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Tuesday, May 25, 2010

सोमवार की एक शाम --ललित शर्मा जी के नाम ---

रविवार का दिनछुट्टी का दिन काम से आराम का दिनआराम --यदि नसीब हो सके तो
अक्सर इस मृत्युलोक में मनुष्य जीवन की दिनचर्या में इस कदर फंसा रहता है , कि आराम सिर्फ ख्वाबों ख्यालों में ही रह जाता है। इसी रविवार अविनाश जी ने एक ब्लोगर मिलन का कार्यक्रम रखा हुआ था। जाने का मन तो हमारा भी था । लेकिन मौसम , माहौल , समय , स्थान , सब ने मिलकर मूड को इस कदर हिलाया कि फिर अपनी जगह पर टिक ही नहीं पायाबहुत कोशिश की मगर वो नहीं माना

हमने तो मार्केट जाकर लाल टी शर्ट भी खरीदने की सोची , लेकिन पता चला कि सब की सब बिक चुकी थी
खैर
ललित भाई को तो हमने पहले ही बता दिया था कि भई अगर रविवार को नहीं मिल पाए तो सोमवार को निश्चित ही मुलाकात होगी।

सोमवार दोपहर को फोन किया तो पता चला कि ज़नाब राजीव तनेजा जी के साथ हैं और लंच कर रहे हैं । लगे हाथ हमने उन्हें रात्रि भोज के लिए आमन्त्रित कर लिया जो उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया । समय तय हुआ शाम के ८ बजे , सिविल सर्विसिज ऑफिसर्स क्लब क्योंकि श्रीमती संजू तनेजा भी आ रही थी , सो हमने भी श्रीमती जी को मना लिया चलने के लिये




अब हम तो निश्चित समय पर पहुँच गए लेकिन पता चला कि हमारे मेहमान तो अभी घर से ही बोल रहे थे । वो तो भला हो सोमवार का क्योंकि क्लब में गिने चुने लोग ही थे । सप्ताह के पहले दिन , सप्ताहांत के तूफ़ान के बाद की शांति थी इसलिए हम भी आराम से गोष्ठी कक्ष में पसर गए और टी वी ओन कर लिया । कहते हैं , हर बुराई में अच्छाई होती है । उनको देर होने से श्रीमती जी ने अपनी पसंद के सारे सीरियल्स क्लब के विशालकाय टी वी स्क्रीन पर आराम से देख लिए ।

इसी बीच सवा नौ बजे ललित जी का फोन आया कि वो पहुँचने ही वाले हैं


चित्र में बाएं से --राजीव तनेजा , यशवंत मेहता , ललित शर्मा , श्रीमती संजू तनेजा और डॉ रेखा दराल

हम भी स्वागत में जाकर गेट पर खड़े हो गए । कार से उतरकर ललित जी इतनी आत्मीयता से औपचारिकतापूर्ण मिले कि पहली बार हमें अपने बुजुर्ग होने का अहसास सा हुआ । ललित जी सिल्क का कुर्ता पायजामा पहने किसी रियासत के राजकुमार जैसे लग रहे थे ।

बाद में उन्होंने स्वीकारा कि किसी दिन वो छत्तीसगढ़ के सी ऍम भी हो सकते हैं

वैसे तो क्लब में थोडा बहुत ड्रेस कोड लागू होता है । लेकिन ललित भाई की मूंछे देखकर भला किस की हिम्मत हो सकती थी कि कोई कुछ कह सके । उलटे वेटर्स ने ललित जी का विशेष ध्यान रखा खातिरदारी में ।

उसके बाद --न ब्लोगिंग , न कोई मुद्दे, न राजनीति पर बात हुई ।
बस एक दूसरे को जानने , पहचानने और समझने की ही बात हुई

रेखा और संजू तो ऐसे बात कर रही थी जैसे बरसों से एक दूसरे को जानती हों

फैमिली लाउंज में बैठकर ऐसा लग रहा था जैसे एक ही परिवार के तीन भाई साथ बैठे होंबड़े भैया , सपत्निक और नौज़वान बेटा साथ में , सबसे छोटे जैसे नवविवाहित हों , और मूंछों वाले मंझले भैया जैसे बाल ब्रहमचारीएक सुखी परिवार

देर हो चुकी थी , इसलिए खाना पीना सब एक साथ ही हो रहा था ।
टीचर्स से भी मुलाकात हुई लाल परियां भी दिखाई दीं
सबसे अंत में हमीं उठे , घंटी बज चुकी थी क्योंकि ग्यारह बज चुके थे ।
बस एक कमी खल रही थी -- अविनाश , खुशदीप , अजय और वर्मा जी की लेकिन नियमानुसार केवल चार मित्र ही आमंत्रित किये जा सकते थे ।

लेकिन क्या हुआ , सोमवार तो फिर अनेक आयेंगे

फिर अगले महीने पाबला जी भी तो दिल्ली रहे हैं

45 comments:

  1. ललित जी.....मेरे दिल के बहुत ही करीब है.....

