पिछली पोस्ट में हमने जाना गाउटी आर्थराईटिस के बारे में । लेकिन सबसे ज्यादा कॉमन होती है --ओस्टियो आर्थराईटिस , जिसे डीजेनेरेटिव आर्थराईटिस भी कहते हैं । उम्र के बढ़ने के साथ साथ इसके होने की सम्भावना भी बढती जाती है । यह हाथ , पैर , स्पाइन, घुटने या कूल्हे के जोड़ में हो सकती है । जिससे चलने फिरने में तकलीफ होती है ।
क्या कारण हैं ?
अक्सर इसका कोई कारण नहीं होता । लेकिन ६० % लोगों को अनुवांशिक रूप से हो सकता है । इसलिए भाई बहनों और जुड़वां लोगों में ज्यादा होता है ।
इसके अलावा डायबिटीज , मोटापा , चोट और कुछ जन्मजात रोगों में होने की सम्भावना अधिक रहती है ।
इसमें होता क्या है ?
हमारे जोड़ों में दो हड्डियों के बीच एक कार्टिलेज होती है जो एक कुशन का काम करती है । उम्र के साथ साथ कार्टिलेज में प्रोटीन की मात्र घट जाती है जिससे उसके कोलेजन फाइबर्स टूटने लगते हैं । कार्टिलेज के नष्ट होने से सूजन आ जाती है और दोनों हड्डियाँ भी एक दूसरे पर रगड़ खाने लगती हैं । इससे दर्द होने लगता है और चलने फिरने में तकलीफ होने लगती है ।
यह रोग सबसे ज्यादा घुटने और हिप ज्वाइंट में होता है ।
लक्षण :
सबसे पहला लक्षण है --कुछ देर बैठे रहने के बाद उठने पर घुटने में दर्द होना । थोडा सा चलने या मालिश करने से दर्द ठीक हो जाता है । यदि आपको ऐसा महसूस होता है तो समझ लीजिये रोग की शुरुआत हो चुकी है ।इसी तरह सोकर उठने पर भी कुछ देर के लिए घुटनों में दर्द हो सकता है ।
बाद में जोड़ में लगातार दर्द होना , सूजन , चलने में दिक्कत होना या लंगड़ा कर चलना तथा टांगों में deformityहो सकती है जिससे घुटने बाहर को झुकने से बो -लेग्ड विकार हो सकता है ।
हाथों की उँगलियों में जोड़ों में हड्डी बढ़ सकती है और उंगलियाँ सूजी सी नज़र आती हैं ।
अक्सर देखा गया है कि जोड़ों में दर्द intermittentlyहोता है यानि बीच बीच में अपने आप ठीक भी हो जाता है ।
कई बार ज्यादा रोग होने पर भी दर्द नहीं होता , या फिर शुरू में ही ज्यादा दर्द हो सकता है ।
यानि लक्षण सभी के अलग हो सकते हैं ।
ज्यादा रोग बढ़ने पर सारी मूमेंट ही बंद हो सकती है ।
निदान :
रोग का निदान रोगी को देखकर ही हो जाता है । सुनिश्चित करने के लिए जोड़ों का एक्स रे किया जाता है जिसमे ज्वाइंट स्पेस कम नज़र आएगी और न्यू बोन फोरमेशन दिखाई देगी । बोनी सपर भी दिखाई दे सकते हैं । लेकिन इसे डॉक्टर के लिए छोड़ दीजिये ।
उपचार :
अक्युट अटैक --जोड़ को आराम दो । यानि गति विधि कम करें । दर्द निवारक दवा लें ।
जीवन शैली --
वज़न कम करें।
डायबिटीज या बी पी हो तो उसको कंट्रोल करें ।
नियमित व्यायाम करें । इतना ही करें जितने से तकलीफ न हो ।
जोगिंग से वाकिंग बेहतर है । तेज़ तेज़ चलने से सबसे ज्यादा फायदा होता है ।
स्विमिंग और साइकलिंग भी अच्छा व्यायाम है ।
जोड़ को सहारा देने के लिए छड़ी का इस्तेमाल किया जा सकता है ।
