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Sunday, July 22, 2012

बहुत हुआ आराम , अब कुछ काम किया जाए ---


पिछली दो पोस्ट्स पर हंसने हंसाने की खूब बातें हुई. देखा जाए तो हँसना भी नसीब वालों को ही नसीब होता है . अक्सर हमने देखा है , किसी भी हास्य कवि सम्मेलन में आम श्रोता तो खूब खुलकर हँसते हुए , ठहाके लगाते हुए हास्य कविताओं का मज़ा लेते हैं , लेकिन आगे की पंक्तियों में बैठे विशिष्ठ अतिथि हंसने में अपनी तौहीन सी समझते हैं . बस मुस्करा कर रह जाते हैं . बेचारे कितने गरीब होते हैं . हालाँकि यही लोग रजनीश आश्रम में जिब्रिश करते हुए बिल्कुल नहीं शरमाते . कितनी अजीब बात है --

गाँव की उन्मुक्त हवा में किसानों के ठहाके गूंजते हैं ,
यहाँ हंसने के लिए भी लोग , लाफ्टर क्लब ढूंढते हैं !

बेशक , हंसने के लिए उचित स्थान , समय और वातावरण का होना अत्यंत आवश्यक है . गलत स्थान , समय और संगति में हँसना अभद्र भी साबित हो सकता है . इसलिए अक्सर दोस्तों में ही बैठकर ठहाके लगाने में आनंद आता है, या फिर समान स्तर के लोगों के समूह में. अक्सर हम गंभीरता का नकाब ओढ़े रहते हैं , विशेषकर बुद्धिजीवी लोग . कुछ लोगों को तो हर समय तनावग्रस्त रहते ही देखा जाता है . जाने कैसे जिंदगी जीते हैं लोग !

यदि आप खुश रहना चाहते हैं तो आवश्यक है , जिंदगी के प्रति अपना रवैया बदलें . हर हाल में मुस्कराते हुए कठिनाइयों का सामना करें . दिन भर में कुछ पल ऐसे ज़रूर चुरा लें जब आप हंसने का बहाना ढूंढ सकें . खाने पीने और नित्य क्रियाक्रम में हंसने को भी शामिल कर लें. फिर देखिये ब्लड प्रेशर , ब्लड सुगर , सरदर्द , बदन दर्द और न जाने कितनी ही बीमारियाँ ख़त्म न सही , कम अवश्य हो जाएँगी .

अब प्रस्तुत है , एक रचना :

किसी दुखी मन का दर्द मिटाया जाए
चलो किसी रोते को हंसाया जाए !

गुजर न जाए सोते हुए ज़वानी
चलो किसी सोते को जगाया जाए !

बच गया है जो पेट भरने के बाद
चलो किसी भूखे को खिलाया जाए !

मिला जो नीर था ज़ाम की खातिर
चलो किसी प्यासे को पिलाया जाए !

जिसके हाथों हुआ था खूने ज़िगर
चलो उसी कातिल को बुलाया जाए !

बटोर कर बिखरे टुकड़े दिल के
चलो इसी महफ़िल में सजाया जाए !

इशारों पर जिनके नाचे हम ताउम्र
चलो उसी ज़ालिम को नचाया जाए !

रहें क्यों बेताब इश्को मोहब्बत में
चलो किसी के दिल में समाया जाए !

कब से बैठे हैं लैप में लैपटॉप लेकर
चलो अभी सुस्ती को भगाया जाए !

नहीं है देश ये ज़ागीर किसी की
चलो इन्ही भ्रष्टों को हटाया जाए !

अहम् घुल गया है दिल में 'तारीफ'
चलो अभी खुद को ही हराया जाए !


