पिछले कुछ समय से अचानक अख़बारों की सुर्ख़ियों में ओनर किलिंग पर एक सैलाब सा आ गया है। एक के बाद एक ऐसी कई घटनाएँ घटित होने के कारण , सभी का सोचना आवश्यक है कि क्या सही है , क्या गलत । जिसे आप सही समझते हैं , क्या दूसरे उसे गलत कहते हैं । हालाँकि सभी का सोचने का तरीका अलग होता है ,लेकिन जिस कार्रवाई से पूरे समाज पर प्रभाव पड़ता हो , उसके बारे में विश्लेषण करना अति आवश्यक हो जाता है।
आज इसी बारे में विस्तार से बात करते हैं ।
इस तरह की घटनाओं में दो पहलु उजागर होते हैं :
१) खाप द्वारा दी गई सजा --सजा-ए -मौत ।
२) एक ही गोत्र में विवाह ।
खाप :
दिल्ली , हरियाणा , पश्चिमी उत्तर प्रदेश , राजस्थान और पंजाब --ये वो राज्य हैं जिन्हें जाट प्रबल क्षेत्र कहा जा सकता है । यहाँ जहाँ एक तरफ सरकारी पंचायत प्रणाली चलती रही है । वहीँ दूसरी तरफ गैर सरकारी लेकिन सामाजिक तौर पर सशक्त पंचायत यानि खाप का हमेशा ही दबदबा रहा है । यह एक संगठित और अनुशासित समाज की पहचान के रूप में जानी जाती रही है ।
खाप में सिर्फ जाट ही नहीं अपितु हरियाणा के अन्य निवासी भी जैसे ब्राह्मण , बनिया , राजपूत और यादव भी होते हैं ।
खाप का काम न सिर्फ सभी तरह के आपसी झगडे निपटाने का रहा है , बल्कि ऐसे नियम बनाने और लागू करने का भी रहा है , जिन्हें समाज के लिए सही और उपयोगी माना जाता है । इनमे बहुत से फैसले तो वास्तव में बड़े उपयोगी रहे हैं , जैसे दहेज़ विरोधी नियम , शादियों में खर्च को कम रखने के लिए प्रतिबंध इत्यादि ।
लेकिन देश के कानून को हाथ में लेने की तो किसी को भी अनुमति नहीं दी जा सकती । फिर चाहे वज़ह कोई भी क्यों न हो ।
ओनर किलिंग एक हत्या है और इसे एक अन्य हत्या की ही तरह लेकर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए । इस विषय पर कानून क्या कहता है , यह तो श्री दिनेश राय द्विवेदी जी जैसे काबिल कानूनी सलाहकार ही बता सकते हैं।
हम तो यही कह सकते हैं कि किसी को भी किसी की जान लेने का कोई हक़ नहीं है ।
अब आते हैं दूसरे विषय पर --एक ही गोत्र में विवाह ।
उत्तरी भारत का जाट समाज , आर्यन के वंशज माने जाते हैं । सदियों से ये लोग एक सुसंगठित समाज के रूप में रहे हैं । खेती -बाड़ी करना इनका मुख्य पेशा रहा है । क्षत्रिय होने के नाते सुरक्षा बलों में भी कार्यरत रहे हैं ।
जाट समाज के कुछ नियम :
उत्तरी भारत के गावों में आम तौर पर एक गाँव में एक ही गोत्र के लोग रहते हैं । एक गोत्र के लोग आस पास के कई गाँव में भी हो सकते हैं । लेकिन एक गोत्र के लोग आपस में भाई माने जाते हैं ।
इस तरह एक ही गोत्र के लड़के लड़की को भी भाई बहन माना जाता है ।
इसलिए न सिर्फ एक ही गाँव में , बल्कि उस गोत्र के किसी भी गाँव के लड़के लड़की आपस में शादी नहीं कर सकते ।
शादियों में भी यदि लड़की के गाँव में लड़के वालों के गोत्र से कोई लड़की ब्याही गई हो तो उसे सम्मानित किया जाता है । साथ ही दामाद को भी रूपये देकर सम्मानित करने की रिवाज़ है ।
इस तरह एक गोत्र की लड़कियां सभी बड़ों के लिए बेटियां होती हैं और छोटों के लिए बहने ।
आज भी यदि कहीं संयक्त परिवार देखने को मिलते हैं तो वो है हरियाणा । और आज भी बड़े बूढों की बात को सम्मान मिलता है वहां ।
शादी :
शादी में सिर्फ लड़के लड़की का गोत्र ही नहीं बल्कि मां और दादी का भी गोत्र मिलाते हैं । यानि तीन पीढ़ियों में कोई भी गोत्र समान नहीं होना चाहिए , तभी शादी तय की जाती है ।
अब देखते हैं कि क्या यह सोच सही है :
सामाजिक तौर पर : यदि भाई बहनों में शादियाँ होने लगी तो सारा सामाजिक ढांचा ही चरमरा जायेगा । कुछ धर्मों या वर्गों में ऐसा संभव है लेकिन इस समाज के लोगों को यह स्वीकार्य नहीं है । क्या इस सोच को बदलना ज़रूरी है ?
कानूनी तौर पर : कानून भाई बहन में शादी की अनुमति नहीं देता । इसे इन्सेस्ट के रूप में गैर कानूनी माना गया है । हालाँकि यह रक्त संबंधों तक ही सीमित है। यानि सगे भाई बहन ।
वैज्ञानिक तौर पर : निकट सम्बन्धियों में शादी से इनब्रीडिंग होती है । इनब्रीडिंग से आगामी पीढ़ियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । इसलिए इसे वैज्ञानिक तौर भी पर अनुमति नहीं होती ।
एक गोत्र में शादी न करने के पीछे यही तीनों कारण साफ नज़र आते हैं । और शायद अपनी जगह सही भी लगते हैं ।
अब बात करते हैं प्रेम संबंधों की । युवावस्था में प्रेम अनुभूति एक प्राकर्तिक प्रक्रिया है। लेकिन कच्ची उम्र में यह यौवन का होर्मोनल इफेक्ट (प्रभाव ) ज्यादा प्रतीत होता है । इसलिए बिना किसी सामाजिक अच्छाई बुराई के बारे में सोचे , प्रेम एक शारीरिक अनिवार्यता लगता है । एक बार आप संबंधों में फंस गए तो फिर भावनात्मक रूप से कमज़ोर पड़ कर आपकी सम्पूर्ण विचार शक्ति क्षीण हो जाती है । और आप बन जाते है लैला मजनू , शीरी फरहाद जैसे प्यार में शहीद होने वाले अमर नौज़वान ।
अब कोई पूछे , क्या प्यार में जान देना ही बहादुरी है । अगर देश के सभी नौज़वान ऐसे ही प्यार में शहीद होने लगे तो दुश्मनों से कारगिल को कौन बचाएगा ।
किसी ने सही कहा है :
छोड़ दे सारी दुनिया , किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं , आदमी के लिए ।
प्यार से भी ज़रूरी , कई काम हैं
प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए ।
ऐसा लगता है कि प्यार शब्द को आजकल मिडिया ने कुछ ज्यादा ही ग्लैमेराइज कर रखा है । और जीवन के अनुभवों से सम्पूर्ण सोच रखने वालों को प्यार के दुश्मन । कोई आपका मित्र आप के घर आकर यदि बेटियों से आँख लड़ाने लगता है तो क्या आप इसे सही करार देंगे ।
फिल्म-- दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे --में मध्यांतर के बाद जो घर में आँख मिचौली दिखाई गई थी वो सच में मुझे भी ज्यादा पसंद नहीं आई थी ।
ऐसा पंजाबी समाज में भले ही स्वीकार्य हो , लेकिन हरियाणा के कंजर्वेटिव परिवारों में इसे सहन नहीं किया जाता ।
आखिर कहीं तो एक सीमा निर्धारित करनी ही पड़ती है । यदि समाज में सामाजिक नियम ही ख़त्म हो जाएँ तो क्या फिर से हम आदि मानव की स्थिति में नहीं पहुँच जायेंगे ।
यह बात बच्चों , युवाओं और बड़ों -सभी पर लागू होती है।
इस विषय पर आपके विचारों का स्वागत है ।
Tuesday, May 11, 2010
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Sir,
ReplyDeleteThanks for such an nice post. I also belong to Haryana & gujjar caste. You have raised same issues which i think are becoming controversy among the educated society and this tradional community like "KHAAP". You have analysed in proper way that the basis of sirname was scientific but no body can murder anyone while the law is there .
Thanks & Regards
Virender Rawal
http://saralkumar.blogspot.com
बहुत बेहतरीन ढंग से समझाया डॉक्टर साहब, निसंदेह खाप पंचायतों ने क़ानून अपने हाथ में लेकर ज्यादती और शोभनीय कृत्य किये मगर सच कहूं तो मैं भी इसके खिलाफ हूँ | हम हर चीज को दकियानूसी जाति और सांप्रदायिक नजरिये से ही देखते है, जबकि मेरा मानना है कि यदि किसी कारण से हमारे समाज ने इन मान्यताओं को बनाए रखा है कि एक ही गाँव में एक गोत्र में शादी नहीं होती चाहिए तो उसे मानने में हर्ज क्या है , सरकार उसके लिए क़ानून क्यों नहीं बनाती ? जब मुस्लिम समाज की तुष्टि के लिए राजिव गांधी अपने ही बनाए क़ानून को वापस ले सकते है तो इसके लिए क़ानून क्यों नहीं ?
