आज वितीय वर्ष का क्लोजिंग डे है। इत्तेफाक देखिये , आज ही 5० और ६० के दशक की मशहूर अदाकारा ट्रेजिडी क्वीन मरहूम मीना कुमारी जी की भी पुण्यतिथि है।आज का लेख उन्ही की याद में समर्पित है।
अभी कुछ दिन पहले फिल्म पाकीज़ा देखने का इतेफाक हुआ । शोले के बाद यदि कोई फिल्म है जिसे मैं बार बार देख सकता हूँ तो वो है -पाकीज़ा। इस फिल्म की विशेषता ये है की ये मीना कुमारी जी की आखिरी फिल्म थी जो उनके देहांत से कुछ ही समय पहले रिलीज़ हुई थी , लेकिन उनके मरणोपरांत हिट हुई थी। आज ३८ साल बाद भी जब भी मैं इस फिल्म को देखता हूँ तो एक सपनों की दुनिया में खो सा जाता हूँ। ऐसा जादू है इस फिल्म में ।
कहानी :
मीना कुमारी --साहिब जान की भूमिका में
इस फिल्म की कहानी एक तवाइफ़ --साहिब जान की कहानी है , जो लखनऊ के एक कोठे पर नृत्य करती है। साहिब जान दरअसल एक रईसजादे की बेटी है और इत्तेफाकन उसी के भतीजे से बेपनाह मोहब्बत करने लगती है।
इस फिल्म की कहानी एक तवाइफ़ --साहिब जान की कहानी है , जो लखनऊ के एक कोठे पर नृत्य करती है। साहिब जान दरअसल एक रईसजादे की बेटी है और इत्तेफाकन उसी के भतीजे से बेपनाह मोहब्बत करने लगती है।
लेकिन उसकी बदनामी उसका पीछा नहीं छोडती और एक दिन ऐसा आता है की साहिब जान को अपने ही प्रेमी की शादी में नृत्य करने जाना पड़ता है।
फिल्म का क्लाइमेक्स बहुत जानदार है और ट्रेजिडी मिश्रित सुखांत है।
फिल्म के मुख्य आकर्षण हैं --
१) ग़ज़लें और गीत ।
२) संवाद ।
३) कमाल अमरोही का निर्देशन और पिक्चराइज़ेशन ।
४) मीना कुमारी की अदाकारी ।
ग़ज़ल और गीत :
जहाँ उमराव जान में आशा भोंसले की गाई गज़लें आज भी मन को लुभाती हैं , वहीँ इस फिल्म में लता मंगेशकर की गाई गज़लें दिल को छू जाती हैं ।
१) इन्ही लोगों ने , इन्ही लोगों ने ---इन्ही लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा ---हो जी हो , दुपट्टा मेरा ---
२) थाडे रहियो --ओ बांके यार रे ---थाडे रहियो --- इस गाने पर मीना कुमारी का नृत्य --कत्थक --गज़ब का है।
३) चलते चलते --यूँ ही कोई --मिल गया था --सरे राह चलते चलते -- इस गाने में फिल्म का सार है। ज़रा सोचिये एक अजनबी जिसे देखा तक नहीं --लेकिन दिल में ऐसा बस गया कि जब भी ट्रेन की सीटी बजती , साहिब जान के दिल में भी घंटियाँ बजने लगती । कितना दर्द होता है , एक अनजाने इंतज़ार में ।
४) मौसम है आशिकाना --अ दिल --कहीं से उनको --ऐसे में --ढूंढ लाना --मौसम है आशिकाना ---
यह गाना बहुत ही रोमांटिक वातावरण में फिल्माया गया है । साहिब जान इत्तेफाक से उसी जगह पहुँच जाती है , जहाँ वो अनजान प्रेमी --राज कुमार --का कैम्प है। किसी निशानी से उसको पहचान उसका इंतजार करती है और गाती है।
५) चलो दिलदार चलो --चाँद के पार चलो -- हम हैं तैयार चलो ---ओ --ओ -ओ ---
ये युगल गीत तब आता है जब कैम्प में दोनों की पहली बार मुलाकात होती है । ज़ाहिर है मोहब्बत की आग दोनों तरफ बराबर लगी थी। इस गाने को जितनी बार भी सुनेंगे , हर बार एक नशा सा छा जायेगा ।
६) आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे --तीरे नज़र देखेंगे --जख्मे जिगर देखेंगे --
इस ग़ज़ल के बोल सुनकर आप दांतों तले उंगलियाँ दबा लेंगे।