जोड़ों पर दबाव न पड़े इसके लिए यूरोपियन लेट्रिन का इस्तेमाल करें ।
दर्द निवारण :
दर्द के लिए पैरासिटामोल की गोली सबसे उपयुक्त रहती है । पूरे दिन में ८ गोलियां तक खाई जा सकती हैं । इसे खाने के बाद लेना चाहिए । इसके अलावा और भी कई दर्द निवारक दवाएं होती हैं , लेकिन उन्हें डॉक्टर की देख रेख में ही लेना चाहिए ।
दर्द निवारक दवा का सबसे ज्यादा कॉमन साइड इफेक्ट होता है -पेट में जलन , एसिडिटी , अल्सर , ब्लीडिंग । इसके लिए ज़रूरी है कि दवा खाने के बाद ली जाये ।
फिजियोथेरापी :
सिकाई करने से दर्द में आराम आता है और मसल्स रिलेक्स होती हैं । सिकाई करने के लिए पैराफिन वैक्स , गर्म पानी की बोतल का इस्तेमाल किया जा सकता है या कपडे से भी की जा सकती है ।
दर्द निवारक क्रीम लगाने से भी दर्द में आराम आता है । लेकिन क्रीम लगाकर सिकाई नहीं करना चाहिए वर्ना त्वचा में जलन और फफोले बन सकते हैं ।
फिजियोथेरापिस्ट के पास तरह तरह के उपकरण होते हैं सिकाई करने के लिए , जिसके लिए सेंटर पर जाकर या होम सर्विस भी कराई जा सकती है ।
घरेलु व्यायाम :
इस रोग में सम्बंधित जोड़ों का व्यायाम करने से लम्बे समय के लिए काफी फायदा होता है ।
घुटनों के लिए सबसे आसान और उपयोगी तरीका है -- बेड पर पैर लटकाकर बैठें , एक टांग को धीरे धीरे सीधा करें , दस सेकण्ड तक रोके रहें , फिर धीरे धीरे नीचे लायें । अब दूसरी टांग को उठायें और इसी तरह करें । यह प्रक्रिया दस बार सुबह शाम करें ।
याद रहे , इसे धीरे धीरे ही करना है ।
कुछ समय बाद यही व्यायाम , पैर पर कुछ बोझ लटकाकर भी किया जा सकता है ।
इससे टांगों की मसल्स में मजबूती आती है और जोड़ों में लचीलापन ।
सर्जरी :
आम तौर पर सर्जरी की जरूरत नहीं होती है । लेकिन ज्यादा तकलीफ होने पर या जब उपरोक्त उपायों से आराम न आये तो दूसरे उपाय हैं :
हायालुरोनिक एसिड के इंजेक्शन , जोड़ में लगाये जाते हैं ।
आर्थ्रोस्कोपी
ओस्टियोटमी
टोटल ज्वाइंट रिप्लेसमेंट : इसमें पूरा जोड़ अर्थ्रोस्कोपी निकाल दिया जाता है और इसकी जगह प्रोस्थेटिक जोड़ लगा दिया जाता है । इससे दर्द पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है । लेकिन जोड़ में ताकत उतनी ही रहती है ।
याद रखिये ज्वाइंट रिप्लेसमेंट का मुख्य उदेश्य दर्द से छुटकारा दिलाना है न कि आप को धावक बनाने का। यानि इसके बाद भी गति विधि सीमित ही रह सकती हैं ।
बचाव : में ही भलाई है । इसलिए वज़न कम रखिये । नियमित व्यायाम करिए । तकलीफ होने पर डॉक्टर की सलाह मानिये ।
नोट : महिलाएं कृपया ध्यान दें । यह रोग महिलाओं को अपेक्षाकृत ज्यादा होता है क्योंकि महिलाएं आम तौर पर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा निष्क्रिय होती हैं । हालाँकि इक्कीसवीं सदी के पुरुष भी कम निष्क्रिय नहीं रहे । इसलिए अब पुरुषों में भी यह रोग बढ़ने लगा है । इसलिए जहाँ तक हो सके , सक्रियता बनाये रखें ।