ReplyDeleteऔर अंत में उन प्रेमियों को एक सन्देश देना चाहूंगा जो पंचायतों की अनदेखी कर ऐसा करते है ;
अरे कायरों, तुम्हे जीवन साथी बनाने के लिए अपनी भाई- बहने ही मिली थी क्या ? अरे , मर्द की औलाद हो तो दुसरे के गाँव में जाकर वहा किसी लड़के-लडकी से प्यार करो ,जिसे हिम्मत वाला काम कहते है! यह अपने ही गोत्र की लडकी athwaa लड़के से प्यार karnaa प्यार नहीं ye तो घर के अन्दर बलात्कार करने जैसा है !
गोत्र ...का अर्थ जो मुझे पता है वो है...अलग अलग ऋषि मुनि अपने विद्यार्थियों को अपने गुरुकुल में पढाया करते थे और एक ऋषि के गुरुकुल में जो विद्यार्थी पढ़ते थे वो उस ऋषि का नाम धरान करते थे ...यही गोत्र कहलाता था...
ReplyDeleteजैसे कश्यप ऋषि के विद्यार्थी..कश्यप गोत्र के होंगे...भारद्वाज ऋषि के विद्यार्थी भारद्वाज गोत्र धारण करेंगे.....किस भी गुरुकुल में पढने वाले विद्यार्थी आपस में भाई बहन माने जाते थे इस लिए विवाह का प्रश्न ही नहीं था...
बहुत ही समसामयिक पोस्ट...
मुझे भी दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे में जो तिकड़म बाज़ी दिखाई गयी हैं बिलकुल पसंद नहीं आई हैं...सारा सम्बन्ध ही झूठऔर धोखे पर आधारित लगा...
बहुत ही अच्छी पोस्ट..
डाक्टर जी,
ReplyDeleteनमस्कार !
आपने अपने खाप/आनर किलिंग वाले आलेख में कई पहलुओं का जिक्र किया है, जिनमें से अधिकतर सही हैं। फ़िर भी मैं कुछ बिन्दुओं पर अपनी बात रखना चाहूँगा,
पहला तो गोत्र से सम्बन्धित है। मैने जीव विज्ञान केवल दसवीं तक पढा है और उसमें केवल मेंडल के अनुवांशिका के नियम ही अच्छे लगे थे जो मैथेमेटिकल थे और आसानी से समझ आये थे।
इनब्रीडिंग से आनुवांशिक अवगुण बढ सकते हैं लेकिन इसके लिये क्या केवल एक पीढी की इनब्रीडिंग (मतलब एक सगोत्रीय शादी) पर्याप्त है ? दूसरी बात आपने मां, पिता और दादी का गोत्र न मिलने पर शादी की बात की थी । हमारे परिवार (अधिकतर राजपूतों) में भी ऐसा ही किया जाता है, लेकिन एक समस्या है।
शादी के बाद होने वाली सन्तान का गोत्र पिता का माना जाता है, जबकि उसमें क्रोमोसोम अथवा गुणसूत्र माता और पिता से बराबर मात्रा में आते हैं। मान लीजिये आप एक प्रयोग में १५-२० गोत्र लेकर चलें और उनके बीच शादियों और गोत्र वाली बात को ध्यान में रखते हुये फ़ास्ट फ़ारवर्ड करें तो ८-१० पीढियों में ही, गोत्र की शुद्धता खतरनाक तरीके कम्प्रोमाईज हो जाती है। ऐसे में जिस गोत्र को लेकर जान लेने/देने की बात हो रही है, वो एप्राक्सिमेट थ्योरी ही है। इस विषय पर मैने अपने कालेज में एक आनुवांशिकी के प्रोफ़ेसर से बात की थी और वो और मैं इस विषय पर एक कम्प्यूटर सिमुलेशन लिखने की सोच रहे थे, अब सोच रहा हूँ उनसे दोबारा मिलकर काम शुरू किया जाये। एप्राक्सिमेट थ्योरी वाला विचार उन्ही का है।
दूसरा उदाहरण देता हूँ, माना कि एक सगोत्रीय शादी होने से आनुवांशिक गडबडी हो सकती है और समाज पर इसका प्रभाव पडेगा, लेकिन इसकी एक सम्भावना ही है। लेकिन समाज पर तो और बहुत सारे कारक कहीं ज्यादा सीधा सीधा प्रभाव डालते हैं। लडकियों की कम पढाई, चोरी/भ्रष्टाचार पर समाज का आंख मूंद लेना आदि आदि, इन सबके लिये कभी किसी को एक चपत भी लगायी किसी खाप पंचायत ने?
फ़िर, ये भी सत्य है कि अधिकतर लोग सगोत्रीय शादी को गलत मानते हैं, ऐसे में सगोत्रीय शादी के उदाहरण मिलते ही कितने हैं? जिन्होने इस व्यवस्था से बाहर जाने का प्रयास किया है, उनके भविष्य का फ़ैसला करने वाले हम कौन होते है, जबकि वो गैरकानूनी भी है?
महाराष्ट्र में मामा की लडकी से शादी हो जाती है, हमारे घर में अगर कोई सुन ले तो हंगामा हो जाये लेकिन क्या कोई स्टडी है कि महाराष्ट्र में इसके चलते कितने आनुवांशिक अवगुण सामने आये?
आपने इस महत्वपूर्ण विषय पर अपने ब्लाग पर चर्चा प्रारम्भ की, इसके लिये आप निश्चित ही बधाई के पात्र हैं।
आभार,
नीरज रोहिल्ला
बहुत ही सार्थक लेख । सामाजिक और वैग्यानिक दोनों तरह से यह गलत है । इस बात को समाज में खासकर युवा वर्ग को समझाने की जरूरत है । दंड देने से आक्रोश होता है ,वही हो रहा है । आजकल तमाम लोग मीडिया के माध्यम से विभिन्न नागरिक अधिकारों की बात करते हैं ,लेकिन नागरिकों के समाज तथा देश के प्रति क्या कर्तव्य होते हैं ,ये कोई नही बताता ।
ReplyDeleteएक बहुत लंबी टिप्पणी की थी लेकिन संचार में व्यवधान के कारण वह इधर गई तो लेकिन उधर पहुँची नहीं। अभी अदालत की शीघ्रता में हूँ फिर शाम को सारी टिप्पणियाँ पढ़ने के बाद दुबारा आता हूँ।
ReplyDelete@ कहीं तो एक सीमा निर्धारित करनी ही पड़ती है । यदि समाज में सामाजिक नियम ही ख़त्म हो जाएँ तो क्या फिर से हम आदि मानव की स्थिति में नहीं पहुँच जायेंगे ।
ReplyDelete--- आपसे बिल्कुल सहमत। इनब्रीडिंग से जो अनुवांशिक गड़बड़ी होती है उसका खामियाजा ये तो नहीं समझेंगे पर आने वाली पीढ़ियां भोगेगी।
--- आपने विषय की मूलभूत अंतर्वस्तु को उसकी समूची विलक्षणता के साथ बोधगम्य बना दिया है।
--- लोगों को न सिर्फ जागरूक करती रचना बल्कि समस्या के प्रति सजग रहने का संदेश भी देती है।
अच्छा विश्लेषण किया.आजकल यह चर्चा जोरों पर है, आपने सभी पहलु कवर किये, अच्छा लगा.
ReplyDeleteडा साहिब, आपने जो कहा वो एकदम सत्य है, उसका आधार वैज्ञानिक सोच लगता है,,, और हम जानते हैं कि 'पहुंचे हुए प्राचीन हिन्दुओं' की दृष्टि से देखें तो 'खाप' मुझे कुछ मिलावट के साथ लगभग एक दम नवीन या आधुनिक सोच समान भी लगता है जिस में हम धरती को बचाने हेतु पेड़ों को बचाने के लिए कागज़ का प्रयोग कम या बिलकुल नहीं करना चाह रहे हैं, और फास्ट ट्रैक कोर्ट बना भी रहे हैं,,, और हो सकता है यह 'संयोगवश' ही लगता हो कि हमारे उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र में आज भी 'खाप' का मतलब 'मुंह' होता है, अनादि काल से शायद - इस को ध्यान में रखते हुए कि हिन्दू मूलतः जोगी थे जो घाटी से घर बार छोड़ पहाड़ी गुफा आदि में रहने चले जाते थे, और हमारा सारा 'सही' ज्ञान उन्ही की देन माना जाता है,,,सारे राग रागिनी आदि उन्ही की वैज्ञानिक आधार पर, समयानुसार बनायीं गयीं कृतियां हैं!...
ReplyDeleteकिन्तु, 'वर्तमान' खिचड़ी यानी मिली जुली सोच को दर्शाता है, "कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा / भानुमती ने कुनबा जोड़ा" समान, जिसका गवाह हमारा इतिहास भी है,,,जिस कारण सब जसपाल भट्टी के 'उल्टा पुल्टा' समान लग रहा है, एक उलझे हुए ऊन की लच्छी समान, जिसमें एक हिस्सा खींचो तो गाँठ कहीं और पड़ जाती है, और यह चलता रहता है (प्रकृति का इशारा? मान्यता यह भी रही है कि 'उसकी मर्ज़ी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता'!)...