हो ओ , आप तो आंख , मिलाते हुए शरमाते हैं
आप तो दिल के , धड़कने से भी डर जाते हैं --
हो ओ , प्यार करना दिले नादाँ , बुरा होता है
सुनते आये हैं के ये ख्वाब , बुरा होता है ---
और आखिरी पंक्तियाँ तो सचमुच जानलेवा हैं --
जानलेवा है मोहब्बत का समां आज की रात
शमा हो जाएगी , जल जल कर धुआं , आज की रात
आज की रात --बसेंगे तो सहर देखेंगे --
आज की रात --बसेंगे तो --सहर देखेंगे ---
इसके बाद मीना कुमारी ने जो नृत्य किया है , वह अपने आप में एक मिसाल है , अदाकारी की।
कुछ अविस्मर्णीय संवाद और द्रश्य :
१) साहिब जान ट्रेन से कहीं जा रही है । बर्थ पर लेटकर पढ़ते पढ़ते नींद आ जाती है । मेहंदी लगे पांव , ट्रेन की गति के साथ हौले हौले हिल रहे हैं। तभी राजकुमार डिब्बे में घुस जाते हैं , सारा द्रश्य देखकर अवाक् रह जाते हैं। एक पन्ने पर कुछ लिखकर किताब में रख देते हैं । बाद में वो पढ़ती है , लिखा था ---
इत्तेफाकन आप के कम्पार्टमेंट में चला आया । आपके पैर देखे --बहुत हसीं हैं ये --इन्हें ज़मीन पर मत उतारियेगा --मैले हो जायेंगे ।
उफ़ ! हकीकत और हालात का ऐसा विरोधाभास पहले कहीं नहीं देखा।
२) साहिब जान , राजकुमार के टेंट में लेटी है। आज उनसे पहली मुलाकात है । राजकुमार आता है --मीना कुमारी आँख बंद कर लेटी है । राजकुमार खड़ा खड़ा देख रहा है --मीना मन ही मन कह रही है --
वो खड़े खड़े मुझे देख रहे हैं --और मैं तो उन्हें देख भी नहीं सकती --उफ़ ये सजा क्यों दे रहे हैं --ये भी नहीं देखते कि हम साँस भी नहीं ले पा रहे हैं --सांस तेज़ी से चलने लगती है।
३) साहिब जान एक नवाब के साथ डेट पर --खूबसूरत झील में आलिशान शिकारा --नवाब साहिब जान को गाने के लिए कहते हैं --वो गाती है --
आज की शाम , वो आये हैं ज़रा देर के बाद
आज की शाम , ज़रा देर के बाद आई है --
तभी हाथियों का एक झुण्ड हमला कर देता है --नवाब मारा जाता है । यहाँ इस द्रश्य को इतनी खूबसूरती से फिल्माया गया है कि , नवाब की तहजीब और तमीज देखकर हैरानी होती है , और कहीं न कहीं उसके किरदार से सहानुभूति सी होने लगती है।
३) साहिब जान एक नवाब के साथ डेट पर --खूबसूरत झील में आलिशान शिकारा --नवाब साहिब जान को गाने के लिए कहते हैं --वो गाती है --
आज की शाम , वो आये हैं ज़रा देर के बाद
आज की शाम , ज़रा देर के बाद आई है --
तभी हाथियों का एक झुण्ड हमला कर देता है --नवाब मारा जाता है । यहाँ इस द्रश्य को इतनी खूबसूरती से फिल्माया गया है कि , नवाब की तहजीब और तमीज देखकर हैरानी होती है , और कहीं न कहीं उसके किरदार से सहानुभूति सी होने लगती है।
४) साहिब जान अपने कोठे पर है । संगमरमर के चिकने फर्श पर वो लेटी है , गोलाकार बने तरण ताल के किनारे --बाल खुले हुए --पानी में तैरते हुए --एक किताब पढ़ रही है । इस द्रश्य को देखकर मन बाग़ बाग़ हो जाता है।
५) सलीम खान ( राज कुमार ) की शादी तय हो गई है । साहिब जान को नृत्य के लिए बुलाया गया है। वो ऐसा जमकर नाचती है कि पैर लहू लुहान हो जाते हैं। तभी उसकी अमी जान बोलती है --शहाबुद्दीन , देख आज तेरी आबरू --- जिस खून पर तेरे पाँव पड़े हैं वो खून तेरी ही बेटी का है।
कमाल अमरोही :
