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Monday, October 27, 2025

देसी विदेशी।

 जेब में रूमाल, हाथ में घड़ी, और

पैंट की बैक पॉकेट में पर्स नजर आए,

तो समझ जाओ कि बंदा हिंदुस्तानी है।


ऊंची बिल्डिंग को ऊंट की तरह सर उठाकर देखे,

और उंगली हिलाकर मंजिलें गिनता नजर आए,

तो समझ जाओ कि.... भाई


पार्किंग या सड़क पर खड़ी गाड़ी,

और काले शीशे देखते ही कंघी करने लग जाए,

तो समझ जाओ कि बंदा...


मौसम सुहाना हो खिली खिली सी धूप हो ,

और नई शर्ट पैंट बैल्ट पहनकर पार्क में घूमने जाए,

तो समझ जाओ कि.... बाऊ


मॉल में घूमते हुए हर चीज को ताके झांके,

और हर शख्स को घूरता नज़र आए

तो समझो कि....


जेब्रा क्रॉसिंग पर सड़क पार कर रहा हो,

और बस या गाड़ी को आते हुए देखते ही रुक जाए,

तो समझ जाओ कि... पट्ठा


बस स्टेंड पर किसी के साथ खड़ा हो और

बस के आते ही चलो चलो बोलने लग जाए,

तो समझ जाओ...ये इंसान


किसी काउंटर पर लाइन लगी हो,

और बेझिझक सबसे आगे पहुंच जाए,

तो समझो कि....


हाथ में सेल्फी स्टिक लेकर वीडियो बनाए

और ओटवा को ओटावा बोलता नजर आए,

तो समझ जाओ ....


बंदा हिंदुस्तानी हो,

और सामने से बिना मुस्कराए अकड़ कर निकल जाए,

तो समझ जाओ कि बंदा पक्का हिंदुस्तानी है। 

Friday, October 10, 2025

उस दिन इतवार था ...

 उस वर्ष इतवार था। 


पति बोला, आज हमारा भी व्रत रखने का विचार है।

पत्नी बोली, साथ निभाओगे हमें इसका पूरा एतबार है। 

पर सोचती हूं, दफ्तर में गुपचुप समोसे कैसे खाओगे,

भूल गए क्या, इस वर्ष तो करवा चौथ के दिन इतवार है। 🌷🌷

Wednesday, September 17, 2025

 पेशे से जो पुश्तैनी हलवाई है,

उसको भी शुगर का पंगा निकला।

गए थे कराने गंजेपन का इलाज़,

डॉक्टर बेचारा खुद ही गंजा निकला।


जो नेता देने आया था भाषण,

अरे देखो वो तो हकला निकला।

सफेद लिबास में जो दिखा दानवीर,

काले धन का वो पुतला निकला।


बहुत करता है वो बाहर दिखावा,

घर के अंदर तो कड़का निकला।

दूर से दिखी काली जुल्फों की घटा,

पास से देखा तो वो लड़का निकला।


मशक्कत से उगाया गमले में धनिया,

सब्जियों के साथ मुफ्त का निकला।

क्या लेकर आया था क्या लेकर जाएगा,

बाबा का ये प्रवचन तो 1500 का निकला।


जिसे कमज़ोर समझ दिखाई अकड़,

उसका हाथ तो बड़ा तगड़ा निकला।

ये जो बहस करते दिखते हैं नेता टीवी पर,

अंत में वो बिना बात का झगड़ा निकला।

Friday, September 5, 2025

शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं।

 यूं तो औपचारिक शिक्षा ज्ञान हमें स्कूल और कॉलेज से प्राप्त होता है, जो आज के वैज्ञानिक युग में अत्यंत महत्वपूर्ण भी है। फिर भी अनौपचारिक ज्ञान हमें अपने मात पिता और घर के बुजुर्गों से प्राप्त होता है, जिसका महत्व भी कदाचित कम नहीं होता। क्योंकि यही वो ज्ञान है जो हमें दुनियादारी सिखाता है। दुनिया में रहने के लिए दुनियादारी का ज्ञान भी आवश्यक है, वरना लोग आपको भोला समझते है। 

