रविवार का दिन । छुट्टी का दिन । काम से आराम का दिन । आराम --यदि नसीब हो सके तो ।
अक्सर इस मृत्युलोक में मनुष्य जीवन की दिनचर्या में इस कदर फंसा रहता है , कि आराम सिर्फ ख्वाबों ख्यालों में ही रह जाता है। इसी रविवार अविनाश जी ने एक ब्लोगर मिलन का कार्यक्रम रखा हुआ था। जाने का मन तो हमारा भी था । लेकिन मौसम , माहौल , समय , स्थान , सब ने मिलकर मूड को इस कदर हिलाया कि फिर अपनी जगह पर टिक ही नहीं पाया । बहुत कोशिश की मगर वो नहीं माना ।
हमने तो मार्केट जाकर लाल टी शर्ट भी खरीदने की सोची , लेकिन पता चला कि सब की सब बिक चुकी थी ।
खैर ललित भाई को तो हमने पहले ही बता दिया था कि भई अगर रविवार को नहीं मिल पाए तो सोमवार को निश्चित ही मुलाकात होगी।
सोमवार दोपहर को फोन किया तो पता चला कि ज़नाब राजीव तनेजा जी के साथ हैं और लंच कर रहे हैं । लगे हाथ हमने उन्हें रात्रि भोज के लिए आमन्त्रित कर लिया जो उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया । समय तय हुआ शाम के ८ बजे , सिविल सर्विसिज ऑफिसर्स क्लब । क्योंकि श्रीमती संजू तनेजा भी आ रही थी , सो हमने भी श्रीमती जी को मना लिया चलने के लिये ।
अब हम तो निश्चित समय पर पहुँच गए लेकिन पता चला कि हमारे मेहमान तो अभी घर से ही बोल रहे थे । वो तो भला हो सोमवार का क्योंकि क्लब में गिने चुने लोग ही थे । सप्ताह के पहले दिन , सप्ताहांत के तूफ़ान के बाद की शांति थी । इसलिए हम भी आराम से गोष्ठी कक्ष में पसर गए और टी वी ओन कर लिया । कहते हैं , हर बुराई में अच्छाई होती है । उनको देर होने से श्रीमती जी ने अपनी पसंद के सारे सीरियल्स क्लब के विशालकाय टी वी स्क्रीन पर आराम से देख लिए ।
इसी बीच सवा नौ बजे ललित जी का फोन आया कि वो पहुँचने ही वाले हैं ।
चित्र में बाएं से --राजीव तनेजा , यशवंत मेहता , ललित शर्मा , श्रीमती संजू तनेजा और डॉ रेखा दराल
हम भी स्वागत में जाकर गेट पर खड़े हो गए । कार से उतरकर ललित जी इतनी आत्मीयता से औपचारिकतापूर्ण मिले कि पहली बार हमें अपने बुजुर्ग होने का अहसास सा हुआ । ललित जी सिल्क का कुर्ता पायजामा पहने किसी रियासत के राजकुमार जैसे लग रहे थे ।
बाद में उन्होंने स्वीकारा कि किसी दिन वो छत्तीसगढ़ के सी ऍम भी हो सकते हैं ।
वैसे तो क्लब में थोडा बहुत ड्रेस कोड लागू होता है । लेकिन ललित भाई की मूंछे देखकर भला किस की हिम्मत हो सकती थी कि कोई कुछ कह सके । उलटे वेटर्स ने ललित जी का विशेष ध्यान रखा खातिरदारी में ।
उसके बाद --न ब्लोगिंग , न कोई मुद्दे, न राजनीति पर बात हुई ।
बस एक दूसरे को जानने , पहचानने और समझने की ही बात हुई ।
रेखा और संजू तो ऐसे बात कर रही थी जैसे बरसों से एक दूसरे को जानती हों ।
फैमिली लाउंज में बैठकर ऐसा लग रहा था जैसे एक ही परिवार के तीन भाई साथ बैठे हों । बड़े भैया , सपत्निक और नौज़वान बेटा साथ में , सबसे छोटे जैसे नवविवाहित हों , और मूंछों वाले मंझले भैया जैसे बाल ब्रहमचारी । एक सुखी परिवार ।
देर हो चुकी थी , इसलिए खाना पीना सब एक साथ ही हो रहा था ।
टीचर्स से भी मुलाकात हुई । लाल परियां भी दिखाई दीं।
सबसे अंत में हमीं उठे , घंटी बज चुकी थी क्योंकि ग्यारह बज चुके थे ।
बस एक कमी खल रही थी -- अविनाश , खुशदीप , अजय और वर्मा जी की । लेकिन नियमानुसार केवल चार मित्र ही आमंत्रित किये जा सकते थे ।
लेकिन क्या हुआ , सोमवार तो फिर अनेक आयेंगे ।
फिर अगले महीने पाबला जी भी तो दिल्ली आ रहे हैं न।
