आज आपको ऐसे बहुत लोग मिल जाएंगे जो कहेंगे कि आदमी को अच्छा इंसान बनना चाहिए और उसे अच्छे काम करने चाहिएं लेकिन जब आप उनसे पूछेंगे कि इंसान बनने के लिए कौन कौन से अच्छे काम करने ज़रूरी हैं ?
तो वह बता नहीं पाएगा।
यही हाल खान-पान , यौन संबंध और अंतिम संस्कार का है।
- डा. अनवर जमाल
पिछली पोस्ट पर पिट्सबर्ग वाले श्री अनुराग शर्मा की टिपण्णी पढ़कर यही लगा कि ब्लोगिंग में कितनी ताकत है . अनुराग जी ने मेरी एक साल पहले गीता ज्ञान पर लिखी पोस्ट पढ़ी और पसंद की . इस बहाने हम भी एक बार फिर स्वयं के ब्लॉग पर पुरानी पोस्ट पर गए और दोबारा सारी पोस्ट पढ़ी . सचमुच कितना ज्ञान भरा है गीता में .
राजसी : फल की वांछा करते हुए , भला कहाने को , दिखावा करने को किया गया यज्ञ ।
तामसी : बिना शास्त्र की विधि , बिना श्रद्धा के , अपवित्र मन से किया गया यज्ञ ।
दान :
सात्विक : बिना फल की आशा , उत्तम ब्राह्मण को विधिवत किया गया दान ।
राजसी : फल की वांछा करे , अयोग्य ब्राह्मण को दान करे ।
तामसी : आप भोजन प्राप्त कर दान करे , क्रोध या गाली देकर दान करे ,मलेच्छ को दान करे ।
तप :
सात्विक : प्रीति से तपस्या करे , फल कुछ वांछे नहीं , इश्वर अविनाशी में समर्पण करे ।
राजसी : दिखावे के लिए , अपने भले के लिए तप करे , अपनी मानता करावे ।
तामसी : अज्ञान को लिए तप करे , शरीर को कष्ट पहुंचाए , किसी के बुरे के लिए तप करे ।
यहाँ तप चार प्रकार के बताये गए हैं --देह , मन , वचन और श्वास का तप।
देह का तप : किसी जीव को कष्ट न पहुंचाए ।
स्नान कर शरीर को स्वच्छ रखे , दन्त मंजन करे ।
गुरु का सम्मान , मात पिता की सेवा करे ।
ब्रह्मचर्य का पालन करे ।
ब्रह्मचर्य : यदि गृहस्थ हो तो परायी स्त्री को न छुए । यदि साधु सन्यासी होतो स्त्री को मन चितवे भी नहीं ।
मन का तप : प्रसन्नचित रहे । मन को शुद्ध रखे । भगवान में ध्यान लगावे।
वचन का तप : सत्य बोलना । मधुर वाणी --हाँ भाई जी , भक्त जी , प्रभुजी , मित्र जी आदि कह कर बुलावे ।
गायत्री पाठ करे । अवतारों के चरित्र पढ़े ।
श्वास तप : भगवान को स्मरण करे । भगवान के नाम का जाप करे ।
इस तरह मनुष्य के सभी कर्म तीन प्रकार के होते हैं --सात्विक , राजसी और तामसी ।
इन्ही कर्मों का लेखा जोखा बताता है कि आप सात्विक हैं , राजसी हैं या तामसी प्रवृत्ति के मनुष्य हैं ।
यह मन बड़ा चलायमान होता है । बार बार तामसी प्रवृति की ओर जाने के लिए बेचैन रहता है । इसे काबू में रखने की कोशिश करते रहना चाहिए ।
नोट :ईश्वर और अल्लाह , पूजा और इबादत , गीता और कुरान --ये नाम भले ही अलग हों , लेकिन इनका अर्थ एक ही है . ये रास्ता दिखाते हैं मनुष्य को इन्सान बनने का .
