आजकल ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमले की घटनाएँ बहुत सामने आ रही हैं। इसके पीछे क्या कारण हैं, यह बात साफ़ तौर पर तो समझ नही आ रही। क्या रंग भेद का मामला है? ऐसा तो पहले कभी नही हुआ। वैसे भी भारत में नियुक्त ऑस्ट्रेलिये के हाई कमिशनर श्री पीटर वर्घीज़ ख़ुद भारतीय मूल के हैं। पता चला है की उनके पूर्वज केरल से गए थे, उनका जन्म केन्या में हुआ और पले बढे -पढ़े ऑस्ट्रेलिया में। अब भारत में एच सी बनकर कार्यभार संभाला है। फ़िर ये कैसे सोच लिया जाए की ये रंग भेद का मामला है।
तो क्या भारतीय मेधावी छात्र वहां के लिए खतरा बन गए हैं?
वज़ह कोई भी हो ,लेकिन इंसानों में इस तरह का बर्ताव इसी बात का संकेत देता है की अभी भी मनुष्यों में आदि मानव के गुण या अवगुण शेष बचे हैं।
स्कूल में इंग्लिश की बुक में एक कविता पढ़ी थी :
नो मेन इज फोरेन, नो कंट्री इज स्ट्रेंज।
नो कंट्री इज फोरेन, नो मेन इज स्ट्रेंज।
बहुत अच्छी लगी थी, आज भी लगती है। क्योंकि बात सही है। यह सही है की मानव किसी भी देश, धर्म या प्रान्त के हों, सबकी बाहरी बनावट अलग हो सकती है। रंग-रूप , नयन- नक्श, डील-डौल, भाषा, रीति-रिवाज़, रहन-सहन, खान-पान, मान्यताएं और धारणाएं अलग हो सकती हैं।
लेकिन सबकी एनाटोमी ( शारीरिक रचना ), फिजियोलोजी ( शरीर क्रिया विज्ञानं ), बायोकेमिस्तरी ( जीव रसायन विज्ञानं ) , पेथोलोजी ( विकृति विज्ञानं ), यहाँ तक की फार्मेकोलोजी ( भेषजगुण विज्ञानं ) भी एक जैसी ही होती हैं।
जब ऊपर वाले ने ही हमें अलग नही बनाया, तो फ़िर इंसान ने ही क्यों धर्म, देश, प्रान्त और जात-पात बना कर घृणा और द्वेष की भावना को जाग्रत कर इंसान को इंसान का दुश्मन बना दिया?
अब ज़रा सोचिये :
क्या आसमान में उड़ते पंछियों की उड़ान की कोई सीमा निर्धारित हो सकती है?
क्या पर्वतों से बहती नदियों के बहाव को सरहदें रोक पाई हैं ?
क्या पवन के झोंके सीमाओं की सीमा में सिमट कर रह सकते हैं ?
क्या चाँद, सूरज और सितारों की रौशनी पर किसी मुल्क का प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है ?
नही ना, तो फ़िर इंसान क्यों इंसान का दुश्मन बन बैठा है, इस नश्वर संसार के सांसारिक मसलों को लेकर?
बहुत पहले जगजीत सिंह की गायी एक ग़ज़ल याद आती है :
हम तो हैं परदेस में
देश में, निकला होगा चाँद
अपने घर की छत पर कितना
तन्हा होगा चाँद, हो ----
अब ज़रा इसे देखिये :
क्या आप बता सकते हैं, ये चाँद देश का है या परदेस का ???
Thursday, October 22, 2009
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kuchh cheeze desh pardesh ki seema se baahar hoti hain chand bhi unhi me se ek hain
ReplyDeletehttp//jyotishkishore.blogspot.com
गर इसमें पानी है तो
ReplyDeleteदेश का
वरना
विदेश का।
sundar soch vichar wali saarthak rachna
ReplyDeleteबहुत खूब -- मै कोशिश करके हार गया चाँद के देश का पता करके.
ReplyDeleteमेरी एक गज़ल का शेर है:
ReplyDeleteदिखे है आसमां इक सा, इधर से उस किनारे तक
न जाने किस तरह वो अपनी सरहद नापता है.