नोट : महिलाएं कृपया ध्यान दें । यह रोग महिलाओं को अपेक्षाकृत ज्यादा होता है क्योंकि महिलाएं आम तौर पर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा निष्क्रिय होती हैं । हालाँकि इक्कीसवीं सदी के पुरुष भी कम निष्क्रिय नहीं रहे । इसलिए अब पुरुषों में भी यह रोग बढ़ने लगा है । इसलिए जहाँ तक हो सके , सक्रियता बनाये रखें ।
अच्छा लगा ज्ञान वर्धक लेख अच्छा लगा
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी है। कृपया आप मुझे अपने ब्लॉग का ईमेल सब्सक्रिप्सन दीजिए।
ReplyDeletegirijeshraoatgmaildotcom
बेहतरीन उपयो्गी पोस्ट
ReplyDeleteयह पोस्ट ब्लाग4वार्ता पर भी है
दराल साहब! लगता है यह रोग आरंभ हो चुका है। शर्करा और रक्तचाप सामान्य हैं। लेकिन घुटनों के पास एक निश्चित बिंदु पर दर्द होने लगा है। पालथी मार कर बैठता हूँ, कम से कम भोजन करने के समय तो, उठने पर तकलीफ होती है। थोड़ा चलने पर ठीक हो जाता है। लगता है व्यायाम के अलावा कोई चारा नहीं है। किसी फीजियो थेरेपिस्ट से मिलना उचित रहेगा?
ReplyDeleteएक आम बीमारी पर बहुत अच्छा लेख ,आपने लिखा है सक्रियता बनाये रखें । शायद हमारी आजकल की जीवन शैली इसके लिये काफी हद तक जिम्मेदार है । अंत में एक निवेदन- करीम को क्रीम कर दीजिये ।
ReplyDeleteद्विवेदी जी , सही कह रहे हैं , शुरुआत हो चुकी है । लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है । आपका वज़न मुझे ज्यादा लगता है । अगर आपकी हाईट १७० सेंटीमीटर है तो १७०-७०=७० यह आपका अधिकतम वज़न होना चाहिए । थोड़ा वज़न कम करने से ही काफी फर्क पड़ेगा । भारतियों में ज्यादा मोटापा पेट पर होता है । पेट को कम करें । अब इसके लिए थोड़ी तो मेहनत करनी पड़ेगी । सबसे बढ़िया है ,पार्क में जाकर ३-४ किलोमीटर की तेज़ वाक करें ।
ReplyDeleteशुक्रिया अजय कुमार जी । एक आध गलती हो ही जाती है । त्रुटि सुधार कर दिया है ।
गिरिजेश जी , कोशिश करता हूँ । तरीका देखना पड़ेगा ।
आप ने इस बार दुखती रंग पर हाथ रख ही दिया -यी बताईये वजन कैसे कम करें ?
ReplyDeleteअरविन्द जी , एक ही तरीका है । इनपुट काम करिए , आउटपुट बढ़ाइए ।
ReplyDeleteयानि खाना कम करें , विशेषकर वसा और मीठा जिनमे ज्यादा कैलरीज होती हैं । हरी सब्जियां और सलाद ज्यादा खाएं । क्या आप एक बार में दो या तीन से ज्यादा रोटियां खाते हैं ? यदि हाँ तो उम्र के हिसाब से ज्यादा खाते हैं ।
दूसरी बात --रोज कम से कम ३-४ किलोमीटर की सैर , गाड़ी में नहीं , पैदल --वो भी तेज़ तेज़ चलकर । ३-४ किलो वज़न कम होते ही , बड़ा आराम महसूस होगा ।
जोड़ों के दर्द पर जागरूकता लाने वाला लेख...
ReplyDeleteदराल सर, इस तरह के लेखों को संकलन के रूप में किताब लाई जाए तो लोगों का बड़ा फायदा होगा...
जय हिंद...
बहुत उम्दा जानकारी दी डॉक्टर साहब आपने!!
ReplyDeleteबेहतरीन उपयो्गी पोस्ट.
ReplyDeleteवाह डॉ सर !