तो वह बता नहीं पाएगा।
यही हाल खान-पान , यौन संबंध और अंतिम संस्कार का है।
- डा. अनवर जमाल
पिछली पोस्ट पर पिट्सबर्ग वाले श्री अनुराग शर्मा की टिपण्णी पढ़कर यही लगा कि ब्लोगिंग में कितनी ताकत है . अनुराग जी ने मेरी एक साल पहले गीता ज्ञान पर लिखी पोस्ट पढ़ी और पसंद की . इस बहाने हम भी एक बार फिर स्वयं के ब्लॉग पर पुरानी पोस्ट पर गए और दोबारा सारी पोस्ट पढ़ी . सचमुच कितना ज्ञान भरा है गीता में .
कहते हैं , मनुष्य यदि इन्सान भी बन जाये तो यह एक उपलब्धि है .
अध्याय १७ : त्रिविध योग
गीतानुसार मनुष्य की प्रवृत्ति तीन प्रकार की होती है --सात्विक , राजसी और तामसी । आइये देखते हैं कैसे उत्तपन्न होती है यह प्रवृत्ति।
कर्म करने से ही मनुष्य की प्रवृत्ति का पता चलता है ।
गीतानुसार --पूजा करने की श्रद्धा , आहार , यज्ञ , तप और दान --मनुष्य की प्रवृत्ति दर्शाते हैं । ये सब तीन प्रकार के होते हैं --सात्विक , राजसी और तामसी।
पूजा करने की श्रद्धा :
सात्विक : एक ही भगवान को सर्वव्यापी मान कर श्रद्धा रखते हैं ।
राजसी : देवी देवताओं की पूजा करते हैं ।
तामसी : शरीर को कष्ट देकर , भूत प्रेतों की पूजा करते हैं ।
आहार :
सात्विक : जिसके खाने से देवता अमर हो जाते हैं । मनुष्य में बल पुरुषार्थ आये । आरोग्यता , प्रीति उपजे । दाल,चावल , कोमल फुल्के , घृत से चोपड़े हुए , नर्म आहार
गीता के सतरहवें अध्याय में जो बातें कही गई हैं , वह इन्सान को भी देवता बना सकती हैं , यदि आप इनका पालन करने लगें तो . यह अध्याय मेरा भी मनपसंद अध्याय है .
लीजिये आप भी एक बार फिर पढ़िए . वैसे भी ऐसी बातों को बार बार पढने /दोहराने की ज़रुरत होती है .
गीतानुसार मनुष्य की प्रवृत्ति तीन प्रकार की होती है --सात्विक , राजसी और तामसी । आइये देखते हैं कैसे उत्तपन्न होती है यह प्रवृत्ति।
कर्म करने से ही मनुष्य की प्रवृत्ति का पता चलता है ।
गीतानुसार --पूजा करने की श्रद्धा , आहार , यज्ञ , तप और दान --मनुष्य की प्रवृत्ति दर्शाते हैं । ये सब तीन प्रकार के होते हैं --सात्विक , राजसी और तामसी।
पूजा करने की श्रद्धा :
सात्विक : एक ही भगवान को सर्वव्यापी मान कर श्रद्धा रखते हैं ।
राजसी : देवी देवताओं की पूजा करते हैं ।
तामसी : शरीर को कष्ट देकर , भूत प्रेतों की पूजा करते हैं ।
सात्विक : जिसके खाने से देवता अमर हो जाते हैं । मनुष्य में बल पुरुषार्थ आये । आरोग्यता , प्रीति उपजे । दाल,चावल , कोमल फुल्के , घृत से चोपड़े हुए , नर्म आहार
राजसी : खट्टा , मीठा , सलुना , अति तत्ता , जिसे खाने से मुख जले ,रोग उपजे , दुःख देवे ।
तामसी : बासी , बेस्वाद , दुर्गन्ध युक्त , किसी का
जूठा भोजन . तामसी : बासी , बेस्वाद , दुर्गन्ध युक्त , किसी का
यज्ञ :
सात्विक : शास्त्र की विधि से , फल की कामना रहित , यह यज्ञ करना मुझे योग्य है , यह समझ कर किया गया यज्ञ सात्विक कहलाता है ।
