अब सोच भी दो प्रकार की होती है । एक व्यवहारिक , दूसरी आध्यात्मिक । जहाँ व्यवहारिक सोच हमें एक अच्छा नागरिक बनाती है वहीँ आध्यात्मिक सोच हमें एक अच्छा इंसान बनाती है ।
गीतानुसार मनुष्य की प्रवृत्ति तीन प्रकार की होती है --सात्विक , राजसी और तामसी । आइये देखते हैं कैसे उत्तपन्न होती है यह प्रवृत्ति।
कर्म करने से ही मनुष्य की प्रवृत्ति का पता चलता है ।
गीतानुसार --पूजा करने की श्रद्धा , आहार , यज्ञ , तप और दान --मनुष्य की प्रवृत्ति दर्शाते हैं । ये सब तीन प्रकार के होते हैं --सात्विक , राजसी और तामसी।
पूजा करने की श्रद्धा :
सात्विक : एक ही भगवान को सर्वव्यापी मान कर श्रद्धा रखते हैं ।
राजसी : देवी देवताओं की पूजा करते हैं ।
तामसी : शरीर को कष्ट देकर , भूत प्रेतों की पूजा करते हैं ।
सात्विक : जिसके खाने से देवता अमर हो जाते हैं । मनुष्य में बल पुरुषार्थ आये । आरोग्यता , प्रीति उपजे । दाल,चावल , कोमल फुल्के , घृत से चोपड़े हुए , नर्म आहार ।
राजसी : खट्टा , मीठा , सलुना , अति तत्ता , जिसे खाने से मुख जले , रोग उपजे , दुःख देवे ।
तामसी : बासी , बेस्वाद , दुर्गन्ध युक्त , किसी का झूठा भोजन ।
यज्ञ :
सात्विक : शास्त्र की विधि से , फल की कामना रहित , यह यज्ञ करना मुझे योग्य है , यह समझ कर किया गया यज्ञ सात्विक कहलाता है ।
राजसी : फल की वांछा करते हुए , भला कहाने को , दिखावा करने को किया गया यज्ञ ।
तामसी : बिना शास्त्र की विधि , बिना श्रद्धा के , अपवित्र मन से किया गया यज्ञ ।
दान :
सात्विक : बिना फल की आशा , उत्तम ब्राह्मण को विधिवत किया गया दान ।
राजसी : फल की वांछा करे , अयोग्य ब्राह्मण को दान करे ।
तामसी : आप भोजन प्राप्त कर दान करे , क्रोध या गाली देकर दान करे , मलेच्छ को दान करे ।
तप :
सात्विक : प्रीति से तपस्या करे , फल कुछ वांछे नहीं , इश्वर अविनाशी में समर्पण करे ।
राजसी : दिखावे के लिए , अपने भले के लिए तप करे , अपनी मानता करावे ।
तामसी : अज्ञान को लिए तप करे , शरीर को कष्ट पहुंचाए , किसी के बुरे के लिए तप करे ।
यहाँ तप चार प्रकार के बताये गए हैं --देह , मन , वचन और श्वास का तप।
देह का तप : किसी जीव को कष्ट न पहुंचाए ।
स्नान कर शरीर को स्वच्छ रखे , दन्त मंजन करे ।
गुरु का सम्मान , मात पिता की सेवा करे ।
ब्रह्मचर्य का पालन करे ।
ब्रह्मचर्य : यदि गृहस्थ हो तो परायी स्त्री को न छुए । यदि साधु सन्यासी हो तो स्त्री को मन चितवे भी नहीं ।
मन का तप : प्रसन्नचित रहे । मन को शुद्ध रखे । भगवान में ध्यान लगावे ।
वचन का तप : सत्य बोलना । मधुर वाणी --हाँ भाई जी , भक्त जी , प्रभु जी , मित्र जी आदि कह कर बुलावे ।
गायत्री पाठ करे । अवतारों के चरित्र पढ़े ।
श्वास तप : भगवान को स्मरण करे । भगवान के नाम का जाप करे ।
इस तरह मनुष्य के सभी कर्म तीन प्रकार के होते हैं --सात्विक , राजसी और तामसी ।
इन्ही कर्मों का लेखा जोखा बताता है कि आप सात्विक हैं , राजसी हैं या तामसी प्रवृत्ति के मनुष्य हैं ।
तो क्यों न आज यह अंतर्मंथन हो जाये और आप जाने अपने बारे में । किसी को बताने की ज़रुरत नहीं है , बस अपने लिए ही ।
अच्छा संदेश ,अपने अंदर झांकने के लिये ।
ReplyDeleteयहाँ से कॉपी पेस्ट करके ठीक कर दिजिये:
ReplyDeleteयज्ञ
-बाकी हम क्या निकले..शरम सी आ रही है बताने में :) आप तो जानते ही हैं. :)
अनूठा विषय पर चिंतन करा दिया मगर हर एक की कोशिश रहेगी की वह सात्विक प्रवृत्ति का है ...मैंने भी यही गणना की है ... :-)
ReplyDeleteरोचक जानकारी ...!
