बेशक आज हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं । तभी तो जो एक्सप्रेस हाइवेज , मॉल्स , एस्केलेटर्स , ऑटो मोबाइल्स और आधुनिक उपकरण आदि हम अंग्रेजी फिल्मों में ही देखते थे या किसी अप्रवासी भारतीय मित्र के स्वदेश आने पर उनकी कहानियों में ही सुनते थे , वही आज यहाँ भी आम बात हो गए हैं ।
अब ज़रा इसे देखिये --
ये है एक विकसित देश का हाइवे शहर की ओर जाता हुआ ।
और यह रहा दिल्ली से गुडगाँव जाता हुआ एक्सप्रेस हाइवे नंबर ८ ।
ज्यादा फर्क नहीं है । सच पूछिए तो यहाँ ड्राइव करते समय गर्व की अनुभूति होती है ।
यह जगमगाता मॉल --विकसित देश का ।
और यह रहा दिल्ली का एक मॉल । अंदर की जगमगाहट यहाँ भी कम नहीं है ।
लेकिन सारी समानताएं बस यहीं ख़त्म हो जाती हैं ।
क्योंकि भले ही यहाँ भी सब भौतिक सुख सुविधाएँ उपलब्ध हों , लेकिन अभी भी हमारा रहन सहन , रख रखाव , साफ़ सफाई क्या एक विकसित देश का मुकाबला कर सकती है ? अब ज़रा इसे देखिये --
ये है वहां के एक पोश इलाके का आवासीय क्षेत्र ।
और यह रहा दिल्ली का एक पोश रिहायसी क्षेत्र , जहाँ हम रहते हैं ।
दोनों जगह मकानों की कीमत लगभग एक जैसी है ।
वहां गाड़ी पार्क करना भी एक कला है । क्या मजाल कि पीले रंग की रेखा को पार कर जाएँ ।
यहाँ पार्किंग को लेकर सर फूटने तक की नौबत आ जाती है ।
वहां के डाउन टाउन के चौराहे का एक दृश्य। सामने लाल हाथ की बत्ती --पैदल लोगों को रुकने का इशारा । सब शांति से खड़े होकर बत्ती हरी होने का इंतजार कर रहे हैं । दायें हाथ को ट्रैफिक की बत्ती लाल है । इसलिए गाड़ियाँ रुकी हैं । पैदल यात्री पार कर रहे हैं । सब कुछ शांति से हो रहा है ।
यहाँ का एक चौराहा जहाँ प्रतिदिन लाखों पैदल यात्री सड़क पार करते हैं । ट्रैफिक के लिए बत्ती हरी है । लेकिन पैदल यात्री बीच सड़क पर चले जा रहे हैं ।
क्या इसे विकास कहेंगे ?
जिम्मेदार कौन ?
हमारी कानून या सामाजिक व्यवस्था ?
या फिर हमारी अनुशासनहीन मानसिकता ?
वज़ह कुछ भी हो , जब तक यह सब नहीं बदलेगा, हम विकासशील ही बने रहेंगे। कभी विकसित देश नहीं कहलायेंगे ।
Thursday, July 22, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
कुछ और समय लगेगा.
ReplyDeleteहम आज यहां तक पहुंच गए हैं तो कल वहां भी पहुंच जाएंगे.
जो आज वहां हैं वे भी कल यहीं थे जहां हम आज हैं.
एक सुंदर सकारात्मक पोस्ट है सर. आभार.
जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन है।
ReplyDeleteयही प्रजातंत्र है।
बहुत सही सवाल है । किसी भी देश को सुंदर तभी बना सकते हैं ,जब वहां की सरकार और नागरिक दोनों जागरूक हों ।
ReplyDeleteनियम और कानूनों की काट ढूँढना हमारा एक सूत्रीय लक्ष्य है!
ReplyDeleteदेश को विकसित बनाने के लिए सरकार के सथ ही साथ नागरिकों को जबाबदेह होना चाहिए .. अच्छी लगी आपकी ये पोस्ट !!