ReplyDeleteबिना फीस बढ़िया और बेहद उपयोगी लेख लिखने के लिए बधाई !
बहुत अच्छी जानकारी....आभार
ReplyDeleteजानकारी बहुत बढ़िया है! धन्यवाद!
ReplyDeleteकेवल सूचना के लिए में बता रहा हूँ कि अपनी कम वजनीय पत्नी, और तीन बच्चों की माँ, को ३० वर्ष की उम्र तक पहुँचते 'रिउमेतोइद आर्थराइटिस' की शुरुवात का पता चला जब हम एक पिछड़े पहाड़ी इलाके में थे... हमारे प्रोजेक्ट के डॉक्टर ने अपनी ओर से दवाइयां दीं किन्तु ठंडा और अधिक वर्षा क्षेत्र होने के कारण शायद बीमारी बहुत रफ़्तार से बढ़ी,,, और रेफर करने पर स्तेरोइड दिया गया एक माह के लिए बोलकर जो दुर्भाग्यवश छूट नहीं पाया अनेक प्रयास करने पर भी ('७८-'८४ के दौरान) और स्तेरोइड दिल्ली लौट डॉक्टर की निगरानी में '९९ तक चला और उसके साथ-साथ, उसके कारण शायद, कई अन्य लगभग असहनीय तकलीफें भी सामने आयीं...
एक डाक्टर के व्यकितव के इतने आयाम हो सकते है,ये आज आपके ब्लॉग पर आकर पता चला..पूरा ब्लॉग पढ़ डाला !सच में आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी है..साथ ही में सरल हृदय भी ..तभी तो निस्वार्थ इतनी काम की बातें बताये जा रहे है!कभी एक आलेख कमर दर्द भी लिखें...
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दी आप ने, अगर कुछ साल पहले पता होता तो मां का इलाज जरुर करवा लेता, बाकी वजन कम करने का तरीका बहुत आसान है,मेरा कद १६७ सेंटीमीटर है, ओर मेरा वजन ९० किलोग्राम हो गया था, पेट भी खुब लाला की तरह से बढ गया था, बहुत कुछ किया लेकिन पेट ओर वजन कम नही हुआ... फ़िर मैरे बच्चो ने बताया कि यह गोरे तो शाम को चार बजे ही खाना खा लेते है, ओर हम सब भारतिया रात को सोने से पहले खाते है, ओर दो कदम घुम आये आती बार फ़िर से बाजार से कुछ खा लिया तो वजन केसे कम हो... अब दो साल से हम रात का खाना शाम को ६ बजे खा लेते है... मेरा वजन अब ७५ किलो के आस पास हो गया है, अगर आप मै से कोई इसे कर के देखे तो हो सकता है आप का वजन भी कम हो जाये, हमारे घर मै सभी का वजन कम हो गया, फ़िर रात को अगर कुछ खाना हो तो फ़ल वगेरा खुब खा सकते है.
ReplyDeleteइस जानकारी के लिये आप का धन्यवाद
खुशदीप जी , आइडिया तो बढ़िया है । लेकिन पता नहीं प्रकाशक कहाँ से मिलेगा । वैसे एक साल बाद इतने लेख हो जायेंगे कि किताब तो अपने आप ही बन जाएगी ।
ReplyDeleteजे सी जी , दुर्भाग्यवश Rheumatoid आर्थराईटिस सबसे खराब रोगों में से एक है । इसका कोई शर्तिया और संतोषजनक इलाज भी नहीं ओता । steroids से बेशक बहुत नुकसान होते हैं ।
रजनीश जी , शुक्रिया । कमर दर्द बहुत ही कॉमन रोग है । इसलिए जल्दी ही लिखूंगा ।
राज जी , बहुत सही कहा अपने । रात का खाना सोने से कम से कम दो घंटे पहले खा लेना चाहिए ताकि पाचन पूरा हो सके । साथ ही कैलरीज का भी ध्यान रखना चाहिए ।
small frequent meals are better than two heavy meals .
