ये गीत बचपन में बहुत सुनते थे --आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र पर।
लेकिन क्या आप जानते हैं की हरियाणा राज्य पहले पंजाब का ही हिस्सा था।
सन १९६६ में भाषा के आधार पर हरियाणा , पंजाब से अलग हुआ स्वतंत्र भारत के १७ वें राज्य के रूप में ।
लेकिन आज भी हरियाणा और पंजाब --दोनों की राजधानी एक ही है --चंडीगढ़।
कुछ ऐसे ही ---
यानि दो जिस्म मगर एक जान हैं ये ।
अब यूँ तो दोनों राज्यों के लोगों के रहन सहन , खान पान और रीति रिवाजों में अनेक समानताएं हैं।
भाषा : पंजाब में पंजाबी और हरियाणा में हरयाणवी बोली जाती है। दोनों ही भाषाएँ हिंदी से मिलती जुलती हैं। फर्क इतना है की पंजाबी की लिपि गुरमुखी है , जबकि हरयाणवी की कोई लिपि नहीं । हरियाणवी को खड़ी बोली भी कहते हैं।
लेकिन देखिये कितनी समानताएं हैं :
हिन्ही में कहाँ = पंजाबी --कित्थे , हरयाणवी --कित।
जहाँ ---जित्थे --जित।
क्या करते हो ? --की करदे हो ? --के करै सै ?
आने दे ---आण दे ---आवण दे ।
असली हरियाणवी बोली अड़े कड़े वाली होती है , जो बिलकुल लट्ठ मार होती है।
लेकिन असमानताएं भी हैं :
जहाँ पंजाब के लोग मौज मस्ती वाले , खाने पीने और बढ़िया कपड़ों के शौक़ीन होते हैं , वहीँ हरियाणवी लोग सीधे साधे , और सादा जीवन जीते हैं। यानि उनमे दिखावा बिलकुल नहीं होता।
फिर भी दोनों विनोदी स्वभाव के होते हैं।
पंजाबी लोगों को डांस करने का बड़ा शौक होता है। पंजाबी भांगड़ा तो जगत प्रसिद्ध है।
लेकिन सच मानिये हरियाणवी लोग बिलकुल भी डांस करना नहीं जानते । बल्कि पुराने ज़माने में तो पुरुषों द्वारा डांस करने को बुरा समझा जाता था ।
हमें भी आज तक डांस करना नहीं आया ।
एक और विशेष बात ---हरियाणा में भाभी को भाभी जी कह कर कोई नहीं बुलाता । जी हाँ , सीधे नाम लेकर बुलाते हैं।
चौकिये मत ---हमने भी आज तक किसी को भाभी जी कह कर नहीं बुलाया ।
अब आपको अवगत कराते हैं कुछ हरियाणवी शब्दों से :
याड़ी -- दोस्त
बटेऊ ----दामाद
चाला --- चाला पाट ग्या --कमाल हो गया
चाला हो ग्या ----गज़ब हो गया
बांगड़ ----मोटा लठ
बाखड़ी ----ऐसी गाय या भैंस जो दूध देना कम कर देती है।
लेकिन कुछ ऐसे शब्द भी हैं जिनका अर्थ हमें भी नहीं पता :
डाक्की , खोपर्टन , झकोई, खागड़ , फन्ने खां , च्याम्च्डी
हरियाणवी लोग मीठा खाने के बड़े शौक़ीन होते हैं। आदमी को ७० साल का होने के बाद तो रोजाना हलवा चाहिए ।
अब एक बार एक ताऊ को हलवा नहीं मिला खाने को तो आँख बंद करके बेहोश होने का नाटक करने लगा । ताऊ को बेहोश देखकर लोगों में शोर मच गया । किसी ने कहा --मूंह पर पानी मरो। किसी ने कहा --जूता सुन्घाओ । किसी ने कुछ किसी ने कुछ इलाज़ बताया । इतने में एक समझदार से आदमी को ख्याल आया और उसने कहा --अरे ताऊ के लिए हलवा बनवा दो।
ये सुनते ही ताऊ ने आँख खोली और उस आदमी की ओर इशारा करके बोला --अरै कोए इसकी भी सुण ल्यो।
लेकिन असमानताएं भी हैं :