अक्सर इस मृत्युलोक में मनुष्य जीवन की दिनचर्या में इस कदर फंसा रहता है , कि आराम सिर्फ ख्वाबों ख्यालों में ही रह जाता है। इसी रविवार अविनाश जी ने एक ब्लोगर मिलन का कार्यक्रम रखा हुआ था। जाने का मन तो हमारा भी था । लेकिन मौसम , माहौल , समय , स्थान , सब ने मिलकर मूड को इस कदर हिलाया कि फिर अपनी जगह पर टिक ही नहीं पाया । बहुत कोशिश की मगर वो नहीं माना ।
हमने तो मार्केट जाकर लाल टी शर्ट भी खरीदने की सोची , लेकिन पता चला कि सब की सब बिक चुकी थी ।
खैर ललित भाई को तो हमने पहले ही बता दिया था कि भई अगर रविवार को नहीं मिल पाए तो सोमवार को निश्चित ही मुलाकात होगी।
सोमवार दोपहर को फोन किया तो पता चला कि ज़नाब राजीव तनेजा जी के साथ हैं और लंच कर रहे हैं । लगे हाथ हमने उन्हें रात्रि भोज के लिए आमन्त्रित कर लिया जो उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया । समय तय हुआ शाम के ८ बजे , सिविल सर्विसिज ऑफिसर्स क्लब । क्योंकि श्रीमती संजू तनेजा भी आ रही थी , सो हमने भी श्रीमती जी को मना लिया चलने के लिये ।
अब हम तो निश्चित समय पर पहुँच गए लेकिन पता चला कि हमारे मेहमान तो अभी घर से ही बोल रहे थे । वो तो भला हो सोमवार का क्योंकि क्लब में गिने चुने लोग ही थे । सप्ताह के पहले दिन , सप्ताहांत के तूफ़ान के बाद की शांति थी । इसलिए हम भी आराम से गोष्ठी कक्ष में पसर गए और टी वी ओन कर लिया । कहते हैं , हर बुराई में अच्छाई होती है । उनको देर होने से श्रीमती जी ने अपनी पसंद के सारे सीरियल्स क्लब के विशालकाय टी वी स्क्रीन पर आराम से देख लिए ।
इसी बीच सवा नौ बजे ललित जी का फोन आया कि वो पहुँचने ही वाले हैं ।
चित्र में बाएं से --राजीव तनेजा , यशवंत मेहता , ललित शर्मा , श्रीमती संजू तनेजा और डॉ रेखा दराल
हम भी स्वागत में जाकर गेट पर खड़े हो गए । कार से उतरकर ललित जी इतनी आत्मीयता से औपचारिकतापूर्ण मिले कि पहली बार हमें अपने बुजुर्ग होने का अहसास सा हुआ । ललित जी सिल्क का कुर्ता पायजामा पहने किसी रियासत के राजकुमार जैसे लग रहे थे ।
बाद में उन्होंने स्वीकारा कि किसी दिन वो छत्तीसगढ़ के सी ऍम भी हो सकते हैं ।
वैसे तो क्लब में थोडा बहुत ड्रेस कोड लागू होता है । लेकिन ललित भाई की मूंछे देखकर भला किस की हिम्मत हो सकती थी कि कोई कुछ कह सके । उलटे वेटर्स ने ललित जी का विशेष ध्यान रखा खातिरदारी में ।
उसके बाद --न ब्लोगिंग , न कोई मुद्दे, न राजनीति पर बात हुई ।
बस एक दूसरे को जानने , पहचानने और समझने की ही बात हुई ।
रेखा और संजू तो ऐसे बात कर रही थी जैसे बरसों से एक दूसरे को जानती हों ।
फैमिली लाउंज में बैठकर ऐसा लग रहा था जैसे एक ही परिवार के तीन भाई साथ बैठे हों । बड़े भैया , सपत्निक और नौज़वान बेटा साथ में , सबसे छोटे जैसे नवविवाहित हों , और मूंछों वाले मंझले भैया जैसे बाल ब्रहमचारी । एक सुखी परिवार ।
देर हो चुकी थी , इसलिए खाना पीना सब एक साथ ही हो रहा था ।
टीचर्स से भी मुलाकात हुई । लाल परियां भी दिखाई दीं।
सबसे अंत में हमीं उठे , घंटी बज चुकी थी क्योंकि ग्यारह बज चुके थे ।
बस एक कमी खल रही थी -- अविनाश , खुशदीप , अजय और वर्मा जी की । लेकिन नियमानुसार केवल चार मित्र ही आमंत्रित किये जा सकते थे ।
लेकिन क्या हुआ , सोमवार तो फिर अनेक आयेंगे ।
फिर अगले महीने पाबला जी भी तो दिल्ली आ रहे हैं न।
nice
ReplyDeleteललित जी.....मेरे दिल के बहुत ही करीब है.....