और मीना कुमारी की शादी १९५२ में हुई थी . यह फिल्म कमाल अमरोही द्वारा १९५८ में प्लान की गई थी जब वो दोनों पति पत्नी थे । फिल्म की आधी शूटिंग १९६४ में हुई , लेकिन तभी उनका तलाक हो गया । इसलिए फिल्म रुक गई। फिर १९६९ में सुनील दत्त और नर्गिस जी की पहल पर दोनों ने फिर शादी कर ली। फिल्म बनकर तैयार हुई १९७२ में और रिलीज़ हुई १ फरवरी १९७२ को।
कहते हैं की कमाल अमरोही ने यकीन दिलाया मीना कुमारी को कि वो उम्र के प्रभाव को कुछ इस तरह छुपा देंगे कि देखने वालों को पता ही नहीं चलेगा । हालाँकि कुछ द्रश्यों में उम्र का अंतर साफ़ नज़र आता है।
मीना कुमारी :
इनका असली नाम था -महज़बीं बानो --गरीब परिवार में पैदा हुई, १ अगस्त १९३२ को --दो बड़ी बहने थी --१९३९ में फिल्मो में काम करना शुरू कर दिया --मीना कुमारी को ट्रेजिडी क्वीन के नाम से जाना जाता था ।
इस सूरत पर भला कौन न न्योछावर हो जाये ।
पाकीज़ा में कमाल अमरोही ने इन्हें बेहतरीन तरीके से पेश किया है। गोल चेहरा , सुन्दर होंठ , खूबसूरत आँखें , लम्बी नाक , और उसपर लम्बे काले घुंघराले बाल --मीना कुमारी की खूबसूरती देखने लायक थी। उनकी आवाज़ में नेजल टोन से ग़मगीन द्रश्यों में जैसे जान सी आ जाती थी।
एक बात बहुत कम लोग जानते हैं --उनकी बाएं हाथ कि एक उंगली ( छोटी उंगली ) कट गई थी , जिसे वो बहुत खूबसूरती से छुपा लेती थी । इस फिल्म में दोनों द्रश्य हैं , यानि उंगली समेत और बिना उंगली के ।
लेकिन ट्रेजिडी क्वीन कहलाने वाली इस अदाकारा का जीवन अपने आप में एक बड़ी ट्रेजिडी बन कर रह गया । तलाक के बाद , वो बेहद शराब पीने लगी । जिसका असर उनके जिगर पर बहुत बुरा पड़ा और उन्हें सिरोसिस हो गया । ३१ मार्च १९७२ को उन्होंने इस संसार को अलविदा कहा , मात्र ३९ वर्ष की आयु में ।
मीना कुमारी जी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं , लेकिन उनके द्वारा निभाए गए किरदार आज भी हमारे दिल में उनकी याद ताज़ा बनाये हुए हैं।
हम इस बेहतरीन अदाकारा को उनकी पुण्य तिथि पर श्रधा सुमन अर्पित करते हैं।
खूब सुंदर प्रस्तुति। अच्छी याद दिलाई डॉ. साहब।
ReplyDeleteमीना कुमारी जी को विनम्र श्रधांजली ....और आपको इस रोचक आलेख के लिए बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteवो एक बहूत प्यारी अदाकारा थी ,मुझसे कोई पूछे तो
ReplyDelete..मुझे वे पुरानी अभिनेत्रियों में सबसे ज्यादा पसंद थी और आज भी है
मैंने उनकी हर अच्छी, बेहतरीन,प्रसिद्ध फिम्स देखी हैं फिल्म
पाकीज़ा के इन खूब सुरत दृश्यों के अलावा
कुछ फिल्म्स में उनके भाव पूर्ण चेहरे ऩे पूरे दृश्य में रंग भर दिए
बिना बोले वो आँखों से सब कुछ बोल देती थी
साहिब बीवी और गुलाम में जब वे पहली बार भूतनाथ (गुरु दत्त) से मिलती है
गहनों से लदी पदी कुर्सी पर बैठी भूतनाथ को देखती है या वो उन्हें देखता है
सचमुच की जमींदारनी लग रही थी
महारानियो वाला ग्रेस ...कमाल था वो अभिनय वो रूप
ऐसे ही 'चित्रलेखा के पहले शोट में 'छा गये बदल नील गगन पर..........' में उनको देखना ,........
शब्द ही नही .
आपकी पोस्ट ऩे ठहरे हुए पानी में जैसे कंकर मार दिया
मजा आ गया सुबह सुबह पढ़ते ही ,थेंक्स
आप 'आशीष रस्तोगी; हैं ? मेरा बाबा ? या..........???
वाह जी मीनाकुमारी के क्या कहने?
