top hindi blogs

Friday, November 13, 2009

बाल दिवस पर गौर कीजिये --- कहीं आपका बच्चा बाल शोषण का शिकार तो नही !

बाल शोषण का शिकार ! हमारा बच्चा ! क्या बात करते हैं. ये तो हो ही नहीं सकता.
भला हमारे बच्चे को किस बात की कमी है.
बाल शोषण का विचार आते ही, कुछ इसी तरह की बात मन में आती है.

लेकिन दोस्तों , ऐसा बिलकुल हो सकता है की आपका लाडला, किसी न किसी रूप में शोषण का शिकार हो रहा हो.
दिल्ली स्थित एक एन जी ओ -- प्रयास के एक अद्ध्यन के मुताबिक करीब ५० % बच्चे कभी न कभी किसी न किसी रूप से शोषण के शिकार होते हैं.
यह भी पता चला है की ३० % बच्चे यौन शोषण , ४० % शारीरिक , ५० % भावनात्मक और ६० % आर्थिक शोषण के शिकार होते हैं.

यह भी ज़रूरी नहीं की केवल गरीब परिवारों के बच्चे ही इससे प्रभावित होते हैं। सभी तरह के परिवारों के बच्चे शोषित हो सकते हैं. गरीब बच्चे आर्थिक और शारीरिक शोषण के , और खाते पीते परिवारों के बच्चे यौन और इमोशनल शोषण के शिकार ज्यादा होते हैं.

बाल शोषण भला है क्या ?

डबल्यू एच ओ की परिभाषा अनुसार -- सभी तरह का शारीरिक, मानसिक, और यौन दुर्व्यवहार , बच्चे की उपेक्षा, आर्थिक या किसी और रूप में दुरूपयोग, जिससे बच्चे के स्वास्थ्य , सुरक्षा और विकास पर विपरीत प्रभाव पड़े, इसे बाल शोषण कहते हैं.

इसका एक अहम् पक्ष ये है की अक्सर इस कृत्य में ऐसे व्यक्ति का हाथ होता है जिस पर बच्चे के देखभाल की जिम्मेदारी होती है या जिस पर बच्चे को भरोसा होता है. इसलिए ज्यादातर शोषण करने वाले घर के मेंबर या रिश्तेदार ही होते हैं.

शोषण कितने प्रकार का होता है ?

. शारीरिक : जैसे मार -पीट, किकिंग, शेकिंग, फेंकना, सिगरेट से जलाना,
और किसी तरह की चोट पहुँचाना.
२. यौन शोषण : छेड़खानी, इन्सेस्ट, रेप, सोडोमी, वैश्यावर्ती और पॉर्न आदि.
३. इमोशनल : हमेशा निंदा करना, धमकाना, परित्याग, सौतेला व्यवहार, डराना आदि.
४. उपेक्षा : स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण और प्यार से वंचित रखना.

इसके अलावा डबल्यू एच ओ इनको भी बाल शोषण मानता है ---

जानबूझ कर दी गई ड्रग्स या ज़हर, चाइल्ड लेबर या कमर्शियल एक्स्प्लोय्टेशन , बच्चों को हथियारों से लैश करना

बाल शोषण का पता कैसे चले ?

यदि आपका बच्चा बदला बदला सा लगता है, उसके व्यवहार में बदलाव गया है, स्कूल में मन नही लग रहा,
डरा डरा सा लगता है, सहमा सहमा रहता है , स्कूल जाने या घर वापस आने से बचता है, बड़ों को देखते ही छुपने की कोशिश करता है , तो समझ जाइए की बच्चे के साथ कोई प्रोब्लम तो है

ऐसे में तलाश करिए, शोषण के लक्षणों की।

शोषण के लक्षण :

चोट, काटने , या घिसटने के निशान , ब्लैक आई--- शारीरिक शोषण को दर्शाते हैं।

चलने या बैठने में मुश्किल, चुपचाप रहना , नींद में डरना, बिस्तर में पेशाब करना , भूख में और यौन सम्बंधित जानकारी में अचानक आए बदलाव ---- यौन शोषण को दर्शाते हैं।