ReplyDeletesabane khud men jhaank liya ... yahi tippani dekar nikal lena hi theek hoga ...
ReplyDeleteआप तो हर विधा में कमाल की रचना करते है..ऐसी जानकारी आज कल बहुत कम ही मिल पाती है..धन्यवाद जी
ReplyDeleteडॉक्टर साहब,
ReplyDeleteआपने जो लिखा है, उसके हिसाब से अपनी प्रवृत्ति राजसी बैठती है...कोशिश करता हूं राजसी से सात्विक की ओर बढ़ा जाए....
प्रवृत्ति को भी कॉपीपेस्ट कर लीजिए...
जय हिंद...
मुझमें तो यह तीनों प्रवृत्तियां मौजूद हैं.... और बहुत ही डीपली रूटेड हैं.....
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट, आपका बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteओह ..आपने तो अंतर्मंथन पर अंतर्मंथन करवा दिया....
ReplyDeleteस्वयं को जानना और पहचानना अच्छा लगा...सुधार ज़रूरी है :)...
रोचक जानकारी ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर जी हम ने अपने अंदर आप के आईने से झाकां तो थोडी सी गडबड लगी.....लेकिन तस्लली हुयी, धन्यवाद
ReplyDeleteमनुष्य की प्रवृति: यह बड़ा गहन विषय है...भारत में - जो की अनादिकाल से योगियों का देश रहा है - यहाँ समय समय पर उच्च विचार और साधारण जीवन पर जोर दिया जाता रहा है,,, और मानव जीवन का उद्देश्य जानने के प्रयास किये जाते रहे हैं... udaharanataya रहीम ने कहा, "rahiman देखि बड़ेंन को लघु न दीजे छाडी / जहां काम आये सुई कहा करे तरवारी."
ReplyDeleteयानि कोई भी वस्तु या प्राणी परमात्मा की दृष्टि में आवश्यक कार्य कर रहा है,,, और उसे केवल पहुंचे हुए ही जान सकते हैं ...गीता में, इस कारण, मानव की कार्य प्रणाली को समझने के लिए कर्म को तीन भाग में बांटा गया है,,, और यह भी कहा गया है कि ये तीनों कर्म हर किसी को करने हो होंगे, किन्तु ज्ञानी वो है jo कर्म कर phal की ichchha naheen karta...
तीन bhaag mooltah हर वस्तु या प्राणी के ek din astitv में aa (brahma के antargat कार्य), kuchh smay yahaan vyateet कर (vishnu या krishn के antargat कार्य) और phir इस stej se chale jaane (Shiv के antarget कार्य) के कारण maane gaye,,,
ReplyDeleteसुंदर पोस्ट.
ReplyDeletelabhkaaree post..........
ReplyDeleteमाननीय ! आपको केवल ये ज्ञान है कि भोले बाबा का लिंग ऋषियों के श्राप के कारण गिरा था लेकिन सच्चाई ये है कि उसे ऋषियों ने डंडे पत्थर मारकर गिराया था . तभी से भारतवासियों से दुखी होकर भोले जी भारत छोड़ कर चीन चले गए थे और मानसरोवर पर रहने लगे थे . हिन्दू ये भी मानते हैं कि भोले भंडारी काबा में रहते हैं . हो सकता है कुछ काल के लिए वहां भी रहे हों ? यहाँ पहले लिंग काटा जाता है , लिंग वाले बाबा जी को कष्ट पहुँचाया जाता है और फिर उसकी पूजा कि जाती है .
