जिंदगी में हम इतना व्यस्त रहते हैं की अक्सर छोटी छोटी खुशियों का आनंद लेना ही भूल जाते है। आचार्य रजनीश (ओशो ) ने कहा था --तुमने कभी किसी फूल को देखा ? डाल पर लगे , हवा के हलके से झोंके से लहराते फूल को देखिये एक टक, आपको शकून मिलेगा। किसी पेड़ की शीतल छाया में बैठकर , आँखे मूंदकर , पक्षियों की चहचाहट को सुनिए, आपको परम शान्ति का अहसास होगा।
डॉक्टरों का भी यही कहना है की , रोज सुबह सैर को जाइए, वॉकिंग करिए, जॉगिंग करिए , या फ़िर सबसे बढ़िया --वॉगिंग करिए। वौगिंग मतलब-- ब्रिस्क वॉकिंग। अब कितने लोग ये सलाह मानते हैं, ये तो इसी से पता चलता है --४० से ऊपर के आम लोग तो क्या , ख़ुद डॉक्टरों के पेट बाहर निकले होते हैं। बौलीवुड के एक्टर्स को छोड़कर भला कितने लोग दिखाई देते हैं लीन एंड थिन।
यह दिल्ली वालों का सौभाग्य है की यहाँ डी डी ऐ की हर कॉलोनी में कम से कम एक पार्क तो होता ही है। इसके आलावा नई दिल्ली में अनेको ऐसे पार्क है जहाँ लोह सैर और पिकनिक के लिए जाते हैं। इनमे प्रमुख हैं --नेहरू पार्क, डीअर पार्क, बुद्धा गार्डन, सी पी का सेन्ट्रल पार्क, इंडिया गेट के लोंस और नए पार्क जैसे मिलेनियम पार्क, गार्डन ऑफ़ फाइव सेंसेस और जैपनीज पार्क। लेकिन इन सबसे पुराना और सुंदर पार्क है --लोदी गार्डन।
लोदी गार्डन
लोदी एस्टेट में बना ये पार्क , एक तरफ़ जोरबाग, दूसरी तरफ़ खान मार्केट और लोदी एस्टेट की वी आई पी जेन्ट्री का चहेता पार्क है। यहाँ सुबह शाम डिप्लोमेट्स, नेतागण और ब्यूरोक्रेट्स आपको घुमते नज़र आयेंगे, अक्सर अपने कुत्तों के साथ। हालाँकि दिन में , ये प्रेमी युगलों का अस्थायी वास बना रहता है।
लोदी गार्डन के मुख्य आकर्षण हैं, सिकंदर लोदी (१४७४-१५२६) के समय के बने गुम्बद। इनमे सबसे पहले नज़र आता है, बड़ा गुम्बद । आयताकार गुम्बद के चारों ओ़र चार द्वार नुमा झरोखे हैं, जिनसे पार्क का चारों दिशाओं का बेहद खूबसूरत नज़ारा दिखाई देता है।
बड़ा गुम्बद
और ये है, शीश गुम्बद. इसमें ५०० साल पुराने नीले रंग के शीशे की टाइल्स अभी तक देखी जा सकती हैं. इस गुम्बद में आठ कब्रें बनी हैं, किसकी, ये कोई नहीं जानता.
अतीत के झरोखे से
आज से पूरे तीस साल पहले की बात है. उस समय मैं मेडिकल कोलिज के फाइनल ईअर में था. पता चला की लोदी गर्दन में फिल्म काला पत्थर के एक गाने की शूटिंग चल रही थी. तो भई, कोलिज से बंक मारा और पहुँच गए शूटिंग देखने. गाने के बोल थे:
बाहों में तेरी, मस्ती के घेरे
सासों में तेरी, खुशबू के ढेरे
मस्ती के घेरों में, खुशबू के ढेरों में
हम खोये जाते हैं ----
ये रोमांटिक गाना फिल्माया गया था , शशि कपूर और परवीन बेबी पर. मझे याद है शशि कपूर ने केमल कलर की हाफ शर्ट और काली पेंट पहनी हुई थी और गज़ब के स्मार्ट लग रहे थे. परवीन बेबी ने काला सूट और उसपर पिंकिश रेड कलर की सलवार और इसी कलर का मैचिंग दुपट्टा. मार्च की सुहानी नर्म धुप में उनका गोरा रंग , सोने की तरह दमक रहा था.
यह पहला और आखिरी मौका था जब मैंने किसी बोलीवु के हीरो हिरोइन को इतने करीब से देखा था.
और अब इस चित्र को देखिये. यही वो स्पॉट है, जहाँ इस गाने की शूटिंग हुई थी .
प्रष्ठ भूमि में किले नुमा दीवार, उसके आगे पेडों की कतार और इनके आगे खड़े थे हम पब्लिक में धक्का मुक्की करते हुए.
इस स्पॉट के बाएँ तरफ जो पेड़ दिखाई दे रहे हैं, इन्ही को गाने का बैक ग्राउंड रखा गया था. यानि इस तरफ पब्लिक नहीं जा सकती थी.
अभी कुछ दिन पहले यहाँ इत्तेफाक से जाना हुआ अपनी जीवन कंपनी की ५० % की पार्टनर, यानि जीवन संगिनी के साथ . इस स्पॉट पर खड़े खड़े वो पल याद आ गए . एक पल के लिए हम मुन्घेरी लाल बन गए और अतीत की यादों में खो गए.
