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Sunday, April 21, 2024

देश की बढ़ती जनसंख्या...

 जिनके पास नहीं है खाने को दाने,

वे चले हैं बच्चों की फौज बनाने। 

और जिनके पास माल ही माल है,

वो बच्चों के मामले में बिलकुल कंगाल हैं। 


कहीं पर नहीं है खाने के निवाले,

तो कहीं पर नहीं हैं खाने वाले। 

अमीर देश के अमीर लोग बच्चे नहीं जनते,

गरीब देश के गरीब लोग जनने से नहीं थमते। 

विश्व का संतुलन बिगड़ता जा रहा है,

इसीलिए इंसान का सकून छिनता जा रहा है। 


दूसरी ओर:

आज के युवा मस्ती में इस कदर झूल गए हैं,

लगता है जैसे बच्चे पैदा करना ही भूल गए है। 

फिर पचास की उम्र में नैप्पी बदलते नज़र आते हैं,

बच्चे के पिता हैं या दादा, ये हम समझ नही पाते हैं। 

आधुनिकता की दौड़ में अकेले रहना मज़बूरी है,

अकेले ना रहें, इसलिए बच्चे पैदा करना जरूरी है। 

Wednesday, April 17, 2024

छोटे प्रकाशक की व्यथा ...

 बुक स्टॉल पर रखी अपनी पुस्तक जब दिखी,

तो हमने प्रकाशक महोदय से पूछा, कोई बिकी ?


वो बोला, सर स्टॉल पर लोग तो बहुत आते हैं,

परंतु बस आप जैसे लेखक ही आते हैं। 


वे आते हैं, अपनी खुद की किताब उठाते हैं,

फोटो खिंचवाते हैं, और चले जाते हैं। 


भई सारे पाठक तो बड़े प्रकाशकों ने ही हैं निगले, 

एक दिन एक पाठक जी आए, पर वे भी लेखक ही निकले। 


रखे रखे बिन बांटे मिठाइयां कसैली हो गईं हैं,

विमोचन करते करते किताबें भी मैली हो गईं हैं। 


पुस्तक मेले में छोटे प्रकाशक की बड़ी दुर्गति होती है, 

अज़ी हम से ज्यादा तो चाय वाले की बिक्री होती है। 


सोचता हूं अब अगले साल मेले में कतई नहीं आऊंगा,

और आया भी तो बुक स्टॉल नही, टी स्टॉल लगाऊंगा। 


हमने कहा, भैया बड़ी मछली हमेशा छोटी को निगलती है,

पर खुद को छोटी मछली समझना तुम्हारी भारी गलती है। 


अरे छोटे प्रकाशक ही साहित्य की असली सेवा करते हैं,

उन्हीं के सहारे तो हम जैसे नौसिखिए भी लेखक बनते हैं। 


देखना इस साल कमल का फूल देश में फिर खिलेगा,

भैया कर्म करते जाओ, एक दिन फल जरूर मिलेगा। 


Monday, April 1, 2024

आधुनिकता की दौड़...

 जिनके पास नहीं है खाने को दाने,

वे चले हैं बच्चों की फौज बनाने। 

और जिनके पास माल ही माल है,

वो बच्चों के मामले में बिलकुल कंगाल हैं। 


कहीं पर नहीं है खाने के निवाले,

तो कहीं पर नहीं हैं खाने वाले। 

अमीर देश के अमीर लोग बच्चे नहीं जनते,

गरीब देश के गरीब लोग जनने से नहीं थमते। 


विश्व का संतुलन बिगड़ता जा रहा है,

इसीलिए इंसान का सकून छिनता जा रहा है। 


आज के युवा मस्ती में इस कदर झूल गए हैं,

लगता है जैसे बच्चे पैदा करना ही भूल गए है। 

फिर पचास की उम्र में नैप्पी बदलते नज़र आते हैं,

बच्चे के पिता हैं या दादा, ये हम समझ नही पाते हैं। 


आधुनिकता की दौड़ में अकेले रहना मज़बूरी है,

अकेले ना रहें, इसलिए बच्चे पैदा करना जरूरी है। 

Saturday, March 23, 2024

चचा छक्कन के केले...