ReplyDeleteहमारा भारत महान है क्योंकि यहाँ उस चीज़ की पूजा होती है जिस पर पुरुष की महानता टिकी होती है . http://vedquran.blogspot.com/2010/07/way-for-mankind-anwer-jamal.html?showComment=1280147480789#c4309971045506993147
बहुत ही तुलनात्मक सन्देश .... आभार
ReplyDeleteअभी टी वी पर समाचार आ रहा था --ब्रेकिंग न्यूज --देहरादून में साईं बाबा की मूर्ती से पानी टपकने लगा । भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी , आशीर्वाद पाने के लिए ।
ReplyDeleteइन भक्तों की प्रवृति को क्या कहेंगे ?
सुंदर परिभाषायें ।
ReplyDeleteडा. दराल जी, इसे 'काल का प्रभाव' कहा गया है और वर्तमान को कलियुग जाना गया, अपितु 'घोर कलियुग', जिसमें आम आदमी की अपनी बुद्धि का hraas ho jaata है,,, jis kaaran wo pashu smaan jhund mein jama ho sahi gyaan se door le jaaya jaata है kisi guru ya guruon dwaara nij swarth ke kaaran, jaise bhed yadi gaddhe mein kude to shesh bhedein bhi gaddhe mein kood jaati hain,,, और kewal kuchh hi log apna mansik santulan na kho satya को samajhne का prayaas kar paate hain...
ReplyDeleteइतना गहन अध्यनन और इतनी गहरी बातें अच्छी लगी. बेहतरीन पोस्ट
ReplyDeleteडॉ साहब , नमस्कार
ReplyDeleteबहुत ही आंदोलित कर देने वाला
चिंतनीय और मननीय विषय दिया है आपने
आत्म मंथन भी तो हर एक के बस की बात नहीं ...
आपकी नेक सोच पर नाज़ होने लगा है
अभिवादन स्वीकारें
बहुत ही बढ़िया और रोचक जानकारी प्राप्त हुई आपके पोस्ट के दौरान!
ReplyDelete@ KAMDARSHEE ji
ReplyDeleteनिराकार ब्रह्म के प्रतिरूप 'शिवलिंग' को मानवीय अंग पर सीधा पहुँचने से पहले भला होता यदि किसी ने शिव की परिभाषा की ओर भी ध्यान दिया होता:
शिव त्रिपुरारी हैं - तीनों लोक; आकाश, पाताल और धरा, के स्वामी)...
Unke maathe पर chandrama hai (jo har prithvi par rahne waale pranee ke bhi maanaa ja sakta hai - prithvi, mangal grah aadi ke atirikt);
Wo gangadhar hain (jisse sanket kewal prithvi ki ore hai, aur kewal paroksh roop mein manav ke bheetar bhi sukshamanaa naadi ke roop mein);
unke अंग mein shmashaan की bhasm lipti hai (prithvi 'meiryulok' भी kahlati hai, jahaan har praani की antatogatva mrityu nischit hai)...
शिव yoon prithvi को samjha ja sakta hai jiske hridaya mein agni hai jo jwalamukhi के phatne पर धरा पर yada kada drishtigochar hoti rahti hai - pighli chattan, lava, के roop mein,,, और jise 'Hindu' manyata ka 'agni' yaani shakti ka 'shivling' samjha ja sakta hai...
मुझे खुद के स्प्लिट पर्सनैलिटी होने का आभास हो रहा है। कभी कोई वृत्ति हावी हो जाती है तो कभी कोई और।
ReplyDeleteएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं!
बहुत अच्छी और गहराई की बातें लिखी हैं आपने.
ReplyDeleteमुझे तो समझ में ही नहीं आ रहा हैं कि--आप डॉक्टर हैं या कोई पहुंचे हुए संत-महात्मा????
बहुत उम्दा और बेहतरीन पोस्ट के लिए धन्यवाद.
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डॉक्टर साहब, अगर आपके पास वक़्त हो तो कृपया अगली पोस्ट आप दस्त-लूज़ मोशन पर लिखिएगा.
