ज़वाब में बहुत सारे दोस्तों ने टिपण्णी की। लेकिन लगभग सभी ने ज़वाब देने का ज़िम्मा हमी पर छोड़ दिया।
यानि आपने ने सवाल छेड़ा है, तो आप ही भुगतो।
अब हम ठहरे इतिहास, भूगोल और राजनीति शास्त्र में विशुद्ध अज्ञानी. भला पता होता तो पूछते ही क्यों.
भाई शरद कोकास से उम्मीदें जगी, लेकिन आखिर में उन्होंने भी हाथ उठा दिए. पर विश्वास दिलाया की ये पता लगा कर ही रहेंगे.
गुरुदेव समीर लाल जी ने भी कह दिया की पता है, लेकिन बताएँगे नहीं।
अब जब सभी ने पल्ला झाड़ लिया तो हम समझे की ये तो वही हो गया, की जिसका जूता उसी का सर.
हम तो सोच रहे थे की पकी पकाई मिल जायेगी पर अब तो खुद ही --.
खैर अब तक हम भी जोश में आ चुके थे की पता तो लगा कर रहना है. और शुरू हो गए अभियान पर.
सबसे पहले अपने साथी डॉक्टरों से पूछा. लेकिन वो तो हमसे भी ज्यादा अनाड़ी निकले.
भले ही पेट काटकर, ओपरेशन करके दोबारा टाँके लगा कर सील दें, लेकिन इस विषय में तो एक भी टांका नहीं लगा पाए।
कुछ गैर- डॉक्टर मित्रों से जानकारी लेनी चाही, तो सुनने को मिला की कौन सी मूर्ती, कैसी मूर्ती. हमें तो नून, तेल और लकडी की ही मूर्तियाँ नज़र आती हैं.
हमने भी परेशान आत्माओं को और परेशान करना उचित नहीं समझा।
फिर सोचा, नेट पर तो आजकल सब कुछ मिल जाता है. लेकिन बस यही पता चला की नेहरु जी लेनिन से बहुत प्रभावित हुए थे.
अब ये तो कोई वज़ह नहीं हो सकती मूर्ती लगाने की.
आदमी न जाने कितने लोगों से इम्प्रेस होता है, सब को घर में तो नहीं जमा लेता।
अब तक हम भी कमर कस चुके थे की कुछ भी करना पड़े पर पता तो लगा कर ही रहेंगे.
सोचा, अब तो एक ही तरीका है की फिर पार्क में जाया जाये , शायद कोई सुराग मिल जाये.
लेकिन वहां भी ऐसा कुछ नहीं मिला जिससे कुछ जानकारी मिलती।
हाँ, इस चक्कर में हमारी एक और सुहानी शाम रंगीन ज़रूर हो गयी।
अब हमें याद आया, श्री के के यादव का कहना की ये तो मुनिस्पलिटी वाले ही बता सकते हैं।
खैर किसी तरह से नेट से सम्बंधित अधिकारी का फोन नंबर मालूम किया और फोन लगाया.
जिसने फोन उठाया वो हमारा सवाल सुनकर ऐसे परेशान हो गया जैसे बीबी ने रंगे हाथ पकड़ लिया हो.
बोला साब, ये तो मैंने कभी सोचा ही नहीं. बड़े साब से पूछकर बताएँगे.
अब रोज़ बार बार फोन मिलाते रहे, लेकिन बड़े साब कभी दौरे पर, तो कभी दफ्तर में , तो कभी लंच पर.
इस चक्कर में हम उनके ऑफिस में खूब मशहूर हो गए।
अब तो छोटे साब हमें और हमारी जिज्ञासा, दोनों को पसंद करने लगे थे।
खैर आखिरकार बड़े साब पकड़ में आ ही गए और जो जानकारी मिली वो आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।
नेहरु जी पहली बार १९२७ में रूस गए थे, अक्तूबर क्रांति की दसवीं वर्षगाँठ के अवसर पर. वहां जाकर वे लेनिन के समाजवादी विचारों से बहुत प्रभावित हुए. फिर स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री बनने के बाद वे १९५५ और १९५७ में फिर रूस गए. उन दिनों भारत और सोवियत रूस, दोनों की एक जैसी हालत थी. दोनों ही देश कृषि प्रधान देश हैं, और दोनों में तब औद्धोगीकरण की शुरुआत ही हुई थी. ऐसे में देश के विकास के लिए चिंतित नेहरु जी ने लेनिन को अपना रोल मोडल बनाया.
बाद में १९७१ में भारत पाक युद्घ के दौरान भारत सोवियत २० वर्षीय मित्रता संधि श्रीमती इंदिरा गाँधी और मिखाइल गोर्बाचेव के बीच हुई.
मुझे याद है,
भारत पाक युद्घ के दौरान, अमेरिका ने अपना सातवाँ युद्घ पोत बीडा हिंद महासागर की तरफ रवाना कर दिया था। लेकिन उधर सोवियत रूस ने भी अपने समुद्री ज़हाज़, भारत की मदद के लिए रवाना कर दिए. जिसका नतीजा ये हुआ की अमेरिकन बीडा वहीँ रुक गया.
इसीलिए कहते हैं, दोस्त वही जो मुसीबत के वक्त काम आये।
ये शुरुआत थी, भारत और रूस की दोस्ती की.
बाद में संधि के २० साल पूरे होने से पहले श्री राजीव गाँधी ने , जो उस समय प्रधान मंत्री थे, उस संधि को आगे करार दिया.