ReplyDeleteललित जी.....मेरे दिल के बहुत ही करीब है.....
ReplyDeleteललित जी सिल्क का कुर्ता पायजामा पहने किसी रियासत के राजकुमार जैसे लग रहे थे ।
ReplyDeleteबाद में उन्होंने स्वीकारा कि किसी दिन वो छत्तीसगढ़ के सी ऍम भी हो सकते हैं ।
शुभकामनाये !
ललित जी ने तो हमें भी पहुँचने के लिये कहा था दिल्ली हम ही नहीं पहुँचे। अब पछतावा हो रहा है।
ReplyDeleteबाद में उन्होंने स्वीकारा कि किसी दिन वो छत्तीसगढ़ के सी ऍम भी हो सकते हैं ।
ReplyDeleteउस दिन का इन्तजार रहेगा :) शुभकामनाएँ
यह मिलन ही तो ब्लागीरों को नजदीक लाता है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा! चित्र बहुत सुन्दर है और इसी तरह ब्लोगर बंधुओं से मिलने से बेहद ख़ुशी मिलती है!
ReplyDeleteटीचर्स और लाल परियां..एक समय मुझे भी खूब दिखती थी दराल साहब, लेकिन आपका अन्दाज अच्छा लगा।
ReplyDelete... बल्ले बल्ले ...!!!
ReplyDeleteहाय!! हम क्यूँ न हुए....
ReplyDeleteखैर, अच्छा लगा जान सुन कर.
bahut khushi hui ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगी आपकी मुलाकात ...................काश कि हम भी होते !
ReplyDeleteवाह ललित कुमार की तो मौज ही मौज :)
ReplyDeleteदिल्ली पहुँच के तो अब प्रधान मंत्री के पद पर नजर होनी चाहिए
बहुत बढिया
ReplyDelete'अविनाश , खुशदीप , अजय और वर्मा जी की । लेकिन नियमानुसार केवल चार मित्र ही आमंत्रित किये जा सकते थे ।'
आपने चार ही का तो नाम लिखा है
ललित जी अभी भी किसी सी एम से कम नहीं हैं
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ न सही ब्लॉगगढ़ ही सही। हमारे लिए तो यही महत्वपूर्ण है। भाभीजी से हम भी मिल लिए अब मिलने पर यह नहीं लगेगा कि पहले नहीं मिले थे। आभार अच्छा लगा स्वागत सत्कार।
आपकी यह मुलाक़ात बढ़िया रही....
ReplyDeleteवर्मा जी , ये चार अगली बार के लिए हैं ।
ReplyDeleteजय हो, अविनाश जी से सहमत.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा यह मिलन,काश हम सब यु ही मिले,
ReplyDeleteअच्छा, तो डॉ सा'ब को खबर हो गई मेरे आने की :-)
ReplyDeleteबुजुर्ग होने का अहसास भी खूब रहा!
ललित भाई की मूंछे देखकर तो ...
दराल सर..आपका गर्मजोशी और आत्मीयता से मिलना दिल को छू गया...
ReplyDeleteबढ़िया रहा यह रात्रिभोज!
ReplyDeleteअब हम भी किसी सोमवार को ही
दिल्ली आने का प्लान बनायेंगे!
पाबला जी , शास्त्री जी , भाटिया जी--आपका स्वागत है । इंतज़ार रहेगा ।
ReplyDeleteये तो बढ़िया रहा, आत्मीयता झलक रही है ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletehar koi lalit sharmaajaisa khushnaseeb nahi ho sakataa . isake liye lalit sharmaajaisaa bhi to bananaa padta hai. sahaj...saral...susheel...sajjan,aadi-aadi mujhe garv hai ki lalit hamare ilake ka hai. ilaka dakaito ka hota hai lekin kabhi-kabhi vahaa lalit sharmajaise muchho vale bhi basate hain
ReplyDeletebahut sundar muaakaat aur vivaran
ReplyDeleteललित शर्माजी भाग्यशाली हैं और हमें ख़ुशी है कि वो हमारे ससुराल वाले हैं :) मेरी शादी जगदलपुर, अब छग तब मप, में '६५ में हुई थी...
ReplyDeleteडा साहिब, 'सिल्क का कुर्ता पायजामा' से अपने इंजीनियरिंग पढ़ाई के समय एक आंध्र के रेड्डी लड़के की याद आ गयी. वो भी हमेशा हॉस्टल में हर समय एक दम धवल वस्त्र में ही दीखता था,,, और खुश मिजाज होने के कारण प्रचलित था कथन, 'अँधेरे में मत आना, कोई भी बेहोश हो सकता है'! क्यूंकि केवल उसके सफ़ेद वस्त्र, आँखों का सफ़ेद हिस्सा और सफ़ेद दांत ही अँधेरे में चमकते थे!