अक्सर कामकाजी मात पिता के पास समय नहीं होता बच्चों को यह ज्ञान देने के लिए। दादा दादी के पास समय भी होता है और अनुभव का ज्ञान भी । लेकिन आज के ज़माने में बच्चों के साथ न तो दादा दादी होते हैं, न ही दादा दादी के पास बच्चे जिन्हें वे कुछ सिखा सकें। 

दुनिया में ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें न तो स्कूल कॉलेज की शिक्षा मिली, न ही बुजुर्गों का साथ। फिर भी कुछ लोग अपने बल बूते पर मेहनत कर ज्ञान हासिल करते हैं और जिंदगी में सफल भी होते हैं। उनकी ज़िंदगी ही उनका सबसे बड़ा शिक्षक साबित होती है। हालांकि ऐसे लोग विरले ही होते हैं। 

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को नमन और सभी शिक्षकों, अभिभावकों और बुजुर्गों को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं। 🌷🌷

Sunday, August 31, 2025

रिटायर्ड होकर टायर्ड ना हों।

 एक बात हमको हरदम सताती है,

कि आजकल 60 तो क्या,

70 की उम्र भी इतनी जल्दी आ जाती है।

कहते हैं 60 में लोग सठियाने लगते हैं,

पर हमें तो लगता है ,

70 में भी ज्यादा सयाने लगते हैं।

मगर सरकार उम्र भर की सेवाओं का ये कैसा सिला देती है,

जो भरी जवानी में कर परमानेंट तबादला देती हैं।


खाली घर में रहकर हाथ पैर भी टेढ़े हो जाते हैं,

सेवानिवृत होकर तो जवान भी बूढ़े हो जाते हैं।

इसीलिए कहते हैं भैया रिटायर्ड हुए तो क्या, टायर्ड मत हो,

मिलो मिलाओ, कविता लिखो, सुनो सुनाओ, फिर ना कोई ज़हमत हो। 

Tuesday, August 12, 2025

ज़िंदगी एक ग़ज़ल होती है ...

 जन्मदिन पर दोस्तों की दुआएं हों,

और अपनों का साथ हो,

तो ज़िंदगी एक ग़ज़ल होती है।


बच्चे केक मंगवाएं,

और केक काटने में पत्नी हाथ बंटाए,

तो ज़िंदगी एक ग़ज़ल होती है।


बेटी विदेश से फूल भिजवाए,

और एक प्यार सा संदेश पहुंचाए,

तो ज़िंदगी एक ग़ज़ल होती है।


पुत्र केक खिलाए, पुत्रवधू फोटो खींचे,

और पत्नी केक खिलाकर गाल पर केक लगाए,

तो ज़िंदगी एक ग़ज़ल होती है।


वर्षों के साथी डॉक्टर, ब्लॉगर, और कवि मित्र साथ हंसें मुस्कुराएं,

और जिंदगी सत्तरवें साल में प्रवेश कर जाए,

तो ज़िंदगी एक ग़ज़ल होती है। 

Wednesday, August 6, 2025

दोहे...

 लेडी चालक देख के, फौरन संभला जाय,

ना जाने किस मोड़ पे,बिना बात मुड़ जाय।


पर्वत तो यूं बिखर रहे, ज्यों ताश के पत्ते,

पेड़ काटकर बन रहे ,रिजॉर्ट्स बहुमंजिले।


जब पाप बढ़े जगत में, कुदरत करती न्याय,

आजकल तो सावन में, शेर भी घास ख़ाय।


उन्नत शहर की नालियां, बारिश में भर जाय,

क्या करें हर सावन में, बारिश आ ही जाय।