ReplyDeleteआज भी पाकीजा फ़िल्म में वही आनंद है
जो पहले देखने में आता था।
इसके भी कुछ संवाद आज तक लोगों की जुबान पर हैं।
बहुत अच्छी पोस्ट
बधाई
स्व० मीना कुमारी अच्छी अदाकारा के साथ-साथ अपने बेहतरीन नज़्मों के लिए भी याद की जाती हैं। मुझे उनकी लिखी कई नज़्में बेहद पसंद हैं। एकाध जो हल्की-फुल्की याद हैं लिखने का प्रयास करता हूँ--
ReplyDeleteउननी ही प्यारी हैं माज़ी की तारीखियाँ
ज़ितनी कि मुस्तकेबिल नारसा की चमक
ज़माना है माजी
ज़माना है मुस्तकबिल
और हाल एक वाहमा है
मैने जब किसी लम्हें को छूना चाहा
फिसलकर
वह खुद बन गया एक माजी।
और एक यह--
Najane Chand Nikale Kitane Din Huye !
Dekhona Kamsin Chandani Ne
Samundar Par
Ek Rahgujar Bana Rakhi Hai !!
Jis Par Koi Rahrau Najar Nanhi Aata
Magar Sunai De Rahi Hai
Beshumar Andekhe Kadanmo Ki Chap !!!
------इस पक्ष को और उजागर कर लिखने की जरूरत है---ढूंढना पड़ेगा।
बेहतरीन प्रस्तुति!!
ReplyDeleteमीना कुमारी को श्रृद्धांजलि!!
मेरे लिए आदरणीय मीना कुमारी जी से पहले कोई नहीं और उनके बाद भी कोई नहीं...!!
ReplyDeleteशायद मैं साहेब जान, छोटी बहू, माधवी, करुणा और न जाने कितने किरदारों से बाहर निकल नहीं पायी हूँ...
उनकी ग़ज़ल :
चाँद तन्हा है आसमां तनहा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तनहा
बुझ गई आस छुप गया तारा
थर-थराता रहा धुंआ तनहा
जिंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तनहा है और जान तनहा
हम-सफर को’ई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तनहा तनहा
जलती बुझती सी रौशनी के परे
सिमटा सिमटा सा एक मकान तनहा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहाँ तन्हा
मुझे बहुत पसंद है...आपका आभार की आपने दुनिया की एक बेमिसाल शख्शियत को याद किया...
उनकी पुण्यतिथि में मेरे श्रद्धा सुमन भी शामिल कर लीजिये..
शुक्रिया ...
लगता है आप भी मेरे जैसा मीना कुमारी के फैन रहे हैं
ReplyDeleteव्यवस्थित आलेख
सुन्दर
मीना कुमारी को श्रृद्धांजलि!!
ReplyDeleteमैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मुझे मंदिरों ने दी निदा
मुझे मस्जिदों ने दी सज़ा
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मेरी साँस भी रुकती नहीं
मेरे पाँव भी थमते नहीं
मेरी आह भी गिरती नहीं
मेरे हात जो बड़ते नहीं
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी
यह जो ज़ख़्म कि भरते नहीं
यही ग़म हैं जो मरते नहीं
इनसे मिली मुझको क़ज़ा
मुझे साहिलों ने दी सज़ा
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी
सभी की आँखें सुर्ख़ हैं
सभी के चेहरे ज़र्द हैं
क्यों नक्शे पा आएं नज़र
यह तो रास्ते की ग़र्द हैं
मेरा दर्द कुछ ऐसे बहा
मेरा दम ही कुछ ऐसे रुका
मैं कि रास्ते पे चल पड़ी
लगता है मीना कुमारी की फोटो दिल में रखते हो डॉ साहब ! इस गज़ब के कैरेक्टर की बड़ी पुरानी यादें दिलाई आपने ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
सुभानाल्लाह .......!!
ReplyDeleteमेरी सबसे पसंदीदा फिल्म .....ये और मुग़ल - ए आज़म .....एक और है गीत .....!!
आपने वो यादें ....वो पल ....वो रोमानियत के दिन फिर जिंदा कर दिए ........ कई बार देखी है ये फिल्म .....आपके ज़िक्र ने आँखों में सुर्खी ला दी .....!!
वो खड़े खड़े मुझे देख रहे हैं --और मैं तो उन्हें देख भी नहीं सकती --उफ़ ये सजा क्यों दे रहे हैं --ये भी नहीं देखते कि हम साँस भी नहीं ले पा रहे हैं --सांस तेज़ी से चलने लगती है।
बस आह निकलती .....
आज की शाम , वो आये हैं ज़रा देर के बाद
आज की शाम , ज़रा देर के बाद आई है --
ओह ....कयामत और नशातेरुह है ......!!
गोल चेहरा , सुन्दर होंठ , खूबसूरत आँखें , लम्बी नाक , और उसपर लम्बे काले घुंघराले बाल -
उफ्फ्फ्फ़.....ये बारीकियां आपके दिल की रोमानियत का पता देती हैं .....बहुत खूब .....!!
साकी यह क्या है की शराब की हर बूंद
सीने में आग लगती चली गयी .......!!!