ऐसे प्रोग्राम तो लगातार चलते रहने चाहिए.
ReplyDeleteक्योंकि ये प्रोग्राम ब्लोग्गर भाइयों में जोश-उत्साह पैदा करता हैं.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
सही कह रहे हैं , गिरीश जी । इसके लिए ललित शर्मा जी जैसा बनना पड़ता है।
ReplyDeleteराजीव भाई , बस आपकी महमान नवाज़ी का ही असर है।
जे सी जी , अच्छा संस्मरण है।
आपलोगों के मुलाकात का विवरण बहुत ही रोचक लगा... तस्वीर भी बहुत अच्छी आई है..
ReplyDeleteललित जी के लिए विशेष शुभकामनाएं!
ReplyDelete--
वैसे रविवार की शाम आपसे मुलाक़ात न हुई... यह शिकायत है मुझे
टीचर्स और लाल परी से भी मुलाकात
ReplyDeleteवाह!
ब्लागर बैठक में आपकी और यशवंत की कमी बहुत खल रही थी जी
प्रणाम
सीत-राबडी पीवण का जी था ललित जी का
ReplyDeleteमगर आपतो टीचर्स से मिलवान ले गये जी
ललित भैया तो हैं ही लाजवाब...................काश कि हम भी वहां होते ! अगली बार सही..
ReplyDeleteअंतर सोहिल , जब शीत राबड़ी नांगलोई में भी ना मिली तो क्लब में कैसे मिलती ।
ReplyDeleteवैसे टीचर्स से मुलाकात भी बढ़िया रही।
दराल सर,
ReplyDeleteटीचर हमारे और हमें ही आशीर्वाद नहीं मिला...चलिए फिर सही...अपने गुरुदेव समीर जी भी आ जाएं...फिर देखिएगा टीचर भी कैसे उलटे सिर नाचेंगे...
और हां, ये आपसे किसने कह दिया शेर सिंह (ललित शर्मा) भाई छत्तीसगढ़ के सीएम नहीं हैं...हैं तो सही...क्यूट मुंडा..
जय हिंद...
खुशदीप भी , चिंता मत करिए ।
ReplyDeleteअंतिम चार पंक्तियों में इसी का ज़िक्र है ।
चलिए आपके साथ हम भी सबसे मिल लिए अच्छा लगा सबसे मिल कर
ReplyDeleteभई ऐसी बहुत सारी दावतें हम भी मिस कर रहे हैं .... अगली बार ज़रूर बताएँगे दिल्ली आने पर ...
ReplyDeleteकम से कम लज़ीज़ खाना तो मिलेगा ...
aap sab se hamne bhi apni kalpna shakti ko sanchit kar mulakat kar li. bas muh khula ka khula rah gaya kyuki khane ka swaad nahi aa paya...
ReplyDeleteacchhi post...acchhi meeting.
' फैमिली लाउंज में बैठकर ऐसा लग रहा था जैसे एक ही परिवार के तीन भाई साथ बैठे हों । बड़े भैया , सपत्निक और नौज़वान बेटा साथ में , सबसे छोटे जैसे नवविवाहित हों , और मूंछों वाले मंझले भैया जैसे बाल ब्रहमचारी । एक सुखी परिवार । ' पंक्तियाँ आपके व्यक्तित्व का आइना है,जिसमे से एक बेहद प्यारा सा इंसान झांक रहा है. इस दुनिया की ख़ूबसूरती इसी से बनी हुई है डॉक्टर साहब! आपके आर्टिकल पढ़ कर कुछ ऐसी ही इमेज बनाई थी मैंने आपकी.हमारे शब्द,पसंद- नापसंद,फोटोज,वीडियो क्लिप्स भी तो हमारे व्यक्तित्व को बयान करते है न ? वैसे ही आपके शब्दों से कोई भी आपको पढ़ सकता है.
ReplyDeleteएक बार फिर ईश्वर की शुक्र्गुज्ज़र हूँ कि उसने एक अच्छे 'इंसान' से मुझे मिलवाया.
ललित भैया सचमुच एक बेहतरीन इंसान है.मेरी उनसे फोन पर बात हुई थी .जिस सलीके और सम्मान के साथ वे बात कर रहे थे उससे उन्हें जाना.
और....हर बार की तरह इस बार भी मैंने पहचानने में भूल नही की.
इस प्यारी सी सोच को हमेशा बनाये रखियेगा.
फिर उस दिन की यादें दोबारा ताज़ा हो चली आई :-)
ReplyDeleteफिर उस दिन की यादें आई :-)
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