कोलिज के दिनों में हम जब भी अमिताभ की फिल्म देखकर निकलते, तो खुद को भी अमिताभ समझने लगते थे. छाती फुलाकर और गर्दन को दो इंच ऊंची करके अन्दर से हीरो होने का अहसास सा होता था. लेकिन घर पहुँच कर शीशे में चेहरा देखते ही सारी हवा निकल फुस हो जाती थी. उस दिन भी एक पल हम खुद को शशि कपूर समझ बैठे और अभी गाना गाने का मूड बनाने ही लगे थे की तभी ----
आगे क्या हुआ, ये जानने के लिए अगला एपिसोड पढना मत भूलिए.
अंत में, देखिये ये छोटा सा बंगला नुमा कॉटेज , जो प्रवेश द्वार के पास बना हुआ है, घने पेडों के बीच. सामने छोटा लेकिन बहुत हरा भरा बगीचा, चारों ओ़र हरियाली. खिड़कियों में रखे पोधों के गमले, बहुत मनोरम द्रश्य प्रस्तुत करते हुए. कुल मिलकर बहुत ही सुन्दर.
एक सवाल :क्या आप सोच सकते हैं, यहाँ कौन रहता होगा?माली, मेनेजर या फिर पार्क निदेशक?
ज़वाब :
जी नहीं ये किसी का निवास नहीं. ये शौचालय है. न चाहते हुए भी आप एक बार इसका इस्तेमाल ज़रूर करना चाहेंगे. और यकीन करिए, शायद ये जीवन का सबसे अच्छा अनुभव होगा. काश, की ऐसे शौचालय बाहर भी सब जगह मिले ताकि २८ सितम्बर के हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी तस्वीरें तो न देखनी पड़ें.
सचित्र बढ़िया जानकारी पूर्ण अभिव्यक्ति . बहुत बढ़िया .आभार
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ReplyDeleteएक साफ सुथरी पोस्ट !
इन ख़ूबसूरत पार्कों को बहुत मन से चित्रण किया है, आपने ।
ऎसे पोस्ट समय समय पर आते रहने चाहियें, ताकि दिल्ली की धूमिल होती जाती छवि के उज्जवल पक्ष भी सामने आयें ।
पढ़ कर अच्छा लगा कि एक डॉक्टर के अंदर अमिताभ बच्चन का एंग्री यंगमैन भी है और शशि कपूर का रोमांटिक हैंडसम भी...इंतजार रहेगा अगली पोस्ट में आपके थोड़ा सा रूमानी हो जाने का...दिल्ली की दिलचस्प सैर कराने के लिए आभार...
ReplyDeleteजय हिंद...
ये पोस्ट अच्छी लगी,आैरो को भी पसन्द आयी है आपने वो गाना तो सुना ही होगा जो तुमकों हो पसन्द वही बात कहेगे.... सो आप वही कहिए जिसे दूसरे पसन्द करे बेकार की बहस क्यो ताकि आपको ये न कहना पडे नही बस आैर नही.....आप भले ही एक डा0 है लेकिन लेखन के गुण है आपने । यदि मेरी कांमेट आप को बुरी लगे तो इसके लिए माफी......
ReplyDeleteबहुत साल पहले मै अपनी सहेलियो के साथ जाती थी .....
ReplyDeleteबांस के झुरमुट देख के बडा अच्छा लगता था ..,और कहीं
पर मैंने वैसा नही देखा ....!thank.you.
उषा जी, अब तो ये पहले से भी बहुत खूबसूरत हो गया है. कभी अवसर मिले तो अवश्य आइये.
ReplyDeleteसुनीता जी, आपको पसंद आया, मुझे अच्छा लगा. लेकिन क्या करें बदसूरती देखकर ही खूबसूरती के महत्त्व का वास्तविक आभास होता है. फिर भी मैं कोशिश करूंगा की अपनी बात खूबसूरती के साथ ही पेश करता रहूँ.
आपके ब्लॉग पर पहली बार आकर अच्छा लगा,
ReplyDeleteआपका परिचय जानकर बहुत अच्छा लगा
धन्यवाद !
सुंदर लेख, विस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद और आभार
ReplyDeleteसुंदर सचित्र वर्णन अच्छी जानकारी
ReplyDeleteवाह डॉक्टर साहब हमने तो कुर्सी पर बैठे बैठे पूरी सैर कर ली ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ढंग से सजायी है पोस्ट.
ReplyDeleteदिल से बधाई!!
मझे याद है शशि कपूर ने केमल कलर की हाफ शर्ट और काली पेंट पहनी हुई थी और गज़ब के स्मार्ट लग रहे थे. परवीन बेबी ने काला सूट और उसपर पिंकिश रेड कलर की सलवार और इसी कलर का मैचिंग दुपट्टा.
ReplyDeleteसुभानाल्लाह ......आपकी याददाश्त की दाद दे रही हूँ ......!!
यहाँ कौन रहता होगा?माली, मेनेजर या फिर पार्क निदेशक?
ज़वाब :
जी नहीं ये किसी का निवास नहीं. ये शौचालय है
वाह ...इस जवाब से तो हम भी है हत- प्रद रह गए .....!!
सचित्र विवरणी -शुक्रिया !
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को पढकर मुझे भी एक पुराने दिन की याद आ गई...बिरला मंदिर में मनोज कुमार,हेमा मालिनी और राखी गुलज़ार की फिल्म 'सन्तोष'(जो काफी समय तक डिब्बा बन्द भी रही)की शूटिंग हो रही थी... मैं काफी छोटा था उस वक्...शायद दस या ग्यारह साल का रहा होऊंगा...अपलक इन बोलीवुड के सितारों को देखता रह गया था मैं...
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