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  2. ललित जी.....मेरे दिल के बहुत ही करीब है.....

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  3. ललित जी सिल्क का कुर्ता पायजामा पहने किसी रियासत के राजकुमार जैसे लग रहे थे ।

    बाद में उन्होंने स्वीकारा कि किसी दिन वो छत्तीसगढ़ के सी ऍम भी हो सकते हैं ।

    शुभकामनाये !

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  4. ललित जी ने तो हमें भी पहुँचने के लिये कहा था दिल्ली हम ही नहीं पहुँचे। अब पछतावा हो रहा है।

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  5. बाद में उन्होंने स्वीकारा कि किसी दिन वो छत्तीसगढ़ के सी ऍम भी हो सकते हैं ।

    उस दिन का इन्तजार रहेगा :) शुभकामनाएँ

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  6. यह मिलन ही तो ब्लागीरों को नजदीक लाता है।

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  7. बहुत बढ़िया लगा! चित्र बहुत सुन्दर है और इसी तरह ब्लोगर बंधुओं से मिलने से बेहद ख़ुशी मिलती है!

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  8. टीचर्स और लाल परियां..एक समय मुझे भी खूब दिखती थी दराल साहब, लेकिन आपका अन्दाज अच्छा लगा।

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  9. ... बल्ले बल्ले ...!!!

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  10. हाय!! हम क्यूँ न हुए....

    खैर, अच्छा लगा जान सुन कर.

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  11. बहुत बढ़िया लगी आपकी मुलाकात ...................काश कि हम भी होते !

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  12. वाह ललित कुमार की तो मौज ही मौज :)
    दिल्ली पहुँच के तो अब प्रधान मंत्री के पद पर नजर होनी चाहिए

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  13. बहुत बढिया
    'अविनाश , खुशदीप , अजय और वर्मा जी की । लेकिन नियमानुसार केवल चार मित्र ही आमंत्रित किये जा सकते थे ।'
    आपने चार ही का तो नाम लिखा है

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  14. ललित जी अभी भी किसी सी एम से कम नहीं हैं
    छत्‍तीसगढ़ न सही ब्‍लॉगगढ़ ही सही। हमारे लिए तो यही महत्‍वपूर्ण है। भाभीजी से हम भी मिल लिए अब मिलने पर यह नहीं लगेगा कि पहले नहीं मिले थे। आभार अच्‍छा लगा स्‍वागत सत्‍कार।

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  15. आपकी यह मुलाक़ात बढ़िया रही....

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  16. वर्मा जी , ये चार अगली बार के लिए हैं ।

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  17. जय हो, अविनाश जी से सहमत.

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  18. बहुत अच्छा लगा यह मिलन,काश हम सब यु ही मिले,

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  19. अच्छा, तो डॉ सा'ब को खबर हो गई मेरे आने की :-)

    बुजुर्ग होने का अहसास भी खूब रहा!

    ललित भाई की मूंछे देखकर तो ...

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  20. दराल सर..आपका गर्मजोशी और आत्मीयता से मिलना दिल को छू गया...

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  21. बढ़िया रहा यह रात्रिभोज!
    अब हम भी किसी सोमवार को ही
    दिल्ली आने का प्लान बनायेंगे!

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  22. पाबला जी , शास्त्री जी , भाटिया जी--आपका स्वागत है । इंतज़ार रहेगा ।

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  23. ये तो बढ़िया रहा, आत्मीयता झलक रही है ....

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  24. बहुत बढ़िया

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  25. har koi lalit sharmaajaisa khushnaseeb nahi ho sakataa . isake liye lalit sharmaajaisaa bhi to bananaa padta hai. sahaj...saral...susheel...sajjan,aadi-aadi mujhe garv hai ki lalit hamare ilake ka hai. ilaka dakaito ka hota hai lekin kabhi-kabhi vahaa lalit sharmajaise muchho vale bhi basate hain

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  26. bahut sundar muaakaat aur vivaran

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  27. ललित शर्माजी भाग्यशाली हैं और हमें ख़ुशी है कि वो हमारे ससुराल वाले हैं :) मेरी शादी जगदलपुर, अब छग तब मप, में '६५ में हुई थी...

    डा साहिब, 'सिल्क का कुर्ता पायजामा' से अपने इंजीनियरिंग पढ़ाई के समय एक आंध्र के रेड्डी लड़के की याद आ गयी. वो भी हमेशा हॉस्टल में हर समय एक दम धवल वस्त्र में ही दीखता था,,, और खुश मिजाज होने के कारण प्रचलित था कथन, 'अँधेरे में मत आना, कोई भी बेहोश हो सकता है'! क्यूंकि केवल उसके सफ़ेद वस्त्र, आँखों का सफ़ेद हिस्सा और सफ़ेद दांत ही अँधेरे में चमकते थे!

