यह मैं ने लिखा था?
हा...हा...हा...
यही तो ब्लोगिरी है ....कभी कभी इतना अच्छा लिखवा जाती है की खुद हैरान होना पड़ता है ....
दुसरे जो अपनत्व और स्नेह यहाँ मिलता है उससे भी लिखने का हौंसला बढ़ता है....
@
जहां चार से ज़्यादा ब्लॉगर मौजूद... शांति...बीच-बीच में कराहने की आवाज़ें...एंबुलेस में सारे ढोए जा रहे हैं...
हा...हा...हा....
मुझे तो महफूज़ साहब की याद आ गई खुशदीप जी ....
@ "सेवा वो भी करता है जो केवल घूरता है",
जे सी साहब ये सेवा हमें पहली बार पता चली .....(ब्लॉग जगत से नई जानकारी ......:)))
अब अगर कोई घूरेगा तो समझूंगी सेवा हो रही है .....:))
राम नाम सत्य है'
मुर्दा बेटा मस्त है"!
मुहब्बत का फैलता संसार है
ReplyDeleteसदी का श्रेष्ठतम आविष्कार है।
अरविन्दजी आपकी आँखिन देखी सदैव ही जीवन्तता लिए होती है .सार्थक और सटीक भी .बहुत सही विश्लेषण और सूक्ष्म व्यंग्य प्रस्तुत है इस रिपोर्ट में ,सामने वाला चाहे तो समझे .आपकी ब्लोगिया दस्तक और निरंतर श्रेष्ठ लेखन के लिए ब्लोगिंग आपका आभार है .
वीरुभाई जी , चचा क्या बात है ? कहीं पे निगाहें , कहीं पे निशाना !
ReplyDeleteहरकीरत जी, "सुन्दरता देखने वाले की आँख में होती है"...
ReplyDeleteसेवा आदमी करता है भगवान् की या शैतान की :)
हरकीरत जी , बहुत ध्यान से सारी टिप्पणियां पढ़ी हैं आपने ।
ReplyDeleteबेशक ब्लोगिंग के ये फायदे तो हैं ।
लेकिन अपनत्व क्यों ख़त्म होगा ?
वाकई गजब का हरफन मौला आविष्कार है ... बेहतरीन पोस्ट...आभार
ReplyDeleteसही कहा आपने कि ब्लागिंग एक रोग है जिसकी दवा लुकमान तो क्या डॉ.दराल के पास भी नहीं है :)
ReplyDeleteहर हाल में एक रोग ही है यह....
ReplyDeleteआज का सबसे ज्वलंत प्रश्न यही है कि ब्लोगिंग-लेखन कैसा हो? शुरू में तो कई लोग शौकिया यह काम करते हैं फिर ज़बरिया होने लगता है.क्या लिखना न लिखना यह तो व्यक्तिगत निर्णय है पर ऐसा कुछ हो जो मनोरंजन या सामाजिक-हित की थोड़ी बहुत आपूर्ति करता हो !बिलकुल निजी या वाहियात प्रसंगों से बचना चाहिए !
ReplyDeleteसही कह रहे हैं संतोष जी ।
ReplyDeleteलेकिन एक आध लोग ऐसे हैं जो समझाने पर भी नहीं समझ रहे ।
उल्टा समझाने वाले को ही लपेट रहे हैं । शायद उन्हें भी कभी सद्बुद्धि मिले ।