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Saturday, May 22, 2010

यहाँ हैल्थ की मजबूरी है , वहां वैल्थ की मजबूरी है ---

ब्लोगिंग में आजकल जो गहमा गहमी , वाद विवाद और आरोप प्रत्यारोप हो रहे हैं , उनसे अलग कुछ ऐसे मित्र ब्लोगर भी हैं जो सभी विवादों से दूर निर्विकार भाव से हिंदी सेवार्थ कार्य में लीन हैंऐसे ही एक मित्र हैं , मुंबई में रहने वाले श्री नीरज गोस्वामी जी , जो नियमित रूप से प्रसिद्ध शायरों , ग़ज़लकारों और कवियों की पुस्तकों और रचनाओं से परिचय कराते रहते हैं

हमारे देश में लगभग ७२ % लोग गावों में रहते हैंवहां ज्यादातर लोग गरीबी में वास करते हैंहालाँकि इसका मतलब यह नहीं कि गाँव में सभी गरीब और शहर में सिर्फ अमीर ही रहते हैं । कुल मिलाकर गाँव और शहरों में गरीबों की संख्या , अमीरों की संख्या से कहीं ज्यादा है।

मन हुआ कि इस अमीरी -गरीबी और गाँव -शहर के अंतर पर एक रचना लिखी जाये ।
मैंने ये विचार नीरज भाई के सामने रखा और उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर एक कविता बना डाली । गुस्ताखी करते हुए इस के साथ थोड़ी छेड़ छाड़ कर , आपके सन्मुख रख रहा हूँ ।

( ये = अमीर , वे /वो = गरीब , यहाँ = शहर , वहां =गाँव )

सूखी रोटी 'ये' भी खाते
सूखी रोटी 'वे ' भी खाते ।
डाइटिंग से 'ये' वज़न घटाते
भूखा रह वे दुबला जाते ।
इनको साइज़ जीरो का शौक
उनको बस सर्वाइवल का खौफ ।

ये भी हैं मजबूर, वे भी हैं मजबूर ।
यहाँ हैल्थ की मजबूरी है , वहां वैल्थ की मजबूरी है।


मक्की सरसों जब 'वे' खाएं
गावों में बेबस कहलायें।
पर शहरों में चला के ऐसी
खाते 'ये' कह ' डेलिकेसी' ।
जई फसल जो ढोर हैं खाते
ओट मील ये कह उसे मंगाते

ये भी हैं मजबूर, वे भी हैं मजबूर ।
यहाँ हैल्थ की मजबूरी है , वहां वैल्थ की मजबूरी है।


जिम में जा 'ये' एब्स बनाते
'वो' महनत से खुद गठ जाते।
कपडे फाड़ ये करते फैशन
उनको तन ढकने का टेंशन ।
पैदल चल वो काम पे जाएं
यहाँ पैदल चलना भी काम कहाए।

ये भी हैं मजबूर, वे भी हैं मजबूर ।
यहाँ हैल्थ की मजबूरी है , वहां वैल्थ की मजबूरी है।


वो हँसते हैं लगा ठहाके
ये हंसने को क्लब हैं जाते ।
वो पीपल की छाँव में रहते
दुःख पाकर भी गाँव में रहते ।
होती क्या जाने पुरवाई
'ये' ऐ सी में रहते भाई ।

ये भी हैं मजबूर, वे भी हैं मजबूर ।
यहाँ हैल्थ की मजबूरी है , वहां वैल्थ की मजबूरी है

वो किसान जो अन्न उगाये
क़र्ज़ में खुद ही फंस जाये।
बीच में जब लाला आए
उसी अन्न से धन कमाए।
फिर बी पी डायबिटीज हो जाए
खाना कुछ भी खा ना पाए

ये भी हैं मजबूर, वे भी हैं मजबूर ।
यहाँ हैल्थ की मजबूरी है , वहां वैल्थ की मजबूरी है।


दोनों ही बस ये चाहें
'वो' से हम 'ये' हो जाएँ
'ये' से हम 'वो' हो जाएँ।
लेकिन न ये वो बन पायें
न ही वो ये बन पायें
जो जैसे हैं , वैसे रह जाएं ।

ये भी हैं मजबूर, वो भी हैं मजबूर ।
यहाँ हैल्थ की मजबूरी है , वहां वैल्थ की मजबूरी है।


यह प्रयास कैसा लगा , बताइयेगा ज़रूर।


34 comments:

  1. ये न करते ब्‍लॉगिंग

    वे ब्‍लॉगिंग में भी लॉबिंग करते हैं

    धूमधमाके वाली कविता।

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  2. हेल्थ और वेल्थ की यह जुगलबंदी ! वाह आनंद आ गया !