डॉ साहब , नमस्कार
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी और उपयोगी जानकारी दी है
अपने अपने इस आलेख में
आप मानव - हित में सोचते हैं
भगवान् आपको भरपूर आशीर्वाद दें,,, यही दुआ करता हूँ
( कृपया अपना इ-मेल id दें )
वात गजांकुश रस, महायोगराज गुग्गुल की
ReplyDeleteदो-दो गोली सुबह शाम दूध के साथ लेने!
और रास्ना सप्तक क्वाथ
रोज सुबह लेने से बहुत लाभ होता है!
जोड़ों में तो नहीं हाँ रीड की हड्डी में दर्द हो रहा है आजकल.
ReplyDeleteबारिश ने सुबह की टहलान भी बंद कर दी है. ब्लागिंग ने ऑफिस के बाद भी कुर्सी से चिका दिया है..खतरे की घंटी बज चुकी लगती है..!
..उम्दा पोस्ट
उम्दा जानकारी
ReplyDeleteमुफलिस जी , शुक्रिया ।
ReplyDeleteमैं तो खुद आपकी इ-मेल आई डी ढूंढ रहा था ।
लीजिये --tsdaral@yahoo.com
पांडे जी एक बार ऑर्थो स्पेशलिस्ट को दिखा लीजिये ।
बधाई इस प्रस्तुति के लिए
ReplyDeleteकुछ मेडिकल प्रकाशक हैं उनसे संपर्क कर सकते हैं
पारस मेडिकल पब्लिशर हैदराबाद
parasmedpub@hotmail.com
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं
डॉ. साहब आज फिर एक सार्थक चर्चा बीमारी और उपचार के बारे में काफ़ी कुछ जो हम स्वभाविक रूप से नही जान सकते है..वो आप बहुत ही सरलता से बता देते है..जानकारी लाभप्रद है...प्रस्तुति के लिए आभार
ReplyDeleteडाक्टर साहब आपका ब्लॉग तो मसीहा बनता जा रहा है .... उम्र के साथ साथ आती बीमारियों के प्रति न सिर्फ़ आप जागरूकता बड़ा रहे हैं ... बल्कि उनका उपचार भी बता रहे हैं .... बहुत बहुत शुक्रिया .....
ReplyDeleteबेहतरीन ब्लॉग
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी जानकारी.
ReplyDeleteaapne bahut upyogi jaankaari di hain.
ReplyDeletelekin, kabhi-kabhi darr bhi lagtaa hain ki.........
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
बहुत उपयोगी जानकारी है। कई बार वजन कम किया एक बार तो 18 किलो कम किया था मगर क्या करूँ ये जीभ ही साथ नही देती बस दो चार साल बाद बात वहीं आ जाती है बहाना होता है व्यस्तता आदि। अब तो बहाना ही बहुत अच्छा है ब्लागिन्ग के कारण व्यायाम को समय नही मिलता। हा हा हा। और इस लिये भी निश्चिन्त हो जाती हूँ कि एक बार कहीं पढा था कि मोटे आदमी बीमारी मे जल्दी रिकवर करते हैं --- आगे आगे बीमारी की उम्र ही है\ मगर आपको बता दूँ मुझे कोई मोटापे वाली बीमारी नही है। मतलव सूगर बी पी या दिल की बीमारी। भार कम करने मे एक अहम बात देखी है कि खाने के बीच मे अन्तराल अधिक होना चाहिये जैसे भाटिया जी ने कहा है। बिलकुल मेरा आजमाया हुया है क्यों कि जब आप कुछ खाते नही मगर शरीर को काम करने मे ऊर्जा चाहिये होती है तो ऊर्जा वसा से मिलती है इस लिये शरीर अन्दर की वसा को खर्च करता है ऐसे मे अगर भूख लगे तो सलाद हरी सब्जियां आदि खाई जा सकती हैं। उपयोगी जानकारी के लिये धन्यवाद।
ReplyDeleteमैं कहना चाहूँगा कि क्यूंकि डॉ दराल एलोपथ हैं वे इसी चिकित्सा पद्दति के विषय में सही बता पाएंगे, या कहिये अपने को सीमित रखेंगे,,, जबकि हर कोई शायद जानता है कि अनेकों चिकित्सा पद्दतियां सैकड़ों वर्षों से भारत में अपनाई जा रहीं हैं, जिनमें से होम्योपेथी और आयुर्वेदिक पद्दतियां आज भी काफी हद तक अपनाई जाती हैं, भले ही किसी से भी मरीज़ को लाभ न पहुंचे - सीमित ज्ञान के कारण शायद...