उपरोक्त को देखते हुए प्राचीन किन्तु ज्ञानी 'हिन्दुओं' समान शायद अंततोगत्वा मानना पड़ेगा कि यह 'माया' या झूट का नतीजा है जिसके द्वारा यह संभव है कि हम उत्पत्ति के आरंभिक काल में सब कालों का मिला जुला प्रभाव देख रहे हैं जहां झूट अधिक और सच कम है - मेरा आरंभिक काल का सच आपके सच से यूं भिन्न हो सकता है...किन्तु परम सत्य सभी का एक (सत युग के अंत में :)
जय हिंद!
हर पहलू पर गौर करने के बाद यही लगता है कि ओनर किंलिंग समाज में नियम बनाये रखने के लिये बेहद जरुरी है ?
ReplyDeleteडॉक्टर साहब आपने सही विषय उठाया।
ReplyDeleteगौत्र कुल-वंश-खांनदान का परिचय होता है कि आप किस खानदान से हैं।
गोती-गोती भाई-बाकी सब असनाई। सगोत्र होने पर भाई बहन ही माना गया है,क्योंकि वंशवृक्ष के अनुसार कहीं न कहीं जाकर एक परिवार ही गिना-माना जाता है।
कई समाजों में नानी-दादी-मामा के कुल को भी बहन-भाई के रिश्तों में गिना जाता है तथा इनके गोत्र में विवाह वर्जित है।
मैं स्वयं भी एक ही कुल गोत्र में विवाह का समर्थन नहीं करता। लेकिन ऐसी गलती कोई करता है तो उसकी हत्या के अतिरिक्त अन्य कोई उचित समाधान ढुंढने की आवश्यकता है।
राम राम
सटीक विश्लेषण.... सार्थक व सामयिक पोस्ट... जैसा ललित जी ने भी कहा कि इसके लिये हत्या उचित समाधान नहीं हैं, मैं सहमत हूं...
ReplyDeleteसमसामयिक पोस्ट...वैज्ञानिक विश्लेषण....लेकिन बहुत से धर्मों में सगे भाई बहन को छोड़ कर बाकी चाचा मामा के बच्चों में आपस में विवाह हो जाते हैं.....
ReplyDeleteदराल सर,
ReplyDeleteआज शायद पहली बार आपके रुख से कुछ अलग होने जा रहा हूं, इसलिए पहले ही दृष्टता के लिए माफ़ी मांग रहा हूं...सामाजिक दृष्टि से तो नहीं लेकिन मेडिकल साइंस के नज़रिए से जानता हूं कि नज़दीक के रिश्तों में विवाह नहीं होना चाहिए...जेनेटिक डिस्ऑर्डर्स हो सकते हैं...गोत्र पर द्विवेदी सर के विचारों का मुझे भी इंतज़ार है...
कुछ प्रश्न रख रहा हूं...
1.कन्या भ्रूण हत्याओं के चलते हरियाणा-पंजाब में महिला-पुरुष लिंग अनुपात देश में सबसे कम है...लड़कों के लिए लड़कियां ढूंढने से नहीं मिल रहीं...अब गोत्र-खाप की इतनी बंदिशें रहेंगी तो लड़कों की शादी के लिए लड़कियों का संकट बढ़ता ही नहीं जाएगा...
2.ये सही है खाप-पंचायतों के नियम-कायदे सदियों से चलते आ रहे हैं...इनसे गांव में व्यवस्था बनाए रखने में मदद बहुत मिलती है...लेकिन क्या इन खाप-पंचायतों को भी बदलते ज़माने के साथ अपने दृष्टिकोण में बदलाव नहीं लाना चाहिए...
3.अगर खाप-पंचायतों के फैसलों से ही समाज चलना है तो फिर देश के संविधान, क़ानून, अदालतों, पुलिस का औचित्य ही क्या रह जाता है...
4. किसी लड़के-लड़की की हत्या कर दी जाती है तो पूरी खाप-पंचायते एकजुट होकर कातिलों का साथ देती हैं...यहां तक कि मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, एमएलए, विरोधी पार्टियों के नेता कोई भी खुल कर विरोध नहीं जता पाता...ज़ाहिर है कि वो हर चीज़ को वोट के नज़रिए से देखते हैं...
5.हिसार के पास मिर्चपुर में दलितों के घरों को फूंक दिया गया, क्यों उसकी हर तरफ से भर्त्सना नहीं हुई...राहुल गांधी ने वहां का दौरा किया और सोनिया गांधी को हरियाणा सरकार को फटकार लगानी पड़ी...
डॉक्टर साहब, आपके कुछ बिंदु जायज़ हैं लेकिन मेरे प्रश्नों का भी जवाब मिलेगा तो मुझे अच्छा लगेगा...आपका मैं बड़े भाई जैसा ही सम्मान करता हूं...इसलिए आपके सामने अपने अलग विचार रखने का संकोच तो है लेकिन मुझे लगता है आप मुझे ऐसा करने पर भी आशीष ही देंगे...
जय हिंद...
दराल सर,
ReplyDeleteबधाई,
शायद पहली बार आपकी पोस्ट पर नापसंदगी का चटका देख रहा हूं...मतलब आप भी अति लोकप्रिय ब्लॉगर बन गए हैं...
जय हिंद...
आपने बहुत अच्छे तरीके से इस विषय पर रौशनी डाली!ललित जी से पूरी तरह सहमत!अभी थोड़ी ज्ज्दी है सो अभी इतना ही बाकी फिर...
ReplyDeleteकुंवर जी,
मैं तो यही कहूँगा कि हम शायद बिना सोचे समझे कहते हैं कि हम, या कहलें कि पश्चिमी देश, आज बहुत प्रगति कर चुके हैं क्यूंकि बच्चे- बच्चे (अधिकतर शहर में) एक ओर तो कुछेक 'ए सी' स्कूल में गोली भी मार रहे हैं अपने साथियों को और मोबाइल से अश्लील एम् एम् एस बना सकते हैं और दुनियाभर से बातें कर सकते हैं (?), जबकि डॉक्टर लोग अभी तक यह निर्णय नहीं कर पाए हैं कि यह सेहत के लिए सही है भी कि नहीं!
ReplyDeleteकई वर्ष पहले मेरे दोस्त के जीजाजी के कान के पीछे ट्यूमर हो गया,,, ऑपरेशन हुआ तो यही कहा गया कि अपने काम के चलते मोबाइल उनके कान से चिपका ही रहता था :( ...
ये सब आज जानते भी हैं, और कहते फिरते भी हैं, कि नए नए कानून तो बनते ही रहते हैं किन्तु फिर भी सब तोड़े जाते हैं, अधिकतर उनके द्वारा जो बाहुबली होते हैं या जिन पर माँ लक्ष्मी की कृपा अधिक होती है...टीवी पर तो आज समस्याओं पर रोज बहस चलती ही रहती है किन्तु निवारण किसी भी 'बुराई' का नहीं होता: बस यह कह कर रह जाते हैं, जैसे कि, 'पाकिस्तान सही काम नहीं कर रहा,,, आतंकवादी को प्रशिक्षण दे रहा है', और दूसरी ओर खुद फांसी की सज़ा सालों बाद दिए जाने पर भी फांसी पर चढ़ाया नहीं जाता,,, और आतंकवादी को 'मुर्गा' आदि खिलाने पर करोड़ों खर्च होता जा रहा है जबकि ग़रीब और भूखे भारतीय किसान पेड़ से लटक जाते हैं :)
क्या यह कलियुग की झलक या ट्रेलर नहीं है? :)
एक ही गोत्र में विवाह के आपने जो वैज्ञानिक कारण बताए हैं, उनके असहमति नहीं हो सकती, पर प्रेम तो अंधा होता है। उसे कोई कैसे समझाए?
ReplyDelete--------
कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
दराल साहब!