Saturday, March 20, 2010

हँसना जरुरी है ----

परिस्थितियोंवश पिछले एक सप्ताह से नेट से दूर रहना पड़ाइसलिए समय ही नहीं मिल पाया , लिखने और पढने काआज आपके सन्मुख पाया हूँ

नोट: ऐसा प्रतीत होता है कि आजकल के भाग दौड़ और तनावपूर्ण जीवन में लोग हँसना ही भूल गए हैं। तभी तो अधिकतर लोगों के माथे पर भ्रकुटी तनी हुई और चेहरा गंभीरग़मगीन नज़र आता है। विशेष रूप से व्यावासिक जीवन में जो जितना सफल होता है, वह उतना ही ज्यादा गंभीरता का मुखोटा ओढे रहता है। इसीलिए आजकल भारत जैसे विकासशील देश में भी हृदय रोग , मधुमेह उच्च रक्तचाप जैसी भयंकर बीमारियाँ पनपने लगी हैं।


हँसना स्वास्थ्य के लिए कितना लाभदायक है , यह बात हमारे धार्मिक गुरुओं के अलावा डॉक्टरों से बेहतर और कौन समझ सकता है। ठहाका लगाकर हँसना एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे न सिर्फ़ शरीर का प्रत्येक अंग आनंदविभोर होकर कम्पन करने लगता है, बल्कि दिमाग भी कुछ देर के लिए सभी अवांछित विचारों से शून्य हो जाता है। इसीलिए हंसने को एक अच्छा मैडिटेशन माना गया है।


लेकिन आज के युग में हँसना भी एक कृत्रिम प्रक्रिया बन गया है। ठहाका लगाकर हंसने के लिए आवश्यकता होती है एक सौहार्दपूर्ण वातावरण की , जो केवल व्यक्तिगत मित्रों के साथ ही उपलब्ध हो पाता है। और आज के स्वयम्भू समाज में अच्छे मित्र भला कहाँ मिल पाते हैं। इसीलिए आजकल खुलकर हँसना दुर्लभ होता जा रहा है।


देखिये ये कैसी विडम्बना है कि---


वहां गाँव की उन्मुक्त हवा में , किसानों के ठहाके गूंजते हैं ,
यहाँ शहर में लोग हंसने के लिए भी, कलब ढूँढ़ते हैं।


आजकल शहरों में जगह जगह लाफ्टर कलब बन गए हैं ,जहाँ लाफ्टर मैडिटेशन कराया जाता है। लेकिन मुझे तो लगता है कि इस तरह की कृत्रिम हँसी सिर्फ़ मन बहलाने का एक साधन मात्र है। वास्तविक हँसी तो नदारद होती है। जरा गौर कीजिये , एक पार्क में २०-३० लोगों का समूह , एक घेरे में खड़े होकर , झुककर ऊपर उठते हैं , हाथ उठाते हैं, और मुहँ से जोरदार आवाज निकलते हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि वे लाफ्टर मैडिटेशन नहीं, बल्कि बाबा रामदेव का बताया हुआ कब्ज़ दूर करने का आसन कर रहे हों। उसमे आवाज तो होती है, मगर हँसी नही होती।

मित्रो, हंसने के लिए स्वाभाविक होना अति आवश्यक है , साथ ही जिंदगी के प्रति अपना रवैया बदलना भी जरुरी है। जीवन की छोटी छोटी बातों से , घटनाओं से, कुछ न कुछ हास्य निकल आता है, जिसे फ़ौरन पकड़ लेना चाहिए और उसे हँसी में तब्दील कर देना चाहिए। ऐसा करके न सोर्फ़ आप हंस सकते हैं बल्कि दूसरों को भी हंसा सकते हैं। याद रखिये जो लोग हँसते हैं , वो अपना तनाव हटाते हैं, लेकिन जो हंसाते हैं वो दूसरों के तनाव भगाते हैं। यानी हँसाना एक परोपकारिक कार्य है। तो क्या आप यह सवोप्कार एव्म परोपकार नही करना चाहेंगे?

जिंदगी का मंत्र --

हर हाल में जिंदगी का साथ निभाते चले जाओ,
किंतु हर ग़म , हर फ़िक्र को , धुएँ में नही ,हँसी में उडाते जाओ।

आप पिछली बार दिल खोलकर कब हँसे थे , जरा सोचियेगा जरूर!