उस साल भी दीवाली की रौनक पूरे शबाब पर थी। हर साल की तरह, इस बार भी चड्ढा परिवार पूरे जोर शोर के साथ दीवाली की तैयारियों में जुटा था. --- इस बार पटाखे पूरे १० हज़ार के आयेंगे. -- हज़ार वाली लड़ी में अब उतना मज़ा नहीं आता. ---तो तय हुआ की इस बार लड़ी की लम्बाई दुगनी होगी. --
बेटे की नयी नयी शादी ---बहु की तो पहली दिवाली थी।
इस बार वो धमाका, की सब देखते रह जायेंगे।
तभी दीवाली से एक हफ्ता पहले चड्ढा साहब को हार्ट अटैक आ गया.--- इमरजेंसी में भरती करवाना पड़ा.--- पांच दिन सी सी यु में रहने के बाद, आज ही जनरल वार्ड में शिफ्ट हुए थे.
साथ वाली बेड पर नाथू लाल, जो क्रोनिक स्मोकर हुआ करता था,--- अब दमे का सर्टिफाइड मरीज़ बन चुका है,--- आज ही आई सी यु से शिफ्ट होकर आया है। ताउम्र बीडी पीता रहा, जब सांस आना ही बंद हो गया, तो डॉक्टर के कहने पर छोड़ी.--- लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.--- अब आये दुसरे दिन अस्थमा के अटैक पड़ जाते हैं.
डॉक्टर राउंड पर आये हैं। दोनों की एक ही गुजारिश -- आज छोटी दीवाली है,--- अगर छुट्टी मिल जाये तो दीवाली घरवालों के साथ मना लें.
डॉक्टर समझाते हैं,--- अभी घर जाने लायक हालत नहीं है।---- तबियत ज्यादा खराब हो सकती है.
लेकिन दीवाली का पर्व --अधर्म पर धर्म , अन्याय पर न्याय, पाप पर पुण्य और दुराचार पर सदाचार की जीत का प्रतीक ,--- ये पर्व-- भारत वासियों का नंबर वन त्यौहार। ---भला हॉस्पिटल में कैसे पड़े रह सकते हैं.
दोनों को डिस्चार्ज ओन् रिक्वेस्ट कर दिया गया।
चड्ढा परिवार ने राहत की सांस ली। सारे दिन मिलने वालों का तांता लगा रहा. --इस बार घर में मिठाई वर्जित --वैसे भी नकली घी और नकली खोया , टी वी पर देख देख कर किसकी हिम्मत हो सकती थी मिठाई खाने की.
दीवाली का शुभ दिन ---शाम होते होते , लाइटों से जगमगा उठा, चड्ढा साहब का अपार्टमेन्ट ब्लॉक।
फिर धीरे धीरे, पटाखे --फिर बम --बमों की आवाज़ में बढ़ता दम।---- चड्ढा साहब को बेचैनी सी होने लगी.--- डॉक्टर ने आराम की सलाह दी थी.
एक तगड़ा सा बम फूटता --उनके दिल में धम सा होता।
बम भी चाइनीज़ -- देश को हिला कर रख दें --फिर चड्ढा के ब्लॉक की क्या बिसात।
सारे खिड़की दरवाजे बंद कर दिए गए, ---लेकिन ये बमों की आवाज़ ---कोई मच्छर थोड़े ही है, जो खिड़की बंद कर काम चल जाये.
अब तो धमाके के साथ, खिड़कियों की खनखनाहट भी गूंजने लगी.
बमों की आवाज़ अब लगातार तेज़ होती जा रही थी. --तभी एक लड़ी --एक या दो नहीं ---पूरे पांच हज़ार की ---जो शुरू हुई, तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं.
चड्ढा साहब के दिल की रफ़्तार अब राजधानी एक्सप्रेस की तरह हो रही थी।---- शाम की दवा, डबल डोज़ ले चुके हैं.--घबराहट है की कम होने का नाम ही नहीं लेती.
चढ्डा साहब अब क्या करें? --- जाएँ तो कहाँ जाएँ ?
उधर नाथू लाल, जे जे कालोनी में उसकी अपनी झोंपडी थी ---अभी हाल में ही, ईटों का एक पक्का कमरा डाला है. यहाँ बच्चे छोटे पटाखे चला रहे हैं ---
चट चट, पट पट की आवाज़ --लेकिन ज्यादा शोर नहीं.
एक बच्चा सुर्रा चला रहा है ---लाल लाल धुआं फैलता हुआ. --- बच्चे का चेहरा , ख़ुशी से लाल.
दूसरा सांप वाली गोली जला रहा है ---एक दम काला धुआं -- एक हवा का झोंका , सारा धुआं नाथू लाल के कमरे में.
धीरे धीरे खांसी उठने लगती है --फिर धीरे धीरे तेजी पकड़ने लगती है.
नाथू लाल घबरा कर दरवाज़ा और खिड़की बंद करने की कोशिश करता है, लेकिन एयर टाइट तो नहीं.
धुआं तो अब भी आ रहा है.
सांस खिंच कर आने लगी है.