ReplyDeleteहिन्दू विवाह कानून में गोत्र शब्द कहीं नहीं है। वहाँ सपिण्ड विवाह प्रतिबंधित हैं और हो जाएँ तो वे शून्य और अकृत होंगे अवैध होंगे। विवाह का कोई भी पक्षकार उन्हें न्यायालय से अकृत या शून्य होने की घोषणा करवा सकता है।
सपिंड को अधिनियम में परिभाषित किया गया है। पुरुष संबंधों में पाँच पीढ़ी तक और स्त्री संबंधों में तीन पीढ़ियों तक ऊपर या नीचे के संबंध सपिंड माने जाएंगे। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि एक व्यक्ति के दादा के दादा के जितने भी स्त्री पुरुष वंशज हैं उन से विवाह वर्जित होगा। इसी तरह उस व्यक्ति की माँ के परिवार में माँ व उस से दो पीढ़ियाँ ऊपर व नीचे के रिश्तेदार सपिंड कहलाएँगे।
इन में विवाह वर्जित है।
हमारे यहाँ गोत्र का अर्थ है एक ही पुरुष के तमाम वंशज सगोत्रीय कहलाते हैं। लेकिन पुरातन पुस्तकों में यह नियम भी वर्णित है कि बारह पीढि़याँ गुजर जाने के उपरांत गोत्रों का पुनर्निर्धारण होना चाहिए। उदाहरणार्थ मेरा मूल गोत्र कौशिक है, लेकिन इस तरह पुनर्निधारण के उपरांत गोत्र द्विवेदी हुआ। द्विवेदी गोत्र में पुनः पुनर्निर्धारण के उपरांत गोत्र रायद्विवेदी हुआ। इसी तरह चंवरद्विवेदी आदि गोत्र उपलब्ध हैं। पूर्व के काल में गोत्रों का पुनर्निधारण हर तेरहवीं पीढ़ी में हो जाता था। अब यह प्रक्रिया रुक गई है। इस कारण लोग रिश्तों के मामलों में घुटन महसूस करते हैं।
हरियाणा की गोत्र परंपरा का मेरा अध्ययन नहीं है। न ही कहीं उपलब्ध हो सका है। यदि दराल साहब उसे यथार्थता से प्रस्तुत करें तो उस की जानकारी लोगों को मिल सकती है।
जहाँ तक खाँप पंचायतों का प्रश्न है वे तो एक गाँव के लोगों को एक गोत्र का ही मानती हैं। पुराने जमाने में गोत्र को ही गाँव कहते होंगे, इस कारण यह परंपरा चली आ रही है। मुझे लगता है कि पुरातन साहित्य की तेरहवीं पीढ़ी में गोत्रों का पुनर्निधारण करने की बात खाँप पंचायतों के सामने रखी जानी चाहिए। वहाँ इस बात पर विचार विमर्श किया जाए तो शायद वे अपने विचारों में परिवर्तन ला सकते हैं। समय के अनुसार लोगों को बदलना चाहिए। एक ही ढाँचा हमेशा नहीं चल सकता. चलने पर वह सख्त हो कर बिखर जाता है।
डॉक्टर साहब-इस्से मामले मै पाच्छै फ़ैसला चाहे सरकार करे, पण पैले तो बिरादरी ही करेगी। चाहे वो छोटी हो या बड़ी हो।
ReplyDeleteएक गोत म्हे एक रिश्ता हो ग्या। दोनु नो्से-नोसी फ़ेरों पै बट्ठे थे। चानचक एक रिश्तेदार आ गया छोरी आळां का जो छोरे आळे नै भी पिछाणै था। उसनै बताई के दोनुआं का गोत तो एक्के सै। सारयां नै सांप सुंघ ग्या। इब बात बिगड़गी, मामला कुकर सुळझैगा? तो छोरी का मामा बोल्या, इब जो होणा था वो तो हो लिया। एक काम करों आज तै इस छोरी नै मन्ने गोद दे दो और मेरा गोत इसका मान ल्यो। इस तरियां उसनै काम सुळझा दिया।
या कहाणी मेरी सुणयोड़ी सै। म्हारा ताउ बताया करता। पण बिरादरी जाट और बांमणां की कोनी थी।
गोदियाल जी , हमेशा की तरह आप की बात वज़नदार लगती है।
ReplyDeleteनीरज रोहिल्ला जी , आपकी बात सही है । लेकिन अनुवांशिक गुणदोष तो एक पहलु ही है । बेशक यह एक सम्भावना है , लेकिन कुछ मामलों में एक निश्चित सम्भावना । जैसे थैलेसिमिया के कैरियर पति पत्नी से उत्पन्न होने वाली संतानों में २५ % निश्चित रूप से थैलेसिमिया से पीड़ित होंगे । यह अलग बात है कि यदि एक ही संतान हो तो कहना संभव नहीं है कि उसे ये रोग होगा या नहीं ।
लेकिन यहाँ सामाजिक पहलु ज्यादा महत्त्वपूर्ण है , जिसे नकारा नहीं जा सकता ।
विवेक जी , क्या कह गए । कुछ कन्फ्यूजन लगता है।
ललित शर्मा जी आपसे मैं भी सहमत हूँ।
खुशदीप , यह पोस्ट तो आप सब के विचार जानने के लिए ही लिखी है । इसलिए धृष्टता कैसी।
ReplyDeleteआपके सवालों का ज़वाब :
१) बिल्कुल सही । लेकिन इसका हल भाई बहनों में विवाह नहीं है।
२) हमारे सामाजिक नियम हमारी संस्कृति को दर्शाते हैं । क्या हम अपनी संस्कृति को बदलना चाहेंगे । यदि ऐसा हुआ तो हम भी पश्चिमी देशों की तरह व्यवहार करने लगेंगे , जहाँ एक २८ वर्ष का युवक अपनी ८० साल की नानी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाकर खुश रहना चाहता है।
३)सामाजिक नियम अलग हैं और कानून अपनी जगह है । समाज कानून की जगह नहीं ले सकता । न ही कानून तोड़ सकता है । इसलिए कानून को ही सख्त होना चाहिए ।
४) यह तो मैं पहले ही लिख चुका हूँ कि हत्या एक जघन्य अपराध है । इसे किसी तरह से भी सही नहीं कहा जा सकता ।
5) बेशक ऐसे मामलों में भी खाप को अपना रोल अदा करना चाहिए ।
अंत में खुशदीप मुझे ख़ुशी है कि आपने स्पष्ट रूप से अपनी शंकाएं ज़ाहिर की । सभी वर्गों , जातियों और विभिन्न क्षेत्र के लोगों की अपनी अपनी सामाजिक व्यवस्था होती है । इसके दायरे में रहकर चलने से समाज में शांति रहती है।
डॉ साहब हम आपसे पूरी तरह सहमत हैं।
ReplyDeleteहमारे विचार में जो लोग इस तरह के बखेड़े खड़े कर रहे हैं वो या तो भारत की जीबन पद्दति से अनभिज्ञ हैं या फिर भारत के शत्रुओं के हाथों विके हुए ऐसे गद्दार जो बार-बार भारत की सातविक परम्पराओं पर हमला कर भारत को छिन्न भिन्न करने पर तुले हैं
जिन बातों को ये लोग समाज पर थोपना चाहते हैं उनका हमारे पशु पहले से ही पालन कर रहे हैं जैसे कि कपड़े न पहनना या कम पहनना ,रिस्तों को ना मानना,मर्यादाओं को किनारे कर खुलेआम सैक्स करना वो भी विना किसी जिम्मेदारी के
द्विवेदी जी , आभार !। आपने इस विषय पर विस्तृत जानकारी दी । गोत्र और सपिंड तो एक जैसे ही लगते हैं । यानि कानून भी मानता है कि विवाह के लिए कुछ दूरियां होना आवश्यक है।
ReplyDeleteहरियाणा में गोत्रों की उत्पत्ति के बारे में तो मैं भी नहीं जानता । इतना अवश्य पता है हमारे गाँव की उत्पत्ति एक ही परिवार से हुई थी , जो कुछ सदियों में एक बड़ा गाँव बन गया । इसलिए हमारे गाँव में सब एक ही गोत्र के हैं । यह जानकारी मुझे अपने दादाजी से प्राप्त हुई थी और हरिद्वार से आने वाले भाठ लोगों के खातों में सब वर्णन आता है।
अंत में गोदियाल जी की बात पर भी गौर करें । क्या प्यार करने के लिए पड़ोस की लड़की ही मिलती है ? क्या यह सामाजिक गिरावट नहीं ?
क्या हम पुरखों से सहेजी गई अपनी संस्कृति को बदलना चाहते हैं ।
सबसे बड़ी बात --क्या प्यार सचमुच इतना अँधा होता है ?
जैसा कि रोहिल्ला जी ने कहा, क्या इस बाबत कोई विस्तृत अध्ययन उपलब्ध है कि सगोत्रीय विवाह के कारण फ़लाँ-फ़लाँ समस्या आई? कई बार कहा जाता है कि समान ब्लड ग्रुप वालों की शादी भी नहीं होना चाहिये, जबकि कई-कई मामलों में इसमें भी कोई गड़बड़ी परिलक्षित नहीं हुई है। अतः गोत्र वाला मामला तो व्यक्ति विशेष पर भी छोड़ा जा सकता है। जहाँ तक गाँव की सामाजिक व्यवस्था का प्रश्न है, आजकल टीवी-मोबाइल-सिनेमा की वजह से अब यह बन्धन ढीला पड़ने लगा है और युवाओं के विद्रोही तेवर देखते हुए, इसे और दबा पाना सम्भव भी नहीं है।
ReplyDeleteवहीं दूसरी ओर खाप पंचायतों द्वारा ऑनर किलिंग बिलकुल ही नाजायज़ है, इस पर लगभग आम सहमति है… अतः सरकार को खाप के दबाव में आये बिना अपना काम करना चाहिये। सगोत्रीय विवाह पर रोक के लिये कोई अध्ययनयुक्त रिपोर्ट पेश करके ऐसा किया जा सकता है, लेकिन ऑनर किलिंग के दोषियों को सजा मिलना ही चाहिये, वरना हममें और तालिबान में क्या अन्तर रह जायेगा?
इनब्रीडिंग से आगामी पीढ़ियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. इसलिए स्वगोत्र में विवाह की वर्जना सही है. सुन्दर आलेख के लिए आभार.
ReplyDeleteधर्माचार्यों को इस मामले को सिर्फ़ विज्ञान के हवाले करना ही होगा. अथवा महाभारत काल की व्यवस्था को समझना होगा ,
ReplyDeleteविवाह तो सर्वथा व्यक्तिगत विषय है. किंतु सांस्कृतिक क्रांति के चलते इसने जो सुंदर आकार लिया उसमें कई विकार भी जड़ दिये गये . अब इसे इतना भी व्यक्ति गत न बनाया जावे कि नानी के.... जैसे उदाहरण सामने हों. किंतु सामाजिक वीभत्सता देखिये विवाह को सेक्स के अलावा अन्य एंगल से देखने का विज़न ही गत दिनों की बातें बन गईं. शीघ्र आगे लिखूगा.
