पिछली दो पोस्ट्स पर हंसने हंसाने की खूब बातें हुई. देखा जाए तो हँसना भी नसीब वालों को ही नसीब होता है . अक्सर हमने देखा है , किसी भी हास्य कवि सम्मेलन में आम श्रोता तो खूब खुलकर हँसते हुए , ठहाके लगाते हुए हास्य कविताओं का मज़ा लेते हैं , लेकिन आगे की पंक्तियों में बैठे विशिष्ठ अतिथि हंसने में अपनी तौहीन सी समझते हैं . बस मुस्करा कर रह जाते हैं . बेचारे कितने गरीब होते हैं . हालाँकि यही लोग रजनीश आश्रम में जिब्रिश करते हुए बिल्कुल नहीं शरमाते . कितनी अजीब बात है --
गाँव की उन्मुक्त हवा में किसानों के ठहाके गूंजते हैं ,
यहाँ हंसने के लिए भी लोग , लाफ्टर क्लब ढूंढते हैं !
बेशक , हंसने के लिए उचित स्थान , समय और वातावरण का होना अत्यंत आवश्यक है . गलत स्थान , समय और संगति में हँसना अभद्र भी साबित हो सकता है . इसलिए अक्सर दोस्तों में ही बैठकर ठहाके लगाने में आनंद आता है, या फिर समान स्तर के लोगों के समूह में. अक्सर हम गंभीरता का नकाब ओढ़े रहते हैं , विशेषकर बुद्धिजीवी लोग . कुछ लोगों को तो हर समय तनावग्रस्त रहते ही देखा जाता है . जाने कैसे जिंदगी जीते हैं लोग !
यदि आप खुश रहना चाहते हैं तो आवश्यक है , जिंदगी के प्रति अपना रवैया बदलें . हर हाल में मुस्कराते हुए कठिनाइयों का सामना करें . दिन भर में कुछ पल ऐसे ज़रूर चुरा लें जब आप हंसने का बहाना ढूंढ सकें . खाने पीने और नित्य क्रियाक्रम में हंसने को भी शामिल कर लें. फिर देखिये ब्लड प्रेशर , ब्लड सुगर , सरदर्द , बदन दर्द और न जाने कितनी ही बीमारियाँ ख़त्म न सही , कम अवश्य हो जाएँगी .
अब प्रस्तुत है , एक रचना :
चलो किसी रोते को हंसाया जाए !
गुजर न जाए सोते हुए ज़वानी
चलो किसी सोते को जगाया जाए !
बच गया है जो पेट भरने के बाद
चलो किसी भूखे को खिलाया जाए !
मिला जो नीर था ज़ाम की खातिर
चलो किसी प्यासे को पिलाया जाए !
जिसके हाथों हुआ था खूने ज़िगर
चलो उसी कातिल को बुलाया जाए !
बटोर कर बिखरे टुकड़े दिल के
चलो इसी महफ़िल में सजाया जाए !
इशारों पर जिनके नाचे हम ताउम्र
चलो उसी ज़ालिम को नचाया जाए !
रहें क्यों बेताब इश्को मोहब्बत में
चलो किसी के दिल में समाया जाए !
कब से बैठे हैं लैप में लैपटॉप लेकर
चलो अभी सुस्ती को भगाया जाए !
नहीं है देश ये ज़ागीर किसी की
चलो इन्ही भ्रष्टों को हटाया जाए !
अहम् घुल गया है दिल में 'तारीफ'
चलो अभी खुद को ही हराया जाए !