चिडचिडापन, कार्यों में आयु से विसंगति , शारीरिक और मानसिक विकास में देरी--- लक्षण हैं इमोशनल शोषण के।

भीख मांगना, चोरी करना, मैला कुचैला रहना, स्कूल से गायब रहना, ड्रग्स और एल्कोहल लेना --- ये सब सूचक हैं
बच्चे के उपेक्षा के शिकार होने के।

बाल शोषण में मात- पिता की भी अहम् भूमिका रहती है
पेरेंट्स का ड्रग्स अडिक्ट या एल्कोहोलिक होना, सेपरेशन या तलाक शुदा , बच्चों की तरफ़ से लापरवाह होना,
अपनी जिम्मेदारी से बचना , सौतेला व्यवहार रखना और बच्चे को अभिशप्त समझना ---ऐसी भ्रांतियां हैं जो बच्चों को शोषण की तरफ़ धकेलती हैं।

ऐसा पाया गया है की ज्यादातर शोषण करने वाले घर के लोग जैसे चाचा, मामा, भतीजा या चचेरा भाई जैसे करीबी रिश्तेदार ही होते हैं
यौन शोषण के मामले में तो किसी पर भी विश्वास नही किया जा सकता।

याद रखिये की सिर्फ़ मां का बच्चे को चूमना ही एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमे सेक्सुअल टच नही होताइसके इलावा कोई भी बच्चे को चूमता है तो उसमे थोड़ा बहुत सेक्सुअल टच अवश्य होता हैऐसा साइकोलोजिस्ट्स का मानना है

बाल शोषण से बचाव :

बाल शोषण न हो , इसके लिए ज़रूरत है पारिवारिक संबंधों में मजबूती की। अभिभावकों को बाल विकास और बाल हित से सम्बंधित जानकारी देना अति आवश्यक है।
मां -बाप ही बच्चों के रोल मोडल होते हैं। इसलिए यदि हम अपना चाल- चलन सही रखें तो बच्चों को भी सही दिशा निर्देश दे पाएंगे।

समाज में ज़रूरत है, आवाज़ उठाने की। इसके बारे में प्रामर्स करने की और सबको रिस्क फैक्टर्स के बारे में बताने की।
यदि सब मिल कर प्रयास करें , तभी निठारी जैसे जघन्य कांडों को रोकने में हम सफल होंगे

और अब इन्हे देखें :















वहां पापा पप्पी को संभाले यहाँ बाल बाल को पाले

बाल दिवस पर ये कैसा अत्याचार !!!

ये लेख आपको कैसा लगा, बताइयेगा ज़रूर

31 comments:

  1. डॉ दराल साहेब,

    नमस्कार

    एक पाठक के नाते

    एक लेखक के नाते

    एक पिता के नाते

    और एक नागरिक के नाते मैंने आपके इस आलेख को बड़ी गंभीरता

    से पढ़ा और इस नतीजे पर पहुंचा की बाल दिवस पर इस से बेहतरीन

    और कोई आलेख हो नहीं सकता.........


    आप धन्य हैं

    आपका समर्पण धन्य है

    ______अभिनन्दन !

    ReplyDelete
  2. यह भी पता चला है की ३० % बच्चे यौन शोषण , ४० % शारीरिक , ५० % भावनात्मक और ६० % आर्थिक शोषण के शिकार होते हैं

    ----- aapki is post ne to dil jeeet liya sir ,bahut hi badhiya post ke liye aapko badhai "

    --- eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

    plz welcome on my blog to read

    "मेरे भारत देश की लिलामी चालू हो गई है ,आपको बोली लगानी हो तो आ जाओ "

    ReplyDelete
  3. याद रखिये की सिर्फ़ मां का बच्चे को चूमना ही एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमे सेक्सुअल टच नही होता। इसके इलावा कोई भी बच्चे को चूमता है तो उसमे थोड़ा बहुत सेक्सुअल टच अवश्य होता है। ऐसा साइकोलोजिस्ट्स का मानना है।


    in panktiyon se poori tarah sahmat hoon....

    bahut badhiya laga yeh aalekh.......jaankari se paripurn ....antim do fotuon ne bahut kuch sochne ko majboor kar diya.....