ReplyDeleteअभी हमें बहुत रास्ता पार करना है्, फिर भी वैसा शायद ही कर पाएं। हमारे शहर हजारों वर्ष पूर्व के बसे हैं इसलिए वहाँ इतनी चौड़ी सड़के नहीं बनायी जा सकती है और ना ही उन्हें ध्वस्त कर नए शहर बनाए जा सकते हैं। लेकिन एक-एक व्यक्ति का योगदान चाहिए तब जाकर देश बनता है। वहाँ ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो टेक्स नहीं देता हो, तब जाकर वे विकास कर पाए हैं। हम हमेशा टेक्स बचाने के फार्मूले ढूढते हैं और कभी सीए को कभी अधिकारी को रिश्वत देते हैं और भ्रष्टाचार को बढाते हैं।
ReplyDeletebahut umda aur tez nazar hai aapki....
ReplyDeletesahi jagah drishtipaat kiya hai
dhnyavaad aur badhaai is achhi post ke liye
दराल सर,
ReplyDeleteबस कपिल सिब्बल देश के हर बच्चे को तालीम का हक़ देने के वादे को गंभीरता से निभा दे, फिर देखिएगा, हम इन देशों से भी आगे खड़े नज़र आएंगे, हर मामले में...
जय हिंद...
किसी भी विकसित देश को बनाने में उसके नागरिकों का उतना ही हाथ है जितना प्रशासन और सरकार का..जो कुछ भी दिखाया आपने उसमें हमारी अपनी ही अनुशासनहीनता है..इसे सुधार कर हम और भी बेहतर बन सकते हैं...धन्यवाद डॉ. साहब जी..
ReplyDeleteबदलाव आ रहा है...बस, समय लगेगा...शायद जल्द ही!! उम्मीद करने में तो बुराई नहीं.
ReplyDeleteHumari anushasan heen mansikta hee hai iska karan aur to aur hum kanoon todane men hi badappan samazte hain. Kanoon aur sarkar kitana kuch kar lenge ?
ReplyDeleteकभी लगता है बस हम अनुशासन में रहना सीख जाएँ ...
ReplyDeleteकभी लगता है तब हमारी स्वाभाविकता कहाँ रह जायेगी ...
विदेशों में सलीके से रहने वालों को हमारी बेतरतीबी के लिए तरसते देखा है ...
अच्छी बातें तो खैर सीख ही ली जानी चाहिए ...पश्चिम से भी ...!
ऐसा ही कुछ हमारा लखनऊ का गोमतीनगर है.... कोई गोमतीनगर में आ जायेगा तो सोचेगा की उत्तर प्रदेश बहुत डेवलप है... अम्बेडकर पार्क का एरिया तो ऐसा लगता है जैसे हम बैंगकॉक में घूम रहे हों.... कोई मेरे घर आता है तो सोचता है कि मैं कोई बहुत बड़ा मल्टी-मिलियनेयर हूँ....जो गोमतीनगर जैसे एरिये में रहता हूँ... लेकिन ज़रा गोमतीनगर से बाहर निकलिये... तो सब कुछ मिरैज जैसा लगेगा...
ReplyDeleteऔर रहा सवाल डिसिप्लीन का तो गोमतीनगर में हर कोई अपने आप को नवाब वाजिद अली शाह की औलाद समझता है... और नियम कि धज्जियाँ उड़ाता है... और यही हाल पूरे हिंदुस्तान का है... यहाँ नियम फौलो करना शान के खिलाफ समझा जाता है.... और यही हाल पूरे हिंदुस्तान का है...
सरकार और नागरिक दोनों जागरूक होना चाहिए ...
ReplyDeleteजागरूक कराने वाली पोस्ट...हम केवल अधिकारों की बात करते हैं..और कर्तव्य को ताक पर रख देते हैं....
ReplyDeleteयहाँ लोग कहते हैं कि क़ानून बनते ही इस लिए हैं कि उन्हें तोड़ा जाये...
देश को स्वच्छ और सुन्दर तभी बनाया जा सकता है जब इसमें नागरिक सहयोग करें ..