बहुत खूब, यह अंदाज और प्रस्तुति भी अच्छी लगी डा ० साहब
ReplyDeleteमीनी कुमारी की पुणयतिथि पर आपने बढ़िया पोस्ट लगाई है!
ReplyDeleteमैं भी मीना कुमारी जी को श्रद्धाञ्जलि समर्पित करता हूँ!
डा. साहिब, वाह वाह! क्या बात है! आप तो छुपे रुस्तम निकले!
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट से याद आया कि कैसे शाहरुख खान ने अटल विहारी जी की पुस्तक के विमोचन के समय चुटकी लेते हुए कहा कि यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि जिस आदमी को कवि होना चाहिए था उसे प्रधान मंत्री बनना पड़ा :)
(मैं इतना दीवाना नहीं रहा हूँ किन्तु संगीत से मुझे और मेरे परिवार को विशेष प्रेम रहा है...हमारा केबल वाला भी मेहँदी हसन, ग़ुलाम अली, जगजीत सिंह आदि की, ग़ज़ल ईत्यादि की विडियो दिखाता रहता है,,,और आपके शब्दों में, 'संयोग से', हाल ही में ब्रेकफास्ट के समय मैंने भी पाकीज़ा का एक डांस सीन देखा और मीना कुमारी कि कटी ऊँगली के बारे में भी सोचा - जिसे आपने दोहरा दिया!)
बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! मीना कुमारी जी की पुण्य तिथि पर उनको मैं श्रधांजलि अर्पित करती हूँ!
ReplyDeletebahut dino baad aaj blog par aayee hoon shayad mujhe bhee aaj meena kumari kee yaad aa rahee thee bahut achhi janakaree hai meena kumari ko hardik shardhanjali. shubhakamanayen
ReplyDeleteआपने तो मीना कुमारी पर थीसिस ही लिख दी और खासतोर से पाकीजा पर। हमने भी उनकी कई फिल्मे देखी हैं।
ReplyDeleteसाकी यह क्या है की शराब की हर बूंद
ReplyDeleteसीने में आग लगती चली गयी .......!!!
हरकीरत जी , मैं तो जब भी इस फिल्म को देखता हूँ , कुछ ऐसा ही महसूस होता है , दिल में ।
वैसे दिल का क्या है , दिल तो पागल होता है।
सतीश जी , दिल में तो बस मेम साहब ही रहती हैं ,
लेकिन हम खूबसूरती के पुजारी हैं। फिर वो तन की हो , मन की , विचारों की या आचरण की ।
अदा जी , देवेन्द्र जी , यशवंत भाई , मीना कुमारी जी खुद बहुत अच्छी ग़ज़लें लिखती थी । उनमे उतना ही दर्द होता था , जितना उनकी जिंदगी में रहा । अफ़सोस होता है ये जानकार की कभी कभी अच्छे इंसानों को भी कितना दर्द झेलना पड़ता है। जे सी जी ने कहा था की भगवन को भी अच्छे इंसानों की ज्यादा ज़रुरत रहती है।
आज सुबह से विविध भारती पर मीना कुमारी के ही गाने चल रहे थे! पाकीज़ा के गाने तो जितनी भी बार सुनो इच्छा और बढती जाती है!
ReplyDeleteमीना कुमारी जी को विनम्र श्रधांजली ....और आपको इस रोचक आलेख के लिए बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत खूब, यह अंदाज और प्रस्तुति भी अच्छी लगी डा ० साहब
ReplyDeleteइत्तेफाकन आप के कम्पार्टमेंट में चला आया । आपके पैर देखे --बहुत हसीं हैं ये --इन्हें ज़मीन पर मत उतारियेगा --मैले हो जायेंगे।
ReplyDeleteमेरे ख्याल से यह पंक्ति लिखी हुई पुर्जी को अभिनेता ने अभिनेत्री के पांव की उंगलियों में फंसाया था जी
मीना कुमारी की एक फिल्म "भाभी" को बहुत ज्यादा पसन्द आने और अपनी जिन्दगी से मिलते चरित्र के कारण एक औरत का परिवार पिछले लगभग 35-40 साल से उनकी पूजा कर रहा है। मीना कुमारी को मीनादेवी बना कर घर के पूजास्थल पर उनकी ही तस्वीर प्रतिष्ठापित कर रखी है।
प्रणाम स्वीकार करें
यदि कोई फिल्म है जिसे मैं बार बार देख सकता हूँ तो वो है -पाकीज़ा।
ReplyDeleteडाकटर अंकल ये बात तो मैं कहता रहा हूँ.
ये रिपोर्ट / अफसाना आपने पेश किया यकीन नहीं होता... कितनी बधाई कैसे दें समझ में नहीं आता. आज दिल जीत लिया आपने.