सात्विक : शास्त्र की विधि से , फल की कामना रहित , यह यज्ञ करना मुझे योग्य है , यह समझ कर किया गया यज्ञ सात्विक कहलाता है ।
राजसी : फल की वांछा करते हुए , भला कहाने को , दिखावा करने को किया गया यज्ञ ।
तामसी : बिना शास्त्र की विधि , बिना श्रद्धा के , अपवित्र मन से किया गया यज्ञ ।
दान :
सात्विक : बिना फल की आशा , उत्तम ब्राह्मण को विधिवत किया गया दान ।
राजसी : फल की वांछा करे , अयोग्य ब्राह्मण को दान करे ।
तामसी : आप भोजन प्राप्त कर दान करे , क्रोध या गाली देकर दान करे ,मलेच्छ को दान करे ।
तप :
सात्विक : प्रीति से तपस्या करे , फल कुछ वांछे नहीं , इश्वर अविनाशी में समर्पण करे ।
राजसी : दिखावे के लिए , अपने भले के लिए तप करे , अपनी मानता करावे ।
तामसी : अज्ञान को लिए तप करे , शरीर को कष्ट पहुंचाए , किसी के बुरे के लिए तप करे ।
यहाँ तप चार प्रकार के बताये गए हैं --देह , मन , वचन और श्वास का तप।
देह का तप : किसी जीव को कष्ट न पहुंचाए ।
स्नान कर शरीर को स्वच्छ रखे , दन्त मंजन करे ।
गुरु का सम्मान , मात पिता की सेवा करे ।
ब्रह्मचर्य का पालन करे ।
ब्रह्मचर्य : यदि गृहस्थ हो तो परायी स्त्री को न छुए । यदि साधु सन्यासी होतो स्त्री को मन चितवे भी नहीं ।
मन का तप : प्रसन्नचित रहे । मन को शुद्ध रखे । भगवान में ध्यान लगावे।
वचन का तप : सत्य बोलना । मधुर वाणी --हाँ भाई जी , भक्त जी , प्रभुजी , मित्र जी आदि कह कर बुलावे ।
गायत्री पाठ करे । अवतारों के चरित्र पढ़े ।
श्वास तप : भगवान को स्मरण करे । भगवान के नाम का जाप करे ।
इस तरह मनुष्य के सभी कर्म तीन प्रकार के होते हैं --सात्विक , राजसी और तामसी ।
इन्ही कर्मों का लेखा जोखा बताता है कि आप सात्विक हैं , राजसी हैं या तामसी प्रवृत्ति के मनुष्य हैं ।
नोट :ईश्वर और अल्लाह , पूजा और इबादत , गीता और कुरान --ये नाम भले ही अलग हों , लेकिन इनका अर्थ एक ही है . ये रास्ता दिखाते हैं मनुष्य को इन्सान बनने का .
गीता बुरे से बुरे मानव को इंसान बना सकती है !
ReplyDeleteउपयोगी दर्शन !
अनुराग शर्मा जी के हवाले से ही सही आपने आज गूढ ज्ञान दे दिया, आज का दिन सफ़ल हुआ. शर्माजी स्वयं सुलझे हुये और सात्विक विचारों के धनी है.
ReplyDeleteरामराम
आहा...आज सुबह सबसे पहली पोस्ट पढी और लगता है आज का दिन सफ़ल हो गया. सात्विक, राजसी और तामसी गुणों का सारतत्व विदित हुआ.
ReplyDeleteप्रभु इस ज्ञान को ब्लागिंग की वॄतियों पर भी लागू कर देते तो इस ब्लागयुग में ब्लागर प्राणियों का भी उद्धार हो जाता. क्योंकि सबसे ज्यादा मोह में यही प्राणी ग्रसित है.:)
रामराम.
बहुत बढ़िया आलेख ...आभार...
ReplyDeleteआज आपकी कृपा से अपना आकलन कर लिया और तब से परेशान बैठा हूँ ! अब क्या करूँ ...??