इस के लिये हमारी हमारी अनुशासनहीन मानसिकता अधिकि जिम्मेदार है। बाकी व्यवस्था मे भी खामियांम हैं। बहुत अच्छी लगी पोस्ट। धन्यवाद्
ReplyDeleteपता नहीं कितना वक़्त लगेगा...और क्या क्या नहीं जिम्मेवार है ऐसे हालात के लिए, हमारे देश की जनसँख्या, अशिक्षा,गरीबी..अनुशासनहीनता,भ्रष्टाचार.....अगर ये सब दूर हो जाएँ तो शायद हमारे देश के गाँव और शहर भी विकसित देश के गाँव शहरों जैसे लगने लगें
ReplyDeleteबहुत सही मुद्दे पर चोट कि है आपने...सभी के कमेन्ट भी पढ़े जिससे यही निष्कर्ष निकलता है कि ...नागरिक कब जागरूक होंगे.इन्सभी बातों के जिम्मेदार हम सभी हैं...संगीता स्वरुप जी ने जैसा कहा कि हम अधिकारों कि बात तो करते हैं परन्तु अपने कर्त्तव्य भूल जाते हैं
ReplyDeletesabhee sahyog denge tabhee prayaas safal honge........jagrookta ab aa rahee hai........vishvas hai ek din hum apane prayaso me kamyab honge......
ReplyDeletebadee maihnat aur samay letee hai aisee post aapka ye kadam prashansneey hai.....
aabhar
सभी साथियों के विचार पढ़कर अच्छा लगा ।
ReplyDeleteबेशक , हमारी सबसे बड़ी समस्या है , आबादी । यहाँ और वहां में यह मूल अंतर है । दूसरा कानून का डर । जो यहाँ है ही नहीं । अब इतनी बड़ी जनसँख्या को सँभालने के लिए भी तो कानून के रखवाले ज्यादा होने चाहिए । लेकिन हम यहीं मार खा जाते हैं । नतीजा बेरोक टोक कानून का उल्लंघन ।
उसपर हमारी अशिक्षित जनता , जिन्हें तौर तरीके आते ही नहीं ।
लेकिन सबसे ज्यादा कोफ़्त तब होती है जब पढ़े लिखे लोग भी कानून की धज्जियाँ उड़ाते हैं ।
यहाँ हमारी अनुशासनहीनता नज़र आती है ।
इन सब पर भारी पड़ता है भ्रष्टाचार । इसके रहते सब कानून फेल हो जाते हैं ।
एक जागरूकता बढ़ाने वाली पोस्ट. बहुत अच्छी तुलना
ReplyDeleteकुछ न कहके भी आपने सब कुछ कह दिया।
ReplyDeleteये तो बहुत अंतर है....सोचने वाली बात हो गई....
ReplyDelete__________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
एक्सप्रेस हाइवेज , मॉल्स , एस्केलेटर्स , ऑटो मोबाइल्स और आधुनिक उपकरणो से कोई भी देश विकाश शील नही बन सकता अगर ऎसा होता तो सभी अरब के देश युरोप से आगे होते, हमे अभी दॊ सॊ साल लगेगे..यहां तक पहुचने मै, हम लोगो ने पहनावे मै, गलत बातो मै तो इन युरोपियन की नकल कर ली जो आसान है बाकी बातो मै हम आज भी जीरो है, अग्रेजी बोल कर हम अपने आप को साहब कहते हे... सडक पर चलना हमे नही आता!!! विदेशो से आने वाले भारतिया बहुत सुनते हे कि भारत ने बहुत तरक्की कर ली लेकिन जब हम पांच दस साल बाद भारत आते है तो हालात पहले से भी बेकार होते है, रटे मार मार कर बच्चे डिग्री तो ले लेते है लेकिन अपने संस्कार तो भुल ही जाते है साथ मै जो संस्कार गोरो के आधे अधुरे लेते है उस से बिगड ही जाते है.... अगर गोरो की ही नकल करनी हो तो पुरी तरह से करो, इन गोरो के संस्कार भी हम से बुरे नही..... अंत मै मै यही कहुंगा कि जब तक हम सब जागरुक नही होते तब तक हम विकास शील तो बन सकते है लेकिन विकास नही कर सकते.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगी आप की आज की पोस्ट
KAVVA CHALA HANS KI CHAAL/ APNI BHI BHOL GAYA!