ReplyDeleteजितनी उम्दा पोस्ट उतनी उम्दा टिप्पणियाँ.
ReplyDeleteसभी को पढ़ा... सभी के विचार जाने ..अच्चा लगा. अधिक अच्छा यह लगा कि सभी ने बिना लाग लपेट के अपने विचार व्यक्त किये हैं.
...मैं भी गोदियाल जी से सहमत हूँ ..
लेकिन एक प्रश्न मुझे परेशान कर रहा है कि जब हम सगोत्रीय विवाह को अनुचित ठहराते हैं तो फिर दूसरे गोत्र में शादी को खुलेआम मान्यता देने से क्यों हिचकते हैं..?
मेरा मतलब है.. अंतरजातीय विवाह..!
यह तो सगोत्रीय नहीं है ?
क्या खाप पंचायत इसकी अनुमति देता है..?
क्या डा० साहब अंतरजातीय विवाह के वैज्ञानिक लाभ भी बताएँगे..!
..इस बिंदु पर भी चर्चा हो अच्छा है.
आपसे असहमत हूँ।
ReplyDeleteमैं भी उस जमाने के पंजाब व आज के हरियाणा में जन्मी और पली बढ़ी हूँ, उस भूमि से बहुत लगाव है और जानती हूँ कि वृद्धों का जितना अनादर वहाँ देखा है उतना कहीं नहीं देखा है। मैं भारत के बहुत से प्रान्तों में रही हूँ। केवल वहीं ही मैंने माता पिता के लिये बुढ़ा बुढ़ी शब्द प्रयुक्त होते देखे हैं।
यदि खाप इतनी ही सफल सामाजिक इकाई थी तो क्या कारण है कि खाप वाले इलाकों में ही कन्या शिशु हत्या होती थी? सबसे अधिक कन्या भ्रूण हत्या भी वहीं होती हैं? सबसे बुरा स्त्री पुरुष अनुपात भी वहीं है? क्या प्रेमियों की हत्याओं की तरह इन जन्मी अजन्मी कन्या हत्याओं के पीछे भी खाप का ही हाथ तो नहीं? कहीं वे ही ऐसे मामलों में हत्यारों का साथ देती हों, किसी को उनकी शिकायत या उनके विरुद्ध कदम उठाने से रोकती हों? क्या खाप के भय से ही कन्या जन्म के समय ही मार तो नहीं दी जाती थीं पुराने समय में? इस सब में खाप की भूमिका क्या रही है? हो सकता है कि आज जब कुंवारे बेटों के लिए वधुएँ खरीदने की स्थिति आ गई है तो वे जागी हों, किन्तु यदि वे इतनी ही समझदार थीं तो ऐसी स्थिति आई ही क्यों?
क्या कारण है कि स्त्रियों के लिए सबसे असुरक्षित क्षेत्र ये खाप क्षेत्र ही हैं? क्या कारण है कि सबसे अधिक स्त्रियों की छेड़ छाड़ इन्हीं क्षेत्रों में होती है?
नीरज रोहिल्ला जी की बात में दम है।
एक विचित्र घटना की याद आ रही है। मेरे घर की एक स्त्री गर्भवति थीं व दक्षिण से हमारे घर आईं। तीन कुमाँऊनी घर गईं व संयोग से तीनों घरों में मानसिक या शारीरिक विकलाँग बच्चे थे। ये सब गोत्र व सपिंड व्यवस्था को मानने वाले थे। यह केवल संयोग रहा होगा। किन्तु ऐसा भी होता है। क्या किसी ने कोई अध्ययन किया है कि दक्षिण भारत में जहाँ मामा से विवाह हो जाता है वहाँ शारीरिक व मानसिक विकलाँगता अधिक है?
हाँ, मैं भी मानती हूँ कि जीन्स में जितना अधिक व्यापक मेल होगा उतना ही अच्छा होगा। तो क्यों नहीं अन्तर्जातीय व अन्तर्प्रान्तीय विवाहों को बढ़ावा दिया जाता?
प्रेम को आप खारिज नहीं कर सकते। इसका महत्व प्रेमी ही समझ सकते हैं। यहाँ भी कुछ बुरे लोग प्रेम का ढोंग कर सकते हैं किन्तु प्रेम संसार को सुन्दर ही बनाएगा। संसार की कोई खाप चाह कर भी हमें यह नहीं बता सकती कि किससे प्रेम करें। खाप प्रयत्न कर सकती है किन्तु असफलता तो निश्चित है।
यह विषय बहुत व्यापक है व किसी भी बात के दो पहलू होते हैं। बस यह याद रखना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति या संस्था को यदि सर्वशक्तिमान बनाया जाएगा तो वह उस शक्ति का दुरुपयोग करेगा ही करेगा। खाप ने भी किया है।
घुघूती बासूती
Nice 8251888923
Deleteतीन कुमाँऊनी घर गईं व संयोग से तीनों घरों में मानसिक या शारीरिक विकलाँग बच्चे थे।
ReplyDeleteise samajhanaa hogaa jee
@ Mired Mirage
ReplyDeleteकृपया भाषा पर न जाएँ । हरियाणा में मां बाप को भी तू कहकर संबोधित करना बुरा नहीं माना जाता । सच तो यह है कि आज भी संयुक्त परिवार हरियाणवी लोगों में ज्यादा नज़र आते हैं। यहाँ तक कि शहरों में भी । दूसरी तरफ ज्यादातर शहरियों में शादी होते ही बेटा बहु अलग घर ढूँढने लगते हैं । मैं कितने ही ऐसे परिवारों को जानता हूँ जहाँ औलाद बूढ़े मां बाप को बेसहारा छोड़ मौज मस्ती करते रहते हैं ।
मेल फिमेल रेशो सारे भारत में ही गड़बड़ है । सिर्फ केरल को छोड़कर ।
बहुत सी बातों में संयोग भी जुड़ा होता ही है ।
कोई रेफेरेंस तो नहीं , फिर भी इन ब्रीडिंग को वैज्ञानिक तौर पर गलत ही बताया गया है।
यदि आप गहराई में जाना चाहते हैं तो पहले तो आपको 'हिन्दू' और 'इन्दू' यानी चन्द्रमा के बीच का रिश्ता ढूंढना होगा, जैसा योगियों ने जाना,,, और तब शायद उसे आज के आधुनिक वैज्ञानिक के समान पता चलेगा की चन्द्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी से ही हुई,,, इस आधुनिक पश्चिमी सत्य को हमारे पूर्वजों ने अनादि काल से जाना और इसके सार को मानव मष्तिस्क में भी जाना,,, और 'पश्चिमी वैज्ञानिक' भी मानते हैं कि प्राचीन काल में भारत के खगोलशास्त्री बहुत ऊंचे पहुंचे हुवे थे,,, किन्तु आम आदमी के लिए उन्होंने सांकेतिक भाषा का उपयोग किया,,, मनोरंजक कहानियों के द्वारा गंभीर विषयों पर भी कहा जो एक पीढ़ी से दूसरी तक 'बेटन पास' करने वाले खेल के माध्यम से शायद समझा जा सकता है,,, जैसा हम जानते हैं कि कैसे विष्णु शर्मा ने मूर्ख राजकुमारों को 'नीति शास्त्र' पढ़ाने हेतु 'पंचतंत्र' की कहानियों में पशु के माध्यम से सिखाया...
ReplyDeleteइसी प्रकार खगोलशास्त्र सिखाने के लिए पुराण लिखे गए, जिनमें 'विष्णु' और 'शिव' दोनों को चार हाथ वाला, और उनके तीसरे साथी 'ब्रह्मा' को चार मुख वाला बूढा व्यक्ति चित्र के माध्यम से दिखाया गया है,,, और 'विष्णु' को 'योगनिद्रा' (सुपर कोंशस स्टेट) में क्षीर-सागर के मध्य में अनंत शेषनाग की पीठ पर लेटा अनादी काल से दिखाते आये हैं... 'माँ काली' के भयानक चित्र से धरती के भीतर छुपी शक्ति अथवा अग्नि को दर्शाया जाता है, यह तो शायद समझना कठिन न हो,,, और, आज का युवक, भले ही वो 'हिन्दू' परिवार का सदस्य ही क्यों न हो, अंग्रेजी में एनर्जी अथवा अमृत 'शक्ति' के विषय में पढ़ तो लेता है किन्तु उनको हमारी कहानियों से जोड़ कर नहीं देखता, एक घोड़े के समान जिसके आँखों के बगल में पट्टे या ब्लिंकर्स लगे होते हैं क्यूंकि उसे केवल मानव द्वारा निर्धारित मार्ग पर सीधे ही चलना होता है, हरी घास देख बिदक नहीं जाना है... जबकि जैसा ज्ञानी 'हिन्दुओं' ने समझा, मानव को शायद ईश्वर द्वारा निर्धारित मार्ग पर चलना तो होता है,,, किन्तु कौन दिखायेगा उसे वो मार्ग??? जबकि हम इतना तो जान गए हैं की मानव का मष्तिस्क एक सुपर कंप्यूटर है, मानव द्वारा निर्मित कंप्यूटर से कार्य क्षमता में कई गुणा विशाल यद्यपि अकार में बहुत छोटा,,, किन्तु 'हाय रे इंसान कि मजबूरियाँ' कि इतनी महँगी मशीन की डिलीवरी के साथ कोई पुस्तिका ऊपर वाला नहीं देता जबकि हम मानव द्वारा निर्मित हर महँगी या सस्ती मशीन को बिना ऐसी पुस्तिका के काम नहीं चला सकते :),,, और वैज्ञानिक जानते हैं कि सबसे अधिक ज्ञानी भी आज इसमें मौजूद अनगिनत सेल का एक नगण्य भाग ही प्रयोग में लाने में सक्षम है :( इसका दोष ज्ञानी 'हिन्दू' काल यानी समय को दे गए...