ReplyDeleteराजसी =४
तामसी = १
सात्विक =१
सुबह सुबह आपने कहाँ पंहुचा दिया ......लगता है अनुराग बाबा के आश्रम पिट्सबर्ग जाना पड़ेगा !
शुभकामनायें आपको !
बहुत अच्छी चर्चा रही गीता पर। बस एक जिज्ञासा जाग गयी कि मनुष्य और इंसान में क्या अन्तर है? क्योंकि आपने अन्त में लिखा है कि "मनुष्य को इंसान बनने का"। मेरे ध्यान में तो मनुष्य शब्द हिन्दी भाषा का है और इंसान उर्दु भाषा का। तो दोनों में अन्तर क्या है?
ReplyDeleteदेखिए ... अच्छी पोस्ट कभी पुरानी नहीं पड़ती.. यह एक प्रमाण है:)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteनिष्पक्ष हो कर तथ्यों पर विचार करें तो सत्य को पा सकते हैं
ReplyDeleteब्लॉगर्स मीट वीकली (9) में आपका आना अच्छा रहा .,
जो लोग किसी शास्त्र में विश्वास रखते हैं और फिर उसके विरुद्ध चलते हैं वे अपनी आत्मा का हनन करते हैं . ऐसे लोग कभी अच्छे लोग नहीं कहलाये जा सकते ., शास्त्रों को आदर देना ही पर्याप्त नहीं है , उनके अनुसार आचरण करना भी ज़रूरी है ., यही वह बात है जिसकी अनदेखी आज सबसे ज्यादा की जा रही है ., विश्व साहित्य में गीता एक अलग और विशिष्ट स्थान रखती है.
इसके आधार पर भी जाना जा सकता है कि जो लोग मार्गदर्शन देने के लिए गला काट प्रतिस्पर्धा में जुटे हुए हैं , उनकी प्रवृत्ति और स्वभाव क्या है ?,
क्या गीता ऐसे लोगों का अनुसरण करने की अनुमति देती है ?
अनुमति न होने के बावजूद उनका अनुसरण करना ही बर्बादी का कारण है . बर्बादी के रास्ते पे चलना और कल्याण की प्रार्थना करना मूर्खता के सिवाय और क्या है ?,
हमारी मान्यता, हमारे कर्म और हमारी प्रार्थना में समन्वय होना अनिवार्य है , तभी हमारा कल्याण होगा और ऐसा सामूहिक रूप से होना ज़रूरी है . लोग निष्पक्ष हो कर तथ्यों पर विचार करें तो वे सत्य को पा सकते हैं.
सत्य के सूत्र और संकेत हरेक शास्त्र में मौजूद है.
डॉक्टर साहिब, गीता सम्पूर्ण संसार में किसी भी काल और किसी भी स्थान में उपस्थित मानव हित में योगियों द्वारा बोले अथवा लिखे गए शब्द हैं...हर पढ़ा-लिखा व्यक्ति किन्तु अपने मन के झुकाव के अनुसार इनका विश्लेषण कर इनका पालन करता है - अथवा किसी गुरु को पकड़ लेता है और भेड़-बकरी समान उसके पीछे चल पड़ता है, बिना सोचे समझे (गीता के अनुसार 'अज्ञानतावश')... वर्तमान कलियुग है और जो इस युग की प्रकृति को नहीं जानता, संभव है गुरु के साथ साथ, भेड़-बकरी समान, पहाड़ी से नीचे छलांग लगा सकता है... टीवी चैनल आजकल दिखाते ही रहते हैं कई बाबाओं / गुरुओं की 'काली करतूत'...
ReplyDelete(खुशदीप जी इसका चाहें तो समर्थन कर सकते हैं :)
इसी गीता में 'योगेश्वर कृष्ण' कहते दर्शाए गए हैं कि संसार में केवल दो प्रकार के मानव हैं - देवता और राक्षस... राक्षसों के गुण भी विशेषकर सोलहवें अध्याय (XVI) में दिए हैं...