    ReplyDelete
  4. में आपके ब्लॉग में 'नयी सड़क' से पहुंचा और पढ़ कर प्रसन्नता हुई. शेष पोस्ट भी पढूंगा और तभी शायद कुछ टिपण्णी दे पाऊँगा. धन्यवाद् !

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्छा सार्थक आलेख. सजगता की आवश्यक्ता है. बहुत आभार.

    ReplyDelete
  6. एक बेहतर चिन्तन और सावधान करने वाला आलेख।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  7. आदरणीय दरालजी बहुत अच्छा लेख है | इससे हमारे
    जैसे बहुत से अभिभावकों का मार्गदर्शन हुआ है |

    ReplyDelete
  8. बाल दिवस पर एक सार्थक लेख. सभी जिम्मेदार नागरिकों के लिए पठनीय.
    आप सिर्फ एक डाक्टर नहीं 'जिम्मेदार डाक्टर' हैं.

    मेरी शुभकानाएं!!

    ReplyDelete
  9. मुझे भी इस बाल दिवस पर ऑटो मैकेनिक की शॉप पर बात-बात पर उस्ताद की गालियां और मार खा रहा आठ-नौ साल का बच्चा याद आ रहा है...जब भी उस्ताद ये काम करता है तो मुझे लगता है बाल श्रम विरोधी कानून के मुंह पर ही कस कर तमाचे जड़े जा रहे हैं...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  10. शुक्रिया , अलबेला जी, सच्चाई वाले भाई साहब, महफूज़ भाई, अजय कुमार जी, सतरंगी जी और सुमन जी जिनका प्रथम आगमन है. समीर जी और खुश भाई तो हमारे पुराने सम्बन्धी हैं.
    ये पोस्ट आप जैसे समझदार लोगों के लिए ही लिखी गई है.
    आशा करता हूँ की और लोग भी इसे पढें और विचार करें.

    ReplyDelete
  11. जे सी जी, पूरे दर्शन दें , तो और भी अच्छा लगेगा.

    ReplyDelete
  12. डॉक्टर साहेब,
    पहली बार आपके ठिकाने पर आना हुआ है। शब्दों का सफर ही करने के चक्कर में ब्लागर होते हुए भी ब्लाग-सफरी नहीं बन पाया हूं। बहुत अच्छा लगा यहां। आपकी पोस्ट अच्छी लगी। मैं एक पत्रकार हूं और आए दिन न जाने कितने किस्म के सर्वेक्षणों को पढ़ता हूं। मानवीय भावनाओं के संदर्भ में चूमने के बारे में जो मनोविज्ञानियों का मंतव्य सामने रखा है, वह विवादास्पद है। आए दिन न जाने कितनी तरह के सर्वे से हासिल निष्कर्ष अध्येता जारी करते हैं। उसके खबरीले तत्व पर सबकी निगाह रहती है और उसी आधार पर उसे वैश्विक मान लिया जाता है।
    सौ में बीस गलत भी होते हैं और उनमें भी पांच असहनीय। तमाम पाप इनके माथे। बाकी अस्सी फीसद तो वाकई बच्चे को बच्चा ही समझते हैं। मुझे नहीं लगता कि किसी का माथा, गाल चूमने की क्षणिक घटना से किसी की सैक्स ग्रंथी संतुष्ट होती होगी, उन बीस फीसद को छोड़कर।