वाह सर एक और सार्थक मुद्दे पर कमाल की बहस पढने को मिल गई आपको धन्यवाद । पोस्ट को सहेज लेता हूं । टिप्पणियों ने इसे पूर्णता प्रदान की है । अच्छी बात ये लगी कि जब हमारे पुराने ब्लोग्गर्स विचार शून्यता के अभाव में जाने कैसे कैसे आक्षेपों में उलझे हुए हैं यहां इस तरह के प्रयास हो रहे हैं ।
ReplyDeleteपूरी पोस्ट और टिप्पणियों के बाद जो बात अब तक नहीं कही गई वो भी रखता चलूं । असल में तो ये मेरी दुविधा ही है । जैसा कि द्विवेदी जी ने बताया कि भारतीय कानून में सपिंड संबंधों में विवाह को प्रतिबंधित किया गया है और इसके शायद वही वैज्ञानिक आधार भी होंगे । मगर सोचता हूं कि भारत से बाहर जहां , गोत्र पिंड आदि का झंझट नहीं पाला होगा उन्होंने क्या वहां भी इस विषय में कोई नियम नीति या ऐसा कोई रिवाज होगा । बेशक वहां खाप पंचायतें न हों और किसी को यूं टांगा भी नहीं जाता हो मगर विज्ञान के नज़रिए से तो वो गलत और अनुचित हो ही सकता है न ।चलिए आगे देखते हैं कि क्या क्या निकलता है इस बहस में ।
डॉ टी एस दराल जी मै पंजाब मै पेदा हुआ ओर बडा भारत के अलग अलग शहरो मे हुआ, यानि मैने आधे से ज्यादा भारत को बहुत नजदीक से देखा है, ओर अंत मे मै कुछ साल हरियाणा मै रहा ओर गांव भी देखे, उस जमाने मै वेसे तो लडकियो को बाहर खेलने नही देते थे, लेकिन घर के आंगन मै सभी लडकियां मिल कर खेलती थी, जिन मै कई लडको की बहिने भी होती थी, तो हम सिर्फ़ एक लडकी को ही बहिन नही कहते थे सभी लडकियां हमारी बहिने ही हुआ करती थी, फ़िर जब हम अपनी मां के गांव जाते थे तो जवान सारे मामे हुआ करते थे, ओर ज्यादा उम्र के नाना ओर नानिया, ओर यही हाल अपने गा जाने पर हुआ करता था, सभी बाप से छोटे चाचा, काका ओर बाप से बडे को ताऊ या ताया जी ओर सफ़ेद बाल बालो को दादा या दादी, फ़िर शादी व्याह मै पंजाब मै भी सात रिशते देखे जाते है, जिस मै खान दान के बहुत ही ज्यादा रिश्ते आ जाते है, आप के लेख से सहमत है, गांव या मोह्ल्ले की लडकी तो बहिन ही हुयी, ओर फ़िर इस उम्र का प्यार कोई प्यार नही होता.... प्यार मै कोई इतना अंधा नही होता जो मां बाप की अन्देखी कर के अपने खुशियो के महल खडे कर, ओर जो ऎसा करता है वो प्यार को नही जानता, ओर पंजाब ओर हरियाणा मै इन सब बातो मै कोई फ़र्क नही बस यह फ़िल्म वाले बेवकुफ़ो की तरह से फ़िल्म मै बेकार की बकवास भर देते है
ReplyDeletePuratan kaal me to filme nhi thi tbb bhi prem vivaah hote the ,wo kaha se prerit hote the
Deleteजो भी हो, जैसा भी हो, कुछ भी हो, लेकिन किसी की ह्त्या करना-कराना और क़ानून को हाथ में सरासर गलत और अमान्य हैं. कोई भी रास्ता निकालिए, कोई भी उपाय कीजिये लेकिन क़ानून को ना तोडिये और ना ही ह्त्या कीजिये.
ReplyDeleteइसी तरह के मिलते-जुलते मुद्दे पर भी मैं भी दो बार ("ऑनर किलिंग का क्रूरतम सच" और "थाप को मारो थाप" शीर्षक से) लिख चुका हूँ.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
गोत्र की कानूनी मान्यता के विषय के बारे में तो द्विवेदी जी ने स्पष्ट कर दिया है लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से निकट सम्बन्धियों में विवाह नहीं होने चाहिये । अक्सर मौसेरे भाई बहनो या ममेरे फुफेरे मे बिवाह हो जाता है क्योंकि पिता के कारण वे अलग अलग गोत्र के होते हैं ।
ReplyDeleteकाफी उम्दा पोस्ट औऱ कई नई जानकारियां मिली...
ReplyDeleteकुछ बिंदू हैं....
कानून में जो हो वो सही हो यह जरुरी नहीं....शाहबानो केस में जो संशोधन किया गया था वो रद्दी के टोकरे में डालने लायक है..
सपिंड के बीच विवाह पर रोक पूरी तरह से विज्ञान सम्मत है..
महाराष्ट्र में मामा की लड़की के साथ शादी के बाद पर वैज्ञानिक अध्धयन होना जरुरी है..
समाज की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए नियम बनाए रखने होंगे औऱ उसपर अमल भी करना होगा..
पर सबसे आवश्यक बात तेरह पीढ़ी के बाद गोत्र दुबारा निर्धारित करने वाली प्रक्रिया को फिर से व्यापक तौर पर लागू करना होगा.....
सही मंच पर इस मुद्दे को जरुर उठाउंगा औऱ हल कराने की दिशा में प्रयास करुंगा...
हिंदूओं का प्राचिन ज्ञान वैज्ञानिक शोध पर अधारित है, इसलिए उसे फिर से याद करके अमल में लाना जरुरी है..कुछ वैज्ञानिक औऱ आधुनिक सोच को भी जोड़ना होग...
व्यापक तौर पर किए गए शोध के बाद लिखी कई किताबें अनपढ़ जालिम मुस्लमान शासको और लोगों द्वारा जला दी गईं....उसे दुबारा तलाशना जरुरी है...
1000 साल पहले हमने सोचने और शोध पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी, अत उस पर नए सिरे से नियम और समाजिक रीतियां तय करनी होंगी....खासकर गोत्र के नियम को
हत्या हर तरह से अवैध है, किसी को किसी की हत्या करने का अधिकार नहीं है..
समाजिक बहिष्कार ही सही उपाय है व्याभिचार में गिने जाने वाले कामों पर अकुंश लगाने का....
सगे भाई-बहन में संबंध क्यों नहीं होना चाहिए इस पर शास्त्रों में वर्णित भाई-बहन यम औऱ यमुना के संवाद को पढ़ लेते लोग तो ज्यादा अच्छा होता....कई जवाब एकसाथ मिल जाते...अनावश्यक सवाल नहीं करते....
1000 साल से हमारी सोच रुकी हुई है..उस फिर से ताजा करना होगा....उसके नोक फलक संवारने होगें.....
ReplyDeleteजाटों में बूढ़ा-बूढ़ी कहना अनादर का सूचक नहीं होता...गैर जाट होने के बाद भी मैं अच्छी तरह जानता हूं......
जो एक गाली पंजाबियों में आम है, उस पर बिहार में मार-काट मच जाती है..पर बिहार मे जो गाली अक्सर दी जाती है वो क्या सही है....
यही बात हर जगह लागू होती है....
फिल्म दिल वाले दुल्हिनया ले जाएंगे में शाहरुख खान तमाम बातों के बाद भी काजोल को उसके पिता की मर्जी के बिना अपने साथ ले जाने से मना कर देता है..औऱ काजोल को भी यही समझाता है........
विचारणीय मसला है पर भारतीय समाज में सामाजिक व्यवस्था इसे स्वीकार न करेगी .....
ReplyDeleteप्यार से भी ज़रूरी , कई काम हैं
ReplyDeleteप्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए
.... प्रभावशाली लेख!!!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteडा. साहिब, आजकल तो बहसों का अंत ही नहीं है... एक और प्रश्न पर भी आदमी बहुत बहस कर चुका है, और हर बारी हार मान लेता है: पहले मुर्गी आई या अंडा?
ReplyDelete'हिन्दुओं' ने भी ऐसे ही, किन्तु आधे-अधूरे 'आधुनिक वैज्ञानिक' समान नहीं (जो हर दिन कोई पुराने सत्य को नकार एक नया सच ले आते हैं, और जानते भी हैं कि अभी गंतव्य तो बहुत बहुत दूर है :), खोजने का प्रयास किया कि पहले आदमी आया या पृथ्वी ग्रह, यानी 'मृत्यु-लोक'? जो सब जीवों को, बिल्ली समान चूहे से खेल, अंततोगत्वा खा जाती है...और इस 'भू' या भूमि से पहले भी कभी क्या कोई अनदेखा अनजाना रहा होगा? यानी 'प्रभु' जिसकी लीला अपरमपार है, अथाह सागर समान जिसका ओर है न छोर... और मानो या न मानो, गहराई में जा, उन्होंने धरती को 'भवसागर' भी कहा और प्रभु का भौतिक रूप भी जाना ('गंगाधर शिव' :)... और इसको 'वसुधा' भी कह सब प्राणियों को इसका परिवार, "वसुधैव कुटुम्बकम"...:)
जुनिया में सभी का गोत्र एक ही है!