!!विनम्र श्रद्धांजलि मेरी तरफ से!!
वो ट्रेन की सीटी मुझे बहुत विचलित कर देता है. मैं गाने rewind करके सुनता था. क्या कहें... सारे दृश्य तो आपने दिखा ही दियें.
एक शेर इस बेमिशाल अदाकारा के लिए,
खुद को घायल पाया हमने
हुस्न से जब नज़र मिली थी
एक मुलाक़ात में दिल दे बैठे
नाज्नीन वो बड़ी हसीं थी
--
सुलभ
(वाह वाह जरुर कीजियेगा)
वाह वाह डाक्टर साहब ... आज तो ब्लॉग बहुत ही दिलकश लग रहा है ... मीना कुमारी की हसीन यादों से भरा ... बहुत गहराई से छुवा है आपने इस शक्सियत को ... कमाल का चयन है आपका ... हर गीत, हर डायलॉग, मीना जी की पहचान करा रहा है ... मुझे उनका ये शेर याद आ रहा है ...
ReplyDeleteआबलापा कोई इस दश्त में आया होगा
वरना आँधी में दिया किसने जलाया होगा ...
एक ओए याद आ गया ...
टुकड़े टुकड़े दिन बीता और धज्जी धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था उतनी ही सौगात मिली ....
डा.साहिब, आपका कथन, "...हम खूबसूरती के पुजारी हैं। फिर वो तन की हो , मन की , विचारों की या आचरण की..."
ReplyDeleteमुझे याद दिलाती है कि 'पश्चिम' में वीनस को (यानि शुक्र ग्रह को) सुंदरता की देवी के रूप में माना जाता है,,,जबकि पूर्व में, भारत में, जोगियों ने शुक्र ग्रह के सत्व को मानव शरीर में गले में बतलाया है अनादिकाल से...और, शुक्राचार्य को राक्षशों के गुरु भी बताया! और आज वैज्ञानिक, खगोलशास्त्री, बताते हैं कि कैसे शुक्र ग्रह का वातावरण विष से भरा है...जबकि प्राचीन योगी शिव के गले मैं हलाहल धारण करने की कथा से भगवान शिव, 'नीलकंठ' को जिन्दा रखे हैं, जबकि उनके अनुसार देवता और राक्षस 'क्षीरसागर मंथन' के आरम्भ में दोनों विष के उत्पन्न होने से मारे जाने के कारण शिव के पास ही गए उनको विष से बचाने के लिए,,,और 'संयोगवश' हमारी आकाश गंगा को 'मिल्की वे गेलेक्सी' कहा जाता है आज भी,,,और आप भी 'गले' से ही जुड़े डॉक्टर और कवि भी हैं :)
अंतर सोहिल , उस एक पर्ची ने साहिब जान की जिंदगी बदल दी । फिर कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा । मीना कुमारी के किरदारों को असल जीवन में आसानी से देखा जा सकता है । इसीलिए वो सभी में बहित लोकप्रिय रही।
ReplyDeleteसुलभ ये फिल्म है ही ऐसी --इसको देखकर तवाइफ़, नर्तकी ,कोठा , अय्यास नवाब ,आदि शब्दों से घ्रणा नहीं , अपितु एक सहानुभूति सी होती है । इतने बढ़िया तरीके से फिल्माया गया है पाकीज़ा की कहानी को। शेर बहुत पसंद आया , बिलकुल दिल का हाल कह रहा है । वाह वाह !
नसवा जी , शेर पेश्कारने के लिए आभार। वाकई , जादुई शेर हैं ये सभी।
दराल सर,
ReplyDeleteमीना कुमारी को बेहतरीन तरीके से याद करने के लिए आभार...
मीना कुमारी कितनी प्रतिभावान थीं, इसका सबूत इसी महीने के पहले हफ्ते में ऑस्कर पुरस्कारों से पहले इंटरनेशनल न्यूज़ में अग्रणी सीएनएन ने एशिया के आल टाइम बेस्ट कलाकारों की सूची जारी करके दिया था...इस सूची में मीना कुमारी के साथ सिर्फ चार और भारतीय कलाकारों- गुरुदत्त, नर्गिस, प्राण और अमिताभ बच्चन को शामिल किया गया था...मैंने इस पर पोस्ट भी लिखी थी...लिंक ये रहा...
http://deshnama.blogspot.com/2010/03/blog-post_06.html
जय हिंद...
खुशदीप , बेशक --मीना कुमारी जी सबकी चहेती कलाकार थी। अदा जी की टिपण्णी में लिखा है --मेरी पसंद --मीनाकुमारी और बस मीना कुमारी । बहुत खूब !