जहाँ पंजाब के लोग मौज मस्ती वाले , खाने पीने और बढ़िया कपड़ों के शौक़ीन होते हैं , वहीँ हरियाणवी लोग सीधे साधे , और सादा जीवन जीते हैं। यानि उनमे दिखावा बिलकुल नहीं होता।
फिर भी दोनों विनोदी स्वभाव के होते हैं।
पंजाबी लोगों को डांस करने का बड़ा शौक होता है। पंजाबी भांगड़ा तो जगत प्रसिद्ध है।
लेकिन सच मानिये हरियाणवी लोग बिलकुल भी डांस करना नहीं जानते । बल्कि पुराने ज़माने में तो पुरुषों द्वारा डांस करने को बुरा समझा जाता था ।
हमें भी आज तक डांस करना नहीं आया ।
एक और विशेष बात ---हरियाणा में भाभी को भाभी जी कह कर कोई नहीं बुलाता । जी हाँ , सीधे नाम लेकर बुलाते हैं।
चौकिये मत ---हमने भी आज तक किसी को भाभी जी कह कर नहीं बुलाया ।
अब आपको अवगत कराते हैं कुछ हरियाणवी शब्दों से :
याड़ी -- दोस्त
बटेऊ ----दामाद
चाला --- चाला पाट ग्या --कमाल हो गया
चाला हो ग्या ----गज़ब हो गया
बांगड़ ----मोटा लठ
बाखड़ी ----ऐसी गाय या भैंस जो दूध देना कम कर देती है।
लेकिन कुछ ऐसे शब्द भी हैं जिनका अर्थ हमें भी नहीं पता :
डाक्की , खोपर्टन , झकोई, खागड़ , फन्ने खां , च्याम्च्डी
हरियाणवी लोग मीठा खाने के बड़े शौक़ीन होते हैं। आदमी को ७० साल का होने के बाद तो रोजाना हलवा चाहिए ।
अब एक बार एक ताऊ को हलवा नहीं मिला खाने को तो आँख बंद करके बेहोश होने का नाटक करने लगा । ताऊ को बेहोश देखकर लोगों में शोर मच गया । किसी ने कहा --मूंह पर पानी मरो। किसी ने कहा --जूता सुन्घाओ । किसी ने कुछ किसी ने कुछ इलाज़ बताया । इतने में एक समझदार से आदमी को ख्याल आया और उसने कहा --अरे ताऊ के लिए हलवा बनवा दो।
ये सुनते ही ताऊ ने आँख खोली और उस आदमी की ओर इशारा करके बोला --अरै कोए इसकी भी सुण ल्यो।
यही मीठे का शौक पुराने ज़माने में शादियों में भी दिखाई देता था। शादियों में खाने का फिक्स्ड मेन्यु होता था । लड़के की शादी में लड्डू और लड़की की शादी में ज़लेबी । साथ में पूरियां और पेठे (सीताफल) की सब्जी । वो भी मीठी। लेकिन क्या स्वाद होता था उसमे । आजकल शहर में सिर्फ श्राद्ध या क्तिया के भोज में खाने को मिलती है।
लेकिन लड्डुओं की क्या बताएं। ज़मीन पर टाट के फर्श बिछाकर एक पंक्ति में बैठकर भोजन परोसा जाता था , जैसे लंगर में होता है। एक बार में चार चार लड्डू परोसे जाते थे , और खाने वाले खाते रहते थे। कभी कभी तो एक एक आदमी ५२ लड्डू खा जाता था ।
है न हैरानी की बात ! लेकिन उन दिनों ५२ लड्डू खाना ऐसा होता था जैसे सचिन का वन डे में डबल सेंचुरी लगाना।
अब सचिन तो ऐसा अकेला ही क्रिकेटर है , लेकिन ५२ लड्डू खाने वाला हर गाँव में कम से कम एक तो मिल ही जाता था।
खैर ऐसे ही होते हैं हरियाणवी।
एक बात और मशहूर है हरियाणा की। वहां का ये लोक गीत , जो मैंने रिकोर्ड किया था --गार्डन टूरिस्म फेस्टिवल में । आप भी इसका आनंद लीजिये।
दामण ---घाघरा
नंदी के बीरा ----नन्द के भाई यानि पति
कहिये कैसी लगी ये जानकारी।
आजकल हरियाणा में ही हूँ... थोडा बहुत लुत्फ़ ले रहा हूँ...