 चाचा छक्कन जब सुबह से 

आराम करते करते थक गए

तो यकायक उन्हें गोल गप्पे याद आ गए।

यह सोचकर ही चचा एक बार तो शरमा गए।

आखिर औरों को हाइजीन का पाठ पढाते थे आप,

फिर खुद कैसे करते ये पाप। 


तभी याद आया कि वो मिठाई वाला

तो ग्लव्ज पहनकर खिलाता है। 

और स्वाद भी नंबर वन पर आता है। 

सोचा चलो चलते हैं लेके राम का नाम,

इसी बहाने वॉक करके हो जाएगा व्यायाम। 

लेकिन वहां गोल गप्पे का काउंटर खाली पड़ा था,

उसकी जगह एक बड़ा सा टेंट गड़ा था। 

चारों ओर बिखरी थीं गुज्जियां ही गुज्जियाँ,

हाइजीन की तो फिर उड़ रही थीं धज्जियां। 

होली तो अभी तीन दिन थी दूर,

फिर जाने लोगों में किस बात का था सुरूर। 


चाचा ने सोचा, खोमचा वाला भी तो खिलाता है,

और चटकारे लेकर खाने में सचमुच बड़ा मज़ा आता है।

खोमचे वाले तो दिखाई दिए अनेक,

पर हर एक पर भीड़ बड़ी थी,

वो मिठाई वाले की कस्टमर नारियां,

अब सब खोमचे वाले के पास खड़ी थीं। 

अब तो गोल गप्पे का पानी देखकर

मुंह में पानी आने लगा था।

लेकिन इसका भी डर सताने लगा था,

कि खुले में गोल गप्पे कैसे खाएंगे।

कोई जान पहचान वाला दिख गया

तो क्या मुंह दिखाएंगे। 


बस फिर मन में एक कसक लिए

मुंह में आए पानी को सटक, 

चचा वहां से खिसक लिए।

अभी जा ही रहे थे सर झुकाए,

मन ही मन शरमाए,

तभी रेहड़ी पर रखे केले दिखे,

तो चाचा ने फौरन एक दर्जन खरीद लिए,

और घर की राह पर निकल लिए। 


अब चचा छक्कन हर आधे घंटे में 

एक केला खाए जा रहे हैं,

और मन में हिसाब लगाए जा रहे हैं,

कि पत्नी के आने तक कितने बचेंगे,

या बचेंगे भी नहीं, यदि पत्नी देर से आई।

वैसे भी उन्हें केले पसंद हैं ही नहीं,

उनको खिला देंगे वही मिठाई वाले की मिठाई। 

और इस तरह गोल गप्पे के चक्कर में

चचा एक दर्जन केले गप गए,

पहले आराम कर के थके थे, 

अब केले खाकर पस्त हो गए। 

और आराम से लंबी तान मस्त सो गए। 


Monday, March 18, 2024

अभी बाकी है ....

 कारवां गुज़र गया, पर गुबार अभी बाकी है। 

मुर्झाने लगे हैं चमन, पर बहार अभी बाकी है।


अब ना मुंह में दांत हैं, बिनाई भी है कमज़ोर,

बूढ़ा मत समझो जानम, खुमार अभी बाकी है। 


गिरे सर के बाल सर के बल, निकला चांद बेदाग,

सूखी फसल बालों की, खरपतवार अभी बाकी हैं।


इश्क हम बहुत करते रहे उनसे यूं तो जिंदगी भर,

उम्र निकल गई पर, प्यार का इजहार अभी बाकी है। 


ताउम्र करते रहे इंतजार मन में यही उम्मीद लिए,

कि इज़हार हो ना हो, पर इनकार अभी बाकी है। 


आधुनिकता की होड़ में दौड़ रहा है सारा संसार,

खुशकिस्मत हैं हम, देश में संस्कार अभी बाकी है। 


बदल लिया है यूं तो हमने भी आशियां अपना,

कहने को दूर भले है, पर प्यार अभी बाकी है। 


Monday, March 11, 2024

विदेश...

 