ReplyDeleteक्योंकि सब आदम और हव्वा की सन्तान हैं!
दुनिया में सभी का गोत्र एक ही है!
ReplyDeleteक्योंकि सब आदम और हव्वा की सन्तान हैं!
Scientifically a marriage within same Gotra cannot be appreciated as it has certain medical hazards.
ReplyDeleteSocially it is not acceptable as it is considered as incest.
@- Love is blind.
Love is an emotional need. Youngsters confuse love with their biological needs. Lack of proper guidance among children is the root cause.
Sex education can be a solution.
Regards,
Divya
किसी समय भूतकाल में जब द्वैतवाद ने नहीं घेरा था 'हिन्दुओं' ने जिसे शिव-पार्वती, या अर्धनारीश्वर कहा, उसे पश्चिम में आदम-हव्वा कहा गया...अर्धनारीश्वर शिव (सत्यम शिवम् सुंदरम वाले) की मूल अर्धांगिनी 'सती' कही जाती थी,,, जो सती-प्रथा का कारण बनी अपने पिता द्वारा आयोजित हवन के दौरान हवन-कुण्ड में आत्म-हत्या कर (इस कहानी को सही रूप में समझने के लिए ज्वालामुखी को ध्यान में रख कृपया पढियेगा),,,
ReplyDeleteऔर द्वैतवाद को जन्म देने, कालांतर में, शिव ने दूसरा विवाह 'हिमालय-पुत्री' पार्वती से किया (जिसे समझने के लिए ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि चन्द्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी ही से हुई)...इस प्रकार हमको पृथ्वी-चन्द्रमा को पृथ्वी से भिन्न नहीं देखना चाहिए, जैसे हम किसी भी एक व्यक्ति के धड को सिर से जुड़ा पाते हैं और उन्हें एक मटके के ऊपर रखे एक और मटके समान देख सकते हैं (कन्सेप्शन और गवर्निंग वेसल जैसे), जिसमें सिर को, यानी चन्द्रमा को, नंबर एक ('१') कह सकते हैं, उच्च स्थान के कारण...
पश्चिम में इसी प्रकार 'आदम' ('एडम') को आरंभ में अकेला दिखाया जाता है,, फिर उसकी पसली, यानी आदम के ही एक अंग से 'हव्वा' ('ईव') का निर्माण होता दिखाया जाता है...
यूं पूर्व और पश्चिम कभी एक ही बिंदू (नादबिन्दू ?) में समाये हुए थे,,,और ब्रह्मनाद (बिग बेंग) से अलग हो गए :)
बात निकली है तो फिर दूर तलक जाएगी...बहुत से विद्वानों ने इस विषय पर प्रकाश डाला है...अब मैं क्या कहूँ?
ReplyDeleteनीरज
दिव्या जी , अच्छे और सच्चे विचारों कि अभिव्यक्ति के लिए आभार ।
ReplyDeleteअज ही एच टी ने एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट दी है जिसके मुताबिक हरियाणा में ७७ % लोग सजातीय विवाह के विरुद्ध हैं । और इनमे सभी जातियों के लोग शामिल हैं ।
JC जी की लगन प्रभावित करती है।
ReplyDeleteबेचैन आत्मा जी का प्रश्न मुझे भी बेचैन किए हुए है ... जब हम सगोत्रीय विवाह को अनुचित ठहराते हैं तो फिर दूसरे गोत्र में शादी को खुलेआम मान्यता देने से क्यों हिचकते हैं..?
मेरा मतलब है.. अंतरजातीय विवाह..!
यह तो सगोत्रीय नहीं है ?
गिरिजेश जी ,सगोत्रीय और अंतरजातीय विवाह , दोनों अलग मुद्दे हैं ।
ReplyDeleteभले ही विवाह से सम्बंधित हैं ।
इस पर अलग से विस्तारपूर्वक विचार करने की ज़रुरत है।
@ गिरिजेश जी, "... राह पकड़ तू एक चला चल / पा जायेगा मधुशाला..." यानी लगन बिना अपने पूर्वजों के माथे में घुसना संभव नहीं है,,,
ReplyDelete"वसुधैव कुटुम्बकम" (या 'युनिवर्सल ब्रदरहुड'), अथवा "एक नूर तों सब जग उपजा...", हर भारतीय ने कभी न कभी सुना ही होगा...
तुलसीदास जी भी कह गए "जाकी रही भावना जैसी / प्रभु मूरत तिन देखि तैसी.",,, और हमारी साधारणतया बहुत समय तक मान्यता थी कि वैज्ञानिक किसी 'भगवान्' पर विश्वास नहीं करते,,, '८२ में सर फ्रेड होयल ने लेकिन यह कहा कि पृथ्वी पर 'जीवन', इसकी क्लिष्ट रासायनिक संरचना को देख, किसी अत्यंत बुद्धिमान जीव का ही काम रहा होगा, आदि,,, अपनी पंगा लेने की आदत के कारण पत्र द्वारा मेरे प्रश्न पूछने पर कि आपको यह मानने में क्या ऐतराज़ है कि उस बुद्धिमान जीव को शायद भगवान ने बनाया हो? आदि आदि, अपने अन्य हिन्दू सोच के भी साथ... उनकी सेक्रेटरी ने खेद जताते हुए पत्र में लिखा कि अपनी व्यस्तता के कारण वो मुझसे स्वयं पत्राचार करने में असमर्थ हैं... और फिर २००१ में स्टीफेन होकिंग ने अपनी भारत यात्रा के दौरान दिल्ली में समाचार पत्रों के अनुसार, इस प्रश्न के उत्तर में कि वो भगवान पर विश्वास करते हैं कि नहीं? उन्होंने कहा कि वो भगवान् के मष्तिस्क में प्रवेश पाना चाहेंगे!
'मेरे भारत महान' में कुछ व्यक्ति 'योगी' कहलाये गए हैं (योगिराज, योगेश्वर आदि भी) जो गहराई में जा मानव शरीर की संरचना में '९ ग्रहों के रसों' का उपयोग में लाया जाना मानते हैं: सूर्य से 'सूर्यपुत्र' शनि तक,,, और यह तो सभी जानते हैं कि सूर्य कि श्वेत किरण में सात रंग तो हमारी आंख को दिखाई पड़ते भी है और इसके अतिरिक्त काली रात तो अंतरिक्ष के काले रंग को प्रतिबिंबित करती ही है,,, और इनमें से मानव चमड़ी में सफ़ेद अंग्रेजों द्वारा, पीला चीनी-जापानियों द्वारा, काला अफ़्रीकां द्वारा, लाल कुछ अमेरिकेन और कनाडियन के गर्दन में विशेषकर प्रतिबिंबित होता देखा जा सकता है (और शायद कोई 'कवि' इसे कृष्ण का होली खेलने का सही अर्थ माने, क्यूंकि कहावत है "जहाँ न पहुंचे रवि / वहां पहुंचे कवि" :)... ...
डा. दाराल साहिब, वातावरण हल्का करने के लिए 'मधुशाला' की पहचान पर एक जोक प्रस्तुत है:
ReplyDeleteएक छोटे शहर में दो दोस्त पहुंचे और शाम को आप जैसे डॉक्टर की सलाह पर दो एक पेग लेना चाह रहे थे :)
सभ्य होने के नाते किसी से सीधे पूछने में भी शर्मा रहे थे.
जुगाडू थे, सो मुख्य-मार्ग में जहां लोग गो-धूलि काल में आ-जा रहे थे, प्रकाश के खम्बे के नीचे, सड़क के दोनों किनारे, अलग अलग आमने-सामने दूर बैठे अपने हाथ इस तरह घुमा रहे थे जैसे दोनों मिल कर रस्सी बट रहे हों!
आते जाते लोग उनकी अजीब हरकत देख आगे अपने पथ पर बढे जा रहे थे.
और फिर अचानक उनकी मुराद पूरी हो गयी और सही आदमी मिल गया! जब एक आदमी उस स्थान से गुजरते हुए ऐसे कूदा जैसे रास्ते में रस्सी हो!
देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ, चर्चा तो पूरी हो गयी मैं तो इतना कहना चाहूंगी कि किसी कि हत्या कर देना किसी भी समस्या का हल नहीं होता और साथ ही मेरी कविता जो आपने तो पढ़ी भी है फिर से दोहराना चाहूंगी
ReplyDeleteदर्द की दीवार हैं,
सुधियों के रौशनदान.
वेदना के द्वार पर,
सिसकी के बंदनवार.
स्मृतियों के स्वस्तिक रचे हैं.
अश्रु के गणेश.
आज मेरे गेह आना,
इक प्रसंग है विशेष.
द्वेष के मलिन टाट पर,
दंभ की पंगत सजेगी.
अहम् के हवन कुन्ड में,
आशा की आहुति जलेगी.