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  3. दोनों ही बस ये चाहें
    'वो' से हम 'ये' हो जाएँ
    'ये' से हम 'वो' हो जाएँ।
    लेकिन न ये वो बन पायें
    न ही वो ये बन पायें
    जो जैसे हैं , वैसे रह जाएं ।

    जबरदस्त प्रस्तुति

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  4. यही तो मनमोहनी इकोनॉमिक्स है...पिछले दो दशक में उदारीकरण के दौर ने और कुछ किया हो या न हो एक देश में दो देश का फर्क बहुत साफ दिखा दिया है...देश की कारोबारी राजधानी मुंबई में दुनिया के चौथे नंबर के अमीर मुकेश अंबानी का आशियाना है...उसी मुंबई में धारावी जैसा स्लम भी है...जहां मुर्गियों के दड़बों की तरह लोग रहते हैं...धारावी में 1440 लोगों पर एक शौचालय है...मेरा भारत महान...

    जय हिंद...

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  5. .... बेहतरीन ... ताबड-तोड !!!

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  6. bahut khub....
    yeh bhi khub rahi...
    utkrisht rachna...
    yun hi likhte rahein...
    meri kavitaon ko bhi aapki pratikriya ka intzaar hai........

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  7. वाह मजा आ गया हेल्थ और वेल्थ

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  8. सुख के अपने-अपने चश्में
    दुःख के अपने-अपने नगमें
    दिल ने जब जब जो जो चाहा
    होठों ने वो बात कही है.
    .....
    सही गलत है, गलत सही है.

    ..यहाँ हैल्थ की मजबूरी है , वहां वैल्थ की मजबूरी है
    इस सुंदर कटाक्ष को पढ़कर दिल ने जो कहा वो लिख दिया.

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  9. वो हँसते हैं लगा ठहाके
    ये हंसने को क्लब हैं जाते ।
    वो पीपल की छाँव में रहते
    दुःख पाकर भी गाँव में रहते ।

    होती क्या जाने पुरवाई
    'ये' ऐ सी में रहते भाई ।

    इस सुन्दर चित्रण के लिए बधाई डा ० साहब !

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  10. यह प्रयास सच्चा है.....ये और वो का अंतर बिलकुल सही उतार कर रख दिया है...

    वो हँसते हैं लगा ठहाके
    ये हंसने को क्लब हैं जाते ।
    वो पीपल की छाँव में रहते
    दुःख पाकर भी गाँव में रहते ।
    होती क्या जाने पुरवाई
    'ये' ऐ सी में रहते भाई ।

    ये भी हैं मजबूर, वे भी हैं मजबूर ।
    यहाँ हैल्थ की मजबूरी है , वहां वैल्थ की मजबूरी है।

    बहुत सुन्दर और सटीक

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  11. वाह! डा. साहिब, आपने भारतीय दिल के तार को छेड़ दिया!
    ज्ञान की देवी सरस्वती 'वीणा वादिनी' यूं ही नहीं कहलाई गयी!

    भारत में ही एक ओर पढ़ा लिखा स्वार्थी, लंकापति, रावण था,,,
    तो दूसरी ओर आश्रम में पले मर्यादा पुरुषोत्तम अयोध्यापति राम!

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  12. बहुत ही सटीक रचना, हेल्थ और वेल्थ
    मजा आ गया

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  13. बहुत खूब,यह बढ़िया रहा,आभार,.