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति,डॉ साहेब आप नें दिल से लिखी है यह पोस्ट लेकिन मीना जी के बारे में फिर भी कम ही लिखी.
ReplyDeleteइस महान अदाकारा को नमन !!
मीना कुमारी का नाम देख इस ब्लोग की तरफ़ खिची चली आयी। बचपन में मीना कुमारी की फ़ैन होने के कारण कई बार लोगों की खिल्ली का निशाना बनी लेकिन मीना के प्रशंसक हम आज भी हैं। पाकीजा मेरी भी पसंदीदा फ़िल्मों की लिस्ट में सबसे ऊपर है। साहब बीबी और गुलाम, पाकीजा के गाने आज भी मेरी गुनगुनाहट का हिस्सा है। इस पोस्ट के लिए आभार नहीं कहूंगी। सिर्फ़ इतना कि अच्छा लगा मीना कुमारी के एक और दिवाने से मिल के।
ReplyDeleteजानलेवा है मोहब्बत का समां आज की रात
ReplyDeleteशमा हो जाएगी , जल जल कर धुआं , आज की रात
आज की रात --बसेंगे तो सहर देखेंगे --
आज की रात --बसेंगे तो --सहर देखेंगे ---
डॉ टी एस दराल जी यह फ़िल्म हम सब को बहुत संदेश देती है... इस फ़िल्म की एक एक गजल बहुत कुछ कहती है... इन्ही लोगो ने इन्ही लोगो ने.... मैने भी इस फ़िल्म को एक नही अनेक बार देखा है....आज भी इस फ़िल्म को देखता हुं तो कुछ नया ही मिलता है उस मै
Mina ji meri all time favourite actress rahi hain. Unhe shraddhanjali.
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteमीना कुमारी जी को इससे बेहतर श्रद्धांजलि कोई हो ही नहीं सकती...
आलोक साहिल
इतनी ख़ूबसूरत प्रस्तुति के लिये कैसे आपको धन्यवाद करूँ शब्द बौने हो गये हैं ! मीनाकुमारी मेरी सबसे अधिक प्रिय अभिनेत्री रही हैं ! उनकी जैसी भावपूर्ण सम्वाद अदायगी उनके बाद कोई नहीं कर पाया ! मैं उनकी हर फिल्म बहुत चाव से देखती थी और फिर हफ़्तो उनके अभिनय के नशे मे चूर रहती थी ! आपने जिन फिल्मों का ज़िक्र किया है उनके अलावा 'दिल एक मंदिर' और 'दिल अपना और प्रीत पराई' भी मेरी बहुत पसंदीदा फ़िल्में हैं ! इतने अच्छे आलेख औए इतनी बेमिसाल शख्सियत को याद करने एवं याद दिलाने के लिये आपका आभार एवं धन्यवाद !
ReplyDeleteडा. साहिब, फिल्म के मानव के मष्तिस्क पर - (यानि सर्वोच्च स्थान पर, जीवन के सत्य समान अपनी घटती बढती कला द्वारा दर्शाते, चन्द्रमा के सत्व के निवास-स्थान,,,जिसे शिव-पार्वती पुत्र गणेश की कहानी में थोरेसिक सर्जन जैसे ग्राफ्टिंग, यानि हाथी का सर जोड़ने, का उदाहरण से समझा जा सकता है :) - पड़ने वाले प्रभाव से सम्बंधित बचपन की एक घटना याद आती है...
ReplyDeleteआश्चर्य हुआ जब किसी मित्र ने बताया कि मेरा रिश्ते में २-३ वर्ष बड़ा चाचा और दोस्त फिल्म देखते हुए रोता है! इस लिए जब उसने मुझे एक हिंदी फिल्म देखने चलने को कहा तो मुझे लगा कि यह अच्छा मौका होगा खुद उस कथन के सत्यापन का...जब हम अँधेरे में बैठ गए तो कनखियों से मैंने देखा कि उसने अपने सर के ऊपर रुमाल खोल कर रख लिया,,,और जब भी कोई रोने का दृश्य आता वो चुपके से रुमाल के एक कोने से आंसू पोछ लेता था जैसे गाल में हो रही खुजली को मिटा रहा हो :)...
बाद में जब हम हॉल से बाहर आगये तो मैंने उससे पूछा वो केवल एक झूठी कहानी को देख क्यूँ रो पड़ता है? उसने उत्तर दिया कि वो अपने आप निकल आते थे: वो कोई जान बूझ के थोड़ी रोता था :)
Daral saheb,
ReplyDeletebahut hi sundar. is post se aapke dil ki bhi pahichaan hoti hai . dil ki aisi khoobsooorati banaye rakhen .Badhai!!!!!!!!!!!