दूर बैठ तुम सब यहाँ
गाना अमंगल गीत,
यातना और टीस की,
जब होगी यहाँ पर प्रीत.
पोर पोर पुरवाई पहुंचाएगी पीर.
होंगे बलिदान यहाँ इक राँझा औ हीर.
खाप पंचायत बदलेगी,
आज दो माँओं की तकदीर.
ये सच है कहीं न कहीं तो सीमा निर्धारित करनी पढ़ेगी .... पर वो सीमा क्या हो ... ख़ास कर आज के तेज़ी से बदलते परिवेश में ... आज के मीडीया युग में .... कुछ ज्वलंत प्रश्नों का उत्तर इतना आसान नही ...
ReplyDeleteसामायिक पोस्ट और अच्छा विश्लेषण किया है आपने
ReplyDeleteसतही दृष्टि यदि डालें तो 'Mired Mirage' ने जैसा कुछ कुमाँउनी परिवारों का उदहारण दिया, जन्म से कुमाँउनी होने के नाते, यद्यपि मेरा जन्म शिमला में हुआ, (जब वो हरियाणा कि ही तरह पंजाब में था और आज कुछ वर्षों से हिमाचल में है), दिल्ली में पढ़े और बड़ा होने पर मेरी नज़र में भी अपने दूर के रिश्ते में एक परिवार ऐसा (शायद साठ के दशक में) देखने को मिला जिसमें पति-पत्नी दोनों एक दम नोर्मल थे,,, किन्तु उनका पहला लड़का हुआ तो उसका मष्तिस्क बढ़ने के लिए ऊपर की खोपड़ी पिचकी सी होने के कारण जगह ही नहीं थी! उसको हमने बन्दर की तरह उछलते और आवाज़ करते देखा! परेशान हो, कई परीक्षण करा, उन्होंने फिर से हिम्मत जुटाई,,, किन्तु दूसरा लड़का भी वैसा ही पैदा हुआ :(
ReplyDeleteथोड़ी सी नज़र अब इतिहास पर भी संक्षिप्त में डालना आवश्यक है जो सारे खेल बिगाड़ता लगता है... हमें बताया गया कि हमारे पूर्वज पहले मराठे थे,,, और शिवाजी महाराज के समय आगरा के किले की कैद से पीछा छुड़ा उस पहाड़ी क्षेत्र में भाग के आगए थे - औरंगजेब के भय से! और फिर वे अंतरजातीय विवाह कर अपनी पुरानी पहचान भुला वहीं बस गए! डा. साहिब, हो गया न सारा 'वैज्ञानिक हिसाब' गुड़-गोबर!
इस विषय पर विस्तार से अपने विचार प्रकट करने के लिए आप सब मित्रों का आभार। यूँ तो सब की राय एक नहीं हो सकती । लेकिन सारी टिप्पणियां पढ़कर यह साफ़ होता है कि :
ReplyDelete१) सगोत्रीय विवाह अधिकांश लोगों को स्वीकार्य नहीं है। यद्धपि कुछ वर्गों में इसे स्वीकार किया गया है।
२) किसी भी हालत में खाप को हत्या जैसे जघन्य अपराध करने का अधिकार नहीं है।
३) कानून में सगोत्रीय विवाह के बारे में कुछ भी साफ नहीं है। हालाँकि सपिंड विवाह वर्जित हैं।
४) किसी भी चीज़ की कोई तो सीमा होनी चाहिए ।
अब इस विषय को यहीं समाप्त करते हैं । आभार ।
prabhaav shali post.
ReplyDeleteIssue of sagotreeya vivah was deliberatley avoided and deleted by jawahar lal when he sucessfully implimented Hindu code Bill in seggregated form thereby including and deleting elements of hindu law as per his shallow understanding in the name of progressivism and to establish his secular credentials.. recently UPA II decided to further attack on our Vivah Sanstha..
ReplyDeleteRegret Daral Sahab to further extend this discussion, I am confirm opinion that in the coming days there will be more attack on our Vivah Sanstha with an ultimate objective of destroying it as its one of the basic constituent of our samaj-vyavastha
ReplyDeleteसोचने पर विवश करती प्रभावशाली पोस्ट
ReplyDeleteडा० साहब बहुत ही अच्छी पोस्ट है सोचने पर मझबूर होना पड़ा वसे आपने सही कहा है की प्यार से भी जरूरी कई काम है प्यार ही तो सब नहीं है ना ओर अगर देश के सभी नौजवान ऐसे ही प्यार में जान देते रहे तो देश के लिए क्रांतिकारी भगत सिंह सुभाष चन्द्र बोस कोण बनेगा, आपके लेख से पूर्ण सहमत हूँ!
ReplyDeleteमेरा एक दोस्त एक लड़की से सादी करना चाहता है। ओर लड़की की माता का विवाह पूर्व गोत्र लड़के के गोत्र से मिलता है तो क्या विवाह सम्भव है?
ReplyDeletePlease reply
ReplyDeleteआपने यह नहीं बताया कि आपके दोस्त की जाति क्या है ! गोत्र में शादी न करना जाति समूह पर ही निर्भर करता है। जैसा कि हमने पहले बताया, यह हरियाणा जैसे राज्य में सर्वथा वर्जित है। लेकिन कई अन्य जातियों व वर्णों में इसे सहमति है। बेहतर रहेगा , आप उसी जाति के लोगों से मालूम करें। वैसे देखा जाये तो माँ के गोत्र की लड़की तो मामा की बेटी जैसी हुई।
ReplyDeleteदोनो ब्राह्मण है। cg से।
Deleteओर 4-5पीढ़ी हो चुका है। तो क्या सादी के बाद उनके बच्चे में कोई प्रॉब्लम होगा?
ReplyDeleteब्राह्मण जाति नहीं वर्ण है। वैसे इस मामले में सबके अलग अलग विचार होते हैं। आप घरवालों से ही पूछिए कि यह मान्य है या नहीं। बच्चे तो बाद की बात है , पहले तो बड़ों से निपटना पड़ेगा।
ReplyDeleteThankyou sir
Deleteसर वो लोग कोर्ट मेरिज करना चाहते है। लड़का मिश्रा है ओर लड़की चतुर्वेदी। दोनो का वर्तमान गोत्र अलग है। तो क्या बाद में समस्या आएगी? जीन सेपेरेसन होगा या नहीं?
ReplyDeleteआम तौर पर यह सम्भावना तब ज्यादा होती है जब निकट सम्बन्धी हों। सगोत्रीय विवाह एक सामाजिक निर्णय के आधीन वर्जित है। समाज के नियम भी मनुष्य के भले के लिए ही बनाये गए हैं। हालंकि उनमे से कुछ पुराने और रूढ़िवादी हैं जिन्हे नाकारा जा सकता है। लेकिन फिर भी ऐसा विवाह भर्तस्नीय ही कहलायेगा। वैसे शायद कानूनी तौर पर तो कोई अड़चन नहीं आनी चाहिए।
ReplyDeleteगौत्रों का निर्धारण कब हुआ? किसने किया ? क्या पैमाने थे ? किस आधार पर वर्गीकृत किया गया ? और कितनी तरह के गौत्र तब निर्धारित हुये थे?
ReplyDeleteसर लड़का व लड़की दोनों द्विवेदी है गोत्र बे समान है लेकिन इसका कोई और उपाय है या नही ये बताये
ReplyDeleteSir Mai Bihar se hu Jise Mai chahata hu usaki Nani aur MERI Nani apas Mei Bahan hai kya ae Shaadi ho Shakti hai?
ReplyDeletePlease reply me
ReplyDeleteSir main ek ladki se pyar karta hun uska or Mera gotta ek hi hai hum dono garg Hain lekin alag alag garg Hai or wo ladki meri Bhabhi ke mausi ki ladki Hai to kya ye shadi ho sakti hai ya Nahi?
ReplyDeleteSir, mai brahmin hu or mai ek ladke se pyar karti hoon wo v brahmin h lkkn mera gottar vats Or uska v vats hi h gottar hm shadi krna chahty h plzz koi upay btaiye kaise bhi plzz it's humble request
Deleteगोत्र के मामले में सभी जातियों का विश्वास या परमपरा अलग होता है। आवशयक नहीं कि जो एक जाति में मान्य हो वह दूसरी जाति में भी मान्य हो। इसका सही जवाब आपके अपनी जाति या परिवार के लोग ही दे सकते हैं।
Deleteक्या हम अन्य गौत्र मे शादी कर सकते हैं। जैसे कि गुर्जरगौड़ से गौड़ की।
ReplyDeleteMaa ka gotar lag rha h kya sadi ho sakthi
ReplyDeletetraditionally she is supposed to be your sister . so how can you get married .
DeleteMujay samj m nhi ATI humare purvaj ek he to h Janam Dene vala ek he Insan he to h fer y jhatpat kyu h plzz reply I m right ya Rong
ReplyDeleteEsa kuch nhi hai.sage bhaiy bhen.ke Shiva koi saga nhi hai.soch ko bdlo.shadi honi chahiye.ek hi gotr me.yr Jo log pyr krte hai.unka Kya ksur.pyr sb chij dekh kr ni hota.
ReplyDeleteRelation me Mt kro ye glt hai but .dur anjan hai AGR .or ek gotr ho toh ho Jani chahiye.
ReplyDeleteNahi maante koi ,smaaj ke drr se hme17 saal hi ho chuke,1 gotra me
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