ReplyDeleteबहुत सही कहा अपने भाटिया जी ।
ReplyDeleteइस व्यथा को बाहर रहने वाले भारतीय मित्र बेहतर समझ सकते हैं क्योंकि उन्होंने दोनों तरह की दुनिया देखी होती है । जब तक हम अपनी मानसिकता नहीं बदलेंगे , तब तक विकसित नहीं हो सकते ।
हमारे ख्याल से इसके लिए दो तरह के कारण प्रमुख रूप से जिम्मेवार है -1 -जो सुविधा संपन्न वर्ग है वह कानून की इज्जत करने के वजाय उसको अपना रखैल समझता है और विकाश की योजनाओं को भ्रष्ट नेताओं के साथ मिलकर लूटने में शामिल होकर देश व समाज के असल विकाश को नकली विकाश में बदलने में योगदान दे रहा है |
ReplyDelete2 -देश का गरीब आदमी जिसकी इस देश में कोई सुनने वाला नहीं चाहे वह पूरी तरह सच्चा,अच्छा,देशभक्त व इमानदार क्यों न हो ,ऐसी उपेक्षा से देश व समाज के प्रति एक बड़े तबके का लगाव खत्म होता जा रहा है ,जिससे अनुशासन ,सामाजिक संतुलन व कानून व्यवस्था की स्थिति भयावह हो गयी है |
सही तुलनात्मक अध्ययन है यह । लेकिन क्या पता ऐसे ही चित्र वहाँ भी मिल जायें । गनीमत हमारे यहाँ के कुछ अच्छे ही चित्र दिये आपने ।
ReplyDeleteबिलकुल सही दृश्य दिखाए हैं आपने ! बड़े बड़े शहरों में चंद मॉल या विश्वस्तरीय हवाई अड्डे बना लेने से हम विकसित तो हरगिज़ नहीं कहाए जा सकते जबकि भारत की आबादी की ८० प्रतिशत जनसंख्या ऐसे गाँवों में रहती है जहाँ मॉल और पार्किंग स्थल की तो बात ही जाने दें सड़कें तक साबित नहीं हैं ! बरसात में घरों में पानी घुस जाता है तो बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं और घरों में कायदे के शौचालय तक नहीं हैं ! गाँवों की आधी से अधिक आबादी जंगल मैदानों का प्रयोग करती है ! कैसा विकास और कैसी तरक्की !
ReplyDeleteसुंदर चित्र, उम्दा विचार, सार्थक पोस्ट.
ReplyDeleteअव्यवस्था के लिए हम खुद ज़िम्मेदार हैं !
ReplyDeleteअसली 'विकास' की बात करें तो, 'भारत' पहले 'जम्बूद्वीप' था और तब विन्ध्याचल पर्वत ही अकेला था और नर्मदा नदी ही मुख्य जलधारा... पृथ्वी विकास के मार्ग पर अग्रसर होने से हिमालय श्रंखला का जन्म हुआ और पंचतत्व के मिले-जुले प्रयास से जीवनदायी गंगा, यमुना, और ब्रह्मपुत्र नदियाँ धरा पर उतर आयीं: शिव, विष्णु (कृष्ण) और ब्रह्मा की प्रतिरूप, जो निरंतर अस्थायी प्राणियों के विकास का साधन बनीं हैं...किन्तु अब तो राम और शिव की गंगा भी मैली हो चली है, और हम सब 'बुद्धिजीवी' अपने को प्रकृति के सामने लाचार से पा रहे हैं!
ReplyDeleteदराल जी,
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी हैं. काफी दुखद भी हैं भारत की वर्तमान स्थिति. आपको शायद याद होगा मैंने भी काफी पहले इसी मुद्दे से मिलता जुलता ब्लॉग लिखा था.
