बचपन में एक कहानी सुनी थी ---
एक शरीफ आदमी रास्ते पर चला जा रहा था। अचानक उसके पैर में शूल घुस गई. बेचारा पैर पकड़ कर बैठ गया और रोने लगा. तभी वहां से एक दुष्ट किस्म का व्यक्ति गुज़रा, जो बड़ा खुश नज़र आ रहा था. पूछने पर पता चला की खुश इसलिए था क्योंकि उसे २००० रूपये का खजाना मिला था. इतने में एक साधू वहां से गुज़रा. उसने शरीफ आदमी से पूछा-- भाई क्यों रो रहे हो?
आदमी बोला-- मैं सारी जिंदगी अच्छे कर्म करता रहा, फिर भी मुझे ये मोटी सूल(शूल) गड़ गई, और ये पापात्मा, सारी जिंदगी कुकर्म करता रहा है, फिर भी इसे खजाना मिल गया. ये कैसा इन्साफ है?
इस पर साधू ने कहा-- भले आदमी, ये पुराने जन्म के कर्मों का फल है।
तेरे पिछले जन्म के कर्म इतने ख़राब थे की तुझे तो आज सूली टूटनी थी। लेकिन तेरे इस जन्म के कर्म इतने अच्छे हैं की तेरी सजा घट कर सिर्फ सूल रह गयी है.
और ये जो मूर्ख २००० पाकर खुश हुआ जा रहा है, इसे तो अपने पिछले अच्छे कर्मों की वज़ह से आज दो लाख मिलने थे, लेकिन इसने इस जन्म में इतने बुरे कर्म किये की इसका इनाम घटकर सिर्फ २००० ही रह गया.
इसलिए बच्चा, दुखी मत हो.
आदमी ने कहा, ये बात है और फ़ौरन खींचकर कांटे को निकाल दिया।
पिछली पोस्ट से क्रमश:
यूँ तो लोदी गार्डन घर से ज्यादा दूर नहीं है, और अक्सर पास से आना जाना होता रहता है. लेकिन पार्क में घुसते ही अहसास हुआ की पिछली बार हम वहां १५ साल पहले गए थे , अपने चुन मुन के साथ. इस बीच बच्चे भी बड़े हो गए और पार्क में भी बहुत बदलाव आ चुका था. बांस के पुराने पेड़ अभी भी हैं, लेकिन छोटे बड़े नयी नयी किस्म के सजावटी पेडों की बहुतायत आ गयी है ।
सुबह शाम, बुजुर्गों के दर्शन अभी भी हो जाते है टहलते हुए।
लेकिन जहाँ पहले झाडियों से कबूतर कबूतरी की घूटरघुन की आवाजें आती थी, आजकल खुले आम चोंच से चोंच टकराते नज़र आते हैं।
खैर, हम उस स्पॉट पर खड़े थे जहाँ ३० साल पहले काला पत्थर के गाने की शूटिंग हुई थी। एक पल के लिए हम अतीत में पहुँच गए. आँखों के आगे धुंद सी छाने लगी. अपनी नंदनी, जीवन संगिनी, अर्धांगनी हमें प्रवीण बेबी सी नज़र आने लगी. मन में आया की चलो आज बाथरूम से निकल कर पार्क में गाना गाया जाये अपनी सपना के साथ. अभी गला वला दुरस्त कर ही रहे थे की तभी --
उस स्पॉट पर ये मेहमान आ कर बैठ गए।
शेर जैसा ये कुत्ता, शायद मादा थी. इसके लिए कोई और शब्द मैं इस्तेमाल नहीं करना चाहता. अपने बच्चे के साथ आई थी, ज़ाहिर है मादा ही होगी. अब कुत्ते इंसान जैसे सोफिस्तिकेतेड तो हो नहीं सकते, की पहले शादी करें फिर बच्चे, फिर कुछ साल बाद तलाक का केस लड़ें और बच्चे भी आधे आधे।
इन्हें देखते ही रोमांस तो रफूचक्कर हो गया, उसकी जगह रोमांच हो आया.