बहुत उम्दा शेर समीर जी. और सार्थक भी. शुक्रिया.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छे विचार है सारा, जहां हमारा, क्या हक़ीकत में ये हो सकता है।
ReplyDeletehttp://sunitakhatri.blogspot.com
क्या आसमान में उड़ते पंछियों की उड़ान की कोई सीमा निर्धारित हो सकती है?
ReplyDeleteक्या पर्वतों से बहती नदियों के बहाव को सरहदें रोक पाई हैं ?
क्या पवन के झोंके सीमाओं की सीमा में सिमट कर रह सकते हैं ?
क्या चाँद, सूरज और सितारों की रौशनी पर किसी मुल्क का प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है ?
वाह ....!!
इस प्राकृतिक तरीके से बखूबी समझाया आपने ......!!
दिखे है आसमां इस पार ,उस पार भी वही
फिर क्यों सरहदों पर दीवारें हैं ये बन रहीं
सुन्दर आलेख, बधाई.
ReplyDeleteसार्थक रचना
ReplyDeleteअगर हम तेरा मेरा करने लगें तो हमारी ये बहस कभी खतम नहीं होगी
आभार
bahut mahatvapoorna aalekh likha aapne sir, Sam uncle ka sher bhi kamaal ka hai..
ReplyDeleteपंछी, नदियां, पवन के झोंके
ReplyDeleteकोई सरहद ना इनको रोके
जरा सोचो तो हमें क्या मिला इंसां होके...
माशाअल्लाह, क्या बात है डॉक्टर साहब...आपके अंदर के जावेद अख्तर से पहली बार साक्षात्कार हुआ...
जय हिंद...
aapka shubh sandesh
ReplyDeleteaur aapki paakeeza bhaavnaaeiN
jan jan tk pahuncheiN
yahee kaamna hai
खुशदीप भाई, ये खूबसूरत गाना, इस विषय पर सही बैठता है. आपके संगीत प्रेम को देखते हुए इसे मैंने आपके लिए ही छोडा था. आपने लिखकर कमी पूरी कर दी. आभार
ReplyDeleteक्या बात है भाई, हर पोस्ट में एक नया उपनाम?
हरकीरत जी, आपने मेरी पसंद की पंक्तियाँ पसंद की हैं.
आभार. इससे पता चलता है की आप भी कितनी संवेदनशील हैं.
शेर लाज़वाब है.
वाह बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! इस बेहतरीन रचना और साथ ही सुंदर तस्वीर के लिए बधाई!
ReplyDeleteहर मनुष्य किसी न किसी मनुष्य से ही पैदा हुआ है यदि हम पीछे जाय्र्ंगे तो पायेंगे कि हमारा पिता तो एक ही है यानि हम सब भाई भाई है और मैटोकोंड्रिया जीन की थ्योरी यह बताती है कि हमारी आदिमाता भी एक ही है फिर यह द्वेष क्यों ?
ReplyDeleteKaheen se aapka link mila aur is blog pe aake behad achha laga!
ReplyDeleteKitna sahee kaha aapne..ek geet yaad aa gaya.."Dhool ka phool" is picture ka..Picture to nahee dekhi lekin geet ke chand alfaaz yaad hain:
"Qudrat ne to bakshee thee hame ekhee dhartee,
Hamne kaheen Bharat kaheen Iran banaya"...
Aapka aalekh " Jo tod de har bandh wo toofaan banegaa",kee tarah laga!
Geet kaa mukhada to aap zaroor jante honge:Tu Hindu banega na musalmaan banega,
Insaan kee aulaad hai, insaan banega"!
क्या चाँद, सूरज और सितारों की रौशनी पर किसी मुल्क का प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है ?
ReplyDeleteबिलकुल नहीं बहुत अच्छी रचना है और सवाल भी सोच विचार करने वाला है । मगर आदमी सोचना ही नहीं चाहता। धन्यवाद
वाह! वाह! बहुत खूब! "जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवी" को सार्थक किया आपने. यही नहीं, डॉक्टर होने के नाते चाँद (la lune) का जिक्र भी साथ-साथ कर दिया :)
ReplyDeleteलगता तो यही है कि हमारे यहाँ के मेधावी छात्रों को देख के उनके मन में असुरक्षा की भावना उत्पन्न होने लगी है
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