अज़ीब यहां के लोग हैं, अजीबो गरीब यहां का हाल है,

ना किसी की जेब में बटुआ, ना कोई रखता नकद माल है। 


प्लास्टिक कार्ड या स्मार्ट फोन से करते हैं सारी खरीदारी,

और उसी से होती है है, बस, स्ट्रीट कार या ट्रेन की सवारी। 


इन्हें देख हम भी प्रेस्टो और क्रेडिट कार्ड से लैस हो गए हैं,

और विदेश आ कर ही सही, पूर्णतया कैशलैस हो गए हैं।  


यहां ना किसी के हाथ में पहनी घड़ी दिखती है, 

ना किसी के गले में सोने की चेन पड़ी दिखती है। 


ना कोई शर्ट पैंट पहनता है ना कोट ना सूट ना टाई,

ना घर में बीवी होती है, ना आती कामवाली बाई। 


खाना खुद नहीं बनाते हैं, रेस्टोरेंट का जंक फूड खाते हैं,

इसीलिए यहां स्टोर्स विटामिंस की  गोलियों से भरे पाते हैं।


ना कोई बैक पॉकेट में कंघी रखता है ना जेब में रूमाल,

ना घर में बाल बच्चे होते हैं, ना सिर पर बचे होते हैं बाल। 


बच्चा कोई पैदा नहीं करता, पर घर में कुत्ता सब पालते हैं,

बेघर इंसान भी सामान के साथ, पैट जरूर संभालते हैं। 


यहां ना कोई किसी से बात करता है ना कोई पूछता हाल,

ना कोई हमें अंकल कहता, ना कोई बुलाता डॉक्टर दराल। 


बड़ा कन्फ्यूजन है, अजीब हमारी हालत हो गई है,

ऐसा लगता है जैसे हमारी तो पहचान ही खो गई है। 


यहां अपना परिचय देना भी लगता है एक काम,

ज़रा ज़रा से बच्चे भी कहते हैं, नाम बताओ नाम। 


लिफ्ट में सब सर झुकाए रहते हैं, कोई मुंह नहीं खोलता,

सॉरी और थैंक यू के सिवा, तीसरा लफ़्ज़ नहीं बोलता। 


ना कोई फोन करता, ना है मिलने का कोई अरेंजमेंट,

बात करने के लिए भी पहले लेना पड़ता है अपॉइंटमेंट।


किंतु गर हो कोई पार्टी तो सब नॉन स्टॉप बतियाते हैं,

ये और बात है कि हम वो चपड़ चपड़ समझ नहीं पाते हैं। 


यहां बूंद बूंद कीमती है, पानी है लोगों की जिंदगानी,

वहां वो झीलों का शहर है, चारों ओर है पानी ही पानी।


नलों में भी पीने का साफ पानी चौबीस घंटे रहता है,

टैप खोलो तो गर्म पानी बड़ी हाई स्पीड से बहता है। 


सर्दी का ये हाल है कि बाहर तापमान माइनस में होता है,

घर के अंदर पंखा ना चलाओ तो गर्मी से पसीना बहता है। 


हम तो अपने घर के सारे कपड़े पहनकर ही घर छोड़ते हैं, 

वहां के युवा - तीन डिग्री में भी निकर पहन कर दौड़ते हैं। 


एक तो सर्दी ने घर में कैद करके झमेला कर दिया है,

उस पर मोबाइल ने सबको भीड़ में अकेला कर दिया है। 


जाने क्या ढूंढती रहती हैं नजरें, जो सर झुकाए रहते हैं,

चलते फिरते, उठते बैठते, बस मोबाइल में समाए रहते हैं। 


चमक धमक है, सुख साधन हैं, वहां तकनीकि महारत है,

पर जहां अपनों का प्यार है, वह केवल अपना भारत है। 



Sunday, January 28, 2024

ये सिक्योरिटी चेक वाले...

 हर बार निकल जाती थी, इस बार नहीं निकली,

अटक गई। 

वो गोरी गोरी, लंबी सी जर्मन छोरी, हमारी शेविंग क्रीम झटक गई। 

किफायत का सौदा था, उसमे डिस्काउंट का 33% माल ज्यादा था,

फिर पुराने को छोड़कर, हमने केबिन बैग भी नया नया खरीदा था। 

सुंदर सुघड़ था और उसका डिजाइन भी निराला था,

बस इसी नए डिजाइन ने हमें दुविधा में डाला था। 


यूरोप में सिक्योरिटी चेक में बड़ी मारामारी सहन करनी पड़ती है,

घड़ी, पर्स ,मोबाइल , जूते और बेल्ट तक भी उतारनी पड़ती  है। 

फिर हाथ फैलाकर वे यहां वहां जाने कहां कहां से हाथ निकालते हैं,

बिना बेल्ट के लोग बड़ी मुश्किल से खिसकती पैंट को संभालते हैं। 


इधर सिक्योरिटी जेनटलमेन की जांच खत्म हुई तो हमने खुद को संभाला,

जैसे तैसे ओरिजनल रूप में आए और शर्ट को पेंट में डाला। 


फिर शुरू हुई बैग की तलाश, जब बैग कहीं नज़र नही आया,

और एक सरदारजी को हमे हमारे बैग जैसा बैग थामे पाया। 


तो हमने कहा पा जी कित्थे चले, साड्डा बैग ते छड़ते जाओ,

वो बोला ओए केड़ा बैग, ए ते साड्डे पिंड वाला बैग है बादशाहो। 

तभी सिक्योरिटी वाली लड़की एक बैग को अल्टी पलटी मारती दी दिखाई,

हमने बैग को पहचाना तो सोचा लगता है कोई नई मुसीबत आई। 

हमने डरते डरते कहा मैडम क्या बैग में कोई फजीहत  हो गई,

वो बोली आपकी तो नहीं, परंतु हमारी ज़रूर मुसीबत हो गई। 

डिटेक्टर का सेंसर बार बार आपके बैग में प्रॉब्लम दिखा रहा है, 

पर प्रॉब्लम क्या है कहां है, ये बिलकुल समझ में नहीं आ रहा है। 

आखिर उसके गोरे पर निर्भाव चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई,

जब कपड़ों के बीच हमारी शेविंग क्रीम उसके हाथ आ गई। 


बोली इसका वजन सवा सौ ग्राम है, ये प्लेन में नहीं जा पाएगा,

हम सोचने लगे कि 25 ग्राम एक्स्ट्रा से प्लेन कैसे भारी हो जाएगा। 


हिम्मत कर हमने कहा मैडम, 25 ग्राम को निकाल दें तो चलेगा,

वो बोली निकाल कर तो देखो, अभी 100 यूरो का चालान कटेगा। 


और इस तरह हमारी नई शेविंग क्रीम हमारे देखते देखते फिसल गई,

उस जर्मन छोरी के हाथों हमारी शेविंग क्रीम हमारे हाथों से निकल गई।