पंछी, नदिया, पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके---
इन्ही पंक्तियों को ध्यान में रखकर मैंने अपनी पिछली पोस्ट लिखी थी। एक सवाल उठाया था की जब सृष्टि के रचयिता ने ही अपनी कृतियों में कोई भेद भाव नहीं किया, तो आज मनुष्य क्यों देश, धर्म, प्रान्त और जात-पात के नाम पर एक दूसरे का गला काटने को तैयार रहता है.
इस विषय पर बहुत से दोस्तों ने अपनी सहमति जताते हुए विचार को समर्थन देकर मेरा मनोबल बढाया। मैं आभारी हूँ आप सब का-- पंडित किशोर जी, अविनाश वाचस्पति जी, गठरी वाले अजय कुमार जी, ऍम वर्मा जी, सुनीता शर्मा जी, पी अन सुब्रामनियम जी, दीपक मशाल जी, मुफलिस जी, बबली जी.
श्री समीर लाल जी ने एक शेर में ही सारी बात कह दी। शायद इसीलिए समीर भाई, लोग आपको गुरुदेव कहते हैं.
हरकीरत जी की टिप्पणियां तो हमेशा जिंदादिल होती हैं, और शेर भी लाज़वाब था।
खुशदीप भाई, हमारी तरह पुराने गानों के दीवाने हैं, ये पोस्ट उन्ही को सपर्पित रही।
क्षमा जी, पहली बार ब्लॉग पर आई, लेकिन टिपण्णी में तर्कसंगत गीतों का जिक्र कर अपनी सहमति जतायी.
शरद भाई और आदरणीया निर्मला जी ने अपने विचार विस्तृत रूप से प्रस्तुत कर सराहनीय योगदान दिया।
इस बार मैंने सभी टिप्पणीकारों का जिक्र सिर्फ इसलिए किया है ताकि ब्लोगिंग को हम एक सार्थक माध्यम बना सकें समाज में फैली कुरीतियों को मिटाने का। अब भले ही सफल न रहें, किन्तु किसी भी सामाजिक बुराई को मिटाने में पहला कदम होता है, उसके बारे में आवाज़ उठाने का.
आज ही पता चला, दोस्तों की पोस्ट और सैकडों टिप्पणियां पढ़कर, इलाहाबाद में हुए ब्लोगर सम्मलेन में क्या क्या हुआ, जो नहीं होना चाहिए था और क्या क्या नहीं हुआ, जो होना चाहिए था.
यह जानकार एक ही बात समझ में आती है की देश, धर्म और समाज सुधार की बातें करने से पहले हमें अपने गिरेबान में झांकना पड़ेगा। पहले आईने में खुद को तो निहार लें, फिर समाज को सुधारने निकलें।
अब भले ही आपको इलाहाबाद आने का निमन्तरण न मिला हो, और अहमदाबाद, हैदराबाद या सिकंदराबाद में सम्मलेन हो या न हो, क्या फर्क पड़ता है. आइये हम आपको दिल्ली आने का निमन्तरण देते हैं.
और लोदी गार्डन के बाद, आज आपको सैर करवाते हैं, दिल्ली के एक और खूबसूरत पार्क--- नेहरु पार्क की।
नेहरु पार्क :
दिल्ली के राजनीय इलाके चाणक्य पुरी में स्थित ये पार्क भारत के प्रथम प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु के नाम पर बनाया गया है। ८० हैक्टेयर में फैले इस पार्क के पूर्व में सफदरजंग एयरपोर्ट, पश्चिम में कई देशों के उच्चायुक्त निवास , उत्तर में अशोक होटल और दक्षिण में चाणक्य सिनेमाघर और अकबर होटल, जो अब दोनों ही नहीं रहे. एक किलोमीटर लम्बे इस पार्क की छटा ही निराली है.
इस पार्क की विशेषता यह है की हर वीकएंड पर हजारों लोग पिकनिक मनाते हुए नज़र आयेंगे। उनमे से आधे फिरंगी होते हैं. यानि यहाँ आकर आपको लगेगा जैसे आप किसी विदेश में घूम रहे हैं.