ReplyDeleteआपने बढ़िया जानकारी दी hai.
बहुत अच्छी लगी ये जानकारी!
ReplyDelete...हलुवा ..लडडू ...बहुत स्वादिष्ट हैं!!!
ReplyDeleteडा० साहब क्या गजब की जानकारी लाए हैं आप , बहुत खूब ।
ReplyDeleteबड़ी बढ़िया जानकारी दी है है, आपने सब कुछ नया लगा. हम तो सब टी० वी ० पर एक सीरियल ऍफ़ आई आर (चन्द्र मुखी चौटाला वाला ) देखते है उसमे हरयाणवी सुनते हैं मज़ा आता है .गुजरात में जब लड़का पैदा होता है तब पेड़ा व लड़की पैदा होने पर जलेबी खिलाने का का रिवाज़ है जैसा अपने शादी में लड्डू और जलेबी का जिक्र किया है और हमारे यहाँ यू० पी ० में भी शुभ अवसर पर कद्दू /सीता फल की खट्टी मीठी सब्जी और पूरी बनती है, कहते हैं की गरिष्ट( पकवान और शादी के भोज वाले खाने ) भोजन के साथ यदि कद्दू की सब्जी गुड़ से मीठी की गयी खायी जाए तो भोजन जल्दी हज़म हो जाता है
ReplyDeleteआपने तो खूब लड्डू बांध दिए पूरी पोस्ट में। अच्छा लगा। ऐसा लग रहा है कि जो फिल्मी गीत आपने सुनवाया है वो हरियाणवी फिल्म चन्द्रावल का है जिसके निर्देशक जयन्त प्रभाकर और यह गीत रामपाल बल्हारा पर अभिनीत है।
ReplyDeleteDr. Daraal ji,
ReplyDeletebahut hi badhiya jaakari ji aapne...hariyaanvi bhasha ne hamesha hi mujhe aakarshit kiya hai...
mimikri kartu hun na...mazaa aata hai..bolne mein..
ha ha ha
बहुत अच्छा लगा हरियाणा के विषय में जानना और गीत भी मधुर लगा. आपका आभार इस जानकारी के लिए. अब आपसे मिलेंगे तो हलुआ खिलवायेंगे. :)
ReplyDeleteअविनाश जी , ये एक बहुत पुराना लोक गीत है । फिल्म में इसको बाद में लिया गया था ।
ReplyDeleteलेकिन बहुत ही रिदमिक और सुरीला गीत है।
रचना जी , सही कहा आपने । हमें तो कभी कभी बहुत याद आती है , इस सब्जी की।
जलेबी और लड्डू????? वाह तब तो मुझे हरियाणा जरूर जाना है। दोनो मेरी मनपसंद मिठाईयाँ हैं।ाउर इसका मतलव ये हुया कि हम पडोसी हैं । फिर तो आते हैं हलुआ खाने भी कल आ रही हूँ दिल्ली। फिर देखती हूँ। बहुत अच्छी जानकारी है। फन्नेखाँ उसे बोलते हैं जो अपने आपको बहुत बडा आदमी समझता है। धन्यवाद
ReplyDeleteओह ! निर्मला जी , ये कैसा संयोग है । कल ही मैं रोहतक एक शादी में जा रहा हूँ। हालाँकि अब हरियाणा में भी वो पहले जैसा नहीं रहा । आधुनिकता का बादल पुराने रीती रिवाजों को ढँक चुका है।
ReplyDeleteफंनेखाँ का मतलब सही बताया आपने । शुक्रिया ।
रोचक अंदाज में अच्छी जानकारी
ReplyDeleteडॉक्टर दराल जी ~ 'डॉक्टर' होते हुए भी आपने बहुत मीठा परोस दिया (मैं केवल चोरी- चोरी ही कभी- कभी मीठा खा लेता हूँ - 'बुरी नज़र' वालों से डर लगता है :)
ReplyDeleteबहुत बढिया जी.
ReplyDeleteवाह बहुत अच्छी जानकारी लगी हरियाणे की
ReplyDeleteharyana ke baare main bataane ke liye dhanyawaad. bahut achchhi jaankaari di hain aapne.