ReplyDeleteआपने बहुत सी बीमारियों, शारीरिक समस्याओं पर ब्लॉग लिखा हैं, कृपया इस बार आप दस्त-लूज़ मोशन पर लिखिएगा. जैसे--दस्त लगने के कारण, कारण, व वजह, दस्त लगने से होने वाले नुक्सान, दस्त के रोकथाम, निवारण के उपाय आदि-आदि.
धन्यवाद.
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कर्मों का पूरा लेखा-जोखा...शानदार पोस्ट.
ReplyDeleteगंभीर प्रयास
ReplyDeleteSundar dhang se gyanvardhak jaankari prasuti ke liye aabhar
ReplyDeleteशुक्रिया इस उत्तम जानकारी के लिए.
ReplyDeleteउपर्युक्त में से कोई नहीं ज्यादा ठीक है... :P
ReplyDeleteAaj to Dr sahab ekdam choti par pahunch gaye. Par har ek men teeno gun thode bahut vidyman hote hee hain.
ReplyDeleteडा. दराल जी, एक 'हिन्दू' के लिए संख्या '३' का महत्त्व 'ॐ' द्वारा (जिसे शब्दों में 'ब्रह्मनाद' कहा गया और जिसे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का 'बीज मंत्र' माना गया) अनादिकाल से सांकेतिक भाषा में दर्शाया जाता रहा है,,, और शक्ति को इसी प्रकार नारी के रूप में दर्शाया गया है: उदाहरंणतया माँ काली, 'शिव के हृदय में स्थित', यानि पृथ्वी के केंद्र में स्थित, गुरुत्वाकर्षण को दर्शाती है; इत्यादि इत्यादि...पृथ्वी पर तीन तरह की चट्टानें है, तीन तरह की मिटटी, आदि,,, और पदार्थ तीन रूप में पाया जाता है (ठोस, तरल, और गैस)...
ReplyDeleteआधुनिक वैज्ञानिक भी जान पाए हैं की ब्रह्माण्ड एक गुब्बारे समान (गोल) आकार में अनादिकाल से 'विकास के पथ पर अग्रसर' है (एक बिंदु से आरंभ कर?), यानि बढ़ता जा रहा है,,, जबकि उसके भीतर व्याप्त साकार रूप भी बढ़ रहे हैं, और साथ साथ उनमें काल के साथ परिवर्तन हो रहे हैं... और आधुनिक वैज्ञानिकोँ के अनुसार हमारी ४ अरब से अधिक आयु वाली सुंदर पृथ्वी आरम्भ में एक आग का गोला थी जिसमें 'जीवन' ३ अरब से अधिक वर्ष पहले अरम्भ हुआ और मानव कुछ लाख वर्ष पहले ही यहाँ आया (यानि दुनिया को घुमाने में आदमी का हाथ नहीं है?!) ,,, जबकि कुछ पहुंचे हुए योगियों के अनुसार श्रृष्टि की रचना शून्य काल में 'नादबिन्दू' द्वारा हुई, जिसे भूतनाथ शिव/ योगेश्वर विष्णु आराम से बार-बार देख रहे हैं (एक फिल्म के समान, जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन को 'प्रभु की माया' कहा गया! और इस प्रकार कह सकते हैं की अज्ञानतावश मानव सत्य को वर्तमान में जान पाने में असमर्थ है)...