अनायास ही मैंने उनकी तस्वीर ली, लेकिन दिल नहीं माना और सोचा की पास से ली जाये. लेकिन उसका डील डोल देखकर हिम्मत नहीं पड़ी।
पास बैठे कुछ लोग ताश खेल रहे थे, शायद पार्क के कर्मचारी थे. उनसे इनके मालिक के बारे में पूछा तो देखकर दंग रह गया. वहां मालिक नहीं, दो नौकर बैठे थे जो उनको घुमाने लाये थे।
मौसम सुहाना था , फिर भी कुत्ता छाँव में बैठा जीभ निकालकर हांफ रहा था। ज़ाहिर है , उसे गर्मी लग रही थी. भई, किसी अंग्रेज़ का चहेता था, ऐ सी में रहने की आदत होगी.
सारी हालात जानकार अब शुरू हुआ --अंतर्मंथन---मन में विचारों की उठक पटक।
इस कुत्ते ने क्या किस्मत पाई है. जहाँ हम १५ साल बाद आये हैं, ये वहां रोज़ आता होगा. ज़रूर पिछले जन्म में अच्छे कर्म किये होंगे।
अगर अच्छे कर्म किये होते तो कुत्ते का जन्म क्यों मिलता।
बात तो ये भी सही है. पर हुआ यूँ होगा की पहले तो कर्म बुरे रहे होंगे, लेकिन देह त्यागने से पहले यानी वानप्रस्थ अवस्था में कर्म सुधार लिए होंगे. इसलिए विधाता ने कहा होगा ---जा तेरे अच्छे कर्मों की वज़ह से तू इंसानों से भी ज्यादा सुख भोगेगा।
अगर कर्म इतने ही अच्छे हो गए थे तो जन्म भी इंसान का ही मिलना चाहिए था.
विधाता ने कहा होगा, बेटा अच्छे कर्म करने में तुमने थोडी देर कर दी, क्योंकि तब तक तुम्हारा जन्म अलोट हो चूका था. अब जन्म तो तुम्हे कुत्ते का ही लेना पड़ेगा, लेकिन तुम्हारे अच्छे कर्मों की वज़ह से तुम इंसानों से भी बेहतर जिंदगी जीयोगे।
मोरल ऑफ़ स्टोरी :
अच्छे कर्म करने के लिए किसी मुहूर्त की ज़रुरत नहीं है. आज से ही शुरू करें.
इट इज नेवर तू लेट।
और अब --एक सवाल :
इस कुत्ते की नस्ल क्या है?
ज़वाब:
भई, हमें तो पता नहीं, क्या आप बता सकते है?
hहमे भी नहीं पता मगर आपकी पोस्ट बहुत दमदार है । आज से ही शुरू हो जाते हैं अच्छी काम करने के लिये ।मगर बुरे भी कभी नहीं किये? शुभकामनायें
ReplyDeleteप्रेरक कहानी डाक्टर साहब !
ReplyDelete"लेकिन जहाँ पहले झाडियों से कबूतर कबूतरी की घूटरघुन की आवाजें आती थी, आजकल खुले आम चोंच से चोंच टकराते नज़र आते हैं। "
दुरात्माओं का वास यहाँ भी काफी बढ़ गया है, अगले जन्म के लिए पैर में शूल चुबाने का जूनून छाया है इनपर :)
कर्म किये जा ,फल की इच्छा मत कर तू इंसान
ReplyDelete" prernadayak kahani ...bahut bahut aabhar aapka ."
ReplyDelete"acche karm aur burey karm ka aapne jo talmel saadha hai vo bahut hi behtarin hai ..."
----- eksacchai { AAWAZ }
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दराल साहब बहुत सुन्दर बात कही ! उधर सूली लगे इंसान को सुखी कर दिया इधर कुते को सुखी होते हुवे दुखी कर दिया ! पर ज्ञान तो मिल ही गया ! सुन्दर !!
ReplyDeleteनिर्मला जी, शुक्रिया. आप जैसे सच्चे लोगों की कमी बहुत खलती है आजकल.
ReplyDeleteकर्मन की गति न्यारी उधो !