कटु सत्य, 'कडवा चौथ' है, "हे पृथापुत्र! दंभ, दर्प, अभिमान, क्रोध, कठोरता, तथा अज्ञान - ये आसुरी स्वभाव वालों के गुण हैं !
और कर्म की त्रिगुणात्मक प्रकृति के विषय में कहा गया है कि जो आत्मा काल-चक्र में प्रवेश पाती है उसे इन तीनों प्रकार के कर्म करने ही होंगे, किन्तु जो ज्ञानी है वो कर्म कर, उनको कृष्ण में समर्पित कर, इनसे लिप्त नहीं होता,,, आदि आदि... अध्याय '३' (संकेत, ॐ ?)...
सत्रवें अध्याय का इतना गहन अध्यन किया है आपने ... पूरी व्याख्या पढ़ के मन में शान्ति सी आ जाती है ... कितना कुछ है हमारे इन ग्रंथों में ... ये जीवन कम पढ़ जायगा पढते पढते ...
ReplyDeleteवाह ……………बहुत सुन्दर गीता ज्ञान दिया है और बहुत ही सरलता से सबकी समझ मे आने वाला…………हार्दिक आभार्।
ReplyDeleteसात्विक, राजसी, तामसी का अन्तर महसूस किया है।
ReplyDeleteऔर हिसाब किताब लगाने पर गडबड मिली है।
चलो जी कोई बात नहीं अब सुधार कर लेते है जो ज्यादा नहीं है।
सहज सरल गीता -वाह डॉ. साहब आनंद आ गया ज्ञान का साक्षात् कर
ReplyDeleteताऊ रामपुरिया जी , शुक्रिया । वैसे तो यहाँ सब ज्ञानी हैं ॥ फिर भी यह ज्ञान तो ब्लोगर्स के लिए ही बांटा जा रहा है ।
ReplyDeleteअनुराग शर्मा जी को पहली बार पढ़ा । हम तो उनके अनुरागी हो गए ।
सतीश जी , चलिए एक गुण तो सात्विक मिला । हम तो सुबह से ढूंढ रहे हैं , अभी तक एक भी सफलता नहीं मिली । :)
अजित जी , शाब्दिक अर्थ पर मत जाइये ।
ReplyDeleteमनुष्य एक प्रजाति का नाम है । हाड मांस से बना प्राणी । जबकि इन्सान व्यक्तित्त्व का नाम है । सभी मनुष्य इन्सान नहीं दिखाई देते । जब तक इंसानियत का पालन नहीं करेंगे , तब तक बस मनुष्य ही रहेंगे ।
सात्विक प्रवृति --देवता स्वरुप
राजसी --सांसारिक मनुष्य
तामसी --जानवर सरीखा
हमारे कर्म ही फैसला करते हैं , हम किस दिशा में जा रहे हैं ।
ज्ञान चक्षु खुल गए आज तो.
ReplyDeleteडॉ अनवर ज़माल जी , अपने पूछा --
ReplyDeleteइंसान बनने के लिए कौन कौन से अच्छे काम करने ज़रूरी हैं ?
बस इसी का उत्तर है इस पोस्ट में । आपने सही कहा , सिर्फ जानना ही काफी नहीं है , आचरण भी करना चाहिए । गीता का उपदेश भी यही कहता है कि कर्म करते रहिये , लेकिन अच्छे कर्म ।
सिर्फ गीता ही नहीं , सभी शास्त्र , धार्मिक ग्रन्थ आदि यही सिखाते हैं । सीखने वाले ही नहीं मिलते ।
जे सी जी , कहते हैं --गुरु बिन ज्ञान नहीं ।
ReplyDeleteलेकिन आजकल के गुरु इस लायक नहीं , बल्कि नालायक ज्यादा हैं , जो भोली भाली जनता को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा करते हैं ।
वैसे भी एक ही भगवान को सर्वव्यापी मान कर श्रद्धा रखनी चाहिए --यही सात्विक व्यक्ति की निशानी है ।
सुना था कि ऋषियों के तरकश में ऐसे तीर होते थे जो एक ही से कई शिकार कर सकते थे। आज प्रत्यक्ष देखने को मिला।
ReplyDeleteडॉ साहब हमारा मन तो बार- बार तामसिक की तरह ही इशारा कर रहा है .....