मुझे हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियों पर भरोसा नहीं हैं. क़ानून तोड़ने, टैक्स की चोरी करने, और भ्रष्टाचार में हमारा कोई सानी नहीं हैं. ये स्थिति वाकई दुखद हैं.
हाल ही में (मात्र एक महीने पहले) मेरे मोहल्ले के अंकल सपरिवार सिंगापुर और मलेशिया गए थे. वहां के हाल और वहाँ की व्यवस्था का उन्होंने जो वर्णन किया उससे मुझे भारत और भारतीयों पर गुस्सा और दया के मिश्रित भाव पैदा हुए.
जनसंख्या मुझे कोई बड़ी समस्या नहीं लगती हैं, हाँ अनपढ़-अशिक्षित होना, गरीब होना, और भ्रष्ट होना मुझे ज्यादा गंभीर-विकराल समस्या लगती हैं. जनसंख्या मुझे कोई ख़ास महत्तव की नहीं लगती हैं.
दराल जी,
मुझे हिन्दुस्तान से कोई ख़ास उम्मीद नहीं हैं. आप मेरी बात का बुरा मत मानना, लेकिन ये एक कडवी सच्चाई हैं. मेट्रो आ गयी, लेकिन लोग मेट्रो के स्तर के नहीं हुए. कड़ी सख्ती के बावजूद मेट्रो में भी थूकने और उलटी-सीधी गाली-गलोच बकने से बाज़ नहीं आते.
हवाई जहाज़ में भी सलीके से नहीं बैठते, टाँगे गंवारो की तरह फैला कर बैठते हैं और टांग एक दुसरे के ऊपर इस तरह रखते हैं कि जूते-चप्पल में लगी धुल-मिटटी, और गोबर दूसरो को मुह चिढाता हैं.
दराल जी,
एक्शप्रेस हाइवे बनाने से देश विकसित नहीं हो सकता क्योंकि रिश्वत देकर ड्राइविंग लाइसेंस लिया जाता हैं. लोगो को गाडी चलाने की तमीज ही नहीं हैं. इधर-उधर ठोकते हुए तो गाडी चलाते हैं. इनके लिए क्या गाँव की इंटो की सड़क और क्या एक्शप्रेस हाइवे???
मन में पीड़ा और भी बहुत हैं, लेकिन मैं यही विराम देना चाहूंगा. क्योंकि अगर मैं और लिखने लगा तो पूरी पुस्तक ही लिख डालूँगा.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
शरद जी , विकसित देशों में तो मिलने की सम्भावना बहुत कम है । यहाँ बेशक इससे भी बुरे हो सकते थे ।
ReplyDeleteसही कहा साधना जी , यहाँ शहरों में भी गाँव का माहौल नज़र आ जाता है ।
जे सी जी , यह लाचारी भी हमारी बनायीं हुई ही है ।
सोनी जी , बुरा तो बहुत लगता है जब कोई सड़क पर मूंह बाये चला जाता है । अगर ज़रा सी साइड भी लग जाये तो बवाल खड़ा हो जाता है । कोई कैसे समझाए इन बेवकूफों को ।
धन्यवाद अनामिका जी और शिवम् जी , चर्चा में शामिल करने के लिए ।
मनुष्य मौलिक रूप में अनुशासनहीन ही होता है। जिसे अनुशासन कहा जाता है,वह कृत्रिम होता है और कृत्रिमता का भांडा फूटता ही है। आपने देखा होगा,बहुत साफ-सुथरे रहने वाले जापान में कितने ही प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में त्यागपत्र देने को मज़बूर हुए हैं।
ReplyDeleteनागरिकों की जिम्मेदारी कहने से भी काम न चलेगा ......विदेशों में वातावरण और साफ़ सफाई को लेकर सरकारी नियम काफी कड़े हैं ...एक आस्ट्रेलियाई मित्र बता रहे थे वहाँ घर के आगे घास लगाना अनिवार्य है ...सड़कों के किनारे भी घास लगाई जाती है ...घर का कचरा घर में ही गढ़ा खोद दबा दिया जाता है .....धूल का तो नामोंनिशान नहीं होता वहाँ ...और तो और वहाँ मजदूरों के स्वस्थ का भी फ्री ध्यान रखा जाता है ताकि वे ज्यादा से ज्यादा काम कर सकें ....जब तक सरकारी नियम सख्ती से लागु नहीं होंगे हमारा हाल वही रहेगा .....!!
