वर्तमान परिवेश में एक बात तो साफ नज़र आती है कि आजकल शराफ़त का ज़माना नहीं रहा । शरीफ होना तो एक गुनाह जैसा लगता है । और शरीफ दिखना भी कम हानिकारक नहीं ।
देखा जाए तो ये तो वही बात हुई कि जिसकी लाठी उसी की भैंस ।
मैं तो कभी कभी सोचता हूँ कि कैसा होता यदि हम भी थोड़े से खूंखार होते या दिखते ।
कोशिश तो बहुत की , मगर ऐनक ने ऐसा होने नहीं दिया ।सोचो कितना मज़ा आता यदि ऐसा होता :
खुशदीप जैसा कद होता
शेरसिंह जैसी मूंछें ।
पाबला जी सा वजनी होता
महफूज़ जैसी बाहें । (डोले)
समीर लाल सा वर्ण होता
और आँखों पर चश्मा काला ।
गोदियाल जी से तेवर होते
फिर पंगा कौन लेता साला ।
या फिर होता पतला दुबला
ब्रूस ली सा फुर्तीला ।
बन्दर जैसा पोज़ बनाकर
हा हु करता , नक्षा सबका ढीला ।
हे प्रभु ,अब अगले जन्म भले ही
मुखौटा शराफत का पहना देना ।
पर कुछ ना बना पाओ तो हमें
रैड बीकन वाला नेता बना देना ।
नोट : कृपया दिमाग पर जोर मत डालियेगा । बस मस्त रहिये ।
शराफत के यहाँ सभी मुखैटे पहिन कर नेट पर बैठे हैं ... हा हा हा
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सपने हैं मगर इसका नुकसान भी हो सकता है ...
ReplyDeleteक्या धाकड़ चीज बनते आप ....फोटो बहुत धांसू है !
शुभकामनायें !!
सही है शराफत से रहो तो लोग मनमानी टिप्पणी कर देते हैं। लेकिन अब कुछ लोग तो शरीफ दिखे ना। महिलाएं कैसे बनेगी बदमाश, जरा इसका भी खाका खींच दीजिए।
ReplyDeleteसही है ..एकदम बढ़िया.
ReplyDeleteसतीश जी , बस एक सपना है । सपने में कैसी लाभ हानि ?
ReplyDeleteअजित जी , शास्त्री जी ने दो पोस्ट लिखी हैं --यदि मैं नारी होता-- और अच्छा हुआ नारी न हुआ । अब हमें भी दो लिखनी पड़ेंगी ।
जय हो महाराज ...
ReplyDeleteआपका दाढी वाला फोटो अच्छा है फिर से रख लें तो अच्छा रहेगा.
ReplyDeleteउदघाटन अनुच्छेद में व्यक्त आपके विचार पूर्तायाह सही हैं ,मैं पूरा समर्थन करता हूँ.
हा हा हा
ReplyDeleteआज तो कमाल कर दिया भाई साहब
खूबसूरत लग रहे हैं। अब ये बताना पड़ेगा कि ये रूप किसे रिझाने को था?
ReplyDeleteशराफत तो अभी बी बाकी है ...
ReplyDeleteबस डाक्टर साहिब से प्रोफ़ेसर साहिब बन गये ...:)
येह मस्ती भी अच्छी है !
शुभकामनाएँ!
अशोक सलूजा !
डाक्टर साहब क्या बात है , शास्त्री जी नारी बनना चाहते है और आप खुराफाती, ब्लॉग जगत में ये परिवर्तन का दौर क्यों आया जरा इसपर भी हो जाये . आपके आस पास महसूस करने की कामना सहित
ReplyDeleteबहुत खूब, फ़ोटो भी,
ReplyDeleteकाफी सारे गुण मिला दिए आपने. अब सारे गुणों कि इंजीनियरिंग करके नयी कृति बनेगी, तब देखेंगे क्या तस्वीर बनेगी. वैसे फोटो उम्दा है.
ReplyDeleteसब अच्छी चीजें आप लेलेंगे तो आप इन्सान नहीं कुछ और बन जायेंगे ..
ReplyDeleteडाक्टर साहब आप अपनी एक फ्रंट फेस वाली फोटो मुझे भेज दें..कोशिश करूँगा कि सारी खूबियों वाले किसी बंदे की फोटो में आपका चेहरा ठीक से फिट कर दूँ :-)
ReplyDeleteजान की अमान पायी!