ReplyDeleteसात्विक तो आप जैसे होंगे न .....या फिर राजेन्द्र जी जैसे ....
सार्थक और सहजता से ज्ञान दिया है ...मनन करने लायक पोस्ट
ReplyDeleteअरे पाण्डे जी , शुद्ध शाकाहारी पोस्ट में शिकार कहाँ ढूंढ लिए भाई !
ReplyDeleteहीर जी , ज़रा इस पंक्ति पर गौर फरमाएं --यह मन बड़ा चलायमान होता है । बार बार तामसी प्रवृति की ओर जाने के लिए बेचैन रहता है ।
आप सब जानते हैं सरकार।
ReplyDeleteकाहे हमें अंतर्यामी बना रहे हैं पाण्डे जी ।
ReplyDeleteमंगला आरती में अलौकिक प्रेम दर्शन कर अब ब्लॉगजगत में ज्ञान का प्रकाश फैलाइए ना ।
एक बेहतरीन लेख़ .यह सच है कि ईश्वर और अल्लाह , पूजा और इबादत , गीता और कुरान ये रास्ता दिखाते हैं मनुष्य को इन्सान बनने का लेकिन हम हैं कि इनके नाम पे हिन्दू, मुसलमान तो बन जाते हैं लेकिन इंसान नहीं बनते.
ReplyDeleteआज तो मामला कुछ ज्यादा ही सीरिअस हो गया है. अब काम करने से पहले सोचना पड़ेगा कि ये किस केटेगरी में आएगा. शुक्रिया इस नयी मुहिम के लिये.
ReplyDeleteबहुत अच्छी और प्रेरक पोस्ट...आपका आभार डाक्टर साहब.
ReplyDeleteनीरज
वो सब तो ठीक है... पर अनवर जी का नाम यहाँ क्यों लिया गया ?
ReplyDeleteसार्वकालिक सात्विक पोस्ट ,अच्छी चर्चा चल रही है इस पोस्ट पर .शुक्रिया डॉ .भाईसाहब !
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, अध्याय १७ के २८वें और अंतिम श्लोक में योगेश्वर कृष्ण जी कहते हैं, "हे पार्थ! श्रद्धा के बिना यज्ञं, दान या तप के रूप में जो भी किया जाता है, वह नश्वर है... वह असत कहलाता है और इस जन्म तथा अगले जन्म - दोनों में ही व्यर्थ जाता है...
ReplyDeleteहनारे पूर्वजों में से किसी 'पहुंची हुई आत्मा' ने अध्याय १७ का सार, "श्रद्धा के विभाग", इन शब्दों में दिया, "भौतिक प्रकृति के तीन गुणों से तीन प्रकार की श्रद्धा उत्पन्न होती है / रजोगुण तथा तमोगुण में श्रद्धापूर्वक किये कर्मों से अस्थायी फल प्राप्त होते हैं, जबकि शास्त्र-सम्मत विधि से सतोगुण में रहकर संपन्न कर्म ह्रदय को शुद्ध करते हैं / ये भगवान् कृष्ण के प्रति शुद्ध श्रद्धा तथा भक्ति उत्पन्न करने वाले होते हैं //"
आम आदमी के हित में शिर्डी वाले साईँ बाबा ने इस कारण (निराकार प्रभु के प्रति) श्रद्धा और सबूरी (अर्थात 'सब्र' यानि 'धैर्य') का मन्त्र दिया, जबकि पुट्टपर्ती वाले ने प्रेम का मन्त्र दिया, अर्थात सभी प्राणी से प्रेम (हिन्दू मान्यतानुसार भी, सभी के अन्दर एक ही अनंत भगवान् के अंश को विद्यमान, और अस्थायी शरीर को अनंत आत्मा का 'वस्त्र मात्र' जान, इस परिवर्तनशील प्रकृति को दर्शाते माया जाल हेतु रचित)......