हालाँकि वर्किंग डेस में ये यूवा प्रेमियों का स्वर्ग होता है।
यहाँ कहीं पेडों के झुरमुट मिलेंगे, तो कहीं पत्थरों के ढेर, कहीं मिटटी का टीला और कहीं गड्ढे। लेकिन सब जगह घनी हरियाली.
और यही झुरमुट, पहाडियां, टीले और गड्ढे साक्षी रहे होंगे कितनी ही प्रेम कहानियों के।
और इन्ही के बीच न जाने कितनी ही प्रेम कहानियां बन या बिगड़ गयी होंगी।
इन्ही पगडंडियों पर विचरण करते करते, भले ही हम जैसे न जाने कितनो के बालों में सफेदी उतर आई होगी, लेकिन इस पार्क की हरियाली हर साल बढती ही जा रही है।
सर्दियों की नर्म धूप और हरे भरे लाउन्स के किनारे फूलों की क्यारियां, रंग बिरंगे लिबास में फूल से चेहरे लिए बच्चे , चिडियों की तरह चहचहाते, उछलते , कूदते, शोर मचाते, जिन्हें देख पेरेंट्स के चेहरों पर ऐसी चमक उतर आये जैसे किसान को अपनी लहलहाती फसल को देखकर आती है.
एक बार यहाँ आइये तो सही, धरती पर ज़न्नत की सैर हो जायेगी।
और ये देखिये :
पार्क के बीचों बीच बनी लेनिन की ये भव्य मूर्ती।
और अब एक सवाल.
नेहरु पार्क में लेनिन की मूर्ती.
क्या आप बता सकते हैं, इसका राज़ ?
नोट: नेहरू पार्क की पूरी सैर करने के लिए विसित करे --- चित्रकथा पर।
सुन्दर अभिव्यक्ति . फोटो भी अच्छे है .. आभार
ReplyDeleteडा. साहिब ये अपने बस का रोग नहीं आपसे ही जवाब चाहिये या फिर और महनुभवी बतायेंगे धन्यवाद इस आलेख और तस्वीरों के लिये । शुभकामनायें
ReplyDeleteआदरणीय डॉ. साहब,
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा विवरण दिया है आपने नेहरु पार्क का.... जब दिल्ली में था तो लगभग हर दुसरे दिन वहां से गुज़रना होता था, कभी पंचशील मार्ग को तो कभी इंडिया गेट जाने के लिए..
लेकिन वहां उसके दक्षिण में एक महाभारत कालीन देवी मंदिर भी तो है जिसे पांडवों ने स्थापित किया था. ४ साल दिल्ली में रहा कई बार वहां जाने का सोचा लेक्किन जा न पाया. इस बार आऊंगा तो जरूर जाना होगा.
चाणक्य सिनेमा के साथ कई यादें जुडी है. आखिरी फिल्म देखि थी अमिताभ बच्चन की 'फॅमिली'.
आपने बहुत ही सुन्दर चित्रण के साथ कई अच्छे सन्देश भी दिए हैं इस आलेख में लेकिन कुछ पंक्तियाँ गहरे तक उतर गयीं. जैसे-
देश, धर्म और समाज सुधार की बातें करने से पहले हमें अपने गिरेबान में झांकना पड़ेगा। पहले आईने में खुद को तो निहार लें, फिर समाज को सुधारने निकलें।
लेनिन की मूर्ती के बारे में कुछ भी नहीं पता क्योंकि कभी पार्क के अन्दर गया ही नहीं बस सारी बाउंड्रीस की परिक्रमा ही करता रहा...
राज़ जानने के लिए अगली पोस्ट का बेसब्री से इन्तेज़ार रहेगा..
सादर
चलिये यही से सही -- दिल्ली अब तो दूर नही है
ReplyDeleteडॉ टी एस दराल जी!