ReplyDelete'एक्यूपंकचर', और 'जेम थेरेपी' मानव शरीर को और गहराई में अनुसंधान के आधार पर एक विलक्षण मशीन समान जान, वातावरण में उपलब्ध शक्ति के विभिन्न अंशों को, (जो रत्नादी के रंगों द्वारा झलकती है), बाहरी रूकावट के कारण भीतरी अंगों तक न पहुँच पाती हैं उनको भीतर सही स्थान तक पहुंचाने कि विधि समझी जा सकता है,,, और यहाँ भी सम्पूर्ण ज्ञान न होने के कारण संभव है सफलता न मिलती हो...
रंगों के विषय में मान्यता है कि विभिन्न रंग शरीर के किसी विशेष अंश को प्रभावित करते हैं, इस लिए यदि रत्न सही हों तो मानव जीवन के हर अंग को सही शक्ति द्वारा 'दुर्गा के कवच' का काम कर सकते हैं... इसमें और अनुसंधान की आवश्यकता है...
बहुत अच्छी जानकारी..आभार
ReplyDeletebahut accha blog hai aapka......... gyanvardhak v sath hee hitkaree.............
ReplyDeletebahut bahut aabhar..............
ओये होए .......!!
ReplyDeleteक्या ग़ज़ल लिखी है दराल जी ........कम से कम एक मेल तो कर दी होती पोस्ट के बाद तो पहली टिपण्णी मेरी होती ......!!
खैर ग़ज़ल पढ़ कर मन हरा -भरा सा हो गया ......टिपण्णी छोड़ आई हूँ ......अभी तो ग़ज़ल का स्वाद ले रही हूँ .....
इस पोस्ट पर फिर आती हूँ .......!!
...बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत शक्रिया हरकीरत जी ।
ReplyDeleteजे सी जी , यह सच है कि वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियाँ भी रोगों के उपचार में लाभदायक रहती हैं । कभी कभी एलोपेथी में भी सब रोगों का इलाज़ संभव नहीं हो पाता ।
लेकिन जीवन शैली का भी बहुत महत्त्व है ।
डा.साहब बहुत उपयोगी जानकारी दी है..अभी लेकिन एक मरीज अलग बीमारी का है उसके माइग्रेन की बीमारी का इलाज़ भी बताइयेगा.
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी ये जानकारी, मेरी सासु माँ के दोनों पैरों का टोटल ज्वाइंट रिप्लेसमेंट करवाने के पहले आपक से सलाह जरुर लूंगी
ReplyDeleteज्ञानवर्धक एवं उपयोगी पोस्ट
ReplyDeleteJaankari bahut achhi lagi.Thank you. mujhe bhi kamar mein dard hai L2L3.Sleep disk bhi hai jis se pero mein dard rehta hai. jaada khadi nahi reh paati hoon. Physiotherapy karva rahi hoon. Exercise kerti hoon. kya main kabhi normal chal paungi?
ReplyDeletePlease mujhe advice zarur dijiye Docter saheb.
Regards,
Darshana Kaur
दर्शनकौर जी , फिजियोथेरपी से निश्चित ही आराम आएगा । स्लिप डिस्क आम तौर पर पूरी तरह से ठीक हो जाती है । समय ज़रूर ज्यादा लगता है । इसलिए धैर्य रखिये , आप बिलकुल नॉर्मल चल पाएंगी । सुबह शाम दूध ज़रूर पीजिये ताकि कैल्सियम की कमी न हो।
ReplyDeleteVery informative post. Give herbal joint pain supplement a shot because of its effectiveness.
ReplyDeleteDon't look elsewhere get natural joint pain supplement at the comfort of your home. It provides long term relief.
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