ReplyDeleteशराफ़त अली नज़ाकत अली जन्नतनशीं हो गए। दिमाग पर ज़ोर डालने के लिए तो दिमाग चाहिए :)
ReplyDeleteachchi haasya rachna likhi hai aapne.bahut saare gun lekar to kuch aur hi ho jaayege.jaise ho vaise hi theek hain aap.
ReplyDeleteअब क्या मिसाल दें आपके इस नेक ख्वाब की । वैसे सोचने में क्या जाता है ?
ReplyDeleteदिमाग है ही नही तो जोर कहाँ डालेंगे……………बस सब हँस रहे है तो हम भी हँस लेते हैं…………हा हा हा
ReplyDeleteमाथुर साहब , अब वो मज़ा कहाँ आएगा दाढ़ी रखने में ।
ReplyDeleteद्विवेदी जी ये भी तो हो सकता है की ज़माने के सताए रहे हों । हा हा हा !
अशोक जी , अब आगे आगे ऐसी मस्ती ही काम आएगी ।
कुश्वंश जी , ये तो शास्त्री जी से ही पूछिए । हां खुराफाती --वेल, कभी हम भी एक्टिंग किया करते थे ।
रचना जी , सारे गुणों को मिलाकर जो तस्वीर बनेगी , उसे राजीव तनेजा जी दिखाने का वादा कर रहे हैं । उत्सुकता हमें भी है देखने की ।
ReplyDeleteराजीव जी , फोटो भेजने की क्या ज़रूरत है । आप उस बन्दे की ही फोटो हमें भेज दीजिये । पता तो चले कैसा दिखता है ।
राजेश जी , बस एक उत्सुकता थी ।
सही कहा सुशिल जी , ख्वाब देखने में क्या जाता है । वैसे कहते हैं जो ख्वाब देखता है , वही सफल होता है ।
वंदना जी , चलिए इस बहाने आप हंसी तो सही ।
हा हा!! मस्त हैं जी....
ReplyDeletekhoob......bahut khoob !
ReplyDeleteडॉ.दराल बॉस
ReplyDeleteसलाम बोलता हूं …
मुंगेरीलाल के हसीन सपने
बनाम
डॉ.दराल के ख़ौफ़नाक सपने
टिन् टिड़िनऽऽ…
वॉउऽऽ मस्त पोस्ट बॉस ! एक्कदम्म झक्क्क्कास !!
अपुन दिन में कई बार इधर आएला … पन ब्लॉगर का दरवज़्ज़ा बंद ई बंद ।
अपुन टेन्शन इच नंई देने का सोच के रात को आएला है बॉस !
तुमने दिन भर मुन्नी - शीला के साथ बहुत मस्ती की ना …
सच्ची बोला न अपुन ?
किसी को नंई बोलेगा … दांत तुड़वाने थोड़ी है अपुन को
हाज़री लिख लीजियो अपुन की
चलता हूं …
भूलना नंई ;)
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हमारी "अगरबत्ती पहलवाल एसोशियेशन" दुबले और पतले शब्दों के प्रयोग पर कडी आपत्ति दर्ज करती है। :)
ReplyDeleteनीरज"रोहील्ला" भाई आगे बढो़, हम तुम्हारे साथ है! अनशन की घोषणा का इंतजार है!
ReplyDeleteतथास्तु...आकाशवाणी, आप सुन पा रहे हैं.
ReplyDeleteआईला , राजेन्द्र भाई तुम तो सच्ची मुच्ची मस्ती में आ गएला है --। हा हा हा !
ReplyDeleteनीरज जी , "अगरबत्ती पहलवाल एसोशियेशन" --ये फोटो उस समय का है जब हम भी इसी के मेम्बर थे ।
आशीष जी , आप तो एक्स मेम्बर लगते हैं । हाँ , राहुल जी की सदस्यता बरक़रार है । :)
ओह्ह्ह्ह बड़ा खतरनाक इरादा है आपका.... अलग-अलग तो फिर भी झेल लेते हैं किसी ना किसी तरह... अगर एक साथ सारे गुण(?) एक ही जगह आगये तो क्या होगा.... हुंह????
ReplyDelete;-) #-) :-)
हा हा हा क्या सपना बुना है डॉ साहेब ...इतना बड़ा जोखम उठाने के बाद भी आप कही से भी बदमाश नही दिख रहे है---एकदम फ़िल्मी हीरो से जच्च रहे है ---
ReplyDeleteआपका फोटो बहुत अच्छा लगा! कुछ अलग लग रहे हैं आप बिल्कुल पुराने ज़माने के हीरो ! बढ़िया पोस्ट! वैसे सपने तो सभी देखते हैं पर कभी सपना सच होता है तो कभी उस सपने को पूरा करने के लिए लोग जीजान से कोशिश करते हैं!