लगता है, फिर एक अटैक पड़ने वाला है।
नाथू लाल करे तो क्या करे ?--- जाये तो कहाँ जाये ?
बेचारा नाथू लाल !!
जाने कितने चड्ढा साहब होंगे, जिनके दिल का दम , बम के धमाके में निकल जाता होगा.
जाने कितने नाथू लाल होंगे , जिनकी साँसों की बागडोर दीवाली के धुएं से लिपटती, कमज़ोर पड़ती , टूट जाती होगी, कच्चे धागे की तरह।
कौन है ये चड्ढा साहब , कौन है ये नाथू लाल ?
कोई भी हो सकते हैं ---आपके पडोसी ---रिश्तेदार ---या फिर हम और आप !!!
सड़क पर पुलिस ने बैरिकेड लगा रखे हैं --- आतंकवादियों को पकड़ने के लिए.--- दिवाली पर डर ज्यादा ही होता है.
एक स्कूटर वाले को पकडा हुआ है --- १०० रूपये निकालो, रेड लाईट जम्प करने के.
लड़के का दावा है की वो तो यैल्लो में निकला था --चल फिर 50 ही निकाल।--- भई दो दिन से यहाँ खड़े हैं, हमें भी तो मनानी है दिवाली.
डॉ अविनाश की इमरजेंसी ड्यूटी लगी है कैजुअल्टी में. ---वैसे तो सीनियर हो चुके है, अब नाईट नहीं लगती.
पर जबसे दिवाली पर असली बम छूटे है, जिनमे कई लोगों की जान गयी,--- तबसे स्पेशल रोस्टर बनता है.
----अभी आधी रात के बाद कुछ राहत मिली है। --- कितने ही जले हुए हाथ, कुछ की आँख में चोट, उफ़ ये हाथ में बम छोड़ने का शौक.
मैं अपनी बालकनी में बैठा, देख रहा हूँ, एक और उड़ता बम --- सीधे आसमान में ---- अचानक फटता है ---सारी बिल्डिंग हिल जाती है ---धुएं का एक और गुब्बार.
मन्न खिन्न हो जाता है ---
दिवाली के दीप अब, हो गए हैं धुआं धुआं
खो गए हैं रंग जाने, चकरी और अनार कहाँ
नहीं लगती अब पटाखों की आवाज़ मधुर
जब से धमाकों में घुली है, राम रहीम के रक्त की चीख पुकार यहाँ।
कहिये, कैसे मनाना चाहेंगे आप दिवाली ???
ज्योति की जगमगाहट में, या पटाखों की खडखडाहट में ??
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यहाँ तो दोनों ही मिसिंग है...
ReplyDeleteसुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल ’समीर’
ये अच्छी बात नहीं है दराल साहेब !
ReplyDeleteआपने तो लूट ही मचा दी...........
वो सब कह दिया जो कहने लायक था..........अब हम क्या भुट्टे खाएँगे ? साल में एक बार दिवाली आती है अगर इस दिन भी आप हमारे मुंह की बात छीन लेंगे तो हमें टिप्पणियों के लाले नहीं पड़ जायेंगे ?
ये तो ठीक है हम शरीफ आदमी हैं इसलिए आपको पसंद भी कर रहे हैं और टिपिया भी रहे हैं
बहुत उम्दा आलेख
अभिनन्दन आपका !
दीपोत्सव की हार्दिक बधाई !
जी सिर्फ ज्योति की जगमगाहट मे दिवाली मनाना चाहेंगे । आप भी मनाइये । शुभकामनायें । शरद
ReplyDeleteडॉ० साहिब नमस्कार
ReplyDeleteदीप पर्व की शुभकामनाएं
है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल
आते नहीं पहले सरीखे अब मजे त्यौहार के
दीपों सी जगमग जिन्दगी रहे
सुख की बयार चहुं मुखी बहे
श्याम सखा श्याम
दीवाली तो अब मन ली। अच्छी पोस्ट लिखी है आपने।
ReplyDeleteदराल जी ,
ReplyDeleteकमाल की पोस्ट ....!!
दिवाली के इस जानलेवा रूप को चित्रित कर आपने मेरे मन की बात कह दी ......आप रौशनी कीजिये ...खुशियाँ मनाइए...मिठाईयां बाँटिये ....पर ये कान फोडू और दिल दहला देने वाले पटाखों से पैसे बर्बाद कर क्या हासिल होता है भला ....??
मैं तो दिवाली वाले दिन बहुत परेशां हो जाती हूँ धमाकों से ....!!
बहुत बढिया पोस्ट कौन है ये नाथूलाल और चढ्ढा साहब को ई भी हो सकता है हम या आप हो सकते हैं । सही कहा । ज्योत से ज्योत जगाते चलो ।
ReplyDelete"कहिये, कैसे मनाना चाहेंगे आप दिवाली ???
ReplyDeleteज्योति की जगमगाहट में, या पटाखों की खडखडाहट में ??"
जागरूकता की कमी है हमारे देश में...इसे दूर करने के लिए ऐसे ही लेखों की ऐसे ही प्रयासों की बहुत आवश्यकता है