फिर से कुछ सद्विचार पाने का अवसर प्रदान करने का शुक्रिया डॉ साहब!
ReplyDeletebahut uttam gyaanvardhak post.saatvik,raajsi,taamsi me antar pata chala apne ko achchi uttam shreni me hi paya.aapka yah gyaan vardhan hetu bahut bahut aabhar.
ReplyDeleteसुंदर , सद्विचार ,आभार।
ReplyDeleteदराल जी, मैं किसी विवाद को जन्म नहीं देना चाहती। लेकिन डिक्शनरी में भी दोनों शब्दों का एक ही अर्थ है। इसलिए यह कहना मुझे उचित नहीं लगता। हम यह कहें तो बेहतर है कि हम सभ्य मानव बनें। नरेन्द्र कोहली ने इसी विषय पर एक व्यंग्य भी लिखा है। मैंने इसीलिए लिखा था, इसे अन्यथा ना ले। नहीं तो एक विवाह और जन्म ले लेगा।
ReplyDeleteअजित जी , चिंता न करें . इस पोस्ट के मर्म पर सबसे पहले हमने ही आचरण करना शुरू कर दिया है . इसलिए अब कोई विवाद नहीं होगा . ( विवाह तो एक ही ठीक है ) :)
ReplyDeleteइन्सान शब्द एक कवि के नज़रिए से इस्तेमाल किया जाता है .
वैसे आपकी बात सही है --बात सभ्य , सुसंस्कृत और सात्विक होने की ही हो रही है .
माही जी , यह पोस्ट अनवर जी के सवाल के ज़वाब में ही लिखी गई है . यह बताने के लिए -अच्छा इन्सान बनने के क्या रस्ते हैं .
गीता-उपदेश के सम्बन्ध में ऐसी विस्तृत जानकारी से
ReplyDeleteआलौकिक आनंद की अनुभूति मिली ...
आपने जिस सहज सरल ढंग से बतलाने की कोशिश की है
वह सभी पढने वालों के लिए पर्याप्त लग रही है
अतः मात्र शब्द तक सिमटे रहना स्वयं को भी
परेशान करने वाली बात लगती है
आभार स्वीकारें .
बहुत ही बढ़िया गीता का ज्ञान दिया है आपने और सबसे अच्छी बात है बहुत ही सरला शब्दों बहुत कुछ सिखा रही है गीता के माध्यम से आपकी यह पोस्ट...अच्छी पोस्ट के लिए आभार॥ बहुत कम ऐसी अच्छी पोस्ट पढ़ने को मिला करती है ...
ReplyDeleteसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है साथ ही आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी की प्रतीक्षा भी धन्यवाद.... :)
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जीवन का यही सार है,दर्शन है,बढ़िया पोस्ट,आभार.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आलेख ...आभार...
ReplyDeleteसर ,
ReplyDeleteप्रणाम
आपकी इस पोस्ट को मैं अपने facebook ग्रुप " हृदयम " पर लगा रहा हूँ . आपके इस लिंक को भी दूंगा .
हृदयम का लिंक है : http://www.facebook.com/groups/vijaysappatti/
आप भी इसे join करिये
ये बहुत ही अच्छा आलेख है .
आपका धन्यवाद
विजय
चाहते तो बीपीएल भी यही सब हैं। परन्तु,छब्बीस रूपए में बेचारा क्या खाए और क्या दान करे!
ReplyDeleteदराल जी नमस्कार्।गीता तो अनुपम ग्रंथ है। पर आपने सरल तरीके एक नये रूप मे समझाया है।धन्यवाद्।
ReplyDeleteशुक्रिया दानिश जी , पल्लवी जी, विजय कुमार जी ।
ReplyDeleteकुमार राधारमण जी , यह पोस्ट बी पी एल के लिए नहीं है । आखिर जो नहीं हैं , उनको गौर करना चाहिए ।
व्यवस्था से अव्यवस्था की और जाना सहज प्रवृत्ति है मन की .मन बड़ा चंचल है .सारथी हटा दुर्घटना घटी .डॉ साहब आपकी दस्तक के लिए आभार .भारत में लड़कियों के साथ हर क्षेत्र में घटित पक्ष पात एक नियम है अपवाद नहीं .