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  28. ऐसे प्रोग्राम तो लगातार चलते रहने चाहिए.
    क्योंकि ये प्रोग्राम ब्लोग्गर भाइयों में जोश-उत्साह पैदा करता हैं.
    धन्यवाद.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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  29. सही कह रहे हैं , गिरीश जी । इसके लिए ललित शर्मा जी जैसा बनना पड़ता है।
    राजीव भाई , बस आपकी महमान नवाज़ी का ही असर है।
    जे सी जी , अच्छा संस्मरण है।

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  30. आपलोगों के मुलाकात का विवरण बहुत ही रोचक लगा... तस्वीर भी बहुत अच्छी आई है..

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  31. ललित जी के लिए विशेष शुभकामनाएं!
    --
    वैसे रविवार की शाम आपसे मुलाक़ात न हुई... यह शिकायत है मुझे

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  32. टीचर्स और लाल परी से भी मुलाकात
    वाह!
    ब्लागर बैठक में आपकी और यशवंत की कमी बहुत खल रही थी जी

    प्रणाम

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  33. सीत-राबडी पीवण का जी था ललित जी का
    मगर आपतो टीचर्स से मिलवान ले गये जी

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  34. ललित भैया तो हैं ही लाजवाब...................काश कि हम भी वहां होते ! अगली बार सही..

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  35. अंतर सोहिल , जब शीत राबड़ी नांगलोई में भी ना मिली तो क्लब में कैसे मिलती ।
    वैसे टीचर्स से मुलाकात भी बढ़िया रही।

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  36. दराल सर,
    टीचर हमारे और हमें ही आशीर्वाद नहीं मिला...चलिए फिर सही...अपने गुरुदेव समीर जी भी आ जाएं...फिर देखिएगा टीचर भी कैसे उलटे सिर नाचेंगे...

    और हां, ये आपसे किसने कह दिया शेर सिंह (ललित शर्मा) भाई छत्तीसगढ़ के सीएम नहीं हैं...हैं तो सही...क्यूट मुंडा..

    जय हिंद...

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  37. खुशदीप भी , चिंता मत करिए ।
    अंतिम चार पंक्तियों में इसी का ज़िक्र है ।

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  38. चलिए आपके साथ हम भी सबसे मिल लिए अच्छा लगा सबसे मिल कर

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  39. भई ऐसी बहुत सारी दावतें हम भी मिस कर रहे हैं .... अगली बार ज़रूर बताएँगे दिल्ली आने पर ...
    कम से कम लज़ीज़ खाना तो मिलेगा ...

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  40. aap sab se hamne bhi apni kalpna shakti ko sanchit kar mulakat kar li. bas muh khula ka khula rah gaya kyuki khane ka swaad nahi aa paya...

    acchhi post...acchhi meeting.

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  41. ' फैमिली लाउंज में बैठकर ऐसा लग रहा था जैसे एक ही परिवार के तीन भाई साथ बैठे हों । बड़े भैया , सपत्निक और नौज़वान बेटा साथ में , सबसे छोटे जैसे नवविवाहित हों , और मूंछों वाले मंझले भैया जैसे बाल ब्रहमचारी । एक सुखी परिवार । ' पंक्तियाँ आपके व्यक्तित्व का आइना है,जिसमे से एक बेहद प्यारा सा इंसान झांक रहा है. इस दुनिया की ख़ूबसूरती इसी से बनी हुई है डॉक्टर साहब! आपके आर्टिकल पढ़ कर कुछ ऐसी ही इमेज बनाई थी मैंने आपकी.हमारे शब्द,पसंद- नापसंद,फोटोज,वीडियो क्लिप्स भी तो हमारे व्यक्तित्व को बयान करते है न ? वैसे ही आपके शब्दों से कोई भी आपको पढ़ सकता है.
    एक बार फिर ईश्वर की शुक्र्गुज्ज़र हूँ कि उसने एक अच्छे 'इंसान' से मुझे मिलवाया.
    ललित भैया सचमुच एक बेहतरीन इंसान है.मेरी उनसे फोन पर बात हुई थी .जिस सलीके और सम्मान के साथ वे बात कर रहे थे उससे उन्हें जाना.
    और....हर बार की तरह इस बार भी मैंने पहचानने में भूल नही की.
    इस प्यारी सी सोच को हमेशा बनाये रखियेगा.

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  42. फिर उस दिन की यादें दोबारा ताज़ा हो चली आई :-)

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  43. फिर उस दिन की यादें आई :-)

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