    ReplyDelete
  13. डॉक्टर दराल जी ~ मैं दिल्ली विश्वविद्यालय और पिलानी का छात्र रहा हूँ, ५० के अंतिम और ६० के दशक के आरंभ में...और फिर सरकारी नौकरी में दिल्ली के अतिरिक्त इधर/ उधर भी भटका हूँ...अब तो प्रभु की कृपा से कुछ समय मिला है अंतर्मन में झाँकने का...मैंने आपके लिए रवीश जी के ब्कोग में भी एक टिपण्णी छोड़ी है और स्वयं आपके ही अपने दूसरे ब्लॉग में भी...शायद जिनसे मेरे मन के झुकाव का अंदाजा लग पाए...धन्यवाद!

    मेरा अपना निजी ब्लॉग नहीं है क्यूंकि जैसा मैंने बताया, में अब सन्यासाश्रम में प्रवेश कर चूका हूँ किन्तु बाहरी जगत से भी जुडा...

    ReplyDelete
  14. वहाँ पापा पप्पी को पाले यहाँ बाल बाल को पाले
    बाल दिवस के अवसर पर आपका यह तोहफा सर माथे पर
    चित्र भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है जिसे हम प्रायः देखकर भी अनदेखा कर देते हैं...
    लेकिन जो नायाब जानकारी हमें आपने अपने लेख के माध्यम से दी उसकी जितनी भी तारीफ की जाय वह कम है
    ऐसा लेख सभी को पढ़ना और पढ़कर प्रचारित करना चाहिए।

    ReplyDelete
  15. वहां पापा पप्पी को संभाले यहाँ बाल बाल को पाले....दाद देती हूँ आपके कैमरे की पकड़ की ......!!

    जहां सभी ब्लोगरों ने बाल कविता लिख के अपना दायित्व निभा लिया वहीँ आपका ये बाल जीवन पर उपयोगी लेख बच्चों के प्रति हमारे व्यवहार पोल खोलता है ...३० % बच्चे यौन शोषण , ४० % शारीरिक , ५० % भावनात्मक और ६० % आर्थिक शोषण के शिकार होते हैं. ....कहीं न कहीं इसके जिम्मेदार हम भी हैं ...

    मानसिक, और यौन दुर्व्यवहार , बच्चे की उपेक्षा, आर्थिक या किसी और रूप में दुरूपयोग, जिससे बच्चे के स्वास्थ्य , सुरक्षा और विकास पर विपरीत प्रभाव पड़े, इसे बाल शोषण कहते हैं.

    आपने जिन तथ्यों को सामने रखा है आमतौर पर हम इसे नज़रंदाज़ कर देते हैं हमेशा निंदा करना, धमकाना, परित्याग, सौतेला व्यवहार....सच कहा आपने इससे बच्चे कुंठित हो जाते हैं ...!!

    बाल दिवस पर बहुत ही उपयोगी आलेख ......!!

    ReplyDelete
  16. हमारी टिप्पणी प्रकाशित नहीं की आपने....

    ReplyDelete
  17. अजित जी, माफ़ी चाहता हूँ देरी के लिए.
    दरअसल आज राष्ट्रीय कवि संगम का तृतीय वार्षिक सम्मलेन था.
    अभी अभी वहीँ से आ रहा हूँ.
    आपका कहना भी जायज़ है. सभी एक जैसे नहीं होते . लेकिन ये जो माइंड होता है,इसमें एक सब्कोन्सियस भाग भी होता है, जिसका कंट्रोल हमारे हाथ में नहीं होता.
    दूसरी बात ये है की, सबकी रीति रिवाजें अलग अलग होती हैं.
    जहाँ किस करना पश्चिमी सभ्यता में अभिवादन करने का तरीका है, वहीँ यहाँ तो अभी भी इसे अलग दृष्टि से देखा जाता है.
    फिर भी मैं यही कहूँगा की आपकी बात में सच्चाई है. हालाँकि ये साइकोलोजिस्ट्स का पक्ष है.
    एक पत्रकार से आमना सामना अच्छा लगा.