ReplyDeleteसुंदर सद्विचार , बहुत बढ़िया आलेख ...आभार...
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, बीपीएल को और अन्या भारतवासियों को भी शायद, हिन्दू मान्यतानुसार, तथाकथित योगियों से प्रेरणा लेनी चाहिए जो बिना खाए-पीये एक ही स्थान पर बैठ - अपने ऊपर दीमक की बाम्बी बनाने दे - केवल सांस और मन पर नियंत्रण कर जीवित रह के दिखा गए कि इस संसार में कुछ भी असंभव नहीं है... (७४ वर्षीय अन्ना भी किन्तु वर्तमान में उनके स्वयं के अनुसार केवल १६ दिन का ही अनशन लगातार रखने में सक्षम हैं, किन्तु १०-१२ दिन में ही उनकी सेहत बिगड़ गयी थी, और समय लगा नोर्मल होने में) ...
ReplyDeleteसत्यवादी राजा हरीशचंद्र को भी श्मशान में चांडाल का काम करना पड़ा, कथा-कहानियों के अनुसार...
यदि सभी भारतवासी मन बनालें तो सप्ताह में एक दिन व्रत कर बीपीएल के हित में भोजन सामग्री उपलब्ध करा सकते हैं... किन्तु बिल्ली के गले में घंटी कौन सा चूहा बांधेगा???
जे सी जी , अफ़सोस यही है कि भोजन सामग्री की कोई कमी नहीं । फिर भी काफी लोग भूख से मर रहे हैं । खोट हमारी व्यवस्था में हैं ।
ReplyDeleteआपने सही विश्लेषण दिया है,हम तो शुरू से ही लिखते आ रहे थे। भूमि का 'भ'+गगन का 'ग'+वायु का 'व'+अनल का 'I'+नीर का 'न'मिलकर 'भगवान'होता है जो खुद ही बना होने के कारण 'खुदा' है एवं GENERATE,OPERATE,DESTROY करने के कारण GOD है। अलग कहाँ हैं?
ReplyDeleteकर्मों का एक वर्गीकरण यह भी है=सत्कर्म ,दुष्कर्म और अकर्म। सत्कर्म और दुष्कर्म सभी जानते हैं। अकर्म वह कर्म =फर्ज=ड्यूटी =दायित्व है जो किया जाना चाहिए था और किया नहीं गया है उसका भी दंड मिलता है।
यह विश्लेषण भी सार्थक है माथुर साहब . नई जानकारी मिली . आभार .
ReplyDeleteसरकारी व्यवस्था की बात करें तो, यह माना जाता है कि बिना जनता के सहयोग के कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता... और वर्तमान में तो सभी सरकारी / गैर सरकारी / निजी व्यवस्थाएं लगभग चरमराती सी प्रतीत हो रही हैं, जिस कारण जनलोक पाल बिल की मांग हो रही है ...
ReplyDeleteअभी सिक्किम का जो हाल हुआ, उसको देख, इसके पहले भी किसी ने अनुमान लगा कर कहा है कि एक तगड़ा भूचाल दिल्ली एनसीआर में आजाये तो २५% आवास धराशायी हो जाए... अथवा पाकिस्तान की वर्तमान चरमराती सरकारी व्यवस्था को देख यदि 'ब्रह्मास्त्र' आतंकवादियों के हाथ आजायें तो दिल्ली / भारत को भगवान् श्री कृष्ण ही बचा सकते हैं...:(
और शायर कहता है "अपनी तो हर आह इक तूफ़ान है / ऊपर वाला जान के अनजान है..."
बहुत सारगर्भित आलेख..
ReplyDelete