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Tuesday, May 12, 2009

हँसना जरुरी है ----

ऐसा प्रतीत होता है कि आजकल के भाग दौड़ और तनावपूर्ण जीवन में लोग हँसना ही भूल गए हैंतभी तो अधिकतर लोगों के माथे पर भ्रकुटी तनी हुई और चेहरा गंभीर ग़मगीन नज़र आता हैविशेष रूप से व्यावासिक जीवन में जो जितना सफल होता है, वह उतना ही ज्यादा गंभीरता का मुखोटा ओढे रहता हैइसीलिए आजकल भारत जैसे विकासशील देश में भी हृदय रोग , मधुमेह उच्च रक्तचाप जैसी भयंकर बीमारियाँ पनपने लगी हैं


हँसना स्वास्थ्य के लिए कितना लाभदायक है , यह बात हमारे धार्मिक गुरुओं के अलावा डॉक्टरों से बेहतर और कौन समझ सकता हैठहाका लगाकर हँसना एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे सिर्फ़ शरीर का प्रत्येक अंग आनंदविभोर होकर कम्पन करने लगता है, बल्कि दिमाग भी कुछ देर के लिए सभी अवांछित विचारों से शून्य हो जाता हैइसीलिए हंसने को एक अच्छा मैडिटेशन माना गया है


लेकिन आज के युग में हँसना भी एक कृत्रिम प्रक्रिया बन गया हैठहाका लगाकर हंसने के लिए आवश्यकता होती है एक सौहार्दपूर्ण वातावरण की , जो केवल व्यक्तिगत मित्रों के साथ ही उपलब्ध हो पाता हैऔर आज के स्वयम्भू समाज में अच्छे मित्र भला कहाँ मिल पाते हैंइसीलिए आजकल खुलकर हँसना दुर्लभ होता जा रहा है


देखिये ये कैसी विडम्बना है कि---


वहां गाँव की उन्मुक्त हवा में , किसानों के ठहाके गूंजते हैं ,

यहाँ शहर में लोग हंसने के लिए भी, कलब ढूँढ़ते हैं


आजकल शहरों में जगह जगह लाफ्टर कलब बन गए हैं ,जहाँ लाफ्टर मैडिटेशन कराया जाता हैलेकिन मुझे तो लगता है कि इस तरह की कृत्रिम हँसी सिर्फ़ मन बहलाने का एक साधन मात्र हैवास्तविक हँसी तो नदारद होती हैजरा गौर कीजिये , एक पार्क में २०-३० लोगों का समूह , एक घेरे में खड़े होकर , झुककर ऊपर उठते हैं , हाथ उठाते हैं, और मुहँ से जोरदार आवाज निकलते हैंउन्हें देखकर ऐसा लगता है कि वे लाफ्टर मैडिटेशन नहीं, बल्कि बाबा रामदेव का बताया हुआ kabj दूर करने का आसन कर रहे होंusme आवाज तो होती है, मगर हँसी नही होती


1 comment:

  1. आपने बिलकुल सही कहा कि आज के तनावपूर्ण माहौल में हंसना बहुत ज़रुरी है...
    अपनी रचनाओं के द्वारा लोगों को हँसाना अपने आप में एक बहुत बड़ा कर्म है और आप इसे बखूबी निभा रहे हैं...लगे रहिये...

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