ReplyDelete:):) सपना तो अच्छा है ... पर सपना बस सपना है ... बढ़िया हास्य
ReplyDeleteआईला.... फालतू पोस्ट पर 30 टिप्पणी !
ReplyDeleteमैं कहता न था कि शराफ़त का ज़माना न रहा ।
ज़माना भौकालियों का है, जो बोले सो निढाल... जय श्री भौकाल !
यदि आपमें इतने लोगों के गुण आ जाते , तो एक ही ब्लाग पर अनेक ब्लॉगर्स की रचनाओं का आनंद आ जाता।
ReplyDeleteफोटो तो इस वेश में भी शानदार ही दिख रही है...:)
ReplyDeleteबचपन में हम रामलीला देखते थे तो जब तक पर्दे के पीछे स्टेज तैयार किये जाते थे तो पर्दे के सामने एक विदूषक महाशय आ जाते थे और लोगों का मनोरंजन करते थे, खास तौर पर हम बच्चों का... आज भी मुझे उसकी एक लाइन याद है, "आज तक फोड़ता था ब्रज में मैं गागरिया / आज तो फोड़ दी तकदीर हमारी इसने"!
ReplyDeletevery funny
ReplyDeleteha ha ha .....
ReplyDeletemazedar post.......
शाहनवाज़ जी अच्छा ही होगा । आखिर सारी अच्छाइयां जो मिल जाएँगी ।
ReplyDeleteदर्शन जी , बदमाशी के कई अवसर तो मिले लेकिन हमेशा अपनी शराफत आड़े आ गई ।
डॉ अमर कुमार जी , फालतू नहीं पालतू कहें तो कैसा रहेगा ।
दिव्या जी , टाइप्ड तो अभी भी नहीं हैं ।
जे सी जी , "आज तक फोड़ता था ब्रज में मैं गागरिया / आज तो फोड़ दी तकदीर हमारी इसने"!--
ReplyDeleteअभी तो सपना पूरा भी नही हुआ । पहले कोई मोडल बनने दीजिये , फिर देखते हैं क्या होता है ।
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteकल्पना कर रहा हूँ ऐसे रूप की डाक्टर साहब .... ब्लॉग जगत के सबसे चहेते होते आप फिर ...
ReplyDeleteनासवा जी , थोड़े बहुत तो अभी भी हैं कि नहीं ?
ReplyDeleteइन्तज़ार कर रहा हूं,कोई कवि आपकी खूबी को अपनी कविता से बयां करे!
ReplyDeletekya baat hei............khunkhar hona bhi ek kala hei!!
ReplyDeleteशराफ़त मियां जी आप का फ़ोटू तो सच मे किसी हीरो से कम नही... बाकी हम भी आप जैसे ही हे,कभी कभी हक के लिये लड पडे तो अलग बात हे...
ReplyDeleteअपनी रचना के माध्यम से आपने कई ब्लोगर्स की कुछ विशेष ताओं से परिचय करवा दिया |अच्छी पोस्ट बधाई |
ReplyDeleteआशा
very well said !!!
ReplyDeletelive life to the fullest and about rest........ Who cares :D
डाक्टर साहब क्या बात है बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteमजा आ गया. वैसे क्या आपने अपने लुक (खूँखारता के सन्दर्भ में) के बारे में औरों से पूछा है? क्या पता आपका ही लुक औरों को खूँखार लगता हो.
ReplyDeleteअधिकतर बच्चे (और बड़े भी!) डॉक्टर के पास जाने के नाम से ही रोना शुरू कर देते हैं :)
ReplyDeleteजय हो जय हो डॉक्टर साहब की जय हो.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आईये.'सरयू' स्नान कर एक नया रूप बनाईये.
जिन जिन को आप ठीक समझें उनको भी साथ लाईये.
रूप न बदल जाएँ तो बताईयेगा.
फोटो देख कर तो ऐसा लगता है जैसे
ReplyDelete'आँखों ही आँखों में इशारा हो गया
बैठे बैठे जीने का सहारा हो गया'
बहुत पैनी नजरें है जी!
शराफ़त छोड़ दी मैंने...
ReplyDeleteजय हिंद...
हा हा हा ! वर्मा जी , आपकी बात का ज़वाब तो जे सी जी ने दे दिया है ।
ReplyDeleteराकेश जी , नज़र को नज़रअंदाज़ कर देखिये , शराफत ही नज़र आएगी ।
खुशदीप लगता तो ऐसा ही है । पर क्यों ?