बहुत ही विस्तारपूर्वक और महत्वपूर्ण जानकारी....संग्रहणीय पोस्ट
ReplyDeleteरोचक और विचारणीय पोस्ट । मगर जो कुछ मे सात्विक असुर कुछ मे राजसी और कुछ मे तामसी हो उसे क्या कहेंगे?। आज के समय मे कोई सात्विक रहना बहुत मुश्किल काम है मगर फिर भी बहुत से लोग सात्विक हैं।विचारणीय पोस्ट। बधाई
ReplyDeleteनिर्मला जी , बेशक सात्विक प्रवृति के लोग अब ढूँढने से भी नहीं मिलते । लेकिन थोडा प्रयास करें तो कुछ गुणों को तो अपना ही सकते हैं ।
ReplyDeleteडा. दराल जी, यह तो आधुनिक वैज्ञानिक (खगोलशास्त्री) भी मानते हैं कि प्राचीन भारत में काशी के पंडित पहुंचे हुए खगोलशास्त्री रहे होंगे क्यूंकि जो गणना आज वो कंप्यूटर की सहायता से करते हैं, उन्होंने वो सब अपनी उँगलियों पर ही कर लिया होगा और पत्रे बाद में बने होंगे ! किन्तु जैसे संकेत मिलते हैं, मानव की कार्य प्रणाली और उसकी प्रवर्त्ती को उन्होंने सौर-मंडल के सदस्य सूर्य व ग्रहों आदि से जोड़ा - जैसे हमारी गैलेक्सी का केंद्र अनगिनत तारों आदि को घुमाता है, वैसे ही उसकी नक़ल कर जैसे सूर्य सौरमंडल के सदस्यों को, और उसके सर जैसे पृथ्वी चन्द्रमा को घुमाती है... इत्यादि...
ReplyDeleteउम्दा सार्थक प्रस्तुति...आभार
ReplyDeleteजैसा आपने बिना किसी पृष्ठभूमि के आदमी की प्रवृत्ति के तीन मूल भाग सात्त्विक, राजसिक, और तामसिक बताया उसे समझने में 'आकाश' तत्व, पांच में से 'शिव के एक भूत', का ज्ञान सहायक है,,, क्यूंकि 'कृष्ण के गीत', गीता, भी मानव को एक उल्टा वृक्ष दर्शाती है जिसकी जडें 'आकाश' यानि सौर-मंडल में बतायी गयी हैं - ऐसा खगोलशास्त्र के पंडितों ने भी जाना,,, और इस प्रकार से तीनों प्रवृत्तियों का सार #१ गैलेक्सी के केंद्र (सात्त्विक) , #२ सूर्य (पृथ्वी पर प्रकाश का एक-मात्र स्रोत यानि राजा समान से 'राजसिक'), और #३ पृथ्वी (शक्ति और प्रकाश के लिए सूर्य के ऊपर निर्भर ग्रह आदि, तामसिक प्रवृत्ति, (जैसा शिव को और उनके भूतों को भी दर्शाया जाता है) समझी जा सकती हैं,,, किन्तु पृथ्वी को यानि शिव को भोलानाथ भी माना जाता है और ब्रह्माण्ड का सार भी, जैसे भारतीय खगोलशास्त्री पृथ्वी को ब्रह्माण्ड का केंद्र माना करते आये थे,,, और जिसे 'आधुनिक वैज्ञानिक', हमें सत्य के मार्ग से भटकाने के लिए, हमारी मूर्खता!
ReplyDeleteदराल जी ,
ReplyDeleteआप भी न.....?
अब इन प्रवृत्तियों के बारे पढ़ा तो था ...पर पहले तो हमेशा बच के निकलते रहे पर आज तो आपने धर दबाचा .....
समीर जी की टिपण्णी से मुस्कुरा रही हूँ .....समीर जी यूँ न चलेगा ....देखिये खुशदीप जी ने कितनी ईमानदारी से
अपनी प्रवृत्ति स्वीकार कर ली ....और सच कहूँ तो मैं भी अपने आप को उसी श्रेणी में रख रही थी ...
@साईं बाबा की मूर्ती से पानी टपकने लगा..
अरे वाह ...पहले दूध और अब पानी ....मंहगा हो गया न शायद ......हा...हा...हा......!!
हरकीरत जी , अधिकांश लोग इसी श्रेणी में आते हैं । फिर भी उनसे तो बेहतर हैं न जो इनसे भी नीचे हैं ।
ReplyDeleteखुद को पहचान लें , यही सही है ।
आज तो दूध की नदी भी बहती देखी , पुणे की सड़कों पर । जय भारत ।
Sangeeta ji ne bilkul sahi kaha
ReplyDeleteओह ..आपने तो अंतर्मंथन पर अंतर्मंथन करवा दिया....
एक बेहद उम्दा पोस्ट ..!
ReplyDeleteसोचने को विवश करती विचारणीय पोस्ट
ReplyDeleteaaj ke daur me jaha log khud ko doosron ki nazar se pahchanne ki koshish karte hai,wahan khud ko pahchanne ka uttam pryas.
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