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  14. वाह! बहुत खूब! बेहद सुन्दर, मज़ेदार और सठिक रचना प्रस्तुत किया है आपने! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

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  15. बहुत सुंदर जी मन मोह लिया, ये शरीर को ढकना नही चाहते, इस लिये अधनंगे है, ओर वो वेचारे पैसे ना होने के कारण अधनंगे है, लेकिन शर्म इन गरीबो मै है, ये तो शर्म को कब का बेच के अमीर बन बेठे है

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  16. दिल्ली के ब्लागर इंटरनेशनल मिलन समारोह में भाग लेने के लिए पहुंचने वाले सभी ब्लागर साथियों को कुमार जलजला का नमस्कार. मित्रों यह सम्मेलन हर हाल में यादगार रहे इस बात की कोशिश जरूर करिएगा। यह तभी संभव है जब आप सभी इस सम्मेलन में विनाशकारी ताकतों के खिलाफ लड़ने के लिए शपथ लें। जलजला भी आप सभी का शुभचिन्तक है और हिन्दी ब्लागिंग को तथाकथित मठाधीशों से मुक्त कराने के एकल प्रयास में जुटा हुआ है. पिछले दिनों एक प्रतियोगिता की बात मैंने सिर्फ इसलिए की थी ताकि लोगों का ध्यान दूसरी तरफ भी जा सकें. झगड़ों को खत्म करने के लिए मुझे यही जरूरी लगा. मेरे इस कृत्य से जिन्हे दुख पहुंचा हो उनसे मैं पहले ही क्षमायाचना कर चुका हूं. हां एक बात और बताना चाहता हूं कि थोड़े से खर्च में यह प्रतियोगिता के लिए आप सभी हामी भर देते तो भी आयोजन करके इस बात की खुशी होती कि चलो झगड़े खत्म हुए. मैं कल के ब्लागर सम्मेलन में हर हाल में मौजूद रहूंगा लेकिन यह मेरा दावा है कि कोई मुझे पहचान नहीं पाएगा.
    आप सभी एक दूसरे का परिचय प्राप्त कर लेंगे फिर भी मेरा परिचय प्राप्त नहीं कर पाएंगे. यह तय है कि मैं मौजूद रहूंगा.
    आप सभी को शुभकामनाएं. अग्रिम बधाई.

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  17. जलजला जी , आपने तो उत्सुकता बढ़ा दी ।

    वैसे मैं आपको पहचान गया हूँ । लेकिन मैं भी आपको नहीं बताऊंगा कि आप ही जलजला जी भी हैं।
    बस यह नहीं समझ आ रहा कि इस प्रतियोगिता के लिए आप पैसा कहाँ से लाने वाले थे ।

    वैसे मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं । ३१ मई का इंतज़ार रहेगा । शुभकामनायें ।

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  18. वाह री मज़बूरी ..................किसी ने सच ही कहा है ...........मजबूरी का नाम .................!!!!
    बेहद उम्दा रचना ......... सटीक तालमेल बनाया है आपने 'इन' में और 'उन' में !!

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  19. @कुमार जलजला
    यार तुम्हारी हरकतों से तो उस ब्लॉगर की याद आ गई जो आईपीएल के पहले एडीशन में कोलकाता नाइटराइडर्स की अंदर की बातें ब्लॉग पर लिखता था...सब सोचते रहे वो ब्लॉगर कौन सा खिलाड़ी है, लेकिन उसकी पहचान आखिर तक नहीं खुल पाई...इसी तरह अब तुम कह रहे हो कि कल तुम ब्लॉगर्स मीट में मौजूद रहोगे...लेकिन तुम्हे कोई पहचान नहीं पाएगा...ये बात कह कर तुमने मेरे सामने एक धर्मसंकट पैदा कर दिया है...इस तरह तो ब्लॉगर्स मीट में जो जो ब्लॉगर्स भी पहुंचेंगे, उन सब पर ही शक किया जाने लगेगा कि उनमें से ही कोई एक कुमार जलजला है...मान लीजिए पच्चीस-तीस ब्लॉगर्स पहुंचते हैं...वैसे ब्लॉगवुड में इस वक्त पंद्रह से बीस हज़ार ब्ल़ॉगर्स बताए जाते हैं...यानि इन पंद्रह से बीस हज़ार से घटकर कुमार जलजला होने की शक की सुई सिर्फ पच्चीस-तीस ब्लॉगर्स पर आ जाएगी...तो क्या तुम इस तरह कल की मीटिंग में मौजूद रहने वाले दूसरे ब्लॉगर्स के साथ अन्याय नहीं करोगे...अविनाश वाचस्पति भाई से भी कहूंगा कि इस विरोधाभास को दूर किया जाए, अन्यथा पूरे ब्लॉगवुड में गलत संदेश दिया जाएगा...

    जय हिंद..

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  20. Rachna bahut achchhi lagi .Badhai!!