ReplyDeletekripyaa ye bhi bataaye ki wahaan ki bhaashaa to chalo latth-maar hain lekin kahi log sachchi main to latth nahi maarte.
ha hahaha ha.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
डॉ टी एस दराल जी आप रोहतक जा रहे है बहुत अच्छा लगा, इस शहर मै मैने जिन्दगी के बहुत से साल बिताये है, अगर वहा होता तो आप का स्वागत जरुर करता, ओर हां मेने हरियाणिवि शादी भी कई देखी है , ओर खुब लड्डू ओर जलेबी खाई है, ओर गिलास भी बरातियो के संग खुब लिये है, आप ने बहुत अच्छे ढंग से हरियाणा के बारे बताया, मै हुं तो पंजाब से लेकिन मुझे हरियाणा बहुत पसंद आया
ReplyDeleteडाक्की , खोपर्टन , झकोई, खागड़ , फन्ने खां , च्याम्च्डी
डाक्की...चोर डाकू यह शव्द प्यार से कहा जाता है.
खोपर्टन.... पागल या जो खोपडी खाये, कम अकल
झकोई..... जो सर खुब खाये लेकिन फ़िर भी ना समझे
खागड़..... जो खा पी कर भेंसे जितनी हिम्मत तो रखता हो, लेकिन काम ना आये.
फन्ने खां... जो खुब ऊंची ऊंची छोडे.
च्याम्च्डी... एक तरह की जीव जो भेंसो ओर गायो के पडी होती है( जूं जेसी) लेकिन यहां यह शव्द उन लोगो के लिये प्रयोग किया जाता है जो च्याम्च्डी क तरह से चिपक जाते है, ओर पीछा नही छोड्तॆ
डाक्टर साहब ... जो पंजाबी हो और हरयाणा में रहे तो उसको के बोल्ले से ... पंजानवी ....
ReplyDeleteहा हा .. मीठा खाने की बात तो हमने पंजाबियों में भी सुनी है ... कई बुजुर्गों को २ सेरी ... ४ सेरी या ५ सेरी कॅन्लॅयेट थे ... उनकी मीठा खाने की खुराक के अनुसार ...
डॉक्टर साहब आपके पोस्ट के दौरान बहुत अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई! गीत भी मधुर लगा! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!
ReplyDeleteअरे वाह , भाटिया जी , आप तो नास्वा जी की परिभाषा में पंजान्वी हैं। बहुत बढ़िया , अर्थ समझाए आपने तो , इन शब्दों के । आभार।
ReplyDeleteसही कहा , मीठा खाने के शौक़ीन पंजाबी और हरियाणवी , दोनों होते हैं।
हमारे यहाँ एक कहावत है --जब किसान के पास फसल काटकर पैसा आ जाता था , तो वो तीन काम करने की सोचता था ।
या तो मकान बना ले , या लड़की की शादी कर ले , या फिर एक लट्ठ का मज़ा ले ले । कई बार ऐसा होता था की तीसरी पसंद हावी हो जाती थी , बस फिर सारा पैसा कोर्ट कचहरी में ख़त्म।
शायद इसीलिए हरियाणा के किसान पैसा होते हुए भी पिछड़े रह गए ।
हालाँकि अब हालात ऐसे नहीं हैं।
बेहद रोचक पोस्ट. मजेदार जानकारी. भाटिया जी का अर्थ बताना काफी रोचक लगा. देशज शब्दों में कितनी उर्जा और अपनापन है ! चंडीगढ़ एक सप्ताह रह कर घूमा लेकिन इतना आनंद नहीं आया जो आज महसूस कर रहा हूँ.
ReplyDelete...आभार.
संस्कृति से परिचय का यह अध्याय अच्छा लगा ।
ReplyDeletebhatia g ne ijjat bacha li verna itne aasan shabd kathin ho gaye the....
ReplyDeleteरोचक जानकारी ....
ReplyDeleteekbahut hi rochak aur adbhut jankari ke liye,jisase main bilkul anbhigya thi,aapane itane achhe se batalaya .dhanyavad.
ReplyDeletepoonam
नांगलोई में दूकान होने और दो साल तक दिल्ली से पानीपत तक का डेली पैसेंजर होने के नाते मुझे हरियाणा वासियों की खड़ी बोली से हमेशा दो-चार होना पड़ा है...
ReplyDeleteअब तो काफी हद तक समझ भी आ जाती है...दो- कहानिया हरियानी भाषा में भी लिख चुका हूँ ...
बढ़िया पोस्ट
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