मीनाकुमारी की अदाकारी के तो कहने ही क्या थे ...
ReplyDeleteवे बहुत खूबसूरत नज्मे भी लिखती थी ...यह जिक्र रह गया
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...!
डा० आपने बहुत बढिया पोस्ट लगाई !
ReplyDeleteलोग मीना कुमारी की पूजा करते है !
कई तो फिल्म हाल की सीड़ियों पर बैठे रहते थे !
जब तक उनकी फिल्म चलती ,अनगिनत
बार देखते ! बहुत सी नई जानकारी दी धन्यवाद !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति. मीना कुमार जी को उनकी पुण्य तिथि पर श्रद्धा सुमन.
ReplyDelete__________
"शब्द-शिखर" पर सुप्रीम कोर्ट में भी महिलाओं के लिए आरक्षण
बेहतरीन अदाकारा को नमन ।बहुत सुंदर तरीके से आपने फिल्म की समीक्षा प्रस्तुत की । एक जानकारी मेरे पास भी है - मीना कुमारी जी की बहन की शादी मशहूर कामेडियन महमूद से हुई थी ।
ReplyDeleteये जानकारी तो हमें भी नहीं थी , अजय कुमार जी । इस अच्छी जानकारी के लिए आभार।
ReplyDeleteअपने चहेते कलाकारों के बारे में और जानकर बहुत ख़ुशी होती है।
मीना कुमारी को बेहतरीन तरीके से याद करने के लिए आभार उनकी पुण्य तिथि पर इससे बेहतर श्रद्धांजलि कोई हो ही नहीं सकती...
ReplyDelete....मीना जी की आवाज में बहुत ही मिठास लगती है, प्रभावशाली लेख!!!
ReplyDeleteबहुत खूब। मीना कुमारी जी हमारी भी पसंद की अदाकारा थी। जब पढते थे तो एक छोटी सी किताब हाथ लगी थी मीना जी की शायरी की वो आजतक संभाल कर रखी है।
ReplyDeletemujhe kabhi nahi laga ki meena ji ab nahi rahi kyon ki unke jeasi kalakaar roz is duniya me nahi aate or jab aate hain to phir kabhi nahi jaate tb hi to aaj39saalon baat bhi lagta hai ki wo aate hongi. or unhe ye pata tha is liye unhone khud hi kaha tha shayd aap longon ko yaad ho "Raha dekha karega sadyon tak chor jayenge ye jahan tanha..... "
ReplyDeleteएक बार फिर से इस पोस्ट को पढकर बहुत आनंद आया
ReplyDeleteआज जाने कैसे फिर इस ब्लॉग पर आ गई मेरे सामने आर्टिकल भी यही खुला है..........
ReplyDeleteक्लब के एक कार्यक्रम मे किसी अभिनेत्री की एक्टिंग करनी थी और लोगों को उसे पहचानना था.डायलोग नही बोलने थे मात्र अभिनय.
.....और मैं जीत गई. मीना कुमारी जी की एक्टिंग की थी मैंने.
फिल्म चन्दन का पलना का एक दृश्य -फिल्म और वो दृश्य लोगों के जेहन मे कहीं नही था.पर वे पहचान गए.
'वो जो मिलते थे कभी हमसे दीवानों की तरह ,आज यूँ बैठे है जैसे कभी पहचान न थी'(अकेली मत जइयो)
निगाहें कयों भटकती है कदम कयों डगमगाते है हमीं तक है हर एक मंजिल चले आओ,चले आओ '(बहारों की मंजिल)
सखी री मेरा मन उलझे ,तन डोले.
अब चैन पड़े तब ही जब उनसे मिलन हो ले'(चित्रलेखा)
'हमसफर मेरे हमसफर पंख तुम परवाज़ हम'(पूर्णिमा )
'हम तेरे प्यार मे सारा आलम खो बैठे हैं'
ऐसे तो न देखो कि बहक जाये कहीं हम,आखिर तो इक इंसान है फरिश्ता तो नही हम (भीगी रात)
'दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दे'(बहु बेगम)
'ऐसे मे तुझको ढूंढ कर लाऊं कहाँ से मैं'('')
और भी कई........... शायद बहुत कम लोग जानते हो कि
हिंदी फिल्मो के कई सदाबहार और अमर ऐसे ही गाने मीना जी पर फिल्माए गए थे.इतने मधुर गीत शायद और किसी अभिनेत्री पर नही फिल्माए गए.बहुत कुछ उन जैसी अभिनेत्री के लिए कहने को.ये दुर्भाग्य था उनका कि सबने उन्हें 'यूज' किया. ख़ूबसूरत और भावपूर्ण चेहरा ...