ReplyDeleteबहुत मनभावन पोस्ट लगाई है, आपने।
नेहरु पार्क में लेनिन की मूर्ति.
आप ही बता सकते हैं, इसका राज़।
प्रतीक्षा रहेगी!
ab iska raaz yahi hai.... Lenin bhi socialist they..... aur Jawahar lal nehru bhi.... shayad isiliye lagi ho murti....
ReplyDeleteजय हो आपकी
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा...........अभी आपकी पिछली पोस्ट पढने जा रहा हूँ........
धन्यवाद !
ये है दराल सर की दिल्ली मेरे यार...
ReplyDeleteबस इश्क, मुहब्बत, प्यार...
डॉक्टर साहब हौसला अफ़जाई के लिए थ्री चीयर्स...
जय हिंद...
" bahut hi acchi post ...aapne sari sacchai samne rakhdi sir"
ReplyDelete----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
नेहरु पार्क में लेनिन की मूर्ती.
ReplyDeleteक्या आप बता सकते हैं, इसका राज़ ?
.....Ab ye to Municipal wale hi bata payenge .
...Har park kuchh kahta hai.
ReplyDeleteलेनिन की मुर्ति..नेहरु पार्क में..कुछ कुछ तो पता है मगर आप ही प्रकाश डालें तो बेहतर...विस्तार से.
ReplyDeleteसर , मैं दो-तीन बार दिल्ली गया हूँ
ReplyDeleteइसे नहीं देख पाया ,अगली बार जरूर देखूंगा
लेनिन की मुर्ति..नेहरु पार्क में.इस लिये कि नेहरू के अन्दर भी एक लेनिन था .जो बाहर न आ पाया.विचारों के लिये साधुवाद.
ReplyDeleteबहुत सुंदर विचार .. मनभावन चित्र .. कुल मिलाकर बढिया पोस्ट !!
ReplyDeletenehru park me lenin ki moorti ? ye he prem/
ReplyDeletekher../ achhi lagi post
भाई दीपक, वो मंदिर तो अभी भी है, लेकिन गया तो मैं भी नहीं. अब नेहरु पार्क जाएँ और मंदिर होकर लौट आयें, अभी ऐसी उम्र नहीं हुई है.
ReplyDeleteसमीर जी, बता देते तो अच्छा था. अब हमें ही खोजबीन करनी पड़ेगी.
शायद के के यादव जी का फंडा काम आये.
खैर अब पता तो लगाना ही पड़ेगा.
कहाँ लगे आप भी इलाहाबाद के प्रपंच में आप तो हमे दिल्ली के सैर कराइये । यह मूर्ति उन दिनो की हो सकती है जब नेहरू जी सोवियत रूस से आये थे और यह मित्रता शबाब पर थी 50-55 के आसपास । पक्का पता लगते ही बताउंगा ।
ReplyDeleteनेहरु पार्क देखा नहीं था| आपने दिखा दिया कभी मौका मिला तो नेहरु पार्क देखने जरुर जाउंगा धन्यवाद दराल साहब !!
ReplyDeleteनेहरु पार्क में लेनिन की मूर्ति................
ReplyDeleteदेखकर , पढ़ कर जानकर हैरानी हुई...........
दिल्ली में कोई यूपी की मायावती की तरह कभी भी लेनिन का साम्राज्य तो रहा नहीं, फिर सीना ठोककर कौन लगा गया और सारे देशवासी, दिल्लीवासी, नेहरुपार्क के करता-धरता सभी चुप रहे...............अज़ब आर्श्चय है , चलिए राज़ की बात का तो अब बेसब्री से इंतजार है............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
ये राज़ जानने के लिए प्रयास जारी है.
ReplyDelete"देश, धर्म और समाज सुधार की बातें करने से पहले हमें अपने गिरेबान में झांकना पड़ेगा। पहले आईने में खुद को तो निहार लें, फिर समाज को सुधारने निकलें"...
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही कहा...
नेहरु पार्क में लेनिन की मूर्ती...
क्या पता पुराना याराना हो दोनों का? :-)