ReplyDeleteकर्मो का हिसाब किताब समझ में नही
आता !डा .साहब बांस के झुरमुट है
यही काफी है .
डॉक्टर साहब, अब तो बस कर्म ही सुधारने है...कभी कभी 'टीचर्स' ज़रूर परेशान कर देते हैं...लेकिन एक शिकायत है आपसे...आपने लिखा...
ReplyDeleteलेकिन जहाँ पहले झाडियों से कबूतर कबूतरी की घूटरघुन की आवाजें आती थी, आजकल खुले आम चोंच से चोंच टकराते नज़र आते हैं।
कम से कम एक फोटो ही खींच लेते...
जय हिंद...
सबके अपने अपने कर्म हैं...........हमको तो बस खुद को देखना है .
ReplyDeleteInspiring...really very inspiring...
ReplyDeleteBEAUTIFUL
ReplyDeletebahut prernadayk post aur utna hi achha prstut krne ka andaj.achhe karm hi to sath nibahte hai.
ReplyDeleteabhar
प्रेरक कहानी है..बस आज ही से लगते हैं. :)
ReplyDeleteखुशदीप भाई, जो काम हॉलीवुड ५० साल से कर रहा है, और बौलीवुड ५ साल से, तो भला अब हमारे दिखाने की ज़रुरत कहाँ रह गई.
ReplyDeleteतस्वीरें पसंद आई हों , तो और दिखा देता हूँ, ताकि मेरी दिल्ली की छवि थोडी और सुधर सके.
समीर जी, आपको बदलने की कहाँ ज़रुरत है.
ReplyDeleteआपका काम तो बदलाव लाने का है. जो आप बखूबी कर रहे हैं.
kahaani bahut achchi lagi......... aur kutte to bahut hi achche lage......... main khud dog lover hoon........ mere paas chaar kutte hain........... Jango, Rex, Bush aur Tyro....... Jango labrador hai, Rex Great den hai, Bush German shepherd hai.......aur Tyro doberman aur desi ka cross hai......
ReplyDeleteaur is kutte ki nasl Lhasa hai.........
डाक्टर साहब,
ReplyDeleteसबसे पहले आपको ह्रदय से धन्यवाद की आप हमारे ब्लोग पर आये और हमारा हौसला बढाया...
आपका आलेख प्रेरित कर गया है....खुद और और भी ज्यादा बदलने कोशिश ज़रूर करेंगे ....आज से...बल्कि अभी से...
बहुत खूब, महफूज़ अली साहब.
ReplyDeleteआपका कुकुर प्रेम वास्तव में काबिले-तारीफ़ है.
इंसान इंसान से भी तभी प्रेम कर सकता है , जब उसमे असहाय, मूक प्राणियों से प्रेम करने का ज़ज्बा हो.
वैसे आपने बचा लिया, वरना मैं तो समझा था की ये पोस्ट कोरी जायेगी नस्ल के बारे में. आभार
मन्जूषा जी, आपकी aawaz suni. बहुत madhur है.
ReplyDeleteगीत/ gazal भी बहुत प्यारा है.
हम तो june july में toronto में थे. quebek भी गए थे.
Ajex में sameer lal जी से भी mulakaat हुई.
पहले पता होता तो aapse भी milne का avsar मिलता.
bahut hi achchha sandesh, achchhe lekh ke liye badhai sir.
ReplyDeleteडाक्टर साहब दिल बाग़ बाग़ हो गया आपकी पोस्ट को पढ़ कर..थोडी देर से पहुंचा लेकिन पहुँच गया शायद पिछले जन्म के पुन्य का फल है...बहुत रोचक अंदाज़ में प्रेरणा दायक बात की है आपने...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
"अच्छे कर्म करने के लिए किसी मुहूर्त की ज़रुरत नहीं है. आज से ही शुरू करें.
ReplyDeleteइट इज नेवर तू लेट"
सीख देती बहुत बढ़िया पोस्ट...
शायद कुछ बुरे कर्म किए होंगे इस या उस जन्म में जो इस शानदार पोस्ट को पढ़ने के लिए इतने दिनों तक वंचित रह गया .. :-(