इसी के तहत १९८७ में स्वर्गीय श्री राजीव गाँधी के निर्देशन में नेहरु पार्क में लेनिन की मूर्ती की स्थापना हुई।
ये मूर्ती प्रतीक है, भारत और रूस की मित्रता की।
इसी तरह महात्मा गाँधी की मूर्तियाँ भी विदेशों में कई जगह लगी हुई हैं।
और अब इसे देखिये :
उज्जवल भविष्य दिल्ली में दिवाली के अवसर पर आसमान से अवतरित आर्शीवाद की किरणें, कैमरे में कैद।
आपको कितनी मेहनत करनी पडी मुर्ति का इतिहास जानने में आखिर सफलता मिल ही गयी।
ReplyDeleteaapki mehnat ko main naman karta hoon...... itni achchi jaankaari aapne di..... main aapka aabhaari hoon...... mere knowledge bank mein izaafa hua....iska main aapka aabhaari hoon...... aur aabhaar kaise vyakt karoon, yeh samajh nahi aa raha......
ReplyDeletebas itna kahunga ki aapko naman....
saadar mahfooz...
आपकी मेहनत से हमें एक बेहतरीन जानकारी मिल गई. इसे विकिपिडिया पर डाल दिजिये.
ReplyDelete"" ये मूर्ती प्रतीक है, भारत और रूस की मित्रता की ""
ReplyDeleteसचित्र जानकारी सहित बढ़िया प्रस्तुति . आभार
"ये मूर्ती प्रतीक है, भारत और रूस की मित्रता की" बहुत अधिक परिश्रम कर लिया आपने. आभार.
ReplyDeleteधन्यवाद डॉकटर साहब यहाँ भिलाई स्टील प्लांट् भी नेहरू जी के रूस की मित्रता के सहयोग से बना है । हमने यह काम यहीं के एक मित्र को सौंपा है वे भी एक दो दिन मे जानकारी लेकर आते होंगे लेकिन उससे पहले आपने यह पता लगा ही लिया आपकी मेहनत को सलाम ।
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteआप धुन के पक्के निकले !
पता लगा कर ही दम लिया ...........
मान गए प्रभु !
चलो इस बहाने अपनेराम को भी पता चला........हा हा हा हा
आपकी जिज्ञासा और मेहनत को नमन.
ReplyDeleteमुनिस्पेलिटी में मशहूर हुए, सो बधाई.
आखिर अधिकारी ने समस्या का समाधान कर ही दिया, यह जान कर थोडा आर्श्चय हुआ.शायद समर्पित अधिकारी रहा होगा.
हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
वाह.....!!
ReplyDeleteaakhir इतनी छानबीन के बाद जो आपको सफलता हाथ लगी और यह महत्वपूर्ण जानकारी हम तक पहुंचाई ....इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया .....!!
एक बात मेरे मन में भी aa रही है aksar murti sthapit करते वक़्त उसके karnon को niche लिख दिया जाता है ...जब आप वहाँ तक pahuch ही गए थे तो unse puchte की ऐसा क्यों नहीं किया gya.....?
हाँ post में जो आपने fabtiyaan kasi हैं kabile tarif हैं maslan .....
@ भले ही पेट काटकर, ओपरेशन करके दोबारा टाँके लगा कर सील दें, लेकिन इस विषय में तो एक भी टांका नहीं लगा पाए।
@ हमने भी परेशान आत्माओं को और परेशान करना उचित नहीं समझा।
@ जिसने फोन उठाया वो हमारा सवाल सुनकर ऐसे परेशान हो गया जैसे बीबी ने रंगे हाथ पकड़ लिया हो.
punjabi में भी एक khawat है .....' जो bole ohi kunda khole...'
आपके प्रयास को साधुवाद आखिर आपने पता लगा ही लिया. समीर लाल जी ने दावा किया कि उन्हें पता है पर बताएँगे नहीं' हो सके तो एक जासूस उनके दिमाग के पीछे लगा दें और भी बहुत कुछ पता चलेगा.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत ही रोचक, ज्ञानवर्धक और उम्दा प्रस्तुति. आपके परिश्रम व लेखन के लिए साधुवाद.
ReplyDelete- सुलभ (यादों का इंद्रजाल वाले)
आपने इतने रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है कि मजा आ गया।
ReplyDeleteDr. Sahab....namaskar......... kaise hain aap?
ReplyDeleteडॉक्टर साहब बहुत बहुत धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आ़ने के लिए. इसी तरह ब्लॉग पर अपनी प्रतिक्रिया देते रहिये भविष्य में भी ऐसी ही आकांक्षा है.
ReplyDeleteऐतिहासिक जानकारी जुटाने का वह भी ऐसे विषय पर जिस में बहुत कुछ जानकारी एकत्र करना दुरूह कार्य है सचमुच सराहनीय प्रयत्न है. आभार
रचना दीक्षित
rochak, jaankari aour dilchasp.
ReplyDeleteDr. saheb lekhan me bhi aap maharathi he...dekh jaan kar sookun milataa he.
डा साहब, थोडा सा सुधार कर ले तो बात नही बिगडेगी १९७१ मे सोवियत रूस मे ( १९६४-१९८२ ) का काल था ना कि मिखाइल गोर्बचोव का.
ReplyDeleteİosiph Stalin (1922–1953)
ReplyDeleteNikita Khruchtchjov (1953-1964)
Lieonid Briezhniev (1964–1982)
Jurij Andropov (1982-1984)
Konstantin Tchiernienko (1984–1985)
Mikhail Gorbatchjov (1985–1991)
मेरे ब्लोग पर भी पधारे
http://hariprasadsharma.blogspot.com/
शर्मा जी, भूल सुधार के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteदरअसल, उन दिनों भ्रझ्नेव कमुनिस्ट पार्टी ऑफ़ सोवियत यूनियन के जनरल सेक्रेटरी थे.
आपने सही सुधार किया है. आभार.
जानकार तसल्ली हुई कि मेरा तुक्का सही बैठा :-)
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