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  21. डा. साहिब, 'सत्य' (सत्यम शिवम् सुंदरम वाले) की बात करें तो मानव ही नहीं हर प्राणी की भी एक परम मजबूरी और है हेल्थ और वेल्थ के अतिरिक्त, यानि जेरो (०) से सौ+ (१००+) वर्ष के लिए किराये पर मिली मिटटी यहीं छोड़ कर जाने की (न मालूम कहाँ?),,,: भले ही वो दूध पीते हो या दारू (या केवल हवा-पानी ही); सब्जी खाते हों या मांस; झोंपड़े में रहते हों या महल में :)

    एक अंतरिक्ष में चन्द्रमा की ओर जाते वैज्ञानिक ने अपनी धरती को दूर से देख, और उसे एक सुंदर नील-हरित रत्न समान पा, कहा कि यदि उसे 'सत्य' का पता नहीं होता तो आश्चर्य होता कि इस अनमोल रत्न रुपी धरा पर हम प्राणी एक दूसरे से लड़ाई भी करते हैं! (और वो भी ब्लॉग के ऊपर :)

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  22. मजबूरी + मजबूर = मजदूर

    Jai jai jai ho Hindustan...

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  23. हमें तो लूट लिया.. मिल के आप दोनों ने.. बहुत ही पसंद आयी ये व्यंग्य या हास्य रचना जो भी कहें.. श्री नीरज सर तो अपने आप में बहुत सशक्त रचनाकार हैं ही.. आपका आभार सर.

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  24. आपकी ये पोस्ट चर्चा मंच पर ली गयी है

    http://charchamanch.blogspot.com/2010/05/163.html

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  25. बहुत ही बढ़िया और शानदार रचना ! आज के युग के अमीर हेल्थ कॉन्शस लोगों की जीवन शैली और जीवन में संघर्षरत गरीब वर्ग के लोगों की विवशताओं के अंतर को बड़ी सूक्षमता के साथ उभारा है ! सुन्दर कविता के लिए साधुवाद !

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  26. डा. साहिब, क्या करें मजबूरी है कि कोई न कोई चुटकुला यानि लतीफा याद आ ही जाता है:
    बंगाली मछली न खाए तो बिन पानी मछली समान तड़पता है और उसकी मजबूरी थी पैसे की जिस कारण वो चावल खरीद पाता था किन्तु मछली नहीं,,, फिर भी जुगाडू था, सो उसने सेहत कायम रखने का तरीका ढूंढ ही लिया!
    और, जैसा अक्सर होता है, एक मीडिया वाला दल-बल सहित उसके पास पहुँच अपना शिवलिंग रुपी माइक उसकी मुंह की ओर बढ़ा कर उस से पूछा, "पैसे की मजबूरी रहते हुए भी आप की सेहत इतनी बढ़िया है, इसका राज़ क्या है?"

    उसने कहा, "बहुत आसान!"
    "जब भी पडोसी के घर से माँछ बनते समय खुशबू आनी शुरू हो जाती है, में अपना भात खाना शुरू कर देता हूँ!"
    "मैं एक एक ग्रास 'ये भात और वो माँछ' कह खाता हूँ!"

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  27. bahut achhilagi...ye aur wo ka farq bhi bakhubi samjh aayaa...aur ek doosre me tabdeel ho jane ki aakanksha bhi samjh aayi ...badhiya nazm .. :)

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  28. हेल्थ और वेल्थ ... दोनो की मजबूरी को आपने मिला दिया .... बहुत ही लाजवाब है आपका हास्य और व्यंग का रस .... मज़ा आ गया डाक्टर साहब ...

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  29. आपकी रचना विलक्षण है...मेरा इसमें कोई योगदान नहीं है...बधाई स्वीकार करें...
    नीरज

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  30. वाह!!!!वाह!!! वाह!!!!! बेहतरीन,लाजवाब.कितना कड़वा पर सच. एक एक बात जबरदस्त, आर पार निकल गयी बेहद उम्दा रचना.

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  31. दो अलग-अलग छोरो को मिलाना तो कोई आपसे सीखें.
    आखिर डॉक्टर जो हो, शरीर के दो अलग-अलग भागो को भी तो बखूबी मिला देते हो.
    बहुत बढ़िया, आई लाइक्ड इट.
    धन्यवाद.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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  32. अमीर-गरीब के फर्क को बताती बहुत ही बढ़िया रचना

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