ReplyDeleteविकास तो हो रहा है पर गाँव जैसा..... हमारी मानसिकता में बदलाव नहीं आ रहे हैं ..... स्ट्रीट हाई वे पर देखें तो अभी भी ट्रेफिक सेन्स की कमी नजर आती है .क्रस्सिंग पर ढोर जानवरों का बसेरा ... उन्हें किसी को हटाने की कोई चिंता नहीं .... सब राम राज्य है ....
ReplyDeleteआज के एच टी के फ्रंट पेज पर एक फोटो छपा है ।
ReplyDeleteकैप्शन है --कैन यू स्पोट द ट्रेन ?
क्या आप इस फोटो में ट्रेन को ढूंढ सकते हैं ।
हमारे विकास की कहानी का सारांश दिख रहा है इस फोटो में ।
ये सब कुछ तो हो ही सकता है अपने देश में बस ... थोड़ा सा अनुशासन लकाने वाली बात है अपने अंदर ....
ReplyDeleteवैसे भारतीय खुद भी दूसरे देशों में अनुशासन में रहते हैं पर अपने देश में नही रहते .... ये भी एक विडंबना है ... जागरूक पोस्ट है आपकी ...
डा दराल जी, आपने कहा "...यह लाचारी भी हमारी बनायीं हुई ही है"...किन्तु यह एक संयोग ही होगा, या परम ज्ञान कि अनुभूति, कि हमारे पूर्वज, योगी आदि, धरती पर व्याप्त नदियों के तंत्र को मानव शरीर में उपलब्ध नाडी यानि स्नायु तंत्र (नर्वस सिस्टम) द्वारा प्रतिबिंबित समझे (प्रकृति अथवा निराकार शक्ति द्वारा) जिसमें उन्होंने इडा, पिंगला और सूक्ष्मना नाड़ियों को तीनों मुख्य नदियों के प्रतिरूप समान दर्शाया अनादि काल से...
ReplyDeleteहमारी कानून या सामाजिक व्यवस्था ?
ReplyDeleteया फिर हमारी अनुशासनहीन मानसिकता ?
दोनो ही कारण है दराल जी। इसके अलावा कुछ अच्छी बातें जो विदेशों से आई हैं उसे भारतीय परिवेश में रचाना बसाना हम भूल गए हैं। बेहतर को बेहतर से मिलाकर हम सर्वोत्तम बनाते थे। पर क्या करें, ये कला भूल गए हैं हम।
वैसे सर गाय तो हमारी माता है। सो उन्हें तो कहीं भी छुटने की पूरी आजादी है। अब क्या जाने विदेश वाले गाय के महत्व को। तभी तो उन्हें खुर वाली बीमारी झेलनी पड़ रही है।
हम लोगों में ट्राफिक सैंस नहीं है...असलियत में इसकी वजह अज्ञानता ही है लेकिन सिर्फ उसी को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि हम जैसे पढ़े-लिखे लोग भी कई बार जानबूझकर या फिर जल्बाजी में क़ानून तोड़ने से नहीं चूकते...इसकी वजह सिर्फ एक यही है कि यहाँ किसी को क़ानून का डर नहीं है...जब तक क़ानून सख्त नहीं होंगे और उन्हें बकायदा सही तरीके और निष्पक्ष ढंग से अमल में नहीं लाया जाएगा ..तब तक सुधार होना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन सा दिखाई पड़ता है लेकिन ये भी सच है कि इस दुनिया में नामुमकिन कुछ भी नहीं...इसलिए उम्मीद पे दुनिया कायम रखिये कि किसी दिन अपने देश में भी क़ानून का बोलबाला होगा...
ReplyDelete