    ReplyDelete
  18. जे सी अंकल, आपके बारे में जानकार बहुत अच्छा लगा.
    बुजुर्गों का हमारे जीवन में कितना महत्त्व है, ये बात तो मैं स्वयम दूसरों को बताता हूँ.
    इंडिया गेट की आपकी यादें तो हमें भी अतीत में ले गई.
    बहुत अच्छा लगा आपकी टिपण्णी पढ़कर. मेरे लिए तो ये आर्शीवाद जैसा है.
    रविश कुमार जी के ब्लॉग पर आपकी टिपण्णी पढ़ी थी. लेकिन उसके बारे में मैं स्वयं विस्तार से एक पोस्ट लिखने की सोच रहा हूँ. जल्दी ही लिखूंगा.
    और हाँ, यदि आप ब्लॉग को बस इतना आजाद कर दें की हम आपके ब्लॉग पर ही आकर आपसे गुफ्तगू कर सकें , तो आपके अनुभवों का हम सब और लाभ उठा पायेंगे.


    देवेंद्र जी और हरकीरत जी , आपकी टिप्पणियां मेरे लिए टोनिक का काम करती हैं.
    आभार.

    ReplyDelete
  19. जानकारी आंखे खोलने वाली है आप इस आलेख को समाचार पत्रों में भी प्रकाशित करवाये इस तरह के आलेख जागरूकता फैलाते है पर कितने लोगो तक पहुचते है यह सोचनीय है? आप पत्रकारों से भी अच्छा काम कर रहे है आपकों मेरा अभिनन्दन ।

    ReplyDelete
  20. डॉक्टर दारल जी ~ मैं भूल गया लिखना कि यद्यपि मेरा अपना निजी ब्लॉग नहीं है, किन्तु फिर भी सन २००५ से, यानि चार साल से अधिक, जबसे मैंने पहले ब्लॉग के बारे में समाचार पत्र में जाना, इसे संयोग ही कहेंगे कि मुझे पहला ब्लॉग, तब कु., अब श्रीमती कविता का मंदिर आदि के उपर दिखा (@)...और मैं केवल टिप्पणी ही तबसे लिखता आ रहा हूँ उसके ब्लॉग में, और कभी कभी विभिन्न अन्य ब्लोगों में भी, जैसे न्यू यार्क टाईम्स, टाईम्स ऑफ़ इंडिया के कुछेक, आदि आदि...मेरा प्रयास अपनी 'धार्मिक' कहानियों में सांकेतिक भाषा में दर्शाए सत्य को खोज निकालने का है - आजके सन्दर्भ में...इस कारण मेरे विचार सबकी समझ में नहीं आते क्यूंकि वो खगोलशास्त्र पर अधिक आधारित होते हैं और पढने वाले सारे इतिहासकार इत्यादि, (यद्यपि मैं स्वयं सिविल इंजीनियरिंग का विद्यार्थी रहा हूँ) इस कारण अधिकतर टिप्पणियां नहीं देखने को मिलती :)

    @ http://indiatemple.blogspot.com/

    ReplyDelete
  21. बाल-दिवस पर इस सार्थक लेख के लिए आभार!

    ReplyDelete
  22. दराल की दिल्ली वाले डॉ टी एस दराल सर,

    दिल्ली के ब्लागरों के असली शहंशाह होने के बावजूद आपने कवि सम्मेलन को तरजीह दी...इसकी सज़ा आपको मिलेगी...बराबर मिलेगी...अगली महफिल में आपको ढेर सारे...टीचर्स...लाने होंगे...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  23. ... बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!

    ReplyDelete
  24. खुशदीप भाई, आपका स्नेहमयी हुक्म सर माथे पर.

    ReplyDelete
  25. डॉ.साहब आपका लेख पढ कर मुझे फ्राइड की याद आ रही है । इस बारे मे उनकी बहुत सी मान्यतायें हैं । यद्यपि हमारा अवचेतन भी धीरे धीरे ही बनता है और बड़े होने के बाद उसमे से कचरा निकालना बहुत मुश्किल होता है । सो यह बहस का विषय तो सदा बना ही रहेगा ।

    ReplyDelete
  26. शरद जी, ये तो विषय का एक ही पहलू है. बाल शोषण पर मुझे आप से और ज्यादा की अपेक्षा थी.

    ReplyDelete
  27. डॉक्टर साहब इतना अच्छा लेख वह भी बाल दिवस पर और रोंगटे खड़े कर देने तथ्यों के साथ. बहुत बहुत बधाई. इतनी अच्छी और तर्कसंगत बातों की ही आप से आगे भी आशा करते हैं

    ReplyDelete
  28. आज शाम टी वी पर एक न्यूज़ चैनल पर एक रिपोर्ट देखकर दिल बहुत ख़राब हुआ। महाबलीपुरम जैसी पावन भूमि पर एक अनाथालय के बच्चों पर विदेशियों द्वारा किए जा रहे यौन शोषण का खुलासा किया गया। यूँ तो इस जघन्य अपराध के लिए पिडोफिल्स के लिए कम से कम ५ साल की सज़ा का प्रावधान है , १२ साल तक के बच्चों के साथ अनाचार करने के लिए। लेकिन आज तक कितने पिडोफिल्स गिरफ्तार हुए, ये कोई नही जानता।

    उधर, पति , पत्नी और वो सीरियल में जिस तरह छोटे छोटे , नन्हे मासूमों को इस्तेमाल किया जा रहा है, उसे क्या कहेंगे?

    ReplyDelete
  29. जानकारी भरे इस आलेख के लिए आपको सलाम

    ReplyDelete
  30. डॉ टी एस दराल सर, आपको नमस्कार | आपकी ब्लॉग मैने पढ़ी, आपकी जैसी सोच अगर सबकी हो तो क्या बात है | पर हमारे देश मे जागरूकता की बहोत कमी है | मैं एक सॉफ्टवेर इंजीनीयीयिर हू | पिछले १८ महीनो से मैं एक सिस्टम बनाने की कोशिश कर रहा हू, जिस सॉफ्टवेर की मदत से चाइल्ड अब्यूज़िंग , चाइल्ड किडनेपिंग जैसे मामले मे कमी आए | यह सॉफ्टवेर जी-पी-एस, सेट्टेलाइट, रेडियो तरंग और सेलुलेर तकनीक से बनी हुई है | और हम पूरे भारतवर्ष के अभिभको को एक ऐसी प्लॅटफॉर्म देने की त्यारी कर रहे है , जिस मंच पर वो अपने सारे समस्या के बारे मे जानकारी प्राप्त कर सकते है| मुझे आपकी ई मेल की ज़रूरत है |

    ReplyDelete
  31. डॉ टी एस दराल सर , आपको नमस्कार | आपकी ब्लॉग मैने पढ़ी, आपकी जैसी सोच अगर सबकी हो तो क्या बात है | पर हमारे देश मे जागरूकता की बहोत कमी है | मैं एक सॉफ्टवेर इंजीनीयीयिर हू | पिछले १८ महीनो से मैं एक सिस्टम बनाने की कोशिश कर रहा हू, जिस सॉफ्टवेर की मदत से चाइल्ड अब्यूज़िंग , चाइल्ड किडनेपिंग जैसे मामले मे कमी आए | यह सॉफ्टवेर जी-पी-एस, सेट्टेलाइट, रेडियो तरंग और सेलुलेर तकनीक से बनी हुई है | और हम पूरे भारतवर्ष के अभिभको को एक ऐसी प्लॅटफॉर्म देने की त्यारी कर रहे है , जिस मंच पर वो अपने सारे समस्या के बारे मे जानकारी प्राप्त कर सकते है| मुझे आपकी ई मेल की ज़रूरत है |

    Adeetya
    info